Surah Al Baqara in Hindi Ayat 53 to 78 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 53 to 78 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 53 to 78
  


व इज् आतैना मूसल-किता-ब वल्फुरका-न लअल्लकुम् तह्तदून (53)
और ( वह वक्त भी याद करो ) जब मूसा को ( तौरेत ) अता की और हक़ और बातिल को जुदा करनेवाला क़ानून (इनायत किया) ताके तुम हिदायत पाओ (53)
व इज् का-ल मूसा लिक़ौमिही या कौमि इन्नकुम् ज़-लम्तुम अन्फु-सकुम् बित्तिख़ाज़िकुमुल्-अिज्-ल फ़तूबू इला बारिइकुम् फक्-तुलू अन्फु-स-कुम् , जा़लिकुम् खैरूल्लकुम् अिन्-द बारिइकुम् , फ़ता – ब अलैकुम इन्नहू हुवत्तव्वाबुर्रहीम (54)
और ( वह वक्त भी याद करो ) जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि ऐ मेरी क़ौम तुमने बछड़े को ( ख़ुदा ) बना के अपने ऊपर बड़ा सख्त जुल्म किया तो अब ( इसके सिवा कोई चारा नहीं कि ) तुम अपने ख़ालिक की बारगाह में तौबा करो और वह ये है कि अपने को क़त्ल कर डालो तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक तुम्हारे हक़ में यही बेहतर है , फिर जब तुमने ऐसा किया तो खुदा ने तुम्हारी तौबा कुबूल कर ली बेशक वह बड़ा मेहरबान माफ़ करने वाला है (54)
व इज् कुल्तुम् या मूसा लन्-नुअ्-मिन-ल-क हत्ता नरल्ला-ह जह्-रतन् फ़-अ खज़त्कुमुस्साअि-कतु व अन्तुम् तन्जु़रून (55)
और ( वह वक्त भी याद करो ) जब तुमने मूसा से कहा था कि ऐ मूसा हम तुम पर उस वक्त तक ईमान न लाएंगे जब तक हम खुदा को ज़ाहिर बज़ाहिर न देख ले उस पर तुम्हें बिजली ने ले डाला , और तुम तकते ही रह गए (55)
सुम्-म बअस्नाकुम् मिम्-बअ्दि मौतिकुम् लअ़ल्लकुम् तश्कुरून (56)
फिर तुम्हें तुम्हारे मरने के बाद हमने जिला उठाया ताकि तुम शुक्र करो (56)
व जल्लल्ना अलैकुमुल्-ग़मा-म व अन्ज़ल्ना अलैकुमुल्मन्-न वस्सल्वा , कुलू मिन् तय्यिबाति मा रज़क्नाकुम् , व मा ज़-लमूना व लाकिन् कानू अन्फु-सहुम् यज्लिमून (57)
और हमने तुम पर अब्र का साया किया और तुम पर मन व सलवा उतारा और ( ये भी तो कह दिया था कि ) जो सुथरी व नफीस रोज़िया तुम्हें दी हैं उन्हें शौक़ से खाओ , और उन लोगों ने हमारा तो कुछ बिगड़ा नहीं मगर अपनी जानों पर सितम ढाते रहे (57)
व इज् कुल्नद्ख़ुलू हाज़िहिल् कर-य-त फकुलू मिन्हा हैसू शिअ्तुम र-गदंव वद्खुलुल-बा-ब सुज्जदंव व-कूलू हित्ततुन् नगफिर लकुम ख़तायाकुम् , व स-नज़ीदुल् मुह्सिनीन (58)
और ( वह वक्त भी याद करो ) जब हमने तुमसे कहा कि इस गाँव ( अरीहा ) में जाओ और इसमें जहाँ चाहो फराग़त से खाओ ( पियो ) और दरवाज़े पर सजदा करते हुए और ज़बान से हित्ता बख्शिश कहते हुए आओ तो हम तुम्हारी ख़ता ये बख्श देगे और हम नेकी करने वालों की नेकी ( सवाब ) बढ़ा देगें (58)
फ-बद्-दल्-लज़ी-न ज़-लमू कौलन् गैरल्लज़ी की-ल लहुम् फ़-अन्ज़ल्ना अलल्लज़ी-न ज़लमू रिज्ज़म् – मिनस्-समा-इ बिमा कानू यफ्सुकून (59)
तो जो बात उनसे कही गई थी उसे शरीरों ने बदलकर दूसरी बात कहनी शुरू कर दी तब हमने उन लोगों पर जिन्होंने शरारत की थी उनकी बदकारी की वजह से आसमानी बला नाज़िल की (59)
व इज़िस्तस्का मूसा लिक़ौमिही फ़-कुल्नजरिब् बिअसाकल् ह-ज-र , फ़न्-फ़-जरत् मिन्हुस्-नता अश्र-त अैनन् , कद् अलि-म कुल्लु उनासिम् मश्र-बहुम् , कुलू वश्रबू मिर्रिज़किल्लाहि व ला तअ्सौ फिलअर्ज़ि मुफ्सिदीन (60)
और ( वह वक्त भी याद करो ) जब मूसा ने अपनी क़ौम के लिए पानी माँगा तो हमने कहा ( ऐ मूसा ) अपनी लाठी पत्थर पर मारो ( लाठी मारते ही ) उसमें से बारह चश्में फट निकले और सब लोगों ने अपना – अपना घाट बखूबी जान लिया और हमने आम इजाज़त दे दी कि खुदा की दी हुईरोज़ी से खाओ पियो और मुल्क में फसाद न करते फिरो (60)
व इज् कुल्तुम् या मूसा लन्-नस्बि-र अला तआमिव्वाहिदिन् फ़द्अु लना रब्ब-क युख्रिज् लना मिम्मा तुम्बितुल अर्जु मिम्-बक्लिहा व किस्सा-इहा व फूमिहा व अ-द सिहा व ब-स-लिहा , का-ल अ-तस्तब्दिलूनल्लज़ी हु-व अद्ना बिल्लज़ी हु-व खैरून , इह्बितू मिस्रन् फ़-इन्-न लकुम मा सअल्तुम , व जुरिबत् अलैहिमुज्ज़िल्लतु वल्मस्-क-नतु व बाऊ बि-ग़-ज़-बिम् – मिनल्लाहि ,जालि-क बिअन्न-हुम् कानू यक्फुरू-न बिआयातिल्लाहि व यक्तुलूनन्-नबिय्यी-न बिगैरिल हक्कि , ज़ालि-क बिमा असव् वकानू यअतदून (61)
(और वह वक्त भी याद करो) जब तुमने मूसा से कहा कि ऐ मूसा हमसे एक ही खाने पर न रहा जाएगा तो आप हमारे लिए अपने परवरदिगार से दुआ कीजिए कि जो चीज़े ज़मीन से उगती है जैसे साग पात तरकारी और ककड़ी और गेहूँ या ( लहसुन ) और मसूर और प्याज़ ( मन व सलवा ) की जगह पैदा करें ( मूसा ने ) कहा क्या तुम ऐसी चीज़ को जो हर तरह से बेहतर है अदना चीज़ से बदलन चाहते हो तो किसी शहर में उतर पड़ो फिर तुम्हारे लिए जो तुमने माँगा है सब मौजूद है और उन पर रूसवाई और मोहताजी की मार पड़ी और उन लोगों ने क़हरे खुदा की तरफ पलटा खाया , ये सब इस सबब से हुआ कि वह लोग खुदा की निशानियों से इन्कार करते थे और पैग़म्बरों को नाहक शहीद करते थे , और इस वजह से ( भी ) कि वह नाफ़रमानी और सरकशी किया करते थे (61)
इन्नल्लज़ी-न आमनू वल्लज़ी-न हादू वन्नसारा वस्साबिईन मन् आम-न बिल्लाहि वल्यौमिल्-आखिरि व अमि-ल सालिहन् फ़-लहुम् अजरुहुम अिन्-द रब्बिहिम वला खौफुन् अलैहिम वला हुम् यह्ज़नून (62)
बेशक मुसलमानों और यहूदियों और नसरानियों और ला मज़हबों में से जो कोई खुदा और रोज़े आख़िरत पर ईमान लाए और अच्छे – अच्छे काम करता रहे तो उन्हीं के लिए उनका अज्र व सवाब उनके खुदा के पास है और न ( क़यामत में ) उन पर किसी का ख़ौफ होगा न वह रंजीदा दिल होंगे (62)
व इज् अखज्ना मीसा-ककुम् व र-फअ्ना फौ-ककुमुत्तू-र खुजू मा आतैनाकुम् बिकुव्वातिंव्वज्कुरू मा फीहि लअल्लकुम् तत्तकून (63)
और ( वह वक्त याद करो ) जब हमने ( तामीले तौरेत ) का तुमसे एक़रार कर लिया और हमने तुम्हारे सर पर तूर से ( पहाड़ को ) लाकर लटकाया और कह दिया कि तौरेत जो हमने तुमको दी है उसको मज़बूत पकड़े रहो और जो कुछ उसमें है उसको याद रखो (63)
सुम्-म तवल्लैतुम् मिम्-बअ्दि ज़ालि-क फलौला फज्लुल्लाहि अलैकुम् व रहमतुहू लकुन्तुम् मिनल ख़ासिरीन (64)
ताकि तुम परहेज़गार बनो फिर उसके बाद तुम ( अपने एहदो पैमान से ) फिर गए पस अगर तुम पर खुदा का फज़ल और उसकी मेहरबानी न होती तो तुमने सख्त घाटा उठाया होता (64)
व लकद् अलिम्तुमुल्लज़ीनअ्-तदौ मिन्कुम् फिस्सब्ति फ़कुल्ना लहुम् कूनू कि-र-दतन् खासिईन (65)
और अपनी क़ौम से उन लोगों की हालत तो तुम बखूबी जानते हो जो शम्बे ( सनीचर ) के दिन अपनी हद से गुज़र गए ( कि बावजूद मुमानिअत शिकार खेलने निकले ) तो हमने उन से कहा कि तुम राइन्दे गए बन्दर बन जाओ ( और वह बन्दर हो गए ) (65)
फ-जअल्नाहा नकालल्-लिमा बै-न यदैहा व मा ख़ल्फहा व मौअि-जतल् लिल्मुत्तकीन (66)
पस हमने इस वाक़ये से उन लोगों के वास्ते जिन के सामने हुआ था और जो उसके बाद आनेवाले थे अज़ाब क़रार दिया , और परहेज़गारों के लिए नसीहत (66)
व इज् का-ल मूसा लिकौमिही इन्नल्ला-ह यअ्मुरूकुम् अन् तज़्बहू ब-क-रतन् , कालू अ-तत्तखिजुना हुजुवन् , का-ल अअूजु बिल्लाहि अन् अकू-न मिनल्जाहिलीन (67)
और ( वह वक्त याद करो ) जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि खुदा तुम लोगों को ताकीदी हुक्म करता है कि तुम एक गाय ज़िबाह करो वह लोग कहने लगे क्या तुम हमसे दिल्लगी करते हो मूसा ने कहा मैं खुदा से पनाह माँगता हूँ कि मैं जाहिल बनूँ (67)
कालुद् अु-लना रब्ब-क युबय्यिल्लना मा हि-य का-ल इन्नहू यकूलु इन्नहा ब-क-रतुल्ला-फ़ारिजुंव् वला बिकरून् , अवानुम् , बै-न ज़ालि-क , फ़फ्अलू मा तुअमरून (68)
(तब वह लोग कहने लगे कि (अच्छा) तुम अपने खुदा से दुआ करो कि हमें बता दे कि वह गाय कैसी हो मूसा ने कहा बेशक खुदा ने फरमाता है कि वह गाय न तो बहुत बढी हो और न बछिया बल्कि उनमें से औसत दरजे की हो , ग़रज़ जो तुमको हुक्म दिया गया उसको बजा लाओ (68)
कालुद् अु-लना रब्ब-क युबय्यिल्लना मा लौनुहा , का-ल इन्नहू यकूलु इन्नहा ब-क-रतुन् सफ़रा-उ फ़ाकिअुल लौनुहा तसुर्रुन्नाज़िरीन (69)
वह कहने लगे ( वाह ) तुम अपने खुदा से दुआ करो कि हमें ये बता दे कि उसका रंग आख़िर क्या हो मूसा ने कहा बेशक खुदा फरमाता है कि वह गाय खूब गहरे ज़र्द रंग की हो देखने वाले उसे देखकर खुश हो जाए (69)
कालुद् अु-लना रब्ब-क युबय्यिल्लना मा हि-य इन्नल ब-क-र तशा-ब-ह अलैना , व इन्ना इन्श-अल्लाहु लमुह्तदून (70)
तब कहने लगे कि तुम अपने खुदा से दुआ करो कि हमें ज़रा ये तो बता दे कि वह ( गाय ) और कैसी हो ( वह ) गाय तो और गायों में मिल जुल गई और खुदा ने चाहा तो हम ज़रूर ( उसका ) पता लगा लेगे (70) का-ल इन्नहू यकूलु इन्नहा ब-क-रतुल् ला ज़लूलुन् तुसीरूल्-अर्-ज़ वला तस्किल्-हर-स मुसल्-ल-म-तुल्लाशिय-त फ़ीहा , कालुल्आ-न जिअ्-त बिल्हक्कि , फ़-ज़-बहूहा वमा कादू यफ्अलून (71)
मूसा ने कहा खुदा ज़रूर फरमाता है कि वह गाय न तो इतनी सधाई हो कि ज़मीन जोते न खेती सीचे भली चंगी एक रंग की कि उसमें कोई धब्बा तक न हो , वह बोले अब ( जा के ) ठीक – ठीक बयान किया , ग़रज़ उन लोगों ने वह गाय हलाल की हालाँकि उनसे उम्मीद न थी वह कि वह ऐसा करेंगे (71)
व इज् कतल्तुम् नफ्सन् फ़द्दा-रअ्तुम् फ़ीहा , वल्लाहु मुख्रिजुम् मा कुन्तुम् तक्तुमून (72)
और जब एक शख्स को मार डाला और तुममें उसकी बाबत फूट पड़ गई एक दूसरे को क़ातिल बताने लगा जो तुम छिपाते थे (72)
फ़-कुल्नज्रिबूहु बि-बअ्ज़िहा , कज़ालि-क युह्यिल्लाहुल-मौता व युरीकुम् आयातिही लअल्लकुम् तअ्किलून (73)
खुदा को उसका ज़ाहिर करना मंजूर था पस हमने कहा कि उस गाय को कोई टुकड़ा लेकर इस ( की लाश ) पर मारो यूँ खुदा मुर्दे को ज़िन्दा करता है और तुम को अपनी कुदरत की निशानियाँ दिखा देता है (73)
सुम्-म क़सत् कुलूबुकुम् मिम्-बअ्दि जालि-क फहि-य कलहिजा-रति औ अशद्दू कस्वतन् , व इन्-न मिनल-हिजारति लमा य-तफज्जरू मिन्हुल-अन्हारू , व इन्-न मिन्हा लमा यश्शक्ककु फ़-यख् रूजु मिन्हुल्मा-उ , व इन्-न मिन्हा लमा यहबितु मिन् ख़श्यतिल्लाहि , व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अम्मा तअ्मलून (74)
ताकि तुम समझो फिर उसके बाद तुम्हारे दिल सख्त हो गये पस वह मिसल पत्थर के ( सख्त ) थे या उससे भी ज्यादा करख्त क्योंकि पत्थरों में बाज़ तो ऐसे होते हैं कि उनसे नहरें जारी हो जाती हैं और बाज़ ऐसे होते हैं कि उनमें दरार पड़ जाती है और उनमें से पानी निकल पड़ता है और बाज़ पत्थर तो ऐसे होते हैं कि खुदा के ख़ौफ से गिर पड़ते हैं और जो कुछ तुम कर रहे हो उससे खुदा ग़ाफिल नहीं है (74)
अ-फ़-तत्मअू-न अंय्युअ्मिनू लकुम् व कद् का-न फ़रीकुम् मिन्हुम् यस्मअू-न कलामल्लाहि सुम्-म युहर्रिफूनहू मिम्-बअ्दि मा अ-क-लूहु व हुम् यअ्लमून (75)
( मुसलमानों ) क्या तुम ये लालच रखते हो कि वह तुम्हारा ( सा ) ईमान लाएँगें हालाँकि उनमें का एक गिरोह ( साबिक़ में ) ऐसा था कि खुदा का कलाम सुनाता था और अच्छी तरह समझने के बाद उलट फेर कर देता था हालाँकि वह खूब जानते थे और जब उन लोगों से मुलाक़ात करते हैं (75)
व इज़ा लकुल्लज़ी-न आमनू कालू आमन्ना व इज़ा ख़ला बअ्जुहुम् इला बअ्जिन् कालूं अतुह्द्दिसू नहुम् बिमा फ़-तहल्लाहु अलैकुम् लियुहाज्जूकुम् बिही अिन्-द रब्बिकुम , अ-फ़ला तअ्किलून (76)
जो ईमान लाए तो कह देते हैं कि हम तो ईमान ला चके और जब उनसे बाज़ – बाज़ के साथ तख़िलया करते हैं तो कहते हैं कि जो कुछ खुदा ने तुम पर ( तौरेत ) में ज़ाहिर कर दिया है क्या तुम ( मुसलमानों को ) बता दोगे ताकि उसके सबब से कल तुम्हारे खुदा के पास तुम पर हुज्जत लाएँ क्या तुम इतना भी नहीं समझते (76)
अ-वला यअ्लमू-न अन्नल्ला-ह यअलमु मा युसिर्रू-न वमा युअलिनून (77)
लेकिन क्या वह लोग ( इतना भी ) नहीं जानते कि वह लोग जो कुछ छिपाते हैं या ज़ाहिर करते हैं खुदा सब कुछ जानता है (77)
व मिन्हुम् उम्मिय्यू-न ला यअ्लमूनल किता-ब इल्ला अमानिय्-य व इन हुम् इल्ला यजुन्नून (78)
और कुछ उनमें से ऐसे अनपढ़ हैं कि वह किताबे खुदा को अपने मतलब की बातों के सिवा कुछ नहीं समझते और वह फक़त ख्याली बातें किया करते हैं (78)