सूरह अल जिन्न Surah Jinn Hindi Pronounce Translation Arabic

सूरह अल जिन्न Surah Jinn Hindi Pronounce Translation Arabic

सूरह अल-जिन्न सूरह न० 72
सूरह अल जिन्न Surah Jinn Hindi Pronounce Translation Arabic

सूरह अल-जिन्न हिन्दी उच्चारण (मक्की)

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

कुल् ऊहि – य इलय् – य् अन्नहुस् – त – म – अ़ न – फ़रुम् मिनल् – जिन्नि फ़का़लू इन्ना समिअ्ना कुरआनन् अ़ – जबा (1)

यह्दी इलर् – रुश्दि फ़ – आमन्ना बिही , व लन् – नुश्रि – क बिरब्बिना अ – हदा (2)

व अन्नहू तआ़ला जद्दु रब्बिना मत्त – ख़ – ज़ साहि – बतंव् – व ला व – लदा (3)

व अन्नहू का – न यकूलु सफ़ीहुना अ़लल्लाहि श – तता (4)

व अन्ना ज़नन्ना अल् – लन् तकूलल् – इन्सु वल्जिन्नु अ़लल्लाहि कज़िबा (5)

व अन्नहू का – न रिजालुम् मिनल् – इन्सि यअूजू – न बिरिजालिम् मिनल् – जिन्नि फ़ज़ादूहुम् र – हका़ (6)

व अन्नहुम् ज़न्नू कमा ज़नन्तुम् अल्लंय् – यब् – अ़सल्लाहु अ – हदा (7)

व अन्ना ल – मस् नस्समा – अ फ़ – वजद्नाहा मुलिअत् ह – रसन् शदीदंव् – व शुहुबा (8)

व अन्ना कुन्ना नक़अु़दु मिन्हा मकाअि – द लिस्सम्अि , फ़ – मंय्यस्तमिअिल् – आ – न यजिद् लहू शिहाबर् – र – सदा (9)

व अन्ना ला नद्री अ – शर्रुन् उरी – द बिमन् फिल्अर्ज़ि अम् अरा – द बिहिम् रब्बुहुम् र – शदा (10)

व अन्ना मिन्नस्सालिहू – न व मिन्ना दू – न ज़ालि – क कुन्ना तराइ – क़ कि़ – ददा (11)

व अन्ना ज़नन्ना अल् – लन् नुअ्जिज़ल्ला – ह फिल्अर्ज़ि व लन् नुअ्जि – ज़हू ह – रबा (12)

व अन्ना लम्मा समिअ्नल् – हुदा आमन्ना बिही , फ़ – मय्युअ्मिम् बिरब्बिही फ़ला यख़ाफु बख़्संव् – व ला र – हक़ा (13)

व अन्ना मिन्नल् – मुस्लिमू – न व मिन्नल् – का़सितू – न , फ़ – मन् अस्ल – म फ़ – उलाइ – क त – हररौ र – शदा (14)

व अम्मल् – कासितू – न फ़कानू लि – जहन्न – म ह – तबा (15)

व अल् – लविस्तका़मू अ़लत्तरी – क़ति ल – अस्कै़नाहुम् माअन् ग़ – दका (16)

लिनफ्ति – नहुम् फ़ीहि , व मंय्युअ्रिज् अ़न् जिक्रि रब्बिही यस्लुक्हु अ़जा़बन् स – अ़दा (17)

व अन्नल् – मसाजि – द लिल्लाहि फ़ला तद्अू मअ़ल्लाहि अ – हदा (18)

व अन्नहू लम्मा का – म अ़ब्दुल्लाहि यद्अूहु कादू यकूनू – न अ़लैहि लि – बदा (19)

कुल इन्नमा अद्अू रब्बी व ला उश्रिकु बिही अ – हदा (20)

कुल् इन्नी ला अम्लिकु लकुम् ज़ररंव् – व ला र – शदा (21)

कुल इन्नी लंय्युजी – रनी मिनल्लाहि अ – हदुंव् – व लन् अजि – द मिन् दूनिही मुल्त – हदा (22)

इल्ला बलाग़म् मिनल्लाहि व रिसालातिही , व मंय्यअ्सिल्ला – ह व रसूलहू फ़ – इन् – न लहू ना – र जहन्न – म ख़ालिदी – न फ़ीहा अ – बदा (23)

हत्ता इज़ा रऔ मा यू – अ़दू – न फ़ – सयअ्लमू – न मन् अज़अ़फु नासिरंव् – व अक़ल्लु अ़ – ददा (24)

कुल् इन् अद्री अ – क़रीबुम् – मा तू – अ़दू – न अम् यज्अ़लु लहू रब्बी अ – मदा (25)

आ़लिमुल् – गै़बि फ़ला युज्हिरु अ़ला गै़बिही अ – हदा (26)

इल्ला मनिर्तज़ा मिर्रसूलिन् फ़ – इन्नहू यस्लुकु मिम् – बैनि यदैहि व मिन् ख़ल्फ़िही र – सदा (27)

लियअ्ल – म अन् क़द् अब्लगू रिसालाति रब्बिहिम् व अहा – त बिमा लदैहिम् व अह्सा कुल् – ल शैइन् अ़ – ददा (28)



सूरह अल-जिन्न अरबी (मक्की)
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
1. قُلْ أُوحِيَ إِلَيَّ أَنَّهُ اسْتَمَعَ نَفَرٌ مِنَ الْجِنِّ فَقَالُوا إِنَّا سَمِعْنَا قُرْآنًا عَجَبًا
2. يَهْدِي إِلَى الرُّشْدِ فَآمَنَّا بِهِ ۖ وَلَنْ نُشْرِكَ بِرَبِّنَا أَحَدًا
3. وَأَنَّهُ تَعَالَىٰ جَدُّ رَبِّنَا مَا اتَّخَذَ صَاحِبَةً وَلَا وَلَدًا
4. وَأَنَّهُ كَانَ يَقُولُ سَفِيهُنَا عَلَى اللَّهِ شَطَطًا
5. وَأَنَّا ظَنَنَّا أَنْ لَنْ تَقُولَ الْإِنْسُ وَالْجِنُّ عَلَى اللَّهِ كَذِبًا
6. وَأَنَّهُ كَانَ رِجَالٌ مِنَ الْإِنْسِ يَعُوذُونَ بِرِجَالٍ مِنَ الْجِنِّ فَزَادُوهُمْ رَهَقًا
7. وَأَنَّهُمْ ظَنُّوا كَمَا ظَنَنْتُمْ أَنْ لَنْ يَبْعَثَ اللَّهُ أَحَدًا
8. وَأَنَّا لَمَسْنَا السَّمَاءَ فَوَجَدْنَاهَا مُلِئَتْ حَرَسًا شَدِيدًا وَشُهُبًا
9. وَأَنَّا كُنَّا نَقْعُدُ مِنْهَا مَقَاعِدَ لِلسَّمْعِ ۖ فَمَنْ يَسْتَمِعِ الْآنَ يَجِدْ لَهُ شِهَابًا رَصَدًا
10. وَأَنَّا لَا نَدْرِي أَشَرٌّ أُرِيدَ بِمَنْ فِي الْأَرْضِ أَمْ أَرَادَ بِهِمْ رَبُّهُمْ رَشَدًا
11. وَأَنَّا مِنَّا الصَّالِحُونَ وَمِنَّا دُونَ ذَٰلِكَ ۖ كُنَّا طَرَائِقَ قِدَدًا
12. وَأَنَّا ظَنَنَّا أَنْ لَنْ نُعْجِزَ اللَّهَ فِي الْأَرْضِ وَلَنْ نُعْجِزَهُ هَرَبًا
13. وَأَنَّا لَمَّا سَمِعْنَا الْهُدَىٰ آمَنَّا بِهِ ۖ فَمَنْ يُؤْمِنْ بِرَبِّهِ فَلَا يَخَافُ بَخْسًا وَلَا رَهَقًا
14. وَأَنَّا مِنَّا الْمُسْلِمُونَ وَمِنَّا الْقَاسِطُونَ ۖ فَمَنْ أَسْلَمَ فَأُولَٰئِكَ تَحَرَّوْا رَشَدًا
15. وَأَمَّا الْقَاسِطُونَ فَكَانُوا لِجَهَنَّمَ حَطَبًا
16. وَأَنْ لَوِ اسْتَقَامُوا عَلَى الطَّرِيقَةِ لَأَسْقَيْنَاهُمْ مَاءً غَدَقًا
17. لِنَفْتِنَهُمْ فِيهِ ۚ وَمَنْ يُعْرِضْ عَنْ ذِكْرِ رَبِّهِ يَسْلُكْهُ عَذَابًا صَعَدًا
18. وَأَنَّ الْمَسَاجِدَ لِلَّهِ فَلَا تَدْعُوا مَعَ اللَّهِ أَحَدًا
19. وَأَنَّهُ لَمَّا قَامَ عَبْدُ اللَّهِ يَدْعُوهُ كَادُوا يَكُونُونَ عَلَيْهِ لِبَدًا
20. قُلْ إِنَّمَا أَدْعُو رَبِّي وَلَا أُشْرِكُ بِهِ أَحَدًا
21. قُلْ إِنِّي لَا أَمْلِكُ لَكُمْ ضَرًّا وَلَا رَشَدًا
22. قُلْ إِنِّي لَنْ يُجِيرَنِي مِنَ اللَّهِ أَحَدٌ وَلَنْ أَجِدَ مِنْ دُونِهِ مُلْتَحَدًا
23. إِلَّا بَلَاغًا مِنَ اللَّهِ وَرِسَالَاتِهِ ۚ وَمَنْ يَعْصِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَإِنَّ لَهُ نَارَ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا
24. حَتَّىٰ إِذَا رَأَوْا مَا يُوعَدُونَ فَسَيَعْلَمُونَ مَنْ أَضْعَفُ نَاصِرًا وَأَقَلُّ عَدَدًا
25. قُلْ إِنْ أَدْرِي أَقَرِيبٌ مَا تُوعَدُونَ أَمْ يَجْعَلُ لَهُ رَبِّي أَمَدًا
26. عَالِمُ الْغَيْبِ فَلَا يُظْهِرُ عَلَىٰ غَيْبِهِ أَحَدًا
27. إِلَّا مَنِ ارْتَضَىٰ مِنْ رَسُولٍ فَإِنَّهُ يَسْلُكُ مِنْ بَيْنِ يَدَيْهِ وَمِنْ خَلْفِهِ رَصَدًا
28. لِيَعْلَمَ أَنْ قَدْ أَبْلَغُوا رِسَالَاتِ رَبِّهِمْ وَأَحَاطَ بِمَا لَدَيْهِمْ وَأَحْصَىٰ كُلَّ شَيْءٍ عَدَدًا


सूरह अल-जिन्न हिन्दी अनुवाद अर्थ (मक्की)
अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है
﴾ 1 ﴿ (हे नबी!) कहोः मेरी ओर वह़्यी (प्रकाश्ना[1]) की गयी है कि ध्यान से सुना जिन्नों के एक समूह ने। फिर कहा कि हमने सुना है एक विचित्र क़ुर्आन।
1. सूरह अह़्क़ाफ़ आयतः 29 में इस का वर्णन किया गया है। इस सूरह में यह बताया गया है कि जब जिन्नों ने क़ुर्आन सुना तो आप ने न जिन्नों को देखा और न आप को उस का ज्ञान हुआ। बल्कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को वह़्यी (प्रकाशना) द्वारा इस से सूचित किया गया।

﴾ 2 ﴿ जो दिखाता है सीधी राह, तो हम ईमान लाये उसपर और हम कदापि साझी नहीं बनायेंगे अपने पालनहार के साथ किसी को।

﴾ 3 ﴿ तथा निःसंदेह महान है हमारे पालनहार की महिमा, नहीं बनाई है उसने कोई संगिनी (पत्नी) और न कोई संतान।

﴾ 4 ﴿ तथा निश्चय हम अज्ञान में कह रहे थे अल्लाह के संबंध में झूठी बातें।

﴾ 5 ﴿ और ये कि हमने समझा कि मनुष्य तथा जिन्न नहीं बोल सकते अल्लाह पर कोई झूठ बात।

﴾ 6 ﴿ और वास्तविक्ता ये है कि मनुष्य में से कुछ लोग, शरण माँगते थे जिन्नों में से कुछ लोगों की, तो उन्होंने अधिक कर दिया उनके गर्व को।

﴾ 7 ﴿ और ये कि मनुष्यों ने भी वही समझा, जो तुमने अनुमान लगाया कि कभी अल्लाह फिर जीवित नहीं करेगा, किसी को।

﴾ 8 ﴿ तथा हमने स्पर्श किया आकाश को, तो पाया कि भर दिया गया है प्रहरियों तथा उल्काओं से।

﴾ 9 ﴿ और ये कि हम बैठते थे उस (आकाश) में सुन-गुन लेने के स्थानों में और जो अब सुनने का प्रयास करेगा, वह पायेगा अपने लिए एक उल्का घात में लगा हुआ।

﴾ 10 ﴿ और ये कि हम नहीं समझ पाते कि क्या किसी बुराई का इरादा किया गया धरती वालों के साथ या इरादा किया है, उनके साथ उनके पालनहार ने सीधी राह पर लाने का?

﴾ 11 ﴿ और हममें से कुछ सदाचारी हैं और हममें से कुछ इसके विपरीत हैं। हम विभिन्न प्रकारों में विभाजित हैं।

﴾ 12 ﴿ तथा हमें विश्वास हो गया है कि हम कदापि विवश नहीं कर सकते अल्लाह को धरती में और न विवश कर सकते हैं उसे भागकर।

﴾ 13 ﴿ तथा जब हमने सुनी मार्गदर्शन की बात, तो उसपर ईमान ले आये, अब जो भी ईमान लायेगा अपने पालनहार पर, तो नहीं भय होगा उसे अधिकार हनन का और न किसी अत्याचार का।

﴾ 14 ﴿ और ये कि हममें से कुछ मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं और कुछ अत्याचारी हैं। तो जो आज्ञाकारी हो गये, तो उन्होंने खोज ली सीधी राह।

﴾ 15 ﴿ तथा जो अत्याचारी हैं, तो वे नरक के ईंधन हो गये।

﴾ 16 ﴿ और ये कि यदि वे स्थित रहते सीधी राह ( अर्थात इस्लाम) पर, तो हम सींचते उन्हें भरपूर जल से।

﴾ 17 ﴿ ताकि उनकी परीक्षा लें इसमें, और जो विमुख होगा अपने पालनहार के स्मरण (याद) से, तो उसे उसका पालनहार ग्रस्त करेगा कड़ी यातना में।

﴾ 18 ﴿ और ये कि मस्जिदें[1] अल्लाह के लिए हैं। अतः, मत पुकारो अल्लाह के साथ किसी को।
1. मस्जिद का अर्थ सज्दा करने का स्थान है। भावार्थ यह है कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य की इबादत तथा उस के सिवा किसी से प्रार्थना तथा विनय करना अवैध है।

﴾ 19 ﴿ और ये कि जब खड़ा हुआ अल्लाह का भक्त[1] उसे पुकारता हुआ, तो समीप था कि वे लोग उसपर पिल पड़ते।
1. अल्लाह के भक्त से अभिप्राय मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं। तथा भावार्थ यह है कि जिन्न तथा मनुष्य मिल कर क़ुर्आन तथा इस्लाम की राह से रोकना चाहते हैं।

﴾ 20 ﴿ आप कह दें कि मैं तो केवल अपने पालनहार को पुकारता हूँ और साझी नहीं बनाता उसका किसी अन्य को।

﴾ 21 ﴿ आप कह दें कि मैं अधिकार नहीं रखता तुम्हारे लिए किसी हानि का, न सीधी राह पर लगा देने का।

﴾ 22 ﴿ आप कह दें कि मुझे कदापि नहीं बचा सकेगा अल्लाह से कोई[1] और न मैं पा सकूँगा उसके सिवा कोई शरणगार (बचने का स्थान)।
1. अर्थात यदि मैं उस की अवैज्ञा करूँ और वह मुझे यातना देना चाहे।

﴾ 23 ﴿ परन्तु, पहुँचा सकता हूँ अल्लाह का आदेश तथा उसका उपदेश और जो अवज्ञा करेगा अल्लाह तथा उसके रसूल की, तो वास्तव में उसी के लिए नरक की अग्नि है, जिसमें वह नित्य सदावासी होगा।

﴾ 24 ﴿ यहाँ तक कि जब वे देख लेंगे, जिसका उन्हें वचन दिया जाता है, तो उन्हें विश्वास हो जायेगा कि किसके सहायक निर्बल और किसकी संख्या कम है।

﴾ 25 ﴿ आप कह दें कि मैं नहीं जानता कि समीप है, जिसका वचन तुम्हें दिया जा रहा है अथाव बनायेगा मेरा पालनहार उसके लिए कोई अवधि?

﴾ 26 ﴿ वह ग़ैब (परोक्ष) का ज्ञानी है, अतः, वह अवगत नहीं कराता है अपने परोक्ष पर किसी को।

﴾ 27 ﴿ सिवाये रसूल के, जिसे उसने प्रिय बना लिया है, फिर वह लगा देता है उस वह़्यी के आगे तथा उसके पीछे रक्षक।[1]
1. अर्थात ग़ैब (परोक्ष) का ज्ञान तो अल्लाह ही को है। किन्तु यदि धर्म के विषय में कुछ परोक्ष की बातों की वह़्यी अपने किसी रसूल की ओर करता है तो फ़रिश्तों द्वारा उस की रक्षा की व्यवस्था भी करता है ताकि उस में कुछ मिलाया न जा सके। रसूल को जितना ग़ैब का ज्ञान दिया जाता है वह इस आयत से उजागर हो जाता है। फिर भी कुछ लोग आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को पूरे ग़ैब का ज्ञानी मानते हैं। और आप को गुहारते और सब जगह उपस्थित कहते हैं। और तौह़ीद को आघात पहुँचा कर शिर्क करते हैं।

﴾ 28 ﴿ ताकि वह देख ले कि उन्होंने पहुँचा दिये हैं अपने पालनहार के उपदेश[1] और उसने घेर रखा है, जो कुछ उनके पास है और प्रत्येक वस्तु को गिन रखा है।
1. अर्थात वह रसूलों की दशा को जानता है। उस ने प्रत्येक चीज़ को गिन रखा है ताकि रसूलों के उपदेश पहुँचाने में कोई कमी और अधिक्ता न हो। इस लिये लोगों को रसूलों की बातें मान लेनी चाहिये।
 
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