Surah Al Baqara in Hindi Ayat 105 to 130 सूरह अल-बक़रा
Surah Al Baqara in Hindi Ayat 105 to 130
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मा यवद्दुल्लज़ी-न क-फरू मिन अहलिल्-किताबि व ललमुश्रिकी-न अंय्यु नज्ज़-ल अलैकुम् मिन् खैरिम्-मिर्रब्बिकुम , वल्लाहु यख़्तस्सु बिरहमतिहि मंय्यशा-उ , वल्लाहु जुलफ़ज्लिल-अज़ीम (105)
ऐ रसूल अहले किताब में से जिन लोगों ने कुफ्र इख़तेयार किया वह और मुशरेकीन ये नहीं चाहते हैं कि तुम पर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से भलाई ( वही ) नाज़िल की जाए और ( उनका तो इसमें कुछ इजारा नहीं ) खुदा जिसको चाहता है अपनी रहमत के लिए ख़ास कर लेता है और खुदा बड़ा फज़ल ( करने ) वाला है (105)
मा नन्सखू मिन् आयतिन् औ नुन्सिहा नअ्ति बिखैरिम् मिन्हा औ मिस्लिहा , अलम् तअ्लम् अन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर (106)
(ऐ रसूल) हम जब कोई आयत मन्सूख़ करते हैं या तुम्हारे ज़ेहन से मिटा देते हैं तो उससे बेहतर या वैसी ही ( और ) नाज़िल भी कर देते हैं क्या तुम नहीं जानते कि बेशुबहा खुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (106)
अलम् तअ्लम् अन्नल्ला-ह लहू मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि , वमा लकुम् मिन् दुनिल्लाहि मिंव्वलिय्यिंव वला नसीर (107)
क्या तुम नहीं जानते कि आसमान की सलतनत बेशुबहा ख़ास खुदा ही के लिए है और खुदा के सिवा तुम्हारा न कोई सरपरस्त है न मददगार (107)
अम् तुरीदू-न अन् तस्अलू रसूलकुम् कमा सुइ-ल मूसा मिन् कब्लु , वमंय्-य-तबद्दलिल-कुफ्-र बिल्ईमानि फ़-कद् ज़ल-ल सवाअस्सबील (108)
(मुसलमानों) क्या तुम चाहते हो कि तुम भी अपने रसूल से वैसै ही ( बेढंगे ) सवालात करो जिस तरह साबिक़ ( पहले ) ज़माने में मूसा से ( बेतुके ) सवालात किए गए थे और जिस शख्स ने ईमान के बदले कुफ्र एख़तेयार किया वह तो यक़ीनी सीधे रास्ते से भटक गया (108)
वद्-द कसीरूम मिन् अहलिल-किताबि लौ यरूद्दूनकुम् मिम्-बअदि ईमानिकुम् कुफ्फारन् ह-सदम् मिन् अिन्दि अन्फुसिहिम् मिम्-बअ्दि मा तबय्य-न लहुमुल-हक्कु फ़अफू वस्फ़हू हत्ता यअ्तियल्लाहु बिअमरिही , इन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर (109)
(मुसलमानों) अहले किताब में से अक्सर लोग अपने दिली हसद की वजह से ये ख्वाहिश रखते हैं कि तुमको ईमान लाने के बाद फिर काफ़िर बना दें ( और लत्फ तो ये है कि ) उन पर हक़ ज़ाहिर हो चुका है उसके बाद भी ( ये तमन्ना बाक़ी है ) पस तुम माफ करो और दरगज़र करो यहाँ तक कि खुदा अपना ( कोई और ) हक्म भेजे बेशक खुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (109)
व अक़ीमुस्सला-त व आतुज्जका-त , वमा तुकद्दिमू लिअन्फुसिकुम मिन् खैरिन् तजिदूहु अिन्दल्लाहि , इन्नल्ला-ह बिमा तअ्मलू-न बसीर (110)
और नमाज़ पढ़ते रहो और ज़कात दिये जाओ और जो कुछ भलाई अपने लिए ( खुदा के यहाँ ) पहले से भेज दोगे उस ( के सवाब ) को मौजूद पाआगे जो कुछ तुम करते हो उसे खुदा ज़रूर देख रहा है (110)
व कालू लंय्यदखुलल जन्न-त इल्ला मन् का-न हूदन् औ नसारा , तिल-क अमानिय्युहुम , कुल हातू बुरहानकुम् इन् कुन्तुम् सादिक़ीन (111)
और ( यहूद ) कहते हैं कि यहूद ( के सिवा ) और ( नसारा कहते हैं कि ) नसारा के सिवा कोई बेहिश्त में जाने ही न पाएगा ये उनके ख्याली पुलाव है ( ऐ रसूल ) तुम उन से कहो कि भला अगर तुम सच्चे हो कि हम ही बेहिश्त में जाएँगे तो अपनी दलील पेश करो (111)
बला , मन् अस्ल-म वज्हहू लिल्लाहि व हु-व मुह्सिनुन् फ़-लहू अज्रूहू अिन्-द रब्बिही वला ख़ौफुन अलैहिम व ला हुम् यह्ज़नून (112)
अलबत्ता जिस शख्स ने खुदा के आगे अपना सर झुका दिया और अच्छे काम भी करता है तो उसके लिए उसके परवरदिगार के यहाँ उसका बदला ( मौजूद ) है और ( आखेरत में ) ऐसे लोगों पर न किसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐसे लोग ग़मगीन होगे (112)
व कालतिल यहूदु लैसतिन्नसारा अला शैइवं व कालतिन्नसारा लैसतिल यहूदु अला शैइंव व हुम् यतलूनल्किता-ब , कज़ालि-क कालल्लज़ी-न ला यअलमू-न मिस्-ल कौलिहिम् फ़ल्लाहु यह्कुमु बैनहुम् यौमल-कियामति फ़ीमा कानू फ़ीहि यख़्तलिफून (113)
और यहूद कहते हैं कि नसारा का मज़हब कुछ ( ठीक ) नहीं और नसारा कहते हैं कि यहूद का मज़हब कुछ ( ठीक ) नहीं हालाँकि ये दोनों फरीक़ किताबे ( खुदा ) पढ़ते रहते हैं इसी तरह उन्हीं जैसी बातें वह ( मुशरेकीन अरब ) भी किया करते हैं जो ( खुदा के एहकाम ) कुछ नहीं जानते तो जिस बात में ये लोग पड़े झगड़ते हैं ( दुनिया में तो तय न होगा ) क़यामत के दिन खुदा उनके दरमियान ठीक फैसला कर देगा (113)
व मन् अज्लमु मिम्मम्-म-न-अ मसाजिदल्लाहि अंय्युज्क-र फ़ीहस्मुहू व-सआ फी खराबिहा , उलाइ-क मा-का-न लहुम् अय्यद्खुलूहा इल्ला ख़ा-इफ़ी-न , लहुम् फ़िद्दुन्या खिज्युंव व-लहुम् फ़िल् आखिरति अ़ज़ाबुन अज़ीम (114)
और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो खुदा की मसजिदों में उसका नाम लिए जाने से ( लोगों को ) रोके और उनकी बरबादी के दर पे हो , ऐसों ही को उसमें जाना मुनासिब नहीं मगर सहमे हुए ऐसे ही लोगों के लिए दुनिया में रूसवाई है और ऐसे ही लोगों के लिए आखेरत में बड़ा भारी अज़ाब है (114)
व लिल्लाहिल् मश्रिकु वल्-मग्रिबु फ़-अैनमा तुवल्लू फ़-सम्-म वज्हुल्लाहि , इन्नल्ला-ह वासिअन् अलीम (115)
(तुम्हारे मसजिद में रोकने से क्या होता है क्योंकि सारी ज़मीन) खुदा ही की है ( क्या ) पूरब ( क्या ) पश्चिम बस जहाँ कहीं क़िब्ले की तरफ रूख़ करो वही खुदा का सामना है बेशक खुदा बड़ी गुन्जाइश वाला और खूब वाक़िफ है (115)
व कालुत्-तख़ज़ल्लाहु व लदन सुब्हानहू , बल-लहू मा फिस्समावाति वल्अर्जि , कुल्लुल्लहू कानितून (116)
और यहूद कहने लगे कि खुदा औलाद रखता है हालाँकि वह ( इस बखेड़े से ) पाक है बल्कि जो कुछ ज़मीन व आसमान में है सब उसी का है और सब उसकी के फरमाबरदार हैं (116)
बदीअुस्समावाति वलअर्जि , व इज़ा कज़ा अम्रन् फ़-इन्नमा यकूलु लहू कुन् फ़-यकून (117)
( वही ) आसमान व ज़मीन का मोजिद है और जब किसी काम का करना ठान लेता है तो उसकी निसबत सिर्फ कह देता है कि ” हो जा ” पस वह ( खुद ब खुद ) हो जाता है (117)
व कालल्लज़ी-न ला यअलमू-न लौ ला युकल्लिमुनल्लाहु औ तअतीना आयतुन् , कज़ालि-क कालल्लज़ी-न मिन् कब्लिहिम् मिस्-ल कौलिहिम् , तशा-बहत् कुलू बुहुम , कद् बय्यन्नल – आयाति लिकौमिंय्यूकिनून (118)
और जो ( मुशरेकीन ) कुछ नहीं जानते कहते हैं कि खुदा हमसे ( खुद ) कलाम क्यों नहीं करता , या हमारे पास ( खुद ) कोई निशानी क्यों नहीं आती , इसी तरह उन्हीं की सी बाते वह कर चुके हैं जो उनसे पहले थे उन सब के दिल आपस में मिलते जुलते हैं जो लोग यक़ीन रखते हैं उनको तो अपनी निशानियाँ क्यों साफतौर पर दिखा चुके (118)
इन्ना अरसल्ना-क बिल्हक्कि बशीरंव व-नज़ीरंव वला तुस्अलु अन् अस्हाबिल जहीम (119)
( ऐ रसूल ) हमने तुमको दीने हक़ के साथ ( बेहिश्त की ) खुशख़बरी देने वाला और ( अज़ाब से ) डराने वाला बनाकर भेजा है और दोज़ख़ियों के बारे में तुमसे कुछ न पूछा जाएगा (119)
व लन् तर्जा अन्कल्-यहूदु व लन्-नसारा हत्ता तत्तबि-अ मिल्ल-तहुम , कुल इन्-न हुदल्लाहि हुवल्-हुदा , व-ल-इनित्त-बअ-त अहवा-अहुम् बअ्दल्लज़ी जाअ-क मिनल-अिल्मि मा ल-क मिनल्लाहि मिव्वलिय्यिंव वला नसीर (120)
और ( ऐ रसूल ) न तो यहूदी कभी तुमसे रज़ामंद होगे न नसारा यहाँ तक कि तुम उनके मज़हब की पैरवी करो ( ऐ रसूल उनसे ) कह दो कि बस खुदा ही की हिदायत तो हिदायत है ( बाक़ी ढकोसला है ) और अगर तुम इसके बाद भी कि तुम्हारे पास इल्म ( कुरान ) आ चुका है उनकी ख्वाहिशों पर चले तो ( याद रहे कि फिर ) तुमको खुदा ( के ग़ज़ब ) से बचाने वाला न कोई सरपरस्त होगा न मददगार (120)
अल्लज़ी-न आतैनाहुमुल्-किता-ब यत्लूनहू हक्-क तिलावतिही , उलाइ-क युअ्मिनू-न बिही , व मंय्यक्फुर बिही फ़-उलाइ-क हुमुल ख़ासिरून (121)
जिन लोगों को हमने किताब ( कुरान ) दी है वह लोग उसे इस तरह पढ़ते रहते हैं जो उसके पढ़ने का हक़ है यही लोग उस पर ईमान लाते हैं और जो उससे इनकार करते हैं वही लोग घाटे में हैं (121)
या बनी इस्-राई लज्कुरू निअ्मतियल्लती अन्अम्तु अलैकुम् व अन्नी फज्ज़ल्तुकुम् अलल आलमीन (122)
बनी इसराईल मेरी उन नेअमतों को याद करो जो मैंनं तुम को दी हैं और ये कि मैंने तुमको सारे जहाँन पर फजीलत दी (122)
वत्तकू यौमल्ला-तज्ज़ी नफ़्सुन् अन्नफसिन् शैअंव वला युक्बलु मिन्हा अदलुंव वला तन्फ़अुहा शफाअतुंव वला हुम् युन्सरून (123)
और उस दिन से डरो जिस दिन कोई शख्स किसी की तरफ से न फिदया हो सकेगा और न उसकी तरफ से कोई मुआवेज़ा कुबूल किया जाएगा और न कोई सिफारिश ही फायदा पहुचाँ सकेगी , और न लोग मदद दिए जाएँगे (123)
व इज़िब्तला इब्राही-म रब्बुहू बि-कलिमातिन् फ़-अ-तम्म- हुन्-न , का-ल इन्नी जाअिलु-क लिन्नासि इमामन् , का-ल व मिन् जुर्रिय्यती , का-ल ला यनालु अह्दिज्-ज़ालिमीन (124)
( ऐ रसल ) बनी इसराईल को वह वक्त भी याद दिलाओ जब इबराहीम को उनके परवरदिगार ने चन्द बातों में आज़माया और उन्होंने पूरा कर दिया तो खुदा ने फरमाया मैं तुमको ( लोगों का ) पेशवा बनाने वाला हूँ ( हज़रत इबराहीम ने ) अर्ज़ की और मेरी औलाद में से फरमाया ( हाँ मगर ) मेरे इस अहद पर ज़ालिमों में से कोई शख्स फ़ायज़ नहीं हो सकता (124)
व इज् जअल्-नल्-बै-त मसा-बतल् लिन्नासि व अमनन् , वत्तखिजू मिम् मक़ामि इब्राही-म मुसल्लन् , व अहिद्ना इला इब्राही-म व इस्माअी-ल अन् तह्हिरा बैति-य लित्ता-इफ़ी-न वल् आकिफ़ी-न वर्रूक्क-अिस्सुजूद (125)
(ऐ रसूल वह वक्त भी याद दिलाओ) जब हमने ख़ानए काबा को लोगों के सवाब और पनाह की जगह क़रार दी और हुक्म दिया गया कि इबराहीम की ( इस ) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल से अहद व पैमान लिया कि मेरे ( उस ) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और रूकू और सजदा करने वालों के वास्ते साफ सुथरा रखो (125)
व इज् का-ल इब्राहीमु रब्बिज्अ़ल हाज़ा ब-लदन् आमिनंव्-वरज़ुक् अहलहू मिनस्-स-मराति मन् आम-न मिन्हुम् बिल्लाहि वलयौमिल आखिरि , का-ल वमन् क-फ-र फ़-उमत्तिअु़हू कलीलन सुम्-म अज्तरर्रूहू इला अज़ाबिन्नारि , व बिअसल्-मसीर (126)
और ( ऐ रसूल वह वक्त भी याद दिलाओ ) जब इबराहीम ने दुआ माँगी कि ऐ मेरे परवरदिगार इस ( शहर ) को पनाह व अमन का शहर बना , और उसके रहने वालों में से जो खुदा और रोज़े आख़िरत पर ईमान लाए उसको तरह – तरह के फल खाने को दें खुदा ने फरमाया ( अच्छा मगर ) वो कुफ्र इख़तेयार करेगा उसकी दुनिया में चन्द रोज़ ( उन चीज़ो से ) फायदा उठाने दूंगा फिर ( आखेरत में ) उसको मजबूर करके दोज़ख़ की तरफ खींच ले जाऊँगा और वह बहुत बुरा ठिकाना है (126)
व इज् यरफ़अु़ इब्राहीमुल् कवाअि-द् मिनल बैति व इस्माअीलु , रब्बना तकब्बल मिन्ना , इन्न-क अन्तस्समीअुल-अलीम (127)
और ( वह वक्त याद दिलाओ ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बुनियादें बुलन्द कर रहे थे ( और दुआ ) माँगते जाते थे कि ऐ हमारे परवरदिगार हमारी ( ये ख़िदमत ) कुबूल कर बेशक तूही ( दूआ का ) सुनने वाला ( और उसका ) जानने वाला है (127)
रब्बना वज्अल्ना मुस्लिमैनि ल-क व मिन् जुर्रिय्यतिना उम्मतम् मुस्लि-मतल ल-क व अरिना मनासि-क-ना व तुब् अलैना इन्न-क अन्तत्तव्वाबुर्-रहीम (128) (और) ऐ हमारे पालने वाले तू हमें अपना फरमाबरदार बन्दा बना हमारी औलाद से एक गिरोह ( पैदा कर ) जो तेरा फरमाबरदार हो , और हमको हमारे हज की जगहों दिखा दे और हमारी तौबा कुबूल कर , बेशक तू ही बड़ा तौबा कुबूल करने वाला मेहरबान है (128)
रब्बना वब्अस् फ़ीहिम् रसूलम् मिन्हुम यत्लू अलैहिम् आयाति-क व युअल्लिमुहुमुल-किता-ब वल-हिक्म-त व-युज़क्कीहिम , इन्न-क अन्तल अज़ीजुल-हकीम (129)
(और) ऐ हमारे पालने वाले मक्के वालों में उन्हीं में से एक रसूल को भेज जो उनको तेरी आयतें पढ़कर सुनाए और आसमानी किताब और अक्ल की बातें सिखाए और उन ( के नुफूस ) के पाकीज़ा कर दें बेशक तू ही ग़ालिब और साहिबे तदबीर है (129)
व मंय्यरगबु अम्-मिल्लति इब्राही-म इल्ला मन् सफ़ि-ह नफ्सहू , व-ल-कदिस्तफैनाहु फिद्दुन्या व इन्नहू फ़िल-आखिरति लमिनस्सालिहीन (130)
और कौन है जो इबराहीम के तरीक़े से नफरत करे मगर जो अपने को अहमक़ बनाए और बेशक हमने उनको दुनिया में भी मुन्तिख़ब कर लिया और वह ज़रूर आखेरत में भी अच्छों ही में से होगे (130)
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