Surah Al Baqara in Hindi Ayat 235 to 260 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 235 to 260 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 235 to 260


व ला जुना – ह अलैकुम फ़ीमा अर्रज्तुम् बिही मिन् ख़ित्बतिन्निसा – इ औ अक्नन्तुम् फी अन्फु सिकुम , अलिमल्लाहु अन्नकुम् स – तज्कुरूनहुन् – न व लाकिल्ला तुवाअिदूहुन् – न सिर्रन् इल्ला अन् तकूलू कौलम् – मअ्रूफ़न् , व ला तअ्ज़िमू अुक्दतन्निकाहि हत्ता यब्लुगल – किताबु अ – ज लहू , वअलमू अन्नल्ला – ह यअ्लमु मा फ़ी अन्फुसिकुम् फ़ह् – ज़रूहु वअ्लमू अन्नल्ला – ह गफूरून् हलीम (235)
और अगर तुम (उस ख़ौफ से कि शायद कोई दूसरा निकाह कर ले) उन औरतों से इशारतन निकाह की (कैद इद्दा) ख़ास्तगारी (उम्मीदवारी) करो या अपने दिलो में छिपाए रखो तो उसमें भी कुछ तुम पर इल्ज़ाम नहीं हैं (क्योंकि) ख़ुदा को मालूम है कि (तुम से सब्र न हो सकेगा और) उन औरतों से निकाह करने का ख्याल आएगा लेकिन चोरी छिपे से निकाह का वायदा न करना मगर ये कि उन से अच्छी बात कह गुज़रों (तो मज़ाएक़ा नहीं) और जब तक मुक़र्रर मियाद गुज़र न जाए निकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो कि जो कुछ तुम्हारी दिल में है ख़ुदा उस को ज़रुर जानता है तो उस से डरते रहो और (ये भी) जान लो कि ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला बुर्दबार है (235)
ला जुना – ह अलैकुम् इन् तल्लक्तुमुन्निसा – अ मा लम् तमस्सूहुन् – न औ तफ़रिजू लहुन् – न फ़री – ज़ तंव – व मत्तिअ़ू हुन् – न अलल् – मूसिअि क़ – दरूहू व अलल् – मुक्तिरि क़ – दरूहू मताअम् बिल्मअ्रूफ़ि हक्कन् अलल – मुह्सिनीन (236)
और अगर तुम ने अपनी बीवियों को हाथ तक न लगाया हो और न महर मुअय्युन किया हो और उसके क़ब्ल ही तुम उनको तलाक़ दे दो (तो इस में भी) तुम पर कुछ इल्ज़ाम नहीं है हाँ उन औरतों के साथ (दस्तूर के मुताबिक़) मालदार पर अपनी हैसियत के मुआफिक़ और ग़रीब पर अपनी हैसियत के मुवाफिक़ (कपड़े रुपए वग़ैरह से) कुछ सुलूक करना लाज़िम है नेकी करने वालों पर ये भी एक हक़ है (236)
व इन् तल्लक्तुमूहुन् – न मिन् कब्लि अन् तमस्सूहुन् – न व कद् फ़रज्तुम् लहुन् – न फ़री – जतन् फ़ – निस्फु मा फ़रज्तुम् इल्ला अंय्यअ्फू – न औ यअ्फुवल्लज़ी बि – यदिही उक्दतुन्निकाहि , व अन् तअफू अक़्रबु लित्तक्वा , व ला तन्सवुल – फ़ज़ – ल बैनकुम , इन्नल्ला – ह बिमा तअ्मलू – न बसीर (237)
और अगर तुम उन औरतों का मेहर तो मुअय्यन कर चुके हो मगर हाथ लगाने के क़ब्ल ही तलाक़ दे दो तो उन औरतों को मेहर मुअय्यन का आधा दे दो मगर ये कि ये औरतें ख़ुद माफ कर दें या उन का वली जिसके हाथ में उनके निकाह का एख्तेयार हो माफ़ कर दे (तब कुछ नही) और अगर तुम ही सारा मेहर बख्श दो तो परहेज़गारी से बहुत ही क़रीब है और आपस की बुर्ज़ुगी तो मत भूलो और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा ज़रुर देख रहा है (237)
हाफ़िजू अलस् स – ल – वाति वस्सलातिल – वुस्ता व कूमू लिल्लाहि कानितीन (238)
और (मुसलमानों) तुम तमाम नमाज़ों की और ख़ुसूसन बीच वाली नमाज़ सुबह या ज़ोहर या अस्र की पाबन्दी करो और ख़ास ख़ुदा ही वास्ते नमाज़ में क़ुनूत पढ़ने वाले हो कर खड़े हो फिर अगर तुम ख़ौफ की हालत में हो (238)
फ़ – इन् खिफ्तुम् फ़ – रिजालन् औ रूक्बानन् फ़ – इज़ा अमिन्तुम् फ़ज्कुरूल्ला – ह कमा अल् – ल – म – कुम् मा लम् तकूनू तअ्लमून (239)
और पूरी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पैदल जिस तरह बन पड़े पढ़ लो फिर जब तुम्हें इत्मेनान हो तो जिस तरह ख़ुदा ने तुम्हें (अपने रसूल की मआरफत इन बातों को सिखाया है जो तुम नहीं जानते थे (239)
वल्लज़ी – न यु – तवफ्फ़ौ – न मिन्कुम् व य – ज़ – रू – न अज्वाजंव् – वसिय्यतल् लि – अज्वाजिहिम् मताअन् इलल – हौलि गै – र इख्राजिन् फ़ – इन ख़रज् – न फ़ला जुना – ह अलैकुम् फी मा फ़ – अल् – न फ़ी अन्फुसिहिन् – न मिम् – मअरूफ़िन् , वल्लाहु अज़ीजुन हकीम (240)
उसी तरह ख़ुदा को याद करो और तुम में से जो लोग अपनी बीवियों को छोड़ कर मर जाएँ उन पर अपनी बीबियों के हक़ में साल भर तक के नान व नुफ्के (रोटी कपड़ा) और (घर से) न निकलने की वसीयत करनी (लाज़िम) है पस अगर औरतें ख़ुद निकल खड़ी हो तो जायज़ बातों (निकाह वगैरह) से कुछ अपने हक़ में करे उसका तुम पर कुछ इल्ज़ाम नही है और ख़ुदा हर यै पर ग़ालिब और हिक़मत वाला है (240)
व लिल्मुतल्लकाति मताअुम् बिलमअरूफ़ि , हक्कन अलल मुत्तकीन (241)
और जिन औरतों को ताअय्युन मेहर और हाथ लगाए बगैर तलाक़ दे दी जाए उनके साथ जोड़े रुपए वगैरह से सुलूक करना लाज़िम है (241)
कज़ालि – क युबय्यिनुल्लाहु लकुम् आयातिही लअल्लकुम् तअ्किलून (242)
(ये भी) परहेज़गारों पर एक हक़ है उसी तरह ख़ुदा तुम लोगों की हिदायत के वास्ते अपने एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता है (242)
अलम् त – र इलल्लज़ी – न ख़ – रजू मिन् दियारिहिम् व हुम् उलूफुन् ह – ज़रल्मौति फ़का – ल लहुमुल्लाहु मूतू सुम् – म अह्याहुम , इन्नल्ला – ह लजू फ़ज्लिन् अलन्नासि व लाकिन् – न अक्सरन्नासि ला यश्कुरून (243)
ताकि तुम समझो (ऐ रसूल) क्या तुम ने उन लोगों के हाल पर नज़र नही की जो मौत के डर के मारे अपने घरों से निकल भागे और वह हज़ारो आदमी थे तो ख़ुदा ने उन से फरमाया कि सब के सब मर जाओ (और वह मर गए) फिर ख़ुदा न उन्हें जिन्दा किया बेशक ख़ुदा लोगों पर बड़ा मेहरबान है मगर अक्सर लोग उसका शुक्र नहीं करते (243)
व कातिलू फी सबीलिल्लाहि वअ्लमू अन्नल्ला – ह समीअ़ुन् अलीम (244)
और मुसलमानों ख़ुदा की राह मे जिहाद करो और जान रखो कि ख़ुदा ज़रुर सब कुछ सुनता (और) जानता है (244)
मन् ज़ल्लजी युक़्रिजुल्ला – ह कर्जन् ह – सनन् फ़ – युज़ाअि – फहू लहू अज्आफन् कसीर – तन् , वल्लाहु यक्बिजु व यब्सुतु व इलैहि तुर्ज़अून (245)
है कोई जो ख़ुदा को क़र्ज़ ए हुस्ना दे ताकि ख़ुदा उसके माल को इस के लिए कई गुना बढ़ा दे और ख़ुदा ही तंगदस्त करता है और वही कशायश देता है और उसकी तरफ सब के सब लौटा दिये जाओगे (245)
अलम् त – र इलल – म – लइ मिम् – बनी इस्राई – ल मिम् – बअ्दि मूसा इज़ कालू लि – नबिय्यिल् – लहुमुब्अस् लना मलिकन्नुक़ातिल फी सबीलिल्लाहि , का – ल हल असैतुम् इन् कुति – ब – अलैकुमुल् – कितालु अल्ला तुक़ातिलू , कालू व मा लना अल्ला नुक़ाति – ल फ़ी सबीलिल्लाहि व कद् उख्रिज्ना मिन् दियारिना व अब्ना – इना , फ़ – लम्मा कुति – ब अलैहिमुल् – कितालु तवल्लौ इल्ला क़लीलम् मिन्हुम , वल्लाहु अलीमुम् – बिज्जालिमीन (246)
(ऐ रसूल) क्या तुमने मूसा के बाद बनी इसराइल के सरदारों की हालत पर नज़र नही की जब उन्होंने अपने नबी (शमूयेल) से कहा कि हमारे वास्ते एक बादशाह मुक़र्रर कीजिए ताकि हम राहे ख़ुदा में जिहाद करें (पैग़म्बर ने) फ़रमाया कहीं ऐसा तो न हो कि जब तुम पर जिहाद वाजिब किया जाए तो तुम न लड़ो कहने लगे जब हम अपने घरों और अपने बाल बच्चों से निकाले जा चुके तो फिर हमे कौन सा उज़्र बाक़ी है कि हम ख़ुदा की राह में जिहाद न करें फिर जब उन पर जिहाद वाजिब किया गया तो उनमें से चन्द आदमियों के सिवा सब के सब ने लड़ने से मुँह फेरा और ख़ुदा तो ज़ालिमों को खूब जानता है (246)
व का – ल लहुम् नबिय्युहुम् इन्नल्ला – ह कद् ब – अ – स लकुम् तालू – त मलिकन् , कालू अन्ना यकूनु लहुल्मुल्कु अलैना व नह्नु अहक्कु बिल्मुल्कि मिन्हु व लम् युअ – त स – अतम् मिनल – मालि , का – ल इन्नल्लाहस्तफ़ाहु अलैकुम् व ज़ा – दहू बस्त – तन् फ़िल – इल्मि वल् – जिस्मि , वल्लाहु युअ्ती मुल्कहू मंय्यशा – उ , वल्लाहु वासिअुन् अलीम (247)
और उनके नबी ने उनसे कहा कि बेशक ख़ुदा ने तुम्हारी दरख्वास्त के (मुताबिक़ तालूत को तुम्हारा बादशाह मुक़र्रर किया (तब) कहने लगे उस की हुकूमत हम पर क्यों कर हो सकती है हालाकि सल्तनत के हक़दार उससे ज्यादा तो हम हैं क्योंकि उसे तो माल के एतबार से भी फ़ारगुल बाली (ख़ुशहाली) तक नसीब नहीं (नबी ने) कहा ख़ुदा ने उसे तुम पर फज़ीलत दी है और माल में न सही मगर इल्म और जिस्म का फैलाव तो उस का ख़ुदा ने ज्यादा फरमाया हे और ख़ुदा अपना मुल्क जिसे चाहें दे और ख़ुदा बड़ी गुन्जाइश वाला और वाक़िफ़कार है (247)
व का – ल लहुम् नबिय्युहुम् इन् – न आय – त मुल्किही अंय्यअ्ति – यकुमुत्ताबूतु फ़ीहि सकीनतुम् मिर्रब्बिकुम् व बकिय्यतुम् मिम्मा त – र – क आलु मूसा व आलु हारू – न तहमिलुहुल् – मलाइ – कतु , इन्न फ़ी जालि – क लआ – यतल्लकुम् इन् कुन्तुम् मुअमिनीन (248)
और उन के नबी ने उनसे ये भी कहा इस के (मुनाजानिब अल्लाह) बादशाह होने की ये पहचान है कि तुम्हारे पास वह सन्दूक़ आ जाएगा जिसमें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तसकीन दे चीजें और उन तब्बुरक़ात से बचा खुचा होगा जो मूसा और हारुन की औलाद यादगार छोड़ गयी है और उस सन्दूक को फरिश्ते उठाए होगें अगर तुम ईमान रखते हो तो बेशक उसमें तुम्हारे वास्ते पूरी निशानी है (248)
फ लम्मा फ़ – स – ल – तालूतु बिल्जुनूदि का – ल इन्नल्ला – ह मुब्तलीकुम बि – न हरिन् फ़ – मन् शरि – ब मिन्हु फलै – स मिन्नी व मल्लम् यत्अमहु फ़ – इन्नहू मिन्नी इल्ला मनिग्त – र – फ़ गुर् – फ़तम् बि – यदिही फ़ – शरिबू मिन्हु इल्ला क़लीलम् मिन्हुम , फ़ – लम्मा जा – व ज़हू हु – व वल्लज़ी – न आमनू म-अहू कालू ला ता – क – त लनल् – यौ – म बिजालू – त व जुनूदिही , कालल्लज़ी – न यजुन्नू – न अन्नहुम् मुलाकुल्लाहि कम् मिन फ़ि – अतिन् कलीलतिन् ग – लबत् फ़ि – अतन् कसी – रतम् बि – इज्निल्लाहि , वल्लाहु म – अस्साबिरीन (249)
फिर जब तालूत लशकर समैत (शहर ऐलिया से) रवाना हुआ तो अपने साथियों से कहा देखो आगे एक नहर मिलेगी इस से यक़ीनन ख़ुदा तुम्हारे सब्र की आज़माइश करेगा पस जो शख्स उस का पानी पीयेगा मुझे (कुछ वास्ता) नही रखता और जो उस को नही चखेगा वह बेशक मुझ से होगा मगर हाँ जो अपने हाथ से एक (आधा चुल्लू भर के पी) ले तो कुछ हर्ज नही पस उन लोगों ने न माना और चन्द आदमियों के सिवा सब ने उस का पानी पिया ख़ैर जब तालूत और जो मोमिनीन उन के साथ थे नहर से पास हो गए तो (ख़ास मोमिनों के सिवा) सब के सब कहने लगे कि हम में तो आज भी जालूत और उसकी फौज से लड़ने की सकत नहीं मगर वह लोग जिनको यक़ीन है कि एक दिन ख़ुदा को मुँह दिखाना है बेधड़क बोल उठे कि ऐसा बहुत हुआ कि ख़ुदा के हुक्म से छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ालिब आ गयी है और ख़ुदा सब्र करने वालों का साथी है (249)
व लम्मा ब – रजू लिजालू – त व जुनूदिही कालू रब्बना अफ्रिग अलैना सबरंव – व सब्बित् अक्दामना वन्सुरना अलल् – कौमिल् काफ़िरीन (250)
(ग़रज़) जब ये लोग जालूत और उसकी फौज के मुक़ाबले को निकले तो दुआ की ऐ मेरे परवरदिगार हमें कामिल सब्र अता फरमा और मैदाने जंग में हमारे क़दम जमाए रख और हमें काफिरों पर फतेह इनायत कर (250)
फ – ह – ज़मूहुम् बि – इज्निल्लाहि व क – त – ल दावूदु जालू – त व आताहुल्लाहुल – मुल् – क वल् – हिक्म – त व अल्ल – महू मिम्मा यशा – उ , व लौ ला दफ़्अुल्लाहिन्ना – स बअ् – ज़हुम् बिबअ्ज़िल ल – फ – स – दतिल – अर्जु व लाकिन्नल्ला – ह जू फज्लिन् अलल – आलमीन (251)
फिर तो उन लोगों ने ख़ुदा के हुक्म से दुशमनों को शिकस्त दी और दाऊद ने जालूत को क़त्ल किया और ख़ुदा ने उनको सल्तनत व तदबीर तम्द्दुन अता की और इल्म व हुनर जो चाहा उन्हें गोया घोल के पिला दिया और अगर ख़ुदा बाज़ लोगों के ज़रिए से बाज़ का दफाए (शर) न करता तो तमाम रुए ज़मीन पर फ़साद फैल जाता मगर ख़ुदा तो सारे जहाँन के लोगों पर फज़ल व रहम करता है (251)
तिल – क आयातुल्लाहि नत्लूहा अलै – क बिल्हक्कि , व इन्न – क ल – मिनल – मुरसलीन (252)
ऐ रसूल ये ख़ुदा की सच्ची आयतें हैं जो हम तुम को ठीक ठीक पढ़के सुनाते हैं और बेशक तुम ज़रुर रसूलों में से हो (252)
तिल्कर्रूसुलु फज्ज़ल्ना बअ् – ज़हुम अला बअ्ज़िन् मिन्हुम् मन् कल्लमल्लाहु व र – फ – अ बअ् – जहुम द रजातिन् , व आतैना अीसब् – न मर्यमल – बय्यिनाति व अय्यद्नाहु बिरूहिल्कुदुसि , व लौ शाअल्लाहु मक्त – तलल्लज़ी – न मिम् – बअदिहिम् मिम् – बअ़दि मा जाअतहुमुल बय्यिनातु व लाकिनिख़्त – लफू फ़ – मिन्हुम् मन् आम – न व मिन्हुम् मन् क – फ़ – र , व लौ शाअल्लाहु मक्त – तलू , व लाकिन्नल्ला – ह यफ्अलु मा युरीद (253)
यह सब रसूल (जो हमने भेजे) उनमें से बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनमें से बाज़ तो ऐसे हैं जिनसे ख़ुद ख़ुदा ने बात की उनमें से बाज़ के (और तरह पर) दर्जे बुलन्द किये और मरियम के बेटे ईसा को (कैसे कैसे रौशन मौजिज़े अता किये) और रूहुलकुदस (जिबरईल) के ज़रिये से उनकी मदद की और अगर ख़ुदा चाहता तो लोग इन (पैग़म्बरों) के बाद हुये वह अपने पास रौशन मौजिज़े आ चुकने पर आपस में न लड़ मरते मगर उनमें फूट पड़ गई पस उनमें से बाज़ तो ईमान लाये और बाज़ काफ़िर हो गये और अगर ख़ुदा चाहता तो यह लोग आपस में लड़ते मगर ख़ुदा वही करता है जो चाहता है (253)
या अय्युहल्लज़ी – न आमनू अन्फिकू मिम्मा र – ज़क्नाकुम् मिन् कब्लि अंय्यअ्ति – य यौमुल्ला बैअुन् फीहि व ला खुल्लतुंव – व ला शफाअतुन , वल – काफ़िरू – न हुमुज्जालिमून (254)
ऐ ईमानदारों जो कुछ हमने तुमको दिया है उस दिन के आने से पहले (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करो जिसमें न तो ख़रीदो फरोख्त होगी और न यारी (और न आशनाई) और न सिफ़ारिश (ही काम आयेगी) और कुफ़्र करने वाले ही तो जुल्म ढाते हैं (254)
अल्लाहु ला इला – ह इल्ला हु – व अल् – हय्युल – कय्यूमु ला तअ्खुजुहू सि – नतुंव – व ला नौमुन् , लहू मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्जि , मन् जल्लज़ी यश्फ़अु अिन्दहू इल्ला बि – इज्निही , यअ्लमु मा बै – न ऐदीहिम व मा खल्फहुम व ला युहीतू – न बिशैइम् मिन् अिल्मिही इल्ला बिमा शा – अ वसि – अ कुर्सिय्यूहुस्समावाति वल्अर् – ज़ व ला यऊदुहू हिफ्जुहुमा व हुवल् अलिय्युल अजीम (255)
ख़ुदा ही वो ज़ाते पाक है कि उसके सिवा कोई माबूद नहीं (वह) ज़िन्दा है (और) सारे जहान का संभालने वाला है उसको न ऊँघ आती है न नींद जो कुछ आसमानो में है और जो कुछ ज़मीन में है (गरज़ सब कुछ) उसी का है कौन ऐसा है जो बग़ैर उसकी इजाज़त के उसके पास किसी की सिफ़ारिश करे जो कुछ उनके सामने मौजूद है (वह) और जो कुछ उनके पीछे (हो चुका) है (खुदा सबको) जानता है और लोग उसके इल्म में से किसी चीज़ पर भी अहाता नहीं कर सकते मगर वह जिसे जितना चाहे (सिखा दे) उसकी कुर्सी सब आसमानॊं और ज़मीनों को घेरे हुये है और उन दोनों (आसमान व ज़मीन) की निगेहदाश्त उसपर कुछ भी मुश्किल नहीं और वह आलीशान बुजुर्ग़ मरतबा है (255)
ला इक्रा – ह फिद्दीनि कत्तबय्यन र्रूश्दु मिनल – गय्यि फ़ – मंय्यक्फुर बित्तागूति व युअ्मिम् – बिल्लाहि फ – क . दि स् त म स – क बिल् – अुर्वतिल – वुस्का लन्फ़िसा – म लहा , वल्लाहु समीअुन् , अलीम (256)
दीन में किसी तरह की जबरदस्ती नहीं क्योंकि हिदायत गुमराही से (अलग) ज़ाहिर हो चुकी तो जिस शख्स ने झूठे खुदाओं बुतों से इंकार किया और खुदा ही पर ईमान लाया तो उसने वो मज़बूत रस्सी पकड़ी है जो टूट ही नहीं सकती और ख़ुदा सब कुछ सुनता और जानता है (256)
अल्लाहु वलिय्युल्लज़ी – न आमनू युख्रिजुहुम् मिनज्जुलुमाति इलन्नूरि , वल्लज़ी – न क – फरू औलिया उहुमुत्तागूतु युख्रिजू – नहुम् मिनन्नूरि इलज्जुलुमाति , उलाइ – क अस्हाबुन्नारि हुम् फ़ीहा खालिदून (257)
ख़ुदा उन लोगों का सरपरस्त है जो ईमान ला चुके कि उन्हें (गुमराही की) तारीक़ियों से निकाल कर (हिदायत की) रौशनी में लाता है और जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया उनके सरपरस्त शैतान हैं कि उनको (ईमान की) रौशनी से निकाल कर (कुफ़्र की) तारीकियों में डाल देते हैं यही लोग तो जहन्नुमी हैं (और) यही उसमें हमेशा रहेंगे (257)
अलम् त – र इलल्लज़ी हाज् – ज इब्राही – म फी रब्बिही अन् आताहुल्लाहुल – मुल्क इज् का – ल इब्राहीमु रब्बियल्लज़ी युह्-यी व युमीतु का – ल अ – न उह-यी व उमीतु , का – ल इब्राहीमु फ़ – इन्नल्ला – ह यअ्ती बिश्शम्सि मिनल्मशिरकि फअ्ति बिहा मिनल् – मग्रिबि फ़ – बुहितल्लज़ी क – फ – र , वल्लाहु ला यहदिल कौमज्ज़ालिमीन (258)
(ऐ रसूल) क्या तुम ने उस शख्स (के हाल) पर नज़र नहीं की जो सिर्फ़ इस बिरते पर कि ख़ुदा ने उसे सल्तनत दी थी इब्राहीम से उनके परवरदिगार के बारे में उलझ पड़ा कि जब इब्राहीम ने (उससे) कहा कि मेरा परवरदिगार तो वह है जो (लोगों को) जिलाता और मारता है तो वो भी (शेख़ी में) आकर कहने लगा मैं भी जिलाता और मारता हूं (तुम्हारे ख़ुदा ही में कौन सा कमाल है) इब्राहीम ने कहा (अच्छा) खुदा तो आफ़ताब को पूरब से निकालता है भला तुम उसको पश्चिम से निकालो इस पर वह काफ़िर हक्का बक्का हो कर रह गया (मगर ईमान न लाया) और ख़ुदा ज़ालिमों को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुंचाया करता (258)
औ कल्लज़ी मर् – र अला कर्यतिंव् – व हि – य ख़ावि – यतुन् अला अुरूशिहा का – ल अन्ना युह्-यी हाज़िहिल्लाहु बअ् – द मौतिहा फ़ – अमातहुल्लाहु मि – अ – त आमिन् सुम् – म ब – अ – सहू , का – ल कम लबिस् – त , का – ल लबिस्तु यौमन् औ बअ् – ज़ यौमिन् , का – ल बल्लबिस – त मि – अ – त आमिन फन्जुर इला तआमि – क व शराबि – क लम् य – तसन्नह् वन्जुर् इला हिमारि – क व लि – नज्अ – ल – क आयतल लिन्नासि वन्जुर् इलल् – अिज़ामि कै – फ नुन्शिजुहा सुम्-म नक्सूहा लहमन् , फ़ – लम्मा तबय्य – न लहू का – ल अअ्लमु अन्नल्ला – ह अला कुल्लि शैइन् कदीर (259)
(ऐ रसूल तुमने) मसलन उस (बन्दे के हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर से होकर गुज़रा और वो ऐसा उजड़ा था कि अपनी छतों पर से ढह के गिर पड़ा था ये देखकर वह बन्दा (कहने लगा) अल्लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी के बाद क्योंकर आबाद करेगा इस पर ख़ुदा ने उसको (मार डाला) सौ बरस तक मुर्दा रखा फिर उसको जिला उठाया (तब) पूछा तुम कितनी देर पड़े रहे अर्ज क़ी एक दिन पड़ा रहा एक दिन से भी कम फ़रमाया नहीं तुम (इसी हालत में) सौ बरस पड़े रहे अब ज़रा अपने खाने पीने (की चीज़ों) को देखो कि बुसा तक नहीं और ज़रा अपने गधे (सवारी) को तो देखो कि उसकी हड्डियाँ ढेर पड़ी हैं और सब इस वास्ते किया है ताकि लोगों के लिये तुम्हें क़ुदरत का नमूना बनाये और अच्छा अब (इस गधे की) हड्डियों की तरफ़ नज़र करो कि हम क्योंकर जोड़ जाड़ कर ढाँचा बनाते हैं फिर उनपर गोश्त चढ़ाते हैं पस जब ये उनपर ज़ाहिर हुआ तो बेसाख्ता बोल उठे कि (अब) मैं ये यक़ीने कामिल जानता हूं कि ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (259)
व इज् का – ल इब्राहीमु रब्बि अरिनी कै – फ़ तुहियल्मौता , का – ल अ – व लम् तुअ्मिन , का – ल बला व लाकिल्लियत मइन् – न कल्बी , का – ल फ़ – खुज् अर्ब – अतम् मिनत्तैरि फ़सुरहुन् – न इलै – क सुम्मज्अल अला कुल्लि ज – बलिम् मिन्हुन् – न जुज्अन् सुम्मद् हुन् – न यअ्ती – न – क सअ्यन् , वअ्लम् अन्नल्ला – ह अज़ीजुन् हकीम (260)
और (ऐ रसूल) वह वाकेया भी याद करो जब इबराहीम ने (खुदा से) दरख्वास्त की कि ऐ मेरे परवरदिगार तू मुझे भी तो दिखा दे कि तू मुर्दों को क्योंकर ज़िन्दा करता है ख़ुदा ने फ़रमाया क्या तुम्हें (इसका) यक़ीन नहीं इबराहीम ने अर्ज़ की (क्यों नहीं) यक़ीन तो है मगर ऑंख से देखना इसलिए चाहता हूं कि मेरे दिल को पूरा इत्मिनान हो जाए फ़रमाया (अगर ये चाहते हो) तो चार परिन्दे लो और उनको अपने पास मॅगवा लो और टुकड़े टुकड़े कर डालो फिर हर पहाड़ पर उनका एक एक टुकड़ा रख दो उसके बाद उनको बुलाओ (फिर देखो तो क्यों कर वह सब के सब तुम्हारे पास दौड़े हुए आते हैं और समझ रखो कि ख़ुदा बेशक ग़ालिब और हिकमत वाला है (260)