Surah Al Baqara in Hindi Ayat 27 to 52 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 27 to 52 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 27 to 52



अल्लज़ी-न यन्कुजु-न अहदल्लाहि मिम्-बअ्दि मीसाकिही व यक्तअू-न मा अ-मरल्लाहु बिही अंय्यू-स-ल व युफ्सिदू-न फ़िल्अर्ज़ि उलाइ-क हुमुल्-ख़ासिरून (27)
जो लोग खुदा के एहदो पैमान को मज़बूत हो जाने के बाद तोड़ डालते हैं और जिन ( ताल्लुक़ात ) का खुदा ने हुक्म दिया है उनको क़ताआ कर देते हैं और मुल्क में फसाद करते फिरते हैं , यही लोग घाटा उठाने वाले हैं (27)
कै-फ़ तक्फुरू-न बिल्लाहि व कुन्तुम् अम्वातन् फ़-अह्याकुम् सुम्-म युमीतुकुम् सुम्-म युहूयीकुम् सुम्-म इलैहि तुर्जअून (28)
(हाँए ) क्यों कर तुम खुदा का इन्कार कर सकते हो हालाँकि तुम ( माओं के पेट में ) बेजान थे तो उसी ने तुमको ज़िन्दा किया फिर वही तुमको मार डालेगा , फिर वही तुमको ( दोबारा क़यामत में ) ज़िन्दा करेगा फिर उसी की तरफ लौटाए जाओगे (28)
हुवल्लजी ख-ल-क लकुम् मा फ़िलअर्जि जमीअन् , सुम्मस्तवा इलस्समा-इ फ़-सव्वाहुन्-न सब्-अ समावातिन् , व-हु-व बिकुल्लि शैइन् अलीम (29)
वही तो वह (खुदा) है जिसने तुम्हारे ( नफ़े ) के ज़मीन की कुल चीज़ों को पैदा किया फिर आसमान ( के बनाने ) की तरफ़ मुतावज्जेह हुआ तो सात आसमान हमवार (व मुसतहकम) बना दिए और वह ( खुदा ) हर चीज़ से (खूब) वाक़िफ है (29)
व इज् का-ल रब्बु-क लिल्मलाइ-कति इन्नी जाअिलुन् फिल्अर्जि ख़ली-फ़तन् , कालू अ-तज-अलु फ़ीहा मंय्युफ्सिदु फ़ीहा व यसफ़िकुद्दिमा-अ व नह्नु नुसब्बिहु बिहम्दि-क व नुकद्दिसु ल-क , का-ल इन्नी अअ्लमु माला तअ्लमून (30)
और ( ऐ रसूल ) उस वक्त को याद करो जब तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं ( अपना ) एक नाएब ज़मीन में बनानेवाला हूँ ( फरिश्ते ताज्जुब से ) कहने लगे क्या तू ज़मीन ऐसे शख्स को पैदा करेगा जो ज़मीन | में फ़साद और रेज़ियाँ करता फिरे हालाँकि ( अगर ) ख़लीफा बनाना है तो हमारा ज्यादा हक़ है ) क्योंकि हम तेरी तारीफ व तसबीह करते हैं और तेरी पाकीज़गी साबित करते हैं तब खुदा ने फरमाया इसमें तो शक ही नहीं कि जो मैं जानता हूँ तुम नहीं जानते (30)
व अल्ल-म आ-दमल् अस्मा-अ कुल्लहा सुम्-म अ-र-ज़ हुम् अलल्-मलाइ-कति फ़का-ल अम्बिऊनी बिअस्मा-इ हा-उला-इ इन कुन्तुम सादिक़ीन (31)
और ( आदम की हक़ीक़म ज़ाहिर करने की ग़रज़ से ) आदम को सब चीज़ों के नाम सिखा दिए फिर उनको फरिश्तों के सामने पेश किया और फ़रमाया कि अगर तुम अपने दावे में कि हम मुस्तहके ख़िलाफ़त हैं । सच्चे हो तो मुझे इन चीज़ों के नाम बताओ (31)
कालू सुब्हा-न-क ला-अिल-म-लना इल्ला मा अल्लम्तना इन्न-क अन्तल अलीमुल-हकीम (32)
तब फ़रिश्तों ने (आजिज़ी से ) अर्ज़ की तू ( हर ऐब से ) पाक व पाकीज़ा है हम तो जो कुछ तूने बताया है उसके सिवा कुछ नहीं जानते तू बड़ा जानने वाला , मसलहतों का पहचानने वाला है (32)
का-ल याआदमु अमबिअ्हुम बिअस्मा-इहिम् फ-लम्मा अम्-ब-अहुम् बिअस्मा-इहिम् का-ल अलम् अकुल्लकुम् इन्नी अअ़लमु गैबस्समावाति वल्अर्ज़ि व अअ्लमु मा तुब्दू-न व मा कुन्तुम् तक्तुमून (33)
(उस वक्त ख़ुदा ने आदम को ) हुक्म दिया कि ऐ आदम तुम इन फ़रिश्तों को उन सब चीज़ों के नाम बता दो बस जब आदम ने फ़रिश्तों को उन चीज़ों के नाम बता दिए तो खुदा ने फरिश्तों की तरफ ख़िताब करके फरमाया क्यों , मैं तुमसे न कहता था कि मैं आसमानों और ज़मीनों के छिपे हुए राज़ को जानता हूँ , और जो कुछ तुम अब ज़ाहिर करते हो और जो कुछ तुम छिपाते थे ( वह सब ) जानता हूँ (33)
व इज् कुल्ना लिल्-मलाइ-कतिस्जुदू लिआ-द-म फ़-स-जदू इल्ला इब्लीस ,अबा वस्तक्ब-र व का-न मिनल्काफ़िरीन (34)
और ( उस वक्त क़ो याद करो ) जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सजदा करो तो सब के सब झुक गए मगर शैतान ने इन्कार किया और गुरूर में आ गया और काफ़िर हो गया (34)
व कुल्ना या आ-दमुस्कुन् अन्-त व जौजुकल-जन्न-त व कुला मिन्हा र-ग़दन हैसु शिअतुमा व ला तक्रबा हाज़िहिश् श-ज-र-त फ़-तकूना मिनज्-ज़ालिमीन (35)
और हमने आदम से कहा ऐ आदम तुम अपनी बीवी समैत बेहिश्त में रहा सहा करो और जहाँ से तुम्हारा जी चाहे उसमें से ब फराग़त खाओ ( पियो ) मगर उस दरख्त के पास भी न जाना ( वरना ) फिर तुम अपना आप नुक़सान करोगे (35)
फ-अज़ल-लहुमश्-शैतानु अन्हा फ-अख्र-जहुमा मिम्मा काना फीही व कुल-नहबितू बअजुकुम लिबअज़िन् अदुव्वुन् व लकुम् फिलअर्जि मुस्तकर्रूंव व मताअुन् इलाहीन (36)
तब शैतान ने आदम व हौव्वा को (धोखा देकर) वहाँ से डगमगाया और आख़िर कार उनको जिस ( ऐश व राहत ) में थे उनसे निकाल फेंका और हमने कहा ( ऐ आदम व हौव्वा ) तुम ( ज़मीन पर ) उतर पड़ो तुममें से एक का एक दुशमन होगा और ज़मीन में तुम्हारे लिए एक ख़ास वक्त ( क़यामत ) तक ठहराव और ठिकाना है (36)
फ़-त लक्का आदमु मिर्रब्बिही कलिमातिन् फ़ता-ब अलैहि , इन्नहू हुवत्तव्वाबुर्रहीम (37)
फिर आदम ने अपने परवरदिगार से ( माज़रत के चन्द अल्फाज़ ) सीखे पस खुदा ने उन अल्फाज़ की बरकत से आदम की तौबा कुबूल कर ली बेशक वह बड़ा माफ़ करने वाला मेहरबान है (37)
कुल्नहबितू मिन्हा जमीअन् फ़-इम्मा यअतियन्नकुम् मिन्नी हुदन फ़-मन् तबि-अ हुदा-या फला खौफुन अलैहिम् व ला हुम् यह्ज़नून (38)
(और जब आदम को) ये हुक्म दिया था कि यहाँ से उतर पड़ो ( तो भी कह दिया था कि ) अगर तुम्हारे पास मेरी तरफ़ से हिदायत आए तो ( उसकी पैरवी करना क्योंकि ) जो लोग मेरी हिदायत पर चलेंगे उन पर ( क़यामत ) में न कोई ख़ौफ होगा (38)
वल्लज़ी-न क-फरू व कज्जबू बिआयातिना उलाइ-क अस्हाबुन्नारि हुम् फ़ीहा ख़ालिदून (39)
और न वह रंजीदा होगे और ( ये भी याद रखो ) जिन लोगों ने कुफ्र इख़तेयार किया और हमारी आयतों को झुठलाया तो वही जहन्नुमी हैं और हमेशा दोज़ख़ में पड़े रहेगे (39)
या बनी इस्राइलज्कुरू निअ्मतियल्लती अन्अम्तु अलैकुम् व औफू बि-अ़हदी ऊफि़ बि-अहदिकुम् व इय्या-य फरहबून (40)
ऐ बनी इसराईल ( याकूब की औलाद ) मेरे उन एहसानात को याद करो जो तुम पर पहले कर चुके हैं और तुम मेरे एहद व इक़रार ( ईमान ) को पूरा करो तो मैं तुम्हारे एहद ( सवाब ) को पूरा करूँगा , और मुझ ही से डरते रहो (40)
व आमिनू बिमा अन्ज़ल्तु मुसद्दिकल्लिमा म-अकुम् व ला तकूनू अव्व-ल काफ़िरिम् बिहि व ला तश्तरू बिआयाती स्-म-नन् कलीलंव व इय्या-य फत्तकून (41)
और जो ( कुरान ) मैंने नाज़िल किया वह उस किताब ( तौरेत ) की ( भी ) तसदीक़ करता हूँ जो तुम्हारे पास है और तुम सबसे चले उसके इन्कार पर मौजूद न हो जाओ और मेरी आयतों के बदले थोड़ी क़ीमत ( दुनयावी फायदा ) न लो और मुझ ही से डरते रहो (41)
वला तल्बिसुल-हक्-क बिल्बातिलि व तक्तुमुल्हक्-क व अन्तुम् तअलमून (42)
और हक़ को बातिल के साथ न मिलाओ और हक़ बात को न छिपाओ हालाँकि तुम जानते हो और पाबन्दी से नमाज़ अदा करो (42)
व अकीमुस्सला-त व आतुज्जका-त वर्-कअू म-अर्राकिअीन (43)
और ज़कात दिया करो और जो लोग ( हमारे सामने ) इबादत के लिए झुकते हैं उनके साथ तुम भी झुका करो (43)
अ-तअ्मुरूनन्ना-स बिल्बिर्रि वतन्सौ-न अन्फुसकुम् व अन्तुम् तत्लूनल-किता-ब , अ-फला तअ्किलून (44)
और तुम लोगों से नेकी करने को कहते हो और अपनी ख़बर नहीं लेते हालाँकि तुम किताबे खुदा को बराबर रटा करते हो तो तुम क्या इतना भी नहीं समझते (44)
वस्तअीनू बिस्सबरि वस्सलाति , व इन्नहा ल-कबी-रतुन् इल्ला अलल-ख़ाशिअीन (45)
और ( मुसीबत के वक्त ) सब्र और नमाज़ का सहारा पकड़ो और अलबत्ता नमाज़ दूभर तो है मगर उन ख़ाक़सारों पर ( नहीं ) जो बखूबी जानते हैं (45)
अल्लज़ी-न यजुन्नू-न अन्नहुम-मुलाकू रब्बिहिम् व अन्नहुम् इलैहि राजिअून (46)
कि वह अपने परवरदिगार की बारगाह में हाज़िर होंगे और ज़रूर उसकी तरफ लौट जाएँगे (46)
या बनी इस्राईलज्कुरू निअ्मतियल्लती अन्अम्तु अलैकुम् व अन्नी फज्जल्तुकुम् अलल् आलमीन (47)
ऐ बनी इसराइल मेरी उन नेअमतों को याद करो जो मैंने पहले तुम्हें दी और ये ( भी तो सोचो ) कि हमने तुमको सारे जहान के लोगों से बढ़ा दिया (47)
वत्तकू यौमल्ला तज्ज़ी नफ्सुन् अन्नफ्सिन् शैअंव व ला युक्बलु मिन्हा शफ़ा-अतुंव – व ला युअ्-खजु मिन्हा अद्लुंव व ला हुम् युन्सरून (48)
और उस दिन से डरो ( जिस दिन ) कोई शख्स किसी की तरफ से न फिदिया हो सकेगा और न उसकी तरफ से कोई सिफारिश मानी जाएगी और न उसका कोई मुआवज़ा लिया जाएगा और न वह मदद पहुँचाए जाएंगे (48)
व इज नज्जैनाकुम मिन् आलि फिरऔ-न यसूमू-नकुम् सूअल-अज़ाबि युज़ब्बिहू-न अब्ना-अकुम् व यस्तह्यू-न निसा-अकुम् व फी जालिकुम बलाउम् मिर्रब्बिकुम् अ़जी़म (49)
और ( उस वक्त को याद करो ) जब हमने तुम्हें ( तुम्हारे बुर्ज़गो को ) फिरऔन ( के पन्जे ) से छुड़ाया जो तुम्हें बड़े – बड़े दुख दे के सताते थे तुम्हारे लड़कों पर छुरी फेरते थे और तुम्हारी औरतों को ( अपनी ख़िदमत के लिए ) ज़िन्दा रहने देते थे और उसमें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से ( तुम्हारे सब्र की ) सख्त आज़माइश थी (49)
व इज् फ़-रक्ना बिकुमुल्-बह्-र फ़-अन्जैनाकुम् व अग्-रक्ना आ-ल फ़िरऔ-न व अन्तुम् तन्जुरून (50)
और (वह वक्त भी याद करो) जब हमने तुम्हारे लिए दरिया को टुकड़े – टुकड़े किया फिर हमने तुमको छुटकारा दिया (50)
व इज् वाअ़दना मूसा अर्-बअी़-न लै-लतन् सुम्मत्तखज्तुमुल्-अिज्-ल मिम्-बअ्दिही व अन्तुम् ज़ालिमून (51)
और फिरऔन के आदमियों को तुम्हारे देखते – देखते डुबो दिया और ( वह वक्त भी याद करो ) जब हमने मूसा से चालीस रातों का वायदा किया था और तुम लोगों ने उनके जाने के बाद एक बछड़े को ( परसतिश के लिए खुदा ) बना लिया (51)
सुम्-म अ़फौना अ़न्कुम मिम्-बअदि ज़ालि-क लअल्लकुम् तश्कुरून (52)
हालाँकि तुम अपने ऊपर जुल्म जोत रहे थे फिर हमने उसके बाद भी दरगुज़र की ताकि तुम शुक्र करो (52)