सूरह वाकिया हिंदी surah waqiah hindi pronounce translation arabic

सूरह वाकिया हिंदी surah waqiah hindi pronounce translation arabic

Surah Waqiah Hindi
सूरह वाकिया हिंदी surah waqiah hindi pronounce translation arabic


सूरह अल वाकिया हिंदी में उच्चारण

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

इज़ा व – क़ – अ़तिल् – वाकि – अतु (1)

लै – स लिवक्अ़तिहा काज़िबह् • (2)

खाफ़ि – ज़तुर – राफ़ि – अः (3)

इज़ा रुज्जतिल् – अर्जु रज्जंव्- (4)

व बुस्सतिल् – जिबालु बस्सा (5)

फ़ – कानत् हबा – अम् मुम् – बस्संव – (6)

व कुन्तुम् अज़्वाजन् सलासः (7)

फ़ – अस्हाबुल् -मैमनति मा अस्हाबुल – मै – मनः (8)

व अस्हाबुल् – मश् – अ – मति मा अस्हाबुल – मश् – अमः (9)

वस्साबिकू नस् – साबिकून (10)

उलाइ – कल् – मुकर्रबून (11)

फी जन्नातिन् – नअ़ीम (12)

सुल्लतुम् – मिनल् – अव्वलीन (13)

व क़लीलुम् मिनल – आख़िरीन (14)

अ़ला सुरुरिम् – मौजूनतिम्- (15)

मुत्तकिई – न अ़लैहा मु – तकाबिलीन (16)

यतूफु अ़लैहिम् विल्दानुम् – मु – ख़ल्लदून (17)

बिअक्वाबिंव् – व अबारी – क़ व कअ्सिम् – मिम् – मअ़ीन (18)

ला युसद् – दअू – न अ़न्हा व ला युन्ज़िफून (19)

व फ़ाकि – हतिम् – मिम्मा य – तख़य्यरून (20)

व लह़्मि तैरिम् – मिम्मा यश्तहून (21)

व हुरुन् अी़न (22)

क – अम्सालिल् – लुअलुइल् – मक्नून (23)

जज़ा – अम् बिमा कानू यअ्मलून (24)

ला यस्मअू – न फ़ीहा लग्वंव् – व ला तअ्सीमा (25)

इल्ला की़लन् सलामन् सलामा (26)

व अस्हाबुल् – यमीनि मा अस्हाबुल् – यमीन (27)

फी सिद्रिम् – मख़्जूदिंव् – (28)

व तल्हिम् – मनजूदिंव् – (29)

व ज़िल्लिम् मम्दूदिंव् – (30)

व माइम् – मस्कूब (31)

व फ़ाकि – हतिन् कसी – रतिल् – (32)

ला मक्तू – अ़तिंव् – व ला मम्नू – अ़तिंव् (33)

व फुरुशिम् – मरफूअः (34)

इन्ना अन्शअ्नाहुन् – न इन्शा – अन् (35)

फ़ – जअ़ल्नाहुन् – न अब्कारा (36)

अुरुबन् अत्राबल्- (37)

लिअस्हाबिल् – यमीन (38)

सुल्लतुम् – मिनल् – अव्वलीन (39)

व सुल्लतुम् – मिनल् – आख़िरीन (40)

व अस्हाबुशु – शिमालि मा अस्हाबुश् – शिमाल (41)

फ़ी समूमिंव् – व हमीमिंव् – (42)

व ज़िल्लिम् – मिंय्यह्मूमिल् – (43)

ला बारिदिंव् – व ला करीम (44)

इन्नहुम् कानू क़ब् – ल ज़ालि – क मुत् – रफ़ीन (45)

व कानू युसिर्रू – न अ़लल् – हिन्सिल् – अ़ज़ीम (46)

व कानू यकूलू – न अ – इज़ा मित्ना व कुन्ना तुराबंव् – व अ़िज़ामन् अ – इन्ना ल – मब्अूसून (47)

अ – व आबाउनल् – अव्वलून (48)

कुल् इन्नल् – अव्वली – न वल् – आख़िरीन (49)

ल – मज्मूअू – न इला मीकाति यौमिम् – मअ्लूम (50)

सुम् – म इन्नकुम अय्युहज़्जा़ल्लूनल् – मुकज़्ज़िबून (51)

ल – आकिलू – न मिन् श – जरिम् – मिन् ज़क़्कूम (52)

फ़मालिऊ – न मिन्हल् – बुतून (53)

फ़शरिबू – न अ़लैहि मिनल् – हमीम (54)

फ़शरिबू – न शुर्बल् – हीम (55)

हाज़ा नुजुलुहुम् यौमद्दीन (56)

नह्नु ख़लक़्नाकुम् फ़लौ ला तुसद्दिकून (57)

अ – फ़ – रऐतुम् – मा तुम्नून (58)

अ – अन्तुम् तखलुकूनहू अम् नह्नुल – ख़ालिकून (59)

नह्नु कद्दरना बैनकुमुल् – मौ – त व मा नह्नु बिमसबूक़ीन (60)

अ़ला अन् – नुबद्दि – ल अम्सा – लकुम् व नुन्शि – अकुम् फ़ी मा ला तअ्लमून (61)

व ल – क़द् अ़लिम्तुमुन् – नश्अ – तल् ऊला फ़लौ ला तज़क्करून (62)

अ – फ़ – रऐतुम् – मा तहरुसून (63)

अ – अन्तुम् तज् – रअूनहू अम् नह्नुज् – ज़ारिअून (64)

लौ नशा – उ ल – जअ़ल्नाहु हुतामन् फ़ज़ल्तुम् तफ़क्कहून (65)

इन्ना ल – मुग़रमून (66)

बल् नह्नु महरूमून (67)

अ – फ – रऐतुमुल् मा अल्लज़ी तश्रबून (68)

अ – अन्तुम् अन्ज़ल्तुमूहु मिनल् – मुज्नि अम् नह्नुल – मुन्ज़िलून (69)

लौ नशा – उ जअ़ल्लाहु उजाजन् फ़लौ ला तश्कुरून (70)

अ – फ़ – रऐतुमुन् – नारल्लती तूरून (71)

अ – अन्तुम् अन्शअ्तुम् श – ज – र – तहा अम् नह्नुल – मुन्शिऊन (72)

नह्नु जअ़ल्नाहा तज़्कि – रतंव् – व मताअ़ल् – लिल्मुक़्वीन (73)

फ़ – सब्बिह् बिस्मि रब्बिकल् – अ़ज़ीम • (74)*

फ़ला उक्सिमु बि – मवाकिअिन् – नुजूम (75)

व इन्नहू ल – क़ – समुल् – लौ तअ्लमू – न अ़ज़ीम (76)

इन्नहू ल – कुरआनुन् करीम (77)

फी किताबिम् मक्नून (78)

ला य – मस्सुहू इल्लल् – मुतह्हरून (79)

तन्ज़ीलुम् मिर्रब्बिल् – आ़लमीन (80)

अ – फ़बिहाज़ल् – हदीसि अन्तुम् मुद्हिनून (81)

व तज्अ़लू – न रिज् – क़कुम् अन्नकुम् तुकज़्ज़िबून (82)

फ़लौ ला इज़ा ब – ल – गतिल् – हुल्कूम (83)

व अन्तुम् ही – न – इज़िन् तन्जुरून (84)

व नह्नु अक्रबु इलैहि मिन्कुम् व लाकिल् – ला तुब्सिरून (85)

फ़लौ – ला इन् कुन्तुम् गै़ – र मदीनीन (86)

तरजिअूनहा इन् कुन्तुम् सादिक़ीन (87)

फ़ – अम्मा इन का – न मिनल् – मुक़र्रबीन (88)

फ़ – रौहुंव् – व रैहानुंव् – व जन्नतु नअ़ीम (89)

व अम्मा इन् का – न मिन् अस्हाबिल् – यमीन (90)

फ़ – सलामुल् – ल – क मिन् अस्हाबिल् – यमीन (91)

व अम्मा इन् का – न मिनल् मुकज़्ज़िबीनज् -ज़ाल्लीन (92)

फ़ – नुजुलुम् – मिन् हमीमिंव् – (93)

व तस्लि – यतु जहीम (94)

इन् – न हाज़ा लहु – व हक़्कुल – यक़ीन (95)

फ़ – सब्बिहू बिस्मि रब्बिकल् – अ़ज़ीम (96)



सूरह अल वाकिया हिंदी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है

﴾ 1 ﴿ जब होने वाली, हो जायेगी।

﴾ 2 ﴿ उसका होना कोई झूठ नहीं है।

﴾ 3 ﴿ नीचा-ऊँचा करने[1] वाली।
1. इस से अभिप्राय प्रलय है। जो सत्य के विरोधियों को नीचा कर के नरक तक पहुँचायेगी। तथा आज्ञाकारियों को स्वर्ग के ऊँचे स्थान तक पहुँचायेगी। आरंभिक आयतों में प्रलय के होने की चर्चा, फिर उस दिन लोगों के तीन भागों में विभाजित होने का वर्णन किया गया है।

﴾ 4 ﴿ जब धरती तेज़ी से डोलने लगेगी।

﴾ 5 ﴿ और चूर-चूर कर दिये जायेंगे पर्वत।

﴾ 6 ﴿ फिर हो जायेंगे बिखरी हुई धूल।

﴾ 7 ﴿ तथा तुम हो जाओगे तीन समूह।

﴾ 8 ﴿ तो दायें वाले, तो क्या हैं दायें वाले![1]
1. दायें वाले से अभिप्राय वह हैं जिन का कर्मपत्र दायें हाथ में दिया जायेगा। तथा बायें वाले वह दुराचारी होंगे जिन का कर्मपत्र बायें हाथ में दिया जायेगा।

﴾ 9 ﴿ और बायें वाले, तो क्या हैं बायें वाले!

﴾ 10 ﴿ और अग्रगामी तो अग्रगामी ही हैं।

﴾ 11 ﴿ वही समीप किये[1] हुए हैं।
1. अर्थात अल्लाह के प्रियवर और उस के समीप होंगे।

﴾ 12 ﴿ वे सुखों के स्वर्गों में होंगे।

﴾ 13 ﴿ बहुत-से अगले लोगों में से।

﴾ 14 ﴿ तथा कुछ पिछले लोगों में से होंगे।

﴾ 15 ﴿ स्वर्ण से बुने हुए तख़्तों पर।

﴾ 16 ﴿ तकिये लगाये उनपर, एक-दूसरे के सम्मुख (आसीन) होंगे।

﴾ 17 ﴿ फिरते होंगे उनकी सेवा के लिए बालक, जो सदा (बालक) रहेंगे।

﴾ 18 ﴿ प्याले तथा सुराह़ियाँ लेकर तथा मदिरा के छलकते प्याले।

﴾ 19 ﴿ न तो सिर चकरायेगा उनसे, न वे निर्बोध होंगे।

﴾ 20 ﴿ तथा जो फल वे चाहेंगे।

﴾ 21 ﴿ तथा पक्षी का जो मांस वे चाहेंगे।

﴾ 22 ﴿ और गोरियाँ बड़े नैनों वाली।

﴾ 23 ﴿ छुपाकर रखी हुईं मोतियों के समान।

﴾ 24 ﴿ उसके बदले, जो वे (संसार में) करते रहे।

﴾ 25 ﴿ नहीं सुनेंगे उनमें व्यर्थ बात और न पाप की बात।

﴾ 26 ﴿ केवल सलाम ही सलाम की ध्वनि होगी।

﴾ 27 ﴿ और दायें वाले, क्या (ही भाग्यशाली) हैं दायें वाले!

﴾ 28 ﴿ बिन काँटे की बैरी में होंगे।

﴾ 29 ﴿ तथा तह पर तह केलों में।

﴾ 30 ﴿ फैली हुई छाया[1] में।
1. ह़दीस में है कि स्वर्ग में एक वृक्ष है जिस की छाया में सवार सौ वर्ष चलेगा फिर भी वह समाप्त नहीं होगा। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4881)

﴾ 31 ﴿ और प्रवाहित जल में।

﴾ 32 ﴿ तथा बहुत-से फलों में।

﴾ 33 ﴿ जो न समाप्त होंगे, न रोके जायेंगे।

﴾ 34 ﴿ और ऊँचे बिस्तर पर।

﴾ 35 ﴿ हमने बनाया है (उनकी) पत्नियों को एक विशेष रूप से।

﴾ 36 ﴿ हमने बनाय है उन्हें कुमारियाँ।

﴾ 37 ﴿ प्रेमिकायें समायु।

﴾ 38 ﴿ दाहिने वालों के लिए।

﴾ 39 ﴿ बहुत-से अगलों में से होंगे।

﴾ 40 ﴿ तथा बहुत-से पिछलों में से।

﴾ 41 ﴿ और बायें वाले, तो क्या हैं बायें वाले!

﴾ 42 ﴿ वे गर्म वायु तथा खौलते जल में (होंगे)।

﴾ 43 ﴿ तथा काले धुवें की छाया में।

﴾ 44 ﴿ जो न शीतल होगा और न सुखद।

﴾ 45 ﴿ वास्तव में, वे इससे पहले (संसार में) सम्पन्न (सुखी) थे।

﴾ 46 ﴿ तथा दुराग्रह करते थे महा पापों पर।

﴾ 47 ﴿ तथा कहा करते थे कि क्या जब हम मर जायेंगे तथा हो जायेंगे धूल और अस्थियाँ, तो क्या हम अवश्य पुनः जीवित होंगे?

﴾ 48 ﴿ और क्या हमारे पूर्वज (भी)?

﴾ 49 ﴿ आप कह दें कि निःसंदेह सब अगले तथा पिछले।

﴾ 50 ﴿ अवश्य एकत्र किये जायेंगे एक निर्धारित दिन के समय।

﴾ 51 ﴿ फिर तुम, हे कुपथो! झुठलाने वालो!

﴾ 52 ﴿ अवश्य खाने वाले हो ज़क़्क़ूम (थोहड़) के वृक्ष से।[1]
1. (देखियेः सूरह साफ़्फ़ात, आयतः62)

﴾ 53 ﴿ तथा भरने वाले हो उससे (अपने) उदर।

﴾ 54 ﴿ तथा पीने वाले हो उसपर से खौलता जल।

﴾ 55 ﴿ फिर पीने वाले हो प्यासे[1] ऊँट के समान।
1. आयत में प्यासे ऊँटों के लिये ‘ह़ीम’ शब्द प्रयुक्त हुआ है। यह ऊँट में एक विशेष रोग होता है जिस से उस की प्यास नहीं जाती।

﴾ 56 ﴿ यही उनका अतिथि सत्कार है, प्रतिकार (प्रलय) के दिन।

﴾ 57 ﴿ हमने ही उत्पन्न किया है तुम्हें, फिर तुम विश्वास क्यों नहीं करते?

﴾ 58 ﴿ क्या तुमने ये विचार किया कि जो वीर्य तुम (गर्भाशयों में) गिराते हो।

﴾ 59 ﴿ क्या तुम उसे शिशु बनाते हो या हम बनाने वाले हैं?

﴾ 60 ﴿ हमने निर्धारित किया है तुम्हारे बीच मरण को तथा हम विवश होने वाले नहीं हैं।

﴾ 61 ﴿ कि बदल दें तुम्हारे रूप और तुम्हें बना दें उस रूप में, जिसे तुम नहीं जानते।

﴾ 62 ﴿ तथा तुमने तो जान लिया है प्रथम उत्पत्ति को फिर तुम शिक्षा ग्रहण क्यों नहीं करते?

﴾ 63 ﴿ फिर क्या तुमने विचार किया कि उसमें जो तुम बोते हो?

﴾ 64 ﴿ क्या तुम उसे उगाते हो या हम उसे उगाने वाले हैं?

﴾ 65 ﴿ यदि हम चाहें, तो उसे भुस बना दें, फिर तुम बातें बनाते रह जाओ।

﴾ 66 ﴿ वस्तुतः, हम दण्डित कर दिये गये।

﴾ 67 ﴿ बल्कि हम (जीविका से) वंचित कर दिये गये।

﴾ 68 ﴿ फिर तुमने विचार किया उस पानी में, जो तुम पीते हो?

﴾ 69 ﴿ क्या तुमने उसे बरसाया है बादल से अथवा हम उसे बरसाने वाले हैं।?

﴾ 70 ﴿ यदि हम चाहें, तो उसे खारी कर दें, फिर तुम आभारी (कृतज्ञ) क्यों नहीं होते?

﴾ 71 ﴿ क्या तुमने उस अग्नि को देखा, जिसे तुम सुलगाते हो।

﴾ 72 ﴿ क्या तुमने उत्पन्न किया है उसके वृक्ष को या हम उत्पन्न करने वाले हैं?

﴾ 73 ﴿ हमने ही बनाया उसे शिक्षाप्रद तथा यात्रियों के लाभदायक।

﴾ 74 ﴿ अतः, (हे नबी!) आप पवित्रता का वर्णन करें अपने महा पालनहार के नाम की।

﴾ 75 ﴿ मैं शपथ लेता हूँ सितारों के स्थानों की!

﴾ 76 ﴿ और ये निश्चय एक बड़ी शपथ है, यदि तुम समझो।

﴾ 77 ﴿ वास्तव में, ये आदरणीय[1] क़ुर्आन है।
1. तारों की शपथ का अर्थ यह है कि जिस प्रकार आकाश के तारों की एक दृढ़ व्यवस्था है उसी प्रकार यह क़ुर्आन भी अति ऊँचा तथा सुदृढ़ है।

﴾ 78 ﴿ सुरक्षित[1] पुस्तक में।
1. इस से अभिप्राय ‘लौह़े मह़फ़ूज़’ है।

﴾ 79 ﴿ इसे पवित्र लोग ही छूते हैं।[1]
1. पवित्र लोगों से अभिप्राय फ़रिश्तें हैं। (देखियेः सूरह अबस, आयतः15-16)

﴾ 80 ﴿ अवतरित किया गया है सर्वलोक के पालनहार की ओर से।

﴾ 81 ﴿ फिर क्या तुम इस वाणि (क़ुर्आन) की अपेक्षा करते हो?

﴾ 82 ﴿ तथा बनाते हो अपना भाग कि इसे तुम झुठलाते हो?

﴾ 83 ﴿ फिर क्यों नहीं जब प्राण गले को पहुँचते हैं।

﴾ 84 ﴿ और तुम उस समय देखते रहते हो।

﴾ 85 ﴿ तथा हम अधिक समीप होते हैं उसके तुमसे, परन्तु तुम नहीं देख सकते।

﴾ 86 ﴿ तो यदि तुम किसी के आधीन न हो।

﴾ 87 ﴿ तो उस (प्राण) को फेर क्यों नहीं लाते, यदि तुम सच्चे हो?

﴾ 88 ﴿ फिर यदि वह (प्राणी) समीपवर्तियों में है।

﴾ 89 ﴿ तो उसके लिए सुख तथा उत्तम जीविका तथा सुख भरा स्वर्ग है।

﴾ 90 ﴿ और यदि वह दायें वालों में से है।

﴾ 91 ﴿ तो सलाम है तेरे लिए दायें वालों में होने के कारण।[1]
1. अर्थात उस का स्वागत सलाम से होगा।

﴾ 92 ﴿ और यदि वह है झुठलाने वाले कुपथों में से।

﴾ 93 ﴿ तो अतिथि सत्कार है खौलते पानी से।

﴾ 94 ﴿ तथा नरक में प्रवेश।

﴾ 95 ﴿ वास्तव में, यही निश्चय सत्य है।

﴾ 96 ﴿ अतः, (हे नबी!) आप पवित्रता का वर्णन करें अपने महा पालनहार के नाम की।


 
सूरह अल वाकिया अरबी

ذَا وَقَعَتِ ٱلْوَاقِعَةُ
لَيْسَ لِوَقْعَتِهَا كَاذِبَةٌ
خَافِضَةٌ رَّافِعَةٌ
ذَا رُجَّتِ ٱلْأَرْضُ رَجًّا
وَبُسَّتِ ٱلْجِبَالُ بَسًّا
فَكَانَتْ هَبَآءً مُّنۢبَثًّا
كُنتُمْ أَزْوَٰجًا ثَلَٰثَةً
فَأَصْحَٰبُ ٱلْمَيْمَنَةِ مَآ أَصْحَٰبُ ٱلْمَيْمَنَةِ
وَأَصْحَٰبُ ٱلْمَشْـَٔمَةِ مَآ أَصْحَٰبُ ٱلْمَشْـَٔمَةِ
 وَٱلسَّٰبِقُونَ ٱلسَّٰبِقُونَ
 أُو۟لَٰٓئِكَ ٱلْمُقَرَّبُونَ
 فِى جَنَّٰتِ ٱلنَّعِيمِ
 ثُلَّةٌ مِّنَ ٱلْأَوَّلِينَ
 وَقَلِيلٌ مِّنَ ٱلْءَاخِرِينَ
 عَلَىٰ سُرُرٍ مَّوْضُونَةٍ
 مُّتَّكِـِٔينَ عَلَيْهَا مُتَقَٰبِلِينَ
 يَطُوفُ عَلَيْهِمْ وِلْدَٰنٌ مُّخَلَّدُونَ
 بِأَكْوَابٍ وَأَبَارِيقَ وَكَأْسٍ مِّن مَّعِينٍ
 لَّا يُصَدَّعُونَ عَنْهَا وَلَا يُنزِفُونَ
 وَفَٰكِهَةٍ مِّمَّا يَتَخَيَّرُونَ
 وَلَحْمِ طَيْرٍ مِّمَّا يَشْتَهُونَ
وَحُورٌ عِينٌ
 كَأَمْثَٰلِ ٱللُّؤْلُؤِ ٱلْمَكْنُونِ
 جَزَآءًۢ بِمَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ
 لَا يَسْمَعُونَ فِيهَا لَغْوًا وَلَا تَأْثِيمًا
 إِلَّا قِيلًا سَلَٰمًا سَلَٰمًا
وَأَصْحَٰبُ ٱلْيَمِينِ مَآ أَصْحَٰبُ ٱلْيَمِينِ
 فِى سِدْرٍ مَّخْضُودٍ
 وَطَلْحٍ مَّنضُودٍ
 وَظِلٍّ مَّمْدُودٍ
 وَمَآءٍ مَّسْكُوبٍ
 وَفَٰكِهَةٍ كَثِيرَةٍ
 لَّا مَقْطُوعَةٍ وَلَا مَمْنُوعَةٍ
 وَفُرُشٍ مَّرْفُوعَةٍ
 إِنَّآ أَنشَأْنَٰهُنَّ إِنشَآءً
 فَجَعَلْنَٰهُنَّ أَبْكَارًا
 عُرُبًا أَتْرَابًا
 لِّأَصْحَٰبِ ٱلْيَمِينِ
 ثُلَّةٌ مِّنَ ٱلْأَوَّلِينَ
 وَثُلَّةٌ مِّنَ ٱلْءَاخِرِينَ
 وَأَصْحَٰبُ ٱلشِّمَالِ مَآ أَصْحَٰبُ ٱلشِّمَالِ
 فِى سَمُومٍ وَحَمِيمٍ
 وَظِلٍّ مِّن يَحْمُومٍ
 لَّا بَارِدٍ وَلَا كَرِيمٍ
 إِنَّهُمْ كَانُوا۟ قَبْلَ ذَٰلِكَ مُتْرَفِينَ
 وَكَانُوا۟ يُصِرُّونَ عَلَى ٱلْحِنثِ ٱلْعَظِيمِ
 وَكَانُوا۟ يَقُولُونَ أَئِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَعِظَٰمًا أَءِنَّا لَمَبْعُوثُونَ
أَوَءَابَآؤُنَا ٱلْأَوَّلُونَ
 قُلْ إِنَّ ٱلْأَوَّلِينَ وَٱلْءَاخِرِينَ
 لَمَجْمُوعُونَ إِلَىٰ مِيقَٰتِ يَوْمٍ مَّعْلُومٍ
 ثُمَّ إِنَّكُمْ أَيُّهَا ٱلضَّآلُّونَ ٱلْمُكَذِّبُونَ
 لَءَاكِلُونَ مِن شَجَرٍ مِّن زَقُّومٍ
 فَمَالِـُٔونَ مِنْهَا ٱلْبُطُونَ
 فَشَٰرِبُونَ عَلَيْهِ مِنَ ٱلْحَمِيمِ
 فَشَٰرِبُونَ شُرْبَ ٱلْهِيمِ
 هَٰذَا نُزُلُهُمْ يَوْمَ ٱلدِّينِ
 نَحْنُ خَلَقْنَٰكُمْ فَلَوْلَا تُصَدِّقُونَ
 أَفَرَءَيْتُم مَّا تُمْنُونَ
 ءَأَنتُمْ تَخْلُقُونَهُۥٓ أَمْ نَحْنُ ٱلْخَٰلِقُونَ
 نَحْنُ قَدَّرْنَا بَيْنَكُمُ ٱلْمَوْتَ وَمَا نَحْنُ بِمَسْبُوقِينَ
 عَلَىٰٓ أَن نُّبَدِّلَ أَمْثَٰلَكُمْ وَنُنشِئَكُمْ فِى مَا لَا تَعْلَمُونَ
 وَلَقَدْ عَلِمْتُمُ ٱلنَّشْأَةَ ٱلْأُولَىٰ فَلَوْلَا تَذَكَّرُونَ
 أَفَرَءَيْتُم مَّا تَحْرُثُونَ
 ءَأَنتُمْ تَزْرَعُونَهُۥٓ أَمْ نَحْنُ ٱلزَّٰرِعُونَ
 لَوْ نَشَآءُ لَجَعَلْنَٰهُ حُطَٰمًا فَظَلْتُمْ تَفَكَّهُونَ
 إِنَّا لَمُغْرَمُونَ
 بَلْ نَحْنُ مَحْرُومُونَ
 أَفَرَءَيْتُمُ ٱلْمَآءَ ٱلَّذِى تَشْرَبُونَ
 ءَأَنتُمْ أَنزَلْتُمُوهُ مِنَ ٱلْمُزْنِ أَمْ نَحْنُ ٱلْمُنزِلُونَ
لَوْ نَشَآءُ جَعَلْنَٰهُ أُجَاجًا فَلَوْلَا تَشْكُرُونَ
أَفَرَءَيْتُمُ ٱلنَّارَ ٱلَّتِى تُورُونَ
ءَأَنتُمْ أَنشَأْتُمْ شَجَرَتَهَآ أَمْ نَحْنُ ٱلْمُنشِـُٔونَ
 نَحْنُ جَعَلْنَٰهَا تَذْكِرَةً وَمَتَٰعًا لِّلْمُقْوِينَ
فَسَبِّحْ بِٱسْمِ رَبِّكَ ٱلْعَظِيمِ
فَلَآ أُقْسِمُ بِمَوَٰقِعِ ٱلنُّجُومِ
 وَإِنَّهُۥ لَقَسَمٌ لَّوْ تَعْلَمُونَ عَظِيمٌ
 إِنَّهُۥ لَقُرْءَانٌ كَرِيمٌ
 فِى كِتَٰبٍ مَّكْنُونٍ
 لَّا يَمَسُّهُۥٓ إِلَّا ٱلْمُطَهَّرُونَ
 تَنزِيلٌ مِّن رَّبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ
 أَفَبِهَٰذَا ٱلْحَدِيثِ أَنتُم مُّدْهِنُونَ
 وَتَجْعَلُونَ رِزْقَكُمْ أَنَّكُمْ تُكَذِّبُونَ
 فَلَوْلَآ إِذَا بَلَغَتِ ٱلْحُلْقُومَ
 وَأَنتُمْ حِينَئِذٍ تَنظُرُونَ
 وَنَحْنُ أَقْرَبُ إِلَيْهِ مِنكُمْ وَلَٰكِن لَّا تُبْصِرُونَ
 فَلَوْلَآ إِن كُنتُمْ غَيْرَ مَدِينِينَ
 تَرْجِعُونَهَآ إِن كُنتُمْ صَٰدِقِينَ
 فَأَمَّآ إِن كَانَ مِنَ ٱلْمُقَرَّبِينَ
 فَرَوْحٌ وَرَيْحَانٌ وَجَنَّتُ نَعِيمٍ
 وَأَمَّآ إِن كَانَ مِنْ أَصْحَٰبِ ٱلْيَمِينِ
 فَسَلَٰمٌ لَّكَ مِنْ أَصْحَٰبِ ٱلْيَمِينِ
 وَأَمَّآ إِن كَانَ مِنَ ٱلْمُكَذِّبِينَ ٱلضَّآلِّينَ
 فَنُزُلٌ مِّنْ حَمِيمٍ
 وَتَصْلِيَةُ جَحِيمٍ
 إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ حَقُّ ٱلْيَقِينِ
 فَسَبِّحْ بِٱسْمِ رَبِّكَ ٱلْعَظِيمِ
 

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