सूरह बक़रह की आखिरी तीन आयतें (Surah Baqarah Last 3 Ayat in Hindi)

19 Jul, 2025

सूरह बक़रह की आखिरी तीन आयतें (Surah Baqarah Last 3 Ayat in Hindi)

अ’उज़ु बिल्लाहि मिनश्शैतानिर्रजीम

मैं अल्लाह की पनाह में आता हूँ शैतान, रजीम (दूर किए गए) से।


सूरह बकरा की आख़िरी तीन आयतें (अरबी में)

آية 284

لِّلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۗ وَإِن تُبْدُوا مَا فِي أَنفُسِكُمْ أَوْ تُخْفُوهُ يُحَاسِبْكُم بِهِ اللَّهُ ۖ فَيَغْفِرُ لِمَن يَشَاءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَاءُ ۗ وَاللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ

آية 285

آمَنَ الرَّسُولُ بِمَا أُنزِلَ إِلَيْهِ مِن رَّبِّهِ وَالْمُؤْمِنُونَ ۚ كُلٌّ آمَنَ بِاللَّهِ وَمَلَائِكَتِهِ وَكُتُبِهِ وَرُسُلِهِ لَا نُفَرِّقُ بَيْنَ أَحَدٍ مِّن رُّسُلِهِ ۚ وَقَالُوا سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا ۖ غُفْرَانَكَ رَبَّنَا وَإِلَيْكَ الْمَصِيرُ

آية 286

لَا يُكَلِّفُ اللَّهُ نَفْسًا إِلَّا وُسْعَهَا ۚ لَهَا مَا كَسَبَتْ وَعَلَيْهَا مَا اكْتَسَبَتْ ۗ رَبَّنَا لَا تُؤَاخِذْنَا إِن نَّسِينَا أَوْ أَخْطَأْنَا ۚ رَبَّنَا وَلَا تَحْمِلْ عَلَيْنَا إِصْرًا كَمَا حَمَلْتَهُ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِنَا ۚ رَبَّنَا وَلَا تُحَمِّلْنَا مَا لَا طَاقَةَ لَنَا بِهِ ۖ وَاعْفُ عَنَّا وَاغْفِرْ لَنَا وَارْحَمْنَا ۚ أَنتَ مَوْلَانَا فَانصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ


सूरह बकरा हिंदी उच्चारण

लिल्लाहि मा फ़िस्समावाति व मा फिल्अर्ज़ि व इन् तुब्दू मा फ़ी अन्फुसिकुम् औ तुख्फूहु युहासिब्कुम् बिहिल्लाहु , फ़ – यग्फिरू लिमंय्यशा – उ व युअज्जिबु मंय्यशा – उ , वल्लाहु अला कुल्लि शैइन् क़दीर (284)

आ – मनर्रसूलु बिमा उन्ज़ि – ल इलैहि मिर्रब्बिही वल्मुअ्मिनून , कुल्लुन् आम – न बिल्लाहि व मलाइ – कतिही व कुतुबिही व रूसुलिही , ला नुफ़र्रिकु बै – न अ – हदिम् मिर्रूसुलिही , व कालू समिअ़ना व अ – तअ्ना गुफ्रान – क रब्बना व इलैकल मसीर (285)

ला युकल्लिफुल्लाहु नफ्सन् इल्ला वुस्अहा , लहा मा क – सबत् व अलैहा मक्त – सबत , रब्बना ला तुआखिज्ना इन् – नसीना औ अख़्तअना , रब्बना व ला तहमिल् अलैना इस्रन् कमा हमल्तहू अलल्लजी – न मिन् कब्लिना , रब्बना व ला तुहम्मिलना मा ला ताक – त लना बिही वअ्फु अन्ना , वग्फिर लना , वरहम्ना , अन् – त मौलाना फ़न्सुरना अलल् कौमिल काफ़िरीन (286)


हिंदी उच्चारण (Transliteration in Hindi)

आयत 284:

Lillahi maa fissamaawaati wa maa fil ard; wa in tubdoo maa feee anfusikum aw tukhfoohu yuhaasibkum bihil laah; fa yaghfiru limai yashaaa'u wa yu'azzibu mai yashaaa'; wallaahu 'alaa kulli shai'in qadeer.

आयत 285:

Aamanar Rasoolu bimaa unzila ilaihi mir-Rabbihee walmu’minoon; kullun aamana billaahi wa malaa'ikathihee wa kutubhihee wa Rusulihee; laa nufarriqu baina ahadim mir-Rusulihee wa qaaloo sami'naa wa ata'naa; ghufraanaka Rabbanaa wa ilaikal-maseer.

आयत 286:

Laa yukalliful-laahu nafsan illaa wus'ahaa; lahaa maa kasabat wa 'alaihaa mak-tasabat; Rabbanaa laa tu'aakhiznaa in naseenaaa aw akhtaanaa; Rabbanaa wa laa tahmil 'alainaaa isran kamaa hamaltahoo 'alal-lazeena min qablinaa; Rabbanaa wa laa tuhammilnaa maa laa taaqata lanaa bih; wa'fu 'annaa waghfir lanaa warhamnaa; Anta mawlaanaa fansurnaa 'alal qawmil-kaafireen.


हिंदी अनुवाद (Meaning in Hindi)

आयत 284:

जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है, सब अल्लाह ही का है। चाहे तुम अपने दिलों की बातें ज़ाहिर करो या छुपाओ, अल्लाह तुम्हारा हिसाब करेगा। फिर वह जिसे चाहे माफ़ कर देगा और जिसे चाहे सज़ा देगा। और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है।

आयत 285:

रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) उस पर ईमान लाए जो उनकी तरफ उनके रब की ओर से नाज़िल किया गया और मोमिन भी ईमान लाए। (वे सब) अल्लाह, उसके फरिश्तों, उसकी किताबों और उसके रसूलों पर ईमान लाए। हम उसके रसूलों में से किसी के बीच फर्क नहीं करते। और उन्होंने कहा: "हमने सुना और मान लिया। ऐ हमारे रब! तेरी माफ़ी चाहते हैं और तेरी ही ओर लौटना है।"

आयत 286:

अल्लाह किसी व्यक्ति को उसकी क्षमता से अधिक ज़िम्मेदारी नहीं देता। जो भलाई वह करता है, उसका फायदा उसी को है और जो बुराई वह करता है, उसका नुकसान भी उसी को है।

ऐ हमारे रब!
अगर हम भूल जाएं या गलती कर बैठें तो हमें न पकड़।
हम पर वैसा बोझ न डाल जैसा तूने हमसे पहले के लोगों पर डाला था।
और हम पर ऐसा बोझ न डाल जिसे उठाने की हम में ताकत नहीं।
हमें माफ कर, हमें बख्श दे, हम पर रहम कर।
तू ही हमारा संरक्षक है।
काफिरों के मुकाबले में हमारी मदद फरमा।


फजीलत (महत्त्व और गुण)

  • हदीस में है: “जिस घर में सूरह बकरा की आखिरी आयतें पढ़ी जाती हैं, शैतान उस घर में नहीं आता।” (सही मुस्लिम)

  • रसूलुल्लाह (स.अ.) ने फरमाया:
    जो व्यक्ति रात को सूरह बकरा की आखिरी दो आयतें पढ़े, वह उसके लिए काफी हैं।” (सही बुखारी)

  • अल्लाह तआला ने इन आयतों को अपने अर्श के नीचे से नाज़िल किया, जो कुरआन की सबसे अज़ीम आयतों में से हैं।

  • यह आयतें ईमान, अल्लाह की रहमत, माफ़ी, दुआ और मदद की तालीम देती हैं।


इन आयतों को पढ़ने के फ़ायदे :

  1. रात को सोते समय पढ़ना: शैतान से हिफाजत मिलती है और पूरी रात अल्लाह की निगरानी में रहती है।

  2. बच्चों को सिखाना: नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - "इन दो आयतों को सीखो और अपनी औलाद को भी सिखाओ।"

  3. कठिनाई से बचाव: अल्लाह से रहमत, बख़्शिश और मदद की सबसे बड़ी दुआ है ये आयतें।

  4. हर नमाज़ के बाद पढ़ना: सवाब में बढ़ोतरी और दिल को सुकून देता है।


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