सूरह मुल्क हिन्दी Surah Mulk Hindi Pronounce Translation Arabic

सूरह मुल्क हिन्दी Surah Mulk Hindi Pronounce Translation Arabic

सूरह मुल्क हिन्दी Surah Mulk Hindi Pronounce Translation Arabic
Surah Mulk Hindi

सूरह मुल्क सूरह न० 67


सूरह अल मुल्क हिन्दी उच्चारण (मक्की)
 

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम 
 
तबा – रकल्लज़ी बि – यदिहिल – मुल्कु व हु – व अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीर (1)
 
 लक़ल -मौ – त वल्हया – त लि – यब्लु – वकुम् अय्युकुम् अहसनु अ़ – मलन , व हुवल् अ़जीजुल – गफूर (2) 
 
अल्लज़ी ख़ – ल – क़ सब् – अ़ समावातिन् तिबाकन् , मा तरा फी ख़ल्किर्रह्मानि मिन् तफावुतिन् , फर्जिअ़िल् – ब – स – र हल् तरा मिन् फुतूर (3) 
 
सुम्मरजिअिल् – ब – स – र कर्रतैनि यन्क़लिब इलैकल् – ब – सरु ख़ासिअंव् – व हु – व हसीर (4) 
 
व ल – क़द् ज़य्यन्नस्समाअद् – दुन्या बि – मसाबी – ह व ज – अ़ल्नाहा रुजूमल् – लिश्शयातीनि व अअ्तद्ना लहुम् अ़ज़ाबस्सअ़ीर (5)
 
 व लिल्लज़ी – न क – फ़रू बिरब्बिहिम् अ़ज़ाबु जहन्न – म , व बिअ्सल – मसीर (6) 
 
इज़ा उल्कू फ़ीहा समिअू लहा शहीकंव् – व हि – य तफूर (7)
 
 तकादु त – मय्यजु मिनल् – गै़ज़ि , कुल्लमा उल्कि – य फ़ीहा फौ़जुन् स – अ – लहुम् ख़ – ज़ – नतुहा अलम् यअ्तिकुम नज़ीर (8) 
 
कालू बला क़द् जा – अना नज़ीरुन् , फ़ – कज़्ज़ब्ना व कुल्ना मा नज़्ज़लल्लाहु मिन् शैइन् इन् अन्तुम् इल्ला फ़ी ज़लालिन् कबीर (9) 
 
व का़लू लौ कुन्ना नस्मअु औ नअ्कि लु कुन्ना फी असूहाबिस्सअ़ीर (10) 
 
फ़ अ -त- रफू बिज़म्बिहिम् फ़ – सुह्क़ल् – लि – अस्हाबिस् – सअ़ीर (11) 
 
इन्नल्लज़ी – न यख़्शौ – न रब्बहुम् बिल्गै़बि लहुम् मग्फ़ि – रतुंव् – व अजरुन् कबीर (12) 
 
व असिर्रू कौ़लकुम् अविज् – हरू बिही , इन्नहू अ़लीमुम् बिज़ातिस्सुदूर (13) 
 
अला यअ्लमु मन् ख़ – ल – क़ , व हुवल् – लतीफुल – ख़बीर (14)*
 
 हुवल्लज़ी ज – अ़ – ल लकुमुल् – अर् – ज़ ज़लूलन् फम्शू फ़ी मनाकिबिहा व कुलू मिर्रिजक़िही , व इलैहिन् – नुशूर (15)
 
 अ – अमिन्तुम् मन् फिस्समा – इ अंय्यख़्सि – फ़ बिकुमुल् – अर् – ज़ फ़ – इज़ा हि – य तमूर (16)
 
 अम् अमिन्तुम् मन् फिस्समा – इ अंय्युर्सि – ल अ़लैकुम् हासिबन् , फ़ – सतअ्लमू – न कै – फ़ नज़ीर (17) 
 
व ल – क़द् कज़्ज़ – बल्लज़ी – न मिन् क़ब्लिहिम् फ़कै – फ़ का – न नकीर (18) 
 
अ – व लम् यरौ इलत्तैरि फौ़क़हुम् साफ्फ़ातिंव् – व यक्बिज् – न • मा युम्सिकुहुन् – न इल्लर्रह्मानु , इन्नहू बिकुल्लि शैइम् – बसीर (19) 
 
अम्मन् हाज़ल्लज़ी हु – व जुन्दुल् – लकुम् यन्सुरुकुम् मिन् दूनिर्रह्मानि , इनिल् – काफ़िरू – न इल्ला फी गुरूर (20) 
 
अम् – मन् हाज़ल्लज़ी यरजुकुकुम् इन् अम् – स – क रिज़्क़हू बल् – लज्जू फ़ी अुतुव्विंव्व – व नुफूर (21) 
 
अ – फ़मंय्यम्शी मुकिब्बन् अ़ला वज्हिही अह्दा अम् – मंय्यम्शी सविय्यन् अ़ला सिरातिम् – मुसतक़ीम (22)
 
 कुल् हुवल्लज़ी अन्श – अकुम् व ज – अ़ल लकुमुस्सम् – अ़ वल्अब्सा – र वल् – अफ़इ – द – त , क़लीलम् – मा तश्कुरून (23) 
 
कुल् हुवल्लज़ी ज़ – र – अकुम् फ़िल्अर्जि व इलैहि तुह्शरून (24) 
 
व यकूलू – न मता हाज़ल् – वअ्दु इन् कुन्तुम् सादिक़ीन (25) 
 
कुल इन्नमल् – अ़िल्मु अिन्दल्लाहि व इन्नमा अ – न नज़ीरुम् – मुबीन (26)
 
 फ़ – लम्मा रऔहु जुल्फ़ – तन् सी – अत् वुजूहुल्लज़ी – न क – फ़रू व की – ल हाज़ल्लज़ी कुन्तुम् बिही तद्द – अून (27) 
 
कुल् अ – रऐतुम् इन् अह़्ल – कनियल्लाहु व मम् – मअि – य औ रहि – मना फ़ – मंय्युजीरुल् – काफ़िरी – न मिन् अ़ज़ाबिन अलीम (28) 
 
कुल् हुवर् – रह्मानु आमन्ना बिही व अ़लैहि तवक्कलना फ़ – स – तअ्लमू – न मन् हु – व फी ज़लालिम् – मुबीन (29) 
 
कुल् अ – रऐतुम् इन् अस्ब – ह मा – उकुम् गै़रन् फ़ – मंय्यअ्तीकुम् बिमाइम् – मअ़ीन (30)


 
सूरह अल मुल्क हिन्दी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है

﴾ 1 ﴿ शुभ है वह अल्लाह, जिसके हाथ में राज्य है तथा जो कुछ वह चाहे, कर सकता है।

﴾ 2 ﴿ जिसने उत्पन्न किया है मृत्यु तथा जीवन को, ताकि तुम्हारी परीक्षा ले कि तुममें किसका कर्म अधिक अच्छा है? तथा वह प्रभुत्वशाली, अति क्षमावान् है।[1]
1. इस में आज्ञा पालन की प्रेरणा तथा अवैज्ञा पर चेतावनी है।

﴾ 3 ﴿ जिसने उत्पन्न किये सात आकाश, ऊपर तले। तो क्या तुम देखते हो अत्यंत कृपाशील की उत्पत्ति में कोई असंगति? फिर पुनः देखो, क्या तुम देखते हो कोई दराड़?

﴾ 4 ﴿ फिर बार-बार देखो, वापस आयेगी तुम्हारी ओर निगाह थक-हार कर।

﴾ 5 ﴿ और हमने सजाया है संसार के आकाश को प्रदीपों (ग्रहों) से तथा बनाया है उन्हें (तारों को) मार भगाने का साधन शैतानों[1] को, और तैयार की है हमने उनके लिए दहकती अग्नि की यातना।
1. जो चोरी से आकाश की बातें सुनते हैं। (देखियेः सूरह साफ़्फ़ात, आयतः7-10)

﴾ 6 ﴿ और जिन्होंने कुफ़्र किया अपने पालनहार के साथ तो उनके लिए नरक की यातना है। और वह बुरा स्थान है।

﴾ 7 ﴿ जब वह फेंके जायेंगे उसमें तो सुनेंगे उसकी दहाड़ और वह खौल रही होगी।

﴾ 8 ﴿ प्रतीत होगा कि फट पड़ेगी रोष (क्रोध) सेर, जब-जब फेंका जायेगा उसमें कोई समूह तो प्रश्न करेंगे उनसे उसके प्रहरीः क्या नहीं आया तुम्हारे पास कोई सावधान करने वाला (रसूल)?

﴾ 9 ﴿ वह कहेंगेः हाँ हमारे पास आया सावधान करने वाला। पर हमने झुठला दिया और कहा कि नहीं उतारा है अल्लाह ने कुछ। तुम ही बड़े कुपथ में हो।

﴾ 10 ﴿ तथा वह कहेंगेः यदि हमने सुना और समझा होता तो नरक के वासियों में न होते।

﴾ 11 ﴿ ऐसे वह स्वीकार कर लेंगे अपने पापों को। तो दूरी[1] है नरक वासियों के लिए।
1. अर्थात अल्लाह की दया से।

﴾ 12 ﴿ निःसंदेह जो डरते हों अपने पालनहार से बिन देखे उन्हीं के लिए क्षमा है तथा बड़ा प्रतिफल है।[1]
1. ह़दीस में है कि मैं ने अपने सदाचारी भक्तों के लिये ऐसी चीज़ तैयार की है जिसे न किसी आँख ने देखा, न किसी कान ने सुना और न किसी दिल ने सोचा। (सह़ीह़ बुख़ारीः 3244, सह़ीह़ मुस्लिमः 2824)

﴾ 13 ﴿ तुम चुपके बोलो अपनी बात अथवा ऊँचे स्वर में। वास्तव में वह भली-भाँति जानता है सीनों के भेदों को।

﴾ 14 ﴿ क्या वह नहीं जानेगा जिस ने उत्न्न किया? और वह सूक्ष्मदर्शक[1] सर्व सूचित है?
1. बारीक बातों को जानने वाला।

﴾ 15 ﴿ वही है जिस ने बनाया है तुम्हारे लिए धरती को वश्वर्ती, तो चलो-फिरो उसके क्षेत्रों में तथा खाओ उसकी प्रदान की हुई जीविका। और उसी की ओर तुम्हें फिर जीवित हो कर जाना है।

﴾ 16 ﴿ क्या तुम निर्भय हो गये हो उससे जो आकाश में है कि वह धँसा दे धरती में फिर वह अचानक काँपने लगे।

﴾ 17 ﴿ अथवा निर्भय हो गये उससे जो आकाश में है कि वह भेज दे तुम पर पथरीली वायु तो तुम्हें ज्ञान हो जायेगा कि कैसा रहा मेरा सावधान करना?

﴾ 18 ﴿ झुठला चुके हैं इन[1] से पूर्व के लोग तो कैसी रही मेरी पकड़?
1. अर्थात मक्का वासियों से पहले आद, समूद आदि जातियों ने। तो लूत (अलैहिस्सलाम) की जाति पर पत्थरों की वर्षा हुई।

﴾ 19 ﴿ क्या उन्होंने नहीं देखा पक्षियों की ओर अपने ऊपर पंख फैलाते तथा सिकोड़ते। उन को अत्यंत कृपाशील ही थामता है। निसंदेह वह प्रत्येक वस्तु को देख रहा है।

﴾ 20 ﴿ कौन है वह तुम्हारी सेना जो तुम्हारी सहायता कर सकेगी अल्लाह के मुक़ाबले में? बल्कि वह घुस गये हैं अवैज्ञा तथा घृणा में।[1]

﴾ 21 ﴿ या कौन है जो तुम्हें जीविका प्रदान कर सके, यदि रोक ले वह अपनी जीविका? बल्कि वे घुस गये हैं अवैज्ञा तथा घृणा में।[1]
1. अर्थात से घृणा में।

﴾ 22 ﴿ तो क्या जो चल रहा हो औंधा हो कर अपने मुँह के बल वह अधिक मार्गदर्शन पर है ये जो सीधा हो कर चल रहा हो सीधी राह पर?[1]
1. इस में काफ़िर तथा ईमानधार का उदाहरण है। और दोनों के जीवन-लक्ष्य को बताया गया है कि काफ़िर सदा मायामोह में रहते हैं।

﴾ 23 ﴿ हे नबी! आप कह दें कि वही है जिस ने पैदा किया है तुम्हें और बनाये हैं तुम्हारे कान तथा आँख और दिल। बहुत ही कम आभारी (कृतज्ञ) होते हो।

﴾ 24 ﴿ आप कह देः उसीने फैलाया है तुम्हें धरती में और उसी की ओर एकत्रित[1] किये जाओगे।
1. प्रलय के दिन अपने कर्मों के लेखा-जोखा तथा प्रतिकार के लिये।

﴾ 25 ﴿ तथा वह कहते हैं कि ये वचन कब पूरा होगा यदि तुम सच्चे हो?

﴾ 26 ﴿ आप कह देः उस का ज्ञान बस अल्लाह ही को है। और मैं केवल खुला सावधान करने वाला हूँ।

﴾ 27 ﴿ फिर जब वह देखेंगे उसे समीप, तो बिगड़ जायेंगे उनके चेहरे जो काफ़िर हो गये। तथा कहा जायेगाः ये वही है जिसकी तुम माँग कर रहे थे।

﴾ 28 ﴿ आप कह देः देखो यदि अल्लाह नाश कर दे मुझ को तथा मेरे साथियों को अथवा दया करे हम पर, तो (बताओ कि) कौन है जो शरण देगा काफ़िरों को दुःखदायी[1] यातना से?
1. अर्थात तुम हमारा बुरा तो चाहते हो परन्तु अपनी चिन्ता नहीं करते।

﴾ 29 ﴿ आप कह देः वह अत्यंत कृपाशील है। हम उसपर ईमान लाये तथा उसीपर भरोसा किया, तो तुम्हें ज्ञान हो जायेगा कि कौन खुले कुपथ में है।

﴾ 30 ﴿ आप कह देः भला देखो यदि तुम्हारा पानी गहराई में चला जाये, तो कौन है जो तुम्हें ला कर देगा बहता हुआ जल?
 

सूरह अल मुल्क अरबी
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
1. تَبَارَكَ الَّذِي بِيَدِهِ الْمُلْكُ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
2. الَّذِي خَلَقَ الْمَوْتَ وَالْحَيَاةَ لِيَبْلُوَكُمْ أَيُّكُمْ أَحْسَنُ عَمَلًا ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْغَفُورُ
3. الَّذِي خَلَقَ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ طِبَاقًا ۖ مَا تَرَىٰ فِي خَلْقِ الرَّحْمَٰنِ مِنْ تَفَاوُتٍ ۖ فَارْجِعِ الْبَصَرَ هَلْ تَرَىٰ مِنْ فُطُورٍ
4. ثُمَّ ارْجِعِ الْبَصَرَ كَرَّتَيْنِ يَنْقَلِبْ إِلَيْكَ الْبَصَرُ خَاسِئًا وَهُوَ حَسِيرٌ
5. وَلَقَدْ زَيَّنَّا السَّمَاءَ الدُّنْيَا بِمَصَابِيحَ وَجَعَلْنَاهَا رُجُومًا لِلشَّيَاطِينِ ۖ وَأَعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَابَ السَّعِيرِ
6. وَلِلَّذِينَ كَفَرُوا بِرَبِّهِمْ عَذَابُ جَهَنَّمَ ۖ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ
7. إِذَا أُلْقُوا فِيهَا سَمِعُوا لَهَا شَهِيقًا وَهِيَ تَفُورُ
8. تَكَادُ تَمَيَّزُ مِنَ الْغَيْظِ ۖ كُلَّمَا أُلْقِيَ فِيهَا فَوْجٌ سَأَلَهُمْ خَزَنَتُهَا أَلَمْ يَأْتِكُمْ نَذِيرٌ
9. قَالُوا بَلَىٰ قَدْ جَاءَنَا نَذِيرٌ فَكَذَّبْنَا وَقُلْنَا مَا نَزَّلَ اللَّهُ مِنْ شَيْءٍ إِنْ أَنْتُمْ إِلَّا فِي ضَلَالٍ كَبِيرٍ
10. وَقَالُوا لَوْ كُنَّا نَسْمَعُ أَوْ نَعْقِلُ مَا كُنَّا فِي أَصْحَابِ السَّعِيرِ
11. فَاعْتَرَفُوا بِذَنْبِهِمْ فَسُحْقًا لِأَصْحَابِ السَّعِيرِ
12. إِنَّ الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ بِالْغَيْبِ لَهُمْ مَغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ كَبِيرٌ
13. وَأَسِرُّوا قَوْلَكُمْ أَوِ اجْهَرُوا بِهِ ۖ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ
14. أَلَا يَعْلَمُ مَنْ خَلَقَ وَهُوَ اللَّطِيفُ الْخَبِيرُ
15. هُوَ الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ ذَلُولًا فَامْشُوا فِي مَنَاكِبِهَا وَكُلُوا مِنْ رِزْقِهِ ۖ وَإِلَيْهِ النُّشُورُ
16. أَأَمِنْتُمْ مَنْ فِي السَّمَاءِ أَنْ يَخْسِفَ بِكُمُ الْأَرْضَ فَإِذَا هِيَ تَمُورُ
17. أَمْ أَمِنْتُمْ مَنْ فِي السَّمَاءِ أَنْ يُرْسِلَ عَلَيْكُمْ حَاصِبًا ۖ فَسَتَعْلَمُونَ كَيْفَ نَذِيرِ
18. وَلَقَدْ كَذَّبَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ فَكَيْفَ كَانَ نَكِيرِ
19. أَوَلَمْ يَرَوْا إِلَى الطَّيْرِ فَوْقَهُمْ صَافَّاتٍ وَيَقْبِضْنَ ۚ مَا يُمْسِكُهُنَّ إِلَّا الرَّحْمَٰنُ ۚ إِنَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ بَصِيرٌ
20. أَمَّنْ هَٰذَا الَّذِي هُوَ جُنْدٌ لَكُمْ يَنْصُرُكُمْ مِنْ دُونِ الرَّحْمَٰنِ ۚ إِنِ الْكَافِرُونَ إِلَّا فِي غُرُورٍ
21. أَمَّنْ هَٰذَا الَّذِي يَرْزُقُكُمْ إِنْ أَمْسَكَ رِزْقَهُ ۚ بَلْ لَجُّوا فِي عُتُوٍّ وَنُفُورٍ
22. أَفَمَنْ يَمْشِي مُكِبًّا عَلَىٰ وَجْهِهِ أَهْدَىٰ أَمَّنْ يَمْشِي سَوِيًّا عَلَىٰ صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ
23. قُلْ هُوَ الَّذِي أَنْشَأَكُمْ وَجَعَلَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْأَبْصَارَ وَالْأَفْئِدَةَ ۖ قَلِيلًا مَا تَشْكُرُونَ
24. قُلْ هُوَ الَّذِي ذَرَأَكُمْ فِي الْأَرْضِ وَإِلَيْهِ تُحْشَرُونَ
25. وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا الْوَعْدُ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ
26. قُلْ إِنَّمَا الْعِلْمُ عِنْدَ اللَّهِ وَإِنَّمَا أَنَا نَذِيرٌ مُبِينٌ
27. فَلَمَّا رَأَوْهُ زُلْفَةً سِيئَتْ وُجُوهُ الَّذِينَ كَفَرُوا وَقِيلَ هَٰذَا الَّذِي كُنْتُمْ بِهِ تَدَّعُونَ
28. قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ أَهْلَكَنِيَ اللَّهُ وَمَنْ مَعِيَ أَوْ رَحِمَنَا فَمَنْ يُجِيرُ الْكَافِرِينَ مِنْ عَذَابٍ أَلِيمٍ
29. قُلْ هُوَ الرَّحْمَٰنُ آمَنَّا بِهِ وَعَلَيْهِ تَوَكَّلْنَا ۖ فَسَتَعْلَمُونَ مَنْ هُوَ فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ
30. قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ أَصْبَحَ مَاؤُكُمْ غَوْرًا فَمَنْ يَأْتِيكُمْ بِمَاءٍ مَعِينٍ


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