सूरह अल माऊन
Surah Al Maun Hindi Translation Pronunciation
यह सूरह मक्की है, इस में 7 आयते हैं। इस सरह की अन्तिम आयत में ((माऊन)) शब्द आने के कारण इस का यह नाम रखा गया है। जिस का अर्थ है लोगों को देने की साधारण आवश्यक्ता की चीजें। इस सूरह का विषय यह बताना है कि परलोक पर ईमान न रखना किस प्रकार का आचरण और स्वभाव पैदा करता है।
सूरह अल कुरैश Surah Quraish in Hindi Mein Translation
यह सूरह मक्की है, इस में 4 आयतें हैं। इस में मक्का के कबीले ((कुरैश)) की चर्चा के कारण इस का यह नाम रखा गया है। इस की आयत 1 से 3 तक में मक्का के वासी कुरैश के अपनी व्यापारिक यात्रा से प्रेम रखने के कारण जो यात्रा वह निर्भय और शान्त रह कर किया करते थे क्योंकि काबा के निवासी थे उन से कहा जा रहा है कि वह केवल इस घर के स्वामी अल्लाह ही की वंदना (उपासना) करें। आयत 4 में इस का कारण बताया गया है कि यह जीविका और शान्ति जो तुम्हें प्राप्त है वह अल्लाह ही का प्रदान है। इस लिये तुम्हें उस का आभारी होना चाहिये और मात्र उसी की इबादत (वंदना) करनी चाहिये।
इस पूरी सूरह में एक शिक्षाप्रद ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत है। यह सूरह मक्की है, इस में 5 आयतें हैं। इस सूरह में ((फ़ील)) शब्द आया है जिस का अर्थ हाथी है। इसी लिये इस का यह नाम है।Surah al Feel in Hindi Mein
सूरह अल हुमज़ह(104)| यह सूरह मक्की है, इस में 9 आयतें हैं। इस का नाम ((सूरह हुमज़ह)) है क्यों कि इस की प्रथम आयत में यह शब्द आया है जिस का अर्थ है: व्यंग करना, ताना मारना, गीबत करना आदि। यह सूरह भी मक्की युग की आरंभिक सूरतों में से है। इस का विषय धन के पुजारियों को सावधान करना है कि जिन की यह दशा होगी वह अवश्य अपने कुकर्म का दण्ड पायेंगे|
Surah Al Humazah सूरह अल हुमज़ह ٱلهُمَزَة
नाम पहली ही आयत के शब्द अल-अ़स्र (ज़माना) को इसका नाम दिया गया है। मक्की सूरा अर्थात पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।
सूरह अल अस्र (103) Surah Asr العصر
यह सूरह मक्की है, इस में 8 आयतें और 1 रुकूअ है । सूरह न० 102 ।
सूरह अल तकासुर की तफसीर: तकासुर का मतलब है किसी भी चीज़ की कसरत (ज़्यादती) की ख्वाहिश और चाहत रखना चाहे माल ओ दौलत में हो औलाद में या ओहदे और शोहरत में हो। जिस तरह इंसान दुनिया में माल ओ दौलत बढ़ जाने के चक्कर में आखिरत से दूर होता चला जा रहा है और अपने घाटे का सौदा कर रहा है।इस सूरत में इसी का जिक्र किया गया है।
सूरह अत तकासुर Surah At Takasur التكاثر
सूरह अल क़ारिअह हिन्दी में Surah al qariah hindi mein
सूरह अल क़रिआ Al Qaria القارعة
Surah Al Adiyat in Hindi Mein Translation सूरह अल आदियात
सूरह अल-आदियात मक्के में नाजिल हुई इसमें 11 आयतें हैं। सूरह न० 100।
Surah Al Adiyat hindi सूरह अल आदियात سورة العاديا
Surah zalzalah in Hindi सुरह ज़िलज़ाल हिन्दी में
सूरह ज़िलज़ाल मदनी, न० 99
surah al qadr in hindi - inna anzalna surah in hindi
यह सूरह मक्की है, इस में 5 आयतें हैं। इस में कुरआन के कद्र की रात में उतारे जाने की चर्चा की गई है। इस लिये इस का यह नाम रखा गया है। कद्र का अर्थ है: आदर और सम्मान। सूरह अल कद्र न० 97।
surah tin hindi me
सूरह अत तीन | यह सूरह मक्किय्या है, | इस में आयतें 8 | सूरह न० 95
Surah Teen hindi सूरह अत तीन हिंदी التين
surah alam nashrah / al inshirah in hindi सूरह अल इनशिराह / सूरह अलम नशरह
सूरह अल इनशिराह Surah Alam Nashrah सूरह अलम नशरह
surah ad duha in hindi mein translation text सूरह दुहा | सूरह न० 93 | सूरह मक्की
सूरह दुहा Surah Ad Duha in Hindi
Surah Muzammil in Hindi Mein likha hua translation
सूरह मुजम्मिल कुरआन पाक की एक बेहतरीन सूरह है। कुरआन पाक में ये अल मुज़म्मिल नाम से 29वें पारा में मौजूद है। यह सूरह मुज़म्मिल कुरआन पाक की 73वीं सूरह है। इसमें 20 आयत, 200 शब्द और 854 हर्फ़ मौजूद हैं।
सूरह अश शम्स मक्की | सूरह न० 91
Surah Ash Shams in Hindi सूरह अश शम्स अरबी हिंदी उच्चारण अनुवाद अर्थ
मक्की सूरह अल आला Surah Al Ala Translation in Hindi Mein
सूरह अल आला Surah Al Ala Hindi Mein
सूरह अल-आला (मक्की) सूरह न० 87
सूरह आले इमरान हिंदी अर्थ surah al imran in hindi translation
सूरह अन निसा Surah An Nisa in Hindi me translation
Surah Waqiah Hindi
सूरह वाकिया हिंदी surah waqiah hindi pronounce translation arabic
सूरह अल वाकिया हिंदी में उच्चारण
सूरह मुल्क हिन्दी Surah Mulk Hindi Pronounce Translation Arabic
Surah Mulk Hindi
सूरह मुल्क सूरह न० 67
सूरह अल मुल्क हिन्दी उच्चारण (मक्की)
सूरह अल-जिन्न सूरह न० 72
सूरह अल जिन्न Surah Jinn Hindi Pronounce Translation Arabic
सूरह अल-जिन्न हिन्दी उच्चारण (मक्की)
सूरह न० 24
सूरह नूर Surah Noor Hindi Pronounce Translation Arabic
सूरह नूर इन हिंदी में
सूरह अल-हश्र Surah Hashr Hindi Pronounce Translation Arabic
सूरह अल-हश्र अरबी
सूरह अल कह्फ
यह सूरह मक्की है, इस में 110 आयतें हैं।
सूरह अल-कहफ़ Surah al Kahf Hindi Pronounce Translation Arabic
सूरह अल जुमुआ अरबी हिन्दी उच्चारण अनुवाद अर्थ
Surah al juma hindi pronounce translation and arabic
नाम आयत 9 के वाक्यांश “जब पुकारा जाए नमाज़ के लिए जुमुआ (जुमा) के दिन" से उद्धृत है। यद्यपि सूरा में जुमा की नमाज़ के नियम सम्बन्ध आदेश दिया गए हैं , किन्तु समग्र रूप से जुमा इसकी वार्ताओं का शीर्षक नहीं है , बल्कि अन्य सूरतों की तरह यह नाम भी चिह्न ही की तरह है। सूरह no 62
सूरह अल बय्यिना अरबी हिन्दी उच्चारण अनुवाद अर्थ
सूरह अल बय्यिना Surah al Bayyinah in Hindi Pronounce Translation Arabic
सूरह अल बुरूज Surah Burooj In Hindi Pronounced Translation
सूरह अल बुरूज अरबी हिंदी उच्चारण अनुवाद अर्थ surah al burooj in hindi
सूरह अत तारिक हिंदी उच्चारण अनुवाद अरबी surah at tariq in hindi
सूरह अत तारिक हिंदी उच्चारण अनुवाद तरजुमा अरबी surah at tariq in hindi mein translation pronounce arabic
अऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम
Surah An Nas in Hindi Pronounced Translation - सूरह नास हिन्दी अनुवाद का उच्चारण
الناس - सूरह नास हिंदी में - Surah An Nas in Hindi
यह सूरत मक्का में नाज़िल हुई
بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम
शुरू करता हु अल्लाह के नाम से जो निहायत मेहरबान व रहम वाला है
Arabic:
قُلۡ أَعُوذُ بِرَبِّ ٱلنَّاسِ
مَلِكِ ٱلنَّاسِ
إِلَـٰهِ ٱلنَّاسِ
مِن شَرِّ الْوَسْوَاسِ الْخَنَّاسِ
الَّذِي يُوَسْوِسُ فِي صُدُورِ النَّاسِ
مِنَ الْجِنَّةِ وَ النَّاسِ
उच्चारण:
क़ुल अऊज़ु बिरब्बिन-नास
मलिकिन-नास
इलाहिन-नास
मिन शररिल वसवासिल ख़न्नास-
अल्लज़ी युवास्विसु फ़ी सुदूरिन्नास
मिनल-जिन्नति वन्नास
अर्थ:
(ऐ रसूल) तुम कह दो मैं लोगों के परवरदिगार
लोगों के बादशाह
लोगों के माबूद की (शैतानी)
वसवसे की बुराई से पनाह माँगता हूँ
जो (ख़ुदा के नाम से) पीछे हट जाता है जो लोगों के दिलों में वसवसे डाला करता है
जिन्नात में से ख्वाह आदमियों में से
Surah Al Baqara in Hindi Ayat 27 to 52
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नबी की चालीस हदीस हिंदी 40 hadees in hindi
Hadees 1.
तुम में बेहतरीन वह है जिनके अख़लाक़ अच्छे हो.
तिरमिज़ी शरीफ़ – 5575
Hadees 2.
जो खामोश रहा उसने नेजात पाई.
तिरमिज़ी शरीफ़ – 2425
Hadees 3.
जो रहम नहीं करता उस पर रहम नहीं किया जाता.
मुस्लिम शरीफ़
Hadees 4.
जो लोगों का शुक्र अदा नहीं करता वह अल्लाह का भी शुक्र अदा नहीं करता.
अबूदाऊद शरीफ़ – 4177
Hadees 5.
मुस्लमान को गाली देना गुनाह है और उससे जंग कुफ्र है.
बुख़ारी शरीफ़ – 46
Hadees 6.
हर भलाई सदका है.
बुख़ारी शरीफ़ – 5562
Hadees 7.
हया सरापा भलाई है.
मुस्लिम शरीफ़ – 54
Hadees 8.
तुम में सबसे बेहतर सख्स वह है जो क़ुरान को सीखे और इस को सिखाए.
बुख़ारी शरीफ़ – 4639
Hadees 9.
अमल का दारो-म-दार नियत पर है.
बुख़ारी शरीफ़
Hadees 10.
फजर की दो रिकअत सुन्नत दुनिया-व-माफ़िहा से बेहतर है.
मुस्लिम शरीफ़ – 1193
Hadees 11.
दुआ इबादत का मग्ज है.
तिरमिज़ी शरीफ़ – 3293
Hadees 12.
बेहतरीन तोशा तक़वा है.
बुख़ारी शरीफ़ – 1426
Hadees 13.
सुनी हुई बात देखी हुई बात की तरह नहीं होती.
मुसनद-अहमद शरीफ़ – 1745
Hadees 14.
मोमिन, मोमिन का आईना है.
अबूदाऊद शरीफ़ – 4272
Hadees 15.
भलाई की राह बतलाने वाले को इतना ही सवाब मिलता है, जितना इस पर चलने वाले को मिलता है.
मुसनद-अहमद शरीफ़ – 21326
Hadees 16.
आग से बचो. चाहे एक खजूर का टुकड़ा ही खैरातकरके क्यों न हो.
बुख़ारी शरीफ़ – 1328
Hadees 17.
रोज़ा ढाल है.
बुख़ारी शरीफ़ – 6938
Hadees 18.
जो हम को धोखा दे वो हम में से नहीं है.
मुसनद-अहमद शरीफ़
Hadees 19.
अच्छा गुमान रखना बेहतरीन इबादत है.
अबूदाऊद शरीफ़
Hadees 20.
दुनिया मोमिन के लिए कैद खाना है और काफ़िर के लिए ज़न्नत है.
मुस्लिम शरीफ़ – 5256
Hadees 21.
अज़ान और इक़ामत के दरमियान दुआ रद्द नहीं होती.
तिरमिज़ी शरीफ़
Hadees 22.
जो चीज कम हो और काफ़ी हो वह इस ज्यादा चीज से बेहतर है, जो आदमी को अल्लाह की यादसे गाफ़िल कर दे.
मुसनद-अहमद शरीफ़
Hadees 23.
किसी मुसलमान के लिए यह जायज़ नहीं है कि वह अपने मुसलमान भाई के साथ तीन दिन से ज्यादा कताअ-तआल्लूक रखे.
मुस्लिम शरीफ़ – 4644
Hadees 24.
आदमी का हश्र उस शख्स के साथ होगा, जिस इन्सान से उस को मोहब्बत होगी.
बुख़ारी शरीफ़ – 5702
Hadees 25.
जिस से मशवराह लिया जाए, उसे अमानतदार होना चाहिए.
तिरमिज़ी शरीफ़ – 2747
Hadees 26.
असल तवंगरी दिल की तवंगरी है.
बुख़ारी शरीफ़ – 4956
Hadees 27.
नेक-बख्त वह है, जो दूसरो से इबरत हासिल करे.
मुस्लिम शरीफ़ – 4783
Hadees 28.
ऊपर वाला हाथ नीचे वाले हाथ से बेहतर है.
बुख़ारी शरीफ़ – 1338
Hadees 29.
गुनाहों से तौबा करने वाला ऐसा है गोया के उस ने कोई गुनाह ही नहीं किया.
इब्ने मज़ह – 4240
Hadees 30.
मजलिसों के लिए अमानतदारी जरुरी है.
अबूदाऊद शरीफ़
Hadees 31.
मुस्लमान वह है जिस के हाथ व जुबान से दुसरे मुस्लमान महफूज़ रहे.
बुख़ारी शरीफ़ – 9
Hadees 32.
जो नरमी से महरूम है वह हर भलाई से महरूम है.
मुस्लिम शरीफ़ – 4694
Hadees 33.
जो शख्स अल्लाह के लिए एक मस्जिद बनाएगा अल्लाह उस के लिए ज़न्नत में उस जैसा महल बनाएगा.
मुस्लिम शरीफ़ – 229
Hadees 34.
ज़ुल्म कयामत के दिन अंधेरों का सबब बनेगा.
बुख़ारी शरीफ़ – 2267
Hadees 35.
जो अपने को किसी गुनाह का आर दिलाता है, तो वह उस गुनाह को किए बगैर नहीं मरता.
तिरमिज़ी शरीफ़ – 2429
Hadees 36.
रिश्ता को तोड़ने वाला ज़न्नत में दाखिल नहीं होगा.
बुख़ारी शरीफ़ – 5525
Hadees 37.
चुगली करने वाला ज़न्नत में दाखिल नहीं होगा.
मुस्लिम शरीफ़ – 151
Hadees 38.
तुम में से कोई मोमिन नहीं हो सकता जबतक की वो अपने भाई के लिए वही चीज पसंद करे जो अपने लिए पसंद करता है.
बुख़ारी शरीफ़ – 12
Hadees 39.
टखना के जितना निचे कपड़ा होगा उतना हिस्सा आग में होगा.
बुख़ारी शरीफ़ – 5341
Hadees 40.
जो शख्स दो ठंढे वक्त की नमाज़े फजर और असर पढ़ेगा तो वह ज़न्नत में दाखिल होगा.
बुख़ारी शरीफ़ – 540
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नबी की चालीस हदीस हिंदी 40 hadees in hindi
99 Names Of Allah in hindi अल्लाह के 99 नाम हिंदी में
allah ke 99 names in hindi अल्लाह के 99 नाम हिंदी में
मशहूर है कि कुरआन में 99 (निन्यानवें) नाम ऐसे हैं, जो सब पर जाहिर हैं और एक नाम ऐसा है, जो गुप्त रखा है जो 'इस्मे आजम' है। विभिन्न सहाबए अकराम ने इसे 'इस्मे आजम' के जो संकेत दिए हैं, वे किसी एक नाम से नहीं हैं।
No | इंग्लिश | हिंदी | मीनिंग |
---|---|---|---|
1 | Ar - Rahman | अर रहमान | बहुत महेरबान |
2 | Ar - Raheem | अर रहीम | निहायत रहम वाला |
3 | Al - Malik | अल मलिक | बादशाह |
4 | Al - Quddoos | अल कुद्दुस | पाक ज़ात |
5 | As - Salaam | अस सलाम | सलामती वाला |
6 | Al - Mu’ Min | अल मु अमिन | अमन देने वाला |
7 | Al - Muhaymin | अल मुहयमिन | निगरानी करने वाला |
8 | Al - Azeez | अल अज़ीज़ | ग़ालिब |
9 | Al - Jabbaar | अल जब्बार | ज़बरदस्त |
10 | Al - Mutakabbir | अल मुतकब्बिर | बड़ाई वाला |
11 | Al - Khaliq | अल खालिक | पैदा करने वाला |
12 | Al - Bari | अल बारी | जान डालने वाला |
13 | Al - Musawwir | अल मुसव्विर | सूरतें बनाने वाला |
14 | Al - Gaffar | अल गफ्फार | बख्शने वाला |
15 | Al - Qahhar | अल क़हहार | सब को अपने काबू में रखने वाला |
16 | Al - Wahhab | अल वहहाब | बहुत अता करने वाला |
17 | Al - Razzaq | अर रज्जाक | रिजक देने वाला |
18 | Al - Fattah | अल फतताह | खोलने वाला |
19 | Al - Aleem | अल अलीम | खूब जानने वाला |
20 | Al - Qabiz | अल काबिज़ | नपी तुली रोज़ी देने वाला |
21 | Al - Basit | अल बासित | रोज़ी को फराख देने वाला |
22 | Al - Khafiz | अल खाफिज़ | पस्त करने वाला |
23 | Al - Rafi | अर राफी | बलंद करने वाला |
24 | Al - Muizz | अल मुईज़ | इज्ज़त देने वाला |
25 | Al - Muzill | अल मुज़िल | ज़िल्लत देने वाला |
26 | Al - Sami | अस समी | सब कुछ सुनने वाला |
27 | Al - Baseer | अल बसीर | सब कुछ देखने वाला |
28 | Al - Hakam | अल हकम | फैसला करने वाला |
29 | Al - Adal | अल अदल | अदल करने वाला |
30 | Al - Lateef | अल लतीफ़ | बारीक बीं |
31 | Al - Khabeer | अल खबीर | सब से बाखबर |
32 | Al - Haleem | अल हलीम | निहायत बुरदबार |
33 | Al - Azeem | अल अज़ीम | बुज़ुर्ग |
34 | Al - Gafoor | अल गफूर | गुनाहों को बख्शने वाला |
35 | Al - Shakoor | अश शकूर | कदरदान |
36 | Al - Ali | अल अली | बहुत बलंद बरतर |
37 | Al - Kabeer | अल कबीर | बहुत बड़ा |
38 | Al - Hafeez | अल हफीज | निगेहबान |
39 | Al - Muqeet | अल मुकीत | सब को रोज़ी व तवानाई देने वाला |
40 | Al - Haseeb | अल हसीब | काफी |
41 | Al - Jaleel | अल जलील | बुज़ुर्ग |
42 | Al - Kareem | अल करीम | बेइंतिहा करम करने वाला |
43 | Al - Raqeeb | अर रक़ीब | निगेहबान |
44 | Al - Mujeeb | अल मुजीब | दुआएं सुनने और कुबूल करने वाला |
45 | Al - waase | अल वासिऊ | फराखी देने वाला |
46 | Al - Hakeem | अल हकीम | हिकमत वाला |
47 | Al - Wadood | अल वदूद | मुहब्बत करने वाला |
48 | Al - Majeed | अल मजीद | बड़ी शान वाला |
49 | Al - Baai’th | अल बाईस | उठाने वाला |
50 | Al - Shaheed | अश शहीद | हाज़िर |
51 | Al - Haq | अल हक | सच्चा मालिक |
52 | Al - Wakeel | अल वकील | काम बनाने वाला |
53 | Al - Qawi | अल कवी | जोर आवर |
54 | Al - Mateen | अल मतीन | कुव्वत वाला |
55 | Al - Wali | अल वली | हिमायत करने वाला |
56 | Al - Hameed | अल हमीद | खूबियों वाला |
57 | Al - Muhsi | अल मुह्सी | गिनने वाला |
58 | Al - Mubdi | अल मुब्दी | पहली बार पैदा करने वाला |
59 | Al - Mueed | अल मुईद | दोबारा पैदा करने वाला |
60 | Al - Muhyi | अल मुहयी | जिंदा करने वाला |
61 | Al - Mumeet | अल मुमीत | मारने वाला |
62 | Al - Hayy | अल हय्युल | जिंदा |
63 | Al - Qayyoom | अल कय्यूम | सब को कायम रखने और निभाने वाला |
64 | Al - Wajid | अल वाजिद | हर चीज़ को पाने वाला |
65 | Al - Maajid | अल माजिद | बुज़ुर्गी और बड़ाई वाला |
66 | Al - Waahid | अल वाहिद | एक अकेला |
67 | Al - Ahad | अल अहद | एक अकेला |
68 | Al - Samad | अस समद | बे नियाज़ |
69 | Al - Qadir | अल कादिर | कुदरत रखने वाला |
70 | Al - Muqtadir | अल मुक्तदिर | पूरी कुदरत रखने वाला |
71 | Al - Muqaddam | अल मुक़द्दम | आगे करने वाला |
72 | Al - Muakhkhar | अल मुअख्खर | पीछे और बाद में रखने वाला |
73 | Al - Awwal | अल अव्वल | सब से पहले |
74 | Al - Aakhir | अल आखिर | सब के बाद |
75 | Al - Zahir | अज ज़ाहिर | ज़ाहिर व आशकार |
76 | Al - Batin | अल बातिन | पोशीदा व पिन्हा |
77 | Al - waali | अल वाली | मुतवल्ली |
78 | Al - muta aal | अल मुताआली | सब से बलंद व बरतर |
79 | Al - Bar | अल बर | बड़ा अच्चा सुलूक करने वाला |
80 | Al -Tawwaab | अत तव्वाब | सब से ज्यादा कुबूल करने वाला |
81 | Al - Muntaqim | अल मुन्ताकिम | बदला लेने वाला |
82 | Al - Afuw | अल अफुव्व | बहुत ज्यादा माफ़ करने वाला |
83 | Al - Raoof | अर रऊफ | बहुत बड़ा मुश्फिक |
84 | Al - Malikul mulk | मालिकुल मुल्क | मुल्कों का मालिक |
85 | Al - Zul Jalai Walikraam | जुल जलाली वल इकराम | अजमतो जलाल और इकराम वाला |
86 | Al - Muqsit | अल मुक्सित | अदलो इन्साफ कायम करने वाला |
87 | Al - Jameu | अल जामिऊ | सब को जमा करने वाला |
88 | Al - Gani | अल गनी | बड़ा बेनियाज़ व बेपरवा |
89 | Al - Mugni | अल मुग्नी | बेनियाज़ व गनी बना देने वाला |
90 | Al - Maniu | अल मानिऊ | रोक देने वाला |
91 | Al - Zar | अज ज़ार्र | ज़रर पहुँचाने वाला |
92 | Al - Nafeu | अन नाफिऊ | नफा पहुँचाने वाला |
93 | Al - Noor | अन नूर | सर से पैर तक नूर बख्शने वाला |
94 | Al - Hadi | अल हादी | सीधा रास्ता दिखाने और चलाने वाला |
95 | Al - Badee | अल बदी | बेमिसाल चीज़ को इजाद करने वाला |
96 | Al - Baqi | अल बाकी | हमेशा रहने वाला |
97 | Al - Warith | अल वारिस | सब के बाद मौजूद रहने वाला |
98 | Al - Rasheed | अर रशीद | बहुत रहनुमाई करने वाला |
99 | Al - Saboor | अस सबूर | बड़े तहम्मुल वाला |
Shab e qadr namaz ka tarika iski dua hindi me - शबे कद्र की खास दुआ | सलातुल तस्बीह नमाज़ का तरीका
शब-ए-कद्र की रात रमज़ान के आखिरी के दस दिनों में आती है, जिसमें पांच रातों को शामिल किया गया है जैसे- 21, 23, 25, 27, 29 की रात। कहा जाता है कि इन पांच रातों में से किसी एक दिन शब-ए-कद्र की रात आती है, जिसकी कई निशानियां कुरान में बयान की कई हैं।
जिस दिन शब-ए-कद्र की रात होगी उस रात बहुत रोशनी होगी और आसमान चांद से चमक रहा होगा। इस रात न तो ज्यादा गर्मी और न ज्यादा ठंड होगी मतलब मौसम खुशनुमा होगा।
हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल लाहु तआला अन्हा ने हुज़ूर (सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम) से एक बार सवाल किया “ या रसूलल लाह अगर मुझे किसी रात के बारे में ये मालूम हो जाये कि ये लैलतुल क़द्र की रात है तो मैं उस में क्या करूँ” आप (सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया कि तुम उस वक़्त में ये दुआ पढ़ो
Dua Lailatul Qadr Ya Shabe Qadr | शबे क़द्र की ख़ास दुआ
Dua In English: Allahumma innaka afuwwun tuhibbul afwa fa’Afu anni
Dua In Hindi : अल्लाहुम्मा इन्नका अफुव्वुन तुहिब्बुल अफ्वा फ़अ’फु अन्नी
Translation : ए अल्लाह ! बेशक तू माफ़ करने वाला है, माफ़ करने को पसंद करता है तो मुझे भी माफ़ फरमा दे (तिरमिज़ी)
हुज़ूर सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया “कि जो शख्स शबे क़द्र में ईमान की हालत में और सवाब की नियत से (इबादत के लिए ) खड़ा हो तो उसके तमाम गुनाह माफ़ कर दिए जायेंगे”
इस रिवायत में खड़े होने का मतलब सिर्फ नमाज़ में ही खड़े होना ही नहीं है बल्कि चाहे नमाज़ पढ़े, या तिलावत करे, चाहे तस्बीह और इस्तेग्फार में लग जाये, सारी इबादतें इस में दाख़िल हैं, और सवाब की नियत का मतलब है कि ये इबादत सिर्फ इख्लास, अल्लाह को राज़ी करने के लिए और सवाब हासिल करने के लिए हो, दिखलावा और नुमाइश मक़सूद न हो
लैलतुल क़द्र या शबे क़द्र क्या है ?
दो उलमा के अक़वाल शबे क़द्र के बारे में
अल्लामा आलूसी (रहमतुल लाहि अलैह) फरमाते हैं कि जहाँ तक हो सके इस रात में अलग अलग किस की इबादत करे जैसे नफ्ल पढ़ना, कुराने करीम की तिलावत करना, ज़िक्र करना और तस्बीह पढ़ना, दुआ और इस्तेग्फार करना इन सब का कुछ न कुछ हिस्सा अदा करे
हज़रत सूफ़ियान सोरी (रहमतुल लाहि अलैह) फ़रमाते हैं कि शबे क़द्र में दुआ करना, इस्तेग्फार करना नफ्ल पढने से ज़्यादा अफज़ल है, अगर कोई शख्स क़ुरान की तिलावत और दुआ व इस्तेग्फार दोनों को जमा करे ( यानि दोनों को पढ़ें ) तो ये और भी बेहतर है
शबे क़द्र की नफ़्ल नमाज़े
4 रकात नमाज़ इस तरह पढ़े की हर रकात में एक बार अल्हम्दो शरीफ एक बार इन्ना अन्ज़लना और 27 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ पढ़े। इंशाल्लाह अल्लाह करीम आपको गुनाहो से पाक फरमा देगा।
कम से कम 2 रकात ही खुलूस के साथ इस तरह पढ़े की हर रकात में सूरह फातेहा के बाद 1 बार इन्ना अन्ज़लना और 3 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ पढ़े। इंशाल्लाह आपको शबे कद्र की बरकत हासिल होगी।
हज़रत अली शेरे खुदा फरमाते हैं, जो आदमी इस रात 7 बार सूरह अल क़द्र इन्ना अन्ज़लना पढ़ेगा। अल्लाह पाक उसे बलाओं और मुसीबतो से बचाता हैं, और 70 हज़ार फ़रिश्ते उसके लिए जन्नत की दुआ करते हैं।
हज़रत बीबी आइशा फरमाती हैं मैने अर्ज़ किया या रसुल्लाह, शबे क़द्र की रात क्या दुआ माँगे। आपने फ़रमाया अल्लाहुम्मा इन्नका अफुउन तुहिब्बुल अफ़्व फअफ़ो अन्नी।
2 रकात नमाज़ इस तरफ पढ़े की हर रकात में सूरह फातेहा के बाद 7 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ और सलाम फेरने के बाद 70 बार अस्तग़फिरउल्लाह व अतूबो इलैहि पढ़े। अल्लाह पाक उसे और उसके माँ बाप के गुनाहो को बक्श देगा।
4 रकात नमाज़ इस तरफ पढ़े की हर रकात में सूरह फातेहा के बाद 3 बार इन्ना अन्ज़लना और 7 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ पढ़े। इंशाल्लाह मौत के वक़्त की बेचैनी से महफूज़ रहेंगे।
4 रकात नमाज़ इस तरह पढ़े की हर रकात में अल्हम्दो शरीफ के बाद एक बार इन्ना अन्ज़लना और 27 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ पढ़े। इस नमाज़ की बरकत से गुनाह माफ़ हो जायेंगे और अल्लाह पाक आपको जन्नत में आला मक़ाम अता फरमाएगा।
4 रकात नमाज़ इस तरह पढ़े की हर रकात में अल्हम्दो शरीफ के बाद 3 बार इन्ना अन्ज़लना और 50 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ पढ़े और सलाम फेरने के बाद सजदे में सर रखकर एक बार सुब्हानल्लाहे वल्हम्दुलिल्लाहे व लाइलाहा इल्लल्लाहो वल्लाहो अकबर पढ़े। इंशाल्लाह आपको इस मुबारक रात की बेपनाह नेअमते नसीब होगी। इस रात 2 रकात तयीहतुल वुदु और 2 रकात तहियतुल मस्जिद पढ़ना भी बहुत सवाब रखता हैं।
इस रात अगर वक़्त मिले तो कम से कम एक बार सलातुल तस्बीह ज़रूर पढ़ने की कोशिश करे यह इतनी फ़ज़ीलत वाली नमाज़ हैं। अगर यह नमाज़ ज़िन्दगी में अगर एक बार भी पढ़ ली तो इसकी फ़ज़ीलत से इंशाल्लाह बन्दे के गुनाह माफ़ हो जाते हैं। लिहाज़ा कोशिश करे की यह नमाज़ रोज़ न पढ़ सके तो हफ्ते में एक बार वो भी न हो तो महीने में एक बार तो ज़रूर पढ़े।
सलातुल तस्बीह नमाज़ का तरीका
4 रकात नफ़्ल नमाज़ की नियत करे और नियत करने के बाद 15 बार सुब्हानल्लाहे वल्हम्दुलिल्लाहे व लाइलाहा इल्लल्लाहो वल्लाहो अकबर पढ़े अल्हम्दो और सूरत पढ़ने के बाद रुकू में जाने पहले यही तस्बीह 10 बार पढ़े रुकू में सुब्हान रब्बियल अज़ीम पढ़ लेने के बाद 10 बार रुकू से उठने के बाद सजदे में जाने से पहले 10 बार सजदे में जाने पर सुब्हान रब्बियल आला पढ़ लेने के बाद 10 बार फिर दूसरे सजदे में 10 बार यही तस्बीह पढ़े इस तरह हर रकात में 75 बार यह तस्बीह पढ़ी जाएगी और 4 रकात में 300 बार हो जाएगी।
इस दौरान पूरी रात अल्लाह की इबादत की जाती है और दिल से दुआ मांगी जाती है। कहा जाता है कि जो भी दुआएं मांगी जाती हैं, वो हमेशा कबूल होती हैं।
मुस्लिम ग्रंथ के अनुसार इस रात कुरान की आयतों को दुनिया पर जिब्रील नाम के फरिशते के जरिए पैगम्बर मुहम्मदपर नाज़िल होना शुरू हुआ था।
शब-ए-कद्र का महत्व
रमज़ान के महीने में शब-ए-कद्र की रात आती है, जिसे हज़ार महीने की रात से बेहतर समझा जाता है। इस दौरान की जाने वाली हर इबादत का दोगुना सवाब मिलता है। अगर सच्चे दिल से अपने गुनाह की माफी मांगी जाती है, तो अल्लाह माफ कर देता है। (दुनिया की सबसे पुरानी मस्जिद)
कुरान के अनुसार अल्लाह सबको माफ कर देगा लेकिन 4 लोग ऐसे हैं जिनकी बख़्शिश नहीं होती, लेकिन वो लोग कौन हैं? आइए जानते हैं।
शराब पीने वाला
कीना (नफरत) रखने वाला
मां-बाप की नाफरमानी करने वाला
रिश्तेदारों से लड़ने वाला
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Allah ke 99 naam ki fazilat in Hindi अल्लाह के 99 नाम की फ़ज़ीलत
मशहूर है कि कुरआन में 99 (निन्यानवें) नाम ऐसे हैं, जो सब पर जाहिर हैं और एक नाम ऐसा है, जो गुप्त रखा है जो 'इस्मे आजम' है। विभिन्न सहाबए अकराम ने इसे 'इस्मे आजम' के जो संकेत दिए हैं, वे किसी एक नाम से नहीं हैं।
हदीस शरीफ में आया है कि रसूल-अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया कि-
अल्लाह त'आला के 'अस्मा-ए-हुस्ना' जिनके साथ हमें दुआ मांगने का हुक्म दिया गया है, 99वें हैं। जो व्यक्ति इनको याद कर लेगा और उनको पढ़ता रहेगा वह जन्नत में जाएगा।
इस हदीस में जिन 99 नामों का वर्णन है, उनमें से अधिकतर नाम कुरआन करीम में दिए गए हैं। केवल कुछ नाम ऐसे हैं, जो बिल्कुल उसी रूप में कुरआन में नहीं हैं, लेकिन उनका भी स्रोत, जिससे वे नाम निकले हैं, क़ुरआन में दिए हैं, जैसे 'मुन्तक़िम' तो क़ुरआन में नहीं है मगर 'ज़ुनतिक़ाम' क़ुरआन में आया है।
अल्लाह त'आला के 'अस्मा-ए-हुस्ना' जिनका जिक्र आयत 'व लिल्लाहिल अस्मा उल हुस्ना फदऊहो बिहा' (और अल्लाह के सब ही नाम अच्छे हैं, उन नामों से उसको पुकारो) में आया है, इस निन्यानवें नामों पर आधारित नहीं हैं, बल्कि इनके अतिरिक्त और नाम क़ुरआन व हदीस में आए हैं, उनके साथ दुआ करनी चाहिए, लेकिन अपनी ओर से कोई ऐसा नाम जो क़ुरआन व हदीस में नहीं आया है, नाम के तौर पर नहीं ले सकते यद्यपि उसका अर्थ ठीक भी हो।
अल्लाह के पवित्र निन्यानवें नाम
1. अल्लाह
यह अल्लाह का जाती नाम है, जो कि अल्लाह के नामों में सर्वप्रथम आया है। बाकी सारे नाम सिफ़ाती (गुणात्मक) हैं।
जो व्यक्ति 1000 बार 'या अल्लाह' पढ़ेगा मन की सारी शंकाएँ दूर हो जाएँगी और विश्वास की शक्ति पाएगा। जो ला-इलाज रोगी बिला गिनती 'या अल्लाह' पढ़े और दुआ करे तो इन्शाअल्लाह ठीक होगा। जो व्यक्ति जुमे के दिन नमाज़ से पहले पाक होकर एकांत में दो सौ बार पढ़े उस की कठिनाई दूर हो।
2. अर्-ऱहमान (बहुत दया करने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना हर नमाज के बाद 100 बार 'या ऱहमान' पढ़ेगा, उसके दिल से हर प्रकार की सख़्ती और सुस्ती दूर हो जाएगी, इन्शाअल्लाह।
3. अर्-ऱहीम (बहुत कृपाकरने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना हर नमाज के बाद 100 बार 'या ऱहीम' पढ़ेगा, तमाम सांसारिक कष्टों से बचा रहेगा और सारी मख़लूक़ (सृष्टि) उस पर मेहरबान होगी इन्शाअल्लाह।
4. अल्-मलिक (सबका स्वामी)
जो व्यक्ति रोज़ाना फ़ज्र (सुबह की) नमाज के बाद या मलिक बे-गिनती मात्रा में पढ़ेगा अल्लाह ताला उसे ग़नी (धनी) बना देंगे।
5. अल्-क़ुद्दूस (बहुत पवित्र)
जो व्यक्ति रोज़ाना दोपहर से पहले या क़ुद्दूस बेहिसाब पढ़ेगा, उसका दिल विकारों से पाक हो जाएगा।
6. अस्-सलाम (निष्कलंक/बे-ऐब)
जो व्यक्ति बेहिसाब या सलाम पढ़ता रहेगा तमाम आफतों (कष्टों) से बचा रहेगा। जो व्यक्ति 115 बार पढ़कर बीमार पर फूँकेगा अल्लाह त'आला उसे ठीक कर देंगे। अगर मरीज के सरहाने बैठकर दोनों हाथ उठाकर 39 बार तेज आवाज से पढ़े कि मरीज सुन ले, इन्शा अल्लाह वह मरीज ठीक होगा।
और अल्लाह तुम्हारे छिपे हुए और सामने दिखते हुए सब हाल जानते हैं।
7. अल-मु मिन (ईमान देने वाला)
जो व्यक्ति किसी भय के समय 630 बार या मु मिन पढ़े, वह हर प्रकार के भय व हानि से बचा रहेगा। जो व्यक्ति इस नाम को लिखकर अपने पास रखे या बेहिसाब पढ़े वह पूर्णतः अल्लाह की शरण में रहेगा।
8. अल्-मुहैमिन (चौकसी करने वाला)
जो व्यक्ति स्नान करके दो रकत नमाज़ पढ़े और शुद्ध मन से 100 बार या मुहैमिन पढ़ेगा, अल्लाह त'आला उसको आंतरिक और बाहरी रूप से पाक कर देंगे। जो व्यक्ति 115 बार पढ़े इन्शा अल्लाह उस पर छिपी हुई चीजें खुल जाएँगी।
9. अल्-'अज़ीज़ (अविजयी)
जो व्यक्ति 40 दिन तक 40 बार या अज़ीज़ पढ़ेगा अल्लाह त'आला उसको इज्जतदार बना देंगे। जो व्यक्ति फ़ज्र की नमाज़ के बाद 41 बार पढ़ता रहे वह इन्शा अल्लाह किसी का आश्रित न हो और अनादर के बाद आदर पाए।
10. अल्-जब्बार (सबसे शक्तिमान)
जो व्यक्ति रोजाना सुबह-शाम 226 बार या जब्बार पढ़ेगा इन्शा अल्लाह ज़ालिमों के ज़ुल्म से बचा रहेगा और जो व्यक्ति चाँदी की अँगूठी पर यह नाम खुदवा कर पहने उसका भय व सम्मान लोगों के दिलों में पैदा होगा।
और वे ही अल्लाह त'आला अपने बन्दों के ऊपर शक्तिमान और महान हैं और वे ही बड़े बुद्धिमान हैं तथा पूरी जानकारी रखते हैं।
11. अल्-मु-त-कब्बिर (बड़ाई और बुज़ुर्गी वाला)
जो व्यक्ति बिला हिसाब या मु-त कब्बिर पढ़ेगा अल्लाह त'आला उसे इज्जत व बड़ाई देंगे और यदि हर काम के शुरू में यह नाम बेहिसाब पढ़े तो इन्शा अल्लाह उसमें कामयाब होगा।
12. अल्-ख़ालिक (पैदा करने वाला)
जो व्यक्ति सात रोज तक बराबर 100 बार या ख़ालिक पढ़ेगा इन्शा अल्लाह तमाम आफतों (आपदाओं) से बचा रहेगा। जो व्यक्ति हमेशा पढ़ता रहे तो अल्लाह पाक एक फ़रिश्ता पैदा कर देते हैं, जो उसकी ओर से इबादत करता है और उसका मुख प्रकाशमान रहता है।
13. अल्-बारी (जान डालने वाला)
अगर बाँझ औरत सात रोजे रखे और पानी से अफ़्तार करने के बाद 21 बार अल्-बारि-उल-मु़सव्विर पढ़े तो इन्शा अल्लाह उसे पुत्र नसीब हो।
14. अल्-मु़सव्विर (आकार देने वाला)
देखें अल्-बारी।
15. अल्-ग़फ़्फ़ार (क्षमा करने वाला)
जो व्यक्ति जुमे की नमाज के बाद 100 बार या ़ग़फ़्फ़ार पढ़ा करेगा उस पर मग़फ़िरत (मोक्ष) के निशान ज़ाहिर होने लगेंगे। जो व्यक्ति अस्र की नमाज़ के बाद रोज़ाना या ग़फ़्फ़ारो इग़फ़िरली पढ़ेगा अल्लाह त'आला उसे बख़्शे हुए (मोक्ष प्रदान किए हुए) लोगों में दाख़िल करेंगे।
16. अल्-क़ह्हार (सबको अपने वश में रखने वाला)
जो व्यक्ति संसार के मोह में जकड़ा हो बेहिसाब या क़ह्हार पढ़े तो संसार का मोह उसके दिल से जाता रहे और अल्लाह की मुहब्बद पैदा हो जाए। शत्रुओं पर विजय पाए। अगर चीनी के बरतन पर लिखकर ऐसे व्यक्ति को पिलाया जाए, जो कि जादू के कारण औरत के अयोग्य हो तो जादू दूर हो जाए। इन्शा अल्लाह।
और अल्लाह को लोगों के सब कामों का पूरा ज्ञान हैं।
17. अल्-वह्हाब (सब-कुछ देने वाला)
जो व्यक्ति गरीबी का शिकार हो वह बेहिसाब या वह्हाब पढ़ा करे या लिखकर अपने पास रखे या चाश्त की नमाज़ के आख़िरी सजदे में 40 बार पढ़ा करे तो अल्लाह त'आला उसकी गरीबी को अजूबे के तौर से दूर कर देंगे। यदि कोई विशेष इच्छा हो तो घर या मस्जिद के सहन में तीन बार सज्दा करके हाथ उठाए और 100 बार पढ़े, इन्शा अल्लाह इच्छा पूरी हो तथा शत्रु के डर से सुखी हो।
18. अर्-रज़्ज़ाक़ (रोज़ी देने वाला)
जो व्यक्ति सुबह की नमाज़ (फ़ज्र) से पहले अपने मकान के चारों कोनों से दस-दस बार या रज़्ज़ाक़ पढ़कर फूँकेगा अल्लाह त'आला उस पर रिज़्क़ के दरवाजे खोल देंगे और बीमारी व गरीबी उसके घर में हरगिज न आएगी। दाहिने कोने से शुरू करें और मुँह क़िबले की तरफ रखें।
19. अल्-फ़त्ता़ह (कठिनाई दूर करने वाला)
जो व्यक्ति फ़ज्र की नमाज़ के बाद दोनों हाथ सीने पर रखकर 71 बार या फ़त्ता़ह पढ़ा करेगा इन्शा अल्लाह उसका दिल नूरे-ईमान से जगमगा जाएगा। सारे काम व अन्न प्राप्ति आसान हो जाए।
20. अल्-'अलीम (बहुत ज्ञानी)
जो व्यक्ति बेहिसाब या 'अलीम पढ़ा करे अल्लाह त'आला उस पर इल्मो मग़फ़िरत (ज्ञान व मोक्ष) के दरवाजे खोल देंगे।
21. अल्-क़ाबिध (रोज़ी बन्द करने वाला)
जो व्यक्ति रोटी के चार लुक्मों पर अल्-काबिध लिखकर 40 दिन तक खाएगा, भूख, प्यास, घाव व दर्द आदि की तकलीफ से इन्शा अल्लाह बचा रहेगा।
22. अल्-बासि़त (रोज़ी खोलने वाला)
जो व्यक्ति चाश्त की नमाज़ के बाद आसमान की तरफ हाथ उठाकर दस बार या बासि़त पढ़ेगा और मुँह पर हाथ फेरेगा अल्लाह त'आला उसे गनी (धनी) बना देंगे और कभी किसी का मोहताज न होगा।
23. अल्-ख़ाफ़िध (छोटा करने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना 500 बार या ख़ाफ़िध पढ़ा करे अल्लाह त'आला उसकी इच्छाएँ पूरी और कठिनाइयाँ दूर कर देंगे। जो व्यक्ति तीन रोज़े रखे और चौथे रोज़ एक जगह बैठकर 70 बार पढ़े तो इन्शा अल्लाह दुश्मन पर विजयी हो।
24. अर्-राफ़े' (ऊँचा करने वाला)
जो व्यक्ति हर महीने की चौदहवीं रात को आधी रात में 100 बार या राफ़े' पढ़े तो अल्लाह त'आला उसे मख़्लूक़ (सृष्टि) से बेनियाज़ (अनाश्रित) और धनी कर देंगे। यदि 70 बार रोज पढ़े तो जालिमों से सुरक्षा पाए। इन्शा अल्लाह।
25. अल्-मोइज़्ज़ (इज़्ज़त देने वाला)
जो व्यक्ति पीर या जुमे के दिन मग़रिब के बाद 40 बार या मोइज़्ज़ पढ़ा करे अल्लाह त'आला उसको इन्शा अल्लाह लोगों में इज़्ज़तदार बना देंगे।
26. अल्-मुज़िल्ल (अपमानित करने वाला)
जो व्यक्ति 75 बार या मुज़िल्ल पढ़कर सजदे में सर रखकर दुआ करेगा अल्लाह त'आला उसको हासिदों, ज़ालिमों और दुश्मनों की शरारत से बचाए रखेंगे। यदि कोई खास दुश्मन हो तो सजदे में उसका नाम लेकर कि 'ऐ अल्लाह तू उस ज़ालिम या दुश्मन से बचा' दुआ करें तो दुआ इन्शा अल्लाह क़बूल होगी। जिस का हक़ दूसरे के ज़िम्मे आता हो और वह उसमें टालमटोल करता हो, बेतादाद पढ़ा करे तो वह उस का हक़ अदा कर दे। इन्शा अल्लाह।
निःसंदेह आपका रब बड़ा बनाने वाला और बड़ा ज्ञानी है।
27. अस्-समी' (सब-कुछ सुनने वाला)
जो व्यक्ति जुमेरात के दिन चाश्त की नमाज़ के बाद 500 बार या 50 बार या समी' पढ़ेगा इन्शा अल्लाह उसकी दुआएँ़ल क़ुबूल होंगी। बीच में किसी से बात न करें। जो व्यक्ति जुमेरात के दिन फ़ज्र की सुन्नतों और फ़रज़ों के बीच 100 बार पढ़ेगा अल्लाह त'आला उसे विशेष स्थान देंगे।
अल्लाह से छिपी नहीं है कोई वस्तु जमीन में और न आकाश में।
28. अल्-ब़सीर (सब-कुछ देखने वाला)
जो व्यक्ति जुमे की नमाज़ के बाद 100 बार या ब़सीर पढ़ा करेगा अल्लाह त'आला उसकी निगाह और दिल में नूर पैदा कर देंगे और नेक कामों की तौफ़ीक़ होगी।
29. अल्-ह़कम (निर्णय करने वाला)
जो व्यक्ति आखिर रात में 99 बार बा वज़ू या ह़कम पढ़ा करेगा अल्लाह त'आला उसके दिल में गुप्त रहस्य व नूर-भर देंगे और जो व्यक्ति जुमे की रात में या ह़कम इतना पढ़े कि बेहाल हो जाए तो अल्लाह त'आला उसके दिल को कश्फ़ो-इल्हाम (ख़ुदा के छिपे राज़ को जान लेने) से नवाज़ेंगे।
उसके अतिरिक्त किसी अन्य की इबादत (भक्ति) नहीं वह अतिमहान है अति बुद्धिमान।
30. अल्-'अद्ल (इंसाफ करने वाला)
जो व्यक्ति जुमे के दिन या रात में रोटी के बीस या तीस टुकड़ों पर अल्-'अद्ल लिखकर खाएगा अल्लाह त'आला सृष्टि (मख़्लूक़) को उसके आधीन कर देंगे।
31. अल्-ल़तीफ़ (कृपा करने वाला)
जो व्यक्ति 133 बार या ल़तीफ़ पढ़ा करे, उसकी धन वृद्धि हो तथा समस्त इच्छाएँ पूरी हों। जो व्यक्ति गरीबी, दुःख, बीमारी, तन्हाई या किसी अन्य मुसीबत में पड़ा हो वह वज़ू करके दो रकत नमाज़ पढ़े और अपने मक़सद को दिल में रखकर 100 बार पढ़े इन्शा अल्लाह मक़सद पूरा हो।
और अल्लाह ही के लिए है सल्तनत आसमानों की और जमीन की और अल्लाह हर वस्तु पर पूरी कुदरत रखते हैं।
32. अल्-ख़बीर (जानकारी रखने वाला)
जो व्यक्ति सात दिन तक या ख़बीर अनगिनत पढ़े अल्लाह उस पर छिपे हुए रहस्य खोल देंगे। जो व्यक्ति कोई अप्रिय आदत रखता हो या किसी ज़ालिम के क़ब्ज़े में हो वह बेहिसाब पढ़े, छूट जाएगा।
33. अल्-ह़लीम (धैर्यवान)
इस नाम को काग़ज़ पर लिखकर पानी से धोकर जिस वस्तु पर पानी छिड़कें उसमें उन्नति हो तथा हानि से बचा रहे।
34. अल्-अज़ीम (अति महान)
जो व्यक्ति अधिक मात्रा में या अज़ीम पढ़े इन्शा अल्लाह आदर, उन्नति तथा हर रोग से मुक्त पाएगा।
35. अल्-ग़फ़ूर (मुक्ति देने वाला)
जो व्यक्ति अनगिनत या ग़फ़ूर पढ़े उसके समस्त कष्ट, दर्द, दुःख दूर हों तथा धन वृद्धि हो। जो व्यक्ति सजदे में या रब्बिग़ फ़िरली तीन बार कहे, अल्लाह त'आला उसके अगले-पिछले समस्त पाप क्षमा कर देगा।
36. अश्-शकूर (आदर करने वाला)
जो व्यक्ति दरिद्रता या अन्य किसी दुःख-दर्द से पीड़ित हो वह इकतालीस (41) बार या शकूर पढ़े उसका दूःख दूर होगा। जिस व्यक्ति को थकान हाती हो तथा शरीर टूटा रहता हो इस नाम को लिखकर पिए तथा शरीर पर फेरे फायदा होगा। यदि आँखों से कम दिखता हो तो लिखकर आँख पर फेरे फायदा होगा। इन्शा अल्लाह।
कह दो कि तुम (खुदा को) अल्लाह (के नाम से) पुकारो या रहमान के नाम से, जिस नाम से पुकारो, उसके सब नाम अच्छे हैं।
37. अल्-'अली (सबसे ऊँचा)
जो व्यक्ति हमेशा या 'अली पढ़ता रहे तथा लिखकर अपने पास रखे इन्शा अल्लाह उसकी तरक्की हो, वह खुशहाल हो और उसकी इच्छा पूरी हो। यदि मुसाफ़िर अपने पास रखे तो जल्द अपने संबंधियों के पास वापस आए।
38. अल्-कबीर (बहुत बड़ा)
जो व्यक्ति अपने पद से हटा दिया गया हो, वह सात रोजे (व्रत) रखे और रोजाना एक हजार बार या कबीर पढ़े अपना पद पुनः पाएगा तथा उन्नति व विजय मिलेगी। यदि खाने की चीज पर पढ़कर खिलाए तो पति-पत्नी में परस्पर प्रेम हो।
39. अल्-ह़फ़ीज़ (सबका रक्षक)
जो व्यक्ति अनगिनत या ह़फ़ीज़ पढ़े और लिखकर अपने पास रखे, वह हर प्रकार के भय व हानि से सुरक्षित रहेगा। यदि जंगली जानवरों के बीच सो जाए तो कोई हानि न पहुँचे।
40. अल्-मुक़ीत (सबको रोज़ी व शक्ति देने वाला)
जो व्यक्ति खाली बर्तन में सात बार या मुक़ीत पढ़कर फूँके और स्वयं उससे पानी पिए या दूसरे को पिलाए या सूँघे तो इन्शा अल्लाह इच्छा पूर्ति हो। यदि रोजेदार मिट्टी पर पढ़कर या लिखकर पानी से तर करके सूँघे तो शक्ति प्राप्त हो और यदि यात्री मिट्टी के बर्तन पर सात बार पढ़कर या लिखकर उससे पानी पिए तो यात्रा के दुख से बचा रहे। यदि किसी का बच्चा बुरे स्वभाव रखता हो, उसे पानी पिलाए तो स्वभाव अच्छा हो।
और जो लोग उसके नामों में टेढ़ (अपनाया) करते हैं, उनको छोड़ दो।
41. अल्-ह़सीब (सबकी पूर्ति करने वाला)
जिस व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति या दुर्घटना का भय हो वह वृहस्पतिवार से आरंभ करके आठ दिन तक सुबह व शाम के समय सत्तर बार ह़स्बेयल्ला हुल्ह़सीब पढ़े। वह हर हानि से बचा रहे।
42. अल्-जलील (बड़े व ऊँचे प्रभुत्व वाला)
जो व्यक्ति कस्तूरी (मुश्क) व केसर (जाफरान) से अल जलील लिखकर अपने पास रखे तथा या जलील बहुधा पढ़ा करे आदर, सत्कार व उन्नति पाएगा।
43. अल्-करीम (बहुत कृपा करने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना सोते समय या करीम पढ़ते-पढ़ते सो जाया करे अल्लाह उसे ज्ञानी-ध्यानी का आदर देंगे।
44. अर्-रक़ीब (बड़ी दृष्टिरखने वाला)
जो व्यक्ति रोज सात बार या रक़ीब पढ़कर अपने परिवार धन-सम्पत्ति पर फूँके इन्शा अल्लाह सब आपदाओं से सुरक्षित रहे।
45. अल्-मुजीब (दुआएँ स्वीकार करने वाला)
जो व्यक्ति या मुजीब अधिक मात्रा में पढ़ा करे इन्शा अल्लाह उसकी दुआएँ क़ुबूल होने लगेंगी।
46. अल्-वासे' (बहुत अधिक देने वाला)
जो अधिक मात्रा में या वासे' पढ़ा करे अल्लाह त'आला उसकी आय वृद्धि कर देंगे।
47. अल्-ह़कीम (बुद्धिमान)
जो व्यक्ति अधिक मात्रा में या ह़कीम पढ़ा करे अल्लाह त'आला उसकी बुद्धि का विकास कर देंगे। जिसका कोई कार्य पूरा न होता हो वह कार्य पूरा होगा।
48. अल्-वदूद (बड़ा प्रेम करने वाला)
जो व्यक्ति एक हजार बार या वदूद पढ़कर खाने पर फूँके और अपनी पत्नी के साथ खाना खाए, पति-पत्नी का झगड़ा समाप्त हो और परस्पर प्रेम उत्पन्न हो।
49. अल्-मजीद (बड़ा महान)
जो व्यक्ति किसी संक्रामक रोग जैसे आत्शिक, कोढ़ आदि से पीड़ित हो वह चन्द्रमास की 13, 14, 15 तारीख को रोजे (वृत) रखे और अफ़तार के बाद बे-गिनती या मजीद पढ़े और पानी पर फूँककर पिए तो इन्शा अल्लाह रोग मुक्त हो।
50. अल्-बाइस (मुर्दों को जीवित करने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना सोते समय सीने पर हाथ रखकर 101 बार या बाइस पढ़े वह मन ज्ञान से भर जाएगा।
51. अश्-शहीद (हर जगह उपस्थित और देखने वाला)
जिस व्यक्ति की पत्नी या औलाद आज्ञाकारी न हो वह सुबह के समय उसके माथे पर हाथ रखकर 21 बार या शहीद पढ़कर फूँके, आज्ञाकारी होगी।
52. अल्-ह़क़्क़ (सत्य)
जो व्यक्ति वर्गाकार (चौकोर) कागज के कोनों पर अल्-ह़क़्क़ लिखकर प्रातःकाल हथेली पर रख आसमान की ओर ऊँचा करके दुआ करे, खोया हुआ व्यक्ति या सामान मिल जाए और हानि से बचा रहे।
53. अल्-वकील (कार्य सफल करने वाला)
जो व्यक्ति किसी भी आसमानी आफत या भय के समय बे-गिनती या वकील पढ़े वह हर हानि से बचा रहे। हर इच्छा की पूर्ति के लिए पढ़ना लाभकारी है।
54. अल्-क़वी (बड़ा शक्तिमान)
जो व्यक्ति वास्तव में शत्रु द्वारा पीड़ित हो तथा शत्रु शक्तिशाली हो तो अनगिनत या क़वी पढ़े तो शत्रु से सुरक्षित रहे। (असहनीय स्थिति के अतिरिक्त यह हरगिज़ न पढ़ें)
55. अल्-मतीन (मज़बूत)
जिस स्त्री के दूध न हो उसको अल्-मतीन काग़ज़ पर लिख, धोकर पिलाएँ, खूब दूध होगा। यदि कोई कमजोर व्यक्ति या मतीन पढ़े शक्तिशाली हो। यदि किसी कुकर्मी व्यक्ति पर पढ़ा जाए, वह कुकर्मों को छोड़ दें। इन्शा अल्लाह।
56. अल्-वली (मदद और हिमायत करने वाला)
जो व्यक्ति अपनी बीवी (पत्नी) की आदतों व व्यवहार से अप्रसन्न हो, जब उसके सामने जाए या वली पढ़ा करें, अच्छे व्यवहार की हो जाए। जब कोई कष्ट हो तो जुमे की रात (शुक्रवार की रात) में 1000 बार पढ़ें, कष्ट दूर हो।
57. अल्-ह़मीद (प्रशंसनीय)
जो व्यक्ति 45 दिन तक बराबर एकांत में या हमीद 93 बार पढ़े उसकी सारी बुरी आदतें दूर हो जाएँगी।
58. अल्-मु़ह़सी (गणना करने वाला)
जो व्यक्ति रोटी के 20 टुकड़ों पर रोजाना या मु़ह़सी पढ़कर फूँके और खाए तो सारी सृष्टि उससे प्रेम करने लगे।
59. अल्-मुब्दी (पहली बार पैदा करने वाला)
जो व्यक्ति प्रातः समय गर्भवती स्त्री के पेट पर हाथ रखकर 99 बार या मुब्दी पढ़ेगा उसका गर्भ न तो गिरेगा और न समय से पहले शिशु पैदा होगा।
60. अल्-मु'ईद (दोबारा पैदा करने वाला)
खोए हुए व्यक्ति को वापस लाने के लिए जब घर के सब लोग सो जाएँ, तो घर के चारों कोनों में 70-70 बार या मु'ईद पढ़ें, इन्शा अल्लाह सात दिन में वापस आ जाए या पता चल जाए।
61. अल्-मु़हयी (जीवित करने वाला)
जो व्यक्ति बीमार हो वह या मु़हयी पढ़े या किसी दूसरे बीमार पर फूँके तो रोग मुक्त हो। जो व्यक्ति 89 बार पढ़ अपने ऊपर फूँके, हर प्रकार की कैद से सुरक्षित रहे।
62. अल्-मुमीत (मृत्यु देने वाला)
जिस व्यक्ति का मन वश में न हो वह सोते समय सीने पर हाथ रखकर या मुमीत पढ़ते-पढ़ते सो जाए, मन वश में हो जाए।
63. अल्-ह़ैय्य (सदैव जीवित रहने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना 3000 बार या ह़ैय्य पढ़े कभी बीमार न हो। जो व्यक्ति चीनी के बर्तन पर केसर व गुलाब से लिखकर पानी से धोकर पिए या पिलाए, रोग मुक्त हो।
64. अल्-क़ैय्यूम (सबको क़ायम रखने और संभालने वाला)
जो व्यक्ति अनगिनत या क़ैय्यूम पढ़े तो लोगों में उसका आदर व साख हो। यदि एकांत में बैठकर पढ़े, धनी हो जाए। जो व्यक्ति फ़ज्र की नमाज़ (सुबह की नमाज़) के बाद से सूर्य निकलने तक या ह़ैय्यो या क़ैय्यूम पढ़े उसकी सुस्ती दूर हो।
65. अल्-वाजिद (हर वस्तु को पाने वाला)
जो व्यक्ति खाना खाते समय या वाजिद पढ़े उसके मन में शक्ति, बल तथा प्रकाश उत्पन्न हो।
66. अल्-माज़िद (आदरणीय)
जो व्यक्ति एकांत में या माज़िद इतना पढ़े कि मूर्छित (बेख़ुद) हो जाए तो उसके मन में अल्लाह के रहस्य प्रकट होने लगें। यदि खाने पर पढ़कर खाएँ तो शक्ति प्राप्त हो।
67. अल्-वा़हिदुल अहद (एक अकेला)
जो व्यक्ति रोजाना 1000 बार या वा़िहदुल अहद पढ़ा करे उसके दिल से भय जाता रहे और प्रेम उत्पन्न हो। जिसके औलाद न हो वह लिखकर पास रखे इन्शा अल्लाह औलाद हो।
68. अस्-स़मद (जिसकी कोई इच्छा न हो)
जो व्यक्ति प्रातः समय सजदे में सर रखकर 115 या 125 बार या ़समद पढ़े उसको हर प्रकार सचाई प्राप्त हो। वज़ू करके पढ़े तो किसी अन्य की कोई आवश्यकता न रहे। जब तक पढ़ता रहे भूख का असर न हो।
69. अल्-क़ादिर (सबसे शक्तिमान)
जो व्यक्ति दो रकत नमाज पढ़कर 1000 बार या क़ादिर पढ़े उसके शत्रुओं का विनाश हो (यदि वह सत्य पर हो)। यदि किसी कार्य में बाधा आती हो तो 41 बार पढ़े इन्शा अल्लाह बाधा दूर होगी।
70. अल्-मुक़्तदिर (कुदरत वाला)
जो व्यक्ति सोकर उठने के बाद अनगिनत या मुक़्तदिर पढ़े या कम से कम 20 बार पढ़े उसके सारे काम सरल व ठीक हो जाएँ।
71. अल्-मुक़द्दिम (पहले और आगे करने वाला)
जो व्यक्ति लड़ाई के समय या मुक़द्दिम पढ़ता रहे अल्लाह त'आला उसे शत्रु से आगे व सुरक्षित रखेगा। जो व्यक्ति हर समय पढ़ता रहे अल्लाह त'आला का आज्ञाकारी बन जाएगा।
72. अल्-मुअख़्ख़िर (पीछे और बाद में रखने वाला)
जो व्यक्ति या मुअख़्ख़िर पढ़ता रहे उसे सच्ची तौबा प्राप्त हो। जो व्यक्ति 100 बार रोज पढ़ा करे उसके मन को अल्लाह त'आला का प्रेम प्राप्त हो।
73. अल्-अव्वल (सबसे पहले)
जिस व्यक्ति के पुत्र उत्पन्न न होता हो वह 40 दिन तक 40 बार रोज या अव्वल पढ़े, पुत्र उत्पन्न हो। जो यात्री जुमे (शुक्रवार) के दिन 100 बार पढ़े जल्द सकुशल वापस आए।
74. अल्-आख़िर (सबके बाद)
जो व्यक्ति रोज 1000 बार या आख़िर पढ़े उसके मन से अल्लाह के अतिरिक्त सब का प्रेम मिट जाए तथा इन्शा अल्लाह सारी उम्र के पापों का प्रायश्चित हो जाए और सुखद जीवन अन्त (मृत्यु) हो।
75. अज़्-ज़ाहिर (सामने)
जो व्यक्ति नमाज जुमा के बाद 500 बार या या ज़ाहिर पढ़े उसके मन में अल्लाह का नूर (प्रकाश) उत्पन्न हो।
76. अल्-बा़तिन (गुप्त)
जो व्यक्ति 33 बार रोजाना या बा़ितन पढ़ा करे उस पर गुप्त रहस्य प्रकट होने लगें तथा अल्लाह का प्रेम उसके मन में पैदा हो। जो व्यक्ति दो रकत नमाज पढ़कर हो वल् अव्वलो वल् आख़िरो वज़्ज़ाहिरो वल् बा़ितनो व हु-व' अला कुल्ले शैइन क़दीर पढ़ा करे इन्शा अल्लाह उसकी सारी इच्छाएँ पूरी होंगी।
निःसंदेह अलाह त'आला इन्साफ करने वालों से प्रेम करते हैं।
77. अल्-वाली (काम बनाने वाला)
जो व्यक्ति या वाली पढ़ा करे प्राकृतिक आपदाओं (कुदरती आफतों) से सुरक्षित रहे। मिट्टी की कोरी सकोरी में लिखकर पानी भरकर मकान में छिड़के तो मकान सुरक्षित रहे। यदि 11 बार पढ़कर किसी पर फूँके तो आज्ञाकारी हो।
78. अल् मु-त-'आली (सबसे महान व ऊँचा)
जो व्यक्ति अनगिनत या मु-त'-आली पढ़ा करे उसके समस्त कष्ट दूर हो जाएँ। जो स्त्री मासिक धर्म के समय में पढ़े उसका कष्ट दूर हो।
80. अल्-बर्र (बड़ा अच्छा व्यवहार करने वाला)
जो व्यक्ति शराब पीता हो, बलात्कार आदि बुरी आदतों में पड़ा हो रोजाना 7 बार या बर्र पढ़े, पापों से उसका मन हट जाएगा। यदि बच्चे के पैदा होते ही 7 बार पढ़कर उस पर फूँकें तो बड़े होने तक समस्त आपदाओं (मुसीबतों) से सुरक्षित रहे।
और जिस पर चाहेगा अल्लाह त'आला तवज्जह भी फरमा देगा और अल्लाह त'आला बड़े ज्ञान वाले और बड़े बुद्धिमान हैं।
80. अत्-तव्वाब (क्षमा देने वाला)
जो व्यक्ति चाश्त की नमाज़ के बाद 360 बार ग तव्वाब पढ़े उसे सच्ची तौबा प्राप्त हो। अनगित पढ़े, उसके सारे कार्य सफल हों। यदि किसी जालिम पर 10 बार पढ़े तो उससे सुरक्षा प्राप्त हो।
तुम (सब) को अल्लाह ही के पास जाना है और वह वस्तु पर पूरी कुदरत रखते हैं।
81. अल्-मुन्तक़िम (बदला लेने वाला)
जो व्यक्ति सत्य पर हो और शत्रु से बदला लेने की शक्ति न रखता हो तीन जुमे (शुक्रवार) तक या मुन्तक़िम अनगिनत पढ़े, अल्लाह त'आला खुद बदला लेंगे।
82. अल्-'अफ़ूव्व (बहुत क्षमा करने वाला)
जो व्यक्ति अनगिनत या 'अफ़ूव्व पढ़े अल्लाह त'आला उसे पाप मुक्त कर देंगे।
83. अर्-रऊफ़ (बहुत बड़ा दयालु)
जो व्यक्ति अनगिनत या रऊफ़ पढ़े सृष्टि (मख़लूक़) उस पर दयावान हो और सृष्टि पर। रोजाना 10 बार दरूद शरीफ़ व 10 बार पढ़े तो क्रोध दूर हो। दूसरे क्रोधी व्यक्ति पर पढ़े तो उसका क्रोध दूर हो।
84. मालिक-उल्-मुल्क (सम्राटों का सम्राट)
जो व्यक्ति या मालिक-अल्-मुल्क सदैव पढ़ता रहे अल्लाह त'आला उसको धनी कर देंगे और वह किसी का आश्रित न रहेगा।
85. ज़ुल् जलाल-ए-वल् इकराम (महानता व इनाम देने वाला)
जो व्यक्ति अनगिनत 'या ज़ल जलाल-ए-वल् इकराम' पढ़े अल्लाह उसको आदर-सत्कार एवं उन्नति देंगे। यदि या ज़ल जलाल ए वल्इकराम बेयदे कल् खैर व अन् त अला कुल्ले शै इन क़दीर 100 बार पढ़कर पानी पर फूँककर रोगी को पिलाएँ तो वह रोग मुक्त हो।
86. अल्-मुक़सित (न्याय करने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना या मुक़सित 100 बार पढ़ा करे वह शैतान से सुरक्षित रहेगा। यदि 700 बार रोज पढ़े तो जो इच्छा हो, पूर्ण हो।
अल्लाह तआला के 99 नाम
87. अल्-जाम्ए' (सबको इकट्ठा करने वाला)
जिस व्यक्ति के परिवारजन या साथी बिछुड़ गए हों वह फ़ज्र के साथ स्नान करके आकाश की ओर मुँह करके 10 बार या जामे' पढ़े और एक उँगली बन्द करे। इसी प्रकार हर 10 बार पर एक उँगली बन्द करता जाए। अन्त में दोनों हाथ, मुँह पर फेरे, सब जमा हो जाएँ। यदि कोई वस्तु खो जाए तो अल्लाह-हुम्मा या जामे 'अन्नास-ए-ले यौमिल्ला-रै-ब-फ़ीह-ए-इज्-म'धाल्लती पढ़ा करे वह वस्तु मिल जाए। सच्चे प्रेम के लिए भी यह दुआ प्रमाण है।
88. अल्-ग़नी (आत्म निर्भर)
जो व्यक्ति रोजाना 70 बार या ग़नी पढ़े वह धनी होगा और किसी का आश्रित न रहे। किसी आंतरिक या बाह्य रोग का रोगी अपने शरीर पर या ग़नी पढ़कर फूँके तो रोग मुक्त हो।
89. अल्-मुग़नी (धनी बनाने वाला)
जो व्यक्ति पहले व बाद में 11-11 बार दरूद शरीफ और 1111 बार या मुग़नी पढ़े वह धनी व स्वस्थ होगा। फ़ज्र की नमाज़ के बाद या इशा की नमाज़ के बाद सूरत मुज़म्मिल के साथ पढ़े। जो व्यक्ति दस जुमे (शुक्रवार) तक रोज 1000 बार या मुग़नी पढ़े किसी पर आश्रित न रहे। (कुछ सूफ़ियों ने 10 बार कहा है।)
आप कह दीजिए कि अल्लाह ही हर वस्तु का बनाने वाला है और वही एक है, शक्तिमान है।
90. अल्-मान् ए' (रोक देने वाला)
यदि पत्नी से झगड़ा हो तो बिस्तर पर लेटते समय 20 बार या मान् ए' पढ़ें, झगड़ा दूर हो। आपस में प्रेम बढ़े। अनगिनत पढ़े तो हर कष्ट से सुरक्षित हो। इच्छा पूर्ति हो।
91. अध-धार्र (हानि पहुँचाने वाला)
जो व्यक्ति जुमे (शुक्रवार) की रात्रि में 100 बार या धार्र पढ़े वह समस्त आपदाओं (मुसीबतों) से सुरक्षित रहे। उन्नति पाए।
92. अन्-नाफ़ए' (लाभ देने वाला)
जो व्यक्ति कश्ती या सवारी में सवार होने के बाद या नाफ़ए' पढ़ता रहे, सुरक्षित रहे। यदि किसी भी कार्य आरंभ से पूर्व 41 बार पढ़े कार्य इच्छा अनुसार पूर्ण हो। यदि पत्नी मिलन के समय पढ़े औलाद आज्ञाकारी व नेक प्राप्त हो।
93. अन्-नूर (प्रकाशवान)
जो व्यक्ति शुक्रवार (जुमा) की रात में 7 बार सूरत नूर और 1000 बार या नूर पढ़ा करे उसका मन प्रकाश से भर जाए।
94. अल्-हादी (सीधा रास्ता दिखाने वाला)
जो व्यक्ति हाथ उठाकर आकाश की ओर मुँह करके या हादी पढ़े और मुँह पर हाथ फेरे उसे मार्गदर्शन मिले। जो व्यक्ति 1100 बार या हादी ए हेदे नस्सि रातल मुस्तक़ीम इशा की नमाज के बाद पढ़ा करे, उसकी कोई इच्छा बाकी न रहे।
उसके अतिरिक्त किसी अन्य की इबादत (भक्ति) नहीं। वह अतिमहान है अति बुद्धिमान।
95. अल्-बदी' (अद्वितीय वस्तुओं का आविष्कार करने वाला)
जिस व्यक्ति को कोई दुःख या कष्ट आए 1000 बार या बदी-अस-समा-वात्-ऐ-वल्-अर्ध पढ़े, कष्ट दूर हों।यदि या बदी' पढ़ते-पढ़ते सो जाए, जिस काम का विचार हो, स्वप्न में दिखाई दे। जो व्यक्ति 1200 बार 12 दिन तक या बदी-अल्-'अजाइब्-ए-बिल्ख़ैरे-या बदी' पढ़े उसकी इच्छा पूरा पढ़ने से पहले पूरी हो।
96. अल्-बाक़ी (सदैव शेष रहने वाला)
जो व्यक्ति शुक्रवार (जुमा) की रात को इशा की नमाज के बाद 100 बार या बाक़ी पढ़े उसके सारे नेक काम अल्लाह त'आला स्वीकार कर लेंगे तथा वह हर प्रकार के कष्ट व हानि से सुरक्षित रहेगा।
97. अल्-वारिस (सबके बाद मौजूद रहने वाला)
जो व्यक्ति सूर्योदय के समय 100 बार या वारिस पढ़े, हर दुःख दर्द से सुरक्षित रहे, दीर्घायु हो तथा सुखद जीवन अन्त हो। जो व्यक्ति मग़रिब व इशा के बीच 1000 बार पढ़े हर प्रकार की हैरानी व परेशानी से सुरक्षा पाए।
98. अर्-रशीद (सत्यपथ का मार्गदर्शक)
जो व्यक्ति कार्य या इच्छा की तरकीब न जाने वह मग़रिब और इशा के बीच 1000 बार या रशीद पढ़े, स्वप्न में तरकीब नजर आए या मन में आ जाए। यदि रोजाना पढ़े तो समस्त कठिनाइयाँ दूर हों और व्यापार में वृद्धि हो। इशा के बाद 100 बार पढ़ें तो सब कार्य स्वीकार हों।
99. अस्-स़बूर (बहुत विनम्र)
जो व्यक्ति सूर्योदय से पहले 100 बार या स़बूर पढ़े वह उस दिन कष्ट से सुरक्षा पाए। शत्रुओं तथा ईर्ष्यालुओं (हासिद) के मुख बंद रहें। जो व्यक्ति किसी दुःख में हो वह 1020 बार पढ़े, दूर हो।
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दुआ ए क़ुनूत हिंदी में - Dua e Qunoot in Hindi Mai Pronunciation and translation
Surah Al Maidah in Hindi mein Translation Pronounce सूरह अल-मायदा का हिंदी में अनुवाद उच्चारण
5.1
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ أَوْفُوا۟ بِٱلْعُقُودِ أُحِلَّتْ لَكُم بَهِيمَةُ ٱلْأَنْعَٰمِ إِلَّا مَا يُتْلَىٰ عَلَيْكُمْ غَيْرَ مُحِلِّى ٱلصَّيْدِ وَأَنتُمْ حُرُمٌ إِنَّ ٱللَّهَ يَحْكُمُ مَا يُرِيدُ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू औफू बिल्-अुक़ूदि, उहिल्लत् लकुम् बहीमतुल-अन् आमि इल्ला मा युत्ला अलैकुम् ग़ै-र मुहिल्लिस्-सैदि व अन्तुम् हुरूमुन्, इन्नल्लाह यह़्कुमु मा युरीद
हिंदी अनुवाद
हे वो लोगो जो ईमान लाये हो! प्रतिबंधों का पूर्ण रूप[1] से पालन करो। तुम्हारे लिए सब पशु ह़लाल (वैध) कर दिये गये, परन्तु, जिनका आदेश तुम्हें सुनाया जायेगा, लेकिन एह़राम[2] की स्थिति में शिकार न करो। बेशक अल्लाह जो आदेश चाहता है, देता है।
5.2
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تُحِلُّوا شَعَائِرَ اللَّهِ وَلَا الشَّهْرَ الْحَرَامَ وَلَا الْهَدْيَ وَلَا الْقَلَائِدَ وَلَا آمِّينَ الْبَيْتَ الْحَرَامَ يَبْتَغُونَ فَضْلًا مِّن رَّبِّهِمْ وَرِضْوَانًا ۚ وَإِذَا حَلَلْتُمْ فَاصْطَادُوا ۚ وَلَا يَجْرِمَنَّكُمْ شَنَآنُ قَوْمٍ أَن صَدُّوكُمْ عَنِ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ أَن تَعْتَدُوا ۘ وَتَعَاوَنُوا عَلَى الْبِرِّ وَالتَّقْوَىٰ ۖ وَلَا تَعَاوَنُوا عَلَى الْإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۖ إِنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ ﴾ 2 ﴿
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तुहिल्लू शआ़-इरल्लाहि व लश्शह़रल्-हरा-म व लल्-हद्-य व लल्क़लाइ-द व ला आम्मीनल् बैतल्-हरा-म यब्तग़ू-न फज़्लम् मिर्रब्बिहिम् व रिज़्वानन्, व इज़ा हलल्तुम् फ़स्तादू, व ला यज्रिमन्नकुम श-नआनु क़ौमिन् अन् सद्दूकुम् अनिल् मस्जिदिल्-हरामि अन् तअ्तदू . व तआ़वनू अलल्- बिर्रि वत्तक़्-वा, व ला तआ़वनू अलल्-इस्मि वल-उद्-वानि वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह शदीदुल्-अिक़ाब •
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! अल्लाह की निशानियों[1] (चिन्हों) का अनादर न करो, न सम्मानित मासों का[2], न (ह़ज की) क़ुर्बानी का, न उन (ह़ज की) क़ुर्बानियों का, जिनके गले में पट्टे पड़े हों और न उनका, जो अपने पालनहार की अनुग्रह और उसकी प्रसन्नता की खोज में सम्मानित घर (काबा) की ओर जा रहे हों। जब एह़राम खोल दो, तो शिकार कर सकते हो। तुम्हें किसी गिरोह की शत्रुता इस बात पर न उभार दे कि अत्याचार करने लगो, क्योंकि उन्होंने मस्जिदे-ह़राम से तुम्हें रोक दिया था, सदाचार तथा संयम में एक-दूसरे की सहायता करो तथा पाप और अत्याचार में एक-दूसरे की सहायता न करो और अल्लाह से डरते रहो। निःसंदेह अल्लाह कड़ी यातना देने वाला है।
5.3
حُرِّمَتْ عَلَيْكُمُ الْمَيْتَةُ وَالدَّمُ وَلَحْمُ الْخِنزِيرِ وَمَا أُهِلَّ لِغَيْرِ اللَّهِ بِهِ وَالْمُنْخَنِقَةُ وَالْمَوْقُوذَةُ وَالْمُتَرَدِّيَةُ وَالنَّطِيحَةُ وَمَا أَكَلَ السَّبُعُ إِلَّا مَا ذَكَّيْتُمْ وَمَا ذُبِحَ عَلَى النُّصُبِ وَأَن تَسْتَقْسِمُوا بِالْأَزْلَامِ ۚ ذَٰلِكُمْ فِسْقٌ ۗ الْيَوْمَ يَئِسَ الَّذِينَ كَفَرُوا مِن دِينِكُمْ فَلَا تَخْشَوْهُمْ وَاخْشَوْنِ ۚ الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ الْإِسْلَامَ دِينًا ۚ فَمَنِ اضْطُرَّ فِي مَخْمَصَةٍ غَيْرَ مُتَجَانِفٍ لِّإِثْمٍ ۙ فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
हुर्रिमत् अलैकुमुल्मैततु वद्दमु व लह़्मुल-ख़िन्ज़ीरि व मा उहिल्-ल लिग़ैरिल्लाहि बिही वल्मुन्ख़नि-क़तु वल्मौ क़ूज़तु वल्मु-तरद्दियतु वन्नती-हतु व मा अ-कलस्सबुअु इल्ला मा ज़क्कैतुम्, व मा ज़ुबि-ह अलन्नुसुबि व अन् तस्तक़्सिमू बिल्अज़्लामि, ज़ालिकुम् फिस्क़ुन्, अल्यौ-म य-इसल्लज़ी-न क-फरू मिन् दीनिकुम् फ़ला तख़्शौहुम् वख़्शौनि, अल्यौ-म अक्मल्तु लकुम् दीनकुम् व अत्मम्तु अलैकुम् निअ्मती व रज़ीतु लकुमुल्-इस्ला-म दीनन्, फ़-मनिज़्तुर-र फी मख़्म- सतिन् ग़ै-र मु-तजानिफि ल्-लिइस्मिन्, फ़-इन्नल्ला-ह गफूरुर्रहीम
हिंदी अनुवाद
तुमपर मुर्दार[1] ह़राम (अवैध) कर दिया गया है तथा (बहता हुआ) रक्त, सूअर का मांस, जिसपर अल्लाह से अन्य का नाम पुकारा गया हो, जो श्वास रोध और आघात के कारण, गिरकर और दूसरे के सींग मारने से मरा हो, जिसे हिंसक पशु ने खा लिया हो, -परन्तु इनमें[2] से जिसे तुम वध (ज़िब्ह) कर लो- जिसे थान पर वध किया गया हो और ये कि पाँसे द्वारा अपना भाग निकालो। ये सब आदेश-उल्लंघन के कार्य हैं। आज काफ़िर तुम्हारे धर्म से निराश[3] हो गये हैं। अतः, उनसे न डरो, मुझी से डरो। आज[4] मैंने तुम्हारा धर्म तुम्हारे लिए परिपूर्ण कर दिय है तथा तुमपर अपना पुरस्कार पूरा कर दिया और तुम्हारे लिए इस्लाम को धर्म स्वरूप स्वीकार कर लिया है। फिर जो भूक से आतुर हो जाये, जबकि उसका झुकाव पाप के लिए न हो,(प्राण रक्षा के लिए खा ले) तो निश्चय अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
5.4
يَسْأَلُونَكَ مَاذَا أُحِلَّ لَهُمْ ۖ قُلْ أُحِلَّ لَكُمُ الطَّيِّبَاتُ ۙ وَمَا عَلَّمْتُم مِّنَ الْجَوَارِحِ مُكَلِّبِينَ تُعَلِّمُونَهُنَّ مِمَّا عَلَّمَكُمُ اللَّهُ ۖ فَكُلُوا مِمَّا أَمْسَكْنَ عَلَيْكُمْ وَاذْكُرُوا اسْمَ اللَّهِ عَلَيْهِ ۖ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۚ إِنَّ اللَّهَ سَرِيعُ الْحِسَابِ
यस्अलून-क माज़ा उहिल्-ल लहुम्, क़ुल उहिल्-ल लकुमुत्तय्यिबातु, व मा अल्लम्तुम् मिनल-जवारिहि मुकल्लिबी-न तुअल्लिमूनहुन्-न मिम्मा अल्ल-मकुमुल्लाहु, फ़कुलू मिम्मा अम्-सक्-न अलैकुम् वज़्कुरूस्मल्लाहि अलैहि, वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह सरीअुल हिसाब
हिंदी अनुवाद
वे आपसे प्रश्न करते हैं कि उनके लिए क्या ह़लाल (वैध) किया गया? आप कह दें कि सभी स्वच्छ पवित्र चीजें तुम्हारे लिए ह़लाल कर दी गयी हैं। और उन शिकारी जानवरों का शिकार जिन्हें तुमने उस ज्ञान द्वारा जो अल्लाह ने तुम्हें दिया है, उसमें से कुछ सिखाकर सधाया हो। तो जो (शिकार) वह तुमपर रोक दें उसमें से खाओ और उसपर अल्लाह का नाम[1] लो तथा अल्लाह से डरते रहो। निःसंदेह, अल्लाह शीघ्र ह़िसाब लेने वाला है।
5.5
الْيَوْمَ أُحِلَّ لَكُمُ الطَّيِّبَاتُ ۖ وَطَعَامُ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ حِلٌّ لَّكُمْ وَطَعَامُكُمْ حِلٌّ لَّهُمْ ۖ وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ الْمُؤْمِنَاتِ وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ مِن قَبْلِكُمْ إِذَا آتَيْتُمُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ مُحْصِنِينَ غَيْرَ مُسَافِحِينَ وَلَا مُتَّخِذِي أَخْدَانٍ ۗ وَمَن يَكْفُرْ بِالْإِيمَانِ فَقَدْ حَبِطَ عَمَلُهُ وَهُوَ فِي الْآخِرَةِ مِنَ الْخَاسِرِينَ
अल्यौ-म उहिल्-ल लकुमुत्तय्यिबातु, व तआमुल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब हिल्लुल्लकुम्, व तआ़मुकुम हिल्लुल्लहुम् वल्मुह़्सनातु मिनल-मुअ्मिनाति वल्मुह़्सनातु मिनल्लज़ी-न ऊतुल-किता-ब मिन् क़ब्लिकुम् इज़ा आतैतुमूहुन्-न उजू रहुन्-न मुह़्सिनी – न ग़ै-र मुसाफ़िही-न व ला मुत्तख़िज़ी अख़्दानिन्, व मंय्यक्फुर बिल्ईमानि फ-क़द हबि-त अ-मलुहू, व हु-व फ़िल-आख़ि-रति मिनल-ख़ासिरीन*
हिंदी अनुवाद
आज सब स्वच्छ खाद्य तुम्हारे लिए ह़लाल (वैध) कर दिये गये हैं और ईमान वाली सतवंती स्त्रियाँ तथा उनमें से सतवंती स्त्रियाँ, जो तुमसे पहले पुस्तक दिये गये हैं, जबकि उन्हें उनका महर (विवाह उपहार) चुका दो, विवाह में लाने के लिए, व्यभिचार के लिए नहीं और न प्रेमिका बनाने के लिए। जो ईमान को नकार देगा, उसका सत्कर्म व्यर्थ हो जायेगा तथा परलोक में वह विनाशों में होगा।
5.6
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا قُمْتُمْ إِلَى الصَّلَاةِ فَاغْسِلُوا وُجُوهَكُمْ وَأَيْدِيَكُمْ إِلَى الْمَرَافِقِ وَامْسَحُوا بِرُءُوسِكُمْ وَأَرْجُلَكُمْ إِلَى الْكَعْبَيْنِ ۚ وَإِن كُنتُمْ جُنُبًا فَاطَّهَّرُوا ۚ وَإِن كُنتُم مَّرْضَىٰ أَوْ عَلَىٰ سَفَرٍ أَوْ جَاءَ أَحَدٌ مِّنكُم مِّنَ الْغَائِطِ أَوْ لَامَسْتُمُ النِّسَاءَ فَلَمْ تَجِدُوا مَاءً فَتَيَمَّمُوا صَعِيدًا طَيِّبًا فَامْسَحُوا بِوُجُوهِكُمْ وَأَيْدِيكُم مِّنْهُ ۚ مَا يُرِيدُ اللَّهُ لِيَجْعَلَ عَلَيْكُم مِّنْ حَرَجٍ وَلَٰكِن يُرِيدُ لِيُطَهِّرَكُمْ وَلِيُتِمَّ نِعْمَتَهُ عَلَيْكُمْ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
या अय्युहलज़ी-न आमनू इज़ा क़ुम्तुम् इलस्सलाति फ़ग़्सिलू वुजूहकुम् व ऐदि-यकुम् इलल्-मराफ़िक़ि वम्सहू बिरूऊसिकुम् व अर्जु-लकुम् इलल्कअ्बैनि, व इन् कुन्तुम् जुनुबन् फत्तह़्हरू, व इन् कुन्तुम् मरज़ा औ अला स-फ़रिन् औ जा-अ अ-हदुम् मिन्कुम् मिनल्ग़ा-इति औ लामस्तुमुन्निसा-अ फ़-लम् तजिदू माअन् फ़-तयम्म-मू सईदन् तय्यिबन् फम्सहू बिवुजूहिकुम् व ऐदीकुम् मिन्हु, मा युरीदुल्लाहु लि-यज्अ़-ल अलैकुम् मिन् ह रजिंव्-व लाकिंय्युरीदु लियुतह़्हि-रकुम् व लियुतिम्-म निअ्म-तहू अलैकुम् लअ़ल्लकुम तश्कुरून
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! जब नमाज़ के लिए खड़े हो, तो (पहले) अपने मुँह तथा हाथों को कुहनियों तक धो लो और अपने सिरों का मसह़[1] कर लो तथा अपने पावों को टखनों तक (धो लो) और यदि जनाबत[2] की स्थिति में हो, तो (स्नान करके) पवित्र हो जाओ तथा यदि रोगी अथवा यात्रा में हो अथवा तुममें से कोई शोच से आये अथवा तुमने स्त्रियों को स्पर्श किया हो और तुम जल न पाओ, तो शुध्द धूल से तयम्मुम कर लो और उससे अपने मुखों तथा हाथों का मसह़[3] कर लो। अल्लाह तुम्हारे लिए कोई संकीर्णता (तंगी) नहीं चाहता। परन्तु तुम्हें पवित्र करना चाहता है और ताकि तुमपर अपना पुरस्कार पूरा कर दे और ताकि तुम कृतज्ञ बनो।
5.7
وَاذْكُرُوا نِعْمَةَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَمِيثَاقَهُ الَّذِي وَاثَقَكُم بِهِ إِذْ قُلْتُمْ سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا ۖ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ
वज़्कुरू निअ्-मतल्लाहि अलैकुम व मीसाक़हुल्लज़ी वास-क़कुम् बिही, इज़ क़ुल्तुम् समिअ्ना व अतअ्ना, वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह अलीमुम् बिज़ातिस्सुदूर
हिंदी अनुवाद
तथा अपने ऊपर अल्लाह के पुरस्कार और उस दृढ़ वचन को याद करो, जो तुमसे लिया है। जब तुमने कहाः हमने सुन लिया और आज्ञाकारी हो गये तथा (सुनो!) अल्लाह से डरते रहो। निःसंदेह अल्लाह दिलों के भेदों को भली-भाँति जानने वाला है।
5.8
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُونُوا قَوَّامِينَ لِلَّهِ شُهَدَاءَ بِالْقِسْطِ ۖ وَلَا يَجْرِمَنَّكُمْ شَنَآنُ قَوْمٍ عَلَىٰ أَلَّا تَعْدِلُوا ۚ اعْدِلُوا هُوَ أَقْرَبُ لِلتَّقْوَىٰ ۖ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۚ إِنَّ اللَّهَ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कूनू क़व्वामी-न लिल्लाहि शु-हदा-अ बिल्क़िस्ति, व ला यज्रिमन्नकुम् श-नआनु क़ौमिन् अला अल्ला तअ्दिलू, इअ्दिलू, हु-व अक़्रबु लित्तक़्वा, वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह ख़बीरूम्-बिमा तअ्मलून
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! अल्लाह के लिए खड़े रहने वाले, न्याय के साथ साक्ष्य देने वाले रहो तथा किसी गिरोह की शत्रुता तुम्हें इसपर न उभार दे कि न्याय न करो। वह (अर्थातः सबके साथ न्याय) अल्लाह से डरने के अधिक समीप[1] है। निःसंदेह तुम जो कुछ करते हो, अल्लाह उससे भली-भाँति सूचित है।
5.9
وَعَدَ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ ۙ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ عَظِيمٌ
व-अदल्लाहुल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति, लहुम् मग़्फिरतुंव् व अज्रून अज़ीम
हिंदी अनुवाद
जो लोग ईमान लाये तथा सत्कर्म किये, तो उनसे अल्लाह का वचन है कि उनके लिए क्षमा तथा बड़ा प्रतिफल है।
5.10
وَالَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا أُولَٰئِكَ أَصْحَابُ الْجَحِيمِ
वल्लज़ी-न क-फरू व कज़्ज़बू बिआयातिना उलाइ-क अस्हाबुल-जहीम
हिंदी अनुवाद
तथा जो काफ़िर रहे और हमारी आयतों को मिथ्या कहा, तो वही लोग नारकी हैं।
5.11
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اذْكُرُوا نِعْمَتَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ هَمَّ قَوْمٌ أَن يَبْسُطُوا إِلَيْكُمْ أَيْدِيَهُمْ فَكَفَّ أَيْدِيَهُمْ عَنكُمْ ۖ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۚ وَعَلَى اللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُونَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनुज़्कुरू निअ्- मतल्लाहि अलैकुम इज़् हम्-म क़ौमुन् अंय्यब्सुतू इलैकुम् ऐदि – यहुम् फ़-कफ्-फ़ ऐदि-यहुम् अ़न्कुम्, वत्तक़ुल्ला-ह, व अलल्लाहि फल्य-तवक्कलिल् मुअ्मिनून *
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! अल्लाह के उस उपकार को याद करो, जब एक गिरोह ने तुम्हारी ओर हाथ बढ़ाना[1] चाहा, तो अल्लाह ने उनके हाथों को तुमसे रोक दिया तथा अल्लाह से डरते रहो और ईमान वालों को अल्लाह ही पर निरभर करना चाहिए।
5.12
۞ وَلَقَدْ أَخَذَ اللَّهُ مِيثَاقَ بَنِي إِسْرَائِيلَ وَبَعَثْنَا مِنْهُمُ اثْنَيْ عَشَرَ نَقِيبًا ۖ وَقَالَ اللَّهُ إِنِّي مَعَكُمْ ۖ لَئِنْ أَقَمْتُمُ الصَّلَاةَ وَآتَيْتُمُ الزَّكَاةَ وَآمَنتُم بِرُسُلِي وَعَزَّرْتُمُوهُمْ وَأَقْرَضْتُمُ اللَّهَ قَرْضًا حَسَنًا لَّأُكَفِّرَنَّ عَنكُمْ سَيِّئَاتِكُمْ وَلَأُدْخِلَنَّكُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ ۚ فَمَن كَفَرَ بَعْدَ ذَٰلِكَ مِنكُمْ فَقَدْ ضَلَّ سَوَاءَ السَّبِيلِ
व ल-क़द् अ-ख़ज़ल्लाहु मीसा क़ बनी इस्राई-ल, व बअ़स्-ना मिन्हुमुस्-नै अ-श-र नक़ीबन्, व क़ालल्लाहु इन्नी म-अ़कुम्, ल-इन् अक़म्तुमुस्सला-त व आतैतुमुज़्ज़का-त व आमन्तुम् बिरूसुली व अज़्ज़रतुमूहुम् व अक़्रज़्तुमुल्ला-ह क़र्जन् ह-सनल् ल-उकफ्फिरन्-न अन्कुम् सय्यिआतिकुम् व ल- उद्ख़िलन्नकुम् जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल्-अन्हारू, फ़-मन् क-फ़-र बअ्-द ज़ालि-क मिन्कुम् फ़-क़द् ज़ल्-ल सवाअस्सबील
हिंदी अनुवाद
तथा अल्लाह ने बनी इस्राईल से (भी) दृढ़ वचन लिया था और उनमें बारह प्रमुख नियुक्त कर दिये थे तथा अल्लाह ने कहा था कि मैं तुम्हारे साथ हूँ, यदि तुम नमाज की स्थापना करते रहे, ज़कात देते रहे, मेरे रसूलों पर ईमान (विश्वास) रखे रहे, उन्हें समर्थन देते रहे तथा अल्लाह को उत्तम ऋण देते रहे। (अगर ऐसा हुआ) तो मैं अवश्य तुम्हें तुम्हारे पाप क्षमा कर दूँगा और तुम्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश दूँगा, जिनमें नहरें प्रवाहित होंगी और तुममें से जो इसके पश्चात् भी कुफ़्र (अविश्वास) करेगा, (दरअसल) वह सुपथ[1] से विचलित हो गया।
5.13
فَبِمَا نَقْضِهِم مِّيثَاقَهُمْ لَعَنَّاهُمْ وَجَعَلْنَا قُلُوبَهُمْ قَاسِيَةً ۖ يُحَرِّفُونَ الْكَلِمَ عَن مَّوَاضِعِهِ ۙ وَنَسُوا حَظًّا مِّمَّا ذُكِّرُوا بِهِ ۚ وَلَا تَزَالُ تَطَّلِعُ عَلَىٰ خَائِنَةٍ مِّنْهُمْ إِلَّا قَلِيلًا مِّنْهُمْ ۖ فَاعْفُ عَنْهُمْ وَاصْفَحْ ۚ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ
फबिमा नक़्ज़िहिम मीसाक़हुम् लअन्नाहुम् व जअ़ल्ना क़ुलूबहुम् क़ासि-यतन्. युहर्रिफूनल्कलि-म अम्-मवाज़िअिही, व नसू ह़ज्ज़म् मिम्मा ज़ुक्किरू बिही, व ला तज़ालु तत्तलिअु अला ख़ाइ-नतिम् मिन्हुम इल्ला क़लीलम् मिन्हुम् फ़अ्फु अन्हुम् वस्फ़ह्, इन्नल्ला-ह युहिब्बुल मुह़्सिनीन
हिंदी अनुवाद
तो उनके अपना वचन भंग करने के कारण, हमने उन्हें धिक्कार दिया और उनके दिलों को कड़ा कर दिया। वे अल्लाह की बातों को, उनके वास्तविक स्थानों से फेर देते[1] हैं तथा जिस बात का उन्हें निर्देश दिया गया था, उसे भुला दिया और (अब) आप बराबर उनके किसी न किसी विश्वासघात से सूचित होते रहेंगे, परन्तु उनमें बहुत थोड़े के सिवा, जो ऐसा नहीं करते। अतः आप उन्हें क्षमा कर दें और उन्हें जाने दें। निःसंदेह अल्लाह उपकारियों से प्रेम करता है।
5.14
وَمِنَ الَّذِينَ قَالُوا إِنَّا نَصَارَىٰ أَخَذْنَا مِيثَاقَهُمْ فَنَسُوا حَظًّا مِّمَّا ذُكِّرُوا بِهِ فَأَغْرَيْنَا بَيْنَهُمُ الْعَدَاوَةَ وَالْبَغْضَاءَ إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ ۚ وَسَوْفَ يُنَبِّئُهُمُ اللَّهُ بِمَا كَانُوا يَصْنَعُونَ
व मिनल्लज़ी-न क़ालू इन्ना नसारा अख़ज़्ना मीसाक़हुम् फ़-नसू हज़्ज़म् मिम्मा ज़ुक्किरू बिही, फ़-अग़्रैना बैनहुमुल अदा-व-त वल्बग़्ज़ा-अ इला यौमिल्-क़ियामति, व सौ-फ युनब्बिउहुमुल्लाहु बिमा कानू यस्-नअून
हिंदी अनुवाद
तथा जिन्होंने कहा कि हम नसारा (ईसाई) हैं, हमने उनसे (भी) दृढ़ वचन लिया था, तो उन्हें जिस बात का निर्देश दिया गया था, उसे भुला बैठे, तो प्रलय के दिन तक के लिए हमने उनके बीच शत्रुता तथा पारस्परिक (आपसी) विद्वेष भड़का दिया और शीघ्र ही अल्लाह जो कुछ वे करते रहे हैं, उन्हें[1] बता देगा।
5.15
يَا أَهْلَ الْكِتَابِ قَدْ جَاءَكُمْ رَسُولُنَا يُبَيِّنُ لَكُمْ كَثِيرًا مِّمَّا كُنتُمْ تُخْفُونَ مِنَ الْكِتَابِ وَيَعْفُو عَن كَثِيرٍ ۚ قَدْ جَاءَكُم مِّنَ اللَّهِ نُورٌ وَكِتَابٌ مُّبِينٌ
या अह़्लल्-किताबि क़द् जाअकुम् रसूलुना युबय्यिनु लकुम् कसीरम्-मिम्मा कुन्तुम् तुख़्फू-न मिनल्-किताबि व यअ्फू अन् कसीरिन्, क़द् जाअकुम् मिनल्लाहि नूरूंव्-व किताबुम् मुबीन
हिंदी अनुवाद
हे अह्ले किताब! तुम्हारे पास हमारे रसूल आ गये हैं[1], जो तुम्हारे लिए उन बहुत सी बातों को उजागर कर रहे हैं, जिन्हें तुम छुपा रहे थे और बहुत सी बातों को छोड़ भी रहे हैं। अब तुम्हारे पास अल्लाह की ओर से प्रकाश तथा खुली पुस्तक (कुर्आन) आ गई है।
5.16
يَهْدِي بِهِ اللَّهُ مَنِ اتَّبَعَ رِضْوَانَهُ سُبُلَ السَّلَامِ وَيُخْرِجُهُم مِّنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ بِإِذْنِهِ وَيَهْدِيهِمْ إِلَىٰ صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ
यह़्दी बिहिल्लाहु मनित्त-ब-अ रिज़्वानहू सुबुलस्सलामि व युख़्रिजुहुम् मिनज़्ज़ुलुमाति इलन्नूरि बि -इज़्निही व यह़्दीहिम् इला सिरातिम् मुस्तक़ीम
हिंदी अनुवाद
जिसके द्वारा अल्लाह उन्हें शान्ति का मार्ग दिखा रहा है, जो उसकी प्रसन्नता पर चलते हों, उन्हें अपनी अनुमति से अंधेरों से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाता है और उन्हें सुपथ दिखाता है।
5.17
لَّقَدْ كَفَرَ الَّذِينَ قَالُوا إِنَّ اللَّهَ هُوَ الْمَسِيحُ ابْنُ مَرْيَمَ ۚ قُلْ فَمَن يَمْلِكُ مِنَ اللَّهِ شَيْئًا إِنْ أَرَادَ أَن يُهْلِكَ الْمَسِيحَ ابْنَ مَرْيَمَ وَأُمَّهُ وَمَن فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا ۗ وَلِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا ۚ يَخْلُقُ مَا يَشَاءُ ۚ وَاللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
ल-क़द् क-फरल्लज़ी-न क़ालू इन्नल्ला-ह हुवल्- मसीहुब्नु मर्य-म, क़ुल फ़-मंय्यम्लिकु मिनल्लाहि शैअन् इन् अरा-द अंय्युह़्लिकल्-मसीहब्-न मर्य-म व उम्म-हू व मन् फिलअर्ज़ि जमीअ़न्, व लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि व मा बैनहुमा, यख़्लुक़ु मा यशा-उ, वल्लाहु अला कुल्लि शैइन् क़दीर
हिंदी अनुवाद
निश्चय वे काफ़िर[1] हो गये, जिन्होंने कहा कि मर्यम का पुत्र मसीह़ ही अल्लाह है। (हे नबी!) उनसे कह दो कि यदि अल्ललाह मर्यम के पुत्र और उसकी माता तथा जो भी धरती में है, सबका विनाश कर देना चाहे, तो किसमें शक्ति है कि वह उसे रोक दे? तथा आकाश और धरती और जो भी इनके बीच है, सब अल्लाह ही का राज्य है, वह जो चाहे, उतपन्न करता है तथा वह जो चाहे, कर सकता है।
5.18
وَقَالَتِ الْيَهُودُ وَالنَّصَارَىٰ نَحْنُ أَبْنَاءُ اللَّهِ وَأَحِبَّاؤُهُ ۚ قُلْ فَلِمَ يُعَذِّبُكُم بِذُنُوبِكُم ۖ بَلْ أَنتُم بَشَرٌ مِّمَّنْ خَلَقَ ۚ يَغْفِرُ لِمَن يَشَاءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَاءُ ۚ وَلِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا ۖ وَإِلَيْهِ الْمَصِيرُ
व क़ालतिल्-यहूदु वन्नसारा नह़्नु अब्नाउल्लाहि व अहिब्बाउहू, क़ुल फ़लि-म युअ़ज़्ज़िबुकुम् बिज़ु नूबिकुम्, बल् अन्तुम ब-शरूम् मिम्-मन् ख़-ल-क, यग़्फिरू लिमंय्यशा-उ व युअ़ज़्ज़िबु मंय्यशा-उ, व लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ी व मा बैनहुमा, व इलैहिल-मसीर
हिंदी अनुवाद
तथा यहूदी और ईसाईयों ने कहा कि हम अल्लाह के पुत्र तथा प्रियवर हैं। आप पूछें कि फिर वह तुम्हें तुम्हारे पापों का दण्ड क्यों देता है? बल्कि तुमभी वैसे ही मानव पूरुष हो, जैसे दूसरे हैं, जिनकी उत्पत्ति उसने की है। वह जिसे चाहे, क्षमा कर दे और जिसे चाहे, दण्ड दे तथा आकाश और धरती तथा जो उन दोनों के बीच है, अल्लाह ही का राज्य (अधिपत्य)[1] है और उसी की ओर सबको जाना है।
5.19
يَا أَهْلَ الْكِتَابِ قَدْ جَاءَكُمْ رَسُولُنَا يُبَيِّنُ لَكُمْ عَلَىٰ فَتْرَةٍ مِّنَ الرُّسُلِ أَن تَقُولُوا مَا جَاءَنَا مِن بَشِيرٍ وَلَا نَذِيرٍ ۖ فَقَدْ جَاءَكُم بَشِيرٌ وَنَذِيرٌ ۗ وَاللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
या अह़्लल्-किताबि क़द् जाअकुम् रसूलुना युबय्यिनु लकुम् अला फ़त् रतिम् मिनर्रुसुलि अन् तक़ूलू मा जाअना मिम्-बशीरिंव-व ला नज़ीरिन्, फ़-क़द् जा-अकुम् बशीरूंव् व नज़ीरून्, वल्लाहु अला कुल्लि शैइन् क़दीर*
हिंदी अनुवाद
हे अह्ले किताब! तुम्हारे पास रसुलों के आने का क्रम बंद होने के पश्चात्, हमारे रसूल आ गये[1] हैं, वह तुम्हारे लिए (सत्य को) उजागर कर रहे हैं, ताकि तुम ये न कहो कि हमारे पास कोई शुभ सूचना सुनाने वाला तथा सावधान करने वाला (नबी) नहीं आया, तो तुम्हारे पास शुभ सूचना सुनाने तथा सावधान करने वाला आ गया है तथा अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
5.20
وَإِذْ قَالَ مُوسَىٰ لِقَوْمِهِ يَا قَوْمِ اذْكُرُوا نِعْمَةَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ جَعَلَ فِيكُمْ أَنبِيَاءَ وَجَعَلَكُم مُّلُوكًا وَآتَاكُم مَّا لَمْ يُؤْتِ أَحَدًا مِّنَ الْعَالَمِينَ
व इज़् क़ा-ल मूसा लिक़ौमिही या क़ौमिज़्कुरू निअ् – मतल्लाहि अलैकुम् इज़् ज-अ-ल फ़ीकुम् अम्बिया-अ व ज-अ-लकुम् मुलूकंव्, व आताकुम् मा लम् युअ्ति अ-हदम् मिनल्-आलमीन
हिंदी अनुवाद
तथा याद करो, जब मूसा ने अपनी जाति से कहाः हे मेरी जाति! अपने ऊपर अल्लाह के पुरस्कार को याद करो कि उसने तुममें नबी और शासक बनाये तथा तुम्हें वह कुछ दिया, जो संसार वासियों में किसी को नहीं दिया।
5.21
يَا قَوْمِ ادْخُلُوا الْأَرْضَ الْمُقَدَّسَةَ الَّتِي كَتَبَ اللَّهُ لَكُمْ وَلَا تَرْتَدُّوا عَلَىٰ أَدْبَارِكُمْ فَتَنقَلِبُوا خَاسِرِينَ
या क़ौमिद्ख़ुलुल् अर्ज़ल मुक़द्द-सतल्लती क-तबल्लाहु लकुम् व ला तर्तद्दू अला अदबारिकुम् फ़-तन्क़लिबू ख़ासिरीन
हिंदी अनुवाद
हे मेरी जाति! उस पवित्र धरती (बैतुल मक़्दिस) में प्रवेश कर जाओ, जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दिया है और पीछे न फिरो, अन्यथा असफल हो जाओगे।
5.22
قَالُوا يَا مُوسَىٰ إِنَّ فِيهَا قَوْمًا جَبَّارِينَ وَإِنَّا لَن نَّدْخُلَهَا حَتَّىٰ يَخْرُجُوا مِنْهَا فَإِن يَخْرُجُوا مِنْهَا فَإِنَّا دَاخِلُونَ
क़ालू या मूसा इन्-न फ़ीहा क़ौमन् जब्बारी-न, व इन्ना लन् नद्ख़ु-लहा हत्ता यख़्रूजू मिन्हा, फ़-इंय्यख़्रूजू मिन्हा फ़-इन्ना दाख़िलून
हिंदी अनुवाद
उन्होंने कहाः हे मूसा! उसमें बड़े बलवान लोग हैं और हम उसमें कदापि प्रवेश नहीं करेंगे, जब तक वे उससे निकल न जायें, यदि वे निकल जाते हैं, तभी हम उसमें प्रवेश कर सकते हैं।
5.23
قَالَ رَجُلَانِ مِنَ الَّذِينَ يَخَافُونَ أَنْعَمَ اللَّهُ عَلَيْهِمَا ادْخُلُوا عَلَيْهِمُ الْبَابَ فَإِذَا دَخَلْتُمُوهُ فَإِنَّكُمْ غَالِبُونَ ۚ وَعَلَى اللَّهِ فَتَوَكَّلُوا إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
क़ा-ल रजुलानि मिनल्लज़ी-न यख़ाफू-न अन् अमल्लाहु अलैहिमद्ख़ुलू अलैहिमुल्बा-ब, फ़-इज़ा दख़ल्तुमूहु फ़-इन्नकुम् ग़ालिबू-न, व अलल्लाहि फ़- तवक्कलू इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
हिंदी अनुवाद
उनमें से दो व्यक्तियों ने, जो (अल्लाह से) डरते थे, जिनपर अल्लाह ने पुरस्कार किया था, कहा कि उनपर द्वार से प्रवेश कर जाओ, जबतुम उसमें प्रवेश कर जाओगे, तो निश्चय तुम प्रभुत्वशाली होगे तथा अल्लाह ही पर भरोसा करो, यदि तुम ईमान वाले हो।
5.24
قَالُوا يَا مُوسَىٰ إِنَّا لَن نَّدْخُلَهَا أَبَدًا مَّا دَامُوا فِيهَا ۖ فَاذْهَبْ أَنتَ وَرَبُّكَ فَقَاتِلَا إِنَّا هَاهُنَا قَاعِدُونَ
क़ालू या मूसा इन्ना लन् नद्ख़ु-लहा अ-बदम् मा दामू फ़ीहा फज़्हब् अन्-त व रब्बु-क फ़क़ातिला इन्ना हाहुना क़ाअिदून
हिंदी अनुवाद
वे बोलेः हे मूसा! हम उसमें कदापि प्रवेश नहीं करेंगे, जब तक वे उसमें (उपस्थित) रहेंगे, अतः तुम और तुम्हारा पालनहार जाओ, फिर तुम दोनों युध्द करो, हम यहीं बैठे रहेंगे।
5.25
قَالَ رَبِّ إِنِّي لَا أَمْلِكُ إِلَّا نَفْسِي وَأَخِي ۖ فَافْرُقْ بَيْنَنَا وَبَيْنَ الْقَوْمِ الْفَاسِقِينَ
क़ा-ल रब्बि इन्नी ला अम्लिकु इल्ला नफ्सी व अख़ी फ्फरूक़् बैनना व बैनल् क़ौमिल फ़ासिक़ीन
हिंदी अनुवाद
(ये दशा देखकर) मूसा ने कहः हे मेरे पालनहार! मैं अपने और अपने भाई के सिवा किसी पर कोई अधिकार नहीं रखता। अतः तु हमारे तथा अवज्ञाकारी जाति के बीच निर्णय कर दे।
5.26
قَالَ فَإِنَّهَا مُحَرَّمَةٌ عَلَيْهِمْ ۛ أَرْبَعِينَ سَنَةً ۛ يَتِيهُونَ فِي الْأَرْضِ ۚ فَلَا تَأْسَ عَلَى الْقَوْمِ الْفَاسِقِينَ
क़ा-ल फ़-इन्नहा मुहर्र-मतुन् अलैहिम् अरबई-न स-नतन्, यतीहू-न फ़िल्अर्जि, फ़ला तअ्-स अलल् क़ौमिल्-फ़ासिक़ीन *
हिंदी अनुवाद
अल्लाह ने कहाः वह (धरती) उनपर चालीस वर्ष के लिए ह़राम (वर्जित) कर दी गई। वे धरती में फिरते रहेंगे, अतः तुम अवज्ञाकारी जाति पर तरस न खाओ[1]।
5.27
۞ وَاتْلُ عَلَيْهِمْ نَبَأَ ابْنَيْ آدَمَ بِالْحَقِّ إِذْ قَرَّبَا قُرْبَانًا فَتُقُبِّلَ مِنْ أَحَدِهِمَا وَلَمْ يُتَقَبَّلْ مِنَ الْآخَرِ قَالَ لَأَقْتُلَنَّكَ ۖ قَالَ إِنَّمَا يَتَقَبَّلُ اللَّهُ مِنَ الْمُتَّقِينَ
वत्लु अलैहिम् न-बअब्नै आद-म बिल्हक़्क़ि • इज़् क़र्रबा क़ुर्बानन् फतुक़ुब्बि-ल मिन् अ-हदिहिमा व लम् यु-तक़ब्बल् मिनल् आख़रि, क़ा-ल ल-अक़्तुलन्न-क, क़ा-ल इन्नमा य-तक़ब्बलुल्लाहु मिनल् मुत्तक़ीन •
हिंदी अनुवाद
तथा उनेहें आदम के दो पुत्रों का सही समाचार[1] सुना दो, जब दोनों ने एक उपायन (क़ुर्बानी) प्रस्तुत की, तो एक से स्वीकार की गई तथा दूसरे से स्वीकार नहीं की गई। उस (दूसरे) ने कहाः मैं अवश्य तेरी हत्या कर दूँगा। उस (प्रथम) ने कहाः अल्लाह आज्ञाकारों ही से स्वीकार करता है।
5.28
لَئِن بَسَطتَ إِلَيَّ يَدَكَ لِتَقْتُلَنِي مَا أَنَا بِبَاسِطٍ يَدِيَ إِلَيْكَ لِأَقْتُلَكَ ۖ إِنِّي أَخَافُ اللَّهَ رَبَّ الْعَالَمِينَ
ल-इम् बसत्-त इलय्-य य-द-क लितक़्तु-लनी मा अ-ना बिबासितिंय् यदि-य इलै-क लिअक़्तु ल-क, इन्नी अख़ाफुल्ला-ह रब्बल्-आलमीन
हिंदी अनुवाद
यदि तुम मेरी हत्या करने के लिए मेरी ओर हाथ बढ़ाओगे[1], तो भी मैं तुम्हारी ओर तुम्हारी हत्या करने के लिए हाथ बढ़ाने वाला नहीं हूँ। मैं विश्व के पालनहार अल्लाह से डरता हूँ।
5.29
إِنِّي أُرِيدُ أَن تَبُوءَ بِإِثْمِي وَإِثْمِكَ فَتَكُونَ مِنْ أَصْحَابِ النَّارِ ۚ وَذَٰلِكَ جَزَاءُ الظَّالِمِينَ
इन्नी उरीदू अन् तबू-अ बि-इस्मी व इस्मि-क फ़-तकू-न मिन् अस्हाबिन्नारि, व ज़ालि-क जज़ाउज़्ज़ालिमीन
हिंदी अनुवाद
मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी (हत्या के) पाप और अपने पाप के साथ फिरो और नारकी हो जाओ और यही अत्याचारियों का प्रतिकार (बदला) है।
5.30
فَطَوَّعَتْ لَهُ نَفْسُهُ قَتْلَ أَخِيهِ فَقَتَلَهُ فَأَصْبَحَ مِنَ الْخَاسِرِينَ
फ़तव्व-अत् लहू नफ्सुहू क़त्-ल अख़ीहि फ़-क़-त-लहू फ़-अस्ब-ह मिनल् ख़ासिरीन
हिंदी अनुवाद
अंततः, उसने स्वयं को अपने भाई की हत्या पर तैयार कर लिया और विनाशों में हो गया।
5.31
فَبَعَثَ اللَّهُ غُرَابًا يَبْحَثُ فِي الْأَرْضِ لِيُرِيَهُ كَيْفَ يُوَارِي سَوْءَةَ أَخِيهِ ۚ قَالَ يَا وَيْلَتَىٰ أَعَجَزْتُ أَنْ أَكُونَ مِثْلَ هَٰذَا الْغُرَابِ فَأُوَارِيَ سَوْءَةَ أَخِي ۖ فَأَصْبَحَ مِنَ النَّادِمِينَ
फ़-ब-असल्लाहु ग़ुराबंय्यब्हसु फ़िल्अर्ज़ि लियुरि-यहू कै-फ़ युवारी सौअ-त अख़ीहि, क़ा-ल या वै-लता अ- अज़ज़्तु अन् अकू-न मिस्-ल हाज़ल्ग़ुराबि फ़-उवारि-य सौअ-त अख़ी, फ़ अस्ब-ह मिनन्नादिमीन
हिंदी अनुवाद
फिर अल्लाह ने एक कौआ भेजा, जो भूमि कुरेद रहा था, ताकि उसे दिखाये कि अपने भाई के शव को कैसे छुपाये, उसने कहाः मुझपर खेद है! क्या मैं इस कौआ जैसा भी न हो सका कि अपने भाई का शव छुपा सकूँ, फिर बड़ा लज्जित हूआ।
5.32
مِنْ أَجْلِ ذَٰلِكَ كَتَبْنَا عَلَىٰ بَنِي إِسْرَائِيلَ أَنَّهُ مَن قَتَلَ نَفْسًا بِغَيْرِ نَفْسٍ أَوْ فَسَادٍ فِي الْأَرْضِ فَكَأَنَّمَا قَتَلَ النَّاسَ جَمِيعًا وَمَنْ أَحْيَاهَا فَكَأَنَّمَا أَحْيَا النَّاسَ جَمِيعًا ۚ وَلَقَدْ جَاءَتْهُمْ رُسُلُنَا بِالْبَيِّنَاتِ ثُمَّ إِنَّ كَثِيرًا مِّنْهُم بَعْدَ ذَٰلِكَ فِي الْأَرْضِ لَمُسْرِفُونَ
मिन् अज्लि ज़ालि-क, कतब्ना अला बनी इस्राई-ल अन्नहू मन् क़-त-ल नफ़्सम् बिग़ैरि नफ्सिन् औ फ़सादिन् फिल्अर्ज़ि फ़-कअन्नमा क़-तलन्ना-स जमीअन्, व मन् अह़्याहा फ़-कअन्नमा अह़्यन्ना-स जमीअ़न्, व ल-क़द् जाअत्हुम् रूसुलुना बिल्बय्यिनाति, सुम्-म इन्-न कसीरम् मिन्हुम् बअ्-द ज़ालि-क फ़िल्अर्ज़ि ल मुस्रिफून
हिंदी अनुवाद
इसी कारण हमने बनी इस्राईल पर लिख दिया[1] कि जिसने भी किसी प्राणी की हत्या की, किसी प्राणी का ख़ून करने अथवा धरती में विद्रोह के बिना, तो समझो उसने पूरे मनुष्यों की हत्या[2] कर दी और जिसने जीवित रखा एक प्राणी को, तो वास्तव में, उसने जीवित रखा सभी मनुष्यों को तथा उनके पास हमारे रसूल खुली निशानियाँ लाये, फिर भी उनमें से अधिकांश धरती में विद्रोह करने वाले हैं।
5.33
إِنَّمَا جَزَاءُ الَّذِينَ يُحَارِبُونَ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَيَسْعَوْنَ فِي الْأَرْضِ فَسَادًا أَن يُقَتَّلُوا أَوْ يُصَلَّبُوا أَوْ تُقَطَّعَ أَيْدِيهِمْ وَأَرْجُلُهُم مِّنْ خِلَافٍ أَوْ يُنفَوْا مِنَ الْأَرْضِ ۚ ذَٰلِكَ لَهُمْ خِزْيٌ فِي الدُّنْيَا ۖ وَلَهُمْ فِي الْآخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيمٌ
इन्नमा जज़ा-उल्लज़ी-न युहारिबूनल्ला-ह व रसूलहू व यस्औ-न फ़िल्अर्ज़ि फ़सादन् अंय्युक़त्तलू औ युसल्लबू औ तुक़त्त-अ ऐदीहिम् व अर्जुलुहुम मिन् ख़िलाफिन् औ युन्फौ मिनल अर्ज़ि, ज़ालि-क लहुम ख़िज़्युन फिद्दुन्या व लहुम् फिल्-आख़ि-रति अज़ाबुन अज़ीम
हिंदी अनुवाद
जो लोग[1] अल्लाह और उसके रसूल से युध्द करते हों तथा धरती में उपद्रव करते फिर रहे हों, उनका दण्ड ये है कि उनकी हत्या की जाये तथा उन्हें फाँसी दी जाये अथवा उनके हाथ-पाँव विपरीत दिशाओं से काट दिये जायें अथवा उन्हें देश निकाला दे दिया जाये। ये उनके लिए संसार में अपमान है तथा परलोक में उनके लिए इससे बड़ा दण्ड है।
5.34
إِلَّا الَّذِينَ تَابُوا مِن قَبْلِ أَن تَقْدِرُوا عَلَيْهِمْ ۖ فَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
इल्लल्लज़ी-न ताबू मिन् क़ब्लि अन् तक़्दिरू अलैहिम्, फअ्लमू अन्नल्ला-ह ग़फूरूर्रहीम*
हिंदी अनुवाद
परन्तु जो तौबा (क्षमा याचना) कर लें, इससे पहले कि तुम उन्हें अपने नियंत्रण में लाओ, तो तुम जान लो कि अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।
3.35
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَابْتَغُوا إِلَيْهِ الْوَسِيلَةَ وَجَاهِدُوا فِي سَبِيلِهِ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनुत्तक़ुल्ला-ह वब्तग़ू इलैहिल वसी-ल त व जाहिदू फ़ी सबीलिही लअ़ल्लकुम् तुफ्लिहून
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! अल्लाह (की अवज्ञा) से डरते रहो और उसकी ओर वसीला[1] खोजो तथा उसकी राह में जिहाद करो, ताकी तुम सफल हो जाओ।
5.36
إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا لَوْ أَنَّ لَهُم مَّا فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا وَمِثْلَهُ مَعَهُ لِيَفْتَدُوا بِهِ مِنْ عَذَابِ يَوْمِ الْقِيَامَةِ مَا تُقُبِّلَ مِنْهُمْ ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
इन्नल्लज़ी-न क-फरू लौ अन्-न लहुम् मा फिल्अर्ज़ि जमीअंव्-व मिस्लहू म-अहू लियफ्तदू बिही मिन् अज़ाबि यौमिल्-क़ियामति मा तुक़ुब्बि-ल मिन्हुम्, व लहुम् अज़ाबुन् अलीम
हिंदी अनुवाद
जो लोग काफ़िर हैं, यद्यपि धरती के सभी (धन-धान्य) उनके अधिकार (स्वामित्व) में आ जायें और उसी के समान और भी हो, ताकि वे, ये सब प्रलय के दिन की यातना से अर्थ दण्ड स्वरूप देकर मुक्त हो जायें, तो भी उनसे स्वीकार नहीं किया जायेगा और उन्हें दुखदायी यातना होगी।
5.37
يُرِيدُونَ أَن يَخْرُجُوا مِنَ النَّارِ وَمَا هُم بِخَارِجِينَ مِنْهَا ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌ مُّقِيمٌ
युरीदू-न अंय्यख़्रूजू मिनन्नारि व मा हुम् बिख़ारिजी-न मिन्हा, व लहुम् अज़ाबुम् मुक़ीम
हिंदी अनुवाद
वे चाहेंगे कि नरक से निकल जायें, जबकि वे उससे निकल नहीं सकेंगे और उन्हीं के लिए स्थायी यातना है।
5.38
وَالسَّارِقُ وَالسَّارِقَةُ فَاقْطَعُوا أَيْدِيَهُمَا جَزَاءً بِمَا كَسَبَا نَكَالًا مِّنَ اللَّهِ ۗ وَاللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
वस्सारिक़ु वस्सारि-क़तु फ़क़्तअू ऐदि-यहुमा जज़ाअम् बिमा क-सबा नकालम् मिनल्लाहि, वल्लाहु अज़ीज़ुन हकीम
हिंदी अनुवाद
चोर, पुरुष और स्त्री दोनों के हाथ काट दो, उनके करतूत के बदले, जो अल्लाह की ओर से शिक्षाप्रद दण्ड है[1] और अल्लाह प्रभावशाली गुणी है।
5.39
فَمَن تَابَ مِن بَعْدِ ظُلْمِهِ وَأَصْلَحَ فَإِنَّ اللَّهَ يَتُوبُ عَلَيْهِ ۗ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
फ-मन् ता-ब मिम्-बअ्दि ज़ुल्मिही व अस्ल-ह फ़- इन्नल्ला-ह यतूबु अलैहि, इन्नल्ला-ह ग़फूरुर्रहीम
हिंदी अनुवाद
फिर जो अपने अत्याचार (चोरी) के पश्चात् तौबा (क्षमा याचना) कर ले और अपने को सुधार ले, तो अल्लाह उसकी तौबा स्वीकार कर लेगा[1]। निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।
5.40
أَلَمْ تَعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ يُعَذِّبُ مَن يَشَاءُ وَيَغْفِرُ لِمَن يَشَاءُ ۗ وَاللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
अलम् तअ्लम् अन्नल्ला-ह लहू मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि, युअ़ज़्ज़िबु मंय्यशा-उ व यग़्फिरू लिमंय्यशा- उ, वल्लाहु अला कुल्लि शैइन क़दीर
हिंदी अनुवाद
क्या तुम जानते नहीं कि अल्लाह ही के लिए है, आकाशों तथा धरती का राज्य। वह जिसे चाहे, क्षमा कर दे और जिसे चाहे, दण्ड दे तथा अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
5.41
۞ يَا أَيُّهَا الرَّسُولُ لَا يَحْزُنكَ الَّذِينَ يُسَارِعُونَ فِي الْكُفْرِ مِنَ الَّذِينَ قَالُوا آمَنَّا بِأَفْوَاهِهِمْ وَلَمْ تُؤْمِن قُلُوبُهُمْ ۛ وَمِنَ الَّذِينَ هَادُوا ۛ سَمَّاعُونَ لِلْكَذِبِ سَمَّاعُونَ لِقَوْمٍ آخَرِينَ لَمْ يَأْتُوكَ ۖ يُحَرِّفُونَ الْكَلِمَ مِن بَعْدِ مَوَاضِعِهِ ۖ يَقُولُونَ إِنْ أُوتِيتُمْ هَٰذَا فَخُذُوهُ وَإِن لَّمْ تُؤْتَوْهُ فَاحْذَرُوا ۚ وَمَن يُرِدِ اللَّهُ فِتْنَتَهُ فَلَن تَمْلِكَ لَهُ مِنَ اللَّهِ شَيْئًا ۚ أُولَٰئِكَ الَّذِينَ لَمْ يُرِدِ اللَّهُ أَن يُطَهِّرَ قُلُوبَهُمْ ۚ لَهُمْ فِي الدُّنْيَا خِزْيٌ ۖ وَلَهُمْ فِي الْآخِرَةِ عَذَابٌ
या अय्युहर्रसूलु ला यह्ज़ुनकल्लज़ी-न युसारिअू-न फ़िल्कुफ्रि मिनल्लज़ी-न क़ालू आमन्ना बिअफ़्वाहिहिम् व लम् तुअ्मिन् क़ुलूबुहुम्, व मिनल्लज़ी-न हादू, सम्माअू-न लिल्कज़िबि सम्माअू-न लिक़ौमिन् आख़री-न, लम् यअ्तू-क, युहर्रिफूनल्-कलि-म मिम्-बअ्दि मवाज़िअिही, यक़ूलू-न इन् ऊतीतुम् हाज़ा फ़ख़ुज़ूहु व इल्लम् तुअ्तौहू फ़ह़्ज़रू, व मंय्युरिदिल्लाहु फ़ित्-नतहू फ़-लन् तम्लि-क लहू मिनल्लाहि शैअन्, उला-इकल्लज़ी-न लम् युरिदिल्लाहु अंय्युतह़्हि-र क़ुलूबहुम्, लहुम् फ़िद्दुन्या ख़िज़्युंव्-व लहुम् फ़िल्-आख़ि-रति अज़ाबुन् अज़ीम
हिंदी अनुवाद
हे नबी! वे आपको उदासीन न करें, जो कुफ़्र में तीव्र गामी हैं; उनमें से जिन्होंने कहा कि हम ईमान लाये, जबकि उनके दिल ईमान नहीं लाये और उनमें से जो यहूदी हैं, जिनकी दशा ये है कि मिथ्या बातें सुनने के लिए कान लगाये रहते हैं तथा दूसरों के लिए, जो आपके पास नहीं आये, कान लगाये रहते हैं। वे शब्दों को उनके निश्चित स्थानों के पश्चात् वास्तविक अर्थों से फेर देते हैं। वे कहते हैं कि यदि तुम्हें यही आदेश दिया जाये (जो हमने बताया है) तो मान लो और यदि वह न दिये जाओ, तो उससे बचो। (हे नबी!) जिसे अल्लाह अपनी परीक्षा में डालना चाहे, आप उसे अल्लाह से बचाने के लिए कुछ नहीं कर सकते। यही वे हैं, जिनके दिलों को अल्लाह ने पवित्र करना नहीं चाहा। उन्हीं के लिए संसार में अपमान है और उन्हीं के लिए परलोक में घोर[1] यातना है।
5.42
سَمَّاعُونَ لِلْكَذِبِ أَكَّالُونَ لِلسُّحْتِ ۚ فَإِن جَاءُوكَ فَاحْكُم بَيْنَهُمْ أَوْ أَعْرِضْ عَنْهُمْ ۖ وَإِن تُعْرِضْ عَنْهُمْ فَلَن يَضُرُّوكَ شَيْئًا ۖ وَإِنْ حَكَمْتَ فَاحْكُم بَيْنَهُم بِالْقِسْطِ ۚ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُقْسِطِينَ
सम्माअू-न लिल्कज़िबि अक्कालू-न लिस्सुह्ति, फ़- इन् जाऊ-क फ़ह़्कुम् बैनहुम् औ अअ्-रिज़् अन्हुम्, व इन् तुअ्-रिज़् अन्हुम् फ़-लंय्यज़ुर्रू-क शैअन्, व इन् हकम्-त फ़ह़्कुम् बैनहुम् बिल्क़िस्ति, इन्नल्ला-ह युहिब्बुल मुक़्सितीन
हिंदी अनुवाद
वे मिथ्या बातें सुनने वाले, अवैध भक्षी हैं। अतः यदि वे आपके पास आयें, तो आप उनके बीच निर्णय कर दें अथवा उनसे मुँह फेर लें (आपको अधिकार है)। और यदि आप उनसे मुँह फेर लें, तो वे आपको कोई हाणि नहीं पहुँचा सकेंगे और यदि निर्णय करें, तो न्याय के साथ निर्णय करें। निःसंदेह अल्लाह न्यायकारियों से प्रेम करता है।
5.43
وَكَيْفَ يُحَكِّمُونَكَ وَعِندَهُمُ التَّوْرَاةُ فِيهَا حُكْمُ اللَّهِ ثُمَّ يَتَوَلَّوْنَ مِن بَعْدِ ذَٰلِكَ ۚ وَمَا أُولَٰئِكَ بِالْمُؤْمِنِينَ
व कै-फ़ युहक्किमून-क व अिन्दहुमुत्तौरातु फ़ीहा हुक्मुल्लाहि सुम्-मय तवल्लौ-न मिम् बअ्दि ज़ालि-क, व मा उलाइ-क बिल्-मुअ्मिनीन *
हिंदी अनुवाद
और वे आपको निर्णयकारी कैसे बना सकते हैं, जबकि उनके पास तौरात (पुस्तक) मौजूद है, जिसमें अल्लाह का आदेश है, फिर इसके पश्चात उससे मुँह फेर रहे हैं? वास्तव में, वे ईमान वाले हैं ही[1] नहीं।
5.44
إِنَّا أَنزَلْنَا التَّوْرَاةَ فِيهَا هُدًى وَنُورٌ ۚ يَحْكُمُ بِهَا النَّبِيُّونَ الَّذِينَ أَسْلَمُوا لِلَّذِينَ هَادُوا وَالرَّبَّانِيُّونَ وَالْأَحْبَارُ بِمَا اسْتُحْفِظُوا مِن كِتَابِ اللَّهِ وَكَانُوا عَلَيْهِ شُهَدَاءَ ۚ فَلَا تَخْشَوُا النَّاسَ وَاخْشَوْنِ وَلَا تَشْتَرُوا بِآيَاتِي ثَمَنًا قَلِيلًا ۚ وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْكَافِرُونَ
इन्ना अन्ज़ल्नत्तौरा-त फ़ीहा हुदंव्-व नूरून्, यह़्कुमु बिहन्न बिय्यूनल्लज़ी-न अस्लमू लिल्लज़ी-न हादू वर्रब्बानिय्यू-न वल्-अह़्बारू बिमस्तुह़्फ़िज़ू मिन् किताबिल्लाहि व कानू अलैहि शु-हदा-अ, फ़ला तख़्शवुन्ना-स वख़्शौनि व ला तश्तरू बिआयाती स- मनन् क़लीलन्, व मल्लम् यह्कुम् बिमा अन्ज़लल्लाहु फ़-उलाइ-क हुमुल्काफिरून
हिंदी अनुवाद
निःसंदेह, हमने ही तौरात उतारी, जिसमें मार्गदर्शन तथा प्रकाश है, जिसके अनुसार वो नबी निर्णय करते रहे, जो आज्ञाकारी थे, उनके लिए जो यहूदी थे तथा धर्माचारी और विद्वान लोग, क्योंकि वे अल्लाह की पुस्तक के रक्षक बनाये गये थे और उसके (सत्य होने के) साक्षी थे। अतः, तुमभी लोगों से न डरो, मुझी से डरो और मेरी आयतों के बदले तनिक मूल्य न खरीदो और जो अल्लाह की उतारी (पुस्तक के) अनुसार निर्णय न करें, तो वही काफ़िर हैं।
5.45
وَكَتَبْنَا عَلَيْهِمْ فِيهَا أَنَّ النَّفْسَ بِالنَّفْسِ وَالْعَيْنَ بِالْعَيْنِ وَالْأَنفَ بِالْأَنفِ وَالْأُذُنَ بِالْأُذُنِ وَالسِّنَّ بِالسِّنِّ وَالْجُرُوحَ قِصَاصٌ ۚ فَمَن تَصَدَّقَ بِهِ فَهُوَ كَفَّارَةٌ لَّهُ ۚ وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ
व कतब्-ना अलैहिम् फ़ीहा अन्नफ़्-स बिन्नफ्सि, वल्ऐ- न बिल् ऐनि वल्अन्-फ़ बिल् अन्फ़ि वल्अुज़ु-न बिल-उज़ुनि वस्सिन्-न बिस्सिन्नि, वल्-जुरू-ह क़िसासुन, फ़-मन् तसद्द-क़ बिही फ़हु-व कफ्फारतुल्लहू, व मल्लम् यह्कुम् बिमा अन्ज़ लल्लाहु फ़-उलाइ-क हुमुज़्ज़ालिमून
हिंदी अनुवाद
और हमने उन (यहूदियों) पर उस (तौरात) में लिख दिया कि प्राण के बदले प्राण, आँख के बदले आँख, नाक के बदले नाक, कान के बदले कान और दाँत के बदले दाँत[1] हैं तथा सभी आघातों में बराबरी का बदला है। फिर जो कोई बदला लेने को दान (क्षमा) कर दे, तो वह उसके लिए (उसके पापों का) प्रायश्चित हो जायेगा तथा जो अल्लाह की उतारी (पुस्तक के) अनुसार निर्णय न करें, वही अत्याचारी हैं।
5.46
وَقَفَّيْنَا عَلَىٰ آثَارِهِم بِعِيسَى ابْنِ مَرْيَمَ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ التَّوْرَاةِ ۖ وَآتَيْنَاهُ الْإِنجِيلَ فِيهِ هُدًى وَنُورٌ وَمُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ التَّوْرَاةِ وَهُدًى وَمَوْعِظَةً لِّلْمُتَّقِينَ
व क़फ्फैना अला आसारिहिम् बिअीसब्नि मर य-म मुसद्दिक़ल्लिमा बै-न यदैहि मिनत्तौराति, व आतैनाहुल् इन्जी-ल फ़ीहि हुदंव्-व नूरूंव्-व मुसद्दिक़ल्-लिमा बै-न यदैहि मिनत्तौराति व हुदंव्-व मौअि-ज़तल् लिल्मुत्तक़ीन
हिंदी अनुवाद
फिर हमने उन नबियों के पश्चात् मर्यम के पुत्र ईसा को भेजा, उसे सच बताने वाला, जो उसके सामने तौरात थी तथा उसे इंजील प्रदान की, जिसमें मार्गदर्शन तथा प्रकाश है, उसे सच बताने वाली, जो उसके आगे तौरात थी तथा अल्लाह से डरने वालों के लिए सर्वथा मार्गदर्शन तथा शिक्षा थी।
5.47
وَلْيَحْكُمْ أَهْلُ الْإِنجِيلِ بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ فِيهِ ۚ وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ
वल्यह्कुम् अह्लुल्-इन्जीलि बिमा अन्ज़लल्लाहु फ़ीहि, व मल्लम् यह्कुम् बिमा अन्ज़लल्लाहु फ़-उलाइ-क हुमुल फ़ासिक़ून
हिंदी अनुवाद
और इंजील के अनुयायी भी उसीसे निर्णय करें, जो अल्लाह ने उसमें उतारा है और जो उससे निर्णय न करें, जिसे अल्लाह ने उतारा है, वही अधर्मी हैं।
5.48
وَأَنزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ الْكِتَابِ وَمُهَيْمِنًا عَلَيْهِ ۖ فَاحْكُم بَيْنَهُم بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ ۖ وَلَا تَتَّبِعْ أَهْوَاءَهُمْ عَمَّا جَاءَكَ مِنَ الْحَقِّ ۚ لِكُلٍّ جَعَلْنَا مِنكُمْ شِرْعَةً وَمِنْهَاجًا ۚ وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ لَجَعَلَكُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً وَلَٰكِن لِّيَبْلُوَكُمْ فِي مَا آتَاكُمْ ۖ فَاسْتَبِقُوا الْخَيْرَاتِ ۚ إِلَى اللَّهِ مَرْجِعُكُمْ جَمِيعًا فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ
व अन्ज़ल्ना इलैकल्- किता-ब बिल्हक़्क़ि मुसद्दिक़ल्लिमा बै-न यदैहि मिनल्-किताबि व मुहैमिनन् अलैहि फ़ह़्कुम् बैनहुम् बिमा अन्ज़लल्लाहु व ला तत्तबिअ् अह़्वा-अहुम् अम्मा जाअ-क मिनल् हक़्क़ि, लिकुल्लिन् जअ़ल्ना मिन्कुम् शिर्-अतंव् व मिन्हाजन्, व लौ शाअल्लाहु ल-ज-अ-लकुम उम्मतंव्-वाहि-दतंव्-व लाकिल्लियब्लु-वकुम् फी मा आताकुम् फ़स्तबिक़ुल-ख़ैराति, इलल्लाहि मर्जिअुकुम् जमीअ़न् फ़युनब्बिउकुम् बिमा कुन्तुम् फ़ीहि तख़्तलिफून
हिंदी अनुवाद
और (हे नबी!) हमने आपकी ओर सत्य पर आधारित पुस्तक (क़ुर्आन) उतार दी, जो अपने पूर्व की पुस्तकों को सच बताने वाली तथा संरक्षक[1] है, अतः आप लोगों का निर्णय उसीसे करें, जो अल्लाह ने उतारा है तथा उनकी मनमानी पर उस सत्य से विमुख होकर न चलें, जो आपके पास आया है। हमने तुममें से प्रत्येक के लिए एक धर्म विधान तथा एक कार्य प्रणाली बना दिया[2] था और यदि अल्लाह चाहता, तो तुम्हें एक ही समुदाय बना देता, परन्तु उसने जो कुछ दिया है, उसमें तुम्हारी परीक्षा लेना चाहता है। अतः, भलाईयों में एक-दूसरे से अग्रसर होने का प्रयास करो[3], अल्लाह ही की ओर तुम सबको लौटकर जाना है। फिर वह तुम्हें बता देगा, जिन बातों में तुम विभेद करते रहे।
5.49
وَأَنِ احْكُم بَيْنَهُم بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ وَلَا تَتَّبِعْ أَهْوَاءَهُمْ وَاحْذَرْهُمْ أَن يَفْتِنُوكَ عَن بَعْضِ مَا أَنزَلَ اللَّهُ إِلَيْكَ ۖ فَإِن تَوَلَّوْا فَاعْلَمْ أَنَّمَا يُرِيدُ اللَّهُ أَن يُصِيبَهُم بِبَعْضِ ذُنُوبِهِمْ ۗ وَإِنَّ كَثِيرًا مِّنَ النَّاسِ لَفَاسِقُونَ
व अनिह़्कुम् बैनहुम् बिमा अन्जलल्लाहु व ला तत्तबिअ् अह़्वा-अहुम् वह़्ज़रहुम् अंय्यफ्तिनू-क अम्बअ्ज़ि मा अन्ज़लल्लाहु इलै-क, फ़-इन् तवल्लौ फ़अ लम् अन्नमा युरीदुल्लाहु अंय्युसीबहुम् बि-बअ्ज़ि ज़ुनूबिहिम्, व इन्-न कसीरम् मिनन्नासि लफ़ासिक़ून
हिंदी अनुवाद
तथा (हे नबी!) आप उनका निर्णय उसीसे करें, जो अल्लाह ने उतारा है और उनकी मनमानी पर न चलें तथा उनसे सावधान रहें कि आपको जो अल्लाह ने आपकी ओर उतारा है, उसमें से कुछ से फेर न दें। फिर यदि वे मुँह फेरें, तो जान लें कि अल्लाह चाहता है कि उनके कुछ पापों के कारण उन्हें दण्ड दे। वास्तव में, बहुत-से लोग उल्लंघनकारी हैं।
5.50
أَفَحُكْمَ الْجَاهِلِيَّةِ يَبْغُونَ ۚ وَمَنْ أَحْسَنُ مِنَ اللَّهِ حُكْمًا لِّقَوْمٍ يُوقِنُونَ
अ-फ़हुक्मल् जाहिलिय्यति यब्ग़ू-न, व मन् अह्सनु मिनल्लाहि हुक्मल लिक़ौमिंय्यूक़िनून*
हिंदी अनुवाद
तो क्या वे जाहिलिय्यत (अंधकार युग) का निर्णय चाहते हैं? और अल्लाह से अच्छा निर्णय किसका हो सकता है, उनके लिए जो विश्वास रखते हैं?
5.51
۞ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَّخِذُوا الْيَهُودَ وَالنَّصَارَىٰ أَوْلِيَاءَ ۘ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاءُ بَعْضٍ ۚ وَمَن يَتَوَلَّهُم مِّنكُمْ فَإِنَّهُ مِنْهُمْ ۗ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तत्तख़िज़ुल् यहू-द वन्नसारा औलिया-अ • बअ्ज़ुहुम् औलिया-उ बअ्ज़िन्, व मंय्य-तवल्लहुम् मिन्कुम् फ-इन्नहू मिन्हुम्, इन्नल्ला-ह ला यह़्दिल् क़ौमज़-ज़ालिमीन
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! तुम यहूदी तथा ईसाईयों को अपना मित्र न बनाओ, वे एक-दूसरे के मित्र हैं और जो कोई तुममें से उन्हें मित्र बनायेगा, वह उन्हीं में होगा तथा अल्लाह अत्याचारियों को सीधी राह नहीं दिखाता।
5.52
فَتَرَى الَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ يُسَارِعُونَ فِيهِمْ يَقُولُونَ نَخْشَىٰ أَن تُصِيبَنَا دَائِرَةٌ ۚ فَعَسَى اللَّهُ أَن يَأْتِيَ بِالْفَتْحِ أَوْ أَمْرٍ مِّنْ عِندِهِ فَيُصْبِحُوا عَلَىٰ مَا أَسَرُّوا فِي أَنفُسِهِمْ نَادِمِينَ
फ़-तरल्लज़ी-न फी क़ुलूबिहिम् मरजुंय्युसारिअू-न फ़ीहिम् यक़ूलू-न नख़्शा अन् तुसीबना दा-इ-रतुन्, फ़ असल्लाहु अंय्यअ्ति-य बिल्फ़त्हि औ अम्रिम् मिन् अिन्दिही फ़युस्बिहू अला मा असर्रु फ़ी अन्फुसिहिम् नादिमीन
हिंदी अनुवाद
फिर (हे नबी!) आप देखेंगे कि जिनके दिलों में (द्विधा का) रोग है, वे उन्हीं में दौड़े जा रहे हैं, वे कहते हैं कि हम डरते हैं कि हम किसी आपदा के कुचक्र में न आ जायेँ, तो दूर नहीं कि अल्लाह उन्हें विजय प्रदान करेगा अथवा उसके पास से कोई बात हो जायेगी, तो वे लोग उस बात पर, जो उन्होंने अपने मन में छुपा रखी है, लज्जित होंगे।
5.53
وَيَقُولُ الَّذِينَ آمَنُوا أَهَٰؤُلَاءِ الَّذِينَ أَقْسَمُوا بِاللَّهِ جَهْدَ أَيْمَانِهِمْ ۙ إِنَّهُمْ لَمَعَكُمْ ۚ حَبِطَتْ أَعْمَالُهُمْ فَأَصْبَحُوا خَاسِرِينَ
व यक़ू लुल्लज़ी-न आमनू अ-हाउलाइल्लज़ी-न अक़्समू बिल्लाहि जह्-द ऐमानिहिम्, इन्नहुम् ल-म-अकुम्, हबितत् अअ्मालुहुम् फ़अस्बहू ख़ासिरीन
हिंदी अनुवाद
तथा (उस समय) ईमान वाले कहेंगेः क्या यही वे हैं, जो अल्लाह की बड़ी गंभीर शपथें लेकर कहा करते थे कि वे तुम्हारे साथ हैं? इनके कर्म अकारथ गये और अंततः वे असफल हो गये।
5.54
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا مَن يَرْتَدَّ مِنكُمْ عَن دِينِهِ فَسَوْفَ يَأْتِي اللَّهُ بِقَوْمٍ يُحِبُّهُمْ وَيُحِبُّونَهُ أَذِلَّةٍ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ أَعِزَّةٍ عَلَى الْكَافِرِينَ يُجَاهِدُونَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَلَا يَخَافُونَ لَوْمَةَ لَائِمٍ ۚ ذَٰلِكَ فَضْلُ اللَّهِ يُؤْتِيهِ مَن يَشَاءُ ۚ وَاللَّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ
या अय्यु हल्लज़ी-न आमनू मंय्यर्तद्-द मिन्कुम् अन् दीनिही फ़सौ-फ़ यअ्तिल्लाहु बिक़ौमिंय्-युहिब्बुहुम् व युहिब्बूनहू, अज़िल्लतिन् अलल्-मुअ्मिनी-न अअिज़्ज़तिन् अलल्काफ़िरी-न, युजाहिदू-न फ़ी सबीलिल्लाहि व ला यख़ाफून लौ-म त ला-इमिन्, ज़ालि-क फज़्लुल्लाहि युअ्तीहि मंय्यशा-उ, वल्लाहु वासिअुन् अलीम
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! तुममें से जो अपने धर्म से फिर जायेगा, तो अल्लाह (उसके स्थान पर) ऐसे लोगों को पैदा कर देगा, जिनसे वह प्रेम करेगा और वे उससे प्रेम करेंगे। वे ईमान वालों के लिए कोमल तथा काफ़िरों के लिए कड़े[1] होंगे, अल्लाह की राह में जिहाद करेंगे, किसी निंदा करने वाले की निंदा से नहीं डरेंगे। ये अल्लाह की दया है, जिसे चाहे प्रदान करता है और अल्लाह (की दया) विशाल है और वह अति ज्ञानी है।
5.55
إِنَّمَا وَلِيُّكُمُ اللَّهُ وَرَسُولُهُ وَالَّذِينَ آمَنُوا الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُمْ رَاكِعُونَ
इन्नमा वलिय्युकुमुल्लाहु व रसूलुहू वल्लज़ी-न आमनुल्लज़ी-न युक़ीमूनस्सला-त व युअ्तूनज़्ज़का-त व हुम् राकिअून
हिंदी अनुवाद
तुम्हारे सहायक केवल अल्लाह और उसके रसूल तथा वो हैं, जो ईमान लाये, नमाज़ की स्थापना करते हैं, ज़कात देते हैं और अल्लाह के आगे झुकने वाले हैं।
5.56
وَمَن يَتَوَلَّ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَالَّذِينَ آمَنُوا فَإِنَّ حِزْبَ اللَّهِ هُمُ الْغَالِبُونَ
व मंय्य-तवल्लल्ला-ह व रसूलहू वल्लज़ी-न आमनू फ़-इन्-न हिज़्बल्लाहि हुमुल्-ग़ालिबून *
हिंदी अनुवाद
तथा जो अल्लाह और उसके रसूल तथा ईमान वालों को सहायक बनायेगा, तो निश्चय अल्लाह का दल ही छाकर रहेगा।
5.57
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَّخِذُوا الَّذِينَ اتَّخَذُوا دِينَكُمْ هُزُوًا وَلَعِبًا مِّنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ مِن قَبْلِكُمْ وَالْكُفَّارَ أَوْلِيَاءَ ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तत्तख़िज़ुल्लज़ीनत्त ख़ज़ू दीनकुम् हुज़ुवंव्-व लअिबम् मिनल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब मिन् क़ब्लिकुम् वल्कुफ्फ़ा-र औलिया-अ, वत्तक़ुल्ला-ह इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! उन्हें जिन्होंने तुम्हारे धर्म को उपहास तथा खेल बना रखा है, उनमें से, जो तुमसे पहले पुस्तक दिये गये हैं तथा काफ़िरों को सहायक (मित्र) न बनाओ और अल्लाह से डरते रहो, यदि तुम वास्तव में ईमान वाले हो।
5.58
وَإِذَا نَادَيْتُمْ إِلَى الصَّلَاةِ اتَّخَذُوهَا هُزُوًا وَلَعِبًا ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لَّا يَعْقِلُونَ
व इज़ा नादैतुम् इलस्सलातित्-त ख़ज़ूहा हुज़ुवंव्-व लअिबन्, ज़ालि-क बि-अन्नहुम् क़ौमुल्ला यअ्क़िलून
हिंदी अनुवाद
और जब तुम नमाज़ के लिए पुकारते हो, तो वे उसका उपहास करते तथा खेल बनाते हैं, इसलिए कि वे समझ नहीं रखते।
5.59
قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ هَلْ تَنقِمُونَ مِنَّا إِلَّا أَنْ آمَنَّا بِاللَّهِ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْنَا وَمَا أُنزِلَ مِن قَبْلُ وَأَنَّ أَكْثَرَكُمْ فَاسِقُونَ
क़ुल् या अह़्लल्-किताबि हल् तन्क़िमू-न मिन्ना इल्ला अन् आमन्ना बिल्लाहि व मा उन्ज़ि-ल इलैना व मा उन्ज़ि-ल मिन् क़ब्लु, व अन्-न अक्स रकुम् फ़ासिक़ून
हिंदी अनुवाद
(हे नबी!) आप कह दें कि हे अह्ले किताब! इसके सिवा हमारा दोष किया है, जिसका तुम बदला लेना चाहते हो कि हम अल्लाह पर तथा जो हमारी ओर उतारा गया और जो हमसे पूर्व उतारा गया, उसपर ईमान लाये हैं और इसलिए कि तुममें अधिक्तर उल्लंघनकारी हैं?
5.60
قُلْ هَلْ أُنَبِّئُكُم بِشَرٍّ مِّن ذَٰلِكَ مَثُوبَةً عِندَ اللَّهِ ۚ مَن لَّعَنَهُ اللَّهُ وَغَضِبَ عَلَيْهِ وَجَعَلَ مِنْهُمُ الْقِرَدَةَ وَالْخَنَازِيرَ وَعَبَدَ الطَّاغُوتَ ۚ أُولَٰئِكَ شَرٌّ مَّكَانًا وَأَضَلُّ عَن سَوَاءِ السَّبِيلِ
क़ुल हल् उनब्बिउकुम् बि-शर्रिम् मिन ज़ालि-क मसू- बतन् जिन्दल्लाहि, मल्ल-अ नहुल्लाहु व ग़ज़ि-ब अ़लैहि व ज-अ-ल मिन्हुमुल क़ि-र-द-त वल्ख़नाज़ी-र व अ-ब-दत्ताग़ू-त, उलाइ-क शर्रुम् मकानंव्-व अज़ल्लु अन् सवा-इस्सबील
हिंदी अनुवाद
आप उनसे कह दें कि क्या तुम्हें बता दूँ, जिनका प्रतिफल (बदला) अल्लाह के पास इससे भी बुरा है? वे हैं, जिन्हें अल्लाह ने धिक्कार दिया और उनपर उसका प्रकोप हुआ तथा उनमें से बंदर और सूअर बना दिये गये तथा ताग़ूत ( असुर, धर्म विरोधी शक्तियों) को पूजने लगे। इन्हीं का स्थान सबसे बुरा है तथा सर्वाधिक कुपथ हैं।
5.61
وَإِذَا جَاءُوكُمْ قَالُوا آمَنَّا وَقَد دَّخَلُوا بِالْكُفْرِ وَهُمْ قَدْ خَرَجُوا بِهِ ۚ وَاللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا كَانُوا يَكْتُمُونَ
व इज़ा जाऊकुम् क़ालू आमन्ना व क़द्द-ख़लू बिल्कुफ्रि व हुम् क़द् ख़-रजू बिही, वल्लाहु अअ्लमु बिमा कानू यक्तुमून
हिंदी अनुवाद
जब वे[1] तुम्हारे पास आते हैं, तो कहते हैं कि हम ईमान लाये, जबकि वे कुफ़्र लिए हुए आये और उसी के साथ वापिस हुए तथा अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है, जिसे वे छुपा रहे हैं।
5.62
وَتَرَىٰ كَثِيرًا مِّنْهُمْ يُسَارِعُونَ فِي الْإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ وَأَكْلِهِمُ السُّحْتَ ۚ لَبِئْسَ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ
व तरा कसीरम् मिन्हुम् युसारिअू-न फिल् इस्मि वल् अुदवानि व अक्लिहिमुस्सुह-त, लबिअ्-स मा कानू यअ्मलून
हिंदी अनुवाद
तथा आप उनमें से बहुतों को देखेंगे कि पाप तथा अत्याचार और अपने अवैध खाने में दौड़ रहे हैं। वे बड़ा कुकर्म कर रहे हैं।
5.63
لَوْلَا يَنْهَاهُمُ الرَّبَّانِيُّونَ وَالْأَحْبَارُ عَن قَوْلِهِمُ الْإِثْمَ وَأَكْلِهِمُ السُّحْتَ ۚ لَبِئْسَ مَا كَانُوا يَصْنَعُونَ
लौ ला यन्हाहुमुर्रब्बानिय्यू-न वल्-अह्बारू अन् क़ौलिहिमुल-इस्- म व अक्लिहिमुस्सुह् त, लबिअ्-स मा कानू यस् नअून
हिंदी अनुवाद
उन्हें उनके धर्माचारी तथा विद्वान पाप की बात करने तथा अवैध खाने से क्यों नहीं रोकते? वे बहुत बुरी रीति बना रहे हैं।
5.64
وَقَالَتِ الْيَهُودُ يَدُ اللَّهِ مَغْلُولَةٌ ۚ غُلَّتْ أَيْدِيهِمْ وَلُعِنُوا بِمَا قَالُوا ۘ بَلْ يَدَاهُ مَبْسُوطَتَانِ يُنفِقُ كَيْفَ يَشَاءُ ۚ وَلَيَزِيدَنَّ كَثِيرًا مِّنْهُم مَّا أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ طُغْيَانًا وَكُفْرًا ۚ وَأَلْقَيْنَا بَيْنَهُمُ الْعَدَاوَةَ وَالْبَغْضَاءَ إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ ۚ كُلَّمَا أَوْقَدُوا نَارًا لِّلْحَرْبِ أَطْفَأَهَا اللَّهُ ۚ وَيَسْعَوْنَ فِي الْأَرْضِ فَسَادًا ۚ وَاللَّهُ لَا يُحِبُّ الْمُفْسِدِينَ
व क़ालतिल्-यहूदु यदुल्लाहि मग़्लूलतुन्, ग़ुल्लत् ऐदीहिम् व लुअिनू बिमा क़ालू • बल् यदाहु मब्सूततानि, युन्फ़िक़ु कै-फ़ यशा उ, व ल-यज़ीद्-न्न कसीरम् मिन्हुम् मा उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बि-क तुग़्यानंव्-व कुफ्रन्, व अल्क़ै ना बैनहुमुल्-अदाव-त वल्ब़ग़्ज़ा-अ इला यौमिल् क़ियामति, कुल्लमा औक़दू नारल्-लिल्-हरबि अत्-फ़-अहल्लाहु, व यस्औ-न फिल्अर्ज़ि फ़सादन्, वल्लाहु ला युहिब्बुल् मुफ्सिदीन
हिंदी अनुवाद
तथा यहूदियों ने कहा कि अल्लाह के हाथ बंधे[1] हुए हैं, उन्हीं के हाथ बंधे हुए हैं और वे अपने इस कथन के कारण धिक्कार दिये गये हैं; बल्कि उसके दोनों हाथ खुले हुए हैं, वह जैसे चाहे, व्यय (खर्च) करता है और इनमें से अधिक्तर को, जो (क़ुर्आन) आपके पालनहार की ओर से आपपर उतारा गया है, उल्लंघन तथा कुफ़्र (अविश्वास) में अधिक कर देगा और हमने उनके बीच प्रलय के दिन तक के लिए शत्रुता तथा बैर डाल दिया है। जब कभी वे युध्द की अग्नि सुलगाते हैं, तो अल्लाह उसे बुझा[2] देता है। वे धरती में उपद्रव का प्रयास करते हैं और अल्लाह विद्रोहियों से प्रेम नहीं करता।
5.65
وَلَوْ أَنَّ أَهْلَ الْكِتَابِ آمَنُوا وَاتَّقَوْا لَكَفَّرْنَا عَنْهُمْ سَيِّئَاتِهِمْ وَلَأَدْخَلْنَاهُمْ جَنَّاتِ النَّعِيمِ
व लौ अन्-न अह़्लल्-किताबि आमनू वत्तक़ौ ल-कफ्फर् ना अन्हुम् सय्यिआतिहिम् व ल-अद्ख़ल्नाहुम् जन्नातिन् नईम
हिंदी अनुवाद
और यदि अह्ले किताब ईमान लाते तथा अल्लाह से डरते, तो हम अवश्य उनके दोषों को क्षमा कर देते और उन्हें सुख के स्वर्गों में प्रवेश देते।
5.66
وَلَوْ أَنَّهُمْ أَقَامُوا التَّوْرَاةَ وَالْإِنجِيلَ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْهِم مِّن رَّبِّهِمْ لَأَكَلُوا مِن فَوْقِهِمْ وَمِن تَحْتِ أَرْجُلِهِم ۚ مِّنْهُمْ أُمَّةٌ مُّقْتَصِدَةٌ ۖ وَكَثِيرٌ مِّنْهُمْ سَاءَ مَا يَعْمَلُونَ
व लौ अन्नहुम् अक़ामुत्तौरा-त वल् इन्जी-ल व मा उन्ज़ि-ल इलैहिम् मिर्रब्बिहिम् ल-अ-कलू मिन् फौक़िहिम् व मिन् तह़्ति अर्जुलिहिम्, मिन्हुम् उम्मतुम् मुक़्तसि-दतुन्, व कसीरूम् मिन्हुम् सा-अ मा यअ्मलून*
हिंदी अनुवाद
तथा यदि वे स्थापित[1] रखते तौरात और इंजील को और जो भी उनकी ओर उतारा गया है, उनके पालनहार की ओर से, तो अवश्य अपने ऊपर (आकाश) से तथा पैरों के नीचे (धरती) से[2], जीविका पाते। उनमें एक संतुलित समुदाय भी है और उनमें से बहुत-से कुकर्म कर रहे हैं।
5.67
۞ يَا أَيُّهَا الرَّسُولُ بَلِّغْ مَا أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ ۖ وَإِن لَّمْ تَفْعَلْ فَمَا بَلَّغْتَ رِسَالَتَهُ ۚ وَاللَّهُ يَعْصِمُكَ مِنَ النَّاسِ ۗ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الْكَافِرِينَ
या अय्युहर्रसूलु बल्लिग़् मा उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बि-क, व इल्लम् तफ्अल् फ़मा बल्लग़्-त रिसाल-तहू, वल्लाहु यअ्सिमु-क मिनन्नासि, इन्नल्ला-ह ला यह़्दिल क़ौमल-काफ़िरीन
हिंदी अनुवाद
हे रसूल![1] जो कुछ आपपर आपके पालनहार की ओर से उतारा गया है, उसे (सबको) पहुँचा दें और यदि ऐसा नहीं किया, तो आपने उसका उपदेश नहीं पहुँचाया और अल्लाह (विरोधियों से) आपकी रक्षा करेगा[2], निश्चय अल्लाह काफ़िरों को मार्गदर्शन नहीं देता।
5.68
قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لَسْتُمْ عَلَىٰ شَيْءٍ حَتَّىٰ تُقِيمُوا التَّوْرَاةَ وَالْإِنجِيلَ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْكُم مِّن رَّبِّكُمْ ۗ وَلَيَزِيدَنَّ كَثِيرًا مِّنْهُم مَّا أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ طُغْيَانًا وَكُفْرًا ۖ فَلَا تَأْسَ عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ
क़ुल या अह़्लल्-किताबि लस्तुम् अला शैइन् हत्ता तुक़ीमुत्तौरा-त वल्-इन्ज़ी-ल व मा उन्ज़ि-ल इलैकुम मिर्रब्बिकुम्, व ल-यज़ीदन्-न कसीरम्-मिन्हुम् मा उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बि-क तुग़्यानंव्-व कुफ्रन्, फला तअ्-स अलल् क़ौमिल-काफिरीन
हिंदी अनुवाद
(हे नबी!) आप कह दें कि हे अह्ले किताब! तुम किसी धर्म पर नहीं हो, जब तक तौरात तथा इंजील और उस (क़ुर्आन) की स्थापना[1] न करो, जो तुम्हारी ओर तुम्हारे पालनहार की ओर से उतारा गया है तथा उनमें से अधिक्तर को जो (क़ुर्आन) आपके पालनहार की ओर से उतारा गया है, अवश्य उल्लंघन तथा कुफ़्र (अविश्वास) में अधिक कर देगा। अतः, आप काफ़िरों (के अविश्वास) पर दुखी न हों।
5.69
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَالَّذِينَ هَادُوا وَالصَّابِئُونَ وَالنَّصَارَىٰ مَنْ آمَنَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَعَمِلَ صَالِحًا فَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ
इन्नल्लज़ी-न आमनू वल्लज़ी-न हादू वस्साबिऊ-न वन्नसारा मन् आम-न बिल्लाहि वल्यौमिल् आख़िरि व अमि-ल सालिहन फ़ला ख़ौफुन अलैहिम् व ला हुम् यह़्ज़नून
हिंदी अनुवाद
वास्तव में, जो ईमान लाये, जो यहूदी हुए, साबी तथा ईसाई, जो भी अल्लाह तथा अन्तिम दिन (प्रलय) पर ईमान लायेगा तथा सत्कर्म करेगा, तो उन्हीं के लिए कोई डर नहीं और न वे उदासीन[1] होंगे।
5.70
لَقَدْ أَخَذْنَا مِيثَاقَ بَنِي إِسْرَائِيلَ وَأَرْسَلْنَا إِلَيْهِمْ رُسُلًا ۖ كُلَّمَا جَاءَهُمْ رَسُولٌ بِمَا لَا تَهْوَىٰ أَنفُسُهُمْ فَرِيقًا كَذَّبُوا وَفَرِيقًا يَقْتُلُونَ
ल-क़द् अख़ज़्ना मीसा-क़ बनी इस्राई-ल व अरसल्ना इलैहिम् रूसुलन्, कुल्लमा जाअहुम् रसूलुम् बिमा ला तह़्वा अन्फुसुहुम्, फ़रीक़न् कज़्ज़बू व फरीकंय्यक़्तुलून
हिंदी अनुवाद
हमने बनी इस्राईल से दृढ़ वचन लिया तथा उनके पास बहुत-से रसूल भेजे, (परन्तु) जब कभी कोई रसूल उनकी अपनी आकांक्षाओं के विरुध्द कुछ लाया, तो एक गिरोह को उन्होंने झुठला दिया तथा एक गिरोह को वध करते रहे।
5.71
وَحَسِبُوا أَلَّا تَكُونَ فِتْنَةٌ فَعَمُوا وَصَمُّوا ثُمَّ تَابَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ ثُمَّ عَمُوا وَصَمُّوا كَثِيرٌ مِّنْهُمْ ۚ وَاللَّهُ بَصِيرٌ بِمَا يَعْمَلُونَ
व हसिबू अल्ला तकू-न फ़ित् नतुन् फ़-अमू व सम्मू सुम्-म ताबल्लाहु अलैहिम् सुम्-म अमू व सम्मू कसीरूम्-मिन्हुम्, वल्लाहु बसीरूम् बिमा यअ्मलून
हिंदी अनुवाद
तथा वे समझे कि कोई परीक्षा न होगी, इसलिए अंधे-बहरे हो गये, फिर अल्लाह ने उन्हें क्षमा कर दिया, फिर भी उनमें से अधिक्तर अंधे और बहरे हो गये तथा वे जो कुछ कर रहे हैं, अल्लाह उसे देख रहा है।
5.72
لَقَدْ كَفَرَ الَّذِينَ قَالُوا إِنَّ اللَّهَ هُوَ الْمَسِيحُ ابْنُ مَرْيَمَ ۖ وَقَالَ الْمَسِيحُ يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ اعْبُدُوا اللَّهَ رَبِّي وَرَبَّكُمْ ۖ إِنَّهُ مَن يُشْرِكْ بِاللَّهِ فَقَدْ حَرَّمَ اللَّهُ عَلَيْهِ الْجَنَّةَ وَمَأْوَاهُ النَّارُ ۖ وَمَا لِلظَّالِمِينَ مِنْ أَنصَارٍ
ल-क़द् क-फरल्लज़ीन क़ालू इन्नल्ला-ह हुवल् – मसीहुब्नु मर-य-म, व क़ालल्मसीहु या बनी इस्राईल अ्बुदुल्ला-ह रब्बी व रब्बकुम, इन्नहू मंय्युश्रिक् बिल्लाहि फ़-क़द् हर्रमल्लाहु अलैहिल-जन्न-त व मअ्वाहुन्नारू, व मा लिज़्ज़ालिमी-न मिन् अन्सार
हिंदी अनुवाद
निश्चय वे काफ़िर हो गये, जिन्होंने कहा कि अल्लाह[1] मर्यम का पुत्र मसीह़ ही है। जबकि मसीह़ ने कहा थाः हे बनी इस्राईल! उस अल्लाह की इबादत (वंदना) करो, जो मेरा पालनहार तथा तुम्हारा पालनहार है, वास्तव में, जिसने अल्लाह का साझी बना लिया, उसपर अल्लाह ने स्वर्ग को ह़राम (वर्जित) कर दिया और उसका निवास स्थान नरक है तथा अत्याचारों का कोई सहायक न होगा।
5.73
لَّقَدْ كَفَرَ الَّذِينَ قَالُوا إِنَّ اللَّهَ ثَالِثُ ثَلَاثَةٍ ۘ وَمَا مِنْ إِلَٰهٍ إِلَّا إِلَٰهٌ وَاحِدٌ ۚ وَإِن لَّمْ يَنتَهُوا عَمَّا يَقُولُونَ لَيَمَسَّنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
ल-क़द क-फरल्लज़ी-न क़ालू इन्नल्ला-ह सालिसु सलासतिन् • व मा मिन् इलाहिन् इल्ला इलाहुंव्वाहिदुन्, व इल्लम् यन्तहू अम्मा यक़ूलू-न ल-यमस्सन्नल्लज़ी-न क-फरू मिन्हुम् अज़ाबुन अलीम
हिंदी अनुवाद
निश्चय वे भी काफ़िर हो गये, जिन्होंने कहा कि अल्लाह तीन का तीसरा है! जबकि कोई पूज्य नहीं है, परन्तु वही अकेला पूज्य है और यदि वे जो कुछ कहते हैं, उससे नहीं रुके, तो उनमें से काफ़िरों को दुखदायी यातना होगी।
5.74
أَفَلَا يَتُوبُونَ إِلَى اللَّهِ وَيَسْتَغْفِرُونَهُ ۚ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
अ-फ़ला यतूबू न इलल्लाहि व यस्तग़्फिरूनहू, वल्लाहु ग़फूरुर्रहीम
हिंदी अनुवाद
वे अल्लाह से तौबा तथा क्षमा याचना क्यों नहीं करते, जबकि अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है?
5.75
مَّا الْمَسِيحُ ابْنُ مَرْيَمَ إِلَّا رَسُولٌ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهِ الرُّسُلُ وَأُمُّهُ صِدِّيقَةٌ ۖ كَانَا يَأْكُلَانِ الطَّعَامَ ۗ انظُرْ كَيْفَ نُبَيِّنُ لَهُمُ الْآيَاتِ ثُمَّ انظُرْ أَنَّىٰ يُؤْفَكُونَ
मल्मसीहुब्नु मर्-य-म इल्ला रसूलुन्, क़द् ख़-लत् मिन् क़ब्लिहिर्रुसुलु, व उम्मुहू सिद्दीक़तुन्, काना यअ्कुलानित्तआ-म, उन्ज़ुर् कै-फ नुबय्यिनु लहुमुल्-आयाति सुम्मन्ज़ुर् अन्ना युअ्फ़कून
हिंदी अनुवाद
मर्यम का पुत्र मसीह़ इसके सिवा कुछ नहीं कि वह एक रसूल है, उससे पहले भी बहुत-से रसूल हो चुके हैं, उसकी माँ सच्ची थी, दोनों भोजन करते थे, आप देखें कि हम कैसे उनके लिए निशानियाँ (एकेश्वरवाद के लक्षण) उजागर कर रहे हैं, फिर देखिए कि वे कहाँ बहके[1] जा रहे हैं?
5.76
قُلْ أَتَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللَّهِ مَا لَا يَمْلِكُ لَكُمْ ضَرًّا وَلَا نَفْعًا ۚ وَاللَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ
क़ुल अ-तअ्बुदून मिन् दूनिल्लाहि मा ला यम्लिकु लकुम् ज़र्रव् व ला नफ्अन्, वल्लाहु हुवस्समीअुल अलीम
हिंदी अनुवाद
आप उनसे कह दें कि क्या तुम अल्लाह के सिवा उसकी इबादत (वंदना) कर रहे हो, जो तुम्हें कोई हानि और लाभ नहीं पहुँचा सकता? तथा अल्लाह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।
5.77
قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لَا تَغْلُوا فِي دِينِكُمْ غَيْرَ الْحَقِّ وَلَا تَتَّبِعُوا أَهْوَاءَ قَوْمٍ قَدْ ضَلُّوا مِن قَبْلُ وَأَضَلُّوا كَثِيرًا وَضَلُّوا عَن سَوَاءِ السَّبِيلِ
क़ुल या अह़्लल्-किताबि ला तग़्लू फ़ी दीनिकुम् ग़ैरल् -हक़्क़ि व ला तत्तबिअू अह़्वा-अ क़ौमिन् क़द् ज़ल्लू मिन् क़ब्लु व अज़ल्लू कसीरंव्-व ज़ल्लू अन् सवा-इस्सबील*
हिंदी अनुवाद
(हे नबी!) कह दो कि हे अह्ले किताब! अपने धर्म में अवैध अति न करो[1] तथा उनकी अभिलाषाओं पर न चलो, जो तुमसे पहले कुपथ हो[2] चुके और बहुतों को कुपथ कर गये और संमार्ग से विचलित हो गये।
5.78
لُعِنَ الَّذِينَ كَفَرُوا مِن بَنِي إِسْرَائِيلَ عَلَىٰ لِسَانِ دَاوُودَ وَعِيسَى ابْنِ مَرْيَمَ ۚ ذَٰلِكَ بِمَا عَصَوا وَّكَانُوا يَعْتَدُونَ
लुअिनल्लज़ी-न क-फरू मिम्-बनी इस्राई-ल अला लिसानि दावू-द व ईसब्-नि मर्-य-म, ज़ालि-क बिमा असौ व कानू यअ्तदून
हिंदी अनुवाद
बनी इस्राईल में से जो काफ़िर हो गये, वे दावूद तथा मर्यम के पुत्र ईसा की ज़बान पर धिक्कार दिये[1] गये, ये इस कारण कि उन्होंने अवज्ञा की तथी (धर्म की सीमा का) उल्लंघन कर रहे थे।
5.79
كَانُوا لَا يَتَنَاهَوْنَ عَن مُّنكَرٍ فَعَلُوهُ ۚ لَبِئْسَ مَا كَانُوا يَفْعَلُونَ
कानू ला य तनाहौ-न अम् मुन्करिन् फ़ अ़लूहु, लबिअ् -स मा कानू यफ्अलून
हिंदी अनुवाद
वे एक-दूसरे को किसी बुराई से, जो वे करते थे, रोकते नहीं थे, निश्चय वे बड़ी बुराई कर रहे थे[1]।
5.80
تَرَىٰ كَثِيرًا مِّنْهُمْ يَتَوَلَّوْنَ الَّذِينَ كَفَرُوا ۚ لَبِئْسَ مَا قَدَّمَتْ لَهُمْ أَنفُسُهُمْ أَن سَخِطَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ وَفِي الْعَذَابِ هُمْ خَالِدُونَ
तरा कसीरम्-मिन्हुम् य-तवल्लौनल्लज़ी-न क-फरू, लबिअ्-स मा क़द्द-मत् लहुम् अन्फुसुहुम् अन् सख़ितल्लाहु अलैहिम् व फिल-अज़ाबि हुम् ख़ालिदून
हिंदी अनुवाद
आप उनमें से अधिक्तर को देखेंगे कि काफ़िरों को अपना मित्र बना रहे हैं। जो कर्म उन्होंने अपने लिए आगे भेजा है, बहुत बुरा है कि अल्लाह उनपर क्रुध्द हो गया तथा यातना में वही सदावासी होंगे।
5.81
وَلَوْ كَانُوا يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَالنَّبِيِّ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْهِ مَا اتَّخَذُوهُمْ أَوْلِيَاءَ وَلَٰكِنَّ كَثِيرًا مِّنْهُمْ فَاسِقُونَ
व लौ कानू युअ्मिनू-न बिल्लाहि वन्नबिय्यि व मा उन्ज़ि-ल इलैहि मत्त ख़ज़ू हुम् औलिया-अ व लाकिन्-न कसीरम्-मिन्हुम् फ़ासिक़ून
हिंदी अनुवाद
और यदि वे अल्लाह पर तथा नबी पर और जो उनपर उतारा गया, उसपर ईमान लाते, तो उन्हें मित्र न बनाते[1], परन्तु उनमें अधिक्तर उल्लंघनकारी हैं।
5.82
۞ لَتَجِدَنَّ أَشَدَّ النَّاسِ عَدَاوَةً لِّلَّذِينَ آمَنُوا الْيَهُودَ وَالَّذِينَ أَشْرَكُوا ۖ وَلَتَجِدَنَّ أَقْرَبَهُم مَّوَدَّةً لِّلَّذِينَ آمَنُوا الَّذِينَ قَالُوا إِنَّا نَصَارَىٰ ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّ مِنْهُمْ قِسِّيسِينَ وَرُهْبَانًا وَأَنَّهُمْ لَا يَسْتَكْبِرُونَ
ल-तजिदन्-न अशद्दन्नासि अदा-व तल्-लिल्लज़ी-न आमनुल्-यहू-द वल्लज़ी-न अश्रकू, व ल-तजिदन्-न अक़्र-बहुम् मवद्दतल-लिल्लज़ी-न आमनुल्लज़ी-न क़ालू इन्ना नसारा, ज़ालि-क बिअन्-न मिन्हुम किस्सीसी-न व रूह़्बानंव्-व अन्नहुम् ला यस्तक्बिरून
हिंदी अनुवाद
(हे नबी!) आप उनका, जो ईमान लाये हैं, सबसे कड़ा शत्रु यहूदियों तथा मिश्रणवादियों को पायेंगे और जो ईमान लाये हैं, उनके सबसे अधिक समीप आप उन्हें पायेंगे, जो अपने को ईसाई कहते हैं। ये बात इसलिए है कि उनमें उपासक तथा सन्यासी हैं और वे अभिमान[1] नहीं करते।
5.83
وَإِذَا سَمِعُوا مَا أُنزِلَ إِلَى الرَّسُولِ تَرَىٰ أَعْيُنَهُمْ تَفِيضُ مِنَ الدَّمْعِ مِمَّا عَرَفُوا مِنَ الْحَقِّ ۖ يَقُولُونَ رَبَّنَا آمَنَّا فَاكْتُبْنَا مَعَ الشَّاهِدِينَ
व इज़ा समिअू मा उन्ज़ि-ल इलर्रसूलि तरा अअ्यु- नहुम् तफ़ीज़ु मिनद्दम्अि मिम्मा अ-रफू मिनल्-हक़्क़ि, यक़ूलू-न रब्बना आमन्ना फ़क़्तुब्ना मअश्शाहिदीन
हिंदी अनुवाद
तथा जब वे (ईसाई) उस (क़ुर्आन) को सुनते हैं, जो रसूल पर उतरा है, तो आप देखते हैं कि उनकी आँखें आँसू से उबल रही हैं, उस सत्य के कारण, जिसे उन्होंने पहचान लिया है। वे कहते हैं, हे हमारे पालनहार! हम ईमान ले आये, अतः हमें (सत्य) के साथियों में लिख[1] ले।
5.84
وَمَا لَنَا لَا نُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَمَا جَاءَنَا مِنَ الْحَقِّ وَنَطْمَعُ أَن يُدْخِلَنَا رَبُّنَا مَعَ الْقَوْمِ الصَّالِحِينَ
व मा लना ला नुअ्मिनु बिल्लाहि व मा जा-अना मिनल-हक़्क़ि, व नत्मअु अंय्युद्ख़ि-लना रब्बुना मअल् क़ौमिस्सालिहीन
हिंदी अनुवाद
(तथा कहते हैं) क्या कारण है कि हम अल्लाह पर तथा इस सत्य (क़ुर्आन) पर ईमान (विश्वास) न करें? और हम आशा रखते हैं कि हमारा पालनहार हमें सदाचारियों में सम्मिलित कर देगा।
5.85
فَأَثَابَهُمُ اللَّهُ بِمَا قَالُوا جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا ۚ وَذَٰلِكَ جَزَاءُ الْمُحْسِنِينَ
फ़-असाबहुमुल्लाहु बिमा क़ालू जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल्-अन्हारू ख़ालिदी-न फ़ीहा, व ज़ालि-क जज़ाउल मुह़्सिनीन
हिंदी अनुवाद
तो अल्लाह ने उनके ये कहने के कारण उन्हें ऐसे स्वर्ग प्रदान कर दिये, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं, वे उनमें सदावासी होंगे तथा यही सत्कर्मियों का प्रतिफल (बदला) है।
5.86
وَالَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا أُولَٰئِكَ أَصْحَابُ الْجَحِيمِ
वल्लज़ी-न क-फरू व कज़्ज़बू बिआयातिना उलाइ-क अस्हाबुल जहीम *
हिंदी अनुवाद
तथा जो काफ़िर हो गये और हमारी आयतों को झुठला दिया, तो वही नारकी हैं।
5.87
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تُحَرِّمُوا طَيِّبَاتِ مَا أَحَلَّ اللَّهُ لَكُمْ وَلَا تَعْتَدُوا ۚ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ الْمُعْتَدِينَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तुहर्रिमू तय्यिबाति मा अ -हल्लल्लाहु लकुम् व ला तअ्तदू, इन्नल्ला-ह ला युहिब्बुल् मुअ्तदीन
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! उन स्वच्छ पवित्र चीजों को जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए ह़लाल (वैध) की हैं, ह़राम (अवैध)[1] न करो और सीमा का उल्लंघन न करो। निःसंदेह अल्लाह उल्लंघनकारियों[2] से प्रेम नहीं करता।
5.88
وَكُلُوا مِمَّا رَزَقَكُمُ اللَّهُ حَلَالًا طَيِّبًا ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ الَّذِي أَنتُم بِهِ مُؤْمِنُونَ
व कुलू मिम्मा र-ज़-क़ कुमुल्लाहु हलालन् तय्यिबंव् वत्तक़ुल्लाहल्लज़ी अन्तुम् बिही मुअ्मिनून
हिंदी अनुवाद
तथा उसमें से खाओ, जो ह़लाल (वैध) स्वच्छ चीज़ अल्लाह ने तुम्हें प्रदान की हैं तथा अल्लाह (की अवज्ञा) से डरते रहो, यदि तुम उसीपर ईमान (विश्वास) रखते हो।
5.89
لَا يُؤَاخِذُكُمُ اللَّهُ بِاللَّغْوِ فِي أَيْمَانِكُمْ وَلَٰكِن يُؤَاخِذُكُم بِمَا عَقَّدتُّمُ الْأَيْمَانَ ۖ فَكَفَّارَتُهُ إِطْعَامُ عَشَرَةِ مَسَاكِينَ مِنْ أَوْسَطِ مَا تُطْعِمُونَ أَهْلِيكُمْ أَوْ كِسْوَتُهُمْ أَوْ تَحْرِيرُ رَقَبَةٍ ۖ فَمَن لَّمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلَاثَةِ أَيَّامٍ ۚ ذَٰلِكَ كَفَّارَةُ أَيْمَانِكُمْ إِذَا حَلَفْتُمْ ۚ وَاحْفَظُوا أَيْمَانَكُمْ ۚ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمْ آيَاتِهِ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
ला युआख़िज़ुकुमुल्लाहु बिल्लग़्वि फ़ी ऐमानिकुम् व लाकिंयु आख़िज़ुकुम बिमा अक़्क़त्तुमुल्-ऐमा न, फ़-कफ्फारतुहू इत्आमु अ-श-रति मसाकी-न मिन् औ- सति मा तुत्अिमू-न अह़्लीकुम् औ किस्वतुहुम् औ तह़रीरू र-क़-बतिन्, फ़-मल्लम् यजिद् फ़सियामु सलासति अय्यामिन्, ज़ालि-क कफ्फारतु ऐमानिकुम् इज़ा हलफ्तुम्, वह्फ़ज़ू ऐमानकुम्, कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुम् आयातिही लअल्लकुम् तश्कुरून
हिंदी अनुवाद
अल्लाह तुम्हें तुम्हारी व्यर्थ शपथों[1] पर नहीं पकड़ता, परन्तु जो शपथ जान-बूझ कर ली हो, उसपर रकड़ता है, तो उसका[2] प्रायश्चित दस निर्धनों को भोजन कराना है, उस माध्यमिक भोजन में से, जो तुम अपने परिवार को खिलाते हो अथवा उन्हें वस्त्र दो अथवा एक दास मुक्त करो और जिसे ये सब उपलब्ध न हो, तो तीन दिन रोज़ा रखना है। ये तुम्हारी शपथों का प्रायश्चित है, जब तुम शपथ लो तथा अपनी शपथों की रक्षा करो, इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों (आदेशों) का वर्णन करता है, ताकि तुम उसका उपकार मानो।
5.90
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِنَّمَا الْخَمْرُ وَالْمَيْسِرُ وَالْأَنصَابُ وَالْأَزْلَامُ رِجْسٌ مِّنْ عَمَلِ الشَّيْطَانِ فَاجْتَنِبُوهُ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन्नमल्-ख़म्रू वल्मैसिरू वल् अन्साबु वल अज़्लामु रिज्सुम्-मिन् अ-मलिश्शैतानि फज्तनिबूहु लअल्लकुम् तुफ्लिहून
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! निःसंदेह[1] मदिरा, जुआ, देवस्थान[2] और पाँसे[3] शैतानी मलिन कर्म हैं, अतः इनसे दूर रहो, ताकि तुम सफल हो जाओ।
5.91
إِنَّمَا يُرِيدُ الشَّيْطَانُ أَن يُوقِعَ بَيْنَكُمُ الْعَدَاوَةَ وَالْبَغْضَاءَ فِي الْخَمْرِ وَالْمَيْسِرِ وَيَصُدَّكُمْ عَن ذِكْرِ اللَّهِ وَعَنِ الصَّلَاةِ ۖ فَهَلْ أَنتُم مُّنتَهُونَ
इन्नमा युरीदुश्शैतानु अंय्यूक़ि-अ बैनकुमुल् अदा-व-त वल्-बग़्ज़ा-अ फ़िल्ख़म्रि वल्मैसिरि व यसुद्दकुम् अन् ज़िक्रिल्लाहि व अनि स्सलाति, फ़-हल् अन्तुम् मुन्तहून
हिंदी अनुवाद
शैतान तो यही चाहता है कि शराब (मदिरा) तथा जूए द्वारा तुम्हारे बीच बैर तथा द्वेष डाल दे और तुम्हें अल्लाह की याद तथा नमाज़ से रोक दे, तो क्या तुम रुकोगे या नहीं?
5.92
وَأَطِيعُوا اللَّهَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ وَاحْذَرُوا ۚ فَإِن تَوَلَّيْتُمْ فَاعْلَمُوا أَنَّمَا عَلَىٰ رَسُولِنَا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ
व अतीअुल्ला-ह व अतीअुर्रसू-ल वह्ज़रू, फ़-इन् तवल्लैतुम् फअ्लमू अन्नमा अला रसूलिनल् बलागुल् मुबीन
हिंदी अनुवाद
तथा अल्लाह के आज्ञाकारी रहो, उसके रसूल के आज्ञाकारी रहो तथा (उनकी अवज्ञा से) सावधान रहो। यदि तुम विमुख हुए, तो जान लो कि हमारे रसूल पर केवल खुला उपदेश पहुँचा देना है।
5.93
لَيْسَ عَلَى الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ جُنَاحٌ فِيمَا طَعِمُوا إِذَا مَا اتَّقَوا وَّآمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ ثُمَّ اتَّقَوا وَّآمَنُوا ثُمَّ اتَّقَوا وَّأَحْسَنُوا ۗ وَاللَّهُ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ
लै-स अलल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति जुनाहुन् फ़ीमा तअिमू इज़ा मत्तक़ौ व आमनू व अमिलुस्-सालिहाति सुम्मत्तक़ौ व आमनू सुम्मत्तक़ौ व अह्सनू, वल्लाहु युहिब्बुल मुह्सिनीन *
हिंदी अनुवाद
उनपर जो ईमान लाये तथा सदाचार करते रहे, उसमें कोई दोष नहीं, जो (निषेधाज्ञा से पहले) खा लिया, जब वे अल्लाह से डरते रहे, ईमान पर स्थिर रहे, सत्कर्म करते रहे, फिर डरते और सत्कर्म करते रहे, फिर (रोके गये तो) अल्लाह से डरे और सदाचार करते रहे। अल्लाह सदाचारियों से प्रेम करता[1] है।
5.94
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَيَبْلُوَنَّكُمُ اللَّهُ بِشَيْءٍ مِّنَ الصَّيْدِ تَنَالُهُ أَيْدِيكُمْ وَرِمَاحُكُمْ لِيَعْلَمَ اللَّهُ مَن يَخَافُهُ بِالْغَيْبِ ۚ فَمَنِ اعْتَدَىٰ بَعْدَ ذَٰلِكَ فَلَهُ عَذَابٌ أَلِيمٌ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ल-यब्लुवन्न-कुमुल्लाहु बिशैइम् मिनस्सैदि तनालुहू ऐदीकुम् व रिमाहुकुम् लि-यअ्-लमल्लाहु मंय्यख़ाफुहू बिल्गैबि फ़-मनिअ्तदा बअ्-द ज़ालि-क फ़-लहू अज़ाबुन् अलीमहिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! अल्लाह कुछ शिकार द्वारा जिन तक तुम्हारे हाथ तथा भाले पहुँचेंगे, अवश्य तुम्हारी परीक्षा लेगा, ताकि ये जान ले कि तुममें से कौन उससे बिन देखे डरता है? फिर इस (आदेश) के पश्चात् जिसने (इसका) उल्लंघन किया, तो उसी के लिए दुःखदायी यातना है।
5.95
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَقْتُلُوا الصَّيْدَ وَأَنتُمْ حُرُمٌ ۚ وَمَن قَتَلَهُ مِنكُم مُّتَعَمِّدًا فَجَزَاءٌ مِّثْلُ مَا قَتَلَ مِنَ النَّعَمِ يَحْكُمُ بِهِ ذَوَا عَدْلٍ مِّنكُمْ هَدْيًا بَالِغَ الْكَعْبَةِ أَوْ كَفَّارَةٌ طَعَامُ مَسَاكِينَ أَوْ عَدْلُ ذَٰلِكَ صِيَامًا لِّيَذُوقَ وَبَالَ أَمْرِهِ ۗ عَفَا اللَّهُ عَمَّا سَلَفَ ۚ وَمَنْ عَادَ فَيَنتَقِمُ اللَّهُ مِنْهُ ۗ وَاللَّهُ عَزِيزٌ ذُو انتِقَامٍ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तक़्तुलुस्सै द व अन्तुम् हुरूमुन्, व मन् क़-त-लहू मिन्कुम् मु-तअ़म्मिदन फ-जज़ाउम्-मिस्लु मा क़-त-ल मिनन्न अ़मि यह़्कुमु बिही ज़वा अद् लिम्-मिन्कु म् हद् यम् बालिग़ल कअ्-बति औ कफ़्फ़ारतुन् तआ़मु मसाकी-न औ अद्लु ज़ालि-क सियामल्-लियज़ू-क़ व बा-ल अम्रिही, अफ़ल्लाहु अम्मा स-लफ, व मन् आ द फ़-यन्तक़िमुल्लाहु मिन्हु, वल्लाहु अज़ीजुन जुन्तिक़ाम
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वलो! शिकार न करो[1], जब तुम एह़राम की स्थिति में रहो तथा तुममें से जो कोई जान-बूझ कर ऐसा कर जाये, तो पालतू पशु से शिकार किये पशु जैसा बदला (प्रतिकार) है, जिसका निर्णय तुममें से दो न्यायकारी व्यक्ति करेंगे, जो काबा तक हद्य (उपहार स्वरूप) भेजा जाये। अथवा[2] प्रायश्चित है, जो कुछ निर्धनों का खाना अथवा उसके बराबर रोज़े रखना है। ताकि अपने किये का दुष्परिणाम चखो। इस आदेश से पूर्व जो हुआ, अल्लाह ने उसे क्षमा कर दिया और जो फिर करेगा, अल्लाह उससे बदला लेगा और अल्लाह प्रभुत्वशाली बदला लेने वाला है।
5.96
أُحِلَّ لَكُمْ صَيْدُ الْبَحْرِ وَطَعَامُهُ مَتَاعًا لَّكُمْ وَلِلسَّيَّارَةِ ۖ وَحُرِّمَ عَلَيْكُمْ صَيْدُ الْبَرِّ مَا دُمْتُمْ حُرُمًا ۗ وَاتَّقُوا اللَّهَ الَّذِي إِلَيْهِ تُحْشَرُونَ
उहिल-ल लकुम सैदुल्बह्-रि व तआमुहू मताअल्लकुम् व लिस्सय्या-रति, व हुर्रि-म अ़लैकुम् सैदुल्बर्रि मा दुम्तुम् हुरूमन्, वत्तक़ुल्लाहल्लज़ी इलैहि तुह़्शरून
हिंदी अनुवाद
तथा तुम्हारे लिए जल का शिकार और उसका खाद्य[1] ह़लाल (वैध) कर दिया गया है, तुम्हारे तथा यात्रियों के लाभ के लिए तथा तुमपर थल का शिकार जब तक एह़राम की स्थिति में रहो, ह़राम (अवैध) कर दिया गया है और अल्लाह (की अवज्ञा) से डरते रहो, जिसकी ओर तुम सभी एकत्र किये जाओगे।
5.97
۞ جَعَلَ اللَّهُ الْكَعْبَةَ الْبَيْتَ الْحَرَامَ قِيَامًا لِّلنَّاسِ وَالشَّهْرَ الْحَرَامَ وَالْهَدْيَ وَالْقَلَائِدَ ۚ ذَٰلِكَ لِتَعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَأَنَّ اللَّهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ
ज-अलल्लाहुल कअ्-बतल् बैतल्-हरा-म क़ियामल् लिन्नासि वश्शह्-रल्-हरा-म वल्हद्-य वल्क़लाइ-द, ज़ालि-क लितअ्लमू अन्नल्ला-ह यअ्लमु मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्ज़ि व अन्नल्ला-ह बिकुल्लि शैइन् अलीम
हिंदी अनुवाद
अल्लाह ने आदरणीय घर काबा को लोगों के लिए (शांति तथा एकता की) स्थापना का साधन बना दिया है तथा आदरणीय मासों[1] और (ह़ज) की क़ुर्बानी तथा क़ुर्बानी के पशुओं को, जिन्हें पट्टे पहनाये गये हों। ये इसलिए किया गया ताकि तुम्हें ज्ञान हो जाये कि अल्लाह, जो कुछ आकाशों और जो कुछ धरती में है, सबको जानता है। तथा निःसंदेह अल्लाह प्रत्येक विषय का ज्ञानी है।
5.98
اعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ وَأَنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
इअ्लमू अन्नल्ला-ह शदीदुल् अिक़ाबि व अन्नल्लाहा-ह ग़फूरुर्रहीम
हिंदी अनुवाद
तुम जान लो कि अल्लाह कड़ा दण्ड देने वाला है और ये कि अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् (भी) है।
5.99
مَّا عَلَى الرَّسُولِ إِلَّا الْبَلَاغُ ۗ وَاللَّهُ يَعْلَمُ مَا تُبْدُونَ وَمَا تَكْتُمُونَ
मा अलर्रसूलि इल्लल्-बलाग़ु, वल्लाहु यअ्लमु मा तुब्दू-न व मा तक्तुमून
हिंदी अनुवाद
अल्लाह के रसूल का दायित्व इसके सिवा कुछ नहीं कि उपदेश पहुँचा दे और अल्लाह जो तुम बोलते और जो मन में रखते हो, सब जानता है।
5.100
قُل لَّا يَسْتَوِي الْخَبِيثُ وَالطَّيِّبُ وَلَوْ أَعْجَبَكَ كَثْرَةُ الْخَبِيثِ ۚ فَاتَّقُوا اللَّهَ يَا أُولِي الْأَلْبَابِ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
क़ुल् ला यस्तविल्-ख़बीसु वत्तय्यिबु व लौ अअ्ज-ब-क कस् रतुल ख़बीसि, फत्तक़ुल्ला-ह या उलिल्-अल्बाबि लअ़ल्लकुम् तुफ्लिहून*
हिंदी अनुवाद
(हे नबी!) कह दो कि मलिन तथा पवित्र समान नहीं हो सकते। यद्यपि मलिन की अधिक्ता तुम्हें भा रही हो। तो हे मतिमानो! अल्लाह (की अवज्ञा) से डरो, ताकि तुम सफल हो जाओ[1]।
5.101
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَسْأَلُوا عَنْ أَشْيَاءَ إِن تُبْدَ لَكُمْ تَسُؤْكُمْ وَإِن تَسْأَلُوا عَنْهَا حِينَ يُنَزَّلُ الْقُرْآنُ تُبْدَ لَكُمْ عَفَا اللَّهُ عَنْهَا ۗ وَاللَّهُ غَفُورٌ حَلِيمٌ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तस्अलू अन् अश्या-अ इन् तुब्-द लकुम् तसुअ्कुम्, व इन् तस्अलू अन्हा ही-न युनज़्ज़लुल-क़ुरआनु तुब्-द लकुम्, अफ़ल्लाहु अन्हा, वल्लाहु ग़फूरून् हलीम
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! ऐसी बहुत सी चीज़ों के विषय में प्रश्न न करो, जो यदि तुम्हें बता दी जायें, तो तुम्हें बुरा लग जाये तथा यदि तुम, उनके विषय में, जबकि क़ुर्आन उतर रहा है, प्रश्न करोगे, तो वो तुम्हारे लिए खोल दी जायेंगी। अल्लाह ने तुम्हें क्षमा कर दिया और अल्लाह अति क्षमाशील सहनशील[1] है।
5.102
قَدْ سَأَلَهَا قَوْمٌ مِّن قَبْلِكُمْ ثُمَّ أَصْبَحُوا بِهَا كَافِرِينَ
क़द् स-अ-लहा क़ौमुम् मिन् क़ब्लिकुम् सुम्-म अस्बहू बिहा काफ़िरीन
हिंदी अनुवाद
ऐसे ही प्रश्न एक समुदाय ने तुमसे पहले[1] किये, फिर इसके कारण वे काफ़िर हो गये।
5.103
مَا جَعَلَ اللَّهُ مِن بَحِيرَةٍ وَلَا سَائِبَةٍ وَلَا وَصِيلَةٍ وَلَا حَامٍ ۙ وَلَٰكِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا يَفْتَرُونَ عَلَى اللَّهِ الْكَذِبَ ۖ وَأَكْثَرُهُمْ لَا يَعْقِلُونَ
मा ज-अलल्लाहु मिम् बही-रतिंव् व ला साइ-बतिंव्-व ला वसीलतिंव्-व ला हामिंव्-व लाकिन्नल्लज़ी-न क-फरू यफ्तरू-न अलल्लाहिल्-कज़ि-ब, व अक्सरूहुम् ल यअ्क़िलून
हिंदी अनुवाद
अल्लाह ने बह़ीरा, साइबा, वसीला और ह़ाम, कुछ नहीं बनाया[1] है, परन्तु जो काफ़िर हो गये वे अल्लाह पर झूठ घड़ रहे हैं और उनमें अधिक्तर निर्बोध हैं।
5.104
وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْا إِلَىٰ مَا أَنزَلَ اللَّهُ وَإِلَى الرَّسُولِ قَالُوا حَسْبُنَا مَا وَجَدْنَا عَلَيْهِ آبَاءَنَا ۚ أَوَلَوْ كَانَ آبَاؤُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ شَيْئًا وَلَا يَهْتَدُونَ
व इज़ा क़ी-ल लहुम् तआ़लौ इला मा अन्ज़लल्लाहु व इलर्रसूलि क़ालू हस्बुना मा वजद्ना अलैहि आबा-अना, अ-व लौ का-न आबाउहुम् ला यअ्लमू-न शैअंव्-व ला यह्तदून
हिंदी अनुवाद
और जब उनसे कहा जाता है कि उसकी ओर आओ, जो अल्लाह ने उतारा है तथा रसूल की ओर (आओ), तो कहते हैं, हमें वही बस है, जिसपर हमने अपने पूर्वजों को पाया है, क्या उनके पूर्वज कुछ न जानते रहे हों और न संमार्ग पर रहे हों (तब भी वे उन्हीं के रास्ते पर चलेंगे)?
5.105
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا عَلَيْكُمْ أَنفُسَكُمْ ۖ لَا يَضُرُّكُم مَّن ضَلَّ إِذَا اهْتَدَيْتُمْ ۚ إِلَى اللَّهِ مَرْجِعُكُمْ جَمِيعًا فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू अलैकुम् अन्फु-सकुम्, ला यज़ुर्रूकुम् मन् ज़ल-ल इज़ह्तदैतुम्, इलल्लाहि मर्जिअुकुम् जमीअ़न् फ़युनब्बिउकुम् बिमा कुन्तुम् तअ्मलून
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! तुम अपनी चिन्ता करो, तुम्हें वे हानि नहीं पहुँचा सकेंगे, जो कुपथ हो गये, जब तुम सुपथ पर रहो। अल्लाह की ओर तुम सबको (परलोक में) फिर कर जाना है, फिर वह तुम्हें तुम्हारे[1] कर्मों से सूचित कर देगा।
5.106
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا شَهَادَةُ بَيْنِكُمْ إِذَا حَضَرَ أَحَدَكُمُ الْمَوْتُ حِينَ الْوَصِيَّةِ اثْنَانِ ذَوَا عَدْلٍ مِّنكُمْ أَوْ آخَرَانِ مِنْ غَيْرِكُمْ إِنْ أَنتُمْ ضَرَبْتُمْ فِي الْأَرْضِ فَأَصَابَتْكُم مُّصِيبَةُ الْمَوْتِ ۚ تَحْبِسُونَهُمَا مِن بَعْدِ الصَّلَاةِ فَيُقْسِمَانِ بِاللَّهِ إِنِ ارْتَبْتُمْ لَا نَشْتَرِي بِهِ ثَمَنًا وَلَوْ كَانَ ذَا قُرْبَىٰ ۙ وَلَا نَكْتُمُ شَهَادَةَ اللَّهِ إِنَّا إِذًا لَّمِنَ الْآثِمِينَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू शहादतु बैनिकुम् इजा ह-ज़-र अ-ह-द कुमुल्मौतु हीनल्-वसिय्यति इस्नानि ज़वा अ़द्लिम् मिन्कुम् औ आख़रानि मिन् ग़ैरिकुम् इन अन्तुम् ज़रब्तुम् फ़िल्अर्ज़ि फ़ असाबत्कुम् मुसीबतुल्मौति, तह़्बिसूनहुमा मिम्-बअ्दिस्सलाति फ़युक़्सिमानि बिल्लाहि इनिर्तब्तुम् ला नश्तरी बिही स-मनंव् व लौ का-नज़ा कुर्बा, व ला नक़्तुमु शहा-दतल्लाहि इन्ना इज़ल् लमिनल् आसिमीन
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! यदि किसी के मरण का समय हो, तो वसिय्यत[1] के समय तुममें से दो न्यायकारियों को अथवा तुम्हारे सिवा दो अन्य व्यक्तियों को गवाह बनाये, यदि तुम धरती में यात्रा कर रहे हो और तुम्हें मरण की आपदा आ पहुँचे। उन दोनों को नमाज़ के बाद रोक लो, फिर वे दोनों अल्लाह की शपथ लें, यदि तुम्हें उनपर संदेह हो। वे ये कहें कि हम गवाही के द्वारा कोई मूल्य नहीं खरीदते, यद्यपि वे समीपवर्ती क्यों न हों और न हम अल्लाह की गवाही को छुपाते हैं, यदि हम ऐसा करें, तो हम पापियों में हैं।
5.107
فَإِنْ عُثِرَ عَلَىٰ أَنَّهُمَا اسْتَحَقَّا إِثْمًا فَآخَرَانِ يَقُومَانِ مَقَامَهُمَا مِنَ الَّذِينَ اسْتَحَقَّ عَلَيْهِمُ الْأَوْلَيَانِ فَيُقْسِمَانِ بِاللَّهِ لَشَهَادَتُنَا أَحَقُّ مِن شَهَادَتِهِمَا وَمَا اعْتَدَيْنَا إِنَّا إِذًا لَّمِنَ الظَّالِمِينَ
फ-इन् अुसि-र अला अन्नहुमस्तहक़्क़ा इस्मन् फ़-आख़रानि यक़ू मानि मक़ा-महुमा मिनल्लज़ी नस् -तहक़्-क़ अलैहिमुल्-औलयानि फयुक़्सिमानि बिल्लाहि ल शहादतुना अहक़्क़ु मिन् शहादतिहिमा व मअ्तदैना, इन्ना इज़ल् लमिनज़्ज़ालिमीन
हिंदी अनुवाद
फिर यदि ज्ञान हो जाये कि वे दोनों (साक्षी) किसी पाप के अधिकारी हुए हैं, तो उन दोनों के स्थान पर दो अन्य गवाह खड़े हो जायेँ, उनमें से, जिनका अधिकार पहले दोनों ने दबाया है और वे दोनों शपथ लें कि हमारी गवाही उन दोनों की गवाही से अधिक सही है और हमने कोई अत्याचार नहीं किया है। यदि किया है, तो (निःसंदेह) हम अत्याचारी हैं।
5.108
ذَٰلِكَ أَدْنَىٰ أَن يَأْتُوا بِالشَّهَادَةِ عَلَىٰ وَجْهِهَا أَوْ يَخَافُوا أَن تُرَدَّ أَيْمَانٌ بَعْدَ أَيْمَانِهِمْ ۗ وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاسْمَعُوا ۗ وَاللَّهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الْفَاسِقِينَ
ज़ालि-क अद्ना अंय्यअ्तू बिश्शहा-दति अला वज्हिहा औ यख़ाफू अन् तुरद्-द ऐमानुम् बअ् द ऐमानिहिम्, वत्तक़ुल्ला-ह वस्मअू, वल्लाहु ला यह़्दिल् क़ौमल् फ़ासिक़ीन *
हिंदी अनुवाद
इस प्रकार अधिक आशा है कि वे सही गवाही देंगे अथवा इस बात से डरेंगे कि उनकी शपथों को दूसरी शपथों के पश्चात् न माना जाये। अल्लाह से डरते रहो, (उसका आदेश) सुनो और अल्लाह उल्लंघनकारियों को सीधी राह नहीं[1] दिखाता।
5.109
۞ يَوْمَ يَجْمَعُ اللَّهُ الرُّسُلَ فَيَقُولُ مَاذَا أُجِبْتُمْ ۖ قَالُوا لَا عِلْمَ لَنَا ۖ إِنَّكَ أَنتَ عَلَّامُ الْغُيُوبِ
यौ-म यज्म अुल्लाहुर्रूसु-ल फ़-यक़ूलु माज़ा उजिब्तुम्, क़ालू ला अिल्-म लना, इन्न-क अन्-त अल्लामुल्- ग़ुयूब
हिंदी अनुवाद
जिस दिन अल्लाह सब रसूलों को एकत्र करेगा, फिर उनसे कहेगा कि तुम्हें (तुम्हारी जातियों की ओर से) क्या उत्तर दिया गया? वे कहेंगे कि हमें इसका कोई ज्ञान[1] नहीं। निःसंदेह तू ही सब छुपे तथ्यों का ज्ञानी है।
5.110
إِذْ قَالَ اللَّهُ يَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ اذْكُرْ نِعْمَتِي عَلَيْكَ وَعَلَىٰ وَالِدَتِكَ إِذْ أَيَّدتُّكَ بِرُوحِ الْقُدُسِ تُكَلِّمُ النَّاسَ فِي الْمَهْدِ وَكَهْلًا ۖ وَإِذْ عَلَّمْتُكَ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَالتَّوْرَاةَ وَالْإِنجِيلَ ۖ وَإِذْ تَخْلُقُ مِنَ الطِّينِ كَهَيْئَةِ الطَّيْرِ بِإِذْنِي فَتَنفُخُ فِيهَا فَتَكُونُ طَيْرًا بِإِذْنِي ۖ وَتُبْرِئُ الْأَكْمَهَ وَالْأَبْرَصَ بِإِذْنِي ۖ وَإِذْ تُخْرِجُ الْمَوْتَىٰ بِإِذْنِي ۖ وَإِذْ كَفَفْتُ بَنِي إِسْرَائِيلَ عَنكَ إِذْ جِئْتَهُم بِالْبَيِّنَاتِ فَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْهُمْ إِنْ هَٰذَا إِلَّا سِحْرٌ مُّبِينٌ
इज़् क़ालल्लाहु या ईसब्-न मरयमज़्कुर् निअ्मती अलै-क व अला वालिदति-क. इज़् अय्यत्तु-क बिरूहिल्क़ुदुसि, तुकल्लिमुन्ना-स फ़िल्मह्दि व कह्-लन्, व इज़् अल्लम्तुकल् किता-ब वल्हिक्म त वत्तौरा-त वल्इन्जी-ल, व इज़् तख़्लुक़ु मिनत्तीनि कहै-अतित्तैरि बि-इज़्नी फ़तन्फुख़ु फ़ीहा फ़-तकूनु तैरम् बि-इज़्नी व तुब्रिउल्-अक्म-ह वल्अब्र-स बि-इज़्नी, व इज़् तुख़्रिजुल्मौता बि-इज़्नी, व इज़् कफ़फ्तु बनी इस्राई-ल अन्-क इज़् जिअ्तहुम् बिल्बय्यिनाति फक़ालल्लज़ी-न क-फरू मिन्हुम् इन् हाज़ा इल्ला सिहरूम् मुबीन
हिंदी अनुवाद
तथा याद करो, जब अल्लाह ने कहाः हे मर्यम के पुत्र ईसा! अपने ऊपर तथा अपनी माता के ऊपर मेरा पुरस्कार याद कर, जब मैंने पवित्रात्मा (जिब्रील) द्वारा तुझे समर्थन दिया, तू गहवारे (गोद) में तथा बड़ी आयु में लोगों से बातें कर रहा था तथा तुझे पुस्तक, प्रबोध, तौरात और इंजील की शिक्षा दी, जब तू मेरी अनुमति से मिट्टी से पक्षी का रूप बनाता और उसमें फूँकता, तो वह मेरी अनुमति से वास्तव में पक्षी बन जाता था और तू जन्म से अंधे तथा कोढ़ी को मेरी अनुमति से स्वस्थ कर देता था और जब तू मुर्दों को मेरी अनुमति से जीवित कर देता था और मैंने बनी इस्राईल से तुझे बचाया था, जब तू उनके पास खुली निशानियाँ लाया, तो उनमें से काफ़िरों ने कहा कि ये तो खुले जादू के सिवा कुछ नहीं है।
5.111
وَإِذْ أَوْحَيْتُ إِلَى الْحَوَارِيِّينَ أَنْ آمِنُوا بِي وَبِرَسُولِي قَالُوا آمَنَّا وَاشْهَدْ بِأَنَّنَا مُسْلِمُونَ
व इज़् औहैतु इलल्-हवारिय्यी-न अन् आमिनू बी व बि -रसूली, क़ालू आमन्ना वश्हद् बिअन्नना मुस्लिमून
हिंदी अनुवाद
तथा याद कर, जब मैंने तेरे ह़वारियों के दिलों में ये बात डाल दी कि मुझपर तथा मेरे रसूल (ईसा) पर ईमान लाओ, तो सबने कहा कि हम ईमान लाये और तू साक्षी रह कि हम मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं।
5.112
إِذْ قَالَ الْحَوَارِيُّونَ يَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ هَلْ يَسْتَطِيعُ رَبُّكَ أَن يُنَزِّلَ عَلَيْنَا مَائِدَةً مِّنَ السَّمَاءِ ۖ قَالَ اتَّقُوا اللَّهَ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
इज़ क़ालल-हवारिय्यू-न या ईसब् न मर् य-म हल् यस्ततीअु रब्बु-क अंय्युनज़्ज़ि-ल अलैना माइ-दतम् मिनस्समा-इ, क़ालत्तक़ुल्ला-ह इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
हिंदी अनुवाद
जब ह़वारियों ने कहाः हे मर्यम के पुत्र ईसा! क्या तेरा पालनहार ये कर सकता है कि हमपर आकाश से थाल (दस्तरख्वान) उतार दे? उस (ईसा) ने कहाः तुम अल्लाह से डरो, यदि तुम वास्तव में ईमान वाले हो।
5.113
قَالُوا نُرِيدُ أَن نَّأْكُلَ مِنْهَا وَتَطْمَئِنَّ قُلُوبُنَا وَنَعْلَمَ أَن قَدْ صَدَقْتَنَا وَنَكُونَ عَلَيْهَا مِنَ الشَّاهِدِينَ
क़ालू नुरीदु अन् नअ्कु-ल मिन्हा व तत्मइन्-न क़ुलूबुना व नअ्ल-म अन् क़द् सदक़्तना व नकू-न अलैहा मिनश्शाहिदीन
हिंदी अनुवाद
उन्होंने कहाः हम चाहते हैं कि उसमें से खायें और हमारे दिलों को संतोष हो जाये तथा हमें विश्वास हो जाये कि तूने हमें जो कुछ बताया है, सच है और हम उसके साक्षियों में से हो जायेँ।
5.114
قَالَ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ اللَّهُمَّ رَبَّنَا أَنزِلْ عَلَيْنَا مَائِدَةً مِّنَ السَّمَاءِ تَكُونُ لَنَا عِيدًا لِّأَوَّلِنَا وَآخِرِنَا وَآيَةً مِّنكَ ۖ وَارْزُقْنَا وَأَنتَ خَيْرُ الرَّازِقِينَ
क़ा-ल ईसब्नु मरयमल्लाहुम्-म रब्बना अन्ज़िल् अलैना माइ-दतम् मिनस्समा-इ तकूनु लना ईदल् लि-अव्वलिना व आख़िरिना व आयतम्-मिन् क, वरज़ुक्ना व अन्-त ख़ैरू र्राज़िक़ीन
हिंदी अनुवाद
मर्यम के पुत्र ईसा ने प्रार्थना कीः हे अल्लाह, हमारे पालनहार! हमपर आकाश से एक थाल उतार दे, जो हमारे तथा हमारे पश्चात् के लोगों के लिए उत्सव (का दिन) बन जाये तथा तेरी ओर से एक चिन्ह (निशानी)। तथा हमें जीविका प्रदान कर, तू उत्तम जीविका प्रदाता है।
5.115
قَالَ اللَّهُ إِنِّي مُنَزِّلُهَا عَلَيْكُمْ ۖ فَمَن يَكْفُرْ بَعْدُ مِنكُمْ فَإِنِّي أُعَذِّبُهُ عَذَابًا لَّا أُعَذِّبُهُ أَحَدًا مِّنَ الْعَالَمِينَ
क़ालल्लाहु इन्नी मुनज़्ज़िलुहा अलैकुम्, फ़-मंय्यक्फुर् बअ्दु मिन्कुम् फ़-इन्नी उअ़ज़्ज़िबुहू अ़ज़ाबल्-ला उअ़ज़्ज़िबुहू अ-हदम् मिनल-आलमीन *
हिंदी अनुवाद
अल्लाह ने कहाः मैं तुमपर उसे उतारने वाला हूँ, फिर उसके पश्चात् भी जो कुफ़्र (अविश्वास) करेगा, तो मैं निश्चय उसे दण्ड दूँगा, ऐसा दण्ड[1] कि संसार वासियों में से किसी को, वैसी दण्ड नहीं दूँगा।
5.116
وَإِذْ قَالَ اللَّهُ يَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ أَأَنتَ قُلْتَ لِلنَّاسِ اتَّخِذُونِي وَأُمِّيَ إِلَٰهَيْنِ مِن دُونِ اللَّهِ ۖ قَالَ سُبْحَانَكَ مَا يَكُونُ لِي أَنْ أَقُولَ مَا لَيْسَ لِي بِحَقٍّ ۚ إِن كُنتُ قُلْتُهُ فَقَدْ عَلِمْتَهُ ۚ تَعْلَمُ مَا فِي نَفْسِي وَلَا أَعْلَمُ مَا فِي نَفْسِكَ ۚ إِنَّكَ أَنتَ عَلَّامُ الْغُيُوبِ
व इज़् क़ालल्लाहु या ईसब्-न मर-य-म अ-अन्-त क़ुल्-त लिन्नासित्तख़िज़ूनी व उम्मि-य इलाहैनि मिन् दुनिल्लाहि, क़ा-ल सुब्हान-क मा यकूनु ली अन् अक़ूल मा लै-स ली, बिहक़्क़िन्, इन् कुन्तु क़ुल्तुहू फ़-क़द् अलिम्तहू, तअ्लमु मा फ़ी नफ़्सी व ला अअ्लमु मा फ़ी नफ्सि-क, इन्न-क अन्-त अल्लामुल्-ग़ुयूब
हिंदी अनुवाद
तथा जब अल्लाह (प्रलय के दिन) कहेगाः हे मर्यम के पुत्र ईसा! क्या तुमने लोगों से कहा था कि अल्लाह को छोड़कर मुझे तथा मेरी माता को पूज्य (आराध्य) बना लो? वह कहेगाः तू पवित्र है, मुझसे ये कैसे हो सकता है कि ऐसी बात कहूँ, जिसका मुझे कोई अधिकार नहीं? यदि मैंने कहा होगा, तो तुझे अवश्य उसका ज्ञान हुआ होगा। तू मेरे मन की बात जानता है और मैं तेरे मन की बात नहीं जानता। वास्तव में, तू ही परोक्ष (ग़ैब) का अति ज्ञानी है।
5.117
مَا قُلْتُ لَهُمْ إِلَّا مَا أَمَرْتَنِي بِهِ أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ رَبِّي وَرَبَّكُمْ ۚ وَكُنتُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا مَّا دُمْتُ فِيهِمْ ۖ فَلَمَّا تَوَفَّيْتَنِي كُنتَ أَنتَ الرَّقِيبَ عَلَيْهِمْ ۚ وَأَنتَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ
मा क़ुल्तु लहुम् इल्ला मा अमर्तनी बिही अनिअ्बुदुल्ला-ह रब्बी व रब्बकुम्, व कुन्तु अलैहिम् शहीदम् मा दुम्तु फ़ीहिम्, फ़-लम्मा तवफ्फ़ैतनी कुन-त अन्तर्रक़ी-ब अलैहिम्, व अन्-त अला कुल्लि शैइन् शहीद
हिंदी अनुवाद
मैंने केवल उनसे वही कहा था, जिसका तूने आदेश दिया था कि अल्लाह की इबादत करो, जो मेरा पालनहार तथा तुम सभी का पालनहार है। मैं उनकी दशा जानता था, जब तक उनमें था और जब तूने मेरा समय पूरा कर दिया[1], तो तू ही उन्हें जानता था और तू प्रत्येक वस्तु से सूचित है।
5.118
إِن تُعَذِّبْهُمْ فَإِنَّهُمْ عِبَادُكَ ۖ وَإِن تَغْفِرْ لَهُمْ فَإِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
इन् तुअ़ज़्ज़िब्हुम् फ़-इन्नहुम् अिबादु-क, व इन् तग़्फिर लहुम् फ़-इन्न-क अन्तल् अज़ीज़ुल् हकीम
हिंदी अनुवाद
यदि तू उन्हें दण्ड दे, तो वे तेरे दास (बन्दे) हैं और यदि तू उन्हें क्षमा कर दे, तो वास्तव में तू ही प्रभावशाली गुणी है।
5.119
قَالَ اللَّهُ هَٰذَا يَوْمُ يَنفَعُ الصَّادِقِينَ صِدْقُهُمْ ۚ لَهُمْ جَنَّاتٌ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا ۚ رَّضِيَ اللَّهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا عَنْهُ ۚ ذَٰلِكَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ
क़ालल्लाहु हाज़ा यौमु यन्फ़अुस्सादिक़ी-न सिद्क़ुहुम्, लहुम् जन्नातुन् तज्री मिन् तह़्तिहल्-अन्हारू ख़ालिदी – न फ़ीहा अ-बदन्, रज़ियल्लाहु अन्हुम् व रज़ू अन्हु, ज़ालिकल फौज़ुल् अज़ीम
हिंदी अनुवाद
अल्लाह कहेगाः ये वो दिन है, जिसमें सचों को उनका सच ही लाभ देगा। उन्हीं के लिए ऐसे स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं। वे उनमें नित्य सदावासी होंगे, अल्लाह उनसे प्रसन्न हो गया तथा वे अल्लाह से प्रसन्न हो गये और यही सबसे बड़ी सफलता है।
5.120
لِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا فِيهِنَّ ۚ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि व मा फ़ीहिन्-न, व हु-व अला कुल्लि शैइन् क़दीर*
हिंदी अनुवाद
आकाशों तथा धरती और उनमें जो कुछ है, सबका राज्य अल्लाह ही का[1] है तथा वह जो चाहे, कर सकता है।