24 Jan, 2025
नाम: सूरह अल-इनशिराह (الانشراح) — जिसका अर्थ है "सीना खोलना"
इसे सूरह अलम नशरह भी कहा जाता है, जो इसकी पहली आयत के शब्दों से लिया गया है।
सूरह नंबर: 94
पैराग्राफ (पारा) नंबर: 30 (अम्मा पारा)
आयतों की संख्या: 8
उतरने की जगह: मक्का (मक्की सूरह)
यह सूरह मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दिल को ढाढ़स बंधाने के लिए नाज़िल हुई। उस समय नबी (स.) पर बहुत कठिनाइयाँ थीं — विरोध, ताना, गरीबी, और अकेलापन। इस सूरह में अल्लाह तआला ने बताया कि हर मुसीबत के साथ आसानी ज़रूर आती है।
अल्लाह राहत देता है:
"क्या हमने तुम्हारा सीना नहीं खोला?" यानी तुम्हारे ऊपर से चिंता और बोझ को दूर किया।
हर कठिनाई के साथ दो आसानी होती हैं:
सूरह में दो बार कहा गया है: "बेशक मुश्किल के साथ आसानी है।" यह तसल्ली देने वाला संदेश है।
संघर्ष के बाद इबादत:
जब दुनिया के काम पूरे हों, तो खुदा से लगाव और इबादत में मेहनत करो।
जब दिल परेशान हो या हिम्मत टूटने लगे।
किसी काम में बार-बार रुकावट आ रही हो।
दुआ से पहले या बाद में राहत और तसल्ली के लिए।
नई शुरुआत, एग्ज़ाम, इंटरव्यू या किसी कठिन समय से पहले।
इब्न अब्बास (र.अ.) से रिवायत है कि सूरह अध-धुहा और सूरह अल-इनशिराह एक साथ हैं, और इन्हें अलग न पढ़ा जाए। यह दोनों सूरहें नबी (स.) के जीवन की कठिनाइयों के दौर में नाज़िल हुईं।
Surah Al-Inshirah / Alam Nashrah
सूरा नं: 94 | आयत: 8 | पारा: 30 | प्रकार: मक्की सूरह
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
أَلَمْ نَشْرَحْ لَكَ صَدْرَكَ
وَوَضَعْنَا عَنكَ وِزْرَكَ
الَّذِي أَنْقَضَ ظَهْرَكَ
وَرَفَعْنَا لَكَ ذِكْرَكَ
فَإِنَّ مَعَ الْعُسْرِ يُسْرًا
إِنَّ مَعَ الْعُسْرِ يُسْرًا
فَإِذَا فَرَغْتَ فَانصَبْ
وَإِلَىٰ رَبِّكَ فَارْغَبْ
Bismillahir-Rahmanir-Raheem
Alam nashrah laka sadrak
Wa wada‘na ‘anka wizrak
Allazi anqada zahrak
Wa rafa‘na laka zikrak
Fa inna ma‘al ‘usri yusra
Inna ma‘al ‘usri yusra
Fa iza faraghta fansab
Wa ila rabbika farghab
अल्लाह के नाम से जो बहुत मेहरबान, रहमत वाला है।
क्या हमने तुम्हारा सीना नहीं खोल दिया?
और तुम्हारा बोझ तुमसे नहीं उतार दिया,
जो तुम्हारी कमर को झुका देता था।
और तुम्हारे लिए तुम्हारा ज़िक्र (नाम) ऊँचा कर दिया।
तो बेशक मुश्किल के साथ आसानी है।
यकीनन, मुश्किल के साथ आसानी है।
जब तुम (अपने काम से) खाली हो जाओ, तो (इबादत में) मेहनत करो।
और अपने रब की ओर रुग़बत करो।
यह सूरह बताती है कि हर मुसीबत के बाद आसानी जरूर आती है। यह हमें धैर्य, मेहनत और अल्लाह की तरफ ध्यान केंद्रित करने की प्रेरणा देती है।