Surah Al Baqara in Hindi Ayat 157 to 182 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 157 to 182 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 157 to 182
 


उलाइ-क अलैहिम सलवातुम् मिर्रब्बिहिम् व रहमतुन् , व उलाइ-क हुमुल्-मुह्तदून (157)
उन्हीं लोगों पर उनके परवरदिगार की तरफ से इनायतें हैं और रहमत और यही लोग हिदायत याफ्ता है (157)
इन्नस्सफा वल्मर्व-त मिन् शआ-इरिल्लाहि फ़-मन् हज्जल्बै-त अविअ्त-म-र फ़ला जुना-ह अलैहि अंय्यत्तव्व-फ़ बिहिमा , व मन् त-तव्व-अ खैरन् फ़-इन्नल्ला-ह शाकिरून् अलीम (158)
बेशक ( कोहे ) सफ़ा और ( कोह ) मरवा ख़ुदा की निशानियों में से हैं पस जो शख्स ख़ानए काबा का हज या उमरा करे उस पर उन दोनो के ( दरमियान ) तवाफ़ ( आमद ओ रफ्त ) करने में कुछ गुनाह नहीं ( बल्कि सवाब है ) और जो शख्स खुश खुश नेक काम करे तो फिर ख़ुदा भी क़दरदाँ ( और ) वाक़िफ़कार है (158)
इन्नल्लजी-न यक़्तुमू-न मा अन्जल्ना मिनल् बय्यिनाति वल्हुदा मिम्-बअदि मा बय्यन्नाहु लिन्नासि फिल्-किताबि उलाइ-क यल् अनुहुमुल्लाहु व यल् अनुहुमुल्-लाअिनून (159)
बेशक जो लोग हमारी इन रौशन दलीलों और हिदायतों को जिन्हें हमने नाज़िल किया उसके बाद छिपाते हैं जबकि हम किताब तौरैत में लोगों के सामने साफ़ साफ़ बयान कर चुके हैं तो यही लोग हैं जिन पर ख़ुदा भी लानत करता है और लानत करने वाले भी लानत करते हैं (159)
इल्लल्लज़ी-न ताबू व अस्लहू व बय्यनू फ़-उलाइ-क अतूबु अलैहिम् व अ-नत्तव्वाबुर्रहीम (160)
मगर जिन लोगों ने ( हक़ छिपाने से ) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर ली और जो किताबे ख़ुदा में है साफ़ साफ़ बयान कर दिया पस उन की तौबा मै कुबूल करता हूँ और मै तो बड़ा तौबा कुबूल करने वाला मेहरबान हूँ (160)
इन्नल्लज़ी-न क-फरू व मातू व हुम् कुफ्फारून् उलाइ-क अलैहिम् लअ्-नतुल्लाहि वल् मलाइ-कति वन्नासि अज्मअी़न (161)
बेशक जिन लोगों में कुफ्र एख्तेयार किया और कुफ्र ही की हालत में मर गए उन्ही पर ख़ुदा की और फरिश्तों की और तमाम लोगों की लानत है हमेशा उसी फटकार में रहेंगे (161)
ख़ालिदी-न फ़ीहा ला युख्फ्फु अन्हुमुल्-अज़ाबु व ला हुम् युन्ज़रून (162)
न तो उनके अज़ाब ही में तख्फ़ीफ़ ( कमी ) की जाएगी (162)
व इलाहुकुम् इलाहुंव-वाहिदुन् ला इला-ह इल्ला हुवर्रह्मानुर्रहीम (163)
और न उनको अज़ाब से मोहलत दी जाएगी और तुम्हारा माबूद तो वही यकता ख़ुदा है उस के सिवा कोई माबूद नहीं जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है (163)
इन्-न फ़ी ख़ल्किस्समावाति वलअर्ज़ि वख्तिलाफ़िल्लैलि वन्नहारि वल्फु़ल्किल्लती तजरी फ़िल्बहरि बिमा यन्फअुन्ना-स व मा अन्ज़लल्लाहु मिनस्समा-इ मिम्मा-इन् फ़-अह्या बिहिल् अर्-ज़ बअ्-द मौतिहा व बस्-स फ़ीहा मिन् कुल्लि दाब्बतिन् व तसरीफ़िर्रियाहि वस्सहाबिल मुसख्खरि बैनस्समा-इ वल् अर्जि लआयातिल लिकौमिंय्यअकिलून (164)
बेशक आसमान व ज़मीन की पैदाइश और रात दिन के रद्दो बदल में और क़श्तियों जहाज़ों में जो लोगों के नफे की चीज़े ( माले तिजारत वगैरह दरिया ) में ले कर चलते हैं और पानी में जो ख़ुदा ने आसमान से बरसाया फिर उस से ज़मीन को मुर्दा ( बेकार ) होने के बाद जिला दिया ( शादाब कर दिया ) और उस में हर क़िस्म के जानवर फैला दिये और हवाओं के चलाने में और अब्र में जो आसमान व ज़मीन के दरमियान ख़ुदा के हुक्म से घिरा रहता है इन सब बातों में अक्ल वालों के लिए बड़ी बड़ी निशानियाँ हैं (164)
व मिनन्नासि मंय्यत्तख़िजु मिन् दूनिल्लाहि अन्दादंय्युहिब्बू-नहुम् कहुब्बिल्लाहि , वल्लज़ी-न आमनू अशद्दू हुब्बल-लिल्लाहि , व लौ यरल्लज़ी-न ज़-लमू इज् यरौनल-अज़ा-ब अन्नल-कुव्व-त लिल्लाहि जमीअंव व अन्नल्ला-ह शदीदुल् अ़ज़ाब (165)
और बाज़ लोग ऐसे भी हैं जो ख़ुदा के सिवा औरों को भी ख़ुदा का मिसल व शरीक बनाते हैं ( और ) जैसी मोहब्बत ख़ुदा से रखनी चाहिए वैसी ही उन से रखते हैं और जो लोग ईमानदार हैं वह उन से कहीं बढ़ कर ख़ुदा की उलफ़त रखते हैं और काश ज़ालिमों को ( इस वक्त ) वह बात सूझती जो अज़ाब देखने के बाद सूझेगी कि यक़ीनन हर तरह की कूवत ख़ुदा ही को है और ये कि बेशक ख़ुदा बड़ा सख्त अज़ाब वाला है (165)
इज् त-बर्र अल्लज़ीनत्तु बिअ़ू मिनल्लज़ीनत् त-बअू व र-अवुल अज़ा-ब व त कत्तअत् बिहिमुल अस्बाब (166)
( वह क्या सख्त वक्त होगा ) जब पेशवा लोग अपने पैरवो से अपना पीछा छुड़ाएगे और ( ब चश्में ख़ुद ) अज़ाब को देखेगें और उनके बाहमी ताल्लुक़ात टूट जाएँगे (166)
व कालल्लज़ीनत्त-बअू लौ अन्-न लना कर्रतन् फ़-न-तबर्र-अ मिन्हुम् कमा तबर्रअू मिन्ना , कज़ालि-क युरीहिमुल्लाहु अअ्मालहुम् ह-सरातिन् अलैहिम् , व मा हुम् बिख़ारिजी-न मिनन्नार (167)
और पैरव कहने लगेंगे कि अगर हमें कहीं फिर ( दुनिया में ) पलटना मिले तो हम भी उन से इसी तरह अलग हो जायेंगे जिस तरह ऐन वक्त पर ये लोग हम से अलग हो गए यूँ ही ख़ुदा उन के आमाल को दिखाएगा जो उन्हें ( सर तापा पास ही ) पास दिखाई देंगें और फिर भला । कब वह दोज़ख़ से निकल सकतें हैं (167)
या अय्युहन्नासु कुलू मिम्मा फिल् अर्ज़ि हलालन् तय्यिबंव-वला तत्तबिअू खुतुवातिश्शैतानि , इन्नहू लकुम् अदुव्वुम् मुबीन (168)
ऐ लोगों जो कुछ ज़मीन में हैं उस में से हलाल व पाकीज़ा चीज़ ( शौक़ से ) खाओ और शैतान के क़दम ब क़दम न चलो वह तो तुम्हारा ज़ाहिर ब ज़ाहिर दुश्मन है (168)
इन्नमा यअ्मुरूकुम् बिस्सू-इ वल्-फहशा-इ व अन् तकूलू अलल्लाहि मा ला तअ्लमून (169)
वह तो तुम्हें बुराई और बदकारी ही का हुक्म करेगा और ये चाहेगा कि तुम बे जाने बूझे ख़ुदा पर बोहतान बाँधों (169)
व इज़ा की-ल लहुमुत्तबिअू मा अन्ज़लल्लाहु कालू बल् नत्तबिअु़ मा अल्फ़ैना अलैहि आबा-अना , अ-व लौ का-न आबाअुहुम् ला यअ्किलू-न शैअंव व ला यह्तदून (170)
और जब उन से कहा जाता है कि जो हुक्म ख़ुदा की तरफ से नाज़िल हुआ है उस को मानो तो कहते हैं कि नहीं बल्कि हम तो उसी तरीक़े पर चलेंगे जिस पर हमने अपने बाप दादाओं को पाया अगरचे उन के बाप दादा कुछ भी न समझते हों और न राहे रास्त ही पर चलते रहे (170)
व म-सलुल्लज़ी-न क-फरू क-म-सलिल्लज़ी यन्अिकु बिमा ला यस्मअु इल्ला दुआअंव व निदाअन् , सुम्मुम् बुक्मुन् अुम्युन् फहुम् ला यअ्किलून (171)
और जिन लोगों ने कुफ्र एख्तेयार किया उन की मिसाल तो उस शख्स की मिसाल है जो ऐसे जानवर को पुकार के अपना हलक़ फाड़े जो आवाज़ और पुकार के सिवा सुनता ( समझता ख़ाक ) न हो ये लोग बहरे गूंगे अन्धे हैं कि ख़ाक नहीं समझते (171)
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कुलू मिन् तय्यिबाति मा रज़क़्नाकुम् वश्कुरू लिल्लाहि इन् कुन्तुम् इय्याहु तअ्बुदून (172)
ऐ ईमानदारों जो कुछ हम ने तुम्हें दिया है उस में से सुथरी चीजें ( शौक़ से ) खाओं और अगर ख़ुदा ही की इबादत करते हो तो उसी का शुक्र करो (172)
इन्नमा हर्र-म अलैकुमुल-मै-त-त वद्द-म व लह्मल खिन्ज़ीरि व मा उहिल्-ल बिही लिगैरिल्लाहि फ़-मनिज्तुर्-र गै-र बागिंव व ला आदिन् फला इस्-म अलैहि , इन्नल्ला-ह गफूर्रहीम (173)
उसने तो तुम पर बस मुर्दा जानवर और खून और सूअर का गोश्त और वह जानवर जिस पर ज़बह के वक्त ख़ुदा के सिवा और किसी का नाम लिया गया हो हराम किया है पस जो शख्स मजबूर हो और सरकशी करने वाला और ज्यादती करने वाला न हो ( और उनमे से कोई चीज़ खा ले ) तो उसपर गुनाह नहीं है बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (173)
इन्नल्लज़ी-न यक़्तुमू-न मा अन्जलल्लाहु मिनल्-किताबि व यश्तरू-न बिहि स-मनन् कलीलन् उलाइ-क मा यअ्कुलू-न फ़ी बुतूनिहिम् इल्लन्ना-र व ला युकल्लिमुहुमुल्लाहु यौमल कियामति व ला युज़क्कीहिम व लहुम् अज़ाबुन अलीम (174)
बेशक जो लोग इन बातों को जो ख़ुदा ने किताब में नाज़िल की है छिपाते हैं और उसके बदले थोड़ी सी क़ीमत ( दुनयावी नफ़ा ) ले लेतें है ये लोग बस अंगारों से अपने पेट भरते हैं और क़यामत के दिन ख़ुदा उन से बात तक तो करेगा नहीं और न उन्हें ( गुनाहों से ) पाक करेगा और उन्हीं के लिए दर्दनाक अज़ाब है (174)
उला-इकल्लज़ीनश्त-रवुज् जलाल-त बिल्हुदा वल-अज़ा-ब बिल् मग्फि-रति फमा अस्ब-रहुम् अलन्नार (175)
यही लोग वह हैं जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही मोल ली और बख्यिय ( खुदा ) के बदले अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग के क्योंकर बरदाश्त करेंगे (175) जालि-क बिअन्नल्ला-ह नज्जलल्-किता-ब बिल्हक्कि , व इन्नल्लज़ीनख़्त-लफू फ़िल्-किताबि लफ़ी शिकाकिम्-बअीद (176)
ये इसलिए कि ख़ुदा ने बरहक़ किताब नाज़िल की और बेशक जिन लोगों ने किताबे ख़ुदा में रद्दो बदल की वह लोग बड़े पल्ले दरजे की मुखालफत में हैं (176)
लैसल्बिर्-र अन् तुवल्लू वुजू-हकुम् कि-बलल्-मशरिकि वल्-मग्रिबि व लाकिन्नल्-बिर्-र मन् आम-न बिल्लाहि वल्यौमिल् आखिरि वल्मलाइ-कति वल्किताबि वन्नबिय्यी-न व आतल्मा-ल अला हुब्बिही ज़विल्कुरबा वल्यतामा वल्मसाकी-न वब्नस्सबीलि वस्सा-इली-न व फिर्रिकाबि , व अक़ामस्सला-त व आतज्ज़का-त वल्मूफू-न बि-अहदिहिम इज़ा आ-हदू वस्साबिरी-न फिल्-बअ्सा-इ वज़्ज़र्रा-इ व हीनल्-बअ्सि , उलाइ-कल्लज़ी-न स-दकू , व उलाइ-क हुमुल्-मुत्तकून (177)
नेकी कुछ यही थोड़ी है कि नमाज़ में अपने मुँह पूरब या पश्चिम की तरफ़ कर लो बल्कि नेकी तो उसकी है जो ख़ुदा और रोज़े आख़िरत और फ़रिश्तों और ख़ुदा की किताबों और पैग़म्बरों पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त में अपना माल क़राबत दारों और यतीमों और मोहताजो और परदेसियों और माँगने वालों और लौन्डी गुलाम ( के गुलू खलासी ) में सर्फ करे और पाबन्दी से नमाज़ पढे और ज़कात देता रहे और जब कोई एहद किया तो अपने क़ौल के पूरे हो और फ़क्र व फाक़ा रन्ज और घुटन के वक्त साबित क़दम रहे यही लोग वह हैं जो दावए ईमान में सच्चे निकले और यही लोग परहेज़गार है (177)
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कुति-ब अलैकुमुल्-किसासु फ़िल्कत्ला , अल्हुर्रू बिल्हुर्रि वल्अ़ब्दु बिल्अ़ब्दि वल्-उन्सा बिल्-उन्सा , फ़-मन् अुफ़ि-य लहू मिन् अख़ीहि शैउन् फ़त्तिबाअुम् बिल्मअ्रूफि व अदाउन् इलैहि बि-इहसानिन् , ज़ालि-क तख्फीफुम् मिर्रब्बिकुम् व रहमतुन् , फ़-मनिअ्तदा बअ्-द ज़ालि-क फ़-लहू अ़ज़ाबुन अलीम (178)
ऐ मोमिनों जो लोग ( नाहक़ ) मार डाले जाएँ उनके बदले में तम को जान के बदले जान लेने का हुक्म दिया जाता है आज़ाद के बदले आज़ाद और गुलाम के बदले गुलाम और औरत के बदले औरत पस जिस ( क़ातिल ) को उसके ईमानी भाई तालिबे केसास की तरफ से कुछ माफ़ कर दिया जाये तो उसे भी उसके क़दम ब क़दम नेकी करना और ख़ुश मआमलती से ( खून बहा ) अदा कर देना चाहिए ये तुम्हारे परवरदिगार की तरफ आसानी और मेहरबानी है फिर उसके बाद जो ज्यादती करे तो उस के लिए दर्दनाक अज़ाब है (178)
व लकुम् फिल्क़िसासि हयातुंय्या उलिल्-अल्बाबि लअल्लकुम तत्तकून (179)
और ऐ अक़लमनदों क़सास ( के क़वाएद मुक़र्रर कर देने ) में तुम्हारी ज़िन्दगी है ( और इसीलिए जारी किया गया है ताकि तुम खूरेज़ी से ) परहेज़ करो (179)
कुति-ब अलैकुम् इज़ा ह-ज़-र अ-ह-दकुमुल्मौतु इन् त-र-क खै-रनिल वसिय्यतु लिल्वालिदैनि वल-अक़्रबी-न बिल्मअ्रूफि हक़्कन अलल्-मुत्तक़ीन (180)
( मुसलमानों ) तुम को हुक्म दिया जाता है कि जब तुम में से किसी के सामने मौत आ खड़ी हो बशर्ते कि वह कुछ माल छोड़ जाएं तो माँ बाप और क़राबतदारों के लिए अच्छी वसीयत करें जो ख़ुदा से डरते हैं उन पर ये एक हक़ है (180)
फ़-मम् बद्-द लहू बअ्-द मा समि-अहू फ़-इन्नमा इस्मुहू अलल्लज़ी-न युबद्दिलूनहू , इन्नल्ला-ह समीअुन अलीम (181)
फिर जो सुन चुका उसके बाद उसे कुछ का कुछ कर दे तो उस का गुनाह उन्हीं लोगों की गरदन पर है जो उसे बदल डालें बेशक ख़ुदा सब कुछ जानता और सुनता (181)
फ़-मन् खा-फ़ मिम्-मूसिन् ज-नफ़न् औ इस्मन् फ़-अस्ल-ह बैनहुम् फला इस-म अलैहि , इन्नल्ला-ह गफूरूर्रहीम (182)
( हाँ अलबत्ता ) जो शख्स वसीयत करने वाले से बेजा तरफ़दारी या बे इन्साफी का ख़ौफ रखता है और उन वारिसों में सुलह करा दे तो उस पर बदलने का कुछ गुनाह नहीं है बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (182)