सूरह अल माऊन Surah Al Maun Hindi Translation Pronunciation

सूरह अल माऊन Surah Al Maun Hindi Translation Pronunciation

सूरह अल माऊन
Surah Al Maun Hindi Translation Pronunciation
यह सूरह मक्की है, इस में 7 आयते हैं। इस सरह की अन्तिम आयत में ((माऊन)) शब्द आने के कारण इस का यह नाम रखा गया है। जिस का अर्थ है लोगों को देने की साधारण आवश्यक्ता की चीजें। इस सूरह का विषय यह बताना है कि परलोक पर ईमान न रखना किस प्रकार का आचरण और स्वभाव पैदा करता है।  

 

सूरह अल माऊन अरबी
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
أَرَأَيْتَ الَّذِي يُكَذِّبُ بِالدِّينِ
فَذَٰلِكَ الَّذِي يَدُعُّ الْيَتِيمَ
وَلَا يَحُضُّ عَلَىٰ طَعَامِ الْمِسْكِينِ
فَوَيْلٌ لِّلْمُصَلِّينَ
الَّذِينَ هُمْ عَن صَلَاتِهِمْ سَاهُونَ
الَّذِينَ هُمْ يُرَاءُونَ
وَيَمْنَعُونَ الْمَاعُونَ

सूरह अल माऊन हिंदी उच्चारण
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अ – रऐतल्लज़ी युकज़्ज़िबु बिद्दीन 
फ़ज़ालिकल्लज़ी यदुअुल् – यतीम 
व ला यहुज्जु अ़ला तआ़मिल् – मिस्कीन 
फ़वैलुल लिल् – मुसल्लीन 
अल्लज़ी – न हुम अ़न् सलातिहिम् साहून
अल्लज़ी – न हुम् युराऊ – न  
व यम् – नअूनल् – माअून 


सूरह अल माऊन हिंदी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
( हे नबी!) क्या तुमने उसे देखा, जो प्रतिकार (बदले) के दिन को झुठलाता है?
यही वह है, जो अनाथ (यतीम) को धक्का देता है।
और ग़रीब को भोजन देने पर नहीं उभारता।
विनाश है उन नमाज़ियों के लिए
जो अपनी नमाज़ से अचेत हैं।
और जो दिखावे (आडंबर) के लिए करते हैं।
तथा माऊन (प्रयोग में आने वाली मामूली चीज़) भी माँगने से नहीं देते।


 
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सूरह अल कुरैश Surah Quraish in Hindi Mein Translation

सूरह अल कुरैश Surah Quraish in Hindi Mein Translation

सूरह अल कुरैश Surah Quraish in Hindi Mein Translation
यह सूरह मक्की है, इस में 4 आयतें हैं। इस में मक्का के कबीले ((कुरैश)) की चर्चा के कारण इस का यह नाम रखा गया है। इस की आयत 1 से 3 तक में मक्का के वासी कुरैश के अपनी व्यापारिक यात्रा से प्रेम रखने के कारण जो यात्रा वह निर्भय और शान्त रह कर किया करते थे क्योंकि काबा के निवासी थे उन से कहा जा रहा है कि वह केवल इस घर के स्वामी अल्लाह ही की वंदना (उपासना) करें। आयत 4 में इस का कारण बताया गया है कि यह जीविका और शान्ति जो तुम्हें प्राप्त है वह अल्लाह ही का प्रदान है। इस लिये तुम्हें उस का आभारी होना चाहिये और मात्र उसी की इबादत (वंदना) करनी चाहिये।

  • कि इस सुरह की तिलावत करने वाले को तवाफ और इत्तेकाफ करने वालों की तादाद से 10 गुना ज्यादा सवाब मिलेगा.


सूरह अल कुरैश Surah Quraish قُرَيْش
सूरह अल कुरैश अरबी
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
لِإِيلَافِ قُرَيْشٍ
إِيلَافِهِمْ رِحْلَةَ الشِّتَاءِ وَالصَّيْفِ
فَلْيَعْبُدُوا رَبَّ هَـٰذَا الْبَيْتِ
الَّذِي أَطْعَمَهُم مِّن جُوعٍ وَآمَنَهُم مِّنْ خَوْفٍ

सूरह अल कुरैश हिंदी उच्चारण
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
लि ईलाफि कुरैश
इलाफिहिम रिहलतश शिताई वस सैफ
फल यअ’बुदू रब्बा हाज़ल बैत
अल्लज़ी अत अमहुम मिन जूअ व आमनहुम मिन खौफ


सूरह अल कुरैश हिंदी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
क़ुरैश के स्वभाव बनाने के कारण।
उनके जाड़े तथा गर्मी की यात्रा का स्वभाव बनाने के कारण।
उन्हें चाहिये कि इस घर (काबा) के प्रभु की पूजा करें।
जिसने उन्हें भूख में खिलाया तथा डर से निडर कर दिया।

 
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सुराह अल फील हिन्दी में Surah al Feel in Hindi Mein

सुराह अल फील हिन्दी में Surah al Feel in Hindi Mein

इस पूरी सूरह में एक शिक्षाप्रद ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत है। यह सूरह मक्की है, इस में 5 आयतें हैं। इस सूरह में ((फ़ील)) शब्द आया है जिस का अर्थ हाथी है। इसी लिये इस का यह नाम है।Surah al Feel in Hindi Mein

  • आयत १ में कहा गया है कि अबरहा जिस की सेना काबा को ढहाने आई थी उस का अल्लाह ने कैसा सत्यानाश कर दिया? उस पर विचार करो।
  • आयत २ में बताया गया है कि कैसे उस की चाल असफल हो गई।
  • आयत ३,४ में अल्लाह के अपने घर की रक्षा करने और आयत 5 में आक्रमणकारियों के बुरे अन्त की चर्चा है।
सूरह अल फ़ील  Surah Al Fil ٱلفِيل
सूरह अल फ़ील अरबी
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
أَلَمْ تَرَ كَيْفَ فَعَلَ رَبُّكَ بِأَصْحَٰبِ ٱلْفِيلِ
أَلَمْ يَجْعَلْ كَيْدَهُمْ فِى تَضْلِيلٍ
وَأَرْسَلَ عَلَيْهِمْ طَيْرًا أَبَابِيلَ
تَرْمِيهِم بِحِجَارَةٍ مِّن سِجِّيلٍ
فَجَعَلَهُمْ كَعَصْفٍ مَّأْكُولٍۭ

सूरह अल फ़ील हिंदी उच्चारण
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अलम् त – र कै – फ़ फ़ – अ़ – ल रब्बु – क बि – अस्हाबिल् – फ़ील 
अलम् यज्अल् कै – दहुम् फ़ी तज्लीलिंव – 
व अर्स – ल अ़लैहिम् तैरन् अबाबील 
तरमीहिम् बिहिजा – रतिम् – मिन् सिज्जील 
फ़ – ज – अ़ – लहुम् क – अ़स्फिम् मअ्कूल 


सूरह अल फ़ील हिंदी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
क्या तुम नहीं जानते कि तेरे पालनहार ने हाथी वाले के साथ क्या किया?
क्या उसने उनकी चाल को विफल नहीं कर दिया?
और उनपर पंक्षियों के दल भेजे।
जो उनपर पकी कंकरी के पत्थर फेंक रहे थे।
तो उन्हें ऐसा कर दिया, जैसे खाने का भूसा।

सूरह अल हुमज़ह हिंदी Surah Al Humazah Hindi

सूरह अल हुमज़ह हिंदी Surah Al Humazah Hindi

सूरह अल हुमज़ह(104)| यह सूरह मक्की है, इस में 9 आयतें हैं। इस का नाम ((सूरह हुमज़ह)) है क्यों कि इस की प्रथम आयत में यह शब्द आया है जिस का अर्थ है: व्यंग करना, ताना मारना, गीबत करना आदि। यह सूरह भी मक्की युग की आरंभिक सूरतों में से है। इस का विषय धन के पुजारियों को सावधान करना है कि जिन की यह दशा होगी वह अवश्य अपने कुकर्म का दण्ड पायेंगे|
Surah Al Humazah सूरह अल हुमज़ह  ٱلهُمَزَة

सूरह अल हुमज़ह अरबी
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ

وَيْلٌ لِّكُلِّ هُمَزَةٍ لُّمَزَةٍ
ٱلَّذِى جَمَعَ مَالًا وَعَدَّدَهُۥ
يَحْسَبُ أَنَّ مَالَهُۥٓ أَخْلَدَهُۥ
كَلَّا لَيُنۢبَذَنَّ فِى ٱلْحُطَمَةِ
وَمَآ أَدْرَىٰكَ مَا ٱلْحُطَمَةُ
نَارُ ٱللَّهِ ٱلْمُوقَدَةُ
ٱلَّتِى تَطَّلِعُ عَلَى ٱلْأَفْـِٔدَةِ
إِنَّهَا عَلَيْهِم مُّؤْصَدَةٌ
فِى عَمَدٍ مُّمَدَّدَةٍۭ
सूरह अल हुमज़ह हिंदी उच्चारण
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम

वैलुल् – लिकुल्लि हु – म – ज़तिल् लु – मज़ह (1) 
अल्लज़ी ज – म – अ़ मालंव् – व अ़द् – द – दहू (2)
यह्सबु अन् – न मालहू अख़्ल – दह् (3)
कल्ला लयुम्ब – ज़न् – न फ़िल् – हु – त – मति (4)
व मा अद्रा – क मल्हु – त – मह् (5)
नारूल्लाहिल् मू – क़ – दतु – (6)
अल्लती तत्तलिअु़ अ़लल् – अफ़इदह् (7)
इन्नहा अ़लैहिम् मुअ् – स – दतुन् (8)
फ़ी अ़ – मदिम् – मुमद् – द – दह् (9)


सूरह अल हुमज़ह हिंदी उच्चारण
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम

वैलुल लिकुल्ली हुमज़तिल लुमजह
अल्लज़ी जमआ मालव व अद ददह
यह सबु अन्ना मा लहू अख्लदह
कल्ला लयुम बज़न्ना फिल हुतमह
वमा अदराका मल हुतमह
नारुल लाहिल मूक़दह
अल्लती तत तलिऊ अलल अफ इदह
इननहा अलैहिम मुअ सदह
फ़ी अमदिम मुमद ददह


सूरह अल हुमज़ह हिंदी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।

विनाश हो उस व्यक्ति का, जो कचोके लगाता रहता है और चौटे करता रहता है।
जिसने धन एकत्र किया और उसे गिन-गिन कर रखा।
क्या वह समझता है कि उसका धन उसे संसार में सदा रखेगा?[1]
कदापि ऐसा नहीं होगा। वह अवश्य ही 'ह़ुतमा' में फेंका जायेगा।
और तुम क्या जानो कि 'ह़ुतमा' क्या है?
वह अल्लाह की भड़काई हुई अग्नि है।
जो दिलों तक जा पहूँचेगी।
वह, उसमें बन्द कर दिये जायेंगे।
लँबे-लँबे स्तंभों में।

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सूरह अल अस्र हिंदी Surah Al Asr Hindi

सूरह अल अस्र हिंदी Surah Al Asr Hindi

नाम पहली ही आयत के शब्द अल-अ़स्र (ज़माना) को इसका नाम दिया गया है। मक्की सूरा अर्थात पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।
सूरह अल अस्र (103) Surah Asr العصر

सूरह अल अस्र अरबी
بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ ‎

وَٱلْعَصْرِ ‎
إِنَّ ٱلْإِنسَٰنَ لَفِى خُسْرٍ ‎
إِلَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّٰلِحَٰتِ وَتَوَاصَوْا۟ بِٱلْحَقِّ وَتَوَاصَوْا۟ بِٱلصَّبْرِ ‎

सूरह अल अस्र हिंदी उच्चारण
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम 

वल् – अ़सरि 
इन्नल् – इन्सा – न लफ़ी खु़स् – र 
इल्लल्लज़ी – न आमनू व अ़मिलुस् – सालिहाति व तवासौ बिल्हक़्कि व तवासौ बिस्सब्र 


सूरह अल अस्र हिंदी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।

गवाह है गुज़रता समय,  (1)
कि वास्तव में मनुष्य घाटे में है, (2)
सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए और अच्छे कर्म किए और एक-दूसरे को हक़ की ताकीद की, और एक-दूसरे को धैर्य की ताकीद की (3)

 
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सूरह अत तकासुर हिंदी Surah At Takasur Hindi

सूरह अत तकासुर हिंदी Surah At Takasur Hindi

यह सूरह मक्की है, इस में 8 आयतें और 1 रुकूअ है । सूरह न० 102 ।
सूरह अल तकासुर की तफसीर: तकासुर का मतलब है किसी भी चीज़ की कसरत (ज़्यादती) की ख्वाहिश और चाहत रखना चाहे माल ओ दौलत में हो औलाद में या ओहदे और शोहरत में हो। जिस तरह इंसान दुनिया में माल ओ दौलत बढ़ जाने के चक्कर में आखिरत से दूर होता चला जा रहा है और अपने घाटे का सौदा कर रहा है।इस सूरत में इसी का जिक्र किया गया है।

सूरह अत तकासुर Surah At Takasur التكاثر

सूरह अत तकासुर अरबी
بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
أَلْهَىٰكُمُ ٱلتَّكَاثُرُ ‎
حَتَّىٰ زُرْتُمُ ٱلْمَقَابِرَ ‎
كَلَّا سَوْفَ تَعْلَمُونَ ‎
ثُمَّ كَلَّا سَوْفَ تَعْلَمُونَ ‎
كَلَّا لَوْ تَعْلَمُونَ عِلْمَ ٱلْيَقِينِ ‎
لَتَرَوُنَّ ٱلْجَحِيمَ ‎
ثُمَّ لَتَرَوُنَّهَا عَيْنَ ٱلْيَقِينِ ‎
ثُمَّ لَتُسْـَٔلُنَّ يَوْمَئِذٍ عَنِ ٱلنَّعِيمِ ‎
सूरह अत तकासुर हिंदी उच्चारण
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम 
अल्हाकुमुत् – तकासुरु 
हत्ता जुरतुमुल् – मक़ाबिर 
कल्ला सौ – फ़ तअ्लमून 
सुम् – म कल्ला सौ – फ़ तअ्लमून 
कल्ला लौ तअ्लमू – न अिल्मल् – यकी़न 
ल – त – र – वुन्नल् – जहीम 
सुम् – म ल – त – र – वुन्नहा अैनल् – यक़ीन 
सुम् – म लतुस् – अलुन् – न यौमइज़िन् अ़निन् – नअ़ीम 


सूरह अत तकासुर हिंदी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
तुम्हें दुनियावी माल की लालच ने अँधा कर दिया और तुम्हें गफलत में दाल दिया।
और इतना ही नहीं तुम अपनी कब्र तक जा पहुंचे हो।
इतनी मस्ती में मत त्रहो तुम्हे एक दिन आगे चलकर पता चले गा।
जान लो ऐसा हरगिज़ नहीं होना चाहिए, नहीं तो आगे चल कर तुम्हें मालूम हो जायेगा।
ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए, अगर तुम्हें इतनी लालच का अंजाम मालूम होता तो तुम इतनी गफलत में नहीं होते।
तुम लोग एक दिन जहन्नम को जरूर देखोगे।
फिर (जान लो) तुम उस मंज़र को अपनी आंखों से ऐसे साफ साफ देखोगे की तुम्हे यकीन आ जाएगा।
फिर उस दिन तुम से तमाम निअमतों के बारे में पूछा जायेगा।

 
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सूरह अल क़ारिअह हिन्दी में Surah Al Qariah Hindi Mein

सूरह अल क़ारिअह हिन्दी में Surah Al Qariah Hindi Mein

सूरह अल क़ारिअह हिन्दी में Surah al qariah hindi mein
सूरह अल क़रिआ Al Qaria القارعة

सूरह अल क़ारिअह अरबी
بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ

ٱلْقَارِعَةُ 
مَا ٱلْقَارِعَةُ ‎
وَمَآ أَدْرَىٰكَ مَا ٱلْقَارِعَةُ ‎
يَوْمَ يَكُونُ ٱلنَّاسُ كَٱلْفَرَاشِ ٱلْمَبْثُوثِ ‎
وَتَكُونُ ٱلْجِبَالُ كَٱلْعِهْنِ ٱلْمَنفُوشِ ‎
فَأَمَّا مَن ثَقُلَتْ مَوَٰزِينُهُۥ ‎
فَهُوَ فِى عِيشَةٍ رَّاضِيَةٍ ‎
وَأَمَّا مَنْ خَفَّتْ مَوَٰزِينُهُۥ ‎
فَأُمُّهُۥ هَاوِيَةٌ ‎
وَمَآ أَدْرَىٰكَ مَا هِيَهْ ‎
نَارٌ حَامِيَةٌۢ ‎
सूरह अल क़ारिअह हिंदी उच्चारण
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम 

अल्का़रि – अ़तु 
मल्कारि – अ़तु 
व मा अद्रा – क मल्का़रिअ़ह् 
यौ – म यकूनुन्नासु कल्फ़राशिल् – मब्सूसि 
व तकूनुल् – जिबालु कल् – अिह़्निल – मन्फूश 
फ़ – अम्मा मन् सकु़लत् मवाजी़नुहू 
फ़हु – व फी़ अ़ी – शतिर् – राज़ियह्
व अम्मा मन् ख़फ़्फ़त् मवाज़ीनुहू 
फ़ – उम्मुहू हावियह् 
व मा अद्रा – क मा हियह् 
नारुन् हामियह् 


सूरह अल क़ारिअह हिंदी उच्चारण
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम 

अल क़ारिअह
मल क़ारिअह
वमा अदराक मल क़ारिअह
यौमा यकूनुन नासु कल फ़राशिल मब्सूस
व तकूनुल जिबालु कल इहनिल मन्फूश
फ़ अम्मा मन सकुलत मवाज़ीनुह
फ़हुवा फ़ी ईशतिर राज़ियह
व अम्मा मन खफ्फत मवाज़ीनुह
फ़ उम्मुहू हावियह
वमा अदराक मा हियह
नारून हामियह


सूरह अल क़ारिअह हिंदी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।

याद करो वो वाक़िया जो दिल दहला कर रख देगा
क्या है वो दिल दहलाने वाला वाक़िया ?
और क्या मालूम तुम्हें वो दिल दहलाने वाला वाक़िया क्या है ?
जिस दिन सारे लोग बिखरे हुए पतिंगो की तरह हो जायेंगे
और पहाड़ धुनकी हुई रंगीन ऊन की तरह हो जायेगा
तो जिस की नेकियों का वज़न बढ़ गया
वो तो पसंदीदा ऐशो आराम में होगा
और जिस का वज़न हल्का हो गया
तो उसका ठिकाना हाविया (नामी दोज़ख़) है
और क्या आपको मालूम कि हाविया क्या है ?
दहकती हुई आग है

Surah Al Adiyat in Hindi Mein Translation

Surah Al Adiyat in Hindi Mein Translation

Surah Al Adiyat in Hindi Mein Translation सूरह अल आदियात
सूरह अल-आदियात मक्के में नाजिल हुई इसमें 11 आयतें हैं। सूरह न० 100। 
Surah Al Adiyat hindi सूरह अल आदियात سورة العاديا

अ ऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम
सूरह अल आदियात अरबी
بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
وَٱلْعَٰدِيَٰتِ ضَبْحًا
فَٱلْمُورِيَٰتِ قَدْحًا
فَٱلْمُغِيرَٰتِ صُبْحًا
فَأَثَرْنَ بِهِۦ نَقْعًا
فَوَسَطْنَ بِهِۦ جَمْعًا
إِنَّ ٱلْإِنسَٰنَ لِرَبِّهِۦ لَكَنُودٌ
وَإِنَّهُۥ عَلَىٰ ذَٰلِكَ لَشَهِيدٌ
وَإِنَّهُۥ لِحُبِّ ٱلْخَيْرِ لَشَدِيدٌ ‎ 
أَفَلَا يَعْلَمُ إِذَا بُعْثِرَ مَا فِى ٱلْقُبُورِ
وَحُصِّلَ مَا فِى ٱلصُّدُورِ
إِنَّ رَبَّهُم بِهِمْ يَوْمَئِذٍ لَّخَبِيرٌۢ


सूरह अल आदियात हिंदी उच्चारण
अ ऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम
बिस्मिल्ला हिर रहमानिर रहीम
वल आदियाति ज़ब्हा
फ़ल मूरियाति क़दहा
फ़ल मुगीराति सुबहा
फ़ असरना बिही नक़आ
फ़ वसतना बिही जमआ
इन्नल इंसान लिरब्बिही ल कनूद
व इन्नहू अला ज़ालिका लशहीद
व इन्नहू लिहुब्बिल खैरि लशदीद
अफ़ला यअलमु इज़ा बुआ सिरा माफ़िल क़ुबूर
व हुस्सिला माफिस सुदूर
इन्न रब्बहुम बिहिम यौमइज़िल ल ख़बीर


सूरह अल आदियात हिंदी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
क़सम है उन घोड़ों की जो हांप हांप कर दौड़ते हैं
फिर (अपनी टापों से) चिंगारियां उड़ाते हैं
फिर सुबह के वक़्त यलगार करते हैं
फिर उससे गर्दो गुबार उड़ाते हैं
फिर (दुश्मन की) फ़ौज में जा घुसते हैं
कि यक़ीनन इंसान अपने परवरदिगार का बड़ा न शुकरा है
और वो खुद भी इस पर गवाह है
और इस में शुबहा नहीं कि वो माल से बड़ी मुहब्बत रखता है
क्या उसे मालूम नहीं कि जो मुर्दे क़ब्रों में हैं वो जिंदा किये जायेंगे
और जो कुछ उन के दिलों में है, वो सब ज़ाहिर कर दिया जायेगा
यक़ीनन उनका परवरदिगार उस दिन उन के हाल से खूब वाकिफ होगा

Surah zalzalah in Hindi सुरह ज़िलज़ाल हिन्दी में

Surah zalzalah in Hindi सुरह ज़िलज़ाल हिन्दी में

Surah zalzalah in Hindi सुरह ज़िलज़ाल हिन्दी में
सूरह ज़िलज़ाल मदनी, न० 99

सुरह ज़िलज़ाल अरबी
بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
 إِذَا زُلْزِلَتِ ٱلْأَرْضُ زِلْزَالَهَا
 وَأَخْرَجَتِ ٱلْأَرْضُ أَثْقَالَهَا
 وَقَالَ ٱلْإِنسَٰنُ مَا لَهَا
 يَوْمَئِذٍ تُحَدِّثُ أَخْبَارَهَا
 بِأَنَّ رَبَّكَ أَوْحَىٰ لَهَا
 يَوْمَئِذٍ يَصْدُرُ ٱلنَّاسُ أَشْتَاتًا لِّيُرَوْا۟ أَعْمَٰلَهُمْ
 فَمَن يَعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ خَيْرًا يَرَهُۥ
 وَمَن يَعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ شَرًّا يَرَهُۥ

सुरह ज़िलज़ाल हिंदी उच्चारण
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
इज़ा ज़ुल ज़िलतिल अरजु ज़िलज़ा लहा
व अख रजतिल अरजु अस्कालहा
वक़ालल इंसानु मा लहा
यौ मइजिन तुहद्दिसु अख़बा रहा
बि अन्न रब्बका अव्हा लहा
यौ मइजिय यस दुरून नासु अश्तातल लियुरौ अअ’ मालहुम
फमय यअ’मल मिस्काला ज़र रतिन खैरै यरह
वमै यअ’मल मिस्काला ज़र्रतिन शररै यरह


सुरह ज़िलज़ाल हिंदी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
जब ज़मीन अपने भोंचाल से झिंझोड़ दी जाएगी
और वो अपने अन्दर के बोझ को निकाल फेंकेगी
और इंसान कहेगा : ज़मीन को क्या हो गया है ?
उस दिन वो खुद अपने हालात बयान करने लगेगी
इसलिए कि आपके परवरदिगार ने उस को यही हुक्म दिया होगा
उस दिन लोग गिरोह दर गिरोह हो कर आयेंगे ताकि उनको उनके आमाल दिखा दिए जायें
तो जिसने ज़र्रा बराबर भी नेकी की होगी वो उसको देख लेगा
तो जिसने ज़र्रा बराबर भी बुराई की होगी वो उसको देख लेगा

सूरह अल कद्र  Surah Qadr Hindi

सूरह अल कद्र Surah Qadr Hindi

surah al qadr in hindi - inna anzalna surah in hindi
यह सूरह मक्की है, इस में 5 आयतें हैं। इस में कुरआन के कद्र की रात में उतारे जाने की चर्चा की गई है। इस लिये इस का यह नाम रखा गया है। कद्र का अर्थ है: आदर और सम्मान। सूरह अल कद्र न० 97। 

सूरह अल कद्र अरबी
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
إِنَّآ أَنزَلْنَٰهُ فِى لَيْلَةِ ٱلْقَدْرِ
وَمَآ أَدْرَىٰكَ مَا لَيْلَةُ ٱلْقَدْرِ
لَيْلَةُ ٱلْقَدْرِ خَيْرٌ مِّنْ أَلْفِ شَهْرٍ
تَنَزَّلُ ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ وَٱلرُّوحُ فِيهَا بِإِذْنِ رَبِّهِم مِّن كُلِّ أَمْرٍ
سَلَٰمٌ هِىَ حَتَّىٰ مَطْلَعِ ٱلْفَجْرِ

सूरह अल कद्र हिंदी उच्चारण
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम 
इन्ना अनज़ल नाहु फ़ी लैयलतिल कद्र
वमा अदराका मा लैयलतुल कद्र
लय्लतुल कदरि खैरुम मिन अल्फि शह्र
तनज्जलुल मलाइकातु वररूहु फ़ीहा बिइज़्नि रब्बिहिम मिन कुल्लि अम्र
सलामुन हिय हत्ता मत लइल फज्र


सूरह अल कद्र हिंदी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
निःसंदेह, हमने उस (क़ुर्आन) को 'लैलतुल क़द्र' (सम्मानित रात्रि) में उतारा।
और तुम क्या जानो कि वह 'लैलतुल क़द्र' (सम्मानित रात्रि) क्या है?
लैलतुल क़द्र (सम्मानित रात्रि) हज़ार मास से उत्तम है।
उसमें (हर काम को पूर्ण करने के लिए) फ़रिश्ते तथा रूह़ (जिब्रील) अपने पालनहार की आज्ञा से उतरते हैं।
वह शान्ति की रात्रि है, जो भोर होने तक रहती है।


 
  • इस में सबसे पहले बताया गया है कि कुरआन कितनी महान रात्रि में अवतरित किया गया है। फिर इस शुभ रात की प्रधानता का वर्णन किया गया है और उसे भोर तक सर्वथा शान्ति की रात कहा गया है।
  • इस से अभिप्राय यह बताना है कि जो ग्रन्थ इतनी शुभ रात में उतरा उस का पालन तथा आदर न करना बड़े दुर्भाग्य की बात है।
  • हदीस में है कि इस रात की खोज रमजान के महीने की दस अन्तिम रातों की विषम (ताक़) रात में करो। (सहीह बुख़ारी, तथा सहीह मुस्लिम )
  • दूसरी हदीस में है कि जो कद्र की रात में ईमान के साथ पुन प्राप्त करने के लिये नमाज़ पढ़ेगा उस के पहले के पाप क्षमा कर दिये जायेंगे। (सहीह बुख़ारी , तथा सहीह मुस्लिम )

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सूरह अत तीन हिन्दी में Surah At Tin in Hindi

सूरह अत तीन हिन्दी में Surah At Tin in Hindi

surah tin hindi me
सूरह अत तीन | यह सूरह मक्किय्या है, | इस में आयतें 8 |  सूरह न० 95
Surah Teen hindi सूरह अत तीन हिंदी التين

अ ऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम
 
सूरह अत तीन अरबी
بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
وَٱلتِّينِ وَٱلزَّيْتُونِ
وَطُورِ سِينِينَ
وَهَٰذَا ٱلْبَلَدِ ٱلْأَمِينِ
لَقَدْ خَلَقْنَا ٱلْإِنسَٰنَ فِىٓ أَحْسَنِ تَقْوِيمٍ
ثُمَّ رَدَدْنَٰهُ أَسْفَلَ سَٰفِلِينَ
إِلَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّٰلِحَٰتِ فَلَهُمْ أَجْرٌ غَيْرُ مَمْنُونٍ
فَمَا يُكَذِّبُكَ بَعْدُ بِٱلدِّينِ
أَلَيْسَ ٱللَّهُ بِأَحْكَمِ ٱلْحَٰكِمِينَ

सूरह अत तीन हिंदी उच्चारण
बिस्मिल्ला हिर रहमानिर रहीम
वत तीनि वज़ ज़ैतून
वतूरि सीनीन
व हाज़ल बलादिल अमीन
लक़द खलक नल इन्साना फ़ी अहसनि तक़वीम
सुम्मा रदद नाहू अस्फला साफिलीन
इल्लल लज़ीना आमनू व अमिलुस सालिहाति फ़लहुम अजरुन गैरु ममनून
फ़मा युकज्ज़िबुका बअ’दू बिददीन
अलैसल लाहू बि अह्कमिल हाकिमीन


सूरह अत तीन हिंदी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
क़सम है इन्जीर और ज़ैतून की
और सहराए सीना के पहाड़ तूर की
और इस अम्नो अमान वाले शहर की
हम ने इंसान को बेहतरीन सांचे में ढाल कर पैदा किया है
फिर हम उसको पस्त से पस्त तर कर देते हैं
हाँ जो लोग ईमान लाये और नेक अमल किये तो उनको ऐसा अज्र मिलेगा जो कभी ख़त्म नहीं होगा
फिर ए इंसान वो क्या चीज़ है जो तुझे जज़ा व सज़ा को झुटलाने पर आमादा कर रही है
क्या अल्लाह सब हाकिमों से बड़े हाकिम नहीं हैं

Surah alam nashrah / al inshirah in hindi सूरह अल इनशिराह / सूरह अलम नशरह

Surah alam nashrah / al inshirah in hindi सूरह अल इनशिराह / सूरह अलम नशरह

surah alam nashrah / al inshirah in hindi सूरह अल इनशिराह / सूरह अलम नशरह
सूरह अल इनशिराह Surah Alam Nashrah सूरह अलम नशरह 

अ ऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम
सूरह अल इनशिराह /  सूरह अलम नशरह अरबी
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
 أَلَمْ نَشْرَحْ لَكَ صَدْرَكَ
 وَوَضَعْنَا عَنْكَ وِزْرَكَ
 الَّذِي أَنْقَضَ ظَهْرَكَ
 وَرَفَعْنَا لَكَ ذِكْرَكَ
 فَإِنَّ مَعَ الْعُسْرِ يُسْرًا
 إِنَّ مَعَ الْعُسْرِ يُسْرًا
 فَإِذَا فَرَغْتَ فَانْصَبْ
 وَإِلَىٰ رَبِّكَ فَارْغَبْ

सूरह अल इनशिराह /  सूरह अलम नशरह हिंदी उच्चारण
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम 
अलम नशरह लका सदरह
व वदअ’ना अंका विज़रक
अल्लज़ी अन्क़दा ज़हरक
व रफ़अ’ना लका ज़िकरक
फ़ इन्ना मअल उसरि युसरा
इन्ना मअल उसरि युसरा
फ़ इज़ा फरगता फंसब
व इला रब्बिका फरगब


सूरह अल इनशिराह /  सूरह अलम नशरह हिंदी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
क्या हम ने आपका सीना नहीं खोल दिया
और आपके उस बोझ को आप से उतार दिया
जिस ने आपकी कमर तोड़ रखी थी
और आपके लिए आपके तजकरे को बलंदी अता की
चुनांचे हकीकत ये है कि मुश्किलात के साथ आसानी भी होती है
यक़ीनन मुश्किलात के साथ आसानी भी होती है
तो जब आप (कामों से) फ़ारिग हो जाएँ तो (इबादत में) मेहनत किया कीजिये
और अपने परवरदिगार ही से दिल लगाइए

सूरह दुहा हिन्दी में Surah Ad Duha Hindi me

सूरह दुहा हिन्दी में Surah Ad Duha Hindi me

surah ad duha in hindi mein translation text सूरह दुहा | सूरह न० 93 | सूरह मक्की
सूरह दुहा Surah Ad Duha in Hindi

अ ऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम
मैं अल्लाह तआला की पनाह में आता हूँ शैतान ने मरदूद से
सूरह अल जु़हा अरबी
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ
وَ الضُّحٰىۙ(۱) وَ الَّیْلِ اِذَا سَجٰىۙ(۲) مَا وَدَّعَكَ رَبُّكَ وَ مَا قَلٰىؕ(۳) وَ لَلْاٰخِرَةُ خَیْرٌ لَّكَ مِنَ الْاُوْلٰىؕ(۴) وَ لَسَوْفَ یُعْطِیْكَ رَبُّكَ فَتَرْضٰىؕ(۵) اَلَمْ یَجِدْكَ یَتِیْمًا فَاٰوٰى۪(۶) وَ وَجَدَكَ ضَآلًّا فَهَدٰى۪(۷) وَ وَجَدَكَ عَآىٕلًا فَاَغْنٰىؕ(۸) فَاَمَّا الْیَتِیْمَ فَلَا تَقْهَرْؕ(۹) وَ اَمَّا السَّآىٕلَ فَلَا تَنْهَرْؕ(۱۰) وَ اَمَّا بِنِعْمَةِ رَبِّكَ فَحَدِّثْ۠(۱۱)

सूरह अल जु़हा हिंदी उच्चारण
बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम
वद दुहा
वल लैलि इजा सजा
मा वद दअका रब्बुका वमा क़ला
वलल आखिरतु खैरुल लका मिनल ऊला
व लसौफ़ा युअतीका रब्बुका फतरदा
अलम यजिद्का यतीमन फआवा
व वजदाका दाललन फ हदा
व वजदाका आ इलन फअग्ना
फ अम्मल यतीमा फ़ला तक्हर
व अम्मस सा इला फ़ला तन्हर
व अम्मा बि निअमति रब्बिका फ हददिस 


सूरह अल जु़हा हिंदी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से शुरू जो निहायत मेहरबान व रहम वाला | 
चाश्त की कसम  
और रात की जब पर्दा डाले   
कि तुम्हें तुम्हारे रब ने न छोड़ा और न मकरूह जाना और बेशक पिछली तुम्हारे लिये पहली से बेहतर है  
और बेशक क़रीब है कि तुम्हारा रब तुम्हें  
इतना देगा कि तुम राजी हो जाओगे  
क्या उस ने तुम्हें यतीम न पाया फिर जगह दी 
और तुम्हें अपनी महब्बत में खुद रफ़्ता पाया तो अपनी तरफ़ राह दी 
और तुम्हें हाजत मन्द पाया फिर गनी कर दिया 
तो यतीम पर दबाव न डालो  
और मंगता को न झिडको  
और अपने रब की ने'मत का खूब चरचा करो 

Surah Al Muzammil Hindi Mein सूरह मुजम्मिल हिंदी में

Surah Al Muzammil Hindi Mein सूरह मुजम्मिल हिंदी में

Surah Muzammil in Hindi Mein likha hua translation
सूरह मुजम्मिल कुरआन पाक की एक बेहतरीन सूरह है। कुरआन पाक में ये अल मुज़म्मिल  नाम से 29वें पारा में मौजूद है। यह सूरह मुज़म्मिल कुरआन पाक की 73वीं सूरह है। इसमें 20 आयत, 200 शब्द और 854 हर्फ़ मौजूद हैं।

अअूजु बिल्लाहि मिनश्शैतानिर्रजीम
मैं शैतान मरदूद से अल्लाह की पनाह माँगता हूँ
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
शुरु अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है

 

सूरह मुजम्मिल हिंदी उच्चारण

या अय्युहल् मुज़्ज़म्मिलु (1) 

कुमिल् लै-ल इल्ला क़लीला (2) 

निस्फ़हू अविन्कुस् मिन्हु क़लीला (3)

औ ज़िद् अ़लैहि व रत्तिलिल् कुरआन तरतीला (4)

इन्ना सनुल्की अ़लैक कौ़लन् सकी़ला (5)

इन्न- नाशि-अतल्लैलि हि-य अशद्दु वत्अंव् व अक़्वमु की़ला (6) 

इन्न ल-क फ़िन्नहारि सब्हन् तवीला (7)

वज़्कुरिस्म रब्बि-क व त-बत्तल् इलैहि तब्तीला (8) 

रब्बुल् मश्रिकि वल् मग्रिबि ला इला-ह इल्ला हु-व फ़त्तख़िज़हु वकीला (9) 

वसबिर अ़ला मा यकूलू-न वह्जुरहुम् हज्रन् जमीला (10)

व जर्नी वल् मुकज़्ज़इ बी-न उलिन्नअ्मति व मह्हिल्हुम् क़लीला (11)

इन्न लदैना अन्कालंव् व जहीमा (12) 

व तआ़मन् ज़ा गुस्सतिंव् व अ़ज़ाबन् अलीमा (13)

यौ-म तर्जुफुल् अर्जु वल् जिबालु व कानतिल् जिबालु कसीबम् महीला (14) 

इन्ना अरसल्ना इलैकुम् रसूलन् शाहिदन् अ़लैकुम् कमा अरसल्ना इला फिरऔन रसूला (15)

फ़-अ़सा फ़िरऔ़नुर-रसू-ल फ़ अख़ज्नाहु अख़्ज़ंव् वबीला (16)

फ़कै-फ़ तत्तकू-न इन् कफ़र-तुम् यौमंय्यज् अ़लुल् विल्दा-न शीबा (17)

अस्समा-उ मुन्फ़तिरुम् बिही का-न वअ्दुहू मफ़अूला (18) 

इन्न हाज़िही तज्कि-रतुन् फ़-मन् शाअत्त-ख़-ज़ इला रब्बिही सबीला (19)

इन्न रब्ब-क यअ्लमु अन्न-क तकूमु अद्ना मिन् सुलु-सयिल्लैलि व निस्फ़हू व सुलु-सहू व ताइ फ़तुम् मिनल्लज़ी-न म-अ़-क वल्लाहु युक़द्दिरुल्लै-ल वन्नहा-र अ़लि-म अल्लन् तुह्सूहु फ़ता-ब अ़लैकुम् फ़क़रऊ मा त-यस्स-र मिनल् कुरआनि अ़लि-म अन् स-यकूनु मिन्कुम् मरज़ा व आख़रू-न यज्रिबू-न फिल्अर्ज़ि यब्तगू-न मिन् फ़ज़्लिल्लाहि व आखरू-न युक़ातिलू-न फ़ी सबीलिल्लाहि फ़क़्रऊ मा त-यस्स-र मिन्हु व अक़ीमुस्सला-त व आतुज्ज़का-त व अक्रिजुल्ला-ह क़रज़न् ह-सनन् व मा तुक़द्दिमु लि-अन्फुसिकुम् मिन् खै़रिन् तजिदूहु अिन्दल्लाहि हु-व खैरंव् व अअ्ज़-म अज्रन् वस्तग्फिरुल्ला-ह इन्नल्ला-ह ग़फूरुर रहीम (20)

 
सूरह मुजम्मिल हिंदी उच्चारण अनुवाद अर्थ
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है

या अय्युहल् मुज़्ज़म्मिलु (1)
ऐ (मेरे) चादर लपेटे रसूल (1)

कुमिल् लै-ल इल्ला क़लीला (2)
रात को (नमाज़ के वास्ते) खड़े रहो मगर (पूरी रात नहीं) (2)

निस्फ़हू अविन्कुस् मिन्हु क़लीला (3)
थोड़ी रात या आधी रात या इससे भी कुछ कम कर दो या उससे कुछ बढ़ा दो (3)

औ ज़िद् अ़लैहि व रत्तिलिल् कुरआन तरतीला (4)
और क़ुरान को बाक़ायदा ठहर ठहर कर पढ़ा करो (4)

इन्ना सनुल्की अ़लैक कौ़लन् सकी़ला (5)
हम अनक़रीब तुम पर एक भारी हुक्म नाज़िल करेंगे इसमें शक़ नहीं कि रात को उठना (5)

इन्न- नाशि-अतल्लैलि हि-य अशद्दु वत्अंव् व अक़्वमु की़ला (6)
ख़ूब (नफ्स का) पामाल करना और बहुत ठिकाने से ज़िक्र का वक्त है (6)

इन्न ल-क फ़िन्नहारि सब्हन् तवीला (7)
दिन को तो तुम्हारे बहुत बड़े बड़े अशग़ाल हैं (7)

वज़्कुरिस्म रब्बि-क व त-बत्तल् इलैहि तब्तीला (8)
तो तुम अपने परवरदिगार के नाम का ज़िक्र करो और सबसे टूट कर उसी के हो रहो (8)

रब्बुल् मश्रिकि वल् मग्रिबि ला इला-ह इल्ला हु-व फ़त्तख़िज़हु वकीला (9)
(वही) मशरिक और मग़रिब का मालिक है उसके सिवा कोई माबूद नहीं तो तुम उसी को कारसाज़ बनाओ (9)

वसबिर अ़ला मा यकूलू-न वह्जुरहुम् हज्रन् जमीला (10)
और जो कुछ लोग बका करते हैं उस पर सब्र करो और उनसे बा उनवाने शाएस्ता अलग थलग रहो (10)

व जर्नी वल् मुकज़्ज़इ बी-न उलिन्नअ्मति व मह्हिल्हुम् क़लीला (11)
और मुझे उन झुठलाने वालों से जो दौलतमन्द हैं समझ लेने दो और उनको थोड़ी सी मोहलत दे दो (11)

इन्न लदैना अन्कालंव् व जहीमा (12)
बेशक हमारे पास बेड़ियाँ (भी) हैं और जलाने वाली आग (भी) (12)

व तआ़मन् ज़ा गुस्सतिंव् व अ़ज़ाबन् अलीमा (13)
और गले में फँसने वाला खाना (भी) और दुख देने वाला अज़ाब (भी) (13)

यौ-म तर्जुफुल् अर्जु वल् जिबालु व कानतिल् जिबालु कसीबम् महीला (14)
जिस दिन ज़मीन और पहाड़ लरज़ने लगेंगे और पहाड़ रेत के टीले से भुर भुरे हो जाएँगे (14)

इन्ना अरसल्ना इलैकुम् रसूलन् शाहिदन् अ़लैकुम् कमा अरसल्ना इला फिरऔन रसूला (15)
(ऐ मक्का वालों) हमने तुम्हारे पास (उसी तरह) एक रसूल (मोहम्मद) को भेजा जो तुम्हारे मामले में गवाही दे जिस तरह फिरऔन के पास एक रसूल (मूसा) को भेजा था (15)

फ़-अ़सा फ़िरऔ़नुर-रसू-ल फ़ अख़ज्नाहु अख़्ज़ंव् वबीला (16)
तो फिरऔन ने उस रसूल की नाफ़रमानी की तो हमने भी (उसकी सज़ा में) उसको बहुत सख्त पकड़ा (16)

फ़कै-फ़ तत्तकू-न इन् कफ़र-तुम् यौमंय्यज् अ़लुल् विल्दा-न शीबा (17)
तो अगर तुम भी न मानोगे तो उस दिन (के अज़ाब) से क्यों कर बचोगे जो बच्चों को बूढ़ा बना देगा (17)

अस्समा-उ मुन्फ़तिरुम् बिही का-न वअ्दुहू मफ़अूला (18)
जिस दिन आसमान फट पड़ेगा (ये) उसका वायदा पूरा होकर रहेगा (18)

इन्न हाज़िही तज्कि-रतुन् फ़-मन् शाअत्त-ख़-ज़ इला रब्बिही सबीला (19)
बेशक ये नसीहत है तो जो शख़्श चाहे अपने परवरदिगार की राह एख्तेयार करे (19)

इन्न रब्ब-क यअ्लमु अन्न-क तकूमु अद्ना मिन् सुलु-सयिल्लैलि व निस्फ़हू व सुलु-सहू व ताइ फ़तुम् मिनल्लज़ी-न म-अ़-क वल्लाहु युक़द्दिरुल्लै-ल वन्नहा-र अ़लि-म अल्लन् तुह्सूहु फ़ता-ब अ़लैकुम् फ़क़रऊ मा त-यस्स-र मिनल् कुरआनि अ़लि-म अन् स-यकूनु मिन्कुम् मरज़ा व आख़रू-न यज्रिबू-न फिल्अर्ज़ि यब्तगू-न मिन् फ़ज़्लिल्लाहि व आखरू-न युक़ातिलू-न फ़ी सबीलिल्लाहि फ़क़्रऊ मा त-यस्स-र मिन्हु व अक़ीमुस्सला-त व आतुज्ज़का-त व अक्रिजुल्ला-ह क़रज़न् ह-सनन् व मा तुक़द्दिमु लि-अन्फुसिकुम् मिन् खै़रिन् तजिदूहु अिन्दल्लाहि हु-व खैरंव् व अअ्ज़-म अज्रन् वस्तग्फिरुल्ला-ह इन्नल्ला-ह ग़फूरुर रहीम (20)
(ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार चाहता है कि तुम और तुम्हारे चन्द साथ के लोग (कभी) दो तिहाई रात के करीब और (कभी) आधी रात और (कभी) तिहाई रात (नमाज़ में) खड़े रहते हो और ख़ुदा ही रात और दिन का अच्छी तरह अन्दाज़ा कर सकता है उसे मालूम है कि तुम लोग उस पर पूरी तरह से हावी नहीं हो सकते तो उसने तुम पर मेहरबानी की तो जितना आसानी से हो सके उतना (नमाज़ में) क़ुरान पढ़ लिया करो
और वह जानता है कि अनक़रीब तुममें से बाज़ बीमार हो जाएँगे और बाज़ ख़ुदा के फ़ज़ल की तलाश में रूए ज़मीन पर सफर एख्तेयार करेंगे और कुछ लोग ख़ुदा की राह में जेहाद करेंगे तो जितना तुम आसानी से हो सके पढ़ लिया करो और नमाज़ पाबन्दी से पढ़ो और ज़कात देते रहो और ख़ुदा को कर्ज़े हसना दो और जो नेक अमल अपने वास्ते (ख़ुदा के सामने) पेश करोगे उसको ख़ुदा के हाँ बेहतर और सिले में बुर्ज़ुग तर पाओगे और ख़ुदा से मग़फेरत की दुआ माँगो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (20)

Surah Ash Shams in Hindi सूरह अश शम्स अरबी हिंदी उच्चारण अनुवाद अर्थ

Surah Ash Shams in Hindi सूरह अश शम्स अरबी हिंदी उच्चारण अनुवाद अर्थ

सूरह अश शम्स मक्की | सूरह न० 91  
Surah Ash Shams in Hindi सूरह अश शम्स अरबी हिंदी उच्चारण अनुवाद अर्थ

अ ऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम
सूरह अश शम्स अरबी
وَٱلشَّمْسِ وَضُحَىٰهَا
وَٱلْقَمَرِ إِذَا تَلَىٰهَا
وَٱلنَّهَارِ إِذَا جَلَّىٰهَا
وَٱلَّيْلِ إِذَا يَغْشَىٰهَا
وَٱلسَّمَآءِ وَمَا بَنَىٰهَا
وَٱلْأَرْضِ وَمَا طَحَىٰهَا
وَنَفْسٍ وَمَا سَوَّىٰهَا
فَأَلْهَمَهَا فُجُورَهَا وَتَقْوَىٰهَا
قَدْ أَفْلَحَ مَن زَكَّىٰهَا
وَقَدْ خَابَ مَن دَسَّىٰهَا
كَذَّبَتْ ثَمُودُ بِطَغْوَىٰهَآ
إِذِ ٱنۢبَعَثَ أَشْقَىٰهَا
فَقَالَ لَهُمْ رَسُولُ ٱللَّهِ نَاقَةَ ٱللَّهِ وَسُقْيَٰهَا
فَكَذَّبُوهُ فَعَقَرُوهَا فَدَمْدَمَ عَلَيْهِمْ رَبُّهُم بِذَنۢبِهِمْ فَسَوَّىٰهَا
وَلَا يَخَافُ عُقْبَٰهَا


सूरह अश शम्स हिंदी उच्चारण
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम 
वश्शम्सि व जुहाहा 
वल्क़ – मरि इज़ा तलाहा 
वन्नहारि इज़ा जल्लाहा 
वल्लैलि इज़ा यग्शाहा  
वस्समा – इ व मा बनाहा 
वल्अर्जि व मा तहाहा
व नफ़्सिंव् – व मा सव्वाहा 
फ़ – अल्ह – महा फुजूरहा व तक़्वाहा
क़द् अफ़्ल – ह मन् ज़क्काहा 
व क़द् ख़ा – ब मन् दस्साहा 
कज़्ज़बत् समूदु बितग़्वाहा 
इज़िम् ब – अ़ – स अश्का़हा 
फ़का़ – ल लहुम् रसूलुल्लाहि ना – क़तल्लाहि व सुक़्याहा 
फ़ – कज़्ज़बूहु फ़ – अ़ – क़रूहा फ़ – दम् – द – म अ़लैहिम् रब्बुहुम् बिज़म्बिहिम् फ़ – सव्वाहा 
व ला यख़ाफु अुक़्बाहा 




सूरह अश शम्स हिंदी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
साक्षी है सूर्य और उसकी प्रभा,
और चन्द्रमा, जबकि वह उसके पीछे आए,
और दिन, जबकि वह उसे प्रकट कर दे,
और रात, जबकि वह उसको ढाँक ले।
और आकाश और जैसा कुछ उसे उठाया,
और धरती और जैसा कुछ उसे बिछाया।
और आत्मा और जैसा कुछ उसे सँवारा।
फिर उसके दिल में डाली उसकी बुराई और उसकी परहेज़गारी।
सफल हो गया जिसने उसे विकसित किया।
और असफल हुआ जिसने उसे दबा दिया।
समूद ने अपनी सरकशी से झुठलाया,
जब उनमें का सबसे बड़ा दुर्भाग्यशाली उठ खड़ा हुआ,
तो अल्लाह के रसूल ने उनसे कहा, "सावधान, अल्लाह की ऊँटनी और उसके पिलाने (की बारी) से।"
किन्तु उन्होंने उसे झुठलाया और उस ऊँटनी की कूचें काट डालीं। अन्ततः उनके रब ने उनके गुनाह के कारण उनपर तबाही डाल दी और उन्हें बराबर कर दिया।
और उसे उसके परिणाम का कोई भय नहीं।




सूरह अश शम्स अरबी, हिंदी उच्चारण, अनुवाद अर्थ
 وَالشَّمْسِ وَضُحَاهَا
वश्शम्सि व जुहाहा (1) 
साक्षी है सूर्य और उसकी प्रभा,
  وَالْقَمَرِ إِذَا تَلَاهَا
वल्क़ – मरि इज़ा तलाहा (2)
और चन्द्रमा, जबकि वह उसके पीछे आए,
  وَالنَّهَارِ إِذَا جَلَّاهَا
वन्नहारि इज़ा जल्लाहा (3)
और दिन, जबकि वह उसे प्रकट कर दे,
  وَاللَّيْلِ إِذَا يَغْشَاهَا
वल्लैलि इज़ा यग्शाहा (4) 
और रात, जबकि वह उसको ढाँक ले।
  وَالسَّمَاءِ وَمَا بَنَاهَا
वस्समा – इ व मा बनाहा (5)
और आकाश और जैसा कुछ उसे उठाया,
  وَالْأَرْضِ وَمَا طَحَاهَا
वल्अर्जि व मा तहाहा (6) 
और धरती और जैसा कुछ उसे बिछाया।
  وَنَفْسٍ وَمَا سَوَّاهَا
व नफ़्सिंव् – व मा सव्वाहा (7)
और आत्मा और जैसा कुछ उसे सँवारा।
  فَأَلْهَمَهَا فُجُورَهَا وَتَقْوَاهَا
फ़ – अल्ह – महा फुजूरहा व तक़्वाहा (8)
फिर उसके दिल में डाली उसकी बुराई और उसकी परहेज़गारी।
  قَدْ أَفْلَحَ مَن زَكَّاهَا
क़द् अफ़्ल – ह मन् ज़क्काहा (9) 
सफल हो गया जिसने उसे विकसित किया।
  وَقَدْ خَابَ مَن دَسَّاهَا
व क़द् ख़ा – ब मन् दस्साहा (10)
और असफल हुआ जिसने उसे दबा दिया।
  كَذَّبَتْ ثَمُودُ بِطَغْوَاهَا
कज़्ज़बत् समूदु बितग़्वाहा (11)
समूद ने अपनी सरकशी से झुठलाया,
  إِذِ انبَعَثَ أَشْقَاهَا
इज़िम् ब – अ़ – स अश्का़हा (12)
जब उनमें का सबसे बड़ा दुर्भाग्यशाली उठ खड़ा हुआ,
  فَقَالَ لَهُمْ رَسُولُ اللَّهِ نَاقَةَ اللَّهِ وَسُقْيَاهَا
फ़का़ – ल लहुम् रसूलुल्लाहि ना – क़तल्लाहि व सुक़्याहा (13)
तो अल्लाह के रसूल ने उनसे कहा, "सावधान, अल्लाह की ऊँटनी और उसके पिलाने (की बारी) से।"
  فَكَذَّبُوهُ فَعَقَرُوهَا فَدَمْدَمَ عَلَيْهِمْ رَبُّهُم بِذَنبِهِمْ فَسَوَّاهَا
फ़ – कज़्ज़बूहु फ़ – अ़ – क़रूहा फ़ – दम् – द – म अ़लैहिम् रब्बुहुम् बिज़म्बिहिम् फ़ – सव्वाहा (14)
किन्तु उन्होंने उसे झुठलाया और उस ऊँटनी की कूचें काट डालीं। अन्ततः उनके रब ने उनके गुनाह के कारण उनपर तबाही डाल दी और उन्हें बराबर कर दिया।
  وَلَا يَخَافُ عُقْبَاهَا
व ला यख़ाफु अुक़्बाहा (15)
और उसे उसके परिणाम का कोई भय नहीं। 

 

surah baqarah last 3 ayat in hindi सूरह बकरा की आखिरी तीन आयत

surah baqarah last 3 ayat in hindi सूरह बकरा की आखिरी तीन आयत

surah baqarah last 3 ayat in hindi

अ ऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम
मैं अल्लाह तआला की पनाह में आता हूँ शैतान ने मरदूद से
सूरह बकरा हिंदी उच्चारण
लिल्लाहि मा फ़िस्समावाति व मा फिल्अर्ज़ि व इन् तुब्दू मा फ़ी अन्फुसिकुम् औ तुख्फूहु युहासिब्कुम् बिहिल्लाहु , फ़ – यग्फिरू लिमंय्यशा – उ व युअज्जिबु मंय्यशा – उ , वल्लाहु अला कुल्लि शैइन् क़दीर (284)

आ – मनर्रसूलु बिमा उन्ज़ि – ल इलैहि मिर्रब्बिही वल्मुअ्मिनून , कुल्लुन् आम – न बिल्लाहि व मलाइ – कतिही व कुतुबिही व रूसुलिही , ला नुफ़र्रिकु बै – न अ – हदिम् मिर्रूसुलिही , व कालू समिअ़ना व अ – तअ्ना गुफ्रान – क रब्बना व इलैकल मसीर (285)

ला युकल्लिफुल्लाहु नफ्सन् इल्ला वुस्अहा , लहा मा क – सबत् व अलैहा मक्त – सबत , रब्बना ला तुआखिज्ना इन् – नसीना औ अख़्तअना , रब्बना व ला तहमिल् अलैना इस्रन् कमा हमल्तहू अलल्लजी – न मिन् कब्लिना , रब्बना व ला तुहम्मिलना मा ला ताक – त लना बिही वअ्फु अन्ना , वग्फिर लना , वरहम्ना , अन् – त मौलाना फ़न्सुरना अलल् कौमिल काफ़िरीन (286)



सूरह बकरा हिंदी अनुवाद अर्थ
जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़) सब कुछ खुदा ही का है और जो कुछ तुम्हारे दिलों में हे ख्वाह तुम उसको ज़ाहिर करो या उसे छिपाओ ख़ुदा तुमसे उसका हिसाब लेगा, फिर जिस को चाहे बख्श दे और जिस पर चाहे अज़ाब करे, और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (284)

हमारे पैग़म्बर (मोहम्मद) जो कुछ उनपर उनके परवरदिगार की तरफ से नाज़िल किया गया है उस पर ईमान लाए और उनके (साथ) मोमिनीन भी (सबके) सब ख़ुदा और उसके फ़रिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों पर ईमान लाए (और कहते हैं कि) हम ख़ुदा के पैग़म्बरों में से किसी में तफ़रक़ा नहीं करते और कहने लगे ऐ हमारे परवरदिगार हमने (तेरा इरशाद) सुना (285)

और मान लिया परवरदिगार हमें तेरी ही मग़फ़िरत की (ख्वाहिश है) और तेरी ही तरफ़ लौट कर जाना है ख़ुदा किसी को उसकी ताक़त से ज्यादा तकलीफ़ नहीं देता उसने अच्छा काम किया तो अपने नफ़े के लिए और बुरा काम किया तो (उसका वबाल) उसी पर पडेग़ा ऐ हमारे परवरदिगार अगर हम भूल जाऐं या ग़लती करें तो हमारी गिरफ्त न कर ऐ हमारे परवरदिगार हम पर वैसा बोझ न डाल जैसा हमसे अगले लोगों पर बोझा डाला था, और ऐ हमारे परवरदिगार इतना बोझ जिसके उठाने की हमें ताक़त न हो हमसे न उठवा और हमारे कुसूरों से दरगुज़र कर और हमारे गुनाहों को बख्श दे और हम पर रहम फ़रमा तू ही हमारा मालिक है तू ही काफ़िरों के मुक़ाबले में हमारी मदद कर (286)


सूरह बकरा अरबी
لِّلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ ۗ وَإِن تُبْدُوا۟ مَا فِىٓ أَنفُسِكُمْ أَوْ تُخْفُوهُ يُحَاسِبْكُم بِهِ ٱللَّهُ ۖ فَيَغْفِرُ لِمَن يَشَآءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَآءُ ۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ قَدِيرٌ
ءَامَنَ ٱلرَّسُولُ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيْهِ مِن رَّبِّهِۦ وَٱلْمُؤْمِنُونَ ۚ كُلٌّ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَمَلَـٰٓئِكَتِهِۦ وَكُتُبِهِۦ وَرُسُلِهِۦ لَا نُفَرِّقُ بَيْنَ أَحَدٍۢ مِّن رُّسُلِهِۦ ۚ وَقَالُوا۟ سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا ۖ غُفْرَانَكَ رَبَّنَا وَإِلَيْكَ ٱلْمَصِيرُ
لَا يُكَلِّفُ ٱللَّهُ نَفْسًا إِلَّا وُسْعَهَا ۚ لَهَا مَا كَسَبَتْ وَعَلَيْهَا مَا ٱكْتَسَبَتْ ۗ رَبَّنَا لَا تُؤَاخِذْنَآ إِن نَّسِينَآ أَوْ أَخْطَأْنَا ۚ رَبَّنَا وَلَا تَحْمِلْ عَلَيْنَآ إِصْرًۭا كَمَا حَمَلْتَهُۥ عَلَى ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِنَا ۚ رَبَّنَا وَلَا تُحَمِّلْنَا مَا لَا طَاقَةَ لَنَا بِهِۦ ۖ وَٱعْفُ عَنَّا وَٱغْفِرْ لَنَا وَٱرْحَمْنَآ ۚ أَنتَ مَوْلَىٰنَا فَٱنصُرْنَا عَلَى ٱلْقَوْمِ ٱلْكَـٰفِرِينَ



फजीलत:
हदीस में है कि “जिस घर में सूरह बक़रह: पढ़ी जाये उस से शैतान भाग जाता है।” ( सहिह मुस्लिम -780 )

हुजूरे अकरम नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! अल्लाह अज़्ज़वजल ने ज़मीन व आसमान को पैदा करने से दो हज़ार साल पहले एक किताब लिखी ! फिर उस में से ब-क़रह  की आखिरी दो आयतें नाज़िल फ़रमाई !

जिस घर में तीन रातें इन दो आयतों को पढा जाएगा ! शैतान उस घर के क़रीब न आएगा !

एक रिवायत के अल्फ़ाज़ कुछ यूं हैँ कि जिस घर में इन दो आयतों ( surah baqarah last 2 ayat ) को पढा जाएगा शैतान तीन दिन तक उस के क़रीब न आएगा ।

रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया:-
"जो कोई भी शख्स सूरह बकरा की आखरी दो आयतों को रात में पढ़ता है वह उसके लिए काफी हैंं।"

नूर के पैकर, नबियों के सरवर, दो जहां के ताजवर, सुल्ताने बहरो बर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : “बेशक अल्लाह ने मुझे अपने अर्श के नीचे के ख़ज़ाने में से ऐसी दो आयतें ( surah baqarah last 2 ayat ) अता फ़रमाई  ! जिन के ज़रीए सू-रतुल ब-क़रह का इख्तिताम फ़रमाया, इन्हें सीखो ! और अपनी औरतों और बच्चों को सिखाओ ! क्यूं कि येह नमाज़ और कुरआन और दुआ हैं

सुल्ताने दो जहान, मदीने के सुल्तान, रहमते आ-लमियान, सरवरे ज़ीशान हुजूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया : जो शख़्स (सूरए) ब-क़रह की आख़िरी दो आयतें ( surah baqarah last 2 ayat ) रात में पढेगा वोह उसे किफ़ायत करेंगी !

किफ़ायत से मुराद यह कि यह दो आयते ( surah baqarah last 2 ayat ) उस रात के क़ियाम के क़ाइम मक़ाम हो जाएगी ! या उस रात उसे शैतान से महफूज़ रखेगी ! या उस रात में नाज़िल होने वाली आफ़ात से बचाएंगी,या उसे फ़ज़ीलत व सवाब के लिए काफ़ी होंगी ! इंशा अल्लाह !

(आयत 284 से 286 तक अन्तिम आयतो में उन लोगों के ईमान लाने की चर्चा की गई है जो किसी भेद – भाव के बिना अल्लाह के रसूलो पर ईमान लाये। इस लिये अल्लाह ने उन पर सीधी राह खोल दी। और उन्होंने ऐसी दुआये की जो उन के ईमान को उजागर करती है।)


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मक्की सूरह अल आला Surah Al Ala Translation in Hindi Mein

मक्की सूरह अल आला Surah Al Ala Translation in Hindi Mein

मक्की सूरह अल आला Surah Al Ala Translation in Hindi Mein
सूरह अल आला Surah Al Ala Hindi Mein 
सूरह अल-आला (मक्की) सूरह न० 87
 

अ ऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम
बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम
 
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ
سَبِّحِ اسْمَ رَبِّكَ الْاَعْلَىۙ(۱) الَّذِیْ خَلَقَ فَسَوّٰىﭪ(۲) وَ الَّذِیْ قَدَّرَ فَهَدٰىﭪ(۳) وَ الَّذِیْۤ اَخْرَ جَ الْمَرْعٰىﭪ(۴) فَجَعَلَهٗ غُثَآءً اَحْوٰىؕ(۵) سَنُقْرِئُكَ فَلَا تَنْسٰۤىۙ(۶) اِلَّا مَا شَآءَ اللّٰهُؕ-اِنَّهٗ یَعْلَمُ الْجَهْرَ وَ مَا یَخْفٰىؕ(۷) وَ نُیَسِّرُكَ لِلْیُسْرٰىۚۖ(۸) فَذَكِّرْ اِنْ نَّفَعَتِ الذِّكْرٰىؕ(۹) سَیَذَّكَّرُ مَنْ یَّخْشٰىۙ(۱۰) وَ یَتَجَنَّبُهَا الْاَشْقَىۙ(۱۱) الَّذِیْ یَصْلَى النَّارَ الْكُبْرٰىۚ(۱۲) ثُمَّ لَا یَمُوْتُ فِیْهَا وَ لَا یَحْیٰىؕ(۱۳) قَدْ اَفْلَحَ مَنْ تَزَكّٰىۙ(۱۴) وَ ذَكَرَ اسْمَ رَبِّهٖ فَصَلّٰىؕ(۱۵) بَلْ تُؤْثِرُوْنَ الْحَیٰوةَ الدُّنْیَا٘ۖ(۱۶) وَ الْاٰخِرَةُ خَیْرٌ وَّ اَبْقٰىؕ(۱۷) اِنَّ هٰذَا لَفِی الصُّحُفِ الْاُوْلٰىۙ(۱۸) صُحُفِ اِبْرٰهِیْمَ وَ مُوْسٰى۠(۱۹)




सूरह अल अला हिंदी उच्चारण
बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम

1. सब बिहिसम रब्बिकल अ’अला
2. अल्लज़ी खलका फसव्वा
3. वल्लज़ी क़द्दारा फ़-हदा
4. वल लज़ी अख़ रजल मरआ
5. फजा अलहु गुसाअन अहवा
6. सनुक़ रिउका फला तन्सा
7. इल्ला माशा अल्लाह, इन्नहू यअ’लमुल जहरा वमा यख्फा
8. व नुयस्सिरुका लिल युसरा
9. फ़ ज़क्किर इन् नफ़ा अतिज़ ज़िकरा
10. सयज़ ज़क करू मै यख़शा
11. व यतजन्न बुहल अश्का
12. अल्लज़ी यस्लन नारल कुबरा
13. सुम्म ला यमूतु फ़ीहा वला यहया
14. क़द अफ्लहा मन तज़क्का
15. व ज़करस्म रब्बिही फ़सल्ला
16. बल तुअ’सिरूनल हयातद दुनिया
17. वल आखिरतु खैरुव वअब्क़ा
18. इन्न हाज़ा लफ़िस सुहुफ़िल ऊला
19. सुहुफि इब्राहीमा व मूसा



सूरह अल अला हिंदी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
  1. अपने परवरदिगार के नाम की तस्बीह बयान कीजिये जिसकी शान सब से ऊंची है
  2.  जिस ने सब कुछ पैदा किया, और ठीक ठीक बनाया
  3.  और जिस ने हर चीज़ को एक ख़ास अंदाज़ दिया फिर रास्ता बताया
  4.  और जिस ने सब्ज़ चारा (ज़मीन से ) निकाला
  5.  फ़िर उसको सियाह भूसा बना डाला
  6.  (ए पैग़म्बर ) हम ख़ुद आपको क़ुरआन पढ़ाएंगे तो आप नहीं भूलेंगे
  7.  सिवाए उसके जिसको अल्लाह चाहे, यक़ीन रखो ! वो खुली हुई चीज़ों को भी जानता है और उन चीज़ों को भी जो छुपी हुई हैं
  8.  और हम आपको आहिस्ता आहिस्ता आसानी तक पहुंचा देंगे
  9.  तो आप नसीहत करते रहिये, अगर नसीहत का फ़ायदा हो
  10.  जिसके दिल में अल्लाह का खौफ़ होगा वो नसीहत मानेगा
  11.  और उस से दूर रहेगा जो बड़ा बद बख्त होगा
  12.  जो सब से बड़ी आग में गिरेगा
  13.  फिर उस (आग) में न मरेगा और न जियेगा
  14.  वो कामयाब हो गया जिसने पाकीज़गी इख्तियार की
  15.  और अपने परवरदिगार का नाम लिया और नमाज़ पढ़ी
  16.  लेकिन तुम लोग दुनयवी ज़िन्दगी को आगे रखते हो
  17.  हालाँकि आख़िरत कहीं ज़्यादा बेहतरीन और बाक़ी रहने वाली है
  18.  ये बात पिछले (आसमानी) सहीफों में भी दर्ज है
  19.  इबराहीम और मूसा (अ.स.) के सहीफों में
 
  • हदीस में आता है कि जब ये आयत उतरी तो अल्लाह के रसूल सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : इसको सज्दे में रखो यानि सज्दे में सुबहाना रब्बियल आला पढ़ा करो
  • या'नी उस का ज़िक्र अजमतो एहतिराम के साथ करो । हदीस में है : जब येह आयत नाज़िल हुई सय्यिदे आलम, صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم ने फरमाया : इस को अपने सज्दे में दाखिल करो या'नी सज्दे में " سُبْحَانَ رَبِّيَ الأَعْلَى " कहो । (ابوداؤد) 

सूरह आले इमरान हिंदी अर्थ Surah al Imran in Hindi Translation

सूरह आले इमरान हिंदी अर्थ Surah al Imran in Hindi Translation

सूरह आले इमरान हिंदी अर्थ surah al imran in hindi translation

अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।

3:1
अलिफ़, लाम, मीम।
 
3:2
अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं, वह जीवित, नित्य स्थायी है।
 
3:3
उसीने आपपर सत्य के साथ पुस्तक (क़ुर्आन) उतारी है, जो इससे पहले की पुस्तकों के लिए प्रमाणकारी है और उसीने तौरात तथा इंजील उतारी है।
 
3:4
इससे पूर्व, लोगों के मार्गदर्शन के लिए और फ़ुर्क़ान उतारा है[1] तथा जिन्होंने अल्लाह की आयतों को अस्वीकार किया, उन्हीं के लिए कड़ी यातना है और अल्लाह प्रभुत्वशाली, बदला लेने वाला है।
1. अर्थात तौरात और इंजील अपने समय में लोगों के लिये मार्गदर्शन थीं, परन्तु फ़ुर्क़ान (क़ुरआन) उतरने के पश्चात् अब वह मार्गदर्शन केवल क़ुर्आन पाक में है।
 
3:5
निःसंदेह अल्लाह से आकाशों तथा धरती की कोई चीज़ छुपी नहीं है।
 
3:6
वही तुम्हारा रूप आकार गर्भाषयों में जैसे चाहता है, बनाता है। कोई पूज्य नहीं, परन्तु वही प्रभुत्वशाली, तत्वज्ञ।
 
3:7
उसीने आप पर[1] ये पुस्तक (क़ुर्आन) उतारी है, जिसमें कुछ आयतें मुह़कम[2] (सुदृढ़) हैं, जो पुस्तक का मूल आधार हैं तथा कुछ दूसरी मुतशाबिह[3] (संदिग्ध) हैं। तो जिनके दिलों में कुटिलता है, वे उपद्रव की खोज तथा मनमाना अर्थ करने के लिए, संदिग्ध के पीछे पड़ जाते हैं। जबकि उनका वास्तविक अर्थ, अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता तथा जो ज्ञान में पक्के हैं, वे कहते हैं कि सब, हमारे पालनहार के पास से है और बुध्दिमान लोग ही शिक्षा ग्रहण करते हैं।
1. आयत का भावार्थ यह है कि अल्लाह ने मानव का रूप आकार बनाने और उस की आर्थिक आवश्यक्ता की व्यवस्था करने के समान, उस की आत्मिक आवश्यक्ता के लिये क़ुर्आन उतारा है, जो अल्लाह की प्रकाशना तथा मार्गदर्शन और फ़ुर्क़ान है। जिस के द्वारा सत्योसत्य में विवेक (अन्तर) कर के सत्य को स्वीकार करे। 2. मुह़कम (सुदृढ़) से अभिप्राय वह आयतें हैं, जिन के अर्थ स्थिर, खुले हुये हैं। जैसे एकेश्वरवाद, रिसालत तथा आदेशों और निषेधों एवं ह़लाल (वैध) और ह़राम (अवैध) से संबन्धित आयतें, यही पुस्तक का मूल आधार हैं। 3. मुतशाबिह (संदिग्ध) से अभिप्राय वह आयतें हैं, जिन में उन तथ्यों की ओर संकेत किया गया है, जो हमारी ज्ञानेंद्रियों में नहीं आ सकते, जैसे मौत के पश्चात् जीवन, तथा प्रलोक की बातें, इन आयतों के विषय में अल्लाह ने हमें जो जानकारी दी है, हम उन पर विश्वास करते हैं, क्यों कि इन का विस्तार विवरण हमारी बुध्दि से बाहर है, परन्तु जिन के दिलों में खोट है वह इन की वास्तविक्ता जानने के पीछे पड़ जाते हैं, जो उन की शक्ति से बाहर है।
 
3:8
(तथा कहते हैः) हे हमारे पालनहार! हमारे दिलों को, हमें मार्गदर्शन देने के पश्चात् कुटिल न कर, वास्तव में, तू बहुत बड़ा दाता है।
 
3:9
हे मेरे पालनहार! तू उस दिन सबको एकत्र करने वाला है, जिसमें कोई संदेह नहीं। निःसंदेह अल्लाह अपने निर्धारित समय का विरुध्द नहीं करता।
 
3:10
निश्चय जो क़ाफ़िर हो गये, उनके धन तथा उनकी संतान अल्लाह (की यातना) से (बचाने में) उनके कुछ काम नहीं आयेगी तथा वही अग्नि के ईंधन बनेंगे।
 
3:11
जैसे फ़िरऔनियों तथा उनके पहले लोगों की दशा हुई, उन्होंने हमारी निशानियों को मिथ्या कहा, तो अल्लाह ने उनके पापों के कारण उनको धर लिया तथा अल्लाह कड़ा दण्ड देने वाला है।
 
3:12
(हे नबी!) काफ़िरों से कह दो कि तुम शीघ्र ही प्रास्त कर दिये जाओगे तथा नरक की ओर एकत्र किये जाओगे और वह बहुत बुरा ठिकाना[1] है।
1. इस में काफ़िरों की मुसलमानों के हाथों पराजय की भविष्यवाणी है।
 
3:13
वास्तव में, तुम्हारे लिए उन दो दलों में, जो (बद्र में) सम्मुख हो गये, एक निशानी थी; एक अल्लाह की राह में युध्द कर रहा था तथा दूसरा काफ़िर था, वे (अर्थात काफ़िर गिरोह के लोग) अपनी आँखों से देख रहे थे कि ये (मुसलमान) तो दुगने लग रहे हैं तथा अल्लाह अपनी सहायता द्वारा जिसे चाहे, समर्थन देता है। निःसंदेह इसमें समझ-बूझ वालों के लिए बड़ी शिक्षा[1] है।
1. अर्थात इस बात की कि विजय अल्लाह के समर्थन से प्राप्त होती है, सेना की संख्या से नहीं।
 
3:14
लोगों के लिए उनके मनको मोहने वाली चीज़ें, जैसे स्त्रियाँ, संतान, सोने चाँदी के ढेर, निशान लगे घोड़े, पशुओं तथा खेती शोभनीय बना दी गई हैं। ये सब सांसारिक जीवन के उपभोग्य हैं और उत्तम आवास अल्लाह के पास है।
 
3:15
(हे नबी!) कह दोः क्या मैं तुम्हें इससे उत्तम चीज़ बता दूँ? उनके लिए जो डरें, उनके पालनहार के पास ऐसे स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें बह रही हैं। वे उनमें सदावासी होंगे और निर्मल पत्नियाँ होंगी तथा अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त होगी और अल्लाह अपने भक्तों को देख रहा है।
 
3:16
जो (ये) प्रार्थना करते हैं कि हमारे पालनहार! हम ईमान लाये, अतः हमारे पाप क्षमा कर दे और हमें नरक की यातना से बचा।
 
3:17
जो सहनशील हैं, सत्यवादी हैं, आज्ञाकारी हैं, दानशील तथा भोरों में अल्लाह से क्षमा याचना करने वाले हैं।
 
3:18
अल्लाह साक्षी है, जो न्याय के साथ क़ायम है कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं है, इसी प्रकार फ़रिश्ते और ज्ञानी लोग भी (साक्षी हैं) कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह प्रभुत्वशाली, तत्वज्ञ है।
 
3:19
निःसंदेह (वास्तविक) धर्म अल्लाह के पास इस्लाम ही है और अह्ले किताब ने जो विभेद किया, तो अपने पास ज्ञान आने के पश्चात् आपस में द्वेष के कारण किया तथा जो अल्लाह की आयतों के साथ कुफ़्र (अस्वीकार) करेगा, तो निश्चय अल्लाह शीघ्र ह़िसाब लेने वाला है।
 
3:20
फिर यदि वे आपसे विवाद करें, तो कह दें कि मैं स्वयं तथा जिसने मेरा अनुसरण किया अल्लाह के आज्ञाकारी हो गये तथा अह्ले किताब और उम्मियों (अर्थात जिनके पास कोई किताब नहीं आयी) से कहो कि क्या तुम भी आज्ञाकारी हो गये? यदि वे आज्ञाकारी हो गये, तो मार्गदर्शन पा गये और यदि विमुख हो गये, तो आपका दायित्व (संदेश) पहुँचा[1] देना है तथा अल्लाह भक्तों को देख रहा है।
1. अर्थात उन से वाद विवाद करना व्यर्थ है।
 
3:21
जो लोग अल्लाह की आयतों के साथ कुफ़्र करते हों तथा नबियों को अवैध वध करते हों, तथा उन लोगों का वध करते हों, जो न्याय का आदेश देते हैं, तो उन्हें दुःखदायी यातना[1] की शुभ सूचना सुना दो।
1. इस में यहूद की आस्थिक तथा कर्मिक कुपथा की ओर संकेत है।
 
3:22
यही हैं, जिनके कर्म संसार तथा परलोक में अकारथ गये और उनका कोई सहायक नहीं होगा।
 
3:23
(हे नबी!) क्या आपने उनकी[1] दशा नहीं देखी, जिन्हें पुस्तक का कुछ भाग दिया गया? वे अल्लाह की पुस्तक की ओर बुलाये जा रहे हैं, ताकि उनके बीच निर्णय[2] करे, तो उनका एक गिरोह मुँह फेर रहा है और वे हैं ही मुँह फेरने वाले।
1. इस से अभिप्राय यहूदी विद्वान हैं। 2. अर्थात विभेद का निर्णय कर दे। इस आयत में अल्लाह की पुस्तक से अभिप्राय तौरात और इंजील हैं। और अर्थ यह है कि जब उन्हें उन की पुस्तकों की ओर बुलाया जाता है कि अपनी पुस्तकों ही को निर्णायक मान लो, तथा बताओ कि उन में अन्तिम नबी पर ईमान लाने का आदेश दिया गया है या नहीं? तो वे कतरा जाते हैं, जैसे कि उन्हें कोई ज्ञान ही न हो।
 
3:24
उनकी ये दशा इसलिए है कि उन्होंने कहा कि नरक की अग्नि हमें गिनती के कुछ दिन ही छुएगी तथा उन्हें अपने धर्म में उनकी मिथ्या बनायी हुई बातों ने धोखे में डाल रखा है।
 
3:25
तो उनकी क्या दशा होगी, जब हम उन्हें उस दिन एकत्र करेंगे, जिस (के आने) में कोई संदेह नहीं तथा प्रत्येक प्राणी को उसके किये का भरपूर प्रतिफल दिया जायेगा और किसी के साथ कोई अत्याचार नहीं किया जायेगा?
 
3:26
(हे नबी!) कहोः हे अल्लाह! राज्य के[1] अधिपति (स्वामी)! तू जिसे चाहे, राज्य दे और जिससे चाहे, राज्य छीन ले तथा जिसे चाहे, सम्मान दे और जिसे चाहे, अपमान दे। तेरे ही हाथ में भलाई है। निःसंदेह तू जो चाहे, कर सकता है।
1. अल्लाह की अपार शक्ति का वर्णन।
 
3:27
तू रात को दिन में प्रविष्ट कर देता है तथा दिन को रात में प्रविष्ट कर[1] देता है और जीव को निर्जीव से निकालता है तथा निर्जीव को जीव से निकालता है और जिसे चाहे अगणित आजीविका प्रदान करता है।
1. इस में रात्रि-दिवस के परिवर्तन की ओर संकेत है।
 
3:28
मोमिनों को चाहिए कि वो ईमान वालों के विरुध्द काफ़िरों को अपना सहायक मित्र न बनायें और जो ऐसा करेगा, उसका अल्लाह से कोई संबंध नहीं। परन्तु उनसे बचने के लिए[1] और अल्लाह तुम्हें स्वयं अपने से डरा रहा है और अल्लाह ही की ओर जाना है।
1.अर्थात संधि मित्र बना सकते हो।
 
3:29
(हे नबी!) कह दो कि जो तुम्हारे मन में है, उसे मन ही में रखो या व्यक्त करो, अल्लाह उसे जानता है तथा जो कुछ आकाशों तथा धरती में है, वह सबको जानता है और अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
 
3:30
जिस दिन प्रत्येक प्राणी ने जो सुकर्म किया है, उसे उपस्थित पायेगा तथा जिसने कुकर्म किया है, वह कामना करेगा कि उसके तथा उसके कुकर्मों के बीच बड़ी दूरी होती तथा अल्लाह तुम्हें स्वयं से डराता[1] है और अल्लाह अपने भक्तों के लिए अति करुणामय है।
1. अर्थात अपनी अवैज्ञा से।
 
3:31
(हे नबी!) कह दोः यदि तुम अल्लाह से प्रेम करते हो, तो मेरा अनुसरण करो, अल्लाह तुमसे प्रेम[1] करेगा तथा तुम्हारे पाप क्षमा कर देगा और अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
1. इस में यह संकेत है कि जो अल्लाह से प्रेम का दावा करता हो, और मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का अनुसरण न करता हो, तो वह अल्लाह का प्रेमी नहीं हो सकता।
 
3:32
(हे नबी!) कह दोः अल्लाह और रसूल की आज्ञा का अनुपालन करो। फिर भी यदि वे विमुख हों, तो निःसंदेह अल्लाह काफ़िरों से प्रेम नहीं करता।
 
3:33
वस्तुतः, अल्लाह ने आदम, नूह़, इब्राहीम की संतान तथा इमरान की संतान को संसार वासियों में चुन लिया था।
 
3:34
ये एक-दूसरे की संतान हैं और अल्लाह सब सुनता और जानता है।
 
3:35
जब इमरान की पत्नी[1] ने कहाः हे मेरे पालनहार! जो मेरे गर्भ में है, मैंने तेरे[3] लिए उसे मुक्त करने की मनौती मान ली है। तू इसे मुझसे स्वीकार कर ले। वास्तव में, तू ही सब कुछ सुनता और जानता है।
1. अर्थात मर्यम की माँ। 2. अर्थात बैतुल मक़दिस की सेवा के लिये।
 
3:36
फिर जब उसने बालिका जनी, तो (संताप से) कहाः मेरे पालनहार! मुझे तो बालिका हो गयी, हालाँकि जो उसने जना, उसका अल्लाह को भली-भाँति ज्ञान था -और नर नारी के समान नहीं होता- और मैंने उसका नाम मर्यम रखा है और मैं उसे तथा उसकी संतान को धिक्कारे हुए शैतान से तेरी शरण में देती हूँ।[1]
1. हदीस में है कि जब कोई शिशु जन्म लेता है, तो शैतान उसे स्पर्श करता है, जिस के कारण वह चीख कर रोता है, परन्तु मर्यम और उस के पुत्र को स्पर्श नहीं किया था। (सह़ीह़ बुख़ारीः4548)
 
3:37
तो तेरे पालनहार ने उसे भली-भाँति स्वीकार कर लिया तथा उसका अच्छा प्रतिपालन किया और ज़करिय्या को उसका संरक्षक बनाया। ज़करिय्या जबभी उसके मेह़राब (उपासना कोष्ट) में जाता, तो उसके पास कुछ खाद्य पदार्थ पाता, वह कहता कि हे मर्यम! ये कहाँ से (आया) है? वह कहतीः ये अल्लाह के पास से (आया) है। वास्तव में, अल्लाह जिसे चाहता है, अगणित जीविका प्रदा करता है।
 
3:38
तब ज़करिय्या ने अपने पालनहार से प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! मुझे अपनी ओर से सदाचारी संतान प्रदान कर। निःसंदेह तू प्रार्थना सुनने वाला है।
 
3:39
तो फ़रिश्तों ने उसे पुकारा- जब वह मेह़राब में खड़ा नमाज़ पढ़ रहा था- कि अल्लाह तुझे 'यह़्या' की शुभ सूचना दे रहा है, जो अल्लाह के शब्द (ईसा) का पुष्टि करने वाला, प्रमुख तथा संयमी और सदाचारियों में से एक नबी होगा।
 
3:40
उसने कहाः मेरे पालनहार! मेरे कोई पुत्र कहाँ से होगा, जबकि मैं बूढ़ा हो गया हूँ और मेरी पत्नी बाँझ[1] है? उसने कहाः अल्लाह इसी प्रकार जो चाहता है, कर देता है।
1. यह प्रश्न ज़करिया ने प्रसन्न हो कर आश्चर्य से किया।
 
3:41
उसने कहाः मेरे पालनहार! मेरे लिए कोई लक्षण बना दे। उसने कहाः तेरा लक्षण ये होगा कि तीन दिन तक लोगों से बात नहीं कर सकेगा, परन्तु संकेत से तथा अपने पालनहार का बहुत स्मरण करता रह और संध्या-प्राता उसी की पवित्रता का वर्णन कर।
 
3:42
और (याद करो) जब फरिश्तों ने मर्यम से कहाः हे मर्यम! तुझे अल्लाह ने चुन लिया तथा पवित्रता प्रदान की और संसार की स्त्रियों पर तुझे चुन लिया।
 
3:43
हे मर्यम! अपने पालनहार की आज्ञाकारी रहो, सज्दा करो तथा रुकूअ करने वालों के साथ रुकूअ करती रहो।
 
3:44
ये ग़ैब (परोक्ष) की सूचनायें हैं, जिन्हें हम आपकी ओर प्रकाशना कर रहे हैं और आप उनके पास उपस्थित नहीं थे, जब वे अपनी लेखनियाँ[1] फेंक रहे थे कि कौन मर्यम का अभिरक्षण करेगा और न उनके पास उपस्थित थे, जब वे झगड़ रहे थे।
1. अर्थात यह निर्णय करने के लिये कि मर्यम का संरक्षक कौन हो?
 
3:45
जब फ़रिश्तों ने कहाः हे मर्यम! अल्लाह तुझे अपने एक शब्द[1] की शुभ सूचना दे रहा है, जिसका नाम मसीह़ ईसा पुत्र मर्यम होगा। वह लोक-प्रलोक में प्रमुख तथा (मेरे) समीपवर्तियों में होगा।
1. अर्थात वह अल्लाह के शब्द "कुन" से पैदा होगा, जिस का अर्थ है "हो जा"।
 
3:46
वह लोगों से गोद में तथा अधेड़ आयु में बातें करेगा और सदाचारियों में होगा।
 
3:47
मर्यम ने (आश्चर्य से) कहाः मेरे पालनहार! मुझे पुत्र कहाँ से होगा, मुझे तो किसी पुरुष ने हाथ भी नहीं लगाया है? उसने[1] कहाः इसी प्रकार अल्लाह जो चाहता है, उत्पन्न कर देता है। जब वह किसी काम के करने का निर्णय कर लेता है, तो उसके लिए कहता है किः "हो जा", तो वह हो जाता है।
1. अर्थात फ़रिश्ते ने।
 
3:48
और अल्लाह उसे पुस्तक तथा प्रबोध और तौरात तथा इंजील की शिक्षा देगा।
 
3:49
और फिर वह बनी इस्राईल का एक रसूल होगा (और कहेगाः) कि मैं तुम्हारे पालनहार की ओर से निशानी लाया हूँ। मैं तुम्हारे लिए मिट्टी से पक्षी के आकार के समान बनाऊँगा, फिर उसमें फूँक दूँगा, तो वह अल्लाह की अनुमति से पक्षी बन जायेगा और अल्लाह की अनुमति से जन्म से अंधे तथा कोढ़ी को स्वस्थ कर दूँगा और मुर्दों को जीवित कर दूँगा तथा जो कुछ तुम खाते तथा अपने घरों में संचित करते हो, उसे तुम्हें बता दूँगा। निःसंदेह, इसमें तुम्हारे लिए बड़ी निशानियाँ हैं, यदि तुम ईमान वाले हो।
 
3:50
तथा मैं उसकी सिध्दि करने वाला हूँ, जो मुझसे पहले की है 'तौरात'। तुम्हारे लिए कुछ चीज़ों को ह़लाला (वैध) करने वाला हूँ, जो तुमपर ह़राम (अवैध) की गयी हैं तथा मैं तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की निशानी लेकर आया हूँ। अतः तुम अल्लाह से डरो और मेरे आज्ञाकारी हो जाओ।
 
3:51
वास्तव में, अल्लाह मेरा और तुम सबका पालनहार है। अतः उसी की इबादत (वंदना) करो। यही सीधी डगर है।
 
3:52
तथा जब ईसा ने उनसे कुफ़्र का संवेदन किया, तो कहाः अल्लाह के धर्म की सहायता में कौन मेरा साथ देगा? तो ह़वारियों (सहचरों) ने कहाः हम अल्लाह के सहायक हैं। हम अल्लाह पर ईमान लाये, तुम इसके साक्षी रहो कि हम मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं।
 
3:53
हे हमारे पालनहार! जो कुछ तूने उतारा है, हम उसपर ईमान लाये तथा तेरे रसूल का अनुसरण किया, अतः हमें भी साक्षियों में अंकित कर ले।
 
3:54
तथा उन्होंने षड्यंत्र[1] रचा और हमने भी योजना रची तथा अल्लाह योजना रचने वालों में सबसे अच्छा है।
1.अर्थात ईसा (अलैहिस्सलाम) को हत करने का। तो अल्लाह ने उन्हें विफल कर दिया। (देखियेः सूरह निसा, आयतः157)
 
3:55
जब अल्लाह ने कहाः हे ईसा! मैं तुझे पूर्णतः लेने वाला तथा अपनी ओर उठाने वाला हूँ तथा तुझे काफ़िरों से पवित्र (मुक्त) करने वाला हूँ तथा तेरे अनुयायियों को प्रलय के दिन तक काफ़िरों के ऊपर[1] करने वाला हूँ। फिर तुम्हारा लौटना मेरी ही ओर है। तो मैं तुम्हारे बीच उस विषय में निर्णय कर दूँगा, जिसमें तुम विभेद कर रहे हो।
1. अर्थात यहूदियों तथा मुश्रिकों के ऊपर।
 
3:56
फिर जो काफ़िर हो गये, उन्हें लोक-प्रलोक में कड़ी यातना दूँगा तथा उनका कोई सहायक न होगा।
 
3:57
तथा जो ईमान लाये और सदाचार किये, तो उन्हें उनका भरपूर प्रतिफल दूँगा तथा अल्लाह अत्याचारियों से प्रेम नहीं करता।
 
3:58
(हे नबी!) ये हमारी आयतें और तत्वज्ञता की शिक्षा है, जो हम तुम्हें सुना रहे हैं।
 
3:59
वस्तुतः अल्लाह के पास ईसा की मिसाल ऐसी ही है[1], जैसे आदम की। उसे (अर्थात, आदम को) मिट्टी से उत्पन्न किया, फिर उससे कहाः "हो जा" तो वह हो गया।
1. अर्थात जैसे प्रथम पुरुष आदम (अलैहिस्सलाम) को बिना माता-पिता के उत्पन्न किया, उसी प्रकार ईसा (अलैहिस्सलाम) को बिना पिता के उत्पन्न कर दिया, अतः वह भी मानव पुरुष हैं।
 
3:60
ये आपके पालनहार की ओर से सत्य[1] है, अतः आप संदेह करने वालों में न हों।
1. अर्थात ईसा अलैहिस्सलाम का मानव पुरुष होना। अतः आप उन के विषय में किसी संदेह में न पड़ें।
 
3:61
फिर आपके पास ज्ञान आ जाने के पश्चात् कोई आपसे ईसा के विषय में विवाद करे, तो कहो कि आओ, हम अपने पुत्रों तथा तुम्हारे पुत्रों और अपनी स्त्रियों तथा तुम्हारी स्त्रियों को बुलाते हैं और स्वयं को भी, फिर अल्लाह से सविनय प्रार्थना करें कि अल्लाह की धिक्कार मिथ्यावादियों पर[1] हो।
1. अल्लाह से यह प्रार्थना करें कि वह हम में से मिथ्यावादियों को अपनी दया से दूर कर दे।
 
3:62
वास्तव में, यही सत्य वर्णन है तथा अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं। निश्चय अल्लाह ही प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।
 
3:63
फिर भी यदि वे मुँह[1] फेरें, तो निःसंदेह अल्लाह उपद्रवियों को भली-भाँति जानता है।
1. अर्थात सत्य को जानने की इस विधि को स्वीकार न करें।
 
3:64
(हे नबी!) कहो कि हे अह्ले किताब! एक ऐसी बात की ओर आ जाओ, जो हमारे तथा तुम्हारे बीच समान रूप से मान्य है कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत (वंदना) न करें और किसी को उसका साझी न बनायें तथा हममें से कोई एक-दूसरे को अल्लाह के सिवा पालनहार न बनाये। फिर यदि वे विमुख हों, तो आप कह दें कि तुम साक्षी रहो कि हम (अल्लाह के)[1] आज्ञाकारी हैं।
1. इस आयत में ईसा अलैहिस्सलाम से संबंधित विवाद के निवारण के लिये एक दूसरी विधि बताई गई है।
 
3:65
हे अह्ले किताब! तुम इब्राहीम के बारे में विवाद[1] क्यों करते हो, जबकि तौरात तथा इंजील इब्राहीम के पश्चात् उतारी गई हैं? क्या तुम समझ नहीं रखते?
1. अर्थात यह क्यों कहते हो कि इब्राहीम अलैहिस्सलाम हमारे धर्म पर थे। तौरात और इंजील तो उन के सहस्त्रों वर्ष के पश्चात् अवतरित हुईं। तो वह इन धर्मों पर कैसे हो सकते हैं।
 
3:66
और फिर तुम्हीं ने उस विषय में विवाद किया, जिसका तुम्हें कुछ ज्ञान[1] था, तो उस विषय में क्यों विवाद कर रहे हो, जिसका तुम्हें कोई ज्ञान[2] नहीं था? तथा अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते।
1. अर्थात अपने धर्म के विषय में। 2. अर्थात इब्राहीम अलैहिस्सलाम के धर्म के बारे में।
 
3:67
इब्राहीम न यहूदी था, न नस्रानी (ईसाई)। परन्तु वह एकेश्वरवादी, मुस्लिम 'आज्ञाकारी' था तथा वह मिश्रणवादियों में से नहीं था।
 
3:68
वास्तव में, इब्राहीम से सबसे अधिक समीप तो वह लोग हैं, जिन्होंने उसका अनुसरण किया तथा ये नबी[1] और जो ईमान लाये और अल्लाह ईमान वालों का संरक्षकभमित्र है।
1. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आप के अनुयायी।
 
3:69
अहले किताब में से एक गिरोह की कामना है कि तुम्हें कुपथ कर दे। जबकि वे स्वयं को कुपथ कर रहे हैं, परन्तु वे समझते नहीं हैं।
 
3:70
हे अहले किताब! तुम अल्लाह की आयतों[1] के साथ कुफ़्र क्यों कर रहे हो, जबकि तुम साक्षी[2] हो?
1. जो तुम्हारी किताब में अन्तिम नबी से संबंधित है। 2. अर्थात उन आयतों के सत्य होने के साक्षी हो।
 
3:71
हे अहले किताब! क्यों सत्य को असत्य के साथ मिलाकर संदिग्ध कर देते हो और सत्य को छुपाते हो, जबकि तुम जानते हो?
 
3:72
अहले किताब के एक समुदाय ने कहा कि दिन के आरंभ में उसपर ईमान ले आओ, जो ईमान वालों पर उतारा गया है और उसके अन्त (अर्थातः संध्या-समय) कुफ़्र कर दो, संभवतः वे फिर[1] जायें।
1. अर्थात मुसलमान इस्लाम से फिर जायें।
 
3:73
और केवल उसी की मानो, जो तुम्हारे (धर्म) का अनुसरण करे। (हे नबी!) कह दो कि मार्गदर्शन तो वही है, जो अल्लाह का मार्गदर्शन है। (और ये भी न मानो कि) जो (धर्म) तुम्हें दिया गया है, वैसा किसी और को दिया जायेगा अथवा वे तुमसे तुम्हारे पालनहार के पास विवाद कर सकेंगे। आप कह दें कि प्रदान अल्लाह के हाथ में है, वह जिसे चाहे, देता है और अल्लाह विशाल ज्ञानी है।
 
3:74
वह जिसे चाहे, अपनी दया के साथ विशेष कर देता है तथा अल्लाह बड़ा दानशील है।
 
3:75
तथा अह्ले किताब में से वो भी है, जिसके पास चाँदी-सोने का ढेर धरोहर रख दो, तो उसे तुम्हें चुका देगा तथा उनमें वो भी है, जिसके पास एक दीनार[1] भी धरोहर रख दो, तो तुम्हें नहीं चुकायेगा, परन्तु जब सदा उसके सिर पर सवार रहो। ये (बात) इसलिए है कि उन्होंने कहा कि उम्मियों के बारे में हमपर कोई दोष[2] नहीं तथा अल्लाह पर जानते हुए झूठ बोलते हैं।
1. दीनार, सोने के सिक्के को कहा जाता है। 2. अर्थात उन के धन का उपभोग करने पर कोई पाप नहीं। क्यों कि यहूदियों ने अपने अतिरिक्त सब का धन ह़लाल समझ रखा था। और दूसरों को वह "उम्मी" कहा करते थे। अर्थात वह लोग जिन के पास कोई आसमानी किताब नहीं है।
 
3:76
क्यों नहीं, जिसने अपना वचन पूरा किया और (अल्लाह से) डरा, तो वास्तव में अल्लाह डरने वालों से प्रेम करता है।
 
3:77
निःसंदेह जो अल्लाह के[1] वचन तथा अपनी शपथों के बदले तनिक मूल्य खरीदते हैं, उन्हीं का आख़िरत (परलोक) में कोई भाग नहीं, न प्रलय के दिन अल्लाह उनसे बात करेगा और न उनकी ओर देखेगा और न उन्हें पवित्र करेगा तथा उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।
1. अल्लाह के वचन से अभिप्राय वह वचन है, जो उन से धर्म पुस्तकों द्वारा लिया गया है।
 
3:78
और बेशक उनमें से एक गिरोह[1] ऐसा है, जो अपनी ज़बानों को किताब पढ़ते समय मरोड़ते हैं, ताकि तुम उसे पुस्तक में से समझो, जबकि वह पुस्तक में से नहीं है और कहते हैं कि वह अल्लाह के पास से है, जबकि वह अल्लाह के पास से नहीं है और अल्लाह पर जानते हुए झूठ बोलते हैं।
1. इस से अभिप्राय यहूदी विद्वान हैं। और पुस्तक से अभिप्राय तौरात है।
 
3:79
किसी पुरुष जिसे अल्लाह ने पुस्तक, निर्णय शक्ति और नुबुव्वत दी हो, उसके लिए योग्य नहीं कि लोगों से कहे कि अल्लाह को छोड़कर मेरे दास बन जाओ[1], अपितु (वह तो यही कहेगा कि) तुम अल्लाह वाले बन जाओ। इस कारण कि तुम पुस्तक की शिक्षा देते हो तथा इस कारण कि उसका अध्ययन स्वयं भी करते रहते हो।
1. भावार्थ यह है कि जब नबी के लिये योग्य नहीं कि लोगों से कहे कि मेरी इबादत करो, तो किसी अन्य के लिये कैसे योग्य हो सकता है?
 
3:80
तथा वह तुम्हें कभी आदेश नहीं देगा कि फ़रिश्तों तथा नबियों को अपना पालनहार[1] (पूज्य) बना लो। क्या तुम्हें कुफ़्र करने का आदेश देगा, जबकि तुम अल्लाह के आज्ञाकारी हो?
1. जैसे अपने पालनहार के आगे झुकते हो, उसी प्रकार उन के आगे भी झुको।
 
3:81
तथा (याद करो) जब अल्लाह ने नबियों से वचन लिया कि जबभी मैं तुम्हें कोई पुस्तक और प्रबोध (तत्वदर्शिता) दूँ, फिर तुम्हारे पास कोई रसूल उसे प्रमाणित करते हुए आये, जो तुम्हारे पास है, तो तुम अवश्य उसपर ईमान लाना और उसका समर्थन करना। (अल्लाह) ने कहाः क्या तुमने स्वीकार किया और इसपर मेरे वचन का भार उठाया? तो सबने कहाः हमने स्वीकार कर लिया। अल्लाह ने कहाः तुम साक्षी रहो और मैं भी तुम्हारे[1] साथ साक्षियों में से हूँ।
1. भावार्थ यह है किः जब आगामी नबीयों को ईमान लाना आवश्यक है, तो उन के अनुयायियों को भी ईमान लाना आवश्यक होगा। अतः अन्तिम नबी मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर ईमान लाना सभी के लिये अनिवार्य है।
 
3:82
फिर जिसने इसके[1] पश्चात् मुँह फेर लिया, तो वही अवज्ञाकारी है।
1. अर्थात इस वचन और प्रण के पश्चात्।
 
3:83
तो क्या वे अल्लाह के धर्म (इस्लाम) के सिवा (कोई दूसरा धर्म) खोज रहे हैं? जबकि जो आकाशों तथा धरती में है, स्वेच्छा तथा अनिच्छा उसी के आज्ञाकारी[1] हैं तथा सब उसी की ओर फेरे[2] जायेंगे।
1. अर्थात उसी की आज्ञा तथा व्यवस्था के अधीन हैं। फिर तुम्हें इस स्वभाविक धर्म से इंकार क्यों है? 2. अर्थात प्रलय के दिन अपने कर्मों के प्रतिफल के लिये।
 
3:84
(हे नबी!) आप कहें कि हम अल्लाह पर तथा जो हमपर उतारा गया और जो इब्राहीम, इस्माईल, इस्ह़ाक़, याक़ूब एवं (उनकी) संतानों पर उतारा गया तथा जो मूसा, ईसा तथा अन्य नबियों को उनके पालनहार की ओर से प्रदान किया गया है, (उनपर) ईमान लाये। हम उन (नबियों) में किसी के बीच कोई अंतर नहीं[1] करते और हम उसी (अल्लाह) के आज्ञाकारी हैं।
1. अर्थात मूल धर्म अल्लाह की आज्ञाकारिता है, और अल्लाह की पुस्तकों तथा उस के नबियों के बीच अन्तर करना, किसी को मानना और किसी को न मानना अल्लाह पर ईमान और उस की आज्ञाकारिता के विपरीत है।
 
3:85
और जो भी इस्लाम के सिवा (किसी और धर्म) को चाहेगा, तो उसे उससे कदापि स्वीकार नहीं किया जायेगा और वे प्रलोक में क्षतिग्रस्तों में होगा।
 
3:86
अल्लाह ऐसी जाति को कैसे मार्गदर्शन देगा, जो अपने ईमान के पश्चात् काफ़िर हो गये और साक्षी रहे कि ये रसूल सत्य हैं तथा उनके पास खुले तर्क आ गये? और अल्लाह अत्याचारियों को मार्गदर्शन नहीं देता।
 
3:87
इन्हीं का प्रतिकार (बदला) ये है कि उनपर अल्लाह तथा फ़रिश्तों और सब लोगों की धिक्कार होगी।
 
3:88
वे उसमें सदावासी होंगे, उनसे यातना कम नहीं की जायेगी और न उन्हें अवकाश दिया जायेगा।
 
3:89
परन्तु जिन्होंने इसके पश्चात् तौबा (क्षमा याचना) कर ली तथा सुधार कर लिया, तो निश्चय अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।
 
3:90
वास्तव में, जो अपने ईमान लाने के पश्चात् काफ़िर हो गये, फिर कुफ़्र में बढ़ते गये, तो उनकी तौबा (क्षमा याचना) कदापि[1] स्वीकार नहीं की जायेगी तथा वही कुपथ हैं।
1. अर्थात यदि मौत के समय क्षमा याचना करें।
 
3:91
निश्चय जो काफ़िर हो गये तथा काफ़िर रहते हुए मर गये, तो उनसे धरती भर सोना भी स्वीकार नहीं किया जायेगा, यद्यपि उसके द्वारा अर्थदणड दे। उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है और उनका कोई सहायक न होगा।
 
3:92
तुम पुण्य[1] नहीं पा सकोगे, जब तक उसमें से दान न करो, जिससे मोह रखते हो तथा तुम जो भी दान करोगे, वास्तव में, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है।
1. अर्थात पुण्य का फल स्वर्ग।
 
3:93
प्रत्येक खाद्य पदार्थ बनी इस्राईल[1] के लिए ह़लाल (वैध) थे, परन्तु जिसे इस्राईल ने अपने ऊपर ह़राम (अवैध) कर लिया, इससे पहले कि तौरात उतारी जाये। (हे नबी!) कहो कि तौरात लाओ तथा उसे पढ़ो, यदि तुम सत्यवादि हो।
1. जब क़ुर्आन ने यह कहा कि यहूद पर बहुत से स्वच्छ खाद्य पदार्थ उन के अत्याचार के कारण अवैध कर दिये गये। (देखिये सूरह निसा आयतः160, सूरह अन्आम आयतः146)। अन्यथा यह सभी इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के युग में वैध थे। तो यहूद ने इसे झुठलाया तथा कहने लगे कि यह सब तो इब्राहीम अलैहिस्सलाम के युग ही से अवैथ चले आ रहे हैं। इसी पर यह आयतें उतरीं कि तौरात से इस का प्रमाण प्रस्तुत करो कि यह इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के युग ही से अवैध हैं। यह और बात है कि इस्राईल ने कुछ चीज़ों जैसे ऊँट का माँस रोग अथवा मनौती के कारण अपने लिये स्वयं अवैध कर लिया था। यहाँ यह याद रखें कि इस्लाम में किसी उचित चीज़ को अनुचित करने की अनुमति किसी को नहीं है। (देखियेःशौकानी)
 
3:94
फिर इसके पश्चात् जो अल्लाह पर मिथ्या आरोप लगायें, तो वही वास्तव, में अत्याचारी हैं।
 
3:95
उनसे कह दो, अललाह सच्चा है, इसलिए तुम एकेश्वरवादी इब्राहीम के धर्म पर चलो तथा वह मिश्रणवादियों में से नहीं था।
 
3:96
निःसंदेह पहला घर, जो मानव के लिए (अल्लाह की वंदना का केंद्र) बनाया गया, वह वही है, जो मक्का में है, जो शुभ तथा संसार वासियों के लिए मार्गदर्शन है।
 
3:97
उसमें खुली निशानियाँ हैं, (जिनमें) मक़ामे[1] इब्राहीम है तथा जो कोई उस (की सीमा) में प्रवेश कर गया, तो वह शांत (सुरक्षित) हो गया। तथा अल्लाह के लिए लोगों पर इस घर का ह़ज अनिवार्य है, जो उसतक राह पा सकता हो तथा जो कुफ़्र करेगा, तो अल्लाह संसार वासियों से निस्पृह है।
1. अर्थात वह पत्थर जिस पर खड़े हो कर इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने काबा का निर्माण किया जिस पर उन के पैरों के निशान आज तक हैं।
 
3:98
(हे नबी!) आप कह दें कि हे अह्ले किताब! ये क्या है कि तुम अल्लाह की आयतों के साथ कुफ़्र कर रहे हो, जबकि अल्लाह तुम्हारे कर्मों का साक्षी है?
 
3:99
हे अह्ले किताब! किस लिए लोगों को, जो ईमान लाना चाहें, अल्लाह की राह से रोक रहे हो, उसे उलझाना चाहते हो, जबकि तुम साक्षी[1] हो और अल्लाह तुम्हारे कर्मों से असूचित नहीं है?
1. अर्थात इस्लाम के सत्धर्म होने को जानते हो।
 
3:100
हे ईमान वालो! यदि तुम अह्ले किताब के किसी गिरोह की बात मानोगे, तो वह तुम्हारे ईमान के पश्चात् फिर तुम्हें काफ़िर बना देंगे।

3:101
तथा तुम कुफ़्र कैसे करोगे, जबकि तुम्हारे सामने अललाह की आयतें पढ़ी जा रही हैं और तुममें उसके रसूल[1] मौजूद हैं? और जिसने अल्लाह को[2] थाम लिया, तो उसे सुपथ दिखा दिया गया।
1. अर्थात मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)। 2. अर्थात अल्लाह का आज्ञाकारी हो गया।
 
3:102
हे ईमान वालो! अल्लाह से ऐसे डरो, जो वास्तव में, उससे डरना हो तथा तुम्हारी मौत इस्लाम पर रहते हुए ही आनी चाहिए।
 
3:103
तथा अल्लाह की रस्सी[1] को सब मिलकर दृढ़ता से पकड़ लो और विभेद में न पड़ो तथा अपने ऊपर अललाह के पुरस्कार को याद करो, जब तुम एक-दूसरे के शत्रु थे, तो तुम्हारे दिलों को जोड़ दिया और तुम उसके पुरस्कार के कारण भाई-भाई हो गए तथा तुम अग्नि के गड़हे के किनारे पर थे, तो तुम्हें उससे निकाल दिया। इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतें उजागर करता है, ताकि तुम मार्गदर्शन पा जाओ।
1. अल्लाह की रस्सी से अभिप्राय क़ुर्आन और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सुन्नत है। यही दोनों मुसलमानों की एकता और परस्पर प्रेम का सूत्र हैं।
 
3:104
तथा तुममें एक समुदाय ऐसा अवश्य होना चाहिए, जो भली बातों[1] की ओर बुलाये, भलाई का आदेश देता रहे, बुराई[2] से रोकता रहे और वही सफल होंगे।
1. अर्थात धर्मानुसार बातों का। 2.अर्थात धर्म विरोधी बातों से।
 
3:105
तथा उनके[1] समान न हो जाओ, जो खुली निशानियाँ आने के पश्चात्, विभेद तथा आपसी विरोध में पड़ गये और उन्हीं के लिए घोर यातना है।
1. अर्थात अह्ले किताब (यहूदी व ईसाई)।
 
3:106
जिस दिन बहुत-से मुख उजले तथा बहुत-से मुख काले होंगे। फिर जिनके मुख काले होंगे (उनसे कहा जायेगाः) क्या तुमने अपने ईमान के पश्चात् कुफ़्र कर लिया था? तो अपने कुफ़्र करने का दण्ड चखो। 
 
3:107
तथा जिनके मुख उजले होंगे, वे अल्लाह की दया (स्वर्ग) में रहेंगे। व उसमें सदावासी होंगे।

3:108
ये अल्लाह की आयतें हैं, जो हम आपको ह़क़ के साथ सुना रहे हैं तथा अल्लाह संसार वासियों पर अत्याचार नहीं करना चाहता।
 
3:109
तथा अल्लाह ही का है, जो आकाशों में और जो धरती में है तथा अल्लाह ही की ओर सब विषय फेरे जायेंगे।
 
3:110
तुम, सबसे अच्छी उम्मत हो, जिसे सब लोगों के लिए उत्पन्न किया गया है कि तुम भलाई का आदेश देते हो तथा बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान (विश्वास) रखते[1] हो। यदि अह्ले किताब ईमान लाते, तो उनके लिए अच्छा होता। उनमें कुछ ईमान वाले हैं और अधिक्तर अवज्ञाकारी हैं।
1. इस आयत में मुसलमानों को संबोधित किया गया है, तथा उन्हें उम्मत कहा गया है। किसी जाति अथवा वर्ग और वर्ण के नाम से संबोधित नहीं किया गया है। और इस में यह संकेत है कि मुसलमान उन का नाम है जो सत्धर्म के अनुयायी हों। तथा उन के अस्तित्व का लक्ष्य यह बताया गया है कि वह सम्पूर्ण मानव विश्व को सत्धर्म इस्लाम की ओर बुलायें जो सर्व मानव जाति का धर्म है। किसी विशेष जाति और क्षेत्र अथवा देश का धर्म नहीं है।
 
3:111
वे तुम्हें सताने के सिवा कोई हानि पहुँचा नहीं सकेंगे और यदि तुमसे युध्द करेंगे, तो वे तुम्हें पीठ दिखा देंगे। फिर सहायता नहीं दिए जायेंगे।
 
3:112
इन (यहूदियों) पर जहाँ भी रहें, अपमान थोंप दिया गया है, (ये और बात है कि) अल्लाह की शरण[1] अथवा लोगों की शरण में हों[2], ये अल्लाह के प्रकोप के अधिकारी हो गये तथा इनपर दरिद्रता थोंप दी गयी। ये इस कारण हुआ कि ये अल्लाह की आयतों के साथ कुफ़्र कर रहे थे और नबियों का अवैध वध कर रहे थे। ये इस कारण कि इन्होंने अवज्ञा की और (धर्म की) सीमा का उल्लंघन कर रहे थे।
1. अल्लाह की शरण से अभिप्राय इस्लाम धर्म है। 2.दूसरा बचाव का तरीक़ा यह है कि किसी ग़ैर मुस्लिम शक्ति की उन्हें सहायता प्राप्त हो जाये।
 
3:113
वे सभी समान नहीं हैं; अह्ले किताब में एक( सत्य पर) स्थित उम्मत[1] भी है, जो अल्लाह की आयतें रातों में पढ़ते हैं तथा सज्दा करते रहते हैं।
1. अर्थात जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर ईमान लाये। जैसे अब्दुल्लाह बिन सलाम (रज़ियल्लाहु अन्हु) आदि।
 
3:114
अल्लाह तथा अंतिम दिन (प्रलय) पर ईमान रखते हैं, भलाई का आदेश देते हैं, बुराई से रोकते हैं, भलाईयों में अग्रसर रहते हैं और यही सदाचारियों में हैं।
 
3:115
वे, जो भी भलाई करेंगे, उसकी उपेक्षा (अनादर) नहीं की जायेगी और अल्लाह आज्ञाकारियों को भली-भाँति जानता है।
 
3:116
(परन्तु) जो काफ़िर[1] हो गये, उनके धन और उनकी संतान अल्लाह (की यातना) से उन्हें तनिक भी बचा नहीं सकेगी तथा वही नारकी हैं, वही उसमें सदावासी होंगे।
1. अर्थात अल्लाह की आयतों (क़ुर्आन) को नकार दिया।
 
3:117
जो दान, वे इस सांसारिक जीवन में करते हैं, वो उस वायु के समान है, जिसमें पाला हो, जो किसी क़ौम की खेती को लग जाये, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार[1] किया हो और उसका नाश कर दे तथा अल्लाह ने उनपर अत्याचार नहीं किया, परन्तु वे स्वयं अपने ऊपर अत्याचार कर रहे थे।
1. अवैज्ञा तथा अस्वीकार करते रहे थे। इस में यह संकेत है कि अल्लाह पर ईमान के बिना दानों का प्रतिफल परलोक में नहीं मिलेगा।
 
3:118
हे ईमान वालो! अपनों के सिवा किसी को अपना भेदी न बनाओ[1], वे तुम्हारा बिगाड़ने में तनिक भी नहीं चूकेंगे, उनहें वही बात भाती है, जिससे तुम्हें दुःख हो। उनके मुखों से शत्रुता खुल चुकी है तथा जो उनके दिल छुपा रहे हैं, वो इससे बढ़कर है। हमने तुम्हारे लिए आयतों का वर्णन कर दिया है, यदि तुम समझो।
1. अर्थात वह ग़ैर मुस्लिम जिन पर तुम को विश्वास नहीं कि वह तुम्हारे लिये किसी प्रकार की अच्छी भावना रखते हों।
 
3:119
सावधान! तुमही वो हो कि उनसे प्रेम करते हो, जबकि वे तुमसे प्रेम नहीं करते और तुम सभी पुस्तकों पर ईमान रखते हो, जबकि वे जब तुमसे मिलते हैं, तो कहते हैं कि हम ईमान लाये और जब अकेले होते हैं, तो क्रोध से तुमपर उँगलियों की पोरें चबाते हैं। कह दो कि अपने क्रोध से मर जाओ। निःसंदेह अल्लाह सीनों की बातों को जानता है।
 
3:120
यदि तुम्हारा कुछ भला हो, तो उन्हें बुरा लगता है और यदि तुम्हारा कुछ बुरा हो जाये, तो वे उससे प्रसन्न हो जाते हैं। अलबत्ता, यदि तुम सहन करते रहे और आज्ञाकारी रहे, तो उनका छल तुम्हें कोई हानि नहीं पहुँचायेगा। उनके सभी कर्म अल्लाह के घेरे में हैं।
 
3:121
तथा (हे नबी! वो समय याद करें) जब आप प्रातः अपने घर से निकले, ईमान वालों को युध्द[1] के स्थानों पर नियुक्त कर रहे थे तथा अल्लाह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।
1. साधारण भाष्यकारों ने इसे उह़ुद के युध्द से संबंधित माना है। जो बद्र के युध्द के पश्चात् सन् 3 हिज्री में हुआ। जिस में क़ुरैश ने बद्र की प्राजय का बदला लेने के लिये तीन हज़ार की सेना के साथ उह़ुद पर्वत के समीप पड़ाव डाल दिया। जब आप को इस की सूचना मिली तो मुसलमानों से प्रामर्श किया। अधिकांश की राय हुई कि मदीना नगर से बाहर निकल कर युध्द किया जाये। और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक हज़ार मुसलमानों को ले कर निकले। जिस में से अब्दुल्लाह बिन उबय्य मुनाफ़िक़ों का मुख्या अपने तीन सौ साथियों के साथ वापिस हो गया। आप ने रणक्षेत्र में अपने पीछे से शत्रु के आक्रमण से बचाव के लिये 70 धनुर्धरों को नियुक्त कर दिया। और उन का सेनापति अब्दुल्लाह बिन जुबैर को बना दिया। तथा यह आदेश दिया कि कदापि इस स्थान को न छोड़ना। युध्द आरंभ होते ही क़ुरैश पराजित हो कर भाग खड़े हुये। यह देख कर धनुर्धरों में से अधिकांश ने अपना स्थान छोड़ दिया। क़ुरैश के सेनापति ख़ालिद पुत्र वलीद ने अपने सवारों के साथ फिर कर धनुर्धरों के स्थान पर आक्रमण कर दिया। फिर आकस्मात् मुसलमानों पर पीछे से आक्रमण कर के उन की विजय को पराजय में बदल दिया। जिस में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भी आघात पहुँचा। (तफ़्सीर इब्ने कसीर।)
 
3:122
तथा (याद करें) जब आपमें से दो गिरोहों[1] ने कायरता दिखाने का विचार किया और अल्लाह उनका रक्षक था तथा ईमान वालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।
1. अर्थात दो क़बीले बनू सलमा तथा बनू हारिसा ने भी अब्दुल्लाह बिन उबय्य के साथ वापिस हो जाना चाहा। (सह़ीह़ बुख़ारी ह़दीसः4558)
 
3:123
अल्लाह बद्र में तुम्हारी सहायता कर चुका है, जब तुम निर्बल थे। अतः अल्लाह से डरते रहो, ताकि उसके कृतज्ञ रहो।

3:124
(हे नबी! वो समय भी याद करें) जब आप ईमान वालों से कह रहे थेः क्या तुम्हारे लिए ये बस नहीं है कि अल्लाह तुम्हें (आकाश से) उतारे हुए, तीन हज़ार फ़रिश्तों द्वारा समर्थन दे?
 
3:125
क्यों[1] नहीं? यदि तुम सहन करोगे, आज्ञाकारी रहोगे और वे (शत्रु) तुम्हारे पास अपनी उत्तेजना के साथ आ गये, तो तुम्हारा पालनहार तुम्हें (तीन नहीं,) पाँच हज़ार चिन्ह[2] लगे फ़रिश्तों द्वारा समर्थन देगा।
1. अर्थात इतना समर्थन बहुत है। 2. अर्थात उन पर तथा उन के घोड़ों पर चिन्ह लगे होंगे।
 
3:126
और अल्लाह ने इसे तुम्हारे लिए केवल शुभ सूचना बनाया है और ताकि तुम्हारे दिलों को संतोष हो जाये और समर्थन तो केवल अल्लाह ही के पास से है, जो प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।

3:127
ताकि[1] वह काफ़िरों का एक भाग काट दे अथवा उन्हें अपमानित कर दे। फिर वे असफल वापस हो जायेँ।
1. अर्थात अल्लाह तुम्हें फ़रिश्तों द्वारा समर्थन इस लिये देगा, ताकि काफ़िरों का कुछ बल तोड़ दे, और उन्हें निष्फल वापिस कर दे।

3:128
हे नबी! इस[1] विषय में आपको कोई अधिकार नहीं, अल्लाह चाहे तो उनकी क्षमा याचना स्वीकार[2] करे या दण्ड[3] दे, क्योंकि वे अत्याचारी हैं।
1. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फ़ज्र की नमाज़ में रुकूअ के पश्चात यह प्रार्थना करते थे कि हे अल्लाह! अमुक को अपनी दया से दूर कर दे। इसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुखारीः4559) 2. अर्थात उन्हें मार्गदर्शन दे। 3. यदि काफ़िर ही रह जायें।

3:129
अल्लाह ही का है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है, वह जिसे चाहे, क्षमा करे और जिसे चाहे, दण्ड दे तथा अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।

3:130
हे ईमान वालो! कई-कई गुणा करके ब्याज[1] न खाओ तथा अल्लाह से डरो, ताकि सफल हो जाओ।
1. उह़ुद की पराजय का कारण धन का लोभ बना था। इस लिये यहाँ ब्याज से सावधान किया जा रहा है, जो धन के लोभ का अति भयावह साधन है। तथा आज्ञाकारिता की प्रेरणा दी जा रही है। कई-कई गुणा ब्याज न खाने का अर्थ यह नहीं कि इस प्रकार ब्याज न खाओ, बल्कि ब्याज अधिक हो या थोड़ी सर्वथा ह़राम (वर्जित) है। यहाँ जाहिलिय्यत के युग में ब्याज की जो रीति थी, उस का वर्णन किया गया है। जैसा कि आधुनिक युग में ब्याज पर ब्याज लेने की रीति है।

3:131
तथा उस अग्नि से बचो, जो काफ़िरों के लिए तैयार की गयी है।

3:132
तथा अल्लाह और रसूल के आज्ञाकारी रहो, ताकि तुमपर दया की जाये।

3:133
और अपने पालनहार की क्षमा और उस स्वर्ग की ओर अग्रसर हो जाओ, जिसकी चौड़ाई आकाशों तथा धरती के बराबर है, वह आज्ञाकारियों के लिए तैयार की गयी है।
 
3:134
जो सुविधा तथा असुविधा की दशा में दान करते रहते हैं, क्रोध पी जाते और लोगों के दोष क्षमा कर दिया करते हैं और अल्लाह सदाचारियों से प्रेम करता है।

3:135
और जब कभी वे कोई बड़ा पाप कर जायेँ अथवा अपने ऊपर अत्याचार कर लें, तो अल्लाह को याद करते हैं, फिर अपने पापों के लिए क्षमा माँगते हैं -तथा अल्लाह के सिवा कौन है, जो पापों को क्षमा करे?- और अपने किये पर जान-बूझ कर अड़े नहीं रहते।

3:136
उन्हीं का प्रतिफल (बदला) उनके पालनहार की क्षमा तथा ऐसे स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें परवाहित हैं, जिनमें वे सदावासी होंगे। तो क्या ही अच्छा है सत्कर्मियों का ये प्रतिफल!

3:137
तुमसे पहले भी इसी प्रकार हो चुका[1] है। तुम धरती में फिरो और देखो कि झुठलाने वालों का परिणाम कैसा रहा?
1. उहुद की पराजय पर मुसलमानों को दिलासा दी जा रही है जिस में उन के 70 व्यक्ति मारे गये। (तफ़्सीर इब्ने कसीर)

3:138
ये (क़ुर्आन) लोगों के लिए एक वर्णन, मार्गदर्शन और एक शिक्षा है, (अल्लाह से) डरने वालों के लिए।

3:139
(इसपराजय से) तुम निर्बल तथा उदासीन न बनो और तुमही सर्वोच्च रहोगे, यदि तुम ईमान वाले हो।

3:140
यदि तुम्हें कोई घाव लगा है, तो क़ौम (शत्रु)[1] को भी इसी के समान घाव लग चुका है तथा उन दिनों को हम लोगों के बीच फेरते[2] रहते हैं। ताकि अल्लाह उन लोगों को जान ले,[1] जो ईमान लाये और तुममें से साक्षी बनाये और अल्लाह अत्याचारियों से प्रेम नहीं करता।
1. इस में क़ुरैश की बद्र में पराजय और उन के 70 व्यक्तियों के मारे जाने की ओर संकेत है। 2. अर्थात कभी किसी की जीत होती है, कभी किसी की। 3. अर्थात अच्छे बुरे में विवेक (अंतर) कर दे।

3:141
तथा ताकि अल्लाह उन्हें शुध्द कर दे, जो ईमान लाये हैं और काफ़िरों को नाश कर दे।

3:142
क्या तुमने समझ रखा है कि स्वर्ग में प्रवेश कर जाओगे? जबकि अल्लाह ने (परीक्षा करके) उन्हें नहीं जाना है, जिन्होंने तुममें से जिहाद किया है और न सहनशीलों को जाना है?

3:143
तथा तुम मौत की कामना कर[1] रहे थे, इससे पूर्व कि उसका सामना करो, तो अब तुमने उसे आँखों से देख लिया है और देख रहे हो।
1. अर्थात अल्लाह की राह में शहीद हो जाने की।

3:144
मुह़म्मद केवल एक रसूल हैं, इससे पहले बहुत-से रसूल हो चुके हैं, तो क्या यदि वो मर गये अथवा मार दिये गये, तो तुम अपनी एड़ियों के बल[1] फिर जाओगे? तथा जो अपनी एड़ियों के बल फिर जायेगा, वो अल्लाह को कुछ हानि नहीं पहुँचा सकेगा और अल्लाह शीघ्र ही कृतज्ञों को प्रतिफल प्रदान करेगा।
1. अर्थात इस्लाम से फिर जाओगे। भावार्थ यह है कि सत्धर्म इस्लाम स्थायी है, नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के न रहने से समाप्त नहीं हो जायेगा। उह़ुद में जब किसी विरोधी ने यह बात उड़ाई कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मार दिये गये तो यह सुन कर बहुत से मुसलमान हताश हो गये। कुछ ने कहा कि अब लड़ने से क्या लाभ? तथा मुनाफ़िक़ों ने कहा कि मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) नबी होते तो मार नहीं खाते। इस आयत में यह संकेत है कि दूसरे नबियों के समान आप को भी एक दिन संसार से जाना है। तो क्या तुम उन्हीं के लिये इस्लास को मानते हो और आप नहीं रहेंगे तो इस्लाम नहीं रहेगा?

3:145
कोई प्राणी ऐसा नहीं कि अल्लाह की अनुमति के बिना मर जाये, उसका अंकित निर्धारित समय है। जो सांसारिक प्रतिफल चाहेगा, हम उसे उसमें से कुछ देंगे तथा जो परलोक का प्रतिफल चाहेगा, हम उसे उसमें से देंगे और हम कृतज्ञों को शीघ्र ही प्रतिफल देंगे।

3:146
कितने ही नबी थे, जिनके साथ होकर बहुत-से अल्लाह वालों ने युध्द किया, तो वे अल्लाह की राह में आयी आपदा पर न आलसी हुए, न निर्बल बने और न (शत्रु से) दबे तथा अल्लाह धैर्यवानों से प्रेम करता है।

3:147
तथा उनका कथन बस यही था कि उन्होंने कहाः हे हमारे पालनहार! हमारे लिए हमारे पापों को क्षमा कर दे तथा हमारे विषय में हमारी अति को। और हमारे पैरों को दृढ़ कर दे और काफ़िर जाति के विरुध्द हमारी सहायता कर।

3:148
तो अल्लाह ने उन्हें सांसारिक प्रतिफल तथा आख़िरत (परलोक) का अच्छा प्रतिफल प्रदान कर दिया तथा अल्लाह सुकर्मियों से प्रेम करता है।

3:149
हे ईमान वालो! यदि तुम काफ़िरों की बात मानोगे, तो वे तुम्हें तुम्हारी एड़ियों के बल फेर देंगे और तुम फिर से क्षति में पड़ जाओगे।

3:150
बल्कि अल्लाह तुम्हारा रक्षक है तथा वह सबसे अच्छा सहायक है।

3:151
शीघ्र ही हम काफ़िरों के दिलों में तुम्हारा भय डाल देंगे, इस कारण कि उन्होंने अल्लाह का साझी उसे बना लिया है, जिसका कोई तर्क (प्रमाण) अल्लाह ने नहीं उतारा है और इनका आवास नरक है और वह क्या ही बुरा आवास है?

3:152
तथा अल्लाह ने तुमसे अपना वचन सच कर दिखाया है, जब तुम उसकी अनुमति से, उनहें काट[1] रहे थे, यहाँ तक कि जब तुमने कायरता दिखायी तथा (रसूल के) आदेश[2] में विभेद कर लिया और अवज्ञा की, इसके पश्चात् कि तुम्हें वह (विजय) दिखा दी, जिसे तुम चाहते थे। तुममें से कुछ संसार चाहते हैं तथा कुछ परलोक चाहते हैं। फिर तुम्हें उनसे फेर दिया, ताकि तुम्हारी परीक्षा ले और तुम्हें क्षमा कर दिया तथा अल्लाह ईमान वालों के लिए दानशील है।
1. अर्थात उह़ुद के आरंभिक क्षणों में। 2. अर्थात कुछ धनुर्धरों ने आप के आदेश का पालन नहीं किया, और परिहार का धन संचित करने के लिये अपना स्थान त्याग दिया, जो पराजय का कारण बन गया। और शत्रु को उस दिशा से आक्रमण करने का अवसर मिल गया।

3:153
(और याद करो) जब तुम चढ़े (भागे) जा रहे थे और किसी की ओर मुड़कर नहीं देख रहे थे और रसूल तुम्हें तुम्हारे पीछे से पुकार[1] रहे थे, तो (अल्लाह ने) तुम्हें शोक के बदले शोक दे दिया, ताकि जो तुमसे खो गया और जो दुख तुम्हें पहुँचा, उसपर उदासीन न हो तथा अल्लाह उससे सूचित है, जो तुम कर रहे हो।
2. बराअ बिन आज़िब कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उह़ुद के दिन अब्दुल्लाह बिन जुबैर को पैदल सेना पर रखा। और वह पराजित हो कर आ गये, इसी के बारे में यह आयत है। उस समय नबी के साथ बारह व्यक्ति ही रह गये। (सह़ीह़ बुख़ारीः4561)

3:154
फिर तुमपर शोक के पश्चात् शान्ति (ऊँघ) उतार दी, जो तुम्हारे एक गिरोह[1] को आने लगी और एक गिरोह को अपनी[2] पड़ी हुई थी। वे अल्लाह के बारे में असत्य जाहिलिय्यत की सोच सोच रहे थे। वे कह रहे थे कि क्या हमारा भी कुछ अधिकार है? (हे नबी!) कह दें कि सब अधिकार अल्लाह को है। वे अपने मनों में जो छुपा रहे थे, आपको नहीं बता रहे थे। वे कह रहे थे कि यदि हमारा कुछ भी अधिकार होता, तो यहाँ मारे नहीं जाते। आप कह दें: यदि तुम अपने घरों में रहते, तबभी जिनके (भाग्य में) मारा जाना लिखा है, वे अपने निहत होने के स्थानों की ओर निकल आते और ताकि अल्लाह जो तुम्हारे दिलों में है, उसकी परीक्षा ले तथा जो तुम्हारे दिलों में है, उसे शुध्द कर दे और अल्लाह दिलों के भेदों से अवगत है।
1. अबु तल्हा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहाः हम उह़ुद में ऊँघने लगे। मेरी तलवार मेरे हाथ से गिरने लगती और मैं पकड़ लेता, फिर गिरने लगती और पकड़ लेता।(सह़ीह़ बुख़ारीः4562) 2.यह मुनाफ़िक़ लोग थे।

3:155
वस्तुतः तुममें से जिन्होंने दो गिरोहों के सम्मुख होने के दिन मुँह फेर लिया, शैतान ने उनहें उनके कुछ कुकर्मों के कारण फिसला दिया तथा अल्लाह ने उन्हें क्षमा कर दिया है। वास्तव में, अल्लाह अति क्षमाशील सहनशील है।

3:156
हे ईमान वालो! उनके समान न हो जाओ, जो काफ़िर हो गये तथा अपने भाईयों से -जब यात्रा में हों अथवा युध्द में- कहा कि यदि वे हमारे पास होते, तो न मरते और न मारे जाते, ताकि अल्लाह उनके दिलों में इसे संताप बना दे और अल्लाह ही जीवित करता तथा मौत देता है और अल्लाह जो तुम कर रहे हो, उसे देख रहा है।

3:157
यदि तुम अल्लाह की राह में मार दिये जाओ अथवा मर जाओ, तो अल्लाह की क्षमा उससे उत्तम है, जो, लोग एकत्र कर रहे हैं।

3:158
तथा यदि तुम मर गये अथवा मार दिये गये, तो अल्लाह ही के पास एकत्र किये जाओगे।

3:159
अल्लाह की दया के कारण ही आप उनके लिए[1] कोमल (सुशील) हो गये और यदि आप अक्खड़ तथा कड़े दिल के होते, तो वे आपके पास से बिखर जाते। अतः, उन्हें क्षमा कर दो और उनके लिए क्षमा की प्रार्थना करो तथा उनसे भी मामले में प्रामर्श करो, फिर जब कोई दृढ़ संकल्प ले लो, तो अल्लाह पर भरोसा करो। निःसंदेह, अल्लाह भरोसा रखने वालों से प्रेम करता है।
1. अर्थात अपने साथियों के लिये, जो उह़ुद में रणक्षेत्र से भाग गये।

3:160
यदि अल्लाह तुम्हारी सहायता करे, तो तुमपर कोई प्रभुत्व नहीं पा सकता तथा यदि तुम्हारी सहायता न करे, तो फिर कौन है, जो उसके पश्चात तुम्हारी सहायता कर सके? अतः ईमान वालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिये।

3:161
किसी नबी के लिए योग्य नहीं कि अपभोग[1] करे और जो अपभोग करेगा, प्रलय के दिन उसे लायेगा। फिर प्रत्येक प्राणी को, उसकी कमाई का भरपूर प्रतिकार (बदला) दिया जायेगा तथा उनपर अत्याचार नहीं किया जायेगा।
1. उह़ुद के दिन जो अपना स्थान छोड़ कर इस विचार से आ गये कि यदि हम न पहुँचे, तो दूसरे लोग ग़नीमत का सब धन ले जायेंगे, उन्हें यह चेतावनी दी जा रही है कि तुमने यह कैसे सोच लिया कि इस धन में से तुम्हारा भाग नहीं मिलेगा, क्या तुम्हें नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की अमानत पर भरोसा नहीं है? सुन लो! नबी से किसी प्रकार का अपभोग असम्भव है। यह घोर पाप है जो कोई नबी कभी नहीं कर सकता।

3:162
तो क्या जिसने अल्लाह की प्रसन्नता का अनुसरण किया हो, उसके समान हो जायेगा, जो अल्लाह का क्रोध[1] लेकर फिरा और उसका आवास नरक है?
1. अर्थात् पापों में लीन रहा।

3:163
अल्लाह के पास उनकी श्रेणियाँ हैं तथा अल्लाह उसे देख[1] रहा है, जो वे कर रहे हैं।
1. अर्थात लोगों के कर्मों के अनुसार उन की अलग अलग श्रेणियाँ हैं।

3:164
अल्लाह ने ईमान वालों पर उपकार किया है कि उनमें उन्हीं में से एक रसूल भेजा, जो उनके सामने (अल्लाह) की आयतें पढ़ता है, उन्हें शुध्द करता है तथा उन्हें पुस्तक (क़ुर्आन) और ह़िक्मत (सुन्नत) की शिक्षा देता है, यद्यपि वे इससे पहले खुले कुपथ में थे।

3:165
तथा जब तुम्हें एक दुःख पहुँचा,[1] जबकि इसके दुगना (दुःख) तुमने (उन्हें) पहुँचाया है[2], तो तुमने कह दिया कि ये कहाँ से आ गया? (हे नबी!) कह दोः ये तुम्हारे पास से[3] आया है। वास्तव में, अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
1. अर्थात उह़ुद के दिन। 2. अर्थात बद्र के दिन। 3. अर्थात तुम्हारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आदेश का विरोध करने के कारण आया, जो धनुर्धरों को दिया गया था।

3:166
तथा जो भी आपदा, दो गिरोहों के सम्मुख होने के दिन, तुमपर आई, तो वो अल्लाह की अनुमति से (आई)। ताकि वह ईमान वालों को जान ले।

3:167
और ताकि उन्हें जान ले, जो मुनाफ़िक़ हैं। (जब) उनसे कहा गया कि आओ, अल्लाह की राह में युध्द करो अथवा रक्षा करो, तो उन्होंने कहा कि यदि हम युध्द होना जानते, तो अवश्य तुम्हारा साथ देते। वे उस दिन ईमान से अधिक कुफ़्र के समीप थे, व अपने मुखों से ऐसी बात बोल रहे थे, जो उनके दिलों में नहीं थी तथा अल्लाह, जिसे वे छुपा रहे थे, अधिक जानता था।

3:168
इन्होंने ही अपने भाईयों से कहा और (स्वयं घरों में) आसीन रह गयेः यदि वे हमारी बात मानते, तो मारे नहीं जाते! (हे नबी!) कह दोः फिर तो मौत से[1] अपनी रक्षा कर लो, यदि तुम सच्चे हो।
1. अर्थात अपने उपाय से सदाजीवी हो जाओ।

3:169
जो अल्लाह की राह में मार दिये गये, तो तुम उन्हें मरा हुआ न समझो, बल्कि वे जीवित हैं[1], अपने पालनहार के पास जीविका दिये जा रहे हैं।
1. शहीदों का जीवन कैसा होता है? ह़दीस में है कि उन की आत्मायें हरे पक्षियों के भीतर रख दी जाती हैं और वह स्वर्ग में चुगते तथा आनन्द लेते फिरते हैं। (सह़ीह़ मुस्लिम, ह़दीसः1887)

3:170
तथा उससे प्रसन्न हैं, जो अल्लाह ने उन्हें अपनी दया से प्रदान किया है और उनके लिए प्रसन्न (हर्षित) हो रहे हैं, जो उनसे मिले नहीं, उनके पीछे[1] रह गये हैं कि उन्हें कोई डर नहीं होगा और न वे उदासीन होंगे।
1. अर्थात उन मुजाहिदीन के लिये जो अभी संसार में जीवित रह गये हैं।

3:171
वे अल्लाह के पुरस्कार और प्रदान के कारण प्रसन्न हो रहे हैं तथा इसपर कि अल्लाह ईमान वालों का प्रतिफल व्यर्थ नहीं करता।

3:172
जिन्होंने अल्लाह और रसूल की पुकार स्वीकार[1] की, इसके पश्चात् कि उन्हें आघात पहुँचा, उनमें से उनके लिए जिन्होंने सुकर्म किया तथा (अल्लाह से) डरे, महा प्रतिफल है।
1. जब काफ़िर उह़ुद से मक्का वापिस हुये तो मदीने से 30 मील दूर "रौह़ाअ" से फिर मदीना वापिस आने का निश्चय किया। जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को सूचना मिली, तो सेना ले कर "ह़मराउल असद" तक पहुँचे जिसे सुन कर वह भाग गये। इधर मुसलमान सफल वापिस आये। इस आयत में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथियों की सराहना की गई है जिन्हों ने उह़ुद में घाव खाने के पश्चात भी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का साथ दिया। यह आयतें ईसी से संबंधित हैं।

3:173
ये वे लोग हैं, जिनसे लोगों ने कहा कि तुम्हारे लिए लोगों (शत्रु) ने (वापिस आने का) संकल्प[1] लिया है। अतः उनसे डरो, तो इस (सूचना) ने उनके ईमान को और अधिक कर दिया और उन्होंने कहाः हमें अल्लाह बस है और वह अच्छा काम बनाने वाला है।
1. अर्थात शत्रु ने मक्का जाते हुये राह में सोचा कि मुसलमानों के परास्त हो जाने पर यह अच्छा अवसर था कि मदीने पर आक्रमण करके उन का उनमूलन कर दिया जाये, तथा वापिस आने का निश्चय किया। (तफ़्सीरे क़ुर्तुबी)

3:174
तथा अल्लाह के अनुग्रह एवं दया के साथ[1] वापिस हुए। उन्हें कोई दुःख नहीं पहुँचा तथा अल्लाह की प्रसन्नता पर चले और अल्लाह बड़ा दयाशील है।
1. अर्थात "ह़मराउल असद" से मदीन वापिस हुये।

3:175
वह शैतान है, जो तुम्हें अपने सहयोगियों से डरा रहा है, तो उनसे[1] न डरो तथा मुझी से डरो यदि तुम ईमान वाले हो।
1. अर्थात मिश्रणवादियों से।

3:176
(हे नबी!) आपको वे काफ़िर उदासीन न करें, जो कुफ़्र में अग्रसर हैं, वे अल्लाह को कोई हानि नहीं पहुँचा सकेंगे। अल्लाह चाहता है कि आख़िरत (परलोक) में उनका कोई भाग न बनाये तथा उन्हीं के लिए घोर यातना है।

3:177
वस्तुतः जिन्होंने ईमान के बदले कुफ़्र खरीद लिया, वे अल्लाह को कोई हानि नहीं पहुँचा सकेंगे तथा उन्हीं के दुःखदायी यातना है।

3:178
जो काफ़िर हो गये, वे कदापि ये न समझें कि हमारा उन्हें अवसर[1] देना, उनके लिए अच्छा है, वास्तव में, हम उन्हें इसलिए अवसर दे रहे हैं कि उनके पाप[2] अधिक हो जायेँ तथा उन्हीं के लिए अपमानकारी यातना है।
1. अर्थात उन्हें संसारिक सुःख सुविधा देना। भावार्थ यह है कि इस संसार में अल्लाह, सत्योसत्य, न्याय तथा अत्याचार सब के लिये अवसर देता है। परन्तु इस से धोखा नहीं खाना चाहिये, यह देखना चाहिये कि परलोक की सफलता किस में है। सत्य ही स्थायी है तथा असत्य को ध्वस्त हो जाना है। 2. यह स्वभाविक नियम है कि पाप करने से पापाचारी में पाप करने की भावना अधिक हो जाती है।

3:179
अल्लाह ऐसा नहीं है कि ईमान वालों को उसी (दशा) पर छोड़ दे, जिसपर तुम हो, जब तक बुरे को अच्छे से अलग न कर दे और अल्लाह ऐसा (भी) नहीं है कि तुम्हें ग़ैब (परोक्ष) से[1] सूचित कर दे, परन्तु अल्लाह अपने रसूलों में से (परोक्ष पर अवगत करने के लिए) जिसे चाहे, चुन लेता है तथा यदि तुम ईमान लाओ और अल्लाह से डरते रहो, तो तुम्हारे लिए बड़ा प्रतिफल है।
1. अर्थात तुम्हें बता दे कि कौन ईमान वाला और कौन दुविधावादी है।

3:180
वे लोग कदापि ये न समझें, जो उसमें कृपण (कंजसी) करते हैं, जो अल्लाह ने उन्हों अपनी दया से प्रदान किया[1] है कि वह उनके लिए अच्छा है, बल्कि वह उनके लिए बुरा है, जिसमें उन्होंने कृपण किया है। प्रलय के दिन उसे उनके गले का हार[2] बना दिया जायेगा और आकाशों तथा धरती की मीरास (उत्तराधिकार) अल्लाह के[3] लिए है तथा अल्लाह जो कुछ तुम करते हो, उससे सूचित है।
1. अर्थात धन-धान्य की ज़कात नहीं देते। 2. सह़ीह़ बुखारी में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः जिसे अल्लाह ने धन दिया है, और वह उस की ज़कात नहीं देता तो प्रलय के दिन उस का धन गंजा सर्प बना दिया जायेगा, जो उस के गले का हार बन जायेगा। और उसे अपने जबड़ों से पकड़ेगा, तथा कहेगा कि मैं तुम्हारा कोष हुँ मैं तुम्हारा धन हूँ। (सह़ीह़ बुख़ारीः4565) 3. अर्थात प्रलय के दिन वही अकेला सब का स्वामी होगा।

3:181
अल्लाह ने उनकी बात सुन ली है, जिन्होंने कहा कि अल्लाह निर्धन और हम धनी[1] हैं, उन्होंने जो कुछ कहा है, हम उसे लिख लेंगे और उनके नबियों की अवैध हत्या करने को भी, तथा कहेंगे कि दहन की यातना चखो।
1. यह बात यहूदियों ने कही थी। (देखियेः सूरह बक़रह, आयतः254)

3:182
ये तुम्हारे करतूतों का दुष्परिणाम है तथा वास्तव में, अल्लाह बंदों के लिए तनिक भी अत्याचारी नहीं है।
 
3:183
जिन्होंने कहाः अल्लाह ने हमसे वचन लिया है कि किसी रसूल का विश्वास न करें, जब तक हमारे समक्ष ऐसी बली न दें, जिसे अग्नि खा[1] जाये। (हे नबी!) आप कह दें कि मुझसे पूर्व बहुत-से रसूल खुली निशानियाँ और वो चीज़ लाये, जो तुमने कही, तो तुमने उनकी हत्या क्यों कर दी, यदि तुम सच्चे हो तो?
1. अर्थात आकाश से अग्नि आ कर जला दे, जो उस के स्वीकार्य होने का लक्षण है।
 
3:184
फिर यदि इन्होंने[1] आपको झुठला दिया, तो आपसे पहले भी बहुत-से रसूल झुठलाये गये हैं, जो खुली निशानियाँ तथा (आकाशीय) ग्रंथ और प्रकाशक पुस्तकें लाये[2]।
1. अर्थात यहूद आदि ने। 2. प्रकाशक जो सत्य को उजागर कर दे।
 
3:185
प्रत्येक प्राणी को मौत का स्वाद चखना है और तुम्हें, तुम्हारे कर्मों का प्रलय के दिन भरपूर प्रतिफल दिया जायेगा, तो (उस दिन) जो व्यक्ति नरक से बचा लिया गया तथा स्वर्ग में प्रवेश पा गया[1], तो वह सफल हो गया तथा सांसारिक जीवन धोखे की पूंजी के सिवा कुछ नहीं है।
1. अर्थात सत्य आस्था और सत्कर्मों के द्वारा इस्लाम के नियमों का पालन करके।
 
3:186
(हे ईमान वालो!) तुम्हारे धनों तथा प्राणों में तुम्हारी परीक्षा अवश्य ली जायेगी और तुम उनसे अवश्य बहुत सी दुःखद बातें सुनोगे, जो तुमसे पूर्व पुस्तक दिये गये तथा उनसे जो मिश्रणवादी[1] हैं। अब यदि तुमने सहन किया और (अल्लाह से) डरते रहे, तो ये बड़ी साहस की बात होगी।
1. मिश्रणवादी अर्थात मूर्तियों के पुजारी, जो पूजा अर्चना तथा अल्लाह के विशेष गुणों में अन्य को उस का साझी बनाते हैं।
 
3:187
तथा (हे नबी! याद करो) जब अल्लाह ने उनसे दृढ़ वचन लिया था, जो पुस्तक[1] दिये गये कि तुम अवश्य इसे लोगों के लिए उजागर करते रहोगे और इसे छुपाओगे नहीं। तो उन्होंने इस वचन को अपने पीछे डाल दिया (भंग कर दिया) और उसके बदले तनिक मूल्य खरीद[2] लिया। तो वे कितनी बुरी चीज़ खरीद रहे हैं?
1. जो पुस्तक दिये गये, अर्थातः यहूद और नसारा (ईसाई) जिन्हें तौरात तथा इंजील दी गई। 2. अर्थात तुच्छ संसारिक लाभ के लिये सत्य का सौदा करने लगे।
 
3:188
(हे नबी!) जो[1] अपने करतूतों पर प्रसन्न हो रहे हैं और चाहते हैं कि उन कर्मों के लिए सराहे जायें, जो उन्होंने नहीं किये। आप उन्हें कदापि न समझें कि यातना से बचे रहेंगे तथा (वास्तविकता ये कि) उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।
1. अबू सईद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि कुछ द्विधावादी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के युग में आप युध्द के लिये निकलते तो आप का साथ नहीं देते थे। और इस पर प्रसन्न होते थे और जब आप वापिस होते तो बहाने बनाते और शपथ लेते थे। और जो नहीं किया है, उस की सराहना चाहते थे। इसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारीः4567)
 
3:189
तथा आकाशों और धरती का राज्य अल्लाह ही का है तथा अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
 
3:190
वस्तुतः आकाशों तथा धरती की रचना और रात्रि तथा दिवस के एक के पश्चात् एक आते-जाते रहने में, मतिमानों के लिए बहुत सी निशानियाँ (लक्षण)[1] हैं।
1. अर्थात अल्लाह के राज्य, स्वामित्व तथा एकमात्र पूज्य होने के।
 
3:191
जो खड़े, बैठे तथा सोए (प्रत्येक स्थिति में,) अल्लाह की याद करते तथ आकाशों और धरती की रचना में विचार करते रहते हैं। (कहते हैः) हे हमारे पालनहार! तूने ये सब[1] व्यर्थ नहीं रचा है। हमें अग्नि के दण्ड से बचा ले।
1. अर्थात यह विचित्र रचना तथा व्यवस्था अकारण नहीं तथा आवश्यक है कि इस जीवन के पश्चात भी कोई जीवन हो जिस में इस जीवन के कर्मों के परिणाम सामने आयें।
 
3:192
हे हमारे पालनहार! तूने जिसे नरक में झोंक दिया, उसे अपमानित कर दिया और अत्याचारियों का कोई सहायक न होगा।
 
3:193
हे हमारे पालनहार! हमने एक[1] पुकारने वाले को ईमान के लिए पुकारते हुए सुना कि अपने पालनहार पर ईमान लाओ, तो हम ईमान ले आये। हे हमारे पालनहार! हमारे पाप क्षमा कर दे तथा हमारी बुराईयों को अनदेखी कर दे तथा हमारी मौत पुनीतों (सदाचारियों) के साथ हो।
1. अर्थात अन्तिम नबी मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को।
 
3:194
हे हमारे पालनहार! हमें, तूने रसूलों द्वारा जो वचन दिया है, हमें वो प्रदान कर तथा प्रलय के दिन हमें अपमानित न कर, वास्तव में तू वचन विरोधी नहीं है।
 
3:195
तो उनके पालनहार ने उनकी (प्रार्थना) सुन ली, (तथा कहा किः) निःसंदेह मैं किसी कार्यकर्ता के कार्य को व्यर्थ नहीं करता[1], नर हो अथवा नारी। तो जिन्होंने हिजरत (प्रस्थान) की, अपने घरों से निकाले गये, मेरी राह में सताये गये और युध्द किया तथा मारे गये, तो हम अवश्य उनके दोषों को क्षमा कर देंगे तथा उन्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश देंगे, जिनमें नहरें बह रही हैं। ये अल्लाह के पास से उनका प्रतिफल होगा और अल्लाह ही के पास अच्छा प्रतिफल है।
1. अर्थात अल्लाह का यह नियम है कि वह सत्कर्म अकारथ नहीं करता, उस का प्रतिफल अवश्य देता है।
 
3:196
(हे नबी!) नगरों में काफ़िरों का (सुविधा के साथ) फिरना आपको धोखे में न डाल दे।
 
3:197
ये तनिक लाभ[1] है, फिर उनका स्थान नरक है और वह क्या ही बुरा आवास है!
1. अर्थात सामयिक संसारिक आनंद है।
 
3:198
परन्तु जो अपने पालनहार से डरे, तो उनके लिए ऐसे स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं। उनमें वे सदावासी होंगे। ये अल्लाह के पास से अतिथि सत्कार होगा तथा जो अल्लाह के पास है, पुनीतों के लिए उत्तम है।
 
3:199
और निःसंदेह अह्ले किताब (अर्थात यहूद और ईसाई) में से कुछ ऐसे भी हैं, जो अल्लाह पर ईमान रखते हैं और तुम्हारी ओर जो उतारा गया है, उसपर भी, अल्लाह से डरे रहते हैं और उसकी आयतों को थोड़ी थोड़ी क़ीमतों पर बेचते भी नहीं[1]। उनका बदला उनके रब के पास है। निःसंदेह अल्लाह जल्दी ही हिसाब लेने वाला है।
1. अर्थात यह यहूदियों और ईसाइयों का दूसरा समुदाय है, जो अल्लाह पर और उस की किताबों पर सह़ीह़ प्रकार से ईमान रखता था। और सत्य को स्वीकार करता था। तथा इस्लाम और रसूल तथा मुसलमानों के विपरीत साज़िशें नहीं करता था। और चन्द टकों के कारण अल्लाह के आदेशों में हेर फेर नहीं करता था।
 
3:200
हे ईमान वालो! तुम धैर्य रखो[1], एक-दूसरे को थामे रखो, जिहाद के लिए तैयार रहो और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम अपने उद्देश्य को पहुँचो।
1. अर्थात अल्लाह और उस के रसूल की फ़रमाँ बरदारी करके और अपनी मनमानी छोड़ कर धैर्य करो। और यदि शत्रु से लड़ाई हो जाये तो उस में सामने आने वाली परेशानियों पर डटे रहना बहुत बड़ा धैर्य है। इसी प्रकार शत्रु के बारे में सदैव चौकन्ना रहना भी बहुत बड़े साहस का काम है। इसी लिये ह़दीस में आया है कि अल्लाह के रास्ते में एक दिन मोर्चे बन्द रहना इस दुनिया और इस की तमाम चीज़ों से उत्तम है। (सह़ीह़ बुख़ारी)
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सूरह अन निसा Surah An Nisa in Hindi me translation

सूरह अन निसा Surah An Nisa in Hindi me translation

सूरह अन निसा Surah An Nisa in Hindi me translation

अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।

4:1
हे मनुष्यों! अपने[1] उस पालनहार से डरो, जिसने तुम्हें एक जीव (आदम) से उत्पन्न किया तथा उसीसे उसकी पत्नी (हव्वा) को उत्पन्न किया और उन दोनों से बहुत-से नर-नारी फैला दिये। उस अल्लाह से डरो, जिसके द्वारा तुम एक-दूसरे से (अधिकार) मांगते हो तथा रक्त संबंधों को तोड़ने से डरो। निःसंदेह अल्लाह तुम्हारा निरीक्षक है।
1. यहाँ से सामाजिक व्यवस्था का नियम बताया गया है कि विश्व के सभी नर-नारी एक ही माता पिता से उत्पन्न किये गये हैं। इस लिये सब समान हैं। और सब के साथ अच्छा व्यवहार तथा भाई-चारे की भावना रखनी चाहिये। यह उस अल्लाह का आदेश है जो तुम्हारे मूल का उत्पत्तिकार है। और जिस के नाम से तुम एक दूसरे से अपना अधिकार माँगते हो कि अल्लाह के लिये मेरी सहायता करो। फिर इस साधारण संबंध के सिवा गर्भाशयिक अर्थात समीपवर्ती परिवारिक संबंध भी हैं, जिन्हें जोड़ने पर अधिक बल दिया गया है। एक ह़दीस में है कि संबंध-भंगी स्वर्ग में नहीं जायेगा। (सह़ीह़ बुख़ारीः5984, मुस्लिमः2555) इस आयत के पश्चात् कई आयतों में इन्हीं अल्लाह के निर्धारित किये मानव अधिकारों का वर्णन किया जा रहा है।
 
4:2
तथा (हे संरक्षको!) अनाथों को उनके धन चुका दो और (उनकी) अच्छी चीज़ से (अपनी) बुरी चीज़ न बदलो और उनके धन, अपने धनों में मिलाकर न खाओ। निःसंदेह ये बहुत बड़ा पाप है।
 
4:3
और यदि तुम डरो कि अनाथ (बालिकाओं) के विषय[1] में न्याय नहीं कर सकोगे, तो नारियों में से जो भी तुम्हें भायें, दो से, तीन से, चार तक से विवाह कर लो और यदि डरो कि (उनके बीच) न्याय नहीं कर सकोगे, तो एक ही से करो अथवा जो तुम्हारे स्वामित्व[2] में हो, उसीपर बस करो। ये अधिक समीप है कि अन्याय न करो।
1. अरब में इस्लाम से पूर्व अनाथ बालिका का संरक्षक यदि उस के खजूर का बाग़ हो, तो उस पर अधिकार रखने के लिये उस से विवाह कर लेता था। जब उस में उसे कोई रूचि नहीं होती थी। इसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्याः4573) 2. अर्थात युध्द में बंदी बनाई गई दासी।

4:4
तथा स्त्रियों को उनके महर (विवाह उपहार) प्रसन्नता से चुका दो। फिर यदि वे उसमें से कुछ तुम्हें अपनी इच्छा से दे दें, तो प्रसन्न होकर खाओ।

4:5
तथा अपने धन, जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए जीवन स्थापन का साधन बनाया है, अज्ञानों को न[1] दो। हाँ, उसमें से उन्हें खाना-कपड़ा दो और उनसे भली बात बोलो।
1. अर्थात धन, जीवन स्थापन का साधन है। इस लिये जब तक अनाथ चतुर तथा व्यस्क न हो जायें और अपने लाभ की रक्षा न कर सकें उस समय तक उन का धन, उन के नियंत्रण में न दो।
 
4:6
तथा अनाथों की परीक्षा लेते रहो, यहाँ तक कि वे विवाह की आयु को पहुँच जायें, तो यदि तुम उनमें सुधार देखो, तो उनका धन उन्हें समर्पित कर दो और उसे अपव्यय तथा शीघ्रता से इसलिए न खाओ कि वे बड़े हो जायेंगे और जो धनी हो, तो वह बचे तथा जो निर्धन हो, वह नियमानुसार खा ले तथा जब तुम उनका धन उनके ह़वाले करो, तो उनपर साक्षी बना लो और अल्लाह ह़िसाब लेने के लिए काफ़ी है।
 
4:7
और पुरुषों के लिए उसमें से भाग है, जो माता-पिता तथा समीपवर्तियों ने छोड़ा है तथा स्त्रियों के लिए उसमें से भाग है, जो माता-पिता तथा समीपवर्तियों ने छोड़ा हो, वह थोड़ा हो अथवा अधिक, सबके भाग[1] निर्धारित हैं।
1. इस्लाम से पहले साधारणतः यह विचार था कि पुत्रियों का धन और संपत्ति की विरासत (उत्तराधिकार) में कोई भाग नहीं। इस में इस कुरीति का निवारण किया गया और नियम बना दिय गया कि अधिकार में पुत्र और पुत्री दोनों समान हैं। यह इस्लाम ही की विशेषता है जो संसार के किसी धर्म अथवा विधान में नहीं पाई जाती। इस्लाम ही ने सर्वप्रथम नारी के साथ न्याय किया, और उसे पुरुषों के बराबर अधिकार दिया है।

4:8
और जब मीरास विभाजन के समय समीपवर्ती[1], अनाथ और निर्धन उपस्थित हों, तो उन्हें भी थोड़ा बहुत दे दो तथा उनसे भली बात बोलो।
1. इन से अभिप्राय वह समीपवर्ती हैं जिन का मीरास में निर्धारित भाग न हो। जैसे अनाथ पौत्र तथा पौत्री आदि। (सह़ीह़ बुख़ारीः4576)

4:9
और उन लोगों को डरना चाहिए, जो अपने पीछे निर्बल संतान छोड़ जायें और उनके नाश होने का भय हो, अतः उन्हें चाहिए कि अल्लाह से डरें और सीधी बात बोलें।

4:10
जो लोग अनाथों का धन अत्याचार से खाते हैं, वे अपने पेटों में आग भरते हैं और शीघ्र ही नरक की अग्नि में प्रवेश करेंगे।

4:11
अल्लाह तुम्हारी संतान के संबंध में तुम्हें आदेश देता है कि पुत्र का भाग, दो पुत्रियों के बराबर है। यदि पुत्रियाँ दो[1] से अधिक हों, तो उनके लिए छोड़े हुए धन का दो तिहाई (भाग) है। यदि एक ही हो, तो उसके लिए आधा है और उसके माता-पिता, दोनों में से प्रत्येक के लिए उसमें से छठा भाग है, जो छोड़ा हो, यदि उसके कोई संतान[2] हों। और यदि उसके कोई संतान (पुत्र या पुत्री) न हों और उसका वारिस उसका पिता हो, तो उसकी माता का तिहाई (भाग)[3] है, (और शेष पिता का)। फिर यदि (माता पिता के सिवा) उसके एक से अधिक भाई अथवा बहनें हों, तो उसकी माता के लिए छठा भाग है, जो वसिय्यत[4] तथा क़र्ज़ चुकाने के पश्चात् होगा। तुम नहीं जानते कि तुम्हारे पिताओं और पुत्रों में से कौन तुम्हारे लिए अधिक लाभदायक हैं। वास्तव में, अल्लाह अति बड़ा तथा गुणी, ज्ञानी, तत्वज्ञ है।
1. अर्थात केवल पुत्रियाँ हों, तो दो हों अथवा दो से अधिक हों। 2. अर्थात न पुत्र हो और न पुत्री। 3. और शेष पिता का होगा। भाई-बहनों को कुछ नहीं मिलेगा। 4. वसिय्यत का अर्थ उत्तरदान है, जो एक तिहाई या उस से कम होना चाहिये परन्तु वारिस के लिये उत्तरदान नहीं है। (देखियेः तिर्मिज़ीः975) पहले ऋण चुकाया जायेगा, फिर वसिय्यत पूरी की जायेगी, फिर माँ का छठा भाग दिया जायेगा।

4:12
और तुम्हारे लिए उसका आधा है, जो तुम्हारी पत्नियाँ छोड़ जायें, यदि उनके कोई संतान (पुत्र या पुत्री) न हों। फिर यदि उनके कोई संतान हों, तो तुम्हारे लिए उसका चौथाई है, जो वे छोड़ गयी हों, वसिय्यत (उत्तरदान) या ऋण चुकाने के पश्चात्। जबकि (पत्नयों) के लिए उसका चौथाई है, जो (माल आदि) तुमने छोड़ा हो, यदि तुम्हारे कोई संतान (पुत्र या पुत्री) न हों। फिर यदि तुम्हारे कोई संतान हों, तो उनके लिए उसका आठवाँ[1] (भाग) है, जो तुमने छोड़ा है, वसिय्यत (उत्तरदान) जो तुमने की हो, पूरी करने अथवा ऋण चुकाने के पश्चात्। फिर यदि किसी ऐसे पुरुष या स्त्री का वारिस होने की बात हो, जो 'कलाला'[2] हो तथा (दूसरी माता से) उसका भाई अथवा बहन हो, तो उनमें से प्रत्येक के लिए छठा (भाग) है। फिर यदि (माँ जाये) (भाई या बहनें) इससे अधिक हों, तो वे सब तिहाई (भाग) में (बराबर के) साझी होंगे। ये वसिय्यत (उत्तरदान) तथा ऋण चुकाने के पश्चात होगा। किसी को हानि नहीं पहुँचायी जायेगी। ये अल्लाह की ओर से वसिय्यत है और अल्लाह ज्ञानी तथा ह़िक्मत वाला है।
1. यहाँ यह बात विचारणीय है कि जब इस्लाम में पुत्र पुत्री तथा नर नारी बराबर हैं, तो फिर पुत्री को पुत्र के आधा, तथा पत्नी को पति का आधा भाग क्यों दिया गया है? इस का कारण यह है कि पुत्री जब युवती और विवाहित हो जाती है, तो उसे अपने पति से महर (विवाह उपहार) मिलता है, और उस के तथा उस की संतान के यदि हों, तो भरण पोषण का भार उस के पति पर होता है। इस के विपरीत पुत्र युवक होता है तो विवाह करने पर अपनी पत्नी को महर (विवाह उपहार) देने के साथ ही उस का तथा अपनी संतान के भरण पोषण का भार भी उसी पर होता है। इसी लिये पुत्र को पुत्री के भाग का दुगना दिया जाता है, जो न्यायोचित है। 2. कलालः वह पुरुष अथवा स्त्री है, जिस के न पिता हो और न पुत्र-पुत्री। अब इस के वारिस तीन प्रकार के हो सकते हैः 1. सगे भाई-बहन। 2. पिता एक तथा मातायें अलग हों। 3. माता एक तथा पिता अलग हों। यहाँ इसी प्रकार का आदेश वर्णित किया गया हा। ऋण चुकाने के पश्चात् बिना कोई हानि पहुँचाये, यह अल्लाह का आदेश है, तथा अल्लाह अति ज्ञानी सानशील है।

4:13
ये अल्लाह की (निर्धारित) सीमायें हैं और जो अल्लाह तथा उसके रसूल का आज्ञाकारी रहेगा, तो वह उसे ऐसे स्वर्गों में प्रवेश देगा, जिनमें नहरें प्रवाहित होंगी। उनमें वे सदावासी होंगे तथा यही बड़ी सफलता है।

4:14
और जो अल्लाह तथा उसके रसूल की अवज्ञा तथा उसकी सीमाओं का उल्लंघन करेगा, उसे नरक में प्रवेश देगा। जिसमें वह सदावासी होगा और उसी के लिए अपमानकारी यातना है।

4:15
तथा तुम्हारी स्त्रियों में से, जो व्यभिचार कर जायेँ, तो उनपर अपनों में से चार साक्षी लाओ। फिर यदि वे साक्ष्य (गवाही) दें, तो उन्हें घरों में बंद कर दो, यहाँ तक कि उन्हें मौत आ जाये अथवा अल्लाह उनके लिए कोई अन्य[1] राह बना दे।
1. यह इस्लाम के आरंभिक युग में व्याभिचार का साम्यिक दण्ड था। इस का स्थायी दण्ड सूरह नूर आयत 2 में आ रहा है। जिस के उतरने पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः अल्लाह ने जो वचन दिया था उसे पूरा कर दिया। उसे मुझ से सीख लो।

4:16
और तुममें से जो दो व्यक्ति ऐसा करें, तो दोनों को दुःख पहुँचाओ, यहाँ तक कि (जब) वे तौबा (क्षमा याचना) कर लें और अपना सुधार कर लें, तो उन्हें छोड़ दो। निश्चय अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान् है।

4:17
अल्लाह के पास उन्हीं की तौबा (क्षमा याचना) स्वीकार्य है, जो अनजाने में बुराई कर जाते हैं, फिर शीघ्र ही क्षमा याचना कर लेते हैं, तो अल्लाह उनकी तौबा (क्षमा याचना) स्वीकार कर लेता है तथा अल्लाह बड़ा ज्ञानी गुणी है।

4:18
और उनकी तौबा (क्षमा याचना) स्वीकार्य नहीं, जो बुराईयाँ करते रहते हैं, यहाँ तक कि जब उनमें से किसी की मौत का समय आ जाता है, तो कहता हैः अब मैंने तौबा कर ली। न ही उनकी (तौबा स्वीकार की जायेगी) जो काफ़िर रहते हुए मर जाते हैं, इन्हीं के लिए हमने दुःखदायी यातना तैयार कर रखी है।

4:19
हे ईमान वालो! तुम्हारे लिए ह़लाल (वैध) नहीं कि बलपूर्वक स्त्रियों के वारिस बन जाओ[1] तथा उन्हें इसलिए न रोको कि उन्हें जो दिया हो, उसमें से कुछ मार लो। परन्तु ये कि खुली बुराई कर जायेँ तथा उनके साथ उचित[2] व्यवहार से रहो। फिर यदि वे तुम्हें अप्रिय लगें, तो संभव है कि तुम किसी चीज़ को अप्रिय समझो और अल्लाह ने उसमें बड़ी भलाई[3] रख दी हो।
1. ह़दीस में है कि जब कोई मर जाता तो उस के वारिस उस की पत्नी पर भी अधिकार कर लेते थे। इसी को रोकने के लिये यह आयत उतरी। (सह़ीह़ वुख़ारीः4579) 2. ह़दीस में है कि पूरा ईमान उस में है जो सुशील हो। और भला वह है जो अपनी पत्नियों के लिये भला हो। (तिर्मिज़ीः1162) 3. अर्थात पत्नि किसी कारण न भाये तो तुरन्त तलाक़ न दे दो, बल्कि धैर्य से काम लो।

4:20
और यदि तुम किसी पत्नी के स्थान पर किसी दूसरी पत्नी से विवाह करना चाहो और तुमने उनमें से एक को (सोने चाँदी) का ढेर भी (महर में) दिया हो, तो उसमें से कुछ न लो। क्या तुम चाहते हो कि उसे आरोप लगाकर तथा खुले पाप द्वारा ले लो?

4:21
तथा तुम उसे ले भी कैसे सकते हो, जबकि तुम एक-दूसरे से मिलन कर चुके हो तथा उन्होंने तुमसे (विवाह के समय) दृढ़ वचन लिया है।

4:22
और उन स्त्रियों से विवाह[1] न करो, जिनसे तुम्हारे पिताओं ने विवाह किया हो, परन्तु जो पहले हो चुका[2]। वास्तव में, ये निर्लज्जा की तथा अप्रिय बात और बुरी रीति थी।
1. जैसा कि इस्लाम से पहले लोग किया करते थे। और हो सकता है कि आज भी संसार के किसी कोने में ऐसा होता हो। परन्तु यदि भोग करने से पहले बाप ने तलाक़ दे दी हो तो उस स्त्री से विवाह किया जा सकता है। 2. अर्थात इस आदेश के आने से पहले जो कुछ हो गया अल्लाह उसे क्षमा करने वाला है।

4:23
तुमपर[1] ह़राम (अवैध) कर दी गयी हैं; तुम्हारी मातायें, तुम्हारी पुत्रियाँ, तुम्हारी बहनें, तुम्हारी फूफियाँ, तुम्हारी मोसियाँ और भतीजियाँ, भाँजियाँ, तुम्हारी वे मातायें जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया हो तथा दूध पीने से संबंधित बहनें, तुम्हारी पत्नियों की मातायें, तुम्हारी पत्नियों की पुत्रियाँ जिनका पालन पोषण तुम्हारी गोद में हुआ हो और उन पत्नियों से तुमने संभोग किया हो, यदि उनसे संभोग न किया हो, तो तुमपर कोई दोष नहीं, तुम्हारे सगे पुत्रों की पत्नियाँ और ये[2] कि तुम दो बहनों को एकत्र करो, परन्तु जो हो चुका। वास्तव में, अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।
1. दादियाँ तथा नानियाँ भी इसी में आती हैं। इसी प्रकार पुत्रियों में अपनी संतान की नीचे तक की पुत्रियाँ, और बहनों में सगी हों या पिता अथवा माता से हों, फूफियों में पिता तथा दादा की बहनें, और मोसियों में माताओं और नानियों की बहनें, तथा भतीजी और भाँजी में उन की संतान भी आती हैं। ह़दीस में है कि दूध से वह सभी रिश्ते ह़राम हो जाते हैं, जो गोत्र से ह़राम होते हैं। (सह़ीह़ बुख़ारीः5099, मुस्लिमः1444) पत्नी की पुत्री जो दूसरे पति से हो उसी समय ह़राम (वर्जित) होगी जब उस की माता से संभोग किया हो, केवल विवाह कर लेने से ह़राम नहीं होगी। जैसे दो बहनों को निकाह़ में एकत्र करना वर्जित है उसी प्रकार किसी स्त्री के साथ उस की फूफी अथवा मोसी को भी एकत्र करना ह़दीस से वर्जित है। (देखियेः सह़ीह़ बुखारीः5105, सह़ीह़ मुस्लिमः1408) 2. अर्थात जाहिलिय्यत के युग में।

4:24
तथा उन स्त्रियों से (विवाह वर्जित है), जो दूसरों के निकाह़ में हों। परन्तु तुम्हारी दासियाँ[1] जो (युध्द में) तुम्हारे हाथ आयी हों। (ये) तुमपर अल्लाह ने लिख दिया[2] है। और इनके सिवा (दूसरी स्त्रियाँ) तुम्हारे लिए ह़लाल (उचित) कर दी गयी हैं। (प्रतिबंध ये है कि) अपने धनों द्वारा व्यभिचार से सुरक्षित रहने के लिए विवाह करो। फिर उनमें से जिससे लाभ उठाओ, उन्हें उनका महर (विवाह उपहार) अवश्य चुका दो तथा महर (विवाह उपहार) निर्धारित करने के पश्चात् (यदि) आपस की सहमति से (कोई कमी या अधिक्ता कर लो), तो तुमपर कोई दोष नहीं। निःसंदेह, अल्लाह अति ज्ञानी, तत्वज्ञ है।
1. दासी वह स्त्री जो युध्द में बन्दी बनायी गयी हो। उस से एक बार मासिक धर्म आने के पश्चात् सम्भोग करना उचित है, और उसे मुक्त करके उस से विवाह कर लेने का बड़ा पुण्य है। (इब्ने कसीर) 2. अर्थात तुम्हारे लिये नियम बना दिया गया है।

4:25
और जो व्यक्ति तुममें से स्वतंत्र ईमान वालियों से विवाह करने की सकत न रखे, तो वह अपने हाथों में आई हुई अपनी ईमान वाली दासियों से (विवाह कर ले)। दरअसल, अल्लाह तुम्हारे ईमान को अधिक जानता है। तुम आपस में एक ही हो[1]। अतः तुम उनके स्वामियों की अनुमति से उन (दासियों) से विवाह कर लो और उन्हें नियमानुसार उनके महर (विवाह उपहार) चुका दो, वे सती हों, व्यभिचारिणी न हों, न गुप्त प्रेमी बना रखी हों। फिर जब वे विवाहित हो जायें, तो यदि व्यभिचार कर जायें, तो उनपर उसका आधा[2] दण्ड है, जो स्वतंत्र स्त्रियों पर है। ये (दासी से विवाह) उसके लिए है, जो तुममें से व्यभिचार से डरता हो और सहन करो, तो ये तुम्हारे लिए अधिक अच्छा है और अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।
1. तुम आपस में एक ही हो, अर्थात मानवता में बराबर हो। ज्ञातव्य है कि इस्लाम से पहले दासिता की परम्परा पूरे विश्व में फैली हुई थी। बलवान जातियाँ निर्बलों को दास बना कर उन के साथ हिंसक व्यवहार करती थीं। क़ुर्आन ने दासिता को केवल युध्द के बन्दियों में सीमित कर दिया। और उन्हें भी अर्थदण्ड ले कर अथवा उपकार कर के मुक्त करने की प्रेरणा दी। फिर उन के साथ अच्छे व्यवहार पर बल दिया। तथा ऐसे आदेश और नियम बना दिये कि दासिता, दासिता नहीं रह गई। यहाँ इसी बात पर बल दिया गया है कि दासियों से विवाह कर लेने में कोई दोष नहीं। इस लिये मानवता में सब बराबर हैं, और प्रधानता का मापदण्ड ईमान तथा सत्कर्म है। 2. अर्थात पचास कोड़े।

4:26
अल्लाह चाहता है कि तुम्हारे लिए उजागर कर दे तथा तुम्हें भी उनकी नीतियों की राह दर्शा दे, जो तुमसे पहले थे और तुम्हारी क्षमा याचना स्वीकार करे। अल्लाह अति ज्ञानी तत्वज्ञ है।

4:27
और अल्लाह चाहता है कि तुमपर दया करे तथा जो लोग आकांक्षाओं के पीछे पड़े हुए हैं, वे चाहते हैं कि तुम बहुत अधिक झुक[1] जाओ।
1. अर्थात सत्धर्म से कतरा जाओ।

4:28
अल्लाह तुम्हारा (बोझ) हल्का करना[1] चाहता है तथा मानव निर्बल पैदा किया गया है।
1. अर्थात अपने धर्म विधान द्वारा।

4:29
हे ईमान वालो! आपस में एक-दूसरे का धन अवैध रूप से न खाओ, परन्तु ये कि लेन-देन तुम्हारी आपस की स्वीकृति से (धर्म विधानुसार) हो और आत्म हत्या[1] न करो, वास्तव में, अल्लाह तुम्हारे लिए अति दयावान् है।
1. इस का अर्थ यह भी किया गया है कि अवैध कर्मों द्वारा अपना विनाश न करो, तथा यह भी कि आपस में रक्तपात न करो, और यह तीनों ही अर्थ सह़ीह़ हैं। (तफ़्सीरे क़ुर्तुबी)

4:30
और जो अतिक्रमण तथा अत्याचार से ऐसा करेगा, समीप है कि हम उसे अग्नि में झोंक देंगे और ये अल्लाह के लिए सरल है।

4:31
तथा यदि तुम, उन महा पापों से बचते रहे, जिनसे तुम्हें रोका जा रहा है, तो हम तुम्हारे लिए तुम्हारे दोषों को क्षमा कर देंगे और तुम्हें सम्मानित स्थान में प्रवेश देंगे।

4:32
तथा उसकी कामना न करो, जिसके द्वारा अल्लाह ने तुम्हें एक-दूसरे पर श्रेष्ठता दी है। पुरुषों के लिए उसका भाग है, जो उन्होंने कमाया[1] और स्त्रियों के लिए उसका भाग है, जो उन्होंने कमाया है। तथा अल्लह से उससे अधिक की प्रार्थना करते रहो। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ जानता है।
1. क़ुर्आन उतरने से पहले संसार का यह साधारण विश्वव्यापी विचार था कि नारी का कोई स्थाई अस्तित्व नहीं है। उसे केवल पुरुषों की सेवा और काम वासना के लिये बनाया गया है। क़ुर्आन इस विचार के विरुध्द यह कहता है कि अल्लाह ने मानव को नर तथा नारी दो लिंगों में विभाजित कर दिया है। और दोनों ही समान रूप से अपना अपना अस्तित्व, अपने अपने कर्तव्य तथा कर्म रखते हैं। और जैसे आर्थिक कार्यालय के लिये एक लिंग की आवश्यक्ता है, वैसे ही दूसरे की भी है। मानव के सामाजिक जीवन के लिये यह दोनों एक दूसरे के सहायक हैं।

4:33
और हमने प्रत्येक के लिए वारिस (उत्तराधिकारी) बना दिये हैं, उसमें से जो माता-पिता तथा समीपवर्तियों ने छोड़ा हो तथा जिनसे तुमने समझौता[1] किया हो, उन्हें उनका भाग दो। वास्तव में, अल्लाह प्रत्येक चीज़ से सूचित है।
1. यह संधिभ मीरास इस्लाम के आरंभिक युग में थी, जिसे (मवारीस की आयत से) निरस्त कर दिया गया। (इब्ने कसीर)

4:34
पुरुष स्त्रियों के व्यवस्थापक[1] हैं, इस कारण कि अल्लाह ने उनमें से एक को दूसरे पर प्रधानता दी है तथा इस कारण कि उन्होंने अपने धनों में से (उनपर) ख़र्च किया है। अतः, सदाचारी स्त्रियाँ वो हैं, जो आज्ञाकारी तथा उनकी (अर्थात, पतियों की) अनुपस्थिति में अल्लाह की रक्षा में उनके अधिकारों की रक्षा करती हों। फिर तुम्हें जिनकी अवज्ञा का डर हो, तो उन्हें समझाओ और शयनागारों (सोने के स्थानों) में उनसे अलग हो जाओ तथा उन्हें मारो। फिर यदि वे तुम्हारी बात मानें, तो उनपर अत्याचार का बहाना न खोजो और अल्लाह सबसे ऊपर, सबसे बड़ा है।
1. आयत का भावार्थ यह है कि परिवारिक जीवन के प्रबंध के लिये एक प्रबंधक होना आवश्यक है। और इस प्रबंध तथा व्यवस्था का भार पुरुष पर रखा गया है। जो कोई विशेषता नहीं, बल्कि एक भार है। इस का यह अर्थ नहीं कि जन्म से पुरुष की स्त्री पर कोई विशेषता है। प्रथम आयत में यह आदेश दिया गया है कि यदि पत्नी पति की अनुगामी न हो, तो वह उसे समझाये। परन्तु यदि दोष पुरुष का हो तो दोनों के बीच मध्यस्ता द्वारा संधि कराने की प्रेरणा दी गयी है।

4:35
और यदि तुम्हें[1] दोनों के बीच वियोग का डर हो, तो एक मध्यस्त उस (पति) के घराने से तथा एक मध्यस्त उस (पत्नी) के घराने से नियुक्त करो, यदि वे दोनों संधि कराना चाहेंगे, तो अल्लाह उन दोनों[2] के बीच संधि करा देगा। वास्तव में, अल्लाह अति ज्ञानी सर्वसूचित है।
1. इस में पति-पत्नी के संरक्षकों को संबोधित किया गया है। 2. अर्थात पति पत्नी में।

4:36
तथा अल्लाह की इबादत (वंदना) करो, किसी चीज़ को उसका साझी न बनाओ तथा माता-पिता, समीपवर्तियों, अनाथों, निर्धनों, समीप और दूर के पड़ोसी, यात्रा के साथी, यात्रि और अपने दास दासियों के साथ उपकार करो। निःसंदेह अल्लाह उससे प्रेम नहीं करता, जो अभिमानी अहंकारी[1] हो।
1. अर्थात डींगें मारता तथा इतराता हो।

4:37
और जो स्वयं कृपण (कंजूसी) करते हैं तथा दूसरों को भी कृपण (कंजूसी) का आदेश देते हैं और उसे छुपाते हैं, जो अल्लाह ने उन्हें अपनी दया से प्रदान किया है। हमने कृतघ्नों के लिए अपमानकारी यातना तैयार कर रखी है।

4:38
तथा जो लोग अपना धन, लोगों को दिखाने के लिए दान करते हैं और अल्लह तथा अंतिम दिन (प्रलय) पर ईमान नहीं रखते तथा शैतान जिसका साथी हो, तो वह बहुत बुरा साथी[1] है।
1. आयत 36 से 38 तक साधारण सहानुभूति और उपकार का आदेश दिया गया है कि अल्लाह ने जो धन-धान्य तुम को दिया, उस से मानव की सहायता और सेवा करो। जो व्यक्ति अल्लाह पर ईमान रखता हो उस का हाथ अल्लाह की राह में दान करने से कभी नहीं रुक सकता। फिर भी दान करो तो अल्लाह के लिये करो, दिखावे और नाम के लिये न करो। जो नाम के लिये दान करता है, वह अल्लाह तथा आख़िरत पर सच्चा ईमान (विश्वास) नहीं रखता।

4:39
और उनका क्या बिगड़ जाता, यदि वे अल्लाह तथा अन्तिम दिन (परलोक) पर ईमान (विश्वास) रखते और अल्लाह ने जो उन्हें दिया है, उसमें से दान करते? और अल्लाह उन्हें भली-भाँति जानता है।

4:40
अल्लाह कण भर भी किसी पर अत्याचार नहीं करता, यदि कुछ भलाई (किसी ने) की हो, तो (अल्लाह) उसे अधिक कर देता है तथा अपने पास से बड़ा प्रतिफल प्रदान करता है।

4:41
तो क्या दशा होगी, जब हम प्रत्येक उम्मत (समुदाय) से एक साक्षी लायेंगे और (हे नबी!) आपको उनपर (बनाकर) साक्षी लायेंगे[1]।
1. आयत का भावार्थ यह है कि प्रलय के दिन अल्लाह प्रत्येक समुदाय के रसूल को उन के कर्म का साक्षी बनायेगा। इस प्रकार मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भी अपने समुदाय पर साक्षी बनायेगा। तथा सब रसूलों पर कि उन्हों ने अपने पालनहार का संदेश पहुँचाया है। (इब्ने कसीर)

4:42
उस दिन, जो काफ़िर तथा रसूल के अवज्ञाकारी हो गये, ये कामना करेंगे कि उनके सहित भूमि बराबर[1] कर दी जाये और वे अल्लाह से कोई बात छुपा नहीं सकेंगे।
1. अर्थात भूमि में धंस जायें, और उन के ऊपर से भूमि बराबर हो जाये, या वह मिट्टी हो जायें।

4:43
हे ईमान वालो! तुम जब नशे[1] में रहो, तो नमाज़ के समीप न जाओ, जब तक जो कुछ बोलो, उसे न समझो और न जनाबत[2] की स्थिति में (मस्जिदों के समीप जाओ), परन्तु रास्ता पार करते हुए। यदि तुम रोगी हो अथवा यात्रा में रहो या स्त्रियों से सहवास कर लो, फिर जल न पाओ, तो पवित्र मिट्टी से तयम्मुम[3] कर लो; उसे अपने मुखों तथा हाथों पर फेर लो। वास्तव में, अल्लाह अति क्षांत (सहिष्णु) क्षमाशील है।
1. यह आदेश इस्लाम के आरंभिक युग का है, जब मदिरा को वर्जित नहीं किया गया था। (इब्ने कसीर) 2. जनाबत का अर्थ वीर्यपात के कारण मलिन तथा अपवित्र होना है। 3. अर्थात यदि जल का अभाव हो, अथवा रोग के कारण जल प्रयोग हानिकारक हो, तो वुजू तथा स्नान के स्थान पर तयम्मुम कर लो।

4:44
क्या आपने उनकी दशा नहीं देखी, जिन्हें पुस्तक[1] का कुछ भाग दिया गया? वे कुपथ ख़रीद रहे हैं तथा चाहते हैं कि तुमभी सुपथ से विचलित हो जाओ।
1. अर्थात अहले किताब, जिन को तौरात का ज्ञान दिया गया। भावार्थ यह है कि उन की दशा से शिक्षा ग्रहण करो। उन्हीं के समान सत्य से विचलित न हो जाओ।

4:45
तथा अल्लाह तुम्हारे शत्रुओं से भली-भाँति अवगत है और (तुम्हारे लिए) अल्लाह की रक्षा काफ़ी है तथा अल्लाह की सहायता काफ़ी है।

4:46
(हे नबी!) यहूदियों में से कुछ लोग ऐसे हैं, जो शब्दों को उनके (वास्तविक) स्थानों से फेरते हैं और (आपसे) कहते हैं कि हमने सुन लिया तथा (आपकी) अवज्ञा की और आप सुनिए, आप सुनाये न जायें! तथा अपनी ज़ुबानें मोड़कर "राइना" कहते और सत्धर्म में व्यंग करते हैं और यदि वे "हमने सुन लिया और आज्ञाकारी हो गये" और "हमें देखिए" कहते, तो उनके लिए अधिक अच्छी तथा सही बात होती। परन्तु अल्लाह ने उनके कुफ़्र के कारण उन्हें धिक्कार दिया है। अतः, उनमें से थोड़े ही ईमान लायेंगे।

4:47
हे अहले किताब! उस (क़ुर्आन) पर ईमान लाओ, जिसे हमने उन (पुस्तकों) का प्रमाणकारी बनाकर उतारा है, जो तुम्हारे साथ हैं, इससे पहले कि हम चेहरे बिगाड़ कर पीछे कर दें अथवा उन्हें ऐसे ही धिक्कार[1] दें, जैसे शनिवार वालों को धिक्कार दिया। अल्लाह का आदेश पूरा हो कर रहा।
1. मदीने के यहूदियों का यह दुर्भाग्य था कि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मिलते, तो द्विअर्थक तथा संदिग्ध शब्द बोल कर दिल की भड़ास निकालते, उसी पर उन्हें यह चेतावनी दी जा रही है। शनिवार वाले, अर्थात जिन को शनिवार के दिन शिकार से रोका गया था। और जब वे नहीं माने तो उन्हें बन्दर बना दिया गया।

4:48
निःसंदेह अल्लाह ये नहीं क्षमा करेगा कि उसका साझी बनाया जाये[1] और उसके सिवा जिसे चाहे, क्षमा कर देगा। जो अल्लाह का साझी बनाता है, तो उसने महा पाप गढ़ लिया।
1. अर्थात पूजा, अराधना तथा अल्लाह के विशेष गुण कर्मों में किसी वस्तु या व्यक्ति को साझी बनाना घोर अक्षम्य पाप है, जो सत्धर्म के मूलाधार एकेश्वरवाद के विरुध्द, और अल्लाह पर मिथ्या आरोप है। यहूदियों ने अपने धर्माचार्यों तथा पादरियों के विषय में यह अंधविश्वास बना लिया है कि उन की बात को धर्म समझ कर उन्हीं का अनुपालन कर रहे थे। और मूल पुस्तकों को त्याग दिया था, क़ुर्आन इसी को शिर्क कहता है, वह कहता है कि सभी पाप क्षमा किये जा सकते हैं, परन्तु शिर्क के लिये क्षमा नहीं, क्यों कि इस से मूल धर्म की नींव ही हिल जाती है। और मार्गदर्शन का केंद्र ही बदल जाता है।

4:49
क्या आपने उन्हें नहीं देखा, जो अपने आप पवित्र बन रहे हैं? बल्कि अल्लाह जिसे चाहे, पवित्र करता है और (लोगों पर) कण बराबर अत्याचार नहीं किया जायेगा।

4:50
देखो, ये लोग कैसे अल्लाह पर मिथ्या आरोप लगा रहे[1] हैं! उनके खुले पाप के लिए यही बहुत है।
1. अर्थात अल्लाह का नियम तो यह है कि पवित्रता, ईमान तथा सत्कर्म पर निर्भर है, और यह कहते हैं कि यहूदियत पर है।

4:51
(हे नबी!) क्या आपने उनकी दशा नहीं देखी, जिन्हें पुस्तक का कुछ भाग दिया गया? वे मूर्तियों तथा शैतानों पर ईमान (विश्वास) रखते हैं और काफ़िरों[1] के बारे में कहते हैं कि ये ईमान वालों से अधिक सीधी डगर पर हैं।
1. अर्थात मक्का के मूर्ति के पुजारियों के बारे में। मदीना के यहूदियों की यह दशा थी कि वह सदैव मूर्ति पूजा के विरोध रहे। और उस का अपमान करते रहे। परन्तु अब मुसलमानों के विरोध में उन की प्रशंसा करते और कहते कि मूर्ति पूजकों का आचरण स्वभाव अधिक अच्छा है।

4:52
और जिसे अल्लाह धिक्कार दे, आप उसका कदापि कोई सहायक नहीं पाएंगे।

4:53
क्या उनके पास राज्य का कोई भाग है, इसलिए लोगों को (उसमें से) तनिक भी नहीं देंगे?

4:54
बल्कि वे लोगों[1] से उस अनुग्रह पर विद्वेष कर रहे हैं, जो अल्लाह ने उन्हें प्रदान किया है। तो हमने (पहले भी) इब्राहीम के घराने को पुस्तक तथा ह़िक्मत (तत्वदर्शिता) दी है और उन्हें विशाल राज्य प्रदान किया है।
1. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और मुसलमानों पर कि अल्लाह ने आप को नबी बना दिया तथा मुसलमानों को ईमान दे दिया।

4:55
फिर उनमें से कोई ईमान लाया और कोई उससे विमुख हो गया। (तो विमुख होने वाले के लिए) नरक की भड़कती अग्नि बहुत है।

4:56
वास्तव में, जिन लोगों ने हमारी आयतों के साथ कुफ़्र (अविश्वास) किया, हम उन्हें नरक में झोंक देंगे। जब-जब उनकी खालें पकेंगी, हम उनकी खालें बदल देंगे, ताकि वे यातना चखें, निःसंदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।

4:57
और जो लोग ईमान लाये तथा सदाचार किये, हम उन्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश देंगे, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं। जिनमें वे सदावासी होंगे, उनके लिए उनमें निर्मल पत्नियाँ होंगी और हम उन्हें घनी छाँवों में रखेंगे।

4:58
अल्लाह[1] तुम्हें आदेश देता है कि धरोहर उनके स्वामियों को चुका दो और जब लोगों के बीच निर्णय करो, तो न्याय के साथ निर्णय करो। अल्लाह तुम्हें अच्छी बात का निर्देश दे रहा है। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ सुनने-देखने वाला है।
1. यहाँ से ईमान वालों को संबोधित किया जा रहा है कि सामाजिक जीवन की व्यवस्था के लिये मूल नियम यह है कि जिस का जो भी अधिकार हो, उसे स्वीकार किया जाये और दिया जाये। इसी प्रकार कोई भी निर्णय बिना पक्षपात के न्याय के साथ किया जाये, किसी प्रकार कोई अन्याय नहीं होना चाहिये।

4:59
हे ईमान वालो! अल्लाह की आज्ञा का अनुपालन करो और रसूल की आज्ञा का अनुपालन करो तथा अपने शासकों की आज्ञापालन करो। फिर यदि किसी बात में तुम आपस में विवाद (विभेद) कर लो, तो उसे अल्लाह और रसूल की ओर फेर दो, यदि तुम अल्लाह तथा अन्तिम दिन (प्रलय) पर ईमान रखते हो। ये तुम्हारे लिए अच्छा[1] और इसका परिणाम अच्छा है।
1. अर्थात किसी के विचार और राय को मानने से। क्यों कि क़ुर्आन और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत ही धर्मादेशों की शिलाधार हैं।

4:60
(हे नबी!) क्या आपने उन द्विधावादियों (मुनाफ़िक़ों) को नहीं जाना, जिनका ये दावा है कि जो कुछ आपपर अवतरित हुआ है तथा जो कुछ आपसे पूर्व अवतरित हुआ है, उनपर ईमान रखते हैं, किन्तु चाहते हैं कि अपने विवाद का निर्णय विद्रोही के पास ले जायें, जबकि उन्हें आदेश दिया गया है कि उसे अस्वीकार कर दें? और शैतान चाहता है कि उन्हें सत्धर्म से बहुत दूर[1] कर दे।
1. आयत का भावार्थ यह है कि जो धर्म विधान क़ुर्आन तथा सुन्नत के सिवा किसी अन्य विधान से अपना निर्णय चाहते हों, उन का ईमान का दावा मिथ्या है।

4:61
तथा जब उनसे कहा जाता है कि उस (क़ुर्आन) की ओर आओ, जो अल्लाह ने उतारा है तथा रसूल की (सुन्नत की) ओर, तो आप मुनाफ़िक़ों (द्विधावादियों) को देखते हैं कि वे आपसे मुँह फेर रहे हैं।

4:62
फिर यदि उनके अपने ही करतूतों के कारण उनपर कोई आपदा आ पड़े, तो फिर आपके पास आ कर शपथ लेते हैं कि हमने[1] तो केवल भलाई तथा (दोनों पक्षों में) मेल कराना चाहा था।
1. आयत का भावार्थ यह है कि मुनाफ़िक़ ईमान का दावा तो करते थे, परन्तु अपने विवाद चुकाने के लिये इस्लाम के विरोधियों के पास जाते, फिर जब कभी उन की दो रंगी पकड़ी जाती तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आ कर मिथ्या शपथ लेते। और यह कहते कि हम केवल विवाद सुलझाने के लिये उन के पास चले गये थे। (इब्ने कसीर)

4:63
यही वो लोग हैं, जिनके दिलों के भीतर की बातें अल्लाह जानता है। अतः, आप उन्हें क्षमा कर दें और उनसे ऐसी प्रभावी बात बोलें, जो उनके दिलों में उतर जाये।

4:64
और हमने जो भी रसूल भेजा, वो इसलिए, ताकि अल्लाह की अनुमति से, उसकी आज्ञा का पालन किया जाये और जब उन लोगों ने अपने ऊपर अत्याचार किया, तो यदि वे आपके पास आते, फिर अल्लाह से क्षमा याचना करते तथा उनके लिए रसूल क्षमा की प्रार्थना करते, तो अल्लाह को अति क्षमाशील दयावान् पाते।

4:65
तो आपके पालनहार की शपथ! वे कभी ईमान वाले नहीं हो सकते, जब तक अपने आपस के विवाद में आपको निर्णायक न बनाएँ[1], फिर आप जो निर्णय कर दें, उससे अपने दिलों में तनिक भी संकीर्णता (तंगी) का अनुभव न करें और पूर्णता स्वीकार कर लें।
1. यह आदेश आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जीवन में था। तथा आप के निधन के पश्चात् अब आप की सुन्नत से निर्णय लेना है।

4:66
और यदि हम उन्हें[1] आदेश देते कि स्वयं को वध करो तथा अपने घरों से निकल जाओ, तो इनमें से थोड़े के सिवा कोई ऐसा नहीं करता। जबकि उन्हें जो निर्देश दिया जाता है, यदि वे उसका पालन करते, तो उनके लिए अच्छा और अधिक स्थिरता का कारण होता।
1. अर्थात जो दुसरों से निर्णय कराते हैं।

4:67
और हम उन्हें अपने पास से बहुत बड़ा प्रतिफल देते।

4:68
तथा हम उन्हें सीधी डगर दर्शा देते।

4:69
तथा जो अल्लाह और रसूल की आज्ञा का अनुपालन करेंगे, वही (स्वर्ग में), उनके साथ होंगे, जिनपर अल्लाह ने पुरस्कार किया है, अर्थात नबियों, सत्यवादियों, शहीदों और सदाचारियों के साथ और वे क्या ही अच्छे साथी हैं?

4:70
ये प्रदान अल्लाह की ओर से है और अल्लाह का ज्ञान बहुत[1] है।
1. अर्थात अपनी दया तथा प्रदान के याग्य को जानने के लिये।

4:71
हे ईमान वालो! अपने (शत्रु से) बचाव के साधन तैयार रखो, फिर गिरोहों में अथवा एक साथ निकल पड़ो।

4:72
और तुममें कोई ऐसा व्यक्ति[1] भी है, जो तुमसे अवश्य पीछे रह जोएगा और यदि तुमपर (युध्द में) कोई आपदा आ पड़े, तो कहेगाः अल्लाह ने मुझपर उपकार किया कि मैं उनके साथ उपस्थित न था।
1. यहाँ युध्द से संबंधित अब्दुल्लाह बिन उबय्य जैसे मुनाफ़िक़ों (द्विधावादियों) की दशा का वर्णन किया जा रहा है। (इब्ने कसीर)

4:73
और यदि तुमपर अल्लाह की दया हो जाये, तो वे अवश्य ये कामना करेगा कि काश! मैं भी उनके साथ होता, तो बड़ी सफलता प्राप्त कर लेता। मानो उसके और तुम्हारे मध्य कोई मित्रता ही न थी।

4:74
तो चाहिए कि अल्लाह की राह[1] में वे लोग युध्द करें, जो आख़िरत (परलोक) के बदले सांसारिक जीवन बेच चुके हैं और जो अल्लाह की राह में युध्द करेगा, वो मारा जाये अथवा विजयी हो जाये, हम उसे बड़ा प्रतिफल प्रदान करेंगे।
1. अल्लाह के धर्म को ऊँचा करने, और उस की रक्षा के लिये। किसी स्वार्थ अथवा किसी देश और संसारिक धन धान्य की प्राप्ति के लिये नहीं।

4:75
और तुम्हें क्या हो गया है कि अल्लाह की राह में युध्द नहीं करते, जबकि कितने ही निर्बल पुरुष, स्त्रियाँ और बच्चे हैं, जो गुहार रहे हैं कि हे हमारे पालनहार! हमें इस नगर[1] से निकाल दे, जिसके निवासी अत्याचारी हैं और हमारे लिए अपनी ओर से कोई रक्षक बना दे और हमारे लिए अपनी ओर से कोई सहायक बना दे।
1. अर्थात मक्का नगर से। यहाँ इस तथ्य को उजागर कर दिया गया है कि क़ुर्आन ने युध्द का आदेश इस लिये नहीं दिया है कि दूसरों पर अत्याचार किया जाये। बल्कि नृशंसितों तथा निर्बलों की सहायता के लिये दिया है। इसी लिये वह बार बार कहता है कि "अल्लाह की राह में युध्द करो", अपने स्वार्थ और मनोकांक्षाओं के लिये नहीं। न्याय तथा सत्य की स्थापना और सुरक्षा के लिये युध्द करो।

4:76
जो लोग ईमान लाये, वे अल्लाह की राह में युध्द करते हैं और जो काफ़िर हैं, वे उपद्रव के लिए युध्द करते हैं। तो शैतान के साथियों से युध्द करो। निःसंदेह शैतान की चाल निर्बल होती है।

4:77
(हे नबी!) क्या आपने उनकी दशा नहीं देखी, जिनसे कहा गया था कि अपने हाथों को (युध्द से) रोके रखो, नमाज़ की स्थापना करो और ज़कात दो? परन्तु जब उनपर युध्द करना लिख दिया गया, तो उनमें से एक गिरोह लोगों से ऐसे डर रहा है, जैसे अल्लाह से डर रहा हो या उससे भी अधिक तथा वे कहते हैं कि हे हमारे पालनहार! हमें युध्द करने का आदेश क्यों दे दिया, क्यों न हमें थोड़े दिनों का और अवसर दिया? आप कह दें कि सांसारिक सुख बहुत थोड़ा है तथा परलोक उसके लिए अधिक अच्छा है, जो अल्लाह[1] से डरा और उनपर कण भर भी अत्याचार नहीं किया जायेगा।
1. अर्थात परलोक का सुख उस के लिये है, जिस ने अल्लाह के आदेशों का पालन किया।

4:78
तुम जहाँ भी रहो, तुम्हें मौत आ पकड़ेगी, यद्यपि दृढ़ दुर्गों में क्यों न रहो। तथा उन्हें यदि कोई सुख पहुँचता है, तो कहते हैं कि ये अल्लाह की ओर से है और यदि कोई आपदा आ पड़े, तो कहते हैं कि ये आपके कारण है। (हे नबी!) उनसे कह दो कि सब अल्लाह की ओर से है। इन लोगों को क्या हो गया कि कोई बात समझने के समीप भी नहीं[1] होते?
1. भावार्थ यह है कि जब मुसलमानों को कोई हानि हो जाती, तो मुनाफ़िक़ (द्विधावादी) तथा यहूदी कहतेः यह सब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कारण हुआ। क़ुर्आन कहता है कि सब कुछ अल्लाह की ओर से होता है। अर्थात उस ने प्रत्येक दशा तथा परिणाम के लिये कुछ नियम बना दिये हैं। और जो कुछ भी होता है, वह उन्हीं दशाओं का परिणाम होता है। अतः तुम्हारी यह बातें जो कह रहे हो, बड़ी अज्ञानता की बातें हैं।

4:79
(वास्तविक्ता तो ये है कि) तुम्हें जो सुख पहुँचता है, वह अल्लाह की ओर से होता है तथा जो हानि पहुँचती है, वह स्वयं (तुम्हारे कुकर्मों के) कारण होती है और हमने आपको सब मानव का रसूल (संदेशवाहक) बनाकर भेजा[1] है और (आपके रसूल होने के लिए) अल्लाह का साक्ष्य बहुत है।
1. इस का भावार्थ यह है कि तुम्हें जो कुछ हानि होती है, वह तुम्हारे कुकर्मों का दुष्परिणाम होता है। इस का आरोप दूसरे पर न धरो। इस्लाम के नबी तो अल्लाह के रसूल हैं और रसूल का काम यही है कि संदेश पहुँचा दें, और तुम्हारा कर्तव्य है कि उन के सभी आदेशों का अनुपालन करो। फिर यदि तुम अवज्ञा करो, और उस का दुष्परिणाम सामने आये, तो दोष तुम्हारा है, न कि इस्लाम के नबी का।

4:80
जिसने रसूल की आज्ञा का अनुपालन किया, (वास्तव में) उसने अल्लाह की आज्ञा का पालन किया तथा जिसने मुँह फेर लिया, तो (हे नबी!) हमने आपको उनका प्रहरी (रक्षक) बनाकर नहीं भेजा[1] है।
1. अर्थात आप का कर्तव्य अल्लाह का संदेश पहुँचाना है, उन के कर्मों तथा उन्हें सीधी डगर पर लगा देने का दायित्व आप पर नहीं है।

4:81
तथा वे (आपके सामने) कहते हैं कि हम आज्ञाकारी हैं और जब आपके पास से जाते हैं, तो उनमें से कुछ लोग, रात में, आपकी बात के विरुध्द परामर्श करते हैं और वे जो परामर्श कर रहे हैं, उसे अल्लाह लिख रहा है। अतः आप उनपर ध्यान न दें और अल्लाह पर भरोसा करें तथा अल्लाह पर भरोसा काफ़ी है।

4:82
तो क्या वे क़ुर्आन के अर्थों पर सोच-विचार नहीं करते? यदि वे अल्लाह के सिवा दूसरे की ओर से होता, तो उसमें बहुत सी प्रतिकूल (बेमेल) बातें पाते[1]।
1. अर्थात जो व्यक्ति क़ुर्आन में विचार करेगा, उस पर यह तथ्य खुल जायेगा कि क़ुर्आन अल्लाह की वाणी है।

4:83
और जब उनके पास शांति या भय की कोई सूचना आती है, तो उसे फैला देते हैं। जबकि यदि वे उसे अल्लाह के रसूल तथा अपने अधिकारियों की ओर फेर देते, तो जो बात की तह तक पहुँचने वाले हैं, वे उसकी वास्तविक्ता जान लेते। यदि तुमपर अल्लाह की अनुकम्पा तथा दया न होती, तो तुममें थोड़े के सिवा सब शैतान के पीछे भाग[1] जाते।
1. इस आयत द्वारा यह निर्देश दिया जा रहा है कि जब भी साधारण शांति या भय की कोई सूचना मिले तो उसे अधिकारियों तथा शासकों तक पहुँचा दिया जाये।

4:84
तो (हे नबी!) आप अल्लाह की राह में युध्द करें। केवल आपपर ये भार डाला जा रहा है तथा ईमान वालों को (इसकी) प्रेरणा दें। संभव है कि अल्लाह काफ़िरों का बल (तोड़ दे)। अल्लाह का बल और उसका दण्ड सबसे कड़ा है।

4:85
जो अच्छी अनुशंसा (सिफ़ारिश) करेगा, उसे उसका भाग (प्रतिफल) मिलेगा तथा जो बुरी अनुशंसा (सिफ़ारिश) करेगा, तो उसे भी उसका भाग (कुफल)[1] मिलेगा और अल्लाह प्रत्येक चीज़ का निरीक्षक है।
1. आयत का भावार्थ यह है कि अच्छाई तथा बुराई में किसी की सहायता करने का भी पुण्य और पाप मिलता है।

4:86
और जब तुमसे सलाम किया जाये, तो उससे अच्छा उत्तर दो अथवा उसी को दोहरा दो। निःसंदेह अल्लाह प्रत्येक विषय का ह़िसाब लेने वाला है।

4:87
अल्लाह के सिवा कोई वंदनीय (पूज्य) नहीं, वह अवश्य तुम्हें प्रलय के दिन एकत्र करेगा, इसमें कोई संदेह नहीं तथा बात कहने में अल्लाह से अधिक सच्चा कौन हो सकता है?

4:88
तुम्हें क्या हुआ है कि मुनाफ़िक़ों (द्विधावादियों) के बारे में दो पक्ष[1] बन गये हो, जबकि अल्लाह ने उनके कुकर्मों के कारण उन्हें ओंधा कर दिया है। क्या तुम उसे सुपथ दर्शा देना चाहते हो, जिसे अल्लाह ने कुपथ कर दिया हो? और जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, तो तुम उसके लिए कोई राह नहीं पा सकते।
1. मक्का वासियों में कुछ अपने स्वार्थ के लिये मौखिक मुसलमान हो गये थे, और जब युध्द आरंभ हुआ तो उन के बारे में मुसलमानों के दो विचार हो गये। कुछ उन्हें अपना मित्र और कुछ उन्हें अपना शत्रु समझ रहे थे। अल्लाह ने यहाँ बता दिया कि वह लोग मुनाफ़िक़ (द्विधावादी) हैं। जब तक मक्का से हिजरत कर के मदीना में न आ जायें, और शत्रु ही के साथ रह जायें, उन्हें भी शत्रु समझा जायेगा। यह वह मुनाफ़िक़ नहीं हैं जिन की चर्चा पहले की गयी है, ये मक्का के विशेष मुनाफ़िक़ हैं, जिन से युध्द की स्थिति में कोई मित्रता की जा सकती थी, और न ही उन से कोई संबंध रखा जा सकता था।

4:89
(हे ईमान वालो!) वे तो ये कामना करते हैं कि उन्हीं के समान तुमभी काफ़िर हो जाओ तथा उनके बराबर हो जाओ। अतः उनमें से किसी को मित्र न बनाओ, जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें। यदि वे इससे विमुख हों, तो उन्हें जहाँ पाओ, वध करो और उनमें से किसी को मित्र न बनाओ और न सहायक।

4:90
परन्तु उनमें से जो किसी ऐसी क़ौम से जा मिलें, जिनके और तुम्हारे बीच संधि हो अथवा ऐसे लोग हों, जो तुम्हारे पास इस स्थिति में आयें कि उनके दिल इससे संकुचित हो रहे हों कि तुमसे युध्द करें अथवा (तुम्हारे साथ) अपनी जाति से युध्द करें। यदि अल्लाह चाहता, तो उनहें तुमपर सामर्थ्य दे देता, फिर वे तुमसे युध्द करते। यदि वे तुमसे विलग रह गये, तुमसे युध्द नहीं किया और तुमसे संधि कर ली, तो उनके विरुध्द अल्लाह ने तुम्हारे लिए कोई (युध्द करने की) राह नहीं बनाई[1] है।
1. अर्थात इस्लाम में युध्द का आदेश उन के विरुध्द दिया गया है, जो इस्लाम के विरुध्द युध्द कर रहे हों। अन्यथा उन से युध्द करने का कोई कारण नहीं रह जाता क्यों कि मूल चीज़ शांति तथा संधि है, युध्द और हत्या नहीं।

4:91
तथा तुम्हें कुछ ऐसे दूसरे लोग भी मिलेंगे, जो तुम्हारी ओर से भी शान्त रहना चाहते हैं और अपनी जाति की ओर से शांत रहना (चाहते हैं)। फिर जब भी उपद्रव की ओर फेर दिये जायेँ, तो उसमें ओंधे होकर गिर जाते हैं। तो यदि वे तुमसे विलग न रहें और तुमसे संधि न करें तथा अपना हाथ न रोकें, तो उन्हें पकड़ो और जहाँ पाओ, वध करो। हमने उनके विरुध्द तुम्हारे लिए खुला तर्क बना दिया है।

4:92
किसी ईमान वाले के लिए वैध नहीं कि वो किसी ईमान वाले की हत्या कर दे, परन्तु चूक[1] से। फिर जो किसी ईमान वाले की चूक से हत्या कर दे, तो उसे एक ईमान वाला दास मुक्त करना है और उसके घर वालों को दियत (अर्थदण्ड)[2] देना है, परन्तु ये कि वे दान (क्षमा) कर दें। फिर यदि वह (निहत) उस जाति में से हो, जो तुम्हारी शत्रु है और वह (निहत) ईमान वाला है, तो एक ईमान वाला दास मुक्त करना है और यदि ऐसी क़ौम से हो, जिसके और तुम्हारे बीच संधि है, तो उसके घर वालों को अर्थदण्ड देना तथा एक ईमान वाला दास (भी) मुक्त करना है और जो दास न पाये, उसे निरन्तर दो महीने रोज़ा रखना है। अल्लाह की ओर से (उसके पाप की) यही क्षमा है और अल्लाह अति ज्ञानी तत्वज्ञ है।
1. अर्थात निशाना चूक कर लगे। 2. यह अर्थदण्ड सौ ऊँट अथवा उन का मूल्य है। आयत का भावार्थ यह है कि जिन की हत्या करने का आदेश दिया गया है, वह केवल इस लिये दिया गया है कि उन्हों ने इस्लाम तथा मुसलमानों के विरुध्द युध्द आरंभ कर दिया है। अन्यथा यदि युध्द की स्थिति न हो तो हत्या एक महापाप है। और किसी मुसलमान के लिये कदापि यह वैध नहीं कि किसी मुसलमान की, या जिस से समझोता हो, उस की जान बूझ कर हत्या कर दे। संधि मित्र से अभिप्राय वे सभी ग़ैर मुस्लिम हैं, जिन से मुसलमानों का युध्द न हो, संधि तथा संविदा हो। फिर यदि चूक से किसी ने किसी की हत्या कर दी तो उस का यह आदेश है, जो इस आयत में बताया गया है। यह ज्ञातव्य है कि क़ुर्आन ने केवल दो ही स्थिति में हत्या को उचित किया हैः युध्द की स्थिति में, अथवा नियमानुसार किसी अपराधी की हत्या की जाये। जैसे हत्यारे को हत्या के बदले हत किया जाये।

4:93
और जो किसी ईमान वाले की हत्या जान-बूझ कर कर दे, उसका कुफल (बदला) नरक है, जिसमें वह सदावासी होगा और उसपर अल्लाह का प्रकोप तथा धिक्कार है और उसने उसके लिए घोर यातना तैयार कर रखी है।

4:94
हे ईमान वालो! जब तुम अल्लाह की राह में (जिहाद के लिए) निकलो, तो भली-भाँति परख[1] लो और कोई तुम्हें सलाम[2] करे, तो ये न कहो कि तुम ईमान वाले नहीं हो। क्या तुम सांसारिक जीवन का उपकरण चाहते हो? जबकि अल्लाह के पास बहुत-से परिहार (शत्रुधन) हैं। तुमभी पहले ऐसे[3] ही थे, तो अल्लाह ने तुमपर उपकार किया। अतः, भली-भाँति परख लिया करो। निःसंदेह, अल्लाह उससे सूचित है, जो तुम कर रहे हो।
1. अर्थात यह कि वह शत्रु हैं या मित्र हैं। 2. सलाम करना मुसलमान होने का एक लक्षण है। 3. अर्थात इस्लाम के शब्द के सिवा तुम्हारे पास इस्लाम का कोई चिन्ह नहीं था। इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि रात के समय एक व्यक्ति यात्रा कर रहा था। जब उस से कुछ मुसलमान मिले तो उस ने अस्सलामु अलैकुम कहा। फिर भी एक मुसलमान ने उसे झूठा समझ कर मार दिया। इसी पर यह आयत उतरी। जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को इस का पता चला तो आप बहुत नाराज़ हुये। (इब्ने कसीर)

4:95
ईमान वालों में जो अकारण अपने घरों में रह जाते हैं और जो अल्लाह की राह में अपने धनों और प्राणों के द्वारा जिहाद करते हैं, दोनों बराबर नहीं हो सकते। अल्लाह ने उन्हें जो अपने धनों तथा प्राणों के द्वारा जिहाद करते हैं, उनपर जो घरों में रह जाते हैं, पद में प्रधानता दी है और प्रत्येक को अल्लाह ने भलाई का वचन दिया है और अल्लाह ने जिहाद करने वालों को उनपर, जो घरों में बैठे रह जाने वाले हैं, बड़े प्रतिफल में भी प्रधानता दी है।

4:96
अल्लाह की ओर से कई (उच्च) श्रेणियाँ तथा क्षमा और दया है और अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।

4:97
निःसंदेह वे लोग, जिनके प्राण फ़रिश्ते निकालते हैं, इस दशा में कि वे अपने ऊपर (कुफ़्र के देश में रहकर) अत्याचार करने वाले हों, तो उनसे कहते हैं, तुम किस चीज़ में थे? वे कहते हैं कि हम धरती में विवश थे। तब फ़रिश्ते कहते हैं, क्या अल्लाह की धरती विस्तृत नहीं थी कि तुम उसमें हिजरत कर[1] जाते? तो इन्हीं का आवास नरक है और वह क्या ही बुरा स्थान है!
1. जब सत्य के विरोधियों के अत्याचार से विवश हो कर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मदीना हिजरत (प्रस्थान) कर गये, तो अरब में दो प्रकार के देश हो गये- मदीन दारुल हिजरत (प्रवास गृह) था जिस में मुसलमान हिजरत कर के एकत्र हो गये। तथा दारुल ह़र्ब। अर्थात वह क्षेत्र जो शत्रुओं के नियंत्रण में था। और जिस का केंद्र मक्का था। यहाँ जो मुसलमान थे वह अपनी आस्था तथा धार्मिक कर्म से वंचित थे। उन्हे शत्रु का अत्याचार सहना पड़ता था। इस लिये उन्हें यह आदेश दिया गया था कि मदीना हिजरत कर जायें। और यदि वह शक्ति रखते हुये हिजरत नहीं करेंगे, तो अपने इस आलस्य के लिये उत्तर दायी होंगे। इस के पश्चात् आगामी आयत में उन की चर्चा की जा रही है, जो हिजरत करने से विवश थे। मक्का से मदीना हिजरत करने का यह आदेश मक्का की विजय सन् 8 हिजरी के पश्चात् निरस्त कर दिया गया। इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के युग में कुछ मुसलमान काफ़िरों की संख्या बढ़ाने के लिये उन के साथ हो जाते थे। और तीर या तलवार लगने से मारे जाते थे, उन्हीं के बारे में यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारीः4596)

4:98
परन्तु जो पुरुष, स्त्रियाँ तथा बच्चे ऐसे विवश हूँ कि कोई उपाय न रखते हों और न (हिजरत की) कोई राह पाते हों।

4:99
तो आशा है कि अल्लाह उन्हें क्षमा कर देगा। निःसंदेह अल्लाह अति ज्ञान्त क्षमाशील है।

4:100
तथा जो कोई अल्लाह की राह में हिजरत करेगा, वह धरती में बहुत-से निवास स्थान तथा विस्तार पायेगा और जो अपने घर से अल्लाह और उसके रसूल की ओर निकल गया, फिर उसे (राह में ही) मौत ने पकड़ लिया, तो उसका प्रतिफल अल्लाह के पास निश्चित हो गया और अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।

4:101
और जब तुम धरती में यात्रा करो, तो नमाज़[1] क़स्र (संक्षिप्त) करने में तुमपर कोई दोष नहीं, यदि तुम्हें डर हो कि काफ़िर तुम्हें सतायेंगे। वास्तव में, काफ़िर तुम्हारे खुले शत्रु हैं।
1. क़स्र का अर्थ चार रक्अत वाली नमाज़ को दो रक्अत पढ़ना है। यह अनुमति प्रत्येक यात्रा के लिये है, शत्रु का भय हो, या न हो।

4:102
तथा (हे नबी!) जब आप (रणक्षेत्र में) उपस्थित हों और उनके लिए नमाज़ की स्थापना करें, तो उनका एक गिरोह आपके साथ खड़ा हो जाये और अपने अस्त्र-शस्त्र लिए रहें और जब वे सज्दा कर लें, तो तुम्हारे पीछे हो जायें तथा दूसरा गिरोह आये, जिसने नमाज़ नहीं पढ़ी है और आपके साथ नमाज़ पढ़ें और अपने अस्त्र-शस्त्र लिए रहें। काफ़िर चाहते हैं कि तुम अपने शस्त्रों से निश्चेत हो जाओ, तो तुमपर यकायक धावा बोल दें। फिर तुमपर कोई दोष नहीं, यदि वर्षा के कारण तुम्हें दुःख हो अथवा तुम रोगी रहो कि अपने शस्त्र[1] उतार दो तथा अपने बचाव का ध्यान रखो। निःसंदेह अल्लाह ने काफ़िरों के लिए अपमानकारी यातना तैयार कर रखी है।
1. इस का नाम "सलातुल ख़ौफ़" अर्थात भय के समय की नमाज़ है। जब रणक्षेत्र में प्रत्येक समय भय लगा रहे, तो उस (समय नमाज़ पढ़ने) की विधि यह है कि सेना के दो भाग कर लें। एक भाग को नमाज़ पढ़ायें, तथा दूसरा शत्रु के सम्मुख खड़ा रहे, फिर (पहले गिरोह के एक रक्अत पूरी होने के बाद) दूसरा आये और नमाज़ पढ़े। इस प्रकार प्रत्येक गिरोह की एक रक्अत और इमाम की दो रक्अत होंगी। ह़दीसों में इस की और भी विधियाँ आईं हैं। और यह युध्द की स्थितियों पर निर्भर है।

4:103
फिर जब तुम नमाज़ पूरी कर लो, तो खड़े, बैठे, लेटे प्रत्येक स्थिति में अल्लाह का स्मरण करो और जब तुम शान्त हो जाओ, तो पूरी नमाज़ पढ़ो। निःसंदेह, नमाज़ ईमान वालों पर निर्धारित समय पर अनिवार्य की गयी है।

4:104
तथा तुम (शत्रु) जाति का पीछा करने में सिथिल न बनो, यदि तुम्हें दुःख पहुँचा है, तो तुम्हारे समान उन्हें भी दुःख पहुँचा है तथा तुम अल्लाह से जो आशा[1] रखते हो, वो आशा वे नहीं रखते तथा अल्लाह अति ज्ञानी तत्वज्ञ है।
1. अर्थात प्रतिफल तथा सहायता और समर्थन की।

4:105
(हे नबी!) हमने आपकी ओर इस पुस्तक (क़ुर्आन) को सत्य के साथ उतारा है, ताकि आप, लोगों के बीच उसके अनुसार निर्णय करें, जो अल्लाह ने आपको बताया है, और आप विश्वासघातियों के पक्षधर न[1] बनें।
1. यहाँ से, अर्थात आयत 105 से 113 तक, के विषय में भाष्यकारों ने लिखा है कि एक व्यक्ति ने एक अन्सारी की कवच (ज़िरह) चुरा ली। और जब देखा कि उस का भेद खुल जायेगा, तो उस का आरोप एक यहूदी पर लगा दिया। और उस के क़बीले के लोग भी उस के पक्षधर हो गये। और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आये, और कहा कि आप इसे निर्दोष घोषित कर दें। और उन की बातों के कारण समीप था कि आप उसे निर्दोष घोषित कर के यहूदी को अपराधी बना देते कि आप को सावधान करने के लिये यह आयतें उतरीं। (इब्ने जरीर) इन आयतों का साधारण भावार्थ यह है कि मुसलमान न्यायधीश को चाहीये कि किसी पक्ष का इस लिये पक्षपात न करे कि वह मुसलमान है। और दूसरा मुसलमान नहीं है, बल्कि उसे हर ह़ाल में निष्पक्ष हो कर न्याय करना चाहीये।

4:106
तथा अल्लाह से क्षमा याचना करते रहें, निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।

4:107
और उनका पक्ष न लें, जो स्वयं अपने साथ विश्वासघात करते हों, निःसंदेह अल्लाह विश्वासघाती, पापी से प्रेम नहीं करता[1]।
1. आयत का भावार्थ यह है कि न्यायधीश को ऐसी बात नहीं करनी चाहिये, जिस में किसी का पक्षपात हो।

4:108
वे (अपने करतूत) लोगों सो छुपा सकते हैं,परन्तु अल्लाह से नहीं छुपा सकते और वह उनके साथ होता है, जब वे रात में उस बात का परामर्श करते हैं, जिससे वह प्रसन्न नहीं[1] होता तथा अल्लाह उसे घेरे हुए है, जो वे कर रहे हैं।
1. आयत का भावार्थ यह है कि मुसलमानों को अपना सहधर्मी अथवा अपनी जाति या परिवार का होने के कारण किसी अपराधी का पक्षपात नहीं करना चाहिये। क्योंकि संसार न जाने, परन्तु अल्लाह तो जानता है कि कौन अपराधी है, कौन नहीं।

4:109
सुनो! तुम ही वो हो कि सांसारिक जीवन में उनकी ओर से झगड़ लिए। तो परलय के दिन उनकी ओर से कौन अल्लाह से झगड़ेगा और कौन उनका अभिभाषक (प्रतिनिधि) होगा?

4:110
जो व्यक्ति कोई कुकर्म करेगा अथवा अपने ऊपर अत्याचार करेगा, फिर अल्लाह से क्षमा याचना करेगा, तो वह उसे अति क्षमी दयावान् पायेगा।

4:111
और जो व्यक्ति कोई पाप करता है, तो अपने ऊपर करता[1] है तथा अल्लाह अति ज्ञानी तत्वज्ञ है।
1. भावार्थ यह है कि जो अपराध करता है, उस के अपराध का दुष्परिणाम उसी के ऊपर है। अतः तुम यह न सोचो कि अपराधी के अपने सहधर्मी अथवा संबंधी होने के कारण, उस का अपराध सिध्द हो गया, तो हम पर भी धब्बा लग जायेगा।

4:112
और जो व्यक्ति कोई चूक अथवा पाप स्वयं करे और किसी निर्दोष पर उसका आरोप लगा दे, तो उसने मिथ्या दोषारोपन तथा खुले पाप का[1] बोझ अपने ऊपर लाद लिया।
1. अर्थात स्वयं पाप कर के दूसरे पर आरोप लगाना दुहरा पाप है।

4:113
और (हे नबी!) यदि आपपर अल्लाह की दया तथा कृपा न होती, तो उनके एक गिरोह ने संकल्प ले लिया था कि आपको कुपथ कर दें[1] और वे स्वयं को ही कुपथ कर रहे थे। तथा वे आपको कोई हानि नहीं पहुँचा सकते। क्योंकि अल्लाह ने आपपर पुस्तक (क़ुर्आन) तथा हिक्मत (सुन्नत) उतारी है और आपको उसका ज्ञान दे दिया है, जिसे आप नहीं जानते थे तथा ये आपपर अल्लाह की बड़ी दया है।
1. कि आप निर्देष को अपराधी समझ लें।

4:114
उनके अधिकांश सरगोशी में कोई भलाई नहीं होती, परन्तु जो दान, सदाचार या लोगों में सुधार कराने का आदेश दे और जो कोई ऐसे कर्म अल्लाह की प्रसन्नता के लिए करेगा, तो हम उसे बहुत भारी प्रतिफल प्रदान करेंगे।

4:115
तथा जो व्यक्ति अपने ऊपर मार्गदर्शन उजागर हो जाने के[1] पश्चात् रसूल का विरोध करे और ईमान वालों की राह के सिवा (दूसरी राह) का अनुसरण करे, तो हम उसे वहीं फेर[2] देंगे, जिधर फिरा है और उसे नरक में झोंक देंगे तथा वह बुरा निवास स्थान है।
1. ईमान वालों से अभिप्राय नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सह़ाबा (साथी) हैं। 2. विद्वानों ने लिखा है कि यह आयत भी उसी मुनाफ़िक़ से संबंधित है। क्योंकि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस के विरुध्द दण्ड का निर्णय कर दिया तो वह भाग कर मक्का के मिश्रणवादियों से मिल गया। (तफ़्सीरे क़ुर्तुबी) फिर भी इस आयत का आदेश साधारण है।

4:116
निःसंदेह, अल्लाह इसे क्षमा[1] नहीं करेगा कि उसका साझी बनाया जाये और इसके सिवा जिसे चाहेगा, क्षमा कर देगा तथा जो अल्लाह का साझी बनाता है, वह (दरअसल) कुपथ में बहुत दूर चला गया।
1. अर्थात शिर्क (मिश्रणवाद) अक्षम्य पाप है।

4:117
वे (मिश्रणवादी), अल्लाह के सिवा देवियों ही को पुकारते हैं और धिक्कारे हुए शैतान को पुकारते हैं।

4:118
जिसे अल्लाह ने धिक्कार दिया है और जिसने कहा था कि मैं तेरे भक्तों से एक निश्चित भाग लेकर रहूँगा।

4:119
और उन्हें अवश्य बहकाऊँगा, कामनायें दिलाऊँगा और आदेश दूँगा कि वे पशुओं के कान चीर दें तथा उन्हें आदेश दूँगा, तो वे अवश्य अल्लाह की संरचना में परिवर्तन[1] कर देंगे तथा जो शैतान को अल्लाह के सिवा सहायक बनायेगा, वह खुली क्षति में पड़ जायेगा।
1. इस के बहुत से अर्थ हो सकते हैं। जैसे गोदना, गुदवाना, स्त्री का पुरुष का आचरण और स्वभाव बनाना, इसी प्रकार पुरुष का स्त्री का आचरण तथा रूप धारण करना आदि।

4:120
वह उन्हें वचन देता तथा कामनाओं में उलझाता है और उन्हें जो वचन देता है, वह धोखे के सिवा कुछ नहीं है।

4:121
उन्हीं का निवास स्थान नरक है और वे उससे भागने की कोई राह नहीं पायेंगे।

4:122
तथा जो लोग ईमान लाये और सत्कर्म किये, हम उन्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश देंगे, जिनमें नहरें प्रवाहित होंगी। वे उनमें सदावासी होंगे। ये अल्लाह का सत्य वचन है और अल्लाह से अधिक सत्य कथन किसका हो सकता है?

4:123
(ये प्रतिफल) तुम्हारी कामनाओं तथा अहले किताब की कामनाओं पर निर्भर नहीं। जो कोई भी दुष्कर्म करेगा, वह उसका कुफल पायेगा तथा अल्लाह के सिवा अपना कोई रक्षक और सहायक नहीं पायेगा।

4:124
तथा जो सत्कर्म करेगा, वह नर हो अथवा नारी, फिर ईमान भी[1] रखता होगा, तो वही लोग स्वर्ग में प्रवेश पायेंगे और तनिक भी अत्याचार नहीं किये जायेंगे।
1. अर्थात सत्कर्म का प्रतिफल सत्य आस्था और ईमान पर आधारित है कि अल्लाह तथा उस के नबियों पर ईमान लाया जाये। तथा ह़दीसों से विद्वित होता है कि एक बार मुसलमानों और अहले किताब के बीच विवाद हो गया। यहूदियों ने कहा कि हमारा धर्म सब से अच्छा है। मुक्ति केवल हमारे ही धर्म में है। मुसलमानों ने कहा कि हमारा धर्म सब से अच्छा और अन्तिम धर्म है। उसी पर यह आयत उतरी। (इब्ने कसीर)

4:125
तथा उस व्यक्ति से अच्छा किसका धर्म हो सकता है, जिसने स्वयं को अल्लाह के लिए झुका दिया, वह एकेश्वरवादी भी हो और एकेश्वरवादी इब्राहीम के धर्म का अनुसरण कर रहा हो? और अल्लाह ने इब्राहीम को अपना विशुध्द मित्र बना लिया।

4:126
तथा अल्लाह ही का है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है और अल्लाह प्रत्येक चीज़ को अपने नियंत्रण में लिए हुए है।

4:127
(हे नबी!) वे स्त्रियों के बारे में आपसे धर्मादेश पूछ रहे हैं। आप कह दें कि अल्लाह उनके बारे में तुम्हें आदेश देता है और वे आदेश भी हैं, जो इससे पूर्व पुस्तक (क़ुर्आन) में तुम्हें, उन अनाथ स्त्रियों के बारे में सुनाये गये हैं, जिनके निर्धारित अधिकार तुम नहीं देते और उनसे विवाह करने की रुची रखते हो तथा उन बच्चों के बारे में भी, जो निर्बल हैं तथा (ये भी आदेश देता है कि) अनाथों के लिए न्याय पर स्थिर रहो[1] तथा तुम जो भी भलाई करते हो, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है।
1. इस्लाम से पहले यदि अनाथ स्त्री सुन्दर होती तो उस का संरक्षक, यदि उस का विवाह उस से हो सकता हो, तो उस से विवाह कर लेता परन्तु उसे महर (विवाह उपहार) नहीं देता। और यदि सुन्दर नहीं हो तो दूसरे से उसे विवाह नहीं करने देता था। ताकि उस का धन उसी के पास रह जाये। इसी प्रकार अनाथ बच्चों के साथ भी अत्याचार और अन्याय किया जाता था, जिन से रोकने के लिये यह आयत उतरी। (इब्ने कसीर)

4:128
और यदि किसी स्त्री को अपने पति से दुर्व्यवहार अथवा विमुख होने की शंका हो, तो उन दोनों पर कोई दोष नहीं कि आपस में कोई संधि कर लें और संधि कर लेना ही अच्छा[1] है। लोभ तो सभी में होता है। यदि तुम एक-दूसरे के साथ उपकार करो और (अल्लाह से) डरते रहो, तो निःसंदेह तुम जो कुछ कर रहे हो, अल्लाह उससे सूचित है।
1. अर्थ यह है कि स्त्री, पुरुष की इच्छा और रूचि पर ध्यान दे। तो यह संधि की रीति अलगाव से अच्छी है।

4:129
और यदि तुम अपनी पत्नियों के बीच न्याय करना चाहो, तो भी ऐसा कदापि नहीं कर[1] सकोगे। अतः एक ही की ओर पूर्णतः झुक[2] न जाओ और (शेष को) बीच में लटकी हुई न छोड़ दो और यदि (अपने व्यवहार में) सुधार[3] रखो और (अल्लाह से) डरते रहो, तो निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील दयावन् है।
1. क्यों कि यह स्वभाविक है कि मन का आकर्षण किसी एक की ओर होगा। 2. अर्थात जिस में उस के पति की रूचि न हो, और न व्यवहारिक रूप से बिना पति के हो। 3. अर्थात सब के साथ व्यवहार तथा सहवास संबंध में बराबरी करो।

4:130
और यदि दोनों अलग हो जायें, तो अल्लाह प्रत्येक को अपनी दया से (दूसरे से) निश्चिंत[1] कर देगा और अल्लाह बड़ा उदार तत्वज्ञ है।
1. अर्थात यदि निभाव न हो सके तो विवाह बंधन में रहना आवश्यक नहीं। दोनों अलग हो जायें, अल्लाह दोनों के लिये पति तथा पत्नी की व्यवस्था बना देगा।

4:131
तथा अल्लाह ही का है, जो आकाशों और धरती में है और हमने तुमसे पूर्व अहले किताब को तथा (खुद) तुम्हें आदेश दिया है कि अल्लाह से डरते रहो। यदि तुम कुफ्र (अवज्ञा) करोगे, तो निःसंदेह जो कुछ आकाशों तथा धरती में है, वह अल्लाह ही का है तथा अल्लाह निस्पृह[1] प्रशंसित है।
1. अर्थात उस की अवैज्ञा से तुम्हारा ही बिगड़ेगा।

4:132
तथा अल्लाह ही का है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है और अल्लाह काम बनाने के लिए बस है।

4:133
और वह चाहे तो, हे लोगो! तुम्हें ले जाये[1] और तुम्हारे स्थान पर दूसरों को ला दे तथा अल्लाह ऐसा कर सकता है।
1. अर्थात तुम्हारी अवैज्ञा के कारण तुम्हें ध्वस्त कर दे और दूसरे आज्ञाकारियों को पैदा कर दे।

4:134
जो सांसारिक प्रतिकार (बदला) चाहता हो, तो अल्लाह के पास संसार तथा परलोक दोनों का प्रतिकार (बदला) है तथा अल्लाह सबकी बात सुनता और सबके कर्म देख रहा है।

4:135
हे ईमान वालो! न्याय के साथ खड़े रहकर अल्लाह के लिए साक्षी (गवाह) बन जाओ। यद्यपि साक्ष्य (गवाही) तुम्हारे अपने अथवा माता पिता और समीपवर्तियों के विरुध्द हो, यदि कोई धनी अथवा निर्धन हो, तो अल्लाह तुमसे अधिक उन दोनों का हितैषी है। अतः अपनी मनोकांक्षा के लिए न्याय से न फिरो। यदि तुम बात घुमा फिरा कर करोगे अथवा साक्ष्य देने से कतराओगे, तो निःसंदेह अल्लाह उससे सूचित है, जो तुम करते हो।

4:136
हे ईमान वालो! अल्लाह, उसके रसूल और उस पुस्तक (क़ुर्आन) पर, जो उसने अपने रसूल पर उतारी है तथा उन पुस्तकों पर, जो इससे पहले उतारी हैं, ईमान लाओ। जो अल्लाह, उसके फ़रिश्तों, उसकी पुस्तकों और अन्त दिवस (प्रलय) को अस्वीकार करेगा, वह कुपथ में बहुत दूर जा पड़ेगा। 

4:137
निःसंदेह जो ईमान लाये, फिर काफ़िर हो गये, फिर ईमान लाये, फिर काफ़िर हो गये, फिर कुफ़्र में बढ़ते ही चले गये, तो अल्लाह उन्हें कदापि क्षमा नहीं करेगा और न उन्हें सीधी डगर दिखायेगा।

4:138
(हे नबी!) आप मुनाफ़िक़ों (द्विधावादियों) को शुभ सूचना सुना दें कि उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।

4:139
जो ईमान वालों को छोड़कर, काफ़िरों को अपना सहायक मित्र बनाते हैं, क्या वे उनके पास मान सम्मान चाहते हैं? तो निःसंदेह सब मान सम्मान अल्लाह ही के लिए[1] है।
1. अर्थात अल्लाह के अधिकार में है, काफ़िरों के नहीं।

4:140
और उस (अल्लाह) ने तुम्हारे लिए अपनी पुस्तक (क़ुर्आन) में ये आदेश उतार[1] दिया है कि जब तुम सुनो कि अल्लाह की आयतों को अस्वीकार किया जा रहा है तथा उनका उपहास किया जा रहा है, तो उनके साथ न बैठो, यहाँ तक कि वे दूसरी बात में लग जायें। निःसंदेह, तुम उस समय उन्हीं के समान हो जाओगे। निश्चय अल्लाह मुनाफ़िक़ों (द्विधावादियों) तथा काफ़िरों, सबको नरक में एकत्र करने वाला है।
1. अर्थात सूरह अन्आम आयत संख्या 68 में।

4:141
जो तुम्हारी प्रतीक्षा में रहा करते हैं; यदि तुम्हें अल्लाह की सहायता से विजय प्राप्त हो, तो कहते हैं, क्या हम तुम्हारे साथ न थे? और यदि उन (काफ़िरों) का पल्ला भारी रहे, तो कहते हैं कि क्या हम तुमपर छा नहीं गये थे और तुम्हें ईमान वालों से बचा (नहीं) रहे थे? तो अल्लाह ही प्रलय के दिन तुम्हारे बीच निर्णय करेगा और अल्लाह काफ़िरों के लिए ईमान वालों पर कदापि कोई राह नहीं बनायेगा[1]।
1. अर्थात द्विधावादी काफ़िरों की कितनी ही सहायता करें, उन की ईमान वालों पर स्थायी विजय नहीं होगी। यहाँ से द्विधावादियों के आचरण और स्वभाव की चर्चा की जा रही है।

4:142
वास्तव में, मुनाफ़िक (द्विधावादी) अल्लाह को धोखा दे रहे हैं, जबकी, वही उन्हें धोखे में डाल रहा[1] है और जब वे नमाज़ के लिए खड़े होते हैं, तो आलसी होकर खड़े होते हैं, वे लोगों को दिखाते हैं और अल्लाह का स्मरण थोड़ा ही करते हैं।
1. अर्थात उन्हें अवसर दे रहा है, जिसे वह अपनी सफलता समझते हैं। आयत 139 से यहाँ तक मुनाफ़िक़ों के कर्म और आचरण से संबंधित जो बातें बताई गई हैं, वह चार हैः 1. वेह मुसलमानों की सफलता पर विश्वास नहीं रखते। 2. मुसलमानों को सफलता मिले तो उन के साथ हो जाते हैं, और काफ़िरों को मिले तो उन के साथ। 3. नमाज़ मन से नहीं, बल्कि केवल दिखाने के लिये पढ़ते हैं। 4. वह ईमान और कुफ़्र के बीच द्विधा में रहते हैं।

4:143
वह इसके बीच द्विधा में पड़े हुए हैं, न इधर न उधर। दरअसल, जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, आप उसके लिए कोई राह नहीं पा सकेंगे।

4:144
हे ईमान वालो! ईमान वालों को छोड़कर काफ़िरों को सहायक मित्र न बनाओ। क्या तुम अपने विरुध्द अल्लाह के लिए खुला तर्क बनाना चाहते हो?

4:145
निश्चय मुनाफ़िक़ (द्विधावादी) नरक की सबसे नीची श्रेणी में होंगे और आप उनका कोई सहायक नहीं पायेंगे।

4:146
परन्तु जिन्होंने क्षमा याचना कर ली, अपना सुधार कर लिया, अल्लाह को सुदृढ़ पकड़ लिया और अपने धर्म को विशुध्द कर लिया, तो वे लोग ईमान वालों के साथ होंगे और अल्लाह ईमान वालों को बहुत बड़ा प्रतिफल प्रदान करेगा।

4:147
अल्लाह को क्या पड़ी है कि तुम्हें यातना दे, यदि तुम कृतज्ञ रहो तथा ईमान रखो और अल्लाह[1] बड़ा गुणग्राही अति ज्ञानी है।
1. इस आयत में यह संकेत है कि अल्लाह, कुफल और सुफल मानव कर्म के परिणाम स्वरूप देता है। जो उस के निर्धारित किये हुये नियम का परिणाम होता है। जिस प्रकार संसार की प्रत्येक चीज़ का एक प्रभाव होता है, ऐसे ही मानव के प्रत्येक कर्म का भी एक प्रभाव होता है।

4:148
अल्लाह को अपशब्द (बुरी बात) की चर्चा नहीं भाती, परन्तु जिसपर अत्याचार किया गया[1] हो और अल्लाह सब सुनता और जानता है।
1. आयत में कहा गया है कि किसी व्यक्ति में कोई बुराई हो तो उस की चर्चा न करते फिरो। परन्तु उत्पीड़ित व्यक्ति अत्याचारी के अत्याचार की चर्चा कर सकता है।

4:149
यदि तुमकोई भली बात खुल कर करो, उसे छुपाकर करो या किसी बुराई को क्षमा कर दो, (याद रखो कि) निःसंदेह अललाह अति क्षमी, सर्व शक्तिशाली है।

4:150
जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों के साथ (अविश्वास) कुफ़्र करते हैं और चाहते हैं कि अल्लाह तथा उसके रसूलों के बीच अन्तर करें तथा कहते हैं कि हम कुछ पर ईमान रखते हैं और कुछ के साथ कुफ़्र करते हैं और इसके बीच राह[1] अपनाना चाहते हैं।
1. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ह़दीस है कि सब नबी भाई हैं, उन के बाप एक और मायें अलग अलग हैं। सब का धर्म एक है, और हमारे बीच कोई नबी नहीं है। (सह़ीह़ बुख़ारीः3443)

4:151
वही शुध्द काफ़िर हैं और हमने काफ़िरों के लिए अपमानकारी यातना तैयार कर रखी है।

4:152
तथा जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाये और उनमें से किसी के बीच अन्तर नहीं किया, तो उन्हीं को, हम उनका प्रतिफल प्रदान करेंगे तथा अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।

4:153
(हे नबी!) आपसे अहले किताब माँग करते हैं कि आप उनपर आकाश से कोई पुस्तक उतार दें, तो इन्होंने मूसा से इससे भी बड़ी माँग की थी; उन्होंने कहा था कि हमें अल्लाह को प्रत्यक्ष[1] दिखा दो, तो इनके अत्याचारों के कारण, इन्हें बिजली ने धर लिया, फिर इन्होंने खुली निशानियाँ आने के पश्चात् बछड़े को पूज्य बना लिया, फिर हमने इसे भी क्षमा कर दिया और हमने मूसा को खुला प्रभुत्व प्रदान किया।
1. अर्थात आँखों से दिखा दो।

4:154
और हमने (उनसे वचन लेने के लिए) उनके ऊपर तूर (पर्वत) उठा दिया तथा हमने उनसे कहाः द्वार में सज्दा करते हुए प्रवेश करो तथा हमने उनसे कहा कि शनिवार[1] के विषय में अति न करो और हमने उनसे दृढ़ वचन लिया।
1. देखियेः सूरह बक़रह आयतः65

4:155
तो उनके अपना वचन भंग करने, उनके अल्लाह की आयतों के साथ कुफ़्र करने, उनके नबियों को अवैध वध करने तथा उनके ये कहने के कारण कि हमारे दिल बंद हैं। ( ऐसी बात नहीं है) बल्कि अल्लाह ने उनके दिलों पर मुहर लगा दी है। अतः इनमें से थोड़े ही इमान लायेंगे।

4:156
तथा उनके कुफ़्र और मर्यम पर घोर आरोप लगाने के कारण।

4:157
तथा उनके (गर्व से) कहने के कारण कि हमने अल्लाह के रसूल, मर्यम के पुत्र, ईसा मसीह़ को वध कर दिया, जबकि (वास्तव में) उसे वध नहीं किया और न सलीब (फाँसी) दी, परन्तु उनके लिए (इसे) संदिग्ध कर दिया गया। निःसंदेह, जिन लोगों ने इसमें विभेद किया, वे भी शंका में पड़े हुए हैं और उन्हें इसका कोई ज्ञान नहीं, केवल अनुमान के पीछे पड़े हुए हैं और निश्चय उसे उन्होंने वध नहीं किया है।

4:158
बल्कि अल्लाह ने उसे अपनी ओर आकाश में उठा लिया है तथा अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।

4:159
और सभी अहले किताब उस (ईसा) के मरण से पहले उसपर अवश्य ईमान[1] लायेंगे और प्रलय के दिन वह उनके विरुध्द साक्षी[2] होगा।
1. अर्थात प्रलय के समीप ईसा अलैहिस्सलाम के आकाश से उतरने पर उस समय के सभी अहले किताब उन पर ईमान लायेंगे, और वह उस समय मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अनुयायी होंगे। सलीब तोड़ देंगे, और सुअरों को मार डालेंगे, तथा इस्लाम के नियमानुसार निर्णय और शासन करेंगे। (सह़ीह़ बुख़ारीः2222,3449, मुस्लिमः155,156) 2. अर्थात ईसा अलैहिस्सलाम प्रलय के दिन ईसाईयों के बारे में साक्षी होंगे। (देखियेः सूरह माइदा, आयतः117)

4:160
यहूदियों के (इसी) अत्याचार के कारण हमने उनपर स्वच्छ खाद्य पदार्थों को ह़राम (वर्जित) कर दिया, जो उनके लिए ह़लाल (वैध) थे तथा उनके बहुधा अल्लाह की राह से रोकने के कारण।

4:161
तथा उनके ब्याज लेने के कारण जबकि उन्हें उससे रोका गया था और उनके लोगों का धन अवैध रूप से खाने के कारण। हमने उनमें से काफ़िरों के लिए दुःखदायी यातना तैयार कर रखी है।

4:162
परन्तु जो उनमें से ज्ञान में पक्के हैं तथा वे ईमान वाले, जो आपकी ओर उतारी गयी (पुस्तक क़ुर्आन) तथा आपसे पूर्व उतारी गई (पुस्तक) पर ईमान रखते हैं और जो नमाज़ की स्थापना करने वाले, ज़कात देने वाले और अल्लाह तथा अन्तिम दिन पर ईमान रखने वाले हैं, उन्हीं को हम बहुत बड़ा प्रतिफल प्रदान करेंगे।

4:163
(हे नबी!) हमने आपकी ओर वैसे ही वह़्यी भेजी है, जैसे नूह़ और उसके पश्चात के नबियों के पास भेजी और इब्राहीम, इस्माईल, इस्ह़ाक़, याक़ूब तथा उसकी संतान, ईसा, अय्यूब, यूनुस, हारून और सुलैमान के पास वह़्यी भेजी और हमने दावूद को ज़बूर प्रदान[1] की थी।
1. वह़्य का अर्थ, संकेत करना, दिल में कोई बात डाल देना, गुप्त रूप से कोई बात कहना तथा संदेश भेजना है। ह़ारिस रज़ियल्लाहु अन्हु ने प्रश्न कियाः अल्लाह के रसूल आप पर वह़्य कैसे आती है? आप ने कहाः कभी निरन्तर घंटी की ध्वनि जैसे आती है, जो मेरे लिये बहुत भारी होती है। और यह दशा दूर होने पर मुझे सब बात याद रहती है। और कभी फ़रिश्ता मनुष्य के रूप में आकर मुझ से बात करता है तो मैं उसे याद कर लेता हूँ। (सह़ीह़ बुख़ारीः2, मुस्लिमः2333)

4:164
कुछ रसूल तो ऐसे हैं, जिनकी चर्चा हम इससे पहले आपसे कर चुके हैं और कुछ की चर्चा आपसे नहीं की है और अल्लाह ने मूसा से वास्तव में बात की।

4:165
ये सभी रसूल शुभ सूचना सुनाने वाले और डराने वाले थे, ताकि इन रसूलों के (आगमन के) पश्चात् लोगों के लिए अल्लाह पर कोई तर्क न रह[1] जाये और अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।
1. अर्थात कोई अल्लाह के सामने ये न कह सके कि हमें मार्गदर्शन देने के लिये कोई नहीं आया।

4:166
(हे नबी!) (आपको यहूदी आदि नबी न मानें) परन्तु अल्लाह उस (क़ुर्आन) के द्वारा, जिसे आपपर उतारा है, साक्ष्य (गवाही) देता है (कि आप नबी हैं)। उसने इसे अपने ज्ञान के साथ उतारा है तथा फ़रिश्ते साक्ष्य देते हैं और अल्लाह का साक्ष्य ही बहुत है।

4:167
वास्तव में, जिन्होंने कुफ़्र किया और अल्लाह की राह[1] से रोका, वे सुपथ से बहुत दूर जा पड़े।
1. अर्थात इस्वलाम से रोका।

4:168
निःसंदेह जो काफ़िर हो गये और अत्याचार करते रह गये, तो अल्लाह ऐसा नहीं है कि उन्हें क्षमा कर दे तथा न उन्हें कोई राह दिखायेगा।

4:169
परन्तु नरक की राह, जिसमें वे सदावासी होंगे और ये अल्लाह के लिए सरल है।

4:170
हे लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से रसूल सत्य लेकर[1] आ गये हैं। अतः, उनपर ईमान लाओ, यही तुम्हारे लिए अच्छा है तथा यदि कुफ़्र करोगे, तो (याद रखो कि) अल्लाह ही का है, जो आकाशों तथा धरती में है और अल्लाह बड़ा ज्ञानी गुणी है।
1. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस्लाम धर्म ले कर आ गये। यहाँ पर यह बात विचारणीय है कि क़ुर्आन ने किसी जाति अथवा देशवासी को संबोधित नहीं किया है। वह कहता है कि आप पूरे मानव विश्व के नबी हैं। तथा इस्लाम और क़ुर्आन पूरे मानव विश्व के लिये सत्धर्म है, जो उस अल्लाह का भेजा हुआ सत्धर्म है, जिस की आज्ञा के अधीन यह पूरा विश्व है। अतः तुम भी उस की आज्ञा के अधीन हो जाओ।

4:171
हे अहले किताब (ईसाईयो!) अपने धर्म में अधिकता न[1] करो और अल्लाह पर केवल सत्य ही बोलो। मसीह़ मर्यम का पुत्र केवल अल्लाह का रसूल और उसका शब्द है, जिसे (अल्लाह ने) मर्यम की ओर डाल दिया तथा उसकी ओर से एक आत्मा[2] है, अतः, अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और ये न कहो कि (अल्लाह) तीन हैं, इससे रुक जाओ, यही तुम्हारे लिए अच्छा है, इसके सिवा कुछ नहीं कि अल्लाह ही अकेला पूज्य है, वह इससे पवित्र है कि उसका कोई पुत्र हो, आकाशों तथा धरती में जो कुछ है, उसी का है और अल्लाह काम बनाने[3] के लिए बहुत है।
1. अर्थात ईसा अलैहिस्सलाम को रसूल से पूज्य न बनाओ, और यह न कहो कि वह अल्लाह का पुत्र है, और अल्लाह तीन हैं- पिता और पुत्र तथा पवित्रातमा। 2. अर्थात ईसा अल्लाह का एक भक्त है, जिसे अपने शब्द (कुन) अर्थात "हो जा" से उत्पन्न किया है। इस शब्द के साथ उस ने फ़रिश्ते जिब्रील को मर्यम के पास भेजा, और उस ने उस में अल्लाह की अनुमति से यह शब्द फूँक दिया, और ईसा अलैहिस्सलाम पैदा हुये। (इब्ने कसीर) 3. अर्थात उसे क्या आवश्यक्ता है कि संसार में किसी को अपना पुत्र बना कर भेजे।

4:172
मसीह़ कदापि अल्लाह का दास होने को अपमान नहीं समझता और न (अल्लाह के) समीपवर्ती फ़रिश्ते। जो व्यक्ति उसकी (वंदना को) अपमान समझेगा तथा अभिमान करेगा, तो उन सभी को वह अपने पास एकत्र करेगा।

4:173
फिर जो लोग ईमान लाये तथा सत्कर्म किये, तो उन्हें उनका भरपूर प्रतिफल देगा और उन्हें अपनी दया से अधिक भी देगा।[1] परन्तु जिन्होंने (वंदना को) अपमान समझा और अभिमान किया, तो उन्हें दुःखदायी यातना देगा तथा अल्लाह के सिवा वह कोई रक्षक और सहायक नहीं पायेगा।
2. यहाँ "अधिक" से अभिप्राय स्वर्ग में अल्लाह का दर्शन है। (सह़ीह मुस्लिमः181, तिर्मिज़ीः2552)

4:174
हे लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से खुला प्रमाण[1] आ गया है और हमने तुम्हारी ओर खुली वह़्यी[2] उतार दी है।
1. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम। 2. अर्थात क़ुर्आन शरीफ़। (इब्ने जरीर)

4:175
तो जो लोग अल्लाह पर ईमान लाये तथा इस (क़ुर्आन) को दृढ़ता से पकड़ लिया, वे उन्हीं को अपनी दया तथा अनुग्रह से (स्वर्ग) में प्रवेश देगा और उन्हें अपनी ओर सीधी राह दिखा देगा।

4:176
(हे नबी!) वे आपसे कलाला के विषय में आदेश चाहते हैं, तो आप कह दें कि वह कलाला के विषय में तुम्हें आदेश दे रहा है कि यदि कोई ऐसा पुरुष मर जाये, जिसके संतान न हों, (और न पिता-दादा हो।) और उसके एक बहन हों, तो उसके लिए उसके छोड़े हुए धन का आधा है और वह (पुरुष) उसके पूरे धन का वारिस होगा, यदि उस (बहन) के कोई संतान न हों, (और न पिता और दादा हो)। और यदि उसकी दो (अथवा अधिक) बहनें हों, तो उन्हें छोड़े हुए धन का दो तिहाई मिलेगा। यदि भाई-बहन दोनों हों, तो नर (भाई) को दो नारियों (बहनों) के बराबर[1] (भाग) मिलेगा। अल्लाह तुम्हारे लिए आदेश उजागर कर रहा है, ताकि तुम कुपथ न हो जाओ तथा अल्लाह सब कुछ जानता है।
1. कलाला की मीरास का नियम आयत संख्या 12 में आ चुका है, जो उस के तीन प्रकार में से एक के लिये था। अब यहाँ शेष दो प्रकारों का आदेश बताया जा रहा है। अर्थात यदि कलाला के सगे भाई-बहन हों अथवा अल्लाती ( जो एक पिता तथा कई माता से हों) तो उन के लिये यह आदेश है।
 

          
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
4:1
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ ٱتَّقُوا۟ رَبَّكُمُ ٱلَّذِى خَلَقَكُم مِّن نَّفْسٍ وَٰحِدَةٍ وَخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالًا كَثِيرًا وَنِسَآءً وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ ٱلَّذِى تَسَآءَلُونَ بِهِۦ وَٱلْأَرْحَامَ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيبًا﴾ 1 ﴿
          
4:2
وَءَاتُوا۟ ٱلْيَتَٰمَىٰٓ أَمْوَٰلَهُمْ وَلَا تَتَبَدَّلُوا۟ ٱلْخَبِيثَ بِٱلطَّيِّبِ وَلَا تَأْكُلُوٓا۟ أَمْوَٰلَهُمْ إِلَىٰٓ أَمْوَٰلِكُمْ إِنَّهُۥ كَانَ حُوبًا كَبِيرًا﴾ 2 ﴿
           
4:3
وَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا تُقْسِطُوا۟ فِى ٱلْيَتَٰمَىٰ فَٱنكِحُوا۟ مَا طَابَ لَكُم مِّنَ ٱلنِّسَآءِ مَثْنَىٰ وَثُلَٰثَ وَرُبَٰعَ فَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا تَعْدِلُوا۟ فَوَٰحِدَةً أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَٰنُكُمْ ذَٰلِكَ أَدْنَىٰٓ أَلَّا تَعُولُوا۟﴾ 3 ﴿
         
4:4
وَءَاتُوا۟ ٱلنِّسَآءَ صَدُقَٰتِهِنَّ نِحْلَةً فَإِن طِبْنَ لَكُمْ عَن شَىْءٍ مِّنْهُ نَفْسًا فَكُلُوهُ هَنِيٓـًٔا مَّرِيٓـًٔا﴾ 4 ﴿
         
4:5
وَلَا تُؤْتُوا۟ ٱلسُّفَهَآءَ أَمْوَٰلَكُمُ ٱلَّتِى جَعَلَ ٱللَّهُ لَكُمْ قِيَٰمًا وَٱرْزُقُوهُمْ فِيهَا وَٱكْسُوهُمْ وَقُولُوا۟ لَهُمْ قَوْلًا مَّعْرُوفًا﴾ 5 ﴿
      
4:6
وَٱبْتَلُوا۟ ٱلْيَتَٰمَىٰ حَتَّىٰٓ إِذَا بَلَغُوا۟ ٱلنِّكَاحَ فَإِنْ ءَانَسْتُم مِّنْهُمْ رُشْدًا فَٱدْفَعُوٓا۟ إِلَيْهِمْ أَمْوَٰلَهُمْ وَلَا تَأْكُلُوهَآ إِسْرَافًا وَبِدَارًا أَن يَكْبَرُوا۟ وَمَن كَانَ غَنِيًّا فَلْيَسْتَعْفِفْ وَمَن كَانَ فَقِيرًا فَلْيَأْكُلْ بِٱلْمَعْرُوفِ فَإِذَا دَفَعْتُمْ إِلَيْهِمْ أَمْوَٰلَهُمْ فَأَشْهِدُوا۟ عَلَيْهِمْ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ حَسِيبًا﴾ 6 ﴿
          
4:7
لِّلرِّجَالِ نَصِيبٌ مِّمَّا تَرَكَ ٱلْوَٰلِدَانِ وَٱلْأَقْرَبُونَ وَلِلنِّسَآءِ نَصِيبٌ مِّمَّا تَرَكَ ٱلْوَٰلِدَانِ وَٱلْأَقْرَبُونَ مِمَّا قَلَّ مِنْهُ أَوْ كَثُرَ نَصِيبًا مَّفْرُوضًا﴾ 7 ﴿
         
4:8
وَإِذَا حَضَرَ ٱلْقِسْمَةَ أُو۟لُوا۟ ٱلْقُرْبَىٰ وَٱلْيَتَٰمَىٰ وَٱلْمَسَٰكِينُ فَٱرْزُقُوهُم مِّنْهُ وَقُولُوا۟ لَهُمْ قَوْلًا مَّعْرُوفًا﴾ 8 ﴿
           
4:9
وَلْيَخْشَ ٱلَّذِينَ لَوْ تَرَكُوا۟ مِنْ خَلْفِهِمْ ذُرِّيَّةً ضِعَٰفًا خَافُوا۟ عَلَيْهِمْ فَلْيَتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَلْيَقُولُوا۟ قَوْلًا سَدِيدًا﴾ 9 ﴿
          
4:10
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَأْكُلُونَ أَمْوَٰلَ ٱلْيَتَٰمَىٰ ظُلْمًا إِنَّمَا يَأْكُلُونَ فِى بُطُونِهِمْ نَارًا وَسَيَصْلَوْنَ سَعِيرًا﴾ 10 ﴿
       
4:11
يُوصِيكُمُ ٱللَّهُ فِىٓ أَوْلَٰدِكُمْ لِلذَّكَرِ مِثْلُ حَظِّ ٱلْأُنثَيَيْنِ فَإِن كُنَّ نِسَآءً فَوْقَ ٱثْنَتَيْنِ فَلَهُنَّ ثُلُثَا مَا تَرَكَ وَإِن كَانَتْ وَٰحِدَةً فَلَهَا ٱلنِّصْفُ وَلِأَبَوَيْهِ لِكُلِّ وَٰحِدٍ مِّنْهُمَا ٱلسُّدُسُ مِمَّا تَرَكَ إِن كَانَ لَهُۥ وَلَدٌ فَإِن لَّمْ يَكُن لَّهُۥ وَلَدٌ وَوَرِثَهُۥٓ أَبَوَاهُ فَلِأُمِّهِ ٱلثُّلُثُ فَإِن كَانَ لَهُۥٓ إِخْوَةٌ فَلِأُمِّهِ ٱلسُّدُسُ مِنۢ بَعْدِ وَصِيَّةٍ يُوصِى بِهَآ أَوْ دَيْنٍ ءَابَآؤُكُمْ وَأَبْنَآؤُكُمْ لَا تَدْرُونَ أَيُّهُمْ أَقْرَبُ لَكُمْ نَفْعًا فَرِيضَةً مِّنَ ٱللَّهِ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمًا﴾ 11 ﴿
           
4:12
وَلَكُمْ نِصْفُ مَا تَرَكَ أَزْوَٰجُكُمْ إِن لَّمْ يَكُن لَّهُنَّ وَلَدٌ فَإِن كَانَ لَهُنَّ وَلَدٌ فَلَكُمُ ٱلرُّبُعُ مِمَّا تَرَكْنَ مِنۢ بَعْدِ وَصِيَّةٍ يُوصِينَ بِهَآ أَوْ دَيْنٍ وَلَهُنَّ ٱلرُّبُعُ مِمَّا تَرَكْتُمْ إِن لَّمْ يَكُن لَّكُمْ وَلَدٌ فَإِن كَانَ لَكُمْ وَلَدٌ فَلَهُنَّ ٱلثُّمُنُ مِمَّا تَرَكْتُم مِّنۢ بَعْدِ وَصِيَّةٍ تُوصُونَ بِهَآ أَوْ دَيْنٍ وَإِن كَانَ رَجُلٌ يُورَثُ كَلَٰلَةً أَوِ ٱمْرَأَةٌ وَلَهُۥٓ أَخٌ أَوْ أُخْتٌ فَلِكُلِّ وَٰحِدٍ مِّنْهُمَا ٱلسُّدُسُ فَإِن كَانُوٓا۟ أَكْثَرَ مِن ذَٰلِكَ فَهُمْ شُرَكَآءُ فِى ٱلثُّلُثِ مِنۢ بَعْدِ وَصِيَّةٍ يُوصَىٰ بِهَآ أَوْ دَيْنٍ غَيْرَ مُضَآرٍّ وَصِيَّةً مِّنَ ٱللَّهِ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَلِيمٌ﴾ 12 ﴿
           
4:13
تِلْكَ حُدُودُ ٱللَّهِ وَمَن يُطِعِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ يُدْخِلْهُ جَنَّٰتٍ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَا وَذَٰلِكَ ٱلْفَوْزُ ٱلْعَظِيمُ﴾ 13 ﴿
           
4:14
وَمَن يَعْصِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَيَتَعَدَّ حُدُودَهُۥ يُدْخِلْهُ نَارًا خَٰلِدًا فِيهَا وَلَهُۥ عَذَابٌ مُّهِينٌ﴾ 14 ﴿
           
4:15
وَٱلَّٰتِى يَأْتِينَ ٱلْفَٰحِشَةَ مِن نِّسَآئِكُمْ فَٱسْتَشْهِدُوا۟ عَلَيْهِنَّ أَرْبَعَةً مِّنكُمْ فَإِن شَهِدُوا۟ فَأَمْسِكُوهُنَّ فِى ٱلْبُيُوتِ حَتَّىٰ يَتَوَفَّىٰهُنَّ ٱلْمَوْتُ أَوْ يَجْعَلَ ٱللَّهُ لَهُنَّ سَبِيلًا﴾ 15 ﴿
           
4:16
وَٱلَّذَانِ يَأْتِيَٰنِهَا مِنكُمْ فَـَٔاذُوهُمَا فَإِن تَابَا وَأَصْلَحَا فَأَعْرِضُوا۟ عَنْهُمَآ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ تَوَّابًا رَّحِيمًا﴾ 16 ﴿
           
4:17
إِنَّمَا ٱلتَّوْبَةُ عَلَى ٱللَّهِ لِلَّذِينَ يَعْمَلُونَ ٱلسُّوٓءَ بِجَهَٰلَةٍ ثُمَّ يَتُوبُونَ مِن قَرِيبٍ فَأُو۟لَٰٓئِكَ يَتُوبُ ٱللَّهُ عَلَيْهِمْ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا﴾ 17 ﴿
           
4:18
وَلَيْسَتِ ٱلتَّوْبَةُ لِلَّذِينَ يَعْمَلُونَ ٱلسَّيِّـَٔاتِ حَتَّىٰٓ إِذَا حَضَرَ أَحَدَهُمُ ٱلْمَوْتُ قَالَ إِنِّى تُبْتُ ٱلْـَٰٔنَ وَلَا ٱلَّذِينَ يَمُوتُونَ وَهُمْ كُفَّارٌ أُو۟لَٰٓئِكَ أَعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا﴾ 18 ﴿
           
4:19
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا يَحِلُّ لَكُمْ أَن تَرِثُوا۟ ٱلنِّسَآءَ كَرْهًا وَلَا تَعْضُلُوهُنَّ لِتَذْهَبُوا۟ بِبَعْضِ مَآ ءَاتَيْتُمُوهُنَّ إِلَّآ أَن يَأْتِينَ بِفَٰحِشَةٍ مُّبَيِّنَةٍ وَعَاشِرُوهُنَّ بِٱلْمَعْرُوفِ فَإِن كَرِهْتُمُوهُنَّ فَعَسَىٰٓ أَن تَكْرَهُوا۟ شَيْـًٔا وَيَجْعَلَ ٱللَّهُ فِيهِ خَيْرًا كَثِيرًا﴾ 19 ﴿
           
4:20
وَإِنْ أَرَدتُّمُ ٱسْتِبْدَالَ زَوْجٍ مَّكَانَ زَوْجٍ وَءَاتَيْتُمْ إِحْدَىٰهُنَّ قِنطَارًا فَلَا تَأْخُذُوا۟ مِنْهُ شَيْـًٔا أَتَأْخُذُونَهُۥ بُهْتَٰنًا وَإِثْمًا مُّبِينًا﴾ 20 ﴿
           
4:21
وَكَيْفَ تَأْخُذُونَهُۥ وَقَدْ أَفْضَىٰ بَعْضُكُمْ إِلَىٰ بَعْضٍ وَأَخَذْنَ مِنكُم مِّيثَٰقًا غَلِيظًا﴾ 21 ﴿
           
4:22
وَلَا تَنكِحُوا۟ مَا نَكَحَ ءَابَآؤُكُم مِّنَ ٱلنِّسَآءِ إِلَّا مَا قَدْ سَلَفَ إِنَّهُۥ كَانَ فَٰحِشَةً وَمَقْتًا وَسَآءَ سَبِيلًا﴾ 22 ﴿
           
4:23
حُرِّمَتْ عَلَيْكُمْ أُمَّهَٰتُكُمْ وَبَنَاتُكُمْ وَأَخَوَٰتُكُمْ وَعَمَّٰتُكُمْ وَخَٰلَٰتُكُمْ وَبَنَاتُ ٱلْأَخِ وَبَنَاتُ ٱلْأُخْتِ وَأُمَّهَٰتُكُمُ ٱلَّٰتِىٓ أَرْضَعْنَكُمْ وَأَخَوَٰتُكُم مِّنَ ٱلرَّضَٰعَةِ وَأُمَّهَٰتُ نِسَآئِكُمْ وَرَبَٰٓئِبُكُمُ ٱلَّٰتِى فِى حُجُورِكُم مِّن نِّسَآئِكُمُ ٱلَّٰتِى دَخَلْتُم بِهِنَّ فَإِن لَّمْ تَكُونُوا۟ دَخَلْتُم بِهِنَّ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ وَحَلَٰٓئِلُ أَبْنَآئِكُمُ ٱلَّذِينَ مِنْ أَصْلَٰبِكُمْ وَأَن تَجْمَعُوا۟ بَيْنَ ٱلْأُخْتَيْنِ إِلَّا مَا قَدْ سَلَفَ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ غَفُورًا رَّحِيمًا﴾ 23 ﴿
           
4:24
وَٱلْمُحْصَنَٰتُ مِنَ ٱلنِّسَآءِ إِلَّا مَا مَلَكَتْ أَيْمَٰنُكُمْ كِتَٰبَ ٱللَّهِ عَلَيْكُمْ وَأُحِلَّ لَكُم مَّا وَرَآءَ ذَٰلِكُمْ أَن تَبْتَغُوا۟ بِأَمْوَٰلِكُم مُّحْصِنِينَ غَيْرَ مُسَٰفِحِينَ فَمَا ٱسْتَمْتَعْتُم بِهِۦ مِنْهُنَّ فَـَٔاتُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ فَرِيضَةً وَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ فِيمَا تَرَٰضَيْتُم بِهِۦ مِنۢ بَعْدِ ٱلْفَرِيضَةِ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمًا﴾ 24 ﴿
           
4:25
وَمَن لَّمْ يَسْتَطِعْ مِنكُمْ طَوْلًا أَن يَنكِحَ ٱلْمُحْصَنَٰتِ ٱلْمُؤْمِنَٰتِ فَمِن مَّا مَلَكَتْ أَيْمَٰنُكُم مِّن فَتَيَٰتِكُمُ ٱلْمُؤْمِنَٰتِ وَٱللَّهُ أَعْلَمُ بِإِيمَٰنِكُم بَعْضُكُم مِّنۢ بَعْضٍ فَٱنكِحُوهُنَّ بِإِذْنِ أَهْلِهِنَّ وَءَاتُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ بِٱلْمَعْرُوفِ مُحْصَنَٰتٍ غَيْرَ مُسَٰفِحَٰتٍ وَلَا مُتَّخِذَٰتِ أَخْدَانٍ فَإِذَآ أُحْصِنَّ فَإِنْ أَتَيْنَ بِفَٰحِشَةٍ فَعَلَيْهِنَّ نِصْفُ مَا عَلَى ٱلْمُحْصَنَٰتِ مِنَ ٱلْعَذَابِ ذَٰلِكَ لِمَنْ خَشِىَ ٱلْعَنَتَ مِنكُمْ وَأَن تَصْبِرُوا۟ خَيْرٌ لَّكُمْ وَٱللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ﴾ 25 ﴿
           
4:26
يُرِيدُ ٱللَّهُ لِيُبَيِّنَ لَكُمْ وَيَهْدِيَكُمْ سُنَنَ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ وَيَتُوبَ عَلَيْكُمْ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ﴾ 26 ﴿
           
4:27
وَٱللَّهُ يُرِيدُ أَن يَتُوبَ عَلَيْكُمْ وَيُرِيدُ ٱلَّذِينَ يَتَّبِعُونَ ٱلشَّهَوَٰتِ أَن تَمِيلُوا۟ مَيْلًا عَظِيمًا﴾ 27 ﴿

4:28
يُرِيدُ ٱللَّهُ أَن يُخَفِّفَ عَنكُمْ وَخُلِقَ ٱلْإِنسَٰنُ ضَعِيفًا﴾ 28 ﴿
           
4:29
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَأْكُلُوٓا۟ أَمْوَٰلَكُم بَيْنَكُم بِٱلْبَٰطِلِ إِلَّآ أَن تَكُونَ تِجَٰرَةً عَن تَرَاضٍ مِّنكُمْ وَلَا تَقْتُلُوٓا۟ أَنفُسَكُمْ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِكُمْ رَحِيمًا﴾ 29 ﴿
           
4:30
وَمَن يَفْعَلْ ذَٰلِكَ عُدْوَٰنًا وَظُلْمًا فَسَوْفَ نُصْلِيهِ نَارًا وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرًا﴾ 30 ﴿
           
4:31
إِن تَجْتَنِبُوا۟ كَبَآئِرَ مَا تُنْهَوْنَ عَنْهُ نُكَفِّرْ عَنكُمْ سَيِّـَٔاتِكُمْ وَنُدْخِلْكُم مُّدْخَلًا كَرِيمًا﴾ 31 ﴿
           
4:32
وَلَا تَتَمَنَّوْا۟ مَا فَضَّلَ ٱللَّهُ بِهِۦ بَعْضَكُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ لِّلرِّجَالِ نَصِيبٌ مِّمَّا ٱكْتَسَبُوا۟ وَلِلنِّسَآءِ نَصِيبٌ مِّمَّا ٱكْتَسَبْنَ وَسْـَٔلُوا۟ ٱللَّهَ مِن فَضْلِهِۦٓ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمًا﴾ 32 ﴿
           
4:33
وَلِكُلٍّ جَعَلْنَا مَوَٰلِىَ مِمَّا تَرَكَ ٱلْوَٰلِدَانِ وَٱلْأَقْرَبُونَ وَٱلَّذِينَ عَقَدَتْ أَيْمَٰنُكُمْ فَـَٔاتُوهُمْ نَصِيبَهُمْ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍ شَهِيدًا﴾ 33 ﴿
           
4:34
ٱلرِّجَالُ قَوَّٰمُونَ عَلَى ٱلنِّسَآءِ بِمَا فَضَّلَ ٱللَّهُ بَعْضَهُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ وَبِمَآ أَنفَقُوا۟ مِنْ أَمْوَٰلِهِمْ فَٱلصَّٰلِحَٰتُ قَٰنِتَٰتٌ حَٰفِظَٰتٌ لِّلْغَيْبِ بِمَا حَفِظَ ٱللَّهُ وَٱلَّٰتِى تَخَافُونَ نُشُوزَهُنَّ فَعِظُوهُنَّ وَٱهْجُرُوهُنَّ فِى ٱلْمَضَاجِعِ وَٱضْرِبُوهُنَّ فَإِنْ أَطَعْنَكُمْ فَلَا تَبْغُوا۟ عَلَيْهِنَّ سَبِيلًا إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيًّا كَبِيرًا﴾ 34 ﴿
           
4:35
وَإِنْ خِفْتُمْ شِقَاقَ بَيْنِهِمَا فَٱبْعَثُوا۟ حَكَمًا مِّنْ أَهْلِهِۦ وَحَكَمًا مِّنْ أَهْلِهَآ إِن يُرِيدَآ إِصْلَٰحًا يُوَفِّقِ ٱللَّهُ بَيْنَهُمَآ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيمًا﴾ 35 ﴿
           
4:36
وَٱعْبُدُوا۟ ٱللَّهَ وَلَا تُشْرِكُوا۟ بِهِۦ شَيْـًٔا وَبِٱلْوَٰلِدَيْنِ إِحْسَٰنًا وَبِذِى ٱلْقُرْبَىٰ وَٱلْيَتَٰمَىٰ وَٱلْمَسَٰكِينِ وَٱلْجَارِ ذِى ٱلْقُرْبَىٰ وَٱلْجَارِ ٱلْجُنُبِ وَٱلصَّاحِبِ بِٱلْجَنۢبِ وَٱبْنِ ٱلسَّبِيلِ وَمَا مَلَكَتْ أَيْمَٰنُكُمْ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ مَن كَانَ مُخْتَالًا فَخُورًا﴾ 36 ﴿
           
4:37
ٱلَّذِينَ يَبْخَلُونَ وَيَأْمُرُونَ ٱلنَّاسَ بِٱلْبُخْلِ وَيَكْتُمُونَ مَآ ءَاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ مِن فَضْلِهِۦ وَأَعْتَدْنَا لِلْكَٰفِرِينَ عَذَابًا مُّهِينًا﴾ 37 ﴿
           
4:38
وَٱلَّذِينَ يُنفِقُونَ أَمْوَٰلَهُمْ رِئَآءَ ٱلنَّاسِ وَلَا يُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَلَا بِٱلْيَوْمِ ٱلْءَاخِرِ وَمَن يَكُنِ ٱلشَّيْطَٰنُ لَهُۥ قَرِينًا فَسَآءَ قَرِينًا﴾ 38 ﴿
           
4:39
وَمَاذَا عَلَيْهِمْ لَوْ ءَامَنُوا۟ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْءَاخِرِ وَأَنفَقُوا۟ مِمَّا رَزَقَهُمُ ٱللَّهُ وَكَانَ ٱللَّهُ بِهِمْ عَلِيمًا﴾ 39 ﴿
           
4:40
إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَظْلِمُ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ وَإِن تَكُ حَسَنَةً يُضَٰعِفْهَا وَيُؤْتِ مِن لَّدُنْهُ أَجْرًا عَظِيمًا﴾ 40 ﴿
           
4:41
فَكَيْفَ إِذَا جِئْنَا مِن كُلِّ أُمَّةٍۭ بِشَهِيدٍ وَجِئْنَا بِكَ عَلَىٰ هَٰٓؤُلَآءِ شَهِيدًا﴾ 41 ﴿
           
4:42
يَوْمَئِذٍ يَوَدُّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَعَصَوُا۟ ٱلرَّسُولَ لَوْ تُسَوَّىٰ بِهِمُ ٱلْأَرْضُ وَلَا يَكْتُمُونَ ٱللَّهَ حَدِيثًا﴾ 42 ﴿
           
4:43
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَقْرَبُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَأَنتُمْ سُكَٰرَىٰ حَتَّىٰ تَعْلَمُوا۟ مَا تَقُولُونَ وَلَا جُنُبًا إِلَّا عَابِرِى سَبِيلٍ حَتَّىٰ تَغْتَسِلُوا۟ وَإِن كُنتُم مَّرْضَىٰٓ أَوْ عَلَىٰ سَفَرٍ أَوْ جَآءَ أَحَدٌ مِّنكُم مِّنَ ٱلْغَآئِطِ أَوْ لَٰمَسْتُمُ ٱلنِّسَآءَ فَلَمْ تَجِدُوا۟ مَآءً فَتَيَمَّمُوا۟ صَعِيدًا طَيِّبًا فَٱمْسَحُوا۟ بِوُجُوهِكُمْ وَأَيْدِيكُمْ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَفُوًّا غَفُورًا﴾ 43 ﴿
           
4:44
أَلَمْ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ نَصِيبًا مِّنَ ٱلْكِتَٰبِ يَشْتَرُونَ ٱلضَّلَٰلَةَ وَيُرِيدُونَ أَن تَضِلُّوا۟ ٱلسَّبِيلَ﴾ 44 ﴿
           
4:45
وَٱللَّهُ أَعْلَمُ بِأَعْدَآئِكُمْ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَلِيًّا وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ نَصِيرًا﴾ 45 ﴿
           
4:46
مِّنَ ٱلَّذِينَ هَادُوا۟ يُحَرِّفُونَ ٱلْكَلِمَ عَن مَّوَاضِعِهِۦ وَيَقُولُونَ سَمِعْنَا وَعَصَيْنَا وَٱسْمَعْ غَيْرَ مُسْمَعٍ وَرَٰعِنَا لَيًّۢا بِأَلْسِنَتِهِمْ وَطَعْنًا فِى ٱلدِّينِ وَلَوْ أَنَّهُمْ قَالُوا۟ سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا وَٱسْمَعْ وَٱنظُرْنَا لَكَانَ خَيْرًا لَّهُمْ وَأَقْوَمَ وَلَٰكِن لَّعَنَهُمُ ٱللَّهُ بِكُفْرِهِمْ فَلَا يُؤْمِنُونَ إِلَّا قَلِيلًا﴾ 46 ﴿
           
4:47
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَٰبَ ءَامِنُوا۟ بِمَا نَزَّلْنَا مُصَدِّقًا لِّمَا مَعَكُم مِّن قَبْلِ أَن نَّطْمِسَ وُجُوهًا فَنَرُدَّهَا عَلَىٰٓ أَدْبَارِهَآ أَوْ نَلْعَنَهُمْ كَمَا لَعَنَّآ أَصْحَٰبَ ٱلسَّبْتِ وَكَانَ أَمْرُ ٱللَّهِ مَفْعُولًا﴾ 47 ﴿
           
4:48
إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَغْفِرُ أَن يُشْرَكَ بِهِۦ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَآءُ وَمَن يُشْرِكْ بِٱللَّهِ فَقَدِ ٱفْتَرَىٰٓ إِثْمًا عَظِيمًا﴾ 48 ﴿
           
4:49
أَلَمْ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ يُزَكُّونَ أَنفُسَهُم بَلِ ٱللَّهُ يُزَكِّى مَن يَشَآءُ وَلَا يُظْلَمُونَ فَتِيلًا﴾ 49 ﴿
           
4:50
ٱنظُرْ كَيْفَ يَفْتَرُونَ عَلَى ٱللَّهِ ٱلْكَذِبَ وَكَفَىٰ بِهِۦٓ إِثْمًا مُّبِينًا﴾ 50 ﴿
           
4:51
أَلَمْ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ نَصِيبًا مِّنَ ٱلْكِتَٰبِ يُؤْمِنُونَ بِٱلْجِبْتِ وَٱلطَّٰغُوتِ وَيَقُولُونَ لِلَّذِينَ كَفَرُوا۟ هَٰٓؤُلَآءِ أَهْدَىٰ مِنَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ سَبِيلًا﴾ 51 ﴿
           
4:52
أُو۟لَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ لَعَنَهُمُ ٱللَّهُ وَمَن يَلْعَنِ ٱللَّهُ فَلَن تَجِدَ لَهُۥ نَصِيرًا﴾ 52 ﴿

4:53
أَمْ لَهُمْ نَصِيبٌ مِّنَ ٱلْمُلْكِ فَإِذًا لَّا يُؤْتُونَ ٱلنَّاسَ نَقِيرًا﴾ 53 ﴿
         
4:54
أَمْ يَحْسُدُونَ ٱلنَّاسَ عَلَىٰ مَآ ءَاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ مِن فَضْلِهِۦ فَقَدْ ءَاتَيْنَآ ءَالَ إِبْرَٰهِيمَ ٱلْكِتَٰبَ وَٱلْحِكْمَةَ وَءَاتَيْنَٰهُم مُّلْكًا عَظِيمًا﴾ 54 ﴿
           
4:55
فَمِنْهُم مَّنْ ءَامَنَ بِهِۦ وَمِنْهُم مَّن صَدَّ عَنْهُ وَكَفَىٰ بِجَهَنَّمَ سَعِيرًا﴾ 55 ﴿
           
4:56
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ بِـَٔايَٰتِنَا سَوْفَ نُصْلِيهِمْ نَارًا كُلَّمَا نَضِجَتْ جُلُودُهُم بَدَّلْنَٰهُمْ جُلُودًا غَيْرَهَا لِيَذُوقُوا۟ ٱلْعَذَابَ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَزِيزًا حَكِيمًا﴾ 56 ﴿
         
4:57
وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّٰلِحَٰتِ سَنُدْخِلُهُمْ جَنَّٰتٍ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدًا لَّهُمْ فِيهَآ أَزْوَٰجٌ مُّطَهَّرَةٌ وَنُدْخِلُهُمْ ظِلًّا ظَلِيلًا﴾ 57 ﴿
           
4:58
إِنَّ ٱللَّهَ يَأْمُرُكُمْ أَن تُؤَدُّوا۟ ٱلْأَمَٰنَٰتِ إِلَىٰٓ أَهْلِهَا وَإِذَا حَكَمْتُم بَيْنَ ٱلنَّاسِ أَن تَحْكُمُوا۟ بِٱلْعَدْلِ إِنَّ ٱللَّهَ نِعِمَّا يَعِظُكُم بِهِۦٓ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ سَمِيعًۢا بَصِيرًا﴾ 58 ﴿
           
4:59
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ أَطِيعُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُوا۟ ٱلرَّسُولَ وَأُو۟لِى ٱلْأَمْرِ مِنكُمْ فَإِن تَنَٰزَعْتُمْ فِى شَىْءٍ فَرُدُّوهُ إِلَى ٱللَّهِ وَٱلرَّسُولِ إِن كُنتُمْ تُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْءَاخِرِ ذَٰلِكَ خَيْرٌ وَأَحْسَنُ تَأْوِيلًا﴾ 59 ﴿
           
4:60
أَلَمْ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ يَزْعُمُونَ أَنَّهُمْ ءَامَنُوا۟ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيْكَ وَمَآ أُنزِلَ مِن قَبْلِكَ يُرِيدُونَ أَن يَتَحَاكَمُوٓا۟ إِلَى ٱلطَّٰغُوتِ وَقَدْ أُمِرُوٓا۟ أَن يَكْفُرُوا۟ بِهِۦ وَيُرِيدُ ٱلشَّيْطَٰنُ أَن يُضِلَّهُمْ ضَلَٰلًۢا بَعِيدًا﴾ 60 ﴿
           
4:61
وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْا۟ إِلَىٰ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ وَإِلَى ٱلرَّسُولِ رَأَيْتَ ٱلْمُنَٰفِقِينَ يَصُدُّونَ عَنكَ صُدُودًا﴾ 61 ﴿
           
4:62
فَكَيْفَ إِذَآ أَصَٰبَتْهُم مُّصِيبَةٌۢ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ ثُمَّ جَآءُوكَ يَحْلِفُونَ بِٱللَّهِ إِنْ أَرَدْنَآ إِلَّآ إِحْسَٰنًا وَتَوْفِيقًا﴾ 62 ﴿
           
4:63
أُو۟لَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ يَعْلَمُ ٱللَّهُ مَا فِى قُلُوبِهِمْ فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ وَعِظْهُمْ وَقُل لَّهُمْ فِىٓ أَنفُسِهِمْ قَوْلًۢا بَلِيغًا﴾ 63 ﴿
           
4:64
وَمَآ أَرْسَلْنَا مِن رَّسُولٍ إِلَّا لِيُطَاعَ بِإِذْنِ ٱللَّهِ وَلَوْ أَنَّهُمْ إِذ ظَّلَمُوٓا۟ أَنفُسَهُمْ جَآءُوكَ فَٱسْتَغْفَرُوا۟ ٱللَّهَ وَٱسْتَغْفَرَ لَهُمُ ٱلرَّسُولُ لَوَجَدُوا۟ ٱللَّهَ تَوَّابًا رَّحِيمًا﴾ 64 ﴿
           
4:65
فَلَا وَرَبِّكَ لَا يُؤْمِنُونَ حَتَّىٰ يُحَكِّمُوكَ فِيمَا شَجَرَ بَيْنَهُمْ ثُمَّ لَا يَجِدُوا۟ فِىٓ أَنفُسِهِمْ حَرَجًا مِّمَّا قَضَيْتَ وَيُسَلِّمُوا۟ تَسْلِيمًا﴾ 65 ﴿
           
4:66
وَلَوْ أَنَّا كَتَبْنَا عَلَيْهِمْ أَنِ ٱقْتُلُوٓا۟ أَنفُسَكُمْ أَوِ ٱخْرُجُوا۟ مِن دِيَٰرِكُم مَّا فَعَلُوهُ إِلَّا قَلِيلٌ مِّنْهُمْ وَلَوْ أَنَّهُمْ فَعَلُوا۟ مَا يُوعَظُونَ بِهِۦ لَكَانَ خَيْرًا لَّهُمْ وَأَشَدَّ تَثْبِيتًا﴾ 66 ﴿
           
4:67
وَإِذًا لَّءَاتَيْنَٰهُم مِّن لَّدُنَّآ أَجْرًا عَظِيمًا﴾ 67 ﴿
           
4:68
وَلَهَدَيْنَٰهُمْ صِرَٰطًا مُّسْتَقِيمًا﴾ 68 ﴿
           
4:69
وَمَن يُطِعِ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَ فَأُو۟لَٰٓئِكَ مَعَ ٱلَّذِينَ أَنْعَمَ ٱللَّهُ عَلَيْهِم مِّنَ ٱلنَّبِيِّۦنَ وَٱلصِّدِّيقِينَ وَٱلشُّهَدَآءِ وَٱلصَّٰلِحِينَ وَحَسُنَ أُو۟لَٰٓئِكَ رَفِيقًا﴾ 69 ﴿
           
4:70
ذَٰلِكَ ٱلْفَضْلُ مِنَ ٱللَّهِ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ عَلِيمًا﴾ 70 ﴿
           
4:71
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ خُذُوا۟ حِذْرَكُمْ فَٱنفِرُوا۟ ثُبَاتٍ أَوِ ٱنفِرُوا۟ جَمِيعًا﴾ 71 ﴿
           
4:72
وَإِنَّ مِنكُمْ لَمَن لَّيُبَطِّئَنَّ فَإِنْ أَصَٰبَتْكُم مُّصِيبَةٌ قَالَ قَدْ أَنْعَمَ ٱللَّهُ عَلَىَّ إِذْ لَمْ أَكُن مَّعَهُمْ شَهِيدًا﴾ 72 ﴿
           
4:73
وَلَئِنْ أَصَٰبَكُمْ فَضْلٌ مِّنَ ٱللَّهِ لَيَقُولَنَّ كَأَن لَّمْ تَكُنۢ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُۥ مَوَدَّةٌ يَٰلَيْتَنِى كُنتُ مَعَهُمْ فَأَفُوزَ فَوْزًا عَظِيمًا﴾ 73 ﴿
           
4:74
فَلْيُقَٰتِلْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ ٱلَّذِينَ يَشْرُونَ ٱلْحَيَوٰةَ ٱلدُّنْيَا بِٱلْءَاخِرَةِ وَمَن يُقَٰتِلْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ فَيُقْتَلْ أَوْ يَغْلِبْ فَسَوْفَ نُؤْتِيهِ أَجْرًا عَظِيمًا﴾ 74 ﴿
           
4:75
وَمَا لَكُمْ لَا تُقَٰتِلُونَ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱلْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ ٱلرِّجَالِ وَٱلنِّسَآءِ وَٱلْوِلْدَٰنِ ٱلَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَآ أَخْرِجْنَا مِنْ هَٰذِهِ ٱلْقَرْيَةِ ٱلظَّالِمِ أَهْلُهَا وَٱجْعَل لَّنَا مِن لَّدُنكَ وَلِيًّا وَٱجْعَل لَّنَا مِن لَّدُنكَ نَصِيرًا﴾ 75 ﴿
           
4:76
ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ يُقَٰتِلُونَ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ يُقَٰتِلُونَ فِى سَبِيلِ ٱلطَّٰغُوتِ فَقَٰتِلُوٓا۟ أَوْلِيَآءَ ٱلشَّيْطَٰنِ إِنَّ كَيْدَ ٱلشَّيْطَٰنِ كَانَ ضَعِيفًا﴾ 76 ﴿
           
4:77
أَلَمْ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ قِيلَ لَهُمْ كُفُّوٓا۟ أَيْدِيَكُمْ وَأَقِيمُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُوا۟ ٱلزَّكَوٰةَ فَلَمَّا كُتِبَ عَلَيْهِمُ ٱلْقِتَالُ إِذَا فَرِيقٌ مِّنْهُمْ يَخْشَوْنَ ٱلنَّاسَ كَخَشْيَةِ ٱللَّهِ أَوْ أَشَدَّ خَشْيَةً وَقَالُوا۟ رَبَّنَا لِمَ كَتَبْتَ عَلَيْنَا ٱلْقِتَالَ لَوْلَآ أَخَّرْتَنَآ إِلَىٰٓ أَجَلٍ قَرِيبٍ قُلْ مَتَٰعُ ٱلدُّنْيَا قَلِيلٌ وَٱلْءَاخِرَةُ خَيْرٌ لِّمَنِ ٱتَّقَىٰ وَلَا تُظْلَمُونَ فَتِيلًا﴾ 77 ﴿
           
4:78
أَيْنَمَا تَكُونُوا۟ يُدْرِككُّمُ ٱلْمَوْتُ وَلَوْ كُنتُمْ فِى بُرُوجٍ مُّشَيَّدَةٍ وَإِن تُصِبْهُمْ حَسَنَةٌ يَقُولُوا۟ هَٰذِهِۦ مِنْ عِندِ ٱللَّهِ وَإِن تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ يَقُولُوا۟ هَٰذِهِۦ مِنْ عِندِكَ قُلْ كُلٌّ مِّنْ عِندِ ٱللَّهِ فَمَالِ هَٰٓؤُلَآءِ ٱلْقَوْمِ لَا يَكَادُونَ يَفْقَهُونَ حَدِيثًا﴾ 78 ﴿
           
4:79
مَّآ أَصَابَكَ مِنْ حَسَنَةٍ فَمِنَ ٱللَّهِ وَمَآ أَصَابَكَ مِن سَيِّئَةٍ فَمِن نَّفْسِكَ وَأَرْسَلْنَٰكَ لِلنَّاسِ رَسُولًا وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِيدًا﴾ 79 ﴿
           
4:80
مَّن يُطِعِ ٱلرَّسُولَ فَقَدْ أَطَاعَ ٱللَّهَ وَمَن تَوَلَّىٰ فَمَآ أَرْسَلْنَٰكَ عَلَيْهِمْ حَفِيظًا﴾ 80 ﴿
           
4:81
وَيَقُولُونَ طَاعَةٌ فَإِذَا بَرَزُوا۟ مِنْ عِندِكَ بَيَّتَ طَآئِفَةٌ مِّنْهُمْ غَيْرَ ٱلَّذِى تَقُولُ وَٱللَّهُ يَكْتُبُ مَا يُبَيِّتُونَ فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ وَتَوَكَّلْ عَلَى ٱللَّهِ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلً﴾ 81 ﴿
           
4:82
أَفَلَا يَتَدَبَّرُونَ ٱلْقُرْءَانَ وَلَوْ كَانَ مِنْ عِندِ غَيْرِ ٱللَّهِ لَوَجَدُوا۟ فِيهِ ٱخْتِلَٰفًا كَثِيرًا﴾ 82 ﴿
           
4:83
وَإِذَا جَآءَهُمْ أَمْرٌ مِّنَ ٱلْأَمْنِ أَوِ ٱلْخَوْفِ أَذَاعُوا۟ بِهِۦ وَلَوْ رَدُّوهُ إِلَى ٱلرَّسُولِ وَإِلَىٰٓ أُو۟لِى ٱلْأَمْرِ مِنْهُمْ لَعَلِمَهُ ٱلَّذِينَ يَسْتَنۢبِطُونَهُۥ مِنْهُمْ وَلَوْلَا فَضْلُ ٱللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُۥ لَٱتَّبَعْتُمُ ٱلشَّيْطَٰنَ إِلَّا قَلِيلًا﴾ 83 ﴿
           
4:84
فَقَٰتِلْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ لَا تُكَلَّفُ إِلَّا نَفْسَكَ وَحَرِّضِ ٱلْمُؤْمِنِينَ عَسَى ٱللَّهُ أَن يَكُفَّ بَأْسَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَٱللَّهُ أَشَدُّ بَأْسًا وَأَشَدُّ تَنكِيلًا﴾ 84 ﴿
           
4:85
مَّن يَشْفَعْ شَفَٰعَةً حَسَنَةً يَكُن لَّهُۥ نَصِيبٌ مِّنْهَا وَمَن يَشْفَعْ شَفَٰعَةً سَيِّئَةً يَكُن لَّهُۥ كِفْلٌ مِّنْهَا وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍ مُّقِيتًا﴾ 85 ﴿
           
4:86
وَإِذَا حُيِّيتُم بِتَحِيَّةٍ فَحَيُّوا۟ بِأَحْسَنَ مِنْهَآ أَوْ رُدُّوهَآ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍ حَسِيبًا﴾ 86 ﴿
           
4:87
ٱللَّهُ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ لَيَجْمَعَنَّكُمْ إِلَىٰ يَوْمِ ٱلْقِيَٰمَةِ لَا رَيْبَ فِيهِ وَمَنْ أَصْدَقُ مِنَ ٱللَّهِ حَدِيثًا﴾ 87 ﴿
           
4:88
فَمَا لَكُمْ فِى ٱلْمُنَٰفِقِينَ فِئَتَيْنِ وَٱللَّهُ أَرْكَسَهُم بِمَا كَسَبُوٓا۟ أَتُرِيدُونَ أَن تَهْدُوا۟ مَنْ أَضَلَّ ٱللَّهُ وَمَن يُضْلِلِ ٱللَّهُ فَلَن تَجِدَ لَهُۥ سَبِيلًا﴾ 88 ﴿
           
4:89
وَدُّوا۟ لَوْ تَكْفُرُونَ كَمَا كَفَرُوا۟ فَتَكُونُونَ سَوَآءً فَلَا تَتَّخِذُوا۟ مِنْهُمْ أَوْلِيَآءَ حَتَّىٰ يُهَاجِرُوا۟ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ فَإِن تَوَلَّوْا۟ فَخُذُوهُمْ وَٱقْتُلُوهُمْ حَيْثُ وَجَدتُّمُوهُمْ وَلَا تَتَّخِذُوا۟ مِنْهُمْ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا﴾ 89 ﴿
           
4:90
إِلَّا ٱلَّذِينَ يَصِلُونَ إِلَىٰ قَوْمٍۭ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُم مِّيثَٰقٌ أَوْ جَآءُوكُمْ حَصِرَتْ صُدُورُهُمْ أَن يُقَٰتِلُوكُمْ أَوْ يُقَٰتِلُوا۟ قَوْمَهُمْ وَلَوْ شَآءَ ٱللَّهُ لَسَلَّطَهُمْ عَلَيْكُمْ فَلَقَٰتَلُوكُمْ فَإِنِ ٱعْتَزَلُوكُمْ فَلَمْ يُقَٰتِلُوكُمْ وَأَلْقَوْا۟ إِلَيْكُمُ ٱلسَّلَمَ فَمَا جَعَلَ ٱللَّهُ لَكُمْ عَلَيْهِمْ سَبِيلًا﴾ 90 ﴿
           
4:91
سَتَجِدُونَ ءَاخَرِينَ يُرِيدُونَ أَن يَأْمَنُوكُمْ وَيَأْمَنُوا۟ قَوْمَهُمْ كُلَّ مَا رُدُّوٓا۟ إِلَى ٱلْفِتْنَةِ أُرْكِسُوا۟ فِيهَا فَإِن لَّمْ يَعْتَزِلُوكُمْ وَيُلْقُوٓا۟ إِلَيْكُمُ ٱلسَّلَمَ وَيَكُفُّوٓا۟ أَيْدِيَهُمْ فَخُذُوهُمْ وَٱقْتُلُوهُمْ حَيْثُ ثَقِفْتُمُوهُمْ وَأُو۟لَٰٓئِكُمْ جَعَلْنَا لَكُمْ عَلَيْهِمْ سُلْطَٰنًا مُّبِينًا﴾ 91 ﴿
           
4:92
وَمَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ أَن يَقْتُلَ مُؤْمِنًا إِلَّا خَطَـًٔا وَمَن قَتَلَ مُؤْمِنًا خَطَـًٔا فَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مُّؤْمِنَةٍ وَدِيَةٌ مُّسَلَّمَةٌ إِلَىٰٓ أَهْلِهِۦٓ إِلَّآ أَن يَصَّدَّقُوا۟ فَإِن كَانَ مِن قَوْمٍ عَدُوٍّ لَّكُمْ وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مُّؤْمِنَةٍ وَإِن كَانَ مِن قَوْمٍۭ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُم مِّيثَٰقٌ فَدِيَةٌ مُّسَلَّمَةٌ إِلَىٰٓ أَهْلِهِۦ وَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مُّؤْمِنَةٍ فَمَن لَّمْ يَجِدْ فَصِيَامُ شَهْرَيْنِ مُتَتَابِعَيْنِ تَوْبَةً مِّنَ ٱللَّهِ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا﴾ 92 ﴿
           
4:93
وَمَن يَقْتُلْ مُؤْمِنًا مُّتَعَمِّدًا فَجَزَآؤُهُۥ جَهَنَّمُ خَٰلِدًا فِيهَا وَغَضِبَ ٱللَّهُ عَلَيْهِ وَلَعَنَهُۥ وَأَعَدَّ لَهُۥ عَذَابًا عَظِيمًا﴾ 93 ﴿
           
4:94
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِذَا ضَرَبْتُمْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ فَتَبَيَّنُوا۟ وَلَا تَقُولُوا۟ لِمَنْ أَلْقَىٰٓ إِلَيْكُمُ ٱلسَّلَٰمَ لَسْتَ مُؤْمِنًا تَبْتَغُونَ عَرَضَ ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا فَعِندَ ٱللَّهِ مَغَانِمُ كَثِيرَةٌ كَذَٰلِكَ كُنتُم مِّن قَبْلُ فَمَنَّ ٱللَّهُ عَلَيْكُمْ فَتَبَيَّنُوٓا۟ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا﴾ 94 ﴿
           
4:95
لَّا يَسْتَوِى ٱلْقَٰعِدُونَ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ غَيْرُ أُو۟لِى ٱلضَّرَرِ وَٱلْمُجَٰهِدُونَ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ بِأَمْوَٰلِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ فَضَّلَ ٱللَّهُ ٱلْمُجَٰهِدِينَ بِأَمْوَٰلِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ عَلَى ٱلْقَٰعِدِينَ دَرَجَةً وَكُلًّا وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلْحُسْنَىٰ وَفَضَّلَ ٱللَّهُ ٱلْمُجَٰهِدِينَ عَلَى ٱلْقَٰعِدِينَ أَجْرًا عَظِيمًا﴾ 95 ﴿
           
4:96
دَرَجَٰتٍ مِّنْهُ وَمَغْفِرَةً وَرَحْمَةً وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا﴾ 96 ﴿
           
4:97
إِنَّ ٱلَّذِينَ تَوَفَّىٰهُمُ ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ ظَالِمِىٓ أَنفُسِهِمْ قَالُوا۟ فِيمَ كُنتُمْ قَالُوا۟ كُنَّا مُسْتَضْعَفِينَ فِى ٱلْأَرْضِ قَالُوٓا۟ أَلَمْ تَكُنْ أَرْضُ ٱللَّهِ وَٰسِعَةً فَتُهَاجِرُوا۟ فِيهَا فَأُو۟لَٰٓئِكَ مَأْوَىٰهُمْ جَهَنَّمُ وَسَآءَتْ مَصِيرًا﴾ 97 ﴿
           
4:98
إِلَّا ٱلْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ ٱلرِّجَالِ وَٱلنِّسَآءِ وَٱلْوِلْدَٰنِ لَا يَسْتَطِيعُونَ حِيلَةً وَلَا يَهْتَدُونَ سَبِيلًا﴾ 98 ﴿
           
4:99
فَأُو۟لَٰٓئِكَ عَسَى ٱللَّهُ أَن يَعْفُوَ عَنْهُمْ وَكَانَ ٱللَّهُ عَفُوًّا غَفُورًا﴾ 99 ﴿
           
4:100
وَمَن يُهَاجِرْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ يَجِدْ فِى ٱلْأَرْضِ مُرَٰغَمًا كَثِيرًا وَسَعَةً وَمَن يَخْرُجْ مِنۢ بَيْتِهِۦ مُهَاجِرًا إِلَى ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ ثُمَّ يُدْرِكْهُ ٱلْمَوْتُ فَقَدْ وَقَعَ أَجْرُهُۥ عَلَى ٱللَّهِ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا﴾ 100 ﴿
         
4:101
وَإِذَا ضَرَبْتُمْ فِى ٱلْأَرْضِ فَلَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَن تَقْصُرُوا۟ مِنَ ٱلصَّلَوٰةِ إِنْ خِفْتُمْ أَن يَفْتِنَكُمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ إِنَّ ٱلْكَٰفِرِينَ كَانُوا۟ لَكُمْ عَدُوًّا مُّبِينًا﴾ 101 ﴿
           
4:102
وَإِذَا كُنتَ فِيهِمْ فَأَقَمْتَ لَهُمُ ٱلصَّلَوٰةَ فَلْتَقُمْ طَآئِفَةٌ مِّنْهُم مَّعَكَ وَلْيَأْخُذُوٓا۟ أَسْلِحَتَهُمْ فَإِذَا سَجَدُوا۟ فَلْيَكُونُوا۟ مِن وَرَآئِكُمْ وَلْتَأْتِ طَآئِفَةٌ أُخْرَىٰ لَمْ يُصَلُّوا۟ فَلْيُصَلُّوا۟ مَعَكَ وَلْيَأْخُذُوا۟ حِذْرَهُمْ وَأَسْلِحَتَهُمْ وَدَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لَوْ تَغْفُلُونَ عَنْ أَسْلِحَتِكُمْ وَأَمْتِعَتِكُمْ فَيَمِيلُونَ عَلَيْكُم مَّيْلَةً وَٰحِدَةً وَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ إِن كَانَ بِكُمْ أَذًى مِّن مَّطَرٍ أَوْ كُنتُم مَّرْضَىٰٓ أَن تَضَعُوٓا۟ أَسْلِحَتَكُمْ وَخُذُوا۟ حِذْرَكُمْ إِنَّ ٱللَّهَ أَعَدَّ لِلْكَٰفِرِينَ عَذَابًا مُّهِينًا﴾ 102 ﴿
        
4:103
فَإِذَا قَضَيْتُمُ ٱلصَّلَوٰةَ فَٱذْكُرُوا۟ ٱللَّهَ قِيَٰمًا وَقُعُودًا وَعَلَىٰ جُنُوبِكُمْ فَإِذَا ٱطْمَأْنَنتُمْ فَأَقِيمُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ إِنَّ ٱلصَّلَوٰةَ كَانَتْ عَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ كِتَٰبًا مَّوْقُوتًا﴾ 103 ﴿
         
4:104
وَلَا تَهِنُوا۟ فِى ٱبْتِغَآءِ ٱلْقَوْمِ إِن تَكُونُوا۟ تَأْلَمُونَ فَإِنَّهُمْ يَأْلَمُونَ كَمَا تَأْلَمُونَ وَتَرْجُونَ مِنَ ٱللَّهِ مَا لَا يَرْجُونَ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا﴾ 104 ﴿
           
4:105
إِنَّآ أَنزَلْنَآ إِلَيْكَ ٱلْكِتَٰبَ بِٱلْحَقِّ لِتَحْكُمَ بَيْنَ ٱلنَّاسِ بِمَآ أَرَىٰكَ ٱللَّهُ وَلَا تَكُن لِّلْخَآئِنِينَ خَصِيمًا﴾ 105 ﴿
           
4:106
وَٱسْتَغْفِرِ ٱللَّهَ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ غَفُورًا رَّحِيمًا﴾ 106 ﴿
           
4:107
وَلَا تُجَٰدِلْ عَنِ ٱلَّذِينَ يَخْتَانُونَ أَنفُسَهُمْ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ مَن كَانَ خَوَّانًا أَثِيمًا﴾ 107 ﴿
        
4:108
يَسْتَخْفُونَ مِنَ ٱلنَّاسِ وَلَا يَسْتَخْفُونَ مِنَ ٱللَّهِ وَهُوَ مَعَهُمْ إِذْ يُبَيِّتُونَ مَا لَا يَرْضَىٰ مِنَ ٱلْقَوْلِ وَكَانَ ٱللَّهُ بِمَا يَعْمَلُونَ مُحِيطًا﴾ 108 ﴿
           
4:109
هَٰٓأَنتُمْ هَٰٓؤُلَآءِ جَٰدَلْتُمْ عَنْهُمْ فِى ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا فَمَن يُجَٰدِلُ ٱللَّهَ عَنْهُمْ يَوْمَ ٱلْقِيَٰمَةِ أَم مَّن يَكُونُ عَلَيْهِمْ وَكِيلًا﴾ 109 ﴿
           
4:110
وَمَن يَعْمَلْ سُوٓءًا أَوْ يَظْلِمْ نَفْسَهُۥ ثُمَّ يَسْتَغْفِرِ ٱللَّهَ يَجِدِ ٱللَّهَ غَفُورًا رَّحِيمًا﴾ 110 ﴿
           
4:111
وَمَن يَكْسِبْ إِثْمًا فَإِنَّمَا يَكْسِبُهُۥ عَلَىٰ نَفْسِهِۦ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا﴾ 111 ﴿
           
4:112
وَمَن يَكْسِبْ خَطِيٓـَٔةً أَوْ إِثْمًا ثُمَّ يَرْمِ بِهِۦ بَرِيٓـًٔا فَقَدِ ٱحْتَمَلَ بُهْتَٰنًا وَإِثْمًا مُّبِينًا﴾ 112 ﴿
           
4:113
وَلَوْلَا فَضْلُ ٱللَّهِ عَلَيْكَ وَرَحْمَتُهُۥ لَهَمَّت طَّآئِفَةٌ مِّنْهُمْ أَن يُضِلُّوكَ وَمَا يُضِلُّونَ إِلَّآ أَنفُسَهُمْ وَمَا يَضُرُّونَكَ مِن شَىْءٍ وَأَنزَلَ ٱللَّهُ عَلَيْكَ ٱلْكِتَٰبَ وَٱلْحِكْمَةَ وَعَلَّمَكَ مَا لَمْ تَكُن تَعْلَمُ وَكَانَ فَضْلُ ٱللَّهِ عَلَيْكَ عَظِيمًا﴾ 113 ﴿
           
4:114
لَّا خَيْرَ فِى كَثِيرٍ مِّن نَّجْوَىٰهُمْ إِلَّا مَنْ أَمَرَ بِصَدَقَةٍ أَوْ مَعْرُوفٍ أَوْ إِصْلَٰحٍۭ بَيْنَ ٱلنَّاسِ وَمَن يَفْعَلْ ذَٰلِكَ ٱبْتِغَآءَ مَرْضَاتِ ٱللَّهِ فَسَوْفَ نُؤْتِيهِ أَجْرًا عَظِيمًا﴾ 114 ﴿
           
4:115
وَمَن يُشَاقِقِ ٱلرَّسُولَ مِنۢ بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُ ٱلْهُدَىٰ وَيَتَّبِعْ غَيْرَ سَبِيلِ ٱلْمُؤْمِنِينَ نُوَلِّهِۦ مَا تَوَلَّىٰ وَنُصْلِهِۦ جَهَنَّمَ وَسَآءَتْ مَصِيرًا﴾ 115 ﴿
           
4:116
إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَغْفِرُ أَن يُشْرَكَ بِهِۦ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَآءُ وَمَن يُشْرِكْ بِٱللَّهِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَٰلًۢا بَعِيدًا﴾ 116 ﴿
           
4:117
إِن يَدْعُونَ مِن دُونِهِۦٓ إِلَّآ إِنَٰثًا وَإِن يَدْعُونَ إِلَّا شَيْطَٰنًا مَّرِيدًا﴾ 117 ﴿
           
4:118
لَّعَنَهُ ٱللَّهُ وَقَالَ لَأَتَّخِذَنَّ مِنْ عِبَادِكَ نَصِيبًا مَّفْرُوضًا﴾ 118 ﴿
           
4:119
وَلَأُضِلَّنَّهُمْ وَلَأُمَنِّيَنَّهُمْ وَلَءَامُرَنَّهُمْ فَلَيُبَتِّكُنَّ ءَاذَانَ ٱلْأَنْعَٰمِ وَلَءَامُرَنَّهُمْ فَلَيُغَيِّرُنَّ خَلْقَ ٱللَّهِ وَمَن يَتَّخِذِ ٱلشَّيْطَٰنَ وَلِيًّا مِّن دُونِ ٱللَّهِ فَقَدْ خَسِرَ خُسْرَانًا مُّبِينًا﴾ 119 ﴿
           
4:120
يَعِدُهُمْ وَيُمَنِّيهِمْ وَمَا يَعِدُهُمُ ٱلشَّيْطَٰنُ إِلَّا غُرُورًا﴾ 120 ﴿
           
4:121
أُو۟لَٰٓئِكَ مَأْوَىٰهُمْ جَهَنَّمُ وَلَا يَجِدُونَ عَنْهَا مَحِيصًا﴾ 121 ﴿
           
4:122
وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّٰلِحَٰتِ سَنُدْخِلُهُمْ جَنَّٰتٍ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدًا وَعْدَ ٱللَّهِ حَقًّا وَمَنْ أَصْدَقُ مِنَ ٱللَّهِ قِيلًا﴾ 122 ﴿
           
4:123
لَّيْسَ بِأَمَانِيِّكُمْ وَلَآ أَمَانِىِّ أَهْلِ ٱلْكِتَٰبِ مَن يَعْمَلْ سُوٓءًا يُجْزَ بِهِۦ وَلَا يَجِدْ لَهُۥ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا﴾ 123 ﴿
          
4:124
وَمَن يَعْمَلْ مِنَ ٱلصَّٰلِحَٰتِ مِن ذَكَرٍ أَوْ أُنثَىٰ وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَأُو۟لَٰٓئِكَ يَدْخُلُونَ ٱلْجَنَّةَ وَلَا يُظْلَمُونَ نَقِيرًا﴾ 124 ﴿
           
4:125
وَمَنْ أَحْسَنُ دِينًا مِّمَّنْ أَسْلَمَ وَجْهَهُۥ لِلَّهِ وَهُوَ مُحْسِنٌ وَٱتَّبَعَ مِلَّةَ إِبْرَٰهِيمَ حَنِيفًا وَٱتَّخَذَ ٱللَّهُ إِبْرَٰهِيمَ خَلِيلًا﴾ 125 ﴿
           
4:126
وَلِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ وَكَانَ ٱللَّهُ بِكُلِّ شَىْءٍ مُّحِيطًا﴾ 126 ﴿
           
4:127
وَيَسْتَفْتُونَكَ فِى ٱلنِّسَآءِ قُلِ ٱللَّهُ يُفْتِيكُمْ فِيهِنَّ وَمَا يُتْلَىٰ عَلَيْكُمْ فِى ٱلْكِتَٰبِ فِى يَتَٰمَى ٱلنِّسَآءِ ٱلَّٰتِى لَا تُؤْتُونَهُنَّ مَا كُتِبَ لَهُنَّ وَتَرْغَبُونَ أَن تَنكِحُوهُنَّ وَٱلْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ ٱلْوِلْدَٰنِ وَأَن تَقُومُوا۟ لِلْيَتَٰمَىٰ بِٱلْقِسْطِ وَمَا تَفْعَلُوا۟ مِنْ خَيْرٍ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِهِۦ عَلِيمًا﴾ 127 ﴿
           
4:128
وَإِنِ ٱمْرَأَةٌ خَافَتْ مِنۢ بَعْلِهَا نُشُوزًا أَوْ إِعْرَاضًا فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَآ أَن يُصْلِحَا بَيْنَهُمَا صُلْحًا وَٱلصُّلْحُ خَيْرٌ وَأُحْضِرَتِ ٱلْأَنفُسُ ٱلشُّحَّ وَإِن تُحْسِنُوا۟ وَتَتَّقُوا۟ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا﴾ 128 ﴿
           
4:129
وَلَن تَسْتَطِيعُوٓا۟ أَن تَعْدِلُوا۟ بَيْنَ ٱلنِّسَآءِ وَلَوْ حَرَصْتُمْ فَلَا تَمِيلُوا۟ كُلَّ ٱلْمَيْلِ فَتَذَرُوهَا كَٱلْمُعَلَّقَةِ وَإِن تُصْلِحُوا۟ وَتَتَّقُوا۟ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ غَفُورًا رَّحِيمًا﴾ 129 ﴿
           
4:130
وَإِن يَتَفَرَّقَا يُغْنِ ٱللَّهُ كُلًّا مِّن سَعَتِهِۦ وَكَانَ ٱللَّهُ وَٰسِعًا حَكِيمًا﴾ 130 ﴿
           
4:131
وَلِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ وَلَقَدْ وَصَّيْنَا ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَٰبَ مِن قَبْلِكُمْ وَإِيَّاكُمْ أَنِ ٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَإِن تَكْفُرُوا۟ فَإِنَّ لِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ وَكَانَ ٱللَّهُ غَنِيًّا حَمِيدًا﴾ 131 ﴿
           
4:132
وَلِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلًا﴾ 132 ﴿
           
4:133
إِن يَشَأْ يُذْهِبْكُمْ أَيُّهَا ٱلنَّاسُ وَيَأْتِ بِـَٔاخَرِينَ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ ذَٰلِكَ قَدِيرًا﴾ 133 ﴿
           
4:134
مَّن كَانَ يُرِيدُ ثَوَابَ ٱلدُّنْيَا فَعِندَ ٱللَّهِ ثَوَابُ ٱلدُّنْيَا وَٱلْءَاخِرَةِ وَكَانَ ٱللَّهُ سَمِيعًۢا بَصِيرًا﴾ 134 ﴿
           
4:135
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ كُونُوا۟ قَوَّٰمِينَ بِٱلْقِسْطِ شُهَدَآءَ لِلَّهِ وَلَوْ عَلَىٰٓ أَنفُسِكُمْ أَوِ ٱلْوَٰلِدَيْنِ وَٱلْأَقْرَبِينَ إِن يَكُنْ غَنِيًّا أَوْ فَقِيرًا فَٱللَّهُ أَوْلَىٰ بِهِمَا فَلَا تَتَّبِعُوا۟ ٱلْهَوَىٰٓ أَن تَعْدِلُوا۟ وَإِن تَلْوُۥٓا۟ أَوْ تُعْرِضُوا۟ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا﴾ 135 ﴿
           
4:136
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ ءَامِنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَٱلْكِتَٰبِ ٱلَّذِى نَزَّلَ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ وَٱلْكِتَٰبِ ٱلَّذِىٓ أَنزَلَ مِن قَبْلُ وَمَن يَكْفُرْ بِٱللَّهِ وَمَلَٰٓئِكَتِهِۦ وَكُتُبِهِۦ وَرُسُلِهِۦ وَٱلْيَوْمِ ٱلْءَاخِرِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَٰلًۢا بَعِيدًا﴾ 136 ﴿
           
4:137
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ثُمَّ كَفَرُوا۟ ثُمَّ ءَامَنُوا۟ ثُمَّ كَفَرُوا۟ ثُمَّ ٱزْدَادُوا۟ كُفْرًا لَّمْ يَكُنِ ٱللَّهُ لِيَغْفِرَ لَهُمْ وَلَا لِيَهْدِيَهُمْ سَبِيلًۢا﴾ 137 ﴿
           
4:138
بَشِّرِ ٱلْمُنَٰفِقِينَ بِأَنَّ لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا﴾ 138 ﴿
           
4:139
ٱلَّذِينَ يَتَّخِذُونَ ٱلْكَٰفِرِينَ أَوْلِيَآءَ مِن دُونِ ٱلْمُؤْمِنِينَ أَيَبْتَغُونَ عِندَهُمُ ٱلْعِزَّةَ فَإِنَّ ٱلْعِزَّةَ لِلَّهِ جَمِيعًا﴾ 139 ﴿
           
4:140
وَقَدْ نَزَّلَ عَلَيْكُمْ فِى ٱلْكِتَٰبِ أَنْ إِذَا سَمِعْتُمْ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ يُكْفَرُ بِهَا وَيُسْتَهْزَأُ بِهَا فَلَا تَقْعُدُوا۟ مَعَهُمْ حَتَّىٰ يَخُوضُوا۟ فِى حَدِيثٍ غَيْرِهِۦٓ إِنَّكُمْ إِذًا مِّثْلُهُمْ إِنَّ ٱللَّهَ جَامِعُ ٱلْمُنَٰفِقِينَ وَٱلْكَٰفِرِينَ فِى جَهَنَّمَ جَمِيعًا﴾ 140 ﴿
           
4:141
ٱلَّذِينَ يَتَرَبَّصُونَ بِكُمْ فَإِن كَانَ لَكُمْ فَتْحٌ مِّنَ ٱللَّهِ قَالُوٓا۟ أَلَمْ نَكُن مَّعَكُمْ وَإِن كَانَ لِلْكَٰفِرِينَ نَصِيبٌ قَالُوٓا۟ أَلَمْ نَسْتَحْوِذْ عَلَيْكُمْ وَنَمْنَعْكُم مِّنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ فَٱللَّهُ يَحْكُمُ بَيْنَكُمْ يَوْمَ ٱلْقِيَٰمَةِ وَلَن يَجْعَلَ ٱللَّهُ لِلْكَٰفِرِينَ عَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ سَبِيلًا﴾ 141 ﴿
           
4:142
إِنَّ ٱلْمُنَٰفِقِينَ يُخَٰدِعُونَ ٱللَّهَ وَهُوَ خَٰدِعُهُمْ وَإِذَا قَامُوٓا۟ إِلَى ٱلصَّلَوٰةِ قَامُوا۟ كُسَالَىٰ يُرَآءُونَ ٱلنَّاسَ وَلَا يَذْكُرُونَ ٱللَّهَ إِلَّا قَلِيلًا﴾ 142 ﴿
           
4:143
مُّذَبْذَبِينَ بَيْنَ ذَٰلِكَ لَآ إِلَىٰ هَٰٓؤُلَآءِ وَلَآ إِلَىٰ هَٰٓؤُلَآءِ وَمَن يُضْلِلِ ٱللَّهُ فَلَن تَجِدَ لَهُۥ سَبِيلًا﴾ 143 ﴿
           
4:144
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَتَّخِذُوا۟ ٱلْكَٰفِرِينَ أَوْلِيَآءَ مِن دُونِ ٱلْمُؤْمِنِينَ أَتُرِيدُونَ أَن تَجْعَلُوا۟ لِلَّهِ عَلَيْكُمْ سُلْطَٰنًا مُّبِينًا﴾ 144 ﴿
           
4:145
إِنَّ ٱلْمُنَٰفِقِينَ فِى ٱلدَّرْكِ ٱلْأَسْفَلِ مِنَ ٱلنَّارِ وَلَن تَجِدَ لَهُمْ نَصِيرًا﴾ 145 ﴿
           
4:146
إِلَّا ٱلَّذِينَ تَابُوا۟ وَأَصْلَحُوا۟ وَٱعْتَصَمُوا۟ بِٱللَّهِ وَأَخْلَصُوا۟ دِينَهُمْ لِلَّهِ فَأُو۟لَٰٓئِكَ مَعَ ٱلْمُؤْمِنِينَ وَسَوْفَ يُؤْتِ ٱللَّهُ ٱلْمُؤْمِنِينَ أَجْرًا عَظِيمًا﴾ 146 ﴿
           
4:147
مَّا يَفْعَلُ ٱللَّهُ بِعَذَابِكُمْ إِن شَكَرْتُمْ وَءَامَنتُمْ وَكَانَ ٱللَّهُ شَاكِرًا عَلِيمًا﴾ 147 ﴿
           
4:148
لَّا يُحِبُّ ٱللَّهُ ٱلْجَهْرَ بِٱلسُّوٓءِ مِنَ ٱلْقَوْلِ إِلَّا مَن ظُلِمَ وَكَانَ ٱللَّهُ سَمِيعًا عَلِيمًا﴾ 148 ﴿
           
4:149
إِن تُبْدُوا۟ خَيْرًا أَوْ تُخْفُوهُ أَوْ تَعْفُوا۟ عَن سُوٓءٍ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَفُوًّا قَدِيرًا﴾ 149 ﴿
           
4:150
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَكْفُرُونَ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَيُرِيدُونَ أَن يُفَرِّقُوا۟ بَيْنَ ٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَيَقُولُونَ نُؤْمِنُ بِبَعْضٍ وَنَكْفُرُ بِبَعْضٍ وَيُرِيدُونَ أَن يَتَّخِذُوا۟ بَيْنَ ذَٰلِكَ سَبِيلًا﴾ 150 ﴿
           
4:151
أُو۟لَٰٓئِكَ هُمُ ٱلْكَٰفِرُونَ حَقًّا وَأَعْتَدْنَا لِلْكَٰفِرِينَ عَذَابًا مُّهِينًا﴾ 151 ﴿
           
4:152
وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَلَمْ يُفَرِّقُوا۟ بَيْنَ أَحَدٍ مِّنْهُمْ أُو۟لَٰٓئِكَ سَوْفَ يُؤْتِيهِمْ أُجُورَهُمْ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا﴾ 152 ﴿
           
4:153
يَسْـَٔلُكَ أَهْلُ ٱلْكِتَٰبِ أَن تُنَزِّلَ عَلَيْهِمْ كِتَٰبًا مِّنَ ٱلسَّمَآءِ فَقَدْ سَأَلُوا۟ مُوسَىٰٓ أَكْبَرَ مِن ذَٰلِكَ فَقَالُوٓا۟ أَرِنَا ٱللَّهَ جَهْرَةً فَأَخَذَتْهُمُ ٱلصَّٰعِقَةُ بِظُلْمِهِمْ ثُمَّ ٱتَّخَذُوا۟ ٱلْعِجْلَ مِنۢ بَعْدِ مَا جَآءَتْهُمُ ٱلْبَيِّنَٰتُ فَعَفَوْنَا عَن ذَٰلِكَ وَءَاتَيْنَا مُوسَىٰ سُلْطَٰنًا مُّبِينًا﴾ 153 ﴿
           
4:154
وَرَفَعْنَا فَوْقَهُمُ ٱلطُّورَ بِمِيثَٰقِهِمْ وَقُلْنَا لَهُمُ ٱدْخُلُوا۟ ٱلْبَابَ سُجَّدًا وَقُلْنَا لَهُمْ لَا تَعْدُوا۟ فِى ٱلسَّبْتِ وَأَخَذْنَا مِنْهُم مِّيثَٰقًا غَلِيظًا﴾ 154 ﴿
           
4:155
فَبِمَا نَقْضِهِم مِّيثَٰقَهُمْ وَكُفْرِهِم بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ وَقَتْلِهِمُ ٱلْأَنۢبِيَآءَ بِغَيْرِ حَقٍّ وَقَوْلِهِمْ قُلُوبُنَا غُلْفٌۢ بَلْ طَبَعَ ٱللَّهُ عَلَيْهَا بِكُفْرِهِمْ فَلَا يُؤْمِنُونَ إِلَّا قَلِيلًا﴾ 155 ﴿
           
4:156
وَبِكُفْرِهِمْ وَقَوْلِهِمْ عَلَىٰ مَرْيَمَ بُهْتَٰنًا عَظِيمًا﴾ 156 ﴿
           
4:157
وَقَوْلِهِمْ إِنَّا قَتَلْنَا ٱلْمَسِيحَ عِيسَى ٱبْنَ مَرْيَمَ رَسُولَ ٱللَّهِ وَمَا قَتَلُوهُ وَمَا صَلَبُوهُ وَلَٰكِن شُبِّهَ لَهُمْ وَإِنَّ ٱلَّذِينَ ٱخْتَلَفُوا۟ فِيهِ لَفِى شَكٍّ مِّنْهُ مَا لَهُم بِهِۦ مِنْ عِلْمٍ إِلَّا ٱتِّبَاعَ ٱلظَّنِّ وَمَا قَتَلُوهُ يَقِينًۢا﴾ 157 ﴿
           
4:158
بَل رَّفَعَهُ ٱللَّهُ إِلَيْهِ وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا﴾ 158 ﴿
           
4:159
وَإِن مِّنْ أَهْلِ ٱلْكِتَٰبِ إِلَّا لَيُؤْمِنَنَّ بِهِۦ قَبْلَ مَوْتِهِۦ وَيَوْمَ ٱلْقِيَٰمَةِ يَكُونُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا﴾ 159 ﴿
           
4:160
فَبِظُلْمٍ مِّنَ ٱلَّذِينَ هَادُوا۟ حَرَّمْنَا عَلَيْهِمْ طَيِّبَٰتٍ أُحِلَّتْ لَهُمْ وَبِصَدِّهِمْ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ كَثِيرًا﴾ 160 ﴿
           
4:161
وَأَخْذِهِمُ ٱلرِّبَوٰا۟ وَقَدْ نُهُوا۟ عَنْهُ وَأَكْلِهِمْ أَمْوَٰلَ ٱلنَّاسِ بِٱلْبَٰطِلِ وَأَعْتَدْنَا لِلْكَٰفِرِينَ مِنْهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا﴾ 161 ﴿
           
4:162
لَّٰكِنِ ٱلرَّٰسِخُونَ فِى ٱلْعِلْمِ مِنْهُمْ وَٱلْمُؤْمِنُونَ يُؤْمِنُونَ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيْكَ وَمَآ أُنزِلَ مِن قَبْلِكَ وَٱلْمُقِيمِينَ ٱلصَّلَوٰةَ وَٱلْمُؤْتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَٱلْمُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْءَاخِرِ أُو۟لَٰٓئِكَ سَنُؤْتِيهِمْ أَجْرًا عَظِيمًا﴾ 162 ﴿
           
4:163
إِنَّآ أَوْحَيْنَآ إِلَيْكَ كَمَآ أَوْحَيْنَآ إِلَىٰ نُوحٍ وَٱلنَّبِيِّۦنَ مِنۢ بَعْدِهِۦ وَأَوْحَيْنَآ إِلَىٰٓ إِبْرَٰهِيمَ وَإِسْمَٰعِيلَ وَإِسْحَٰقَ وَيَعْقُوبَ وَٱلْأَسْبَاطِ وَعِيسَىٰ وَأَيُّوبَ وَيُونُسَ وَهَٰرُونَ وَسُلَيْمَٰنَ وَءَاتَيْنَا دَاوُۥدَ زَبُورًا﴾ 163 ﴿
           
4:164
وَرُسُلًا قَدْ قَصَصْنَٰهُمْ عَلَيْكَ مِن قَبْلُ وَرُسُلًا لَّمْ نَقْصُصْهُمْ عَلَيْكَ وَكَلَّمَ ٱللَّهُ مُوسَىٰ تَكْلِيمًا﴾ 164 ﴿
           
4:165
رُّسُلًا مُّبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَ لِئَلَّا يَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَى ٱللَّهِ حُجَّةٌۢ بَعْدَ ٱلرُّسُلِ وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا﴾ 165 ﴿
          
4:166
لَّٰكِنِ ٱللَّهُ يَشْهَدُ بِمَآ أَنزَلَ إِلَيْكَ أَنزَلَهُۥ بِعِلْمِهِۦ وَٱلْمَلَٰٓئِكَةُ يَشْهَدُونَ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِيدًا﴾ 166 ﴿
           
4:167
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَصَدُّوا۟ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ قَدْ ضَلُّوا۟ ضَلَٰلًۢا بَعِيدًا﴾ 167 ﴿
           
4:168
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَظَلَمُوا۟ لَمْ يَكُنِ ٱللَّهُ لِيَغْفِرَ لَهُمْ وَلَا لِيَهْدِيَهُمْ طَرِيقًا﴾ 168 ﴿
           
4:169
إِلَّا طَرِيقَ جَهَنَّمَ خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدًا وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرًا﴾ 169 ﴿
           
4:170
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ قَدْ جَآءَكُمُ ٱلرَّسُولُ بِٱلْحَقِّ مِن رَّبِّكُمْ فَـَٔامِنُوا۟ خَيْرًا لَّكُمْ وَإِن تَكْفُرُوا۟ فَإِنَّ لِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا﴾ 170 ﴿
           
4:171
يَٰٓأَهْلَ ٱلْكِتَٰبِ لَا تَغْلُوا۟ فِى دِينِكُمْ وَلَا تَقُولُوا۟ عَلَى ٱللَّهِ إِلَّا ٱلْحَقَّ إِنَّمَا ٱلْمَسِيحُ عِيسَى ٱبْنُ مَرْيَمَ رَسُولُ ٱللَّهِ وَكَلِمَتُهُۥٓ أَلْقَىٰهَآ إِلَىٰ مَرْيَمَ وَرُوحٌ مِّنْهُ فَـَٔامِنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَلَا تَقُولُوا۟ ثَلَٰثَةٌ ٱنتَهُوا۟ خَيْرًا لَّكُمْ إِنَّمَا ٱللَّهُ إِلَٰهٌ وَٰحِدٌ سُبْحَٰنَهُۥٓ أَن يَكُونَ لَهُۥ وَلَدٌ لَّهُۥ مَا فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلًا﴾ 171 ﴿
           
4:172
لَّن يَسْتَنكِفَ ٱلْمَسِيحُ أَن يَكُونَ عَبْدًا لِّلَّهِ وَلَا ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ ٱلْمُقَرَّبُونَ وَمَن يَسْتَنكِفْ عَنْ عِبَادَتِهِۦ وَيَسْتَكْبِرْ فَسَيَحْشُرُهُمْ إِلَيْهِ جَمِيعًا﴾ 172 ﴿
           
4:173
فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّٰلِحَٰتِ فَيُوَفِّيهِمْ أُجُورَهُمْ وَيَزِيدُهُم مِّن فَضْلِهِۦ وَأَمَّا ٱلَّذِينَ ٱسْتَنكَفُوا۟ وَٱسْتَكْبَرُوا۟ فَيُعَذِّبُهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا وَلَا يَجِدُونَ لَهُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا﴾ 173 ﴿
         
4:174
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ قَدْ جَآءَكُم بُرْهَٰنٌ مِّن رَّبِّكُمْ وَأَنزَلْنَآ إِلَيْكُمْ نُورًا مُّبِينًا﴾ 174 ﴿
           
4:175
فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ بِٱللَّهِ وَٱعْتَصَمُوا۟ بِهِۦ فَسَيُدْخِلُهُمْ فِى رَحْمَةٍ مِّنْهُ وَفَضْلٍ وَيَهْدِيهِمْ إِلَيْهِ صِرَٰطًا مُّسْتَقِيمًا﴾ 175 ﴿
          
4:176
يَسْتَفْتُونَكَ قُلِ ٱللَّهُ يُفْتِيكُمْ فِى ٱلْكَلَٰلَةِ إِنِ ٱمْرُؤٌا۟ هَلَكَ لَيْسَ لَهُۥ وَلَدٌ وَلَهُۥٓ أُخْتٌ فَلَهَا نِصْفُ مَا تَرَكَ وَهُوَ يَرِثُهَآ إِن لَّمْ يَكُن لَّهَا وَلَدٌ فَإِن كَانَتَا ٱثْنَتَيْنِ فَلَهُمَا ٱلثُّلُثَانِ مِمَّا تَرَكَ وَإِن كَانُوٓا۟ إِخْوَةً رِّجَالًا وَنِسَآءً فَلِلذَّكَرِ مِثْلُ حَظِّ ٱلْأُنثَيَيْنِ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمْ أَن تَضِلُّوا۟ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمٌۢ﴾ 176 ﴿

          

 
 

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Surah Waqiah Hindi
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सूरह अल वाकिया हिंदी में उच्चारण

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

इज़ा व – क़ – अ़तिल् – वाकि – अतु (1)

लै – स लिवक्अ़तिहा काज़िबह् • (2)

खाफ़ि – ज़तुर – राफ़ि – अः (3)

इज़ा रुज्जतिल् – अर्जु रज्जंव्- (4)

व बुस्सतिल् – जिबालु बस्सा (5)

फ़ – कानत् हबा – अम् मुम् – बस्संव – (6)

व कुन्तुम् अज़्वाजन् सलासः (7)

फ़ – अस्हाबुल् -मैमनति मा अस्हाबुल – मै – मनः (8)

व अस्हाबुल् – मश् – अ – मति मा अस्हाबुल – मश् – अमः (9)

वस्साबिकू नस् – साबिकून (10)

उलाइ – कल् – मुकर्रबून (11)

फी जन्नातिन् – नअ़ीम (12)

सुल्लतुम् – मिनल् – अव्वलीन (13)

व क़लीलुम् मिनल – आख़िरीन (14)

अ़ला सुरुरिम् – मौजूनतिम्- (15)

मुत्तकिई – न अ़लैहा मु – तकाबिलीन (16)

यतूफु अ़लैहिम् विल्दानुम् – मु – ख़ल्लदून (17)

बिअक्वाबिंव् – व अबारी – क़ व कअ्सिम् – मिम् – मअ़ीन (18)

ला युसद् – दअू – न अ़न्हा व ला युन्ज़िफून (19)

व फ़ाकि – हतिम् – मिम्मा य – तख़य्यरून (20)

व लह़्मि तैरिम् – मिम्मा यश्तहून (21)

व हुरुन् अी़न (22)

क – अम्सालिल् – लुअलुइल् – मक्नून (23)

जज़ा – अम् बिमा कानू यअ्मलून (24)

ला यस्मअू – न फ़ीहा लग्वंव् – व ला तअ्सीमा (25)

इल्ला की़लन् सलामन् सलामा (26)

व अस्हाबुल् – यमीनि मा अस्हाबुल् – यमीन (27)

फी सिद्रिम् – मख़्जूदिंव् – (28)

व तल्हिम् – मनजूदिंव् – (29)

व ज़िल्लिम् मम्दूदिंव् – (30)

व माइम् – मस्कूब (31)

व फ़ाकि – हतिन् कसी – रतिल् – (32)

ला मक्तू – अ़तिंव् – व ला मम्नू – अ़तिंव् (33)

व फुरुशिम् – मरफूअः (34)

इन्ना अन्शअ्नाहुन् – न इन्शा – अन् (35)

फ़ – जअ़ल्नाहुन् – न अब्कारा (36)

अुरुबन् अत्राबल्- (37)

लिअस्हाबिल् – यमीन (38)

सुल्लतुम् – मिनल् – अव्वलीन (39)

व सुल्लतुम् – मिनल् – आख़िरीन (40)

व अस्हाबुशु – शिमालि मा अस्हाबुश् – शिमाल (41)

फ़ी समूमिंव् – व हमीमिंव् – (42)

व ज़िल्लिम् – मिंय्यह्मूमिल् – (43)

ला बारिदिंव् – व ला करीम (44)

इन्नहुम् कानू क़ब् – ल ज़ालि – क मुत् – रफ़ीन (45)

व कानू युसिर्रू – न अ़लल् – हिन्सिल् – अ़ज़ीम (46)

व कानू यकूलू – न अ – इज़ा मित्ना व कुन्ना तुराबंव् – व अ़िज़ामन् अ – इन्ना ल – मब्अूसून (47)

अ – व आबाउनल् – अव्वलून (48)

कुल् इन्नल् – अव्वली – न वल् – आख़िरीन (49)

ल – मज्मूअू – न इला मीकाति यौमिम् – मअ्लूम (50)

सुम् – म इन्नकुम अय्युहज़्जा़ल्लूनल् – मुकज़्ज़िबून (51)

ल – आकिलू – न मिन् श – जरिम् – मिन् ज़क़्कूम (52)

फ़मालिऊ – न मिन्हल् – बुतून (53)

फ़शरिबू – न अ़लैहि मिनल् – हमीम (54)

फ़शरिबू – न शुर्बल् – हीम (55)

हाज़ा नुजुलुहुम् यौमद्दीन (56)

नह्नु ख़लक़्नाकुम् फ़लौ ला तुसद्दिकून (57)

अ – फ़ – रऐतुम् – मा तुम्नून (58)

अ – अन्तुम् तखलुकूनहू अम् नह्नुल – ख़ालिकून (59)

नह्नु कद्दरना बैनकुमुल् – मौ – त व मा नह्नु बिमसबूक़ीन (60)

अ़ला अन् – नुबद्दि – ल अम्सा – लकुम् व नुन्शि – अकुम् फ़ी मा ला तअ्लमून (61)

व ल – क़द् अ़लिम्तुमुन् – नश्अ – तल् ऊला फ़लौ ला तज़क्करून (62)

अ – फ़ – रऐतुम् – मा तहरुसून (63)

अ – अन्तुम् तज् – रअूनहू अम् नह्नुज् – ज़ारिअून (64)

लौ नशा – उ ल – जअ़ल्नाहु हुतामन् फ़ज़ल्तुम् तफ़क्कहून (65)

इन्ना ल – मुग़रमून (66)

बल् नह्नु महरूमून (67)

अ – फ – रऐतुमुल् मा अल्लज़ी तश्रबून (68)

अ – अन्तुम् अन्ज़ल्तुमूहु मिनल् – मुज्नि अम् नह्नुल – मुन्ज़िलून (69)

लौ नशा – उ जअ़ल्लाहु उजाजन् फ़लौ ला तश्कुरून (70)

अ – फ़ – रऐतुमुन् – नारल्लती तूरून (71)

अ – अन्तुम् अन्शअ्तुम् श – ज – र – तहा अम् नह्नुल – मुन्शिऊन (72)

नह्नु जअ़ल्नाहा तज़्कि – रतंव् – व मताअ़ल् – लिल्मुक़्वीन (73)

फ़ – सब्बिह् बिस्मि रब्बिकल् – अ़ज़ीम • (74)*

फ़ला उक्सिमु बि – मवाकिअिन् – नुजूम (75)

व इन्नहू ल – क़ – समुल् – लौ तअ्लमू – न अ़ज़ीम (76)

इन्नहू ल – कुरआनुन् करीम (77)

फी किताबिम् मक्नून (78)

ला य – मस्सुहू इल्लल् – मुतह्हरून (79)

तन्ज़ीलुम् मिर्रब्बिल् – आ़लमीन (80)

अ – फ़बिहाज़ल् – हदीसि अन्तुम् मुद्हिनून (81)

व तज्अ़लू – न रिज् – क़कुम् अन्नकुम् तुकज़्ज़िबून (82)

फ़लौ ला इज़ा ब – ल – गतिल् – हुल्कूम (83)

व अन्तुम् ही – न – इज़िन् तन्जुरून (84)

व नह्नु अक्रबु इलैहि मिन्कुम् व लाकिल् – ला तुब्सिरून (85)

फ़लौ – ला इन् कुन्तुम् गै़ – र मदीनीन (86)

तरजिअूनहा इन् कुन्तुम् सादिक़ीन (87)

फ़ – अम्मा इन का – न मिनल् – मुक़र्रबीन (88)

फ़ – रौहुंव् – व रैहानुंव् – व जन्नतु नअ़ीम (89)

व अम्मा इन् का – न मिन् अस्हाबिल् – यमीन (90)

फ़ – सलामुल् – ल – क मिन् अस्हाबिल् – यमीन (91)

व अम्मा इन् का – न मिनल् मुकज़्ज़िबीनज् -ज़ाल्लीन (92)

फ़ – नुजुलुम् – मिन् हमीमिंव् – (93)

व तस्लि – यतु जहीम (94)

इन् – न हाज़ा लहु – व हक़्कुल – यक़ीन (95)

फ़ – सब्बिहू बिस्मि रब्बिकल् – अ़ज़ीम (96)



सूरह अल वाकिया हिंदी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है

﴾ 1 ﴿ जब होने वाली, हो जायेगी।

﴾ 2 ﴿ उसका होना कोई झूठ नहीं है।

﴾ 3 ﴿ नीचा-ऊँचा करने[1] वाली।
1. इस से अभिप्राय प्रलय है। जो सत्य के विरोधियों को नीचा कर के नरक तक पहुँचायेगी। तथा आज्ञाकारियों को स्वर्ग के ऊँचे स्थान तक पहुँचायेगी। आरंभिक आयतों में प्रलय के होने की चर्चा, फिर उस दिन लोगों के तीन भागों में विभाजित होने का वर्णन किया गया है।

﴾ 4 ﴿ जब धरती तेज़ी से डोलने लगेगी।

﴾ 5 ﴿ और चूर-चूर कर दिये जायेंगे पर्वत।

﴾ 6 ﴿ फिर हो जायेंगे बिखरी हुई धूल।

﴾ 7 ﴿ तथा तुम हो जाओगे तीन समूह।

﴾ 8 ﴿ तो दायें वाले, तो क्या हैं दायें वाले![1]
1. दायें वाले से अभिप्राय वह हैं जिन का कर्मपत्र दायें हाथ में दिया जायेगा। तथा बायें वाले वह दुराचारी होंगे जिन का कर्मपत्र बायें हाथ में दिया जायेगा।

﴾ 9 ﴿ और बायें वाले, तो क्या हैं बायें वाले!

﴾ 10 ﴿ और अग्रगामी तो अग्रगामी ही हैं।

﴾ 11 ﴿ वही समीप किये[1] हुए हैं।
1. अर्थात अल्लाह के प्रियवर और उस के समीप होंगे।

﴾ 12 ﴿ वे सुखों के स्वर्गों में होंगे।

﴾ 13 ﴿ बहुत-से अगले लोगों में से।

﴾ 14 ﴿ तथा कुछ पिछले लोगों में से होंगे।

﴾ 15 ﴿ स्वर्ण से बुने हुए तख़्तों पर।

﴾ 16 ﴿ तकिये लगाये उनपर, एक-दूसरे के सम्मुख (आसीन) होंगे।

﴾ 17 ﴿ फिरते होंगे उनकी सेवा के लिए बालक, जो सदा (बालक) रहेंगे।

﴾ 18 ﴿ प्याले तथा सुराह़ियाँ लेकर तथा मदिरा के छलकते प्याले।

﴾ 19 ﴿ न तो सिर चकरायेगा उनसे, न वे निर्बोध होंगे।

﴾ 20 ﴿ तथा जो फल वे चाहेंगे।

﴾ 21 ﴿ तथा पक्षी का जो मांस वे चाहेंगे।

﴾ 22 ﴿ और गोरियाँ बड़े नैनों वाली।

﴾ 23 ﴿ छुपाकर रखी हुईं मोतियों के समान।

﴾ 24 ﴿ उसके बदले, जो वे (संसार में) करते रहे।

﴾ 25 ﴿ नहीं सुनेंगे उनमें व्यर्थ बात और न पाप की बात।

﴾ 26 ﴿ केवल सलाम ही सलाम की ध्वनि होगी।

﴾ 27 ﴿ और दायें वाले, क्या (ही भाग्यशाली) हैं दायें वाले!

﴾ 28 ﴿ बिन काँटे की बैरी में होंगे।

﴾ 29 ﴿ तथा तह पर तह केलों में।

﴾ 30 ﴿ फैली हुई छाया[1] में।
1. ह़दीस में है कि स्वर्ग में एक वृक्ष है जिस की छाया में सवार सौ वर्ष चलेगा फिर भी वह समाप्त नहीं होगा। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4881)

﴾ 31 ﴿ और प्रवाहित जल में।

﴾ 32 ﴿ तथा बहुत-से फलों में।

﴾ 33 ﴿ जो न समाप्त होंगे, न रोके जायेंगे।

﴾ 34 ﴿ और ऊँचे बिस्तर पर।

﴾ 35 ﴿ हमने बनाया है (उनकी) पत्नियों को एक विशेष रूप से।

﴾ 36 ﴿ हमने बनाय है उन्हें कुमारियाँ।

﴾ 37 ﴿ प्रेमिकायें समायु।

﴾ 38 ﴿ दाहिने वालों के लिए।

﴾ 39 ﴿ बहुत-से अगलों में से होंगे।

﴾ 40 ﴿ तथा बहुत-से पिछलों में से।

﴾ 41 ﴿ और बायें वाले, तो क्या हैं बायें वाले!

﴾ 42 ﴿ वे गर्म वायु तथा खौलते जल में (होंगे)।

﴾ 43 ﴿ तथा काले धुवें की छाया में।

﴾ 44 ﴿ जो न शीतल होगा और न सुखद।

﴾ 45 ﴿ वास्तव में, वे इससे पहले (संसार में) सम्पन्न (सुखी) थे।

﴾ 46 ﴿ तथा दुराग्रह करते थे महा पापों पर।

﴾ 47 ﴿ तथा कहा करते थे कि क्या जब हम मर जायेंगे तथा हो जायेंगे धूल और अस्थियाँ, तो क्या हम अवश्य पुनः जीवित होंगे?

﴾ 48 ﴿ और क्या हमारे पूर्वज (भी)?

﴾ 49 ﴿ आप कह दें कि निःसंदेह सब अगले तथा पिछले।

﴾ 50 ﴿ अवश्य एकत्र किये जायेंगे एक निर्धारित दिन के समय।

﴾ 51 ﴿ फिर तुम, हे कुपथो! झुठलाने वालो!

﴾ 52 ﴿ अवश्य खाने वाले हो ज़क़्क़ूम (थोहड़) के वृक्ष से।[1]
1. (देखियेः सूरह साफ़्फ़ात, आयतः62)

﴾ 53 ﴿ तथा भरने वाले हो उससे (अपने) उदर।

﴾ 54 ﴿ तथा पीने वाले हो उसपर से खौलता जल।

﴾ 55 ﴿ फिर पीने वाले हो प्यासे[1] ऊँट के समान।
1. आयत में प्यासे ऊँटों के लिये ‘ह़ीम’ शब्द प्रयुक्त हुआ है। यह ऊँट में एक विशेष रोग होता है जिस से उस की प्यास नहीं जाती।

﴾ 56 ﴿ यही उनका अतिथि सत्कार है, प्रतिकार (प्रलय) के दिन।

﴾ 57 ﴿ हमने ही उत्पन्न किया है तुम्हें, फिर तुम विश्वास क्यों नहीं करते?

﴾ 58 ﴿ क्या तुमने ये विचार किया कि जो वीर्य तुम (गर्भाशयों में) गिराते हो।

﴾ 59 ﴿ क्या तुम उसे शिशु बनाते हो या हम बनाने वाले हैं?

﴾ 60 ﴿ हमने निर्धारित किया है तुम्हारे बीच मरण को तथा हम विवश होने वाले नहीं हैं।

﴾ 61 ﴿ कि बदल दें तुम्हारे रूप और तुम्हें बना दें उस रूप में, जिसे तुम नहीं जानते।

﴾ 62 ﴿ तथा तुमने तो जान लिया है प्रथम उत्पत्ति को फिर तुम शिक्षा ग्रहण क्यों नहीं करते?

﴾ 63 ﴿ फिर क्या तुमने विचार किया कि उसमें जो तुम बोते हो?

﴾ 64 ﴿ क्या तुम उसे उगाते हो या हम उसे उगाने वाले हैं?

﴾ 65 ﴿ यदि हम चाहें, तो उसे भुस बना दें, फिर तुम बातें बनाते रह जाओ।

﴾ 66 ﴿ वस्तुतः, हम दण्डित कर दिये गये।

﴾ 67 ﴿ बल्कि हम (जीविका से) वंचित कर दिये गये।

﴾ 68 ﴿ फिर तुमने विचार किया उस पानी में, जो तुम पीते हो?

﴾ 69 ﴿ क्या तुमने उसे बरसाया है बादल से अथवा हम उसे बरसाने वाले हैं।?

﴾ 70 ﴿ यदि हम चाहें, तो उसे खारी कर दें, फिर तुम आभारी (कृतज्ञ) क्यों नहीं होते?

﴾ 71 ﴿ क्या तुमने उस अग्नि को देखा, जिसे तुम सुलगाते हो।

﴾ 72 ﴿ क्या तुमने उत्पन्न किया है उसके वृक्ष को या हम उत्पन्न करने वाले हैं?

﴾ 73 ﴿ हमने ही बनाया उसे शिक्षाप्रद तथा यात्रियों के लाभदायक।

﴾ 74 ﴿ अतः, (हे नबी!) आप पवित्रता का वर्णन करें अपने महा पालनहार के नाम की।

﴾ 75 ﴿ मैं शपथ लेता हूँ सितारों के स्थानों की!

﴾ 76 ﴿ और ये निश्चय एक बड़ी शपथ है, यदि तुम समझो।

﴾ 77 ﴿ वास्तव में, ये आदरणीय[1] क़ुर्आन है।
1. तारों की शपथ का अर्थ यह है कि जिस प्रकार आकाश के तारों की एक दृढ़ व्यवस्था है उसी प्रकार यह क़ुर्आन भी अति ऊँचा तथा सुदृढ़ है।

﴾ 78 ﴿ सुरक्षित[1] पुस्तक में।
1. इस से अभिप्राय ‘लौह़े मह़फ़ूज़’ है।

﴾ 79 ﴿ इसे पवित्र लोग ही छूते हैं।[1]
1. पवित्र लोगों से अभिप्राय फ़रिश्तें हैं। (देखियेः सूरह अबस, आयतः15-16)

﴾ 80 ﴿ अवतरित किया गया है सर्वलोक के पालनहार की ओर से।

﴾ 81 ﴿ फिर क्या तुम इस वाणि (क़ुर्आन) की अपेक्षा करते हो?

﴾ 82 ﴿ तथा बनाते हो अपना भाग कि इसे तुम झुठलाते हो?

﴾ 83 ﴿ फिर क्यों नहीं जब प्राण गले को पहुँचते हैं।

﴾ 84 ﴿ और तुम उस समय देखते रहते हो।

﴾ 85 ﴿ तथा हम अधिक समीप होते हैं उसके तुमसे, परन्तु तुम नहीं देख सकते।

﴾ 86 ﴿ तो यदि तुम किसी के आधीन न हो।

﴾ 87 ﴿ तो उस (प्राण) को फेर क्यों नहीं लाते, यदि तुम सच्चे हो?

﴾ 88 ﴿ फिर यदि वह (प्राणी) समीपवर्तियों में है।

﴾ 89 ﴿ तो उसके लिए सुख तथा उत्तम जीविका तथा सुख भरा स्वर्ग है।

﴾ 90 ﴿ और यदि वह दायें वालों में से है।

﴾ 91 ﴿ तो सलाम है तेरे लिए दायें वालों में होने के कारण।[1]
1. अर्थात उस का स्वागत सलाम से होगा।

﴾ 92 ﴿ और यदि वह है झुठलाने वाले कुपथों में से।

﴾ 93 ﴿ तो अतिथि सत्कार है खौलते पानी से।

﴾ 94 ﴿ तथा नरक में प्रवेश।

﴾ 95 ﴿ वास्तव में, यही निश्चय सत्य है।

﴾ 96 ﴿ अतः, (हे नबी!) आप पवित्रता का वर्णन करें अपने महा पालनहार के नाम की।


 
सूरह अल वाकिया अरबी

ذَا وَقَعَتِ ٱلْوَاقِعَةُ
لَيْسَ لِوَقْعَتِهَا كَاذِبَةٌ
خَافِضَةٌ رَّافِعَةٌ
ذَا رُجَّتِ ٱلْأَرْضُ رَجًّا
وَبُسَّتِ ٱلْجِبَالُ بَسًّا
فَكَانَتْ هَبَآءً مُّنۢبَثًّا
كُنتُمْ أَزْوَٰجًا ثَلَٰثَةً
فَأَصْحَٰبُ ٱلْمَيْمَنَةِ مَآ أَصْحَٰبُ ٱلْمَيْمَنَةِ
وَأَصْحَٰبُ ٱلْمَشْـَٔمَةِ مَآ أَصْحَٰبُ ٱلْمَشْـَٔمَةِ
 وَٱلسَّٰبِقُونَ ٱلسَّٰبِقُونَ
 أُو۟لَٰٓئِكَ ٱلْمُقَرَّبُونَ
 فِى جَنَّٰتِ ٱلنَّعِيمِ
 ثُلَّةٌ مِّنَ ٱلْأَوَّلِينَ
 وَقَلِيلٌ مِّنَ ٱلْءَاخِرِينَ
 عَلَىٰ سُرُرٍ مَّوْضُونَةٍ
 مُّتَّكِـِٔينَ عَلَيْهَا مُتَقَٰبِلِينَ
 يَطُوفُ عَلَيْهِمْ وِلْدَٰنٌ مُّخَلَّدُونَ
 بِأَكْوَابٍ وَأَبَارِيقَ وَكَأْسٍ مِّن مَّعِينٍ
 لَّا يُصَدَّعُونَ عَنْهَا وَلَا يُنزِفُونَ
 وَفَٰكِهَةٍ مِّمَّا يَتَخَيَّرُونَ
 وَلَحْمِ طَيْرٍ مِّمَّا يَشْتَهُونَ
وَحُورٌ عِينٌ
 كَأَمْثَٰلِ ٱللُّؤْلُؤِ ٱلْمَكْنُونِ
 جَزَآءًۢ بِمَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ
 لَا يَسْمَعُونَ فِيهَا لَغْوًا وَلَا تَأْثِيمًا
 إِلَّا قِيلًا سَلَٰمًا سَلَٰمًا
وَأَصْحَٰبُ ٱلْيَمِينِ مَآ أَصْحَٰبُ ٱلْيَمِينِ
 فِى سِدْرٍ مَّخْضُودٍ
 وَطَلْحٍ مَّنضُودٍ
 وَظِلٍّ مَّمْدُودٍ
 وَمَآءٍ مَّسْكُوبٍ
 وَفَٰكِهَةٍ كَثِيرَةٍ
 لَّا مَقْطُوعَةٍ وَلَا مَمْنُوعَةٍ
 وَفُرُشٍ مَّرْفُوعَةٍ
 إِنَّآ أَنشَأْنَٰهُنَّ إِنشَآءً
 فَجَعَلْنَٰهُنَّ أَبْكَارًا
 عُرُبًا أَتْرَابًا
 لِّأَصْحَٰبِ ٱلْيَمِينِ
 ثُلَّةٌ مِّنَ ٱلْأَوَّلِينَ
 وَثُلَّةٌ مِّنَ ٱلْءَاخِرِينَ
 وَأَصْحَٰبُ ٱلشِّمَالِ مَآ أَصْحَٰبُ ٱلشِّمَالِ
 فِى سَمُومٍ وَحَمِيمٍ
 وَظِلٍّ مِّن يَحْمُومٍ
 لَّا بَارِدٍ وَلَا كَرِيمٍ
 إِنَّهُمْ كَانُوا۟ قَبْلَ ذَٰلِكَ مُتْرَفِينَ
 وَكَانُوا۟ يُصِرُّونَ عَلَى ٱلْحِنثِ ٱلْعَظِيمِ
 وَكَانُوا۟ يَقُولُونَ أَئِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَعِظَٰمًا أَءِنَّا لَمَبْعُوثُونَ
أَوَءَابَآؤُنَا ٱلْأَوَّلُونَ
 قُلْ إِنَّ ٱلْأَوَّلِينَ وَٱلْءَاخِرِينَ
 لَمَجْمُوعُونَ إِلَىٰ مِيقَٰتِ يَوْمٍ مَّعْلُومٍ
 ثُمَّ إِنَّكُمْ أَيُّهَا ٱلضَّآلُّونَ ٱلْمُكَذِّبُونَ
 لَءَاكِلُونَ مِن شَجَرٍ مِّن زَقُّومٍ
 فَمَالِـُٔونَ مِنْهَا ٱلْبُطُونَ
 فَشَٰرِبُونَ عَلَيْهِ مِنَ ٱلْحَمِيمِ
 فَشَٰرِبُونَ شُرْبَ ٱلْهِيمِ
 هَٰذَا نُزُلُهُمْ يَوْمَ ٱلدِّينِ
 نَحْنُ خَلَقْنَٰكُمْ فَلَوْلَا تُصَدِّقُونَ
 أَفَرَءَيْتُم مَّا تُمْنُونَ
 ءَأَنتُمْ تَخْلُقُونَهُۥٓ أَمْ نَحْنُ ٱلْخَٰلِقُونَ
 نَحْنُ قَدَّرْنَا بَيْنَكُمُ ٱلْمَوْتَ وَمَا نَحْنُ بِمَسْبُوقِينَ
 عَلَىٰٓ أَن نُّبَدِّلَ أَمْثَٰلَكُمْ وَنُنشِئَكُمْ فِى مَا لَا تَعْلَمُونَ
 وَلَقَدْ عَلِمْتُمُ ٱلنَّشْأَةَ ٱلْأُولَىٰ فَلَوْلَا تَذَكَّرُونَ
 أَفَرَءَيْتُم مَّا تَحْرُثُونَ
 ءَأَنتُمْ تَزْرَعُونَهُۥٓ أَمْ نَحْنُ ٱلزَّٰرِعُونَ
 لَوْ نَشَآءُ لَجَعَلْنَٰهُ حُطَٰمًا فَظَلْتُمْ تَفَكَّهُونَ
 إِنَّا لَمُغْرَمُونَ
 بَلْ نَحْنُ مَحْرُومُونَ
 أَفَرَءَيْتُمُ ٱلْمَآءَ ٱلَّذِى تَشْرَبُونَ
 ءَأَنتُمْ أَنزَلْتُمُوهُ مِنَ ٱلْمُزْنِ أَمْ نَحْنُ ٱلْمُنزِلُونَ
لَوْ نَشَآءُ جَعَلْنَٰهُ أُجَاجًا فَلَوْلَا تَشْكُرُونَ
أَفَرَءَيْتُمُ ٱلنَّارَ ٱلَّتِى تُورُونَ
ءَأَنتُمْ أَنشَأْتُمْ شَجَرَتَهَآ أَمْ نَحْنُ ٱلْمُنشِـُٔونَ
 نَحْنُ جَعَلْنَٰهَا تَذْكِرَةً وَمَتَٰعًا لِّلْمُقْوِينَ
فَسَبِّحْ بِٱسْمِ رَبِّكَ ٱلْعَظِيمِ
فَلَآ أُقْسِمُ بِمَوَٰقِعِ ٱلنُّجُومِ
 وَإِنَّهُۥ لَقَسَمٌ لَّوْ تَعْلَمُونَ عَظِيمٌ
 إِنَّهُۥ لَقُرْءَانٌ كَرِيمٌ
 فِى كِتَٰبٍ مَّكْنُونٍ
 لَّا يَمَسُّهُۥٓ إِلَّا ٱلْمُطَهَّرُونَ
 تَنزِيلٌ مِّن رَّبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ
 أَفَبِهَٰذَا ٱلْحَدِيثِ أَنتُم مُّدْهِنُونَ
 وَتَجْعَلُونَ رِزْقَكُمْ أَنَّكُمْ تُكَذِّبُونَ
 فَلَوْلَآ إِذَا بَلَغَتِ ٱلْحُلْقُومَ
 وَأَنتُمْ حِينَئِذٍ تَنظُرُونَ
 وَنَحْنُ أَقْرَبُ إِلَيْهِ مِنكُمْ وَلَٰكِن لَّا تُبْصِرُونَ
 فَلَوْلَآ إِن كُنتُمْ غَيْرَ مَدِينِينَ
 تَرْجِعُونَهَآ إِن كُنتُمْ صَٰدِقِينَ
 فَأَمَّآ إِن كَانَ مِنَ ٱلْمُقَرَّبِينَ
 فَرَوْحٌ وَرَيْحَانٌ وَجَنَّتُ نَعِيمٍ
 وَأَمَّآ إِن كَانَ مِنْ أَصْحَٰبِ ٱلْيَمِينِ
 فَسَلَٰمٌ لَّكَ مِنْ أَصْحَٰبِ ٱلْيَمِينِ
 وَأَمَّآ إِن كَانَ مِنَ ٱلْمُكَذِّبِينَ ٱلضَّآلِّينَ
 فَنُزُلٌ مِّنْ حَمِيمٍ
 وَتَصْلِيَةُ جَحِيمٍ
 إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ حَقُّ ٱلْيَقِينِ
 فَسَبِّحْ بِٱسْمِ رَبِّكَ ٱلْعَظِيمِ
 

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सूरह मुल्क हिन्दी Surah Mulk Hindi Pronounce Translation Arabic

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Surah Mulk Hindi

सूरह मुल्क सूरह न० 67


सूरह अल मुल्क हिन्दी उच्चारण (मक्की)
 

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम 
 
तबा – रकल्लज़ी बि – यदिहिल – मुल्कु व हु – व अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीर (1)
 
 लक़ल -मौ – त वल्हया – त लि – यब्लु – वकुम् अय्युकुम् अहसनु अ़ – मलन , व हुवल् अ़जीजुल – गफूर (2) 
 
अल्लज़ी ख़ – ल – क़ सब् – अ़ समावातिन् तिबाकन् , मा तरा फी ख़ल्किर्रह्मानि मिन् तफावुतिन् , फर्जिअ़िल् – ब – स – र हल् तरा मिन् फुतूर (3) 
 
सुम्मरजिअिल् – ब – स – र कर्रतैनि यन्क़लिब इलैकल् – ब – सरु ख़ासिअंव् – व हु – व हसीर (4) 
 
व ल – क़द् ज़य्यन्नस्समाअद् – दुन्या बि – मसाबी – ह व ज – अ़ल्नाहा रुजूमल् – लिश्शयातीनि व अअ्तद्ना लहुम् अ़ज़ाबस्सअ़ीर (5)
 
 व लिल्लज़ी – न क – फ़रू बिरब्बिहिम् अ़ज़ाबु जहन्न – म , व बिअ्सल – मसीर (6) 
 
इज़ा उल्कू फ़ीहा समिअू लहा शहीकंव् – व हि – य तफूर (7)
 
 तकादु त – मय्यजु मिनल् – गै़ज़ि , कुल्लमा उल्कि – य फ़ीहा फौ़जुन् स – अ – लहुम् ख़ – ज़ – नतुहा अलम् यअ्तिकुम नज़ीर (8) 
 
कालू बला क़द् जा – अना नज़ीरुन् , फ़ – कज़्ज़ब्ना व कुल्ना मा नज़्ज़लल्लाहु मिन् शैइन् इन् अन्तुम् इल्ला फ़ी ज़लालिन् कबीर (9) 
 
व का़लू लौ कुन्ना नस्मअु औ नअ्कि लु कुन्ना फी असूहाबिस्सअ़ीर (10) 
 
फ़ अ -त- रफू बिज़म्बिहिम् फ़ – सुह्क़ल् – लि – अस्हाबिस् – सअ़ीर (11) 
 
इन्नल्लज़ी – न यख़्शौ – न रब्बहुम् बिल्गै़बि लहुम् मग्फ़ि – रतुंव् – व अजरुन् कबीर (12) 
 
व असिर्रू कौ़लकुम् अविज् – हरू बिही , इन्नहू अ़लीमुम् बिज़ातिस्सुदूर (13) 
 
अला यअ्लमु मन् ख़ – ल – क़ , व हुवल् – लतीफुल – ख़बीर (14)*
 
 हुवल्लज़ी ज – अ़ – ल लकुमुल् – अर् – ज़ ज़लूलन् फम्शू फ़ी मनाकिबिहा व कुलू मिर्रिजक़िही , व इलैहिन् – नुशूर (15)
 
 अ – अमिन्तुम् मन् फिस्समा – इ अंय्यख़्सि – फ़ बिकुमुल् – अर् – ज़ फ़ – इज़ा हि – य तमूर (16)
 
 अम् अमिन्तुम् मन् फिस्समा – इ अंय्युर्सि – ल अ़लैकुम् हासिबन् , फ़ – सतअ्लमू – न कै – फ़ नज़ीर (17) 
 
व ल – क़द् कज़्ज़ – बल्लज़ी – न मिन् क़ब्लिहिम् फ़कै – फ़ का – न नकीर (18) 
 
अ – व लम् यरौ इलत्तैरि फौ़क़हुम् साफ्फ़ातिंव् – व यक्बिज् – न • मा युम्सिकुहुन् – न इल्लर्रह्मानु , इन्नहू बिकुल्लि शैइम् – बसीर (19) 
 
अम्मन् हाज़ल्लज़ी हु – व जुन्दुल् – लकुम् यन्सुरुकुम् मिन् दूनिर्रह्मानि , इनिल् – काफ़िरू – न इल्ला फी गुरूर (20) 
 
अम् – मन् हाज़ल्लज़ी यरजुकुकुम् इन् अम् – स – क रिज़्क़हू बल् – लज्जू फ़ी अुतुव्विंव्व – व नुफूर (21) 
 
अ – फ़मंय्यम्शी मुकिब्बन् अ़ला वज्हिही अह्दा अम् – मंय्यम्शी सविय्यन् अ़ला सिरातिम् – मुसतक़ीम (22)
 
 कुल् हुवल्लज़ी अन्श – अकुम् व ज – अ़ल लकुमुस्सम् – अ़ वल्अब्सा – र वल् – अफ़इ – द – त , क़लीलम् – मा तश्कुरून (23) 
 
कुल् हुवल्लज़ी ज़ – र – अकुम् फ़िल्अर्जि व इलैहि तुह्शरून (24) 
 
व यकूलू – न मता हाज़ल् – वअ्दु इन् कुन्तुम् सादिक़ीन (25) 
 
कुल इन्नमल् – अ़िल्मु अिन्दल्लाहि व इन्नमा अ – न नज़ीरुम् – मुबीन (26)
 
 फ़ – लम्मा रऔहु जुल्फ़ – तन् सी – अत् वुजूहुल्लज़ी – न क – फ़रू व की – ल हाज़ल्लज़ी कुन्तुम् बिही तद्द – अून (27) 
 
कुल् अ – रऐतुम् इन् अह़्ल – कनियल्लाहु व मम् – मअि – य औ रहि – मना फ़ – मंय्युजीरुल् – काफ़िरी – न मिन् अ़ज़ाबिन अलीम (28) 
 
कुल् हुवर् – रह्मानु आमन्ना बिही व अ़लैहि तवक्कलना फ़ – स – तअ्लमू – न मन् हु – व फी ज़लालिम् – मुबीन (29) 
 
कुल् अ – रऐतुम् इन् अस्ब – ह मा – उकुम् गै़रन् फ़ – मंय्यअ्तीकुम् बिमाइम् – मअ़ीन (30)


 
सूरह अल मुल्क हिन्दी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है

﴾ 1 ﴿ शुभ है वह अल्लाह, जिसके हाथ में राज्य है तथा जो कुछ वह चाहे, कर सकता है।

﴾ 2 ﴿ जिसने उत्पन्न किया है मृत्यु तथा जीवन को, ताकि तुम्हारी परीक्षा ले कि तुममें किसका कर्म अधिक अच्छा है? तथा वह प्रभुत्वशाली, अति क्षमावान् है।[1]
1. इस में आज्ञा पालन की प्रेरणा तथा अवैज्ञा पर चेतावनी है।

﴾ 3 ﴿ जिसने उत्पन्न किये सात आकाश, ऊपर तले। तो क्या तुम देखते हो अत्यंत कृपाशील की उत्पत्ति में कोई असंगति? फिर पुनः देखो, क्या तुम देखते हो कोई दराड़?

﴾ 4 ﴿ फिर बार-बार देखो, वापस आयेगी तुम्हारी ओर निगाह थक-हार कर।

﴾ 5 ﴿ और हमने सजाया है संसार के आकाश को प्रदीपों (ग्रहों) से तथा बनाया है उन्हें (तारों को) मार भगाने का साधन शैतानों[1] को, और तैयार की है हमने उनके लिए दहकती अग्नि की यातना।
1. जो चोरी से आकाश की बातें सुनते हैं। (देखियेः सूरह साफ़्फ़ात, आयतः7-10)

﴾ 6 ﴿ और जिन्होंने कुफ़्र किया अपने पालनहार के साथ तो उनके लिए नरक की यातना है। और वह बुरा स्थान है।

﴾ 7 ﴿ जब वह फेंके जायेंगे उसमें तो सुनेंगे उसकी दहाड़ और वह खौल रही होगी।

﴾ 8 ﴿ प्रतीत होगा कि फट पड़ेगी रोष (क्रोध) सेर, जब-जब फेंका जायेगा उसमें कोई समूह तो प्रश्न करेंगे उनसे उसके प्रहरीः क्या नहीं आया तुम्हारे पास कोई सावधान करने वाला (रसूल)?

﴾ 9 ﴿ वह कहेंगेः हाँ हमारे पास आया सावधान करने वाला। पर हमने झुठला दिया और कहा कि नहीं उतारा है अल्लाह ने कुछ। तुम ही बड़े कुपथ में हो।

﴾ 10 ﴿ तथा वह कहेंगेः यदि हमने सुना और समझा होता तो नरक के वासियों में न होते।

﴾ 11 ﴿ ऐसे वह स्वीकार कर लेंगे अपने पापों को। तो दूरी[1] है नरक वासियों के लिए।
1. अर्थात अल्लाह की दया से।

﴾ 12 ﴿ निःसंदेह जो डरते हों अपने पालनहार से बिन देखे उन्हीं के लिए क्षमा है तथा बड़ा प्रतिफल है।[1]
1. ह़दीस में है कि मैं ने अपने सदाचारी भक्तों के लिये ऐसी चीज़ तैयार की है जिसे न किसी आँख ने देखा, न किसी कान ने सुना और न किसी दिल ने सोचा। (सह़ीह़ बुख़ारीः 3244, सह़ीह़ मुस्लिमः 2824)

﴾ 13 ﴿ तुम चुपके बोलो अपनी बात अथवा ऊँचे स्वर में। वास्तव में वह भली-भाँति जानता है सीनों के भेदों को।

﴾ 14 ﴿ क्या वह नहीं जानेगा जिस ने उत्न्न किया? और वह सूक्ष्मदर्शक[1] सर्व सूचित है?
1. बारीक बातों को जानने वाला।

﴾ 15 ﴿ वही है जिस ने बनाया है तुम्हारे लिए धरती को वश्वर्ती, तो चलो-फिरो उसके क्षेत्रों में तथा खाओ उसकी प्रदान की हुई जीविका। और उसी की ओर तुम्हें फिर जीवित हो कर जाना है।

﴾ 16 ﴿ क्या तुम निर्भय हो गये हो उससे जो आकाश में है कि वह धँसा दे धरती में फिर वह अचानक काँपने लगे।

﴾ 17 ﴿ अथवा निर्भय हो गये उससे जो आकाश में है कि वह भेज दे तुम पर पथरीली वायु तो तुम्हें ज्ञान हो जायेगा कि कैसा रहा मेरा सावधान करना?

﴾ 18 ﴿ झुठला चुके हैं इन[1] से पूर्व के लोग तो कैसी रही मेरी पकड़?
1. अर्थात मक्का वासियों से पहले आद, समूद आदि जातियों ने। तो लूत (अलैहिस्सलाम) की जाति पर पत्थरों की वर्षा हुई।

﴾ 19 ﴿ क्या उन्होंने नहीं देखा पक्षियों की ओर अपने ऊपर पंख फैलाते तथा सिकोड़ते। उन को अत्यंत कृपाशील ही थामता है। निसंदेह वह प्रत्येक वस्तु को देख रहा है।

﴾ 20 ﴿ कौन है वह तुम्हारी सेना जो तुम्हारी सहायता कर सकेगी अल्लाह के मुक़ाबले में? बल्कि वह घुस गये हैं अवैज्ञा तथा घृणा में।[1]

﴾ 21 ﴿ या कौन है जो तुम्हें जीविका प्रदान कर सके, यदि रोक ले वह अपनी जीविका? बल्कि वे घुस गये हैं अवैज्ञा तथा घृणा में।[1]
1. अर्थात से घृणा में।

﴾ 22 ﴿ तो क्या जो चल रहा हो औंधा हो कर अपने मुँह के बल वह अधिक मार्गदर्शन पर है ये जो सीधा हो कर चल रहा हो सीधी राह पर?[1]
1. इस में काफ़िर तथा ईमानधार का उदाहरण है। और दोनों के जीवन-लक्ष्य को बताया गया है कि काफ़िर सदा मायामोह में रहते हैं।

﴾ 23 ﴿ हे नबी! आप कह दें कि वही है जिस ने पैदा किया है तुम्हें और बनाये हैं तुम्हारे कान तथा आँख और दिल। बहुत ही कम आभारी (कृतज्ञ) होते हो।

﴾ 24 ﴿ आप कह देः उसीने फैलाया है तुम्हें धरती में और उसी की ओर एकत्रित[1] किये जाओगे।
1. प्रलय के दिन अपने कर्मों के लेखा-जोखा तथा प्रतिकार के लिये।

﴾ 25 ﴿ तथा वह कहते हैं कि ये वचन कब पूरा होगा यदि तुम सच्चे हो?

﴾ 26 ﴿ आप कह देः उस का ज्ञान बस अल्लाह ही को है। और मैं केवल खुला सावधान करने वाला हूँ।

﴾ 27 ﴿ फिर जब वह देखेंगे उसे समीप, तो बिगड़ जायेंगे उनके चेहरे जो काफ़िर हो गये। तथा कहा जायेगाः ये वही है जिसकी तुम माँग कर रहे थे।

﴾ 28 ﴿ आप कह देः देखो यदि अल्लाह नाश कर दे मुझ को तथा मेरे साथियों को अथवा दया करे हम पर, तो (बताओ कि) कौन है जो शरण देगा काफ़िरों को दुःखदायी[1] यातना से?
1. अर्थात तुम हमारा बुरा तो चाहते हो परन्तु अपनी चिन्ता नहीं करते।

﴾ 29 ﴿ आप कह देः वह अत्यंत कृपाशील है। हम उसपर ईमान लाये तथा उसीपर भरोसा किया, तो तुम्हें ज्ञान हो जायेगा कि कौन खुले कुपथ में है।

﴾ 30 ﴿ आप कह देः भला देखो यदि तुम्हारा पानी गहराई में चला जाये, तो कौन है जो तुम्हें ला कर देगा बहता हुआ जल?
 

सूरह अल मुल्क अरबी
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
1. تَبَارَكَ الَّذِي بِيَدِهِ الْمُلْكُ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
2. الَّذِي خَلَقَ الْمَوْتَ وَالْحَيَاةَ لِيَبْلُوَكُمْ أَيُّكُمْ أَحْسَنُ عَمَلًا ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْغَفُورُ
3. الَّذِي خَلَقَ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ طِبَاقًا ۖ مَا تَرَىٰ فِي خَلْقِ الرَّحْمَٰنِ مِنْ تَفَاوُتٍ ۖ فَارْجِعِ الْبَصَرَ هَلْ تَرَىٰ مِنْ فُطُورٍ
4. ثُمَّ ارْجِعِ الْبَصَرَ كَرَّتَيْنِ يَنْقَلِبْ إِلَيْكَ الْبَصَرُ خَاسِئًا وَهُوَ حَسِيرٌ
5. وَلَقَدْ زَيَّنَّا السَّمَاءَ الدُّنْيَا بِمَصَابِيحَ وَجَعَلْنَاهَا رُجُومًا لِلشَّيَاطِينِ ۖ وَأَعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَابَ السَّعِيرِ
6. وَلِلَّذِينَ كَفَرُوا بِرَبِّهِمْ عَذَابُ جَهَنَّمَ ۖ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ
7. إِذَا أُلْقُوا فِيهَا سَمِعُوا لَهَا شَهِيقًا وَهِيَ تَفُورُ
8. تَكَادُ تَمَيَّزُ مِنَ الْغَيْظِ ۖ كُلَّمَا أُلْقِيَ فِيهَا فَوْجٌ سَأَلَهُمْ خَزَنَتُهَا أَلَمْ يَأْتِكُمْ نَذِيرٌ
9. قَالُوا بَلَىٰ قَدْ جَاءَنَا نَذِيرٌ فَكَذَّبْنَا وَقُلْنَا مَا نَزَّلَ اللَّهُ مِنْ شَيْءٍ إِنْ أَنْتُمْ إِلَّا فِي ضَلَالٍ كَبِيرٍ
10. وَقَالُوا لَوْ كُنَّا نَسْمَعُ أَوْ نَعْقِلُ مَا كُنَّا فِي أَصْحَابِ السَّعِيرِ
11. فَاعْتَرَفُوا بِذَنْبِهِمْ فَسُحْقًا لِأَصْحَابِ السَّعِيرِ
12. إِنَّ الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ بِالْغَيْبِ لَهُمْ مَغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ كَبِيرٌ
13. وَأَسِرُّوا قَوْلَكُمْ أَوِ اجْهَرُوا بِهِ ۖ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ
14. أَلَا يَعْلَمُ مَنْ خَلَقَ وَهُوَ اللَّطِيفُ الْخَبِيرُ
15. هُوَ الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ ذَلُولًا فَامْشُوا فِي مَنَاكِبِهَا وَكُلُوا مِنْ رِزْقِهِ ۖ وَإِلَيْهِ النُّشُورُ
16. أَأَمِنْتُمْ مَنْ فِي السَّمَاءِ أَنْ يَخْسِفَ بِكُمُ الْأَرْضَ فَإِذَا هِيَ تَمُورُ
17. أَمْ أَمِنْتُمْ مَنْ فِي السَّمَاءِ أَنْ يُرْسِلَ عَلَيْكُمْ حَاصِبًا ۖ فَسَتَعْلَمُونَ كَيْفَ نَذِيرِ
18. وَلَقَدْ كَذَّبَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ فَكَيْفَ كَانَ نَكِيرِ
19. أَوَلَمْ يَرَوْا إِلَى الطَّيْرِ فَوْقَهُمْ صَافَّاتٍ وَيَقْبِضْنَ ۚ مَا يُمْسِكُهُنَّ إِلَّا الرَّحْمَٰنُ ۚ إِنَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ بَصِيرٌ
20. أَمَّنْ هَٰذَا الَّذِي هُوَ جُنْدٌ لَكُمْ يَنْصُرُكُمْ مِنْ دُونِ الرَّحْمَٰنِ ۚ إِنِ الْكَافِرُونَ إِلَّا فِي غُرُورٍ
21. أَمَّنْ هَٰذَا الَّذِي يَرْزُقُكُمْ إِنْ أَمْسَكَ رِزْقَهُ ۚ بَلْ لَجُّوا فِي عُتُوٍّ وَنُفُورٍ
22. أَفَمَنْ يَمْشِي مُكِبًّا عَلَىٰ وَجْهِهِ أَهْدَىٰ أَمَّنْ يَمْشِي سَوِيًّا عَلَىٰ صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ
23. قُلْ هُوَ الَّذِي أَنْشَأَكُمْ وَجَعَلَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْأَبْصَارَ وَالْأَفْئِدَةَ ۖ قَلِيلًا مَا تَشْكُرُونَ
24. قُلْ هُوَ الَّذِي ذَرَأَكُمْ فِي الْأَرْضِ وَإِلَيْهِ تُحْشَرُونَ
25. وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا الْوَعْدُ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ
26. قُلْ إِنَّمَا الْعِلْمُ عِنْدَ اللَّهِ وَإِنَّمَا أَنَا نَذِيرٌ مُبِينٌ
27. فَلَمَّا رَأَوْهُ زُلْفَةً سِيئَتْ وُجُوهُ الَّذِينَ كَفَرُوا وَقِيلَ هَٰذَا الَّذِي كُنْتُمْ بِهِ تَدَّعُونَ
28. قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ أَهْلَكَنِيَ اللَّهُ وَمَنْ مَعِيَ أَوْ رَحِمَنَا فَمَنْ يُجِيرُ الْكَافِرِينَ مِنْ عَذَابٍ أَلِيمٍ
29. قُلْ هُوَ الرَّحْمَٰنُ آمَنَّا بِهِ وَعَلَيْهِ تَوَكَّلْنَا ۖ فَسَتَعْلَمُونَ مَنْ هُوَ فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ
30. قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ أَصْبَحَ مَاؤُكُمْ غَوْرًا فَمَنْ يَأْتِيكُمْ بِمَاءٍ مَعِينٍ


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सूरह अल जिन्न Surah Jinn Hindi Pronounce Translation Arabic

सूरह अल जिन्न Surah Jinn Hindi Pronounce Translation Arabic

सूरह अल-जिन्न सूरह न० 72
सूरह अल जिन्न Surah Jinn Hindi Pronounce Translation Arabic

सूरह अल-जिन्न हिन्दी उच्चारण (मक्की)

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

कुल् ऊहि – य इलय् – य् अन्नहुस् – त – म – अ़ न – फ़रुम् मिनल् – जिन्नि फ़का़लू इन्ना समिअ्ना कुरआनन् अ़ – जबा (1)

यह्दी इलर् – रुश्दि फ़ – आमन्ना बिही , व लन् – नुश्रि – क बिरब्बिना अ – हदा (2)

व अन्नहू तआ़ला जद्दु रब्बिना मत्त – ख़ – ज़ साहि – बतंव् – व ला व – लदा (3)

व अन्नहू का – न यकूलु सफ़ीहुना अ़लल्लाहि श – तता (4)

व अन्ना ज़नन्ना अल् – लन् तकूलल् – इन्सु वल्जिन्नु अ़लल्लाहि कज़िबा (5)

व अन्नहू का – न रिजालुम् मिनल् – इन्सि यअूजू – न बिरिजालिम् मिनल् – जिन्नि फ़ज़ादूहुम् र – हका़ (6)

व अन्नहुम् ज़न्नू कमा ज़नन्तुम् अल्लंय् – यब् – अ़सल्लाहु अ – हदा (7)

व अन्ना ल – मस् नस्समा – अ फ़ – वजद्नाहा मुलिअत् ह – रसन् शदीदंव् – व शुहुबा (8)

व अन्ना कुन्ना नक़अु़दु मिन्हा मकाअि – द लिस्सम्अि , फ़ – मंय्यस्तमिअिल् – आ – न यजिद् लहू शिहाबर् – र – सदा (9)

व अन्ना ला नद्री अ – शर्रुन् उरी – द बिमन् फिल्अर्ज़ि अम् अरा – द बिहिम् रब्बुहुम् र – शदा (10)

व अन्ना मिन्नस्सालिहू – न व मिन्ना दू – न ज़ालि – क कुन्ना तराइ – क़ कि़ – ददा (11)

व अन्ना ज़नन्ना अल् – लन् नुअ्जिज़ल्ला – ह फिल्अर्ज़ि व लन् नुअ्जि – ज़हू ह – रबा (12)

व अन्ना लम्मा समिअ्नल् – हुदा आमन्ना बिही , फ़ – मय्युअ्मिम् बिरब्बिही फ़ला यख़ाफु बख़्संव् – व ला र – हक़ा (13)

व अन्ना मिन्नल् – मुस्लिमू – न व मिन्नल् – का़सितू – न , फ़ – मन् अस्ल – म फ़ – उलाइ – क त – हररौ र – शदा (14)

व अम्मल् – कासितू – न फ़कानू लि – जहन्न – म ह – तबा (15)

व अल् – लविस्तका़मू अ़लत्तरी – क़ति ल – अस्कै़नाहुम् माअन् ग़ – दका (16)

लिनफ्ति – नहुम् फ़ीहि , व मंय्युअ्रिज् अ़न् जिक्रि रब्बिही यस्लुक्हु अ़जा़बन् स – अ़दा (17)

व अन्नल् – मसाजि – द लिल्लाहि फ़ला तद्अू मअ़ल्लाहि अ – हदा (18)

व अन्नहू लम्मा का – म अ़ब्दुल्लाहि यद्अूहु कादू यकूनू – न अ़लैहि लि – बदा (19)

कुल इन्नमा अद्अू रब्बी व ला उश्रिकु बिही अ – हदा (20)

कुल् इन्नी ला अम्लिकु लकुम् ज़ररंव् – व ला र – शदा (21)

कुल इन्नी लंय्युजी – रनी मिनल्लाहि अ – हदुंव् – व लन् अजि – द मिन् दूनिही मुल्त – हदा (22)

इल्ला बलाग़म् मिनल्लाहि व रिसालातिही , व मंय्यअ्सिल्ला – ह व रसूलहू फ़ – इन् – न लहू ना – र जहन्न – म ख़ालिदी – न फ़ीहा अ – बदा (23)

हत्ता इज़ा रऔ मा यू – अ़दू – न फ़ – सयअ्लमू – न मन् अज़अ़फु नासिरंव् – व अक़ल्लु अ़ – ददा (24)

कुल् इन् अद्री अ – क़रीबुम् – मा तू – अ़दू – न अम् यज्अ़लु लहू रब्बी अ – मदा (25)

आ़लिमुल् – गै़बि फ़ला युज्हिरु अ़ला गै़बिही अ – हदा (26)

इल्ला मनिर्तज़ा मिर्रसूलिन् फ़ – इन्नहू यस्लुकु मिम् – बैनि यदैहि व मिन् ख़ल्फ़िही र – सदा (27)

लियअ्ल – म अन् क़द् अब्लगू रिसालाति रब्बिहिम् व अहा – त बिमा लदैहिम् व अह्सा कुल् – ल शैइन् अ़ – ददा (28)



सूरह अल-जिन्न अरबी (मक्की)
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
1. قُلْ أُوحِيَ إِلَيَّ أَنَّهُ اسْتَمَعَ نَفَرٌ مِنَ الْجِنِّ فَقَالُوا إِنَّا سَمِعْنَا قُرْآنًا عَجَبًا
2. يَهْدِي إِلَى الرُّشْدِ فَآمَنَّا بِهِ ۖ وَلَنْ نُشْرِكَ بِرَبِّنَا أَحَدًا
3. وَأَنَّهُ تَعَالَىٰ جَدُّ رَبِّنَا مَا اتَّخَذَ صَاحِبَةً وَلَا وَلَدًا
4. وَأَنَّهُ كَانَ يَقُولُ سَفِيهُنَا عَلَى اللَّهِ شَطَطًا
5. وَأَنَّا ظَنَنَّا أَنْ لَنْ تَقُولَ الْإِنْسُ وَالْجِنُّ عَلَى اللَّهِ كَذِبًا
6. وَأَنَّهُ كَانَ رِجَالٌ مِنَ الْإِنْسِ يَعُوذُونَ بِرِجَالٍ مِنَ الْجِنِّ فَزَادُوهُمْ رَهَقًا
7. وَأَنَّهُمْ ظَنُّوا كَمَا ظَنَنْتُمْ أَنْ لَنْ يَبْعَثَ اللَّهُ أَحَدًا
8. وَأَنَّا لَمَسْنَا السَّمَاءَ فَوَجَدْنَاهَا مُلِئَتْ حَرَسًا شَدِيدًا وَشُهُبًا
9. وَأَنَّا كُنَّا نَقْعُدُ مِنْهَا مَقَاعِدَ لِلسَّمْعِ ۖ فَمَنْ يَسْتَمِعِ الْآنَ يَجِدْ لَهُ شِهَابًا رَصَدًا
10. وَأَنَّا لَا نَدْرِي أَشَرٌّ أُرِيدَ بِمَنْ فِي الْأَرْضِ أَمْ أَرَادَ بِهِمْ رَبُّهُمْ رَشَدًا
11. وَأَنَّا مِنَّا الصَّالِحُونَ وَمِنَّا دُونَ ذَٰلِكَ ۖ كُنَّا طَرَائِقَ قِدَدًا
12. وَأَنَّا ظَنَنَّا أَنْ لَنْ نُعْجِزَ اللَّهَ فِي الْأَرْضِ وَلَنْ نُعْجِزَهُ هَرَبًا
13. وَأَنَّا لَمَّا سَمِعْنَا الْهُدَىٰ آمَنَّا بِهِ ۖ فَمَنْ يُؤْمِنْ بِرَبِّهِ فَلَا يَخَافُ بَخْسًا وَلَا رَهَقًا
14. وَأَنَّا مِنَّا الْمُسْلِمُونَ وَمِنَّا الْقَاسِطُونَ ۖ فَمَنْ أَسْلَمَ فَأُولَٰئِكَ تَحَرَّوْا رَشَدًا
15. وَأَمَّا الْقَاسِطُونَ فَكَانُوا لِجَهَنَّمَ حَطَبًا
16. وَأَنْ لَوِ اسْتَقَامُوا عَلَى الطَّرِيقَةِ لَأَسْقَيْنَاهُمْ مَاءً غَدَقًا
17. لِنَفْتِنَهُمْ فِيهِ ۚ وَمَنْ يُعْرِضْ عَنْ ذِكْرِ رَبِّهِ يَسْلُكْهُ عَذَابًا صَعَدًا
18. وَأَنَّ الْمَسَاجِدَ لِلَّهِ فَلَا تَدْعُوا مَعَ اللَّهِ أَحَدًا
19. وَأَنَّهُ لَمَّا قَامَ عَبْدُ اللَّهِ يَدْعُوهُ كَادُوا يَكُونُونَ عَلَيْهِ لِبَدًا
20. قُلْ إِنَّمَا أَدْعُو رَبِّي وَلَا أُشْرِكُ بِهِ أَحَدًا
21. قُلْ إِنِّي لَا أَمْلِكُ لَكُمْ ضَرًّا وَلَا رَشَدًا
22. قُلْ إِنِّي لَنْ يُجِيرَنِي مِنَ اللَّهِ أَحَدٌ وَلَنْ أَجِدَ مِنْ دُونِهِ مُلْتَحَدًا
23. إِلَّا بَلَاغًا مِنَ اللَّهِ وَرِسَالَاتِهِ ۚ وَمَنْ يَعْصِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَإِنَّ لَهُ نَارَ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا
24. حَتَّىٰ إِذَا رَأَوْا مَا يُوعَدُونَ فَسَيَعْلَمُونَ مَنْ أَضْعَفُ نَاصِرًا وَأَقَلُّ عَدَدًا
25. قُلْ إِنْ أَدْرِي أَقَرِيبٌ مَا تُوعَدُونَ أَمْ يَجْعَلُ لَهُ رَبِّي أَمَدًا
26. عَالِمُ الْغَيْبِ فَلَا يُظْهِرُ عَلَىٰ غَيْبِهِ أَحَدًا
27. إِلَّا مَنِ ارْتَضَىٰ مِنْ رَسُولٍ فَإِنَّهُ يَسْلُكُ مِنْ بَيْنِ يَدَيْهِ وَمِنْ خَلْفِهِ رَصَدًا
28. لِيَعْلَمَ أَنْ قَدْ أَبْلَغُوا رِسَالَاتِ رَبِّهِمْ وَأَحَاطَ بِمَا لَدَيْهِمْ وَأَحْصَىٰ كُلَّ شَيْءٍ عَدَدًا


सूरह अल-जिन्न हिन्दी अनुवाद अर्थ (मक्की)
अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है
﴾ 1 ﴿ (हे नबी!) कहोः मेरी ओर वह़्यी (प्रकाश्ना[1]) की गयी है कि ध्यान से सुना जिन्नों के एक समूह ने। फिर कहा कि हमने सुना है एक विचित्र क़ुर्आन।
1. सूरह अह़्क़ाफ़ आयतः 29 में इस का वर्णन किया गया है। इस सूरह में यह बताया गया है कि जब जिन्नों ने क़ुर्आन सुना तो आप ने न जिन्नों को देखा और न आप को उस का ज्ञान हुआ। बल्कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को वह़्यी (प्रकाशना) द्वारा इस से सूचित किया गया।

﴾ 2 ﴿ जो दिखाता है सीधी राह, तो हम ईमान लाये उसपर और हम कदापि साझी नहीं बनायेंगे अपने पालनहार के साथ किसी को।

﴾ 3 ﴿ तथा निःसंदेह महान है हमारे पालनहार की महिमा, नहीं बनाई है उसने कोई संगिनी (पत्नी) और न कोई संतान।

﴾ 4 ﴿ तथा निश्चय हम अज्ञान में कह रहे थे अल्लाह के संबंध में झूठी बातें।

﴾ 5 ﴿ और ये कि हमने समझा कि मनुष्य तथा जिन्न नहीं बोल सकते अल्लाह पर कोई झूठ बात।

﴾ 6 ﴿ और वास्तविक्ता ये है कि मनुष्य में से कुछ लोग, शरण माँगते थे जिन्नों में से कुछ लोगों की, तो उन्होंने अधिक कर दिया उनके गर्व को।

﴾ 7 ﴿ और ये कि मनुष्यों ने भी वही समझा, जो तुमने अनुमान लगाया कि कभी अल्लाह फिर जीवित नहीं करेगा, किसी को।

﴾ 8 ﴿ तथा हमने स्पर्श किया आकाश को, तो पाया कि भर दिया गया है प्रहरियों तथा उल्काओं से।

﴾ 9 ﴿ और ये कि हम बैठते थे उस (आकाश) में सुन-गुन लेने के स्थानों में और जो अब सुनने का प्रयास करेगा, वह पायेगा अपने लिए एक उल्का घात में लगा हुआ।

﴾ 10 ﴿ और ये कि हम नहीं समझ पाते कि क्या किसी बुराई का इरादा किया गया धरती वालों के साथ या इरादा किया है, उनके साथ उनके पालनहार ने सीधी राह पर लाने का?

﴾ 11 ﴿ और हममें से कुछ सदाचारी हैं और हममें से कुछ इसके विपरीत हैं। हम विभिन्न प्रकारों में विभाजित हैं।

﴾ 12 ﴿ तथा हमें विश्वास हो गया है कि हम कदापि विवश नहीं कर सकते अल्लाह को धरती में और न विवश कर सकते हैं उसे भागकर।

﴾ 13 ﴿ तथा जब हमने सुनी मार्गदर्शन की बात, तो उसपर ईमान ले आये, अब जो भी ईमान लायेगा अपने पालनहार पर, तो नहीं भय होगा उसे अधिकार हनन का और न किसी अत्याचार का।

﴾ 14 ﴿ और ये कि हममें से कुछ मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं और कुछ अत्याचारी हैं। तो जो आज्ञाकारी हो गये, तो उन्होंने खोज ली सीधी राह।

﴾ 15 ﴿ तथा जो अत्याचारी हैं, तो वे नरक के ईंधन हो गये।

﴾ 16 ﴿ और ये कि यदि वे स्थित रहते सीधी राह ( अर्थात इस्लाम) पर, तो हम सींचते उन्हें भरपूर जल से।

﴾ 17 ﴿ ताकि उनकी परीक्षा लें इसमें, और जो विमुख होगा अपने पालनहार के स्मरण (याद) से, तो उसे उसका पालनहार ग्रस्त करेगा कड़ी यातना में।

﴾ 18 ﴿ और ये कि मस्जिदें[1] अल्लाह के लिए हैं। अतः, मत पुकारो अल्लाह के साथ किसी को।
1. मस्जिद का अर्थ सज्दा करने का स्थान है। भावार्थ यह है कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य की इबादत तथा उस के सिवा किसी से प्रार्थना तथा विनय करना अवैध है।

﴾ 19 ﴿ और ये कि जब खड़ा हुआ अल्लाह का भक्त[1] उसे पुकारता हुआ, तो समीप था कि वे लोग उसपर पिल पड़ते।
1. अल्लाह के भक्त से अभिप्राय मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं। तथा भावार्थ यह है कि जिन्न तथा मनुष्य मिल कर क़ुर्आन तथा इस्लाम की राह से रोकना चाहते हैं।

﴾ 20 ﴿ आप कह दें कि मैं तो केवल अपने पालनहार को पुकारता हूँ और साझी नहीं बनाता उसका किसी अन्य को।

﴾ 21 ﴿ आप कह दें कि मैं अधिकार नहीं रखता तुम्हारे लिए किसी हानि का, न सीधी राह पर लगा देने का।

﴾ 22 ﴿ आप कह दें कि मुझे कदापि नहीं बचा सकेगा अल्लाह से कोई[1] और न मैं पा सकूँगा उसके सिवा कोई शरणगार (बचने का स्थान)।
1. अर्थात यदि मैं उस की अवैज्ञा करूँ और वह मुझे यातना देना चाहे।

﴾ 23 ﴿ परन्तु, पहुँचा सकता हूँ अल्लाह का आदेश तथा उसका उपदेश और जो अवज्ञा करेगा अल्लाह तथा उसके रसूल की, तो वास्तव में उसी के लिए नरक की अग्नि है, जिसमें वह नित्य सदावासी होगा।

﴾ 24 ﴿ यहाँ तक कि जब वे देख लेंगे, जिसका उन्हें वचन दिया जाता है, तो उन्हें विश्वास हो जायेगा कि किसके सहायक निर्बल और किसकी संख्या कम है।

﴾ 25 ﴿ आप कह दें कि मैं नहीं जानता कि समीप है, जिसका वचन तुम्हें दिया जा रहा है अथाव बनायेगा मेरा पालनहार उसके लिए कोई अवधि?

﴾ 26 ﴿ वह ग़ैब (परोक्ष) का ज्ञानी है, अतः, वह अवगत नहीं कराता है अपने परोक्ष पर किसी को।

﴾ 27 ﴿ सिवाये रसूल के, जिसे उसने प्रिय बना लिया है, फिर वह लगा देता है उस वह़्यी के आगे तथा उसके पीछे रक्षक।[1]
1. अर्थात ग़ैब (परोक्ष) का ज्ञान तो अल्लाह ही को है। किन्तु यदि धर्म के विषय में कुछ परोक्ष की बातों की वह़्यी अपने किसी रसूल की ओर करता है तो फ़रिश्तों द्वारा उस की रक्षा की व्यवस्था भी करता है ताकि उस में कुछ मिलाया न जा सके। रसूल को जितना ग़ैब का ज्ञान दिया जाता है वह इस आयत से उजागर हो जाता है। फिर भी कुछ लोग आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को पूरे ग़ैब का ज्ञानी मानते हैं। और आप को गुहारते और सब जगह उपस्थित कहते हैं। और तौह़ीद को आघात पहुँचा कर शिर्क करते हैं।

﴾ 28 ﴿ ताकि वह देख ले कि उन्होंने पहुँचा दिये हैं अपने पालनहार के उपदेश[1] और उसने घेर रखा है, जो कुछ उनके पास है और प्रत्येक वस्तु को गिन रखा है।
1. अर्थात वह रसूलों की दशा को जानता है। उस ने प्रत्येक चीज़ को गिन रखा है ताकि रसूलों के उपदेश पहुँचाने में कोई कमी और अधिक्ता न हो। इस लिये लोगों को रसूलों की बातें मान लेनी चाहिये।
 
सूरह अल जिन्न Surah Jinn Hindi Pronounce Translation Arabic

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सूरह नूर Surah Noor Hindi Pronounce Translation Arabic

सूरह नूर Surah Noor Hindi Pronounce Translation Arabic

सूरह न० 24
सूरह नूर Surah Noor Hindi Pronounce Translation Arabic
सूरह नूर इन हिंदी में 

सूरह नूर अरबी
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
1. سُورَةٌ أَنْزَلْنَاهَا وَفَرَضْنَاهَا وَأَنْزَلْنَا فِيهَا آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ
2. الزَّانِيَةُ وَالزَّانِي فَاجْلِدُوا كُلَّ وَاحِدٍ مِنْهُمَا مِائَةَ جَلْدَةٍ ۖ وَلَا تَأْخُذْكُمْ بِهِمَا رَأْفَةٌ فِي دِينِ اللَّهِ إِنْ كُنْتُمْ تُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ ۖ وَلْيَشْهَدْ عَذَابَهُمَا طَائِفَةٌ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ
3. الزَّانِي لَا يَنْكِحُ إِلَّا زَانِيَةً أَوْ مُشْرِكَةً وَالزَّانِيَةُ لَا يَنْكِحُهَا إِلَّا زَانٍ أَوْ مُشْرِكٌ ۚ وَحُرِّمَ ذَٰلِكَ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ
4. وَالَّذِينَ يَرْمُونَ الْمُحْصَنَاتِ ثُمَّ لَمْ يَأْتُوا بِأَرْبَعَةِ شُهَدَاءَ فَاجْلِدُوهُمْ ثَمَانِينَ جَلْدَةً وَلَا تَقْبَلُوا لَهُمْ شَهَادَةً أَبَدًا ۚ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ
5. إِلَّا الَّذِينَ تَابُوا مِنْ بَعْدِ ذَٰلِكَ وَأَصْلَحُوا فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ
6. وَالَّذِينَ يَرْمُونَ أَزْوَاجَهُمْ وَلَمْ يَكُنْ لَهُمْ شُهَدَاءُ إِلَّا أَنْفُسُهُمْ فَشَهَادَةُ أَحَدِهِمْ أَرْبَعُ شَهَادَاتٍ بِاللَّهِ ۙ إِنَّهُ لَمِنَ الصَّادِقِينَ
7. وَالْخَامِسَةُ أَنَّ لَعْنَتَ اللَّهِ عَلَيْهِ إِنْ كَانَ مِنَ الْكَاذِبِينَ
8. وَيَدْرَأُ عَنْهَا الْعَذَابَ أَنْ تَشْهَدَ أَرْبَعَ شَهَادَاتٍ بِاللَّهِ ۙ إِنَّهُ لَمِنَ الْكَاذِبِينَ
9. وَالْخَامِسَةَ أَنَّ غَضَبَ اللَّهِ عَلَيْهَا إِنْ كَانَ مِنَ الصَّادِقِينَ
10. وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ وَأَنَّ اللَّهَ تَوَّابٌ حَكِيمٌ
11. إِنَّ الَّذِينَ جَاءُوا بِالْإِفْكِ عُصْبَةٌ مِنْكُمْ ۚ لَا تَحْسَبُوهُ شَرًّا لَكُمْ ۖ بَلْ هُوَ خَيْرٌ لَكُمْ ۚ لِكُلِّ امْرِئٍ مِنْهُمْ مَا اكْتَسَبَ مِنَ الْإِثْمِ ۚ وَالَّذِي تَوَلَّىٰ كِبْرَهُ مِنْهُمْ لَهُ عَذَابٌ عَظِيمٌ
12. لَوْلَا إِذْ سَمِعْتُمُوهُ ظَنَّ الْمُؤْمِنُونَ وَالْمُؤْمِنَاتُ بِأَنْفُسِهِمْ خَيْرًا وَقَالُوا هَٰذَا إِفْكٌ مُبِينٌ
13. لَوْلَا جَاءُوا عَلَيْهِ بِأَرْبَعَةِ شُهَدَاءَ ۚ فَإِذْ لَمْ يَأْتُوا بِالشُّهَدَاءِ فَأُولَٰئِكَ عِنْدَ اللَّهِ هُمُ الْكَاذِبُونَ
14. وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ لَمَسَّكُمْ فِي مَا أَفَضْتُمْ فِيهِ عَذَابٌ عَظِيمٌ
15. إِذْ تَلَقَّوْنَهُ بِأَلْسِنَتِكُمْ وَتَقُولُونَ بِأَفْوَاهِكُمْ مَا لَيْسَ لَكُمْ بِهِ عِلْمٌ وَتَحْسَبُونَهُ هَيِّنًا وَهُوَ عِنْدَ اللَّهِ عَظِيمٌ
16. وَلَوْلَا إِذْ سَمِعْتُمُوهُ قُلْتُمْ مَا يَكُونُ لَنَا أَنْ نَتَكَلَّمَ بِهَٰذَا سُبْحَانَكَ هَٰذَا بُهْتَانٌ عَظِيمٌ
17. يَعِظُكُمُ اللَّهُ أَنْ تَعُودُوا لِمِثْلِهِ أَبَدًا إِنْ كُنْتُمْ مُؤْمِنِينَ
18. وَيُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الْآيَاتِ ۚ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
19. إِنَّ الَّذِينَ يُحِبُّونَ أَنْ تَشِيعَ الْفَاحِشَةُ فِي الَّذِينَ آمَنُوا لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ ۚ وَاللَّهُ يَعْلَمُ وَأَنْتُمْ لَا تَعْلَمُونَ
20. وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ وَأَنَّ اللَّهَ رَءُوفٌ رَحِيمٌ
21. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَّبِعُوا خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ ۚ وَمَنْ يَتَّبِعْ خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ فَإِنَّهُ يَأْمُرُ بِالْفَحْشَاءِ وَالْمُنْكَرِ ۚ وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ مَا زَكَىٰ مِنْكُمْ مِنْ أَحَدٍ أَبَدًا وَلَٰكِنَّ اللَّهَ يُزَكِّي مَنْ يَشَاءُ ۗ وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
22. وَلَا يَأْتَلِ أُولُو الْفَضْلِ مِنْكُمْ وَالسَّعَةِ أَنْ يُؤْتُوا أُولِي الْقُرْبَىٰ وَالْمَسَاكِينَ وَالْمُهَاجِرِينَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ ۖ وَلْيَعْفُوا وَلْيَصْفَحُوا ۗ أَلَا تُحِبُّونَ أَنْ يَغْفِرَ اللَّهُ لَكُمْ ۗ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَحِيمٌ
23. إِنَّ الَّذِينَ يَرْمُونَ الْمُحْصَنَاتِ الْغَافِلَاتِ الْمُؤْمِنَاتِ لُعِنُوا فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ
24. يَوْمَ تَشْهَدُ عَلَيْهِمْ أَلْسِنَتُهُمْ وَأَيْدِيهِمْ وَأَرْجُلُهُمْ بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ
25. يَوْمَئِذٍ يُوَفِّيهِمُ اللَّهُ دِينَهُمُ الْحَقَّ وَيَعْلَمُونَ أَنَّ اللَّهَ هُوَ الْحَقُّ الْمُبِينُ
26. الْخَبِيثَاتُ لِلْخَبِيثِينَ وَالْخَبِيثُونَ لِلْخَبِيثَاتِ ۖ وَالطَّيِّبَاتُ لِلطَّيِّبِينَ وَالطَّيِّبُونَ لِلطَّيِّبَاتِ ۚ أُولَٰئِكَ مُبَرَّءُونَ مِمَّا يَقُولُونَ ۖ لَهُمْ مَغْفِرَةٌ وَرِزْقٌ كَرِيمٌ
27. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَدْخُلُوا بُيُوتًا غَيْرَ بُيُوتِكُمْ حَتَّىٰ تَسْتَأْنِسُوا وَتُسَلِّمُوا عَلَىٰ أَهْلِهَا ۚ ذَٰلِكُمْ خَيْرٌ لَكُمْ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ
28. فَإِنْ لَمْ تَجِدُوا فِيهَا أَحَدًا فَلَا تَدْخُلُوهَا حَتَّىٰ يُؤْذَنَ لَكُمْ ۖ وَإِنْ قِيلَ لَكُمُ ارْجِعُوا فَارْجِعُوا ۖ هُوَ أَزْكَىٰ لَكُمْ ۚ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ عَلِيمٌ
29. لَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَنْ تَدْخُلُوا بُيُوتًا غَيْرَ مَسْكُونَةٍ فِيهَا مَتَاعٌ لَكُمْ ۚ وَاللَّهُ يَعْلَمُ مَا تُبْدُونَ وَمَا تَكْتُمُونَ
30. قُلْ لِلْمُؤْمِنِينَ يَغُضُّوا مِنْ أَبْصَارِهِمْ وَيَحْفَظُوا فُرُوجَهُمْ ۚ ذَٰلِكَ أَزْكَىٰ لَهُمْ ۗ إِنَّ اللَّهَ خَبِيرٌ بِمَا يَصْنَعُونَ
31. وَقُلْ لِلْمُؤْمِنَاتِ يَغْضُضْنَ مِنْ أَبْصَارِهِنَّ وَيَحْفَظْنَ فُرُوجَهُنَّ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا مَا ظَهَرَ مِنْهَا ۖ وَلْيَضْرِبْنَ بِخُمُرِهِنَّ عَلَىٰ جُيُوبِهِنَّ ۖ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا لِبُعُولَتِهِنَّ أَوْ آبَائِهِنَّ أَوْ آبَاءِ بُعُولَتِهِنَّ أَوْ أَبْنَائِهِنَّ أَوْ أَبْنَاءِ بُعُولَتِهِنَّ أَوْ إِخْوَانِهِنَّ أَوْ بَنِي إِخْوَانِهِنَّ أَوْ بَنِي أَخَوَاتِهِنَّ أَوْ نِسَائِهِنَّ أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُنَّ أَوِ التَّابِعِينَ غَيْرِ أُولِي الْإِرْبَةِ مِنَ الرِّجَالِ أَوِ الطِّفْلِ الَّذِينَ لَمْ يَظْهَرُوا عَلَىٰ عَوْرَاتِ النِّسَاءِ ۖ وَلَا يَضْرِبْنَ بِأَرْجُلِهِنَّ لِيُعْلَمَ مَا يُخْفِينَ مِنْ زِينَتِهِنَّ ۚ وَتُوبُوا إِلَى اللَّهِ جَمِيعًا أَيُّهَ الْمُؤْمِنُونَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
32. وَأَنْكِحُوا الْأَيَامَىٰ مِنْكُمْ وَالصَّالِحِينَ مِنْ عِبَادِكُمْ وَإِمَائِكُمْ ۚ إِنْ يَكُونُوا فُقَرَاءَ يُغْنِهِمُ اللَّهُ مِنْ فَضْلِهِ ۗ وَاللَّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ
33. وَلْيَسْتَعْفِفِ الَّذِينَ لَا يَجِدُونَ نِكَاحًا حَتَّىٰ يُغْنِيَهُمُ اللَّهُ مِنْ فَضْلِهِ ۗ وَالَّذِينَ يَبْتَغُونَ الْكِتَابَ مِمَّا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ فَكَاتِبُوهُمْ إِنْ عَلِمْتُمْ فِيهِمْ خَيْرًا ۖ وَآتُوهُمْ مِنْ مَالِ اللَّهِ الَّذِي آتَاكُمْ ۚ وَلَا تُكْرِهُوا فَتَيَاتِكُمْ عَلَى الْبِغَاءِ إِنْ أَرَدْنَ تَحَصُّنًا لِتَبْتَغُوا عَرَضَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۚ وَمَنْ يُكْرِهْهُنَّ فَإِنَّ اللَّهَ مِنْ بَعْدِ إِكْرَاهِهِنَّ غَفُورٌ رَحِيمٌ
34. وَلَقَدْ أَنْزَلْنَا إِلَيْكُمْ آيَاتٍ مُبَيِّنَاتٍ وَمَثَلًا مِنَ الَّذِينَ خَلَوْا مِنْ قَبْلِكُمْ وَمَوْعِظَةً لِلْمُتَّقِينَ
35. اللَّهُ نُورُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ مَثَلُ نُورِهِ كَمِشْكَاةٍ فِيهَا مِصْبَاحٌ ۖ الْمِصْبَاحُ فِي زُجَاجَةٍ ۖ الزُّجَاجَةُ كَأَنَّهَا كَوْكَبٌ دُرِّيٌّ يُوقَدُ مِنْ شَجَرَةٍ مُبَارَكَةٍ زَيْتُونَةٍ لَا شَرْقِيَّةٍ وَلَا غَرْبِيَّةٍ يَكَادُ زَيْتُهَا يُضِيءُ وَلَوْ لَمْ تَمْسَسْهُ نَارٌ ۚ نُورٌ عَلَىٰ نُورٍ ۗ يَهْدِي اللَّهُ لِنُورِهِ مَنْ يَشَاءُ ۚ وَيَضْرِبُ اللَّهُ الْأَمْثَالَ لِلنَّاسِ ۗ وَاللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ
36. فِي بُيُوتٍ أَذِنَ اللَّهُ أَنْ تُرْفَعَ وَيُذْكَرَ فِيهَا اسْمُهُ يُسَبِّحُ لَهُ فِيهَا بِالْغُدُوِّ وَالْآصَالِ
37. رِجَالٌ لَا تُلْهِيهِمْ تِجَارَةٌ وَلَا بَيْعٌ عَنْ ذِكْرِ اللَّهِ وَإِقَامِ الصَّلَاةِ وَإِيتَاءِ الزَّكَاةِ ۙ يَخَافُونَ يَوْمًا تَتَقَلَّبُ فِيهِ الْقُلُوبُ وَالْأَبْصَارُ
38. لِيَجْزِيَهُمُ اللَّهُ أَحْسَنَ مَا عَمِلُوا وَيَزِيدَهُمْ مِنْ فَضْلِهِ ۗ وَاللَّهُ يَرْزُقُ مَنْ يَشَاءُ بِغَيْرِ حِسَابٍ
39. وَالَّذِينَ كَفَرُوا أَعْمَالُهُمْ كَسَرَابٍ بِقِيعَةٍ يَحْسَبُهُ الظَّمْآنُ مَاءً حَتَّىٰ إِذَا جَاءَهُ لَمْ يَجِدْهُ شَيْئًا وَوَجَدَ اللَّهَ عِنْدَهُ فَوَفَّاهُ حِسَابَهُ ۗ وَاللَّهُ سَرِيعُ الْحِسَابِ
40. أَوْ كَظُلُمَاتٍ فِي بَحْرٍ لُجِّيٍّ يَغْشَاهُ مَوْجٌ مِنْ فَوْقِهِ مَوْجٌ مِنْ فَوْقِهِ سَحَابٌ ۚ ظُلُمَاتٌ بَعْضُهَا فَوْقَ بَعْضٍ إِذَا أَخْرَجَ يَدَهُ لَمْ يَكَدْ يَرَاهَا ۗ وَمَنْ لَمْ يَجْعَلِ اللَّهُ لَهُ نُورًا فَمَا لَهُ مِنْ نُورٍ
41. أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ يُسَبِّحُ لَهُ مَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَالطَّيْرُ صَافَّاتٍ ۖ كُلٌّ قَدْ عَلِمَ صَلَاتَهُ وَتَسْبِيحَهُ ۗ وَاللَّهُ عَلِيمٌ بِمَا يَفْعَلُونَ
42. وَلِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ وَإِلَى اللَّهِ الْمَصِيرُ
43. أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ يُزْجِي سَحَابًا ثُمَّ يُؤَلِّفُ بَيْنَهُ ثُمَّ يَجْعَلُهُ رُكَامًا فَتَرَى الْوَدْقَ يَخْرُجُ مِنْ خِلَالِهِ وَيُنَزِّلُ مِنَ السَّمَاءِ مِنْ جِبَالٍ فِيهَا مِنْ بَرَدٍ فَيُصِيبُ بِهِ مَنْ يَشَاءُ وَيَصْرِفُهُ عَنْ مَنْ يَشَاءُ ۖ يَكَادُ سَنَا بَرْقِهِ يَذْهَبُ بِالْأَبْصَارِ
44. يُقَلِّبُ اللَّهُ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَعِبْرَةً لِأُولِي الْأَبْصَارِ
45. وَاللَّهُ خَلَقَ كُلَّ دَابَّةٍ مِنْ مَاءٍ ۖ فَمِنْهُمْ مَنْ يَمْشِي عَلَىٰ بَطْنِهِ وَمِنْهُمْ مَنْ يَمْشِي عَلَىٰ رِجْلَيْنِ وَمِنْهُمْ مَنْ يَمْشِي عَلَىٰ أَرْبَعٍ ۚ يَخْلُقُ اللَّهُ مَا يَشَاءُ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
46. لَقَدْ أَنْزَلْنَا آيَاتٍ مُبَيِّنَاتٍ ۚ وَاللَّهُ يَهْدِي مَنْ يَشَاءُ إِلَىٰ صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ
47. وَيَقُولُونَ آمَنَّا بِاللَّهِ وَبِالرَّسُولِ وَأَطَعْنَا ثُمَّ يَتَوَلَّىٰ فَرِيقٌ مِنْهُمْ مِنْ بَعْدِ ذَٰلِكَ ۚ وَمَا أُولَٰئِكَ بِالْمُؤْمِنِينَ
48. وَإِذَا دُعُوا إِلَى اللَّهِ وَرَسُولِهِ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ إِذَا فَرِيقٌ مِنْهُمْ مُعْرِضُونَ
49. وَإِنْ يَكُنْ لَهُمُ الْحَقُّ يَأْتُوا إِلَيْهِ مُذْعِنِينَ
50. أَفِي قُلُوبِهِمْ مَرَضٌ أَمِ ارْتَابُوا أَمْ يَخَافُونَ أَنْ يَحِيفَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ وَرَسُولُهُ ۚ بَلْ أُولَٰئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ
51. إِنَّمَا كَانَ قَوْلَ الْمُؤْمِنِينَ إِذَا دُعُوا إِلَى اللَّهِ وَرَسُولِهِ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ أَنْ يَقُولُوا سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا ۚ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ
52. وَمَنْ يُطِعِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَيَخْشَ اللَّهَ وَيَتَّقْهِ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْفَائِزُونَ
53. وَأَقْسَمُوا بِاللَّهِ جَهْدَ أَيْمَانِهِمْ لَئِنْ أَمَرْتَهُمْ لَيَخْرُجُنَّ ۖ قُلْ لَا تُقْسِمُوا ۖ طَاعَةٌ مَعْرُوفَةٌ ۚ إِنَّ اللَّهَ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ
54. قُلْ أَطِيعُوا اللَّهَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ ۖ فَإِنْ تَوَلَّوْا فَإِنَّمَا عَلَيْهِ مَا حُمِّلَ وَعَلَيْكُمْ مَا حُمِّلْتُمْ ۖ وَإِنْ تُطِيعُوهُ تَهْتَدُوا ۚ وَمَا عَلَى الرَّسُولِ إِلَّا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ
55. وَعَدَ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا مِنْكُمْ وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَيَسْتَخْلِفَنَّهُمْ فِي الْأَرْضِ كَمَا اسْتَخْلَفَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ وَلَيُمَكِّنَنَّ لَهُمْ دِينَهُمُ الَّذِي ارْتَضَىٰ لَهُمْ وَلَيُبَدِّلَنَّهُمْ مِنْ بَعْدِ خَوْفِهِمْ أَمْنًا ۚ يَعْبُدُونَنِي لَا يُشْرِكُونَ بِي شَيْئًا ۚ وَمَنْ كَفَرَ بَعْدَ ذَٰلِكَ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ
56. وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ
57. لَا تَحْسَبَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا مُعْجِزِينَ فِي الْأَرْضِ ۚ وَمَأْوَاهُمُ النَّارُ ۖ وَلَبِئْسَ الْمَصِيرُ
58. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لِيَسْتَأْذِنْكُمُ الَّذِينَ مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ وَالَّذِينَ لَمْ يَبْلُغُوا الْحُلُمَ مِنْكُمْ ثَلَاثَ مَرَّاتٍ ۚ مِنْ قَبْلِ صَلَاةِ الْفَجْرِ وَحِينَ تَضَعُونَ ثِيَابَكُمْ مِنَ الظَّهِيرَةِ وَمِنْ بَعْدِ صَلَاةِ الْعِشَاءِ ۚ ثَلَاثُ عَوْرَاتٍ لَكُمْ ۚ لَيْسَ عَلَيْكُمْ وَلَا عَلَيْهِمْ جُنَاحٌ بَعْدَهُنَّ ۚ طَوَّافُونَ عَلَيْكُمْ بَعْضُكُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ ۚ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الْآيَاتِ ۗ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
59. وَإِذَا بَلَغَ الْأَطْفَالُ مِنْكُمُ الْحُلُمَ فَلْيَسْتَأْذِنُوا كَمَا اسْتَأْذَنَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ ۚ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمْ آيَاتِهِ ۗ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
60. وَالْقَوَاعِدُ مِنَ النِّسَاءِ اللَّاتِي لَا يَرْجُونَ نِكَاحًا فَلَيْسَ عَلَيْهِنَّ جُنَاحٌ أَنْ يَضَعْنَ ثِيَابَهُنَّ غَيْرَ مُتَبَرِّجَاتٍ بِزِينَةٍ ۖ وَأَنْ يَسْتَعْفِفْنَ خَيْرٌ لَهُنَّ ۗ وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
61. لَيْسَ عَلَى الْأَعْمَىٰ حَرَجٌ وَلَا عَلَى الْأَعْرَجِ حَرَجٌ وَلَا عَلَى الْمَرِيضِ حَرَجٌ وَلَا عَلَىٰ أَنْفُسِكُمْ أَنْ تَأْكُلُوا مِنْ بُيُوتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ آبَائِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أُمَّهَاتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ إِخْوَانِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أَخَوَاتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أَعْمَامِكُمْ أَوْ بُيُوتِ عَمَّاتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أَخْوَالِكُمْ أَوْ بُيُوتِ خَالَاتِكُمْ أَوْ مَا مَلَكْتُمْ مَفَاتِحَهُ أَوْ صَدِيقِكُمْ ۚ لَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَنْ تَأْكُلُوا جَمِيعًا أَوْ أَشْتَاتًا ۚ فَإِذَا دَخَلْتُمْ بُيُوتًا فَسَلِّمُوا عَلَىٰ أَنْفُسِكُمْ تَحِيَّةً مِنْ عِنْدِ اللَّهِ مُبَارَكَةً طَيِّبَةً ۚ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الْآيَاتِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ
62. إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ الَّذِينَ آمَنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَإِذَا كَانُوا مَعَهُ عَلَىٰ أَمْرٍ جَامِعٍ لَمْ يَذْهَبُوا حَتَّىٰ يَسْتَأْذِنُوهُ ۚ إِنَّ الَّذِينَ يَسْتَأْذِنُونَكَ أُولَٰئِكَ الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ ۚ فَإِذَا اسْتَأْذَنُوكَ لِبَعْضِ شَأْنِهِمْ فَأْذَنْ لِمَنْ شِئْتَ مِنْهُمْ وَاسْتَغْفِرْ لَهُمُ اللَّهَ ۚ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ
63. لَا تَجْعَلُوا دُعَاءَ الرَّسُولِ بَيْنَكُمْ كَدُعَاءِ بَعْضِكُمْ بَعْضًا ۚ قَدْ يَعْلَمُ اللَّهُ الَّذِينَ يَتَسَلَّلُونَ مِنْكُمْ لِوَاذًا ۚ فَلْيَحْذَرِ الَّذِينَ يُخَالِفُونَ عَنْ أَمْرِهِ أَنْ تُصِيبَهُمْ فِتْنَةٌ أَوْ يُصِيبَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
64. أَلَا إِنَّ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ قَدْ يَعْلَمُ مَا أَنْتُمْ عَلَيْهِ وَيَوْمَ يُرْجَعُونَ إِلَيْهِ فَيُنَبِّئُهُمْ بِمَا عَمِلُوا ۗ وَاللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ


सूरह नूर  हिन्दी उच्चारण
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
सूरतुन् अन्ज़ल्नाहा व फ़रज़्नाहा व अन्ज़ल्ना फ़ीहा आयातिम् बय्यिनातिल् लअ़ल्लकुम् तज़क्करून (1)

अज़्ज़ानि – यतु वज़्ज़ानी फ़ज्लिदू कुल – ल् वाहिदिम् – मिन्हुमा मि – अ – त जल्दतिंव् – व ला तअ्खुज्कुम् बिहिमा रअ् – फ़तुन फ़ी दीनिल्लाहि इन् कुन्तुम् तुअ्मिनू – न बिल्लाहि वल्यौमिल् – आखिरि वल्यश् – हद् अ़ज़ाबहुमा ताइ – फ़तुम् मिनल् – मुअ्मिनीन (2)

अज़्जा़नी ला यन्किहु इल्ला जा़नि – यतन् औ मुशिर – कतंव् – वज़्जा़नि – यतु ला यन्किहुहा इल्ला जा़निन् औ मुश्रिकुन् व हुर्रि – म ज़ालि – क अ़लल् – मुअ्मिनीन (3)

वल्लज़ी – न यरमूनल् मुह्सनाति सुम् – म लम् यअतू बि – अर् – ब – अ़ति शु – हदा – अ फ़ज्लिदूहुम् समानी – न जल्दतंव् – व ला तक़्बलू लहुम् शहा – दतन् अ – बदन् व उलाइ – क हुमुल् – फ़ासिकून (4)

इल्लल्लज़ी – न ताबू मिम् – बअ्दि जा़लि – क व अस्लहू फ़ – इन्नल्ला – ह ग़फूरूर्रहीम (5)

वल्लज़ी – न यरम् – न अज़्वाजहुम् व लम् यकुल्लहुम् शु – हदा – उ इल्ला अन्फुसुहुम् फ़ – शहा – दतु अ – हदिहिम् अर – बअु शहादातिम् – बिल्लाहि इन्नहू लमिनस् – सादिक़ीन (6)

वल्ख़ामि – सतु अन् – न लअ् – नतल्लाहि अ़लैहि इन् का – न मिनल् – काज़िबीन (7)

व यद्रउ अ़न्हल् – अ़ज़ा – ब अन् तश्ह – द अर्ब – अ़ शहादातिम् – बिल्लाहि इन्नहू लमिनल् – काज़िबीन (8)

वल्ख़ामि – स – त अन् – न ग – ज़बल्लाहि अ़लैहा इन का – न मिनस् – सादिक़ीन (9)

व लौ ला फ़ज़्लुल्लाहि अ़लैकुम् व रह्मतुहू व अन्नल्ला – ह तव्वाबुन् हकीम (10)

इन्नल्लज़ी – न जाऊ बिल् – इफ़्कि अुस्बतुम् – मिन्कुम् , ला तह्सबूहु शर्रल् – लकुम , बल् हु – व खै़रुल् – लकुम , लिकुल्लिम् – रिइम् – मिन्हुम् मक्त – स – ब मिनल् – इस्मि वल्लज़ी तवल्ला किब्रहू मिन्हुम् लहू अ़ज़ाबुन् अ़ज़ीम (11)

लौ ला इज् समिअ्तुमूहु ज़न्नल् – मुअ्मिनू – न वल् – मुअ्मिनातु बिअन्फुसिहिम् खैरंव् – व कालू हाज़ा इफ़्कुम् – मुबीन (12)

लौ ला जाऊ अ़लैहि बि – अर् – ब – अ़ति शु – हदा – अ फ़ – इज् लम् यअ्तू बिश्शु – हदा – इ फ़ – उलाइ – क अिन्दल्लाहि हुमुल – काज़िबून (13)

व लौ ला फ़ज़्लुल्लाहि अ़लैकुम् व रह्मतुहू फ़िद्दुन्या वल् – आख़िरति ल – मस्सकुम् फ़ीमा अफज़्तुम् फ़ीहि – अ़ज़ाबुन् अज़ीम (14)

इज् तलक़्कौ़नहू बिअल्सि – नतिकुम् व तकूलू – न बिअफ़्वाहिकुम् मा लै – स लकुम् बिही अ़िल्मुंव् – व तहसबूनहू हय्यिनंव् – व हु – व अ़िन्दल्लाहि अ़ज़ीम (15)

व लौ ला इज् समिअ्तुमूहु कुल्तुम् मा यकूनु लना अन् न – तकल्ल – म बिहाज़ा सुब्हान – क हाज़ा बुह्तानुन् अ़ज़ीम (16)

यअिजुकुमुल्लाहु अन् तअूदू लिमिस्लिही अ – बदन् इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन (17)

व युबय्यिनुल्लाहु लकुमुल् – आयाति , वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम (18)

इन्नल्लज़ी – न युहिब्बू – न अन् तशीअ़ल् – फ़ाहि – शतु फ़िल्लज़ी – न आमनू लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीमुन् फ़िद्दुन्या वल् – आख़िरति , वल्लाहु यअ्लमु व अन्तुम् ला तअ्लमून (19)

व लौ ला फ़ज़्लुल्लाहि अ़लैकुम् व रह्मतुहू व अन्नल्ला – ह रऊफुर – रहीम  (20)

या अय्युहल्लज़ी – न आमनू ला तत्तबिअू खु़तुवातिश्शैतानि , व मंय्यत्तबिअ् खुतुवातिश्शैतानि फ़ – इन्नहू यअ्मुरु बिल्फ़हशा – इ वल्मुन्करि , व लौ ला फ़ज़्लुल्लाहि अ़लैकुम् व रह़्मतुहू मा ज़का मिन्कुम् मिन् अ – हदिन् अ – बदंव् – व लाकिन्नल्ला – ह युज़क्की मंय्यशा – उ , वल्लाहु समीअुन् अ़लीम (21)

व ला यअ्तलि उलुल् – फ़ज्लि मिन्कुम् वस्स – अ़ति अंय्युअतू उलिल् – कुरबा वल्मसाकी – न वल्मुहाजिरी – न फ़ी सबीलिल्लाहि वल् – यअ्फू वल् – यस्फ़हू , अला तुहिब्बू – न अंय्यग़्फिरल्लाहु लकुम् , वल्लाहु ग़फूरूर्रहीम (22)

इन्नल्लज़ी – न यरमूनल – मुह्सनातिल् ग़ाफ़िलातिल् – मुअ्मिनाति लुअिनू फिद्दुन्या वल – आख़िरति व लहुम् अ़ज़ाबुन् अ़ज़ीम (23)

यौ – म तश् – हदु अ़लैहिम् अल्सि – नतुहुम् व ऐदीहिम् व अरजुलूहुम् बिमा कानू यअ्मलून (24)

यौ मइज़िंय् – युवफ़्फ़ीहिमुल्लाहु दीनहुमुल् – हक् – क़ व यअ्लमू – न अन्नल्ला – ह हुवल् – हक़्कुल – मुबीन (25)

अल्ख़बीसातु लिल्ख़बीसी – न वल्ख़बीसू – न लिल्ख़बीसाति वत्तय्यिबातु लित्तय्यिबी – न वत्तय्यिबू – न लित्तय्यिबाति उलाइ – क मुबर्रऊ – न मिम्मा यकूलू – न , लहुम् मग्फि – रतुंव् – व रिज़्कुन् करीम (26)

या अय्युहल्लज़ी – न आमनू ला तद्खुलू बुयूतन् गै़ – र बुयूतिकुम् हत्ता तस्तअ्निसू व तुसल्लिमू अ़ला अह़्लिहा , ज़ालिकुम् खै़रुल् – लकुम् लअ़ल्लकुम् तज़क्करून (27)

फ़ – इल्लम् तजिदू फ़ीहा अ – हदन् फ़ला तद्ख़ुलूहा हत्ता युअ् – ज़ – न लकुम् व इन् की – ल लकुमुर्जिअू फ़रजिअू हु – व अज़्का लकुम् , वल्लाहु बिमा तअ्मलू – न अलीम (28)

लै – स अ़लैकुम् जुनाहुन् अन् तद्खुलू बुयूतन् गै़ – र मस्कूनतिन् फ़ीहा मताअुल् – लकुम् , वल्लाहु यअ्लमु मा तुब्दू – न व मा तक्तुमून (29)

कुल लिल् – मुअ्मिनी – न यगुज़्जू मिन् अब्सारिहिम् व यह्फ़जू फुरू – जहुम् , ज़ालि – क अज़्का लहुम् , इन्नल्ला – ह ख़बीरूम् – बिमा यस्नअून (30)

व कुल लिल् – मुअ्मिनाति यग्जुज् – न मिन् अब्सारिहिन् – न व यह्फ़ज् – न फुरू – जहुन् – न व ला युब्दी – न ज़ीन – तहुन् – न इल्ला मा ज़ – ह – र मिन्हा वल्यज्रिब् – न बिखुमुरिहिन् – न अ़ला जुयूबिहिन् – न व ला युब्दी – न जीन – तहुन् – न इल्ला लिबुअ़ू – लतिहिन् – न औ आबाइ – हिन् – न औ आबाइ – बुअू – लतिहिन् – न औ अब्नाइ – हिन् – न औ अब्ना – इ बुअू – लतिहिन् – न औ इख़्वानिहिन् – न औ बनी इख़्वानिहिन् – न औ बनी अ – ख़वातिहिन् – न औ निसाइ – हिन् – न औ मा म – लकत् ऐमानुहुन् – न अवित्ताबिअ़ी – न गै़रि उलिल् – इरबति मिनर् – रिजालि अवित् – तिफ़्लिल्लज़ी – न लम् यज़्हरू अ़ला औरातिन्निसा – इ व ला यज्रिब् – न बि – अर्जुलिहिन् – न लियुअ् – ल – म मा युख्फी – न मिन् ज़ीनतिहिन् – न , व तूबू इलल्लाहि जमीअ़न् अय्युहल – मुअ्मिनू – न लअ़ल्लकुम् तुफ्लिहून (31)

व अन्किहुल – अयामा मिन्कुम् वस्सालिही – न मिन् अिबादिकुम व इमा – इकुम् , इंय्यकूनू फु – करा – अ युग्निहिमुल्लाहु मिन् फ़ज्लिही , वल्लाहु वासिअुन् अ़लीम (32)

वल् – यस्तअ्फिफ़िल्लज़ी – न ला यजिदू – न निकाहन हत्ता युग्नि – यहुमुल्लाहु मिन् फ़ज़्लिही , वल्लज़ी – न यब्तगूनल – किता – ब मिम्मा म – लकत् ऐमानुकुम् फ़कातिबूहुम् इन् अ़लिम्तुम् फ़ीहिम् खैरंव् – व आतूहुम् मिम् – मालिल्लाहिल्लज़ी आताकुम , व ला तुकरिहू फ़ – तयातिकुम अलल्बिगा – इ इन् अरद् – न त – हस्सुनल् – लितब्तगू अ़ – रज़ल – हयातिद्दुन्या , व मंय्युकरिह्हुन् – न फ़ – इन्नल्ला – ह मिम् – बअ्दि इक्राहिहिन् – न गफूरूर् – रहीम (33)

व ल – कद् अन्ज़ल्ना इलैकुम् आयातिम् – मुबय्यिनातिंव् – व म – सलम् – मिनल्लज़ी – न ख़लौ मिन् क़ब्लिकुम् व मौअि – ज़तल् – लिल्मुत्तक़ीन (34)

अल्लाहु नूरूस्समावाति वल्अर्जि , म – सलु नूरिही कमिश्कातिन् फीहा मिस्बाहुन् , अल – मिस्बाहु फ़ी जुजाजतिन् , अज़्जु़जा – जतु क – अन्नहा कौकबुन् दुर्रिय् – युंय्यू – कदु मिन् श – ज – रतिम् मुबार – कतिन् जै़तूनतिल् – ला शर्किय्यतिंव् व ला ग़रबिय्यतिंय् – यकादु जै़तुहा युज़ी – उ व लौ लम् तम्सरहु नारुन् , नूरुन् अला नूरिन् , यह्दिल्लाहु लिनूरिही मंय्यशा – उ , व यज़्रिबुल्लाहुल् – अम्सा – ल लिन्नासि , वल्लाहु बिकुल्लि शैइन् अ़लीम (35)

फ़ी बुयूतिन् अज़िनल्लाहु अन् तुर् – फ़ – अ़ व युज़्क – र फ़ीहस्मुहू युसब्बिहु लहू फ़ीहा बिल् – गुदुव्वि वल् – आसाल (36)

रिजालुल् ला तुल्हीहिम् तिजा – रतुंव् – व ला बैअुन् अ़न् जिक्रिल्लाहि व इकामिस्सलाति व ईताइज़्ज़काति यखा़फू – न यौमन् त – तक़ल्लबु फीहिल् – कुलूबु वल् – अब्सार (37)

लियज्ज़ि – यहुमुल्लाहु अह्स – न मा अ़मिलू व यज़ी – दहुम् मिन् फ़ज्लिही , वल्लाहु यर्जुकु मंय्यशा – उ बिगै़रि हिसाब (38)

वल्लज़ी – न क – फरू अअ्मालुहुम् क – सराबिम् बिकी – अतिंय् यह्सबुहुजू – ज़म्आनु मा – अन् – हत्ता , इजा़ जा – अहू लम् यजिद्हू शैअंव् – व व – जदल्ला – ह अिन्दहू फ़ – वफ़्फा़हु हिसा – बहू , वल्लाहु सरीअुल – हिसाब (39)

औ क – जुलुमातिन् फ़ी बहरिल लुज्जिय्यिंय् – यग्शाहु मौजुम् – मिन् फौकिही मौजुम् – मिन् फौकिही सहाबुन , जुलुमातुम् – बअजुहा फ़ौ – क बअ्ज़िन् , इज़ा अख़र – ज य – दहू लम् य – कद् यराहा , व मल्लम् यज्अ़लिल्लाहु लहू नूरन् फ़मा लहू मिन् – नूर (40)

अलम् त – र अन्नल्ला – ह युसब्बिहु लहू मन् फ़िस्समावाति वल्अर्ज़ि वत्तैरु साफ्फातिन् , कुल्लुन् क़द् अ़लि – म सला – तहू व तस्बी – हहू , वल्लाहु अ़लीमुम् बिमा यफ्अ़लून (41)

व लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्जि व इलल्लाहिल् – मसीर (42)

अलम् त – र अन्नल्ला – ह युज्जी सहाबन् सुम् – म युअल्लिफु बैनहू सुम् – म यज् – अ़लुहू रूकामन् – फ़ – तरल् – वद् – क़ यख़्रूजु मिन् ख़िलालिही व युनज्जिलु मिनस्समा – इ मिन् जिबालिन् फीहा मिम् – ब रदिन् फयुसीबु बिही मंय्यशा – उ व यसरिफुहू अम् – मंय्यशा – उ , यकादु सना बरकिही यज़्हबु बिल्अब्सार (43)

युक़ल्लिबुल्लाहुल्लै – ल वन्नहा – र , इन् – न फी ज़ालि – क लअिब्- रतल् – लिउलिल् – अब्सार (44)

वल्लाहु ख़ – ल – क कुल् – ल दाब्बतिम् मिम् – माइन् फ़ – मिन्हुम् मंय्यम्शी अ़ला बत्निही व मिन्हुम् मंय्यम्शी अ़ला रिज्लैनि व मिन्हुम् मंय्यम्शी अ़ला अर् – बअिन् , यख़्लुकुल्लाहु मा यशा – उ , इन्नल्ला – ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर (45)

ल – क़द् अन्ज़ल्ना आयातिम् – मुबय्यिनातिन् , वल्लाहु यह्दी मंय्यशा – उ इला सिरातिम् – मुस्तकीम (46)

व यकूलू – न आमन्ना बिल्लाहि व बिर्रसूलि व अ – तअ्ना सुम् – म य – तवल्ला फ़रीकुम् – मिन्हुम् मिम् – बअ्दि ज़ालि – क , व मा उलाइ – क बिल् – मुअ्मिनीन (47)

व इज़ा दुअू इलल्लाहि व रसूलिही लि – यह्कु – म बैनहुम् इज़ा फ़रीकुम् – मिन्हुम् मुअ्रिजून (48)

व इंय्यकुल् – लहुमुल् – हक़्कु यअ्तू इलैहि मुज्अ़िनीन (49)

अ – फी कुलूबिहिम् म – रजुन अमिरताबू अम् यखा़फू – न अंय्यहीफ़ल्लाहु अ़लैहिम् व रसूलुहू , बल् उलाइ – क हुमुज्ज़ालिमून  (50)

इन्नमा का – न कौ़लल – मुअ्मिनी – न इज़ा दुअू इलल्लाहि व रसूलिही लि – यह्कु – म बैनहुम् अंय्यकूलू समिअ्ना व अतअ्ना , व उलाइ – क हुमुल् – मुफ्लिहून (51)

व मंय्युतिअिल्ला – ह व रसूलहू व यख़्शल्ला – ह व यत्तक्हि फ़ – उलाइ – क हुमुल् – फ़ाइजून (52)

व अक़्समू बिल्लाहि जह् – द ऐमानिहिम् ल – इन् अमर् – तहुम् ल – यख़्रूजुन् – न , कुल् – ल तुक्सिमू ता – अ़तुम् मअ़्रू – फतुन् , इन्नल्ला – ह ख़बीरुम् – बिमा तअ्मलून (53)

कुल अतीअुल्ला – ह व अतीअुसुर्रसू – ल फ – इन् तवल्लौ फ़ – इन्नमा अ़लैहि मा हुम्मि – ल व अ़लैकुम् मा हुम्मिल्तुम् , व इन् तुतीअूहु तह्तदू , व मा – अ़लर्रसूलि इल्लल् – बलागुल् – मुबीन (54)

व – अ़दल्लाहुल्लज़ी – न आमनू मिन्कुम् व अमिलुस्सालिहाति ल – यस्तख़्लिफ़न्नहुम् फ़िल्अर्जि क – मस्तख़्ल – फ़ल्लज़ी – न मिन् क़ब्लिहिम् व ल – युमक्किनन् – न लहुम् दीनहुमुल्लज़िर् – तज़ा लहुम् व लयुबद्दिलन्नहुम् मिम् – बअ्दि ख़ौफ़िहिम् अम्नन् , यअ्बुदू – ननी ला युश्रिकू़ – न बी शैअन् , व मन् क – फ – र बअ् – द ज़ालि – क फ – उलाइ – क हुमुल् – फ़ासिकून (55)

व अक़ीमुस्सला – त व आतुज़्ज़का – त व अतीअुर्रसू – ल लअ़ल्लकुम् तुर् – हमून (56)

ला तह्स – बन्नल्लज़ी – न क – फरू मुअ्जिज़ी – न फिलअर्जि व मअ् वाहुमुन्नारू , व ल – बिअ्सल् – मसीर (57)

या अय्यु हल्लज़ी – न आमनू लि – यस्तअ्जिनकुमुल्लज़ी – न म – लकत् ऐमानुकुम् वल्लज़ी – न लम् यब्लुगुल – हुलु – म मिन्कुम् सला – स मर्रातिन् मिन् कब्लि सलातिल् – फ़ज्रि व ही – न त – ज़अ़ू – न सिया – बकुम् मिनज़्ज़ही – रति व मिम् – बअ्दि सलातिल् – अिशा – इ , सलासु औ़रातिल् – लकुम् , लै – स अ़लैकुम् व ला अ़लैहिम् जुनाहुम् बअ् – दहुन् – न , तव्वाफू – न अ़लैकुम् बअ्जुकुम् अ़ला बअ्ज़िन् , कज़ालि – क युबय्यिनुल्लाहु लकुमुल् – आयाति , वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम (58)

व इज़ा ब – लगल् – अत् फालु मिन्कुमुल् – हुलु – म फ़ल्यस्तअ्ज़िनू कमस्तअ् – ज़नल्लज़ी – न मिन् कब्लिहिम् , कज़ालि – क युबय्यिनुल्लाहु लकुम् आयातिही , वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम (59)

वल्क़वाअिदु मिनन्निसाइल्लाती ला यरजू – न निकाहन् फलै – स अ़लैहिन् – न जुनाहुन् अंय्य – ज़अ् – न सिया – बहुन् – न गै – र मु – तबर्रिजातिम् – बिज़ी – नतिन् , व अंय्यस्तअ्फ़िफ् – न खै़रुल लहुन् – न , वल्लाहु समीअुन् अलीम (60)

लै – स अ़लल् – अअ्मा ह – रजुंव् – व ला अ़लल् – अअ्रजि ह – रजुंव् – व ला अ़लल् – मरीज़ि ह – रजुंव् – व ला अ़ला अन्फुसिकुम् अन् तअ्कुलू मिम् – बुयूतिकुम् औ बुयूति आबाइकुम् औ बुयूति उम्महातिकुम् औ बुयूति इख़्वानिकुम् औ बुयूति अ – ख़वातिकुम् औ बुयूति अअ्मामिकुम् औ बुयूति अ़म्मातिकुम् औ बुयूति अख़्वालिकुम् औ बुयूति ख़ालातिकुम औ मा मलक्तुम् मफ़ाति – हहू औ सदीक़िकुम् , लै – स अ़लैकुम् जुनाहुन् अन् तअ्कुलू जमीअ़न् औ अश्तातन् , फ़ – इज़ा दख़ल्तुम् बुयूतन् फ़ – सल्लिमू अला अन्फुसिकुम् तहिय्य – तम् मिन् अिन्दिल्लाहि मुबार – कतन् तय्यि – बतन् , कज़ालि – क युबय्यिनुल्लाहु लकुमुल्आयाति लअ़ल्लकुम तअ्किलून (61)

इन्नमल् – मुअ्मिनूनल्लज़ी – न आमनू बिल्लाहि व रसूलिही व इज़ा कानू म – अ़हू अ़ला अम्रिन् जामिअ़िल् लम् यज़्हबू हत्ता यस्तअ्ज़िनूहु , इन्नल्लज़ी – न यस्तअ्ज़िनू – न – क उलाइ – कल्लज़ी – न युअ्मिनू – न बिल्लाहि व रसूलिही फ़ – इज़स्तअ् – ज़नू – क लिबअ्ज़ि शअ्निहिम् फ़अज़ल – लिमन् शिअ् – त मिन्हुम् वस्तग्फिर लहुमुल्ला – ह इन्नल्ला – ह ग़फूरुर् – रहीम (62)

ला तज्अलू दुआ़अर्रसूलि बैनकुम् क – दुआ़ – इ बअ्ज़िकुम् बअ्जन् , कद् यअ्लमुल्लाहुल्लज़ी – न य – तसल्ललू – न मिन्कुम् लिवाज़न् फ़ल्यह्ज़रिल्लज़ी – न युखालिफू – न अन् अम्रिही अन् तुसी – बहुम् फित् – नतुन् औ युसी – बहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम (63)

अला इन् – न लिल्लाहि मा फ़िस्समावाति वल्अर्जि , कद् यअ्लमु मा अन्तुम् अ़लैहि , व यौ – म युर्जअू – न इलैहि फ़युनब्बिउहुम् बिमा अ़मिलू , वल्लाहु बिकुल्लि शैइन् अलीम (64)



सूरह नूर हिन्दी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है
﴾ 1 ﴿ ये एक सूरह है, जिसे हमने उतारा तथा अनिवार्य किया है और उतारी हैं इसमें बहुत-सी खुली आयतें (निशानियाँ), ताकि तुम शिक्षा ग्रहण करो।

﴾ 2 ﴿ व्यभिचारिणी तथा[1] व्यभिचारी, दोनों में से प्रत्येक को सौ कोड़े मारो और तुम्हें उन दोनों पर कोई तरस न आये अल्लाह के धर्म के विषय[2] में, यदि तुम अल्लाह तथा अन्तिम दिन पर ईमान (विश्वास) रखते हो और चाहिए कि उनके दण्ड के समय उपस्थित रहे ईमान वालों का एक[3] गिरोह।
1. व्यभिचार से संबंधित आरंभिक आदेश सूरह निसा, आयत 15 में आ चुका है। अब यहाँ निश्चित रूप से उस का दण्ड नियत कर दिया गया है। आयत में वर्णित सौ कोड़े दण्ड अविवाहित व्यभिचारी तथा व्याभिचारिणी के लिये हैं। आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अविवाहित व्यभिचारी को सौ कोड़े मारने का और एक वर्ष देश से निकाल देने का आदेश देते थे। (सह़ीह़ बुख़ारीः 6831) किन्तु यदि दोनों में कोई विवाहित है तो उस के लिये रज्म (पत्थरों से मार डालने) का दण्ड है। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः मुझ से (शिक्षा) ले लो, मुझ से (शिक्षा) ले लो। अल्लाह ने उन के लिये राह बना दी। अविवाहित के लिये सौ कोड़े और विवाहित के लिये रज्म है। (सह़ीह़ मुस्लिमः 1690, अबूदाऊदः4418) इत्यादि। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने युग में रज्म का दण्ड दिया जिस के सह़ीह़ ह़दीसों में कई उदाहरण हैं। और ख़ुलफ़ाये राशिदीन के युग में भी यही दण्ड दिया गया। और इस पर मुस्लिम समुदाय का इज्मा (मतैक्य) है। व्यभिचार ऐसा घोर पाप है जिस से परिवारिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है। पति-पत्नि को एक दूसरे पर विश्वास नहीं रह जाता। और यदि कोई शिशु जन्म ले तो उस के पालन-पोषण की भीषण समस्या सामने आती है। इसी लिये इस्लाम ने इस का घोर दण्ड रखा है ताकि समाज और समाज वालों को शान्त और सुरक्षित रखा जाये। 2. अर्थात दया भाव के कारण दण्ड देने से न रुक जाओ। 3. ताकि लोग दण्ड से शिक्षा लें।

﴾ 3 ﴿ व्यभिचारी[1] नहीं विवाह करता, परन्तु व्यभिचारिणी अथवा मिश्रणवादी से और व्यभिचारिणी नहीं विवाह करती, परन्तु व्यभिचारी अथवा मिश्रणवादी से और इसे ह़राम (अवैध) कर दिया गया है ईमान वालों पर।
1. आयत का अर्थ यह है कि साधारणतः कुकर्मी विवाह के लिये अपने ही जैसों की ओर आकर्षित होते हैं। अतः व्यभिचारिणी व्यभिचारी से ही विवाह करने में रूचि रखती है। इस में ईमान वालों को सतर्क किया गया है कि जिस प्रकार व्यभिचार महा पाप है उसी प्रकार व्यभिचारियों के साथ विवाह संबन्ध स्थापित करना भी निषेध है। कुछ भाष्यकारों ने यहाँ विवाह का अर्थ व्यभिचार लिया है।

﴾ 4 ﴿ तथा जो आरोप[1] लगायें व्यभिचार का सतवंती स्त्रियों पर, फिर न लायें चार साक्षी, तो उन्हें अस्सी कोड़े मारो और न स्वीकार करो उनका साक्ष्य कभी भी और वे स्वयं अवज्ञाकारी हैं।
1. इस में किसी पवित्र पुरुष या स्त्री पर व्यभिचार का कलंक लगाने का दण्ड बताया गया है कि जो पुरुष अथवा स्त्री किसी पर कलंक लगाये, तो वह चार ऐसे साक्षी लाये जिन्हों ने उन को व्यभिचार करते अपनी आँखों से देखा हो। और यदि वह प्रमाण स्वरूप चार साक्षी न लायें तो उस के तीन आदेश हैः (क) उसे अस्सी कोड़ लगाये जायें। (ख) उस का साक्ष्य कभी स्वीकार न किया जाये। (ग) वह अल्लाह तथा लोगों के समक्ष दुराचारी है।

﴾ 5 ﴿ परन्तु जिन्होंने क्षमा माँग ली इसके पश्चात् तथा अपना सुधार कर लिया, तो निःसंदेह अल्लाह अति क्षमी दयावान्[1] है।
1. सभी विद्वानों का मतैक्य है कि क्षमा याचना से उसे दण्ड (अस्सी कोड़े) से क्षमा नहीं मिलेगी। बल्कि क्षमा के पश्चात् वह भी अवैज्ञाकारी नहीं रह जायेगा, तथा उस का साक्ष्य स्वीकार किया जायेगा। अधिक्तर विद्वानों का यही विचार है।

﴾ 6 ﴿ और जो व्यभिचार का आरोप लगायें अपनी पत्नियों पर और उनके साक्षी न हों,[1] परन्तु वे स्वयं, तो चार साक्ष्य अल्लाह की शपथ लेकर देना है कि वास्तव में वह सच्चा है[2]।
1. अर्थात चार साक्षी। 2. अर्थात आरोप लगाने में।

﴾ 7 ﴿ और पाँचवीं बार ये (कहे) कि उसपर अल्लाह की धिक्कार है, यदि वह झूठा है।

﴾ 8 ﴿ और स्त्री से दण्ड[1] इस प्रकार दूर होगा कि वह चार बार साक्ष्य दे, अल्लाह की शपथ लेकर कि निःसंदेह, वह (पति) मिथ्यावादियों में से है।
1. अर्थात व्यभिचार का दण्ड।

﴾ 9 ﴿ और पाँचवीं बार ये (कहे) कि उसपर अल्लाह की धिक्कार हो, यदि वह सच्चा[1] हो।
1. शरीअत की परिभाषा में इसे “लिआन” कहा जाता है। यह लिआन न्यायालय में अथवा न्यायालय के अधिकारी के समक्ष होना चाहिये। लिआन की माँग पुरुष की ओर से भी हो सकती है और स्त्री की ओर से भी। लिआन के पश्चात् दोनों सदा के लिये अलग हो जायेंगे। लिआन का अर्थ होता होता हैः धिक्कार। और इस में पति और पत्नि दोनों अपने को मिथ्यावादी होने की अवस्था में धिक्कार का पात्र स्वीकार करते हैं। यदि पति अपनी पत्नि के गर्भ का इन्कार करे तब भी लिआन होता है। (बुख़ारीः4746, 4747, 4748)

﴾ 10 ﴿ और यदि तुमपर अल्लाह का अनुग्रह और दया न होती और ये कि अल्लाह अति क्षमी तत्वज्ञ है, (तो समस्या बढ़ जाती)।

﴾ 11 ﴿ वास्तव[1] में, जो कलंक घड़ लाये हैं, (वे) तुम्हारे ही भीतर का एक गिरोह है, तुम इसे बुरा न समझो, बल्कि ये तुम्हारे लिए अच्छा[2] है। उनमें से प्रत्येक के लिए जितना भाग लिया, उतना पाप है और जिसने भार लिया उसके बड़े भाग[3] का, तो उसके लिए बड़ी यातना है।
1. यहाँ से आयत 26 तक उस मिथ्यारोपण का वर्णन किया गया है जो मुनाफ़िक़ों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नी आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) पर बनी मुस्तलिक़ के युध्द में वापसी के समय लगाया था। इस युध्द से वापसी के समय नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक स्थान पर पड़ाव किया। अभी कुछ रात रह गयी थी कि यात्रा की तैयारी होने लगी। उस समय आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) उस स्थान से दूर शौच के लिये गईं और उन का हार टूट कर गिर गया। वह उस की खोज में रह गयीं। सेवकों ने उन की पालकी को सवारी पर यह समझ कर लाद दिया कि वह उस में होंगी। वह आयीं तो वहीं लेट गयीं कि कोई अवश्य खोजने आयेगा। थोड़ी देर में सफ़्वान पुत्र मुअत्तल (रज़ियल्लाहु अन्हु) जो यात्रियों के पीछे उन की गिरी-पड़ी चीज़ों को संभालने का काम करते थे वहाँ आ गये। और इन्ना लिल्लाह पढ़ी, जिस से आप जाग गयीं। और उन को पहचान लिया। क्यों कि उन्हों ने पर्दें का आदेश आने से पहले उन्हें देखा था। उन्हों ने आप को अपने ऊँट पर सवार किया और स्वयं पैदल चल कर यात्रियों से जा मिले। द्विधावादियों ने इस अवसर को उचित जाना, और उन के मुखिया अब्दुल्लाह बिन उबय्य ने कहा कि यह एकांत अकारण नहीं था। और आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) को सफ़्वान के साथ कलंकित कर दिया। और उस के षड्यंत्र में कुछ सच्चे मुसलमान भी आ गये। इस का पूरा विवरण ह़दीस में मिलेगा। (देखियेः सह़ीह़ बुख़ारीः4750) 2. अर्थ यह है कि इस दुःख पर तुम्हें प्रतिफल मिलेगा। 3. इस से तात्पर्य अब्दुल्लाह बिन उबय्य द्विधावादियों का मुखिया है।

﴾ 12 ﴿ क्यों जब उसे ईमान वाले पुरुषों तथा स्त्रियों ने सुना, तो अपने आपमें अच्छा विचार नहीं किया तथा कहा कि ये खुला आरोप है?

﴾ 13 ﴿ वे क्यों नहीं लाये इसपर चार साक्षी? (जब साक्षी नहीं लाये) तो निःसंदेह अल्लाह के समीप वही झूठे हैं।

﴾ 14 ﴿ और यदि तुमपर अल्लाह का अनुग्रह और दया न होती लोक तथा परलोक में, तो जिन बातों में तुम पड़ गये, उनके बदले तुमपर कड़ी यातना आ जाती।

﴾ 15 ﴿ जबकि (बिना सोचे) तुम अपनी ज़बानों पर इसे लाने लगे और अपने मुखों से वह बात कहने लगे, जिसका तुम्हें कोई ज्ञान न था तथा तुम इसे सरल समझ रहे थे, जबकि अल्लाह के के समीप ये बहुत बड़ी बात थी।

﴾ 16 ﴿ और क्यों नहीं जब तुमने इसे सुना, तो कह दिया कि हमारे लिए योग्य नहीं कि ये बात बोलें? हे अल्लाह! तू पवित्र है! ये तो बहुत बड़ा आरोप है।

﴾ 17 ﴿ अल्लाह तुम्हें शिक्षा देता है कि पुनः कभी इस जैसी बात न कहना, यदि तुम ईमान वाले हो।

﴾ 18 ﴿ और अल्लाह उजागर कर रहा है तुम्हारे लिए आयतों (आदेशों) को तथा अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वज्ञ है।

﴾ 19 ﴿ जो लोग चाहते हैं कि उनमें अश्लीलता[1] फैले, जो ईमान लाये हैं, तो उनके लिए दुःखदायी यातना है, लोक तथा परलोक में तथा अल्लाह जानता[2] है और तुम नहीं जानते।
1. अशलीलता, व्यभिचार और व्यभिचार के निर्मूल आरोप दोनों को कहा गया है।

﴾ 20 ﴿ और यदि तुमपर अल्लाह का अनुग्रह तथा उसकी दया न होती, ( तो तुमपर यातना आ जाती)। और वास्तव में, अल्लाह अति करुणामय, दयावान् है।
1. उन के मिथ्यारोपण को।

﴾ 21 ﴿ हे ईमान वालो! शैतान के पद्चिन्हों पर न चलो और जो उसके पदचिन्हों पर चलेगा, तो वह अश्लील कार्य तथा बुराई का ही आदेश देगा और यदि तुमपर अल्लाह का अनुग्रह और उसकी दया न होती, तो तुममें से कोई पवित्र कभी नहीं होता, परन्तु अल्लाह पवित्र करता है, जिसे चाहे और अल्लाह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।

﴾ 22 ﴿ और न शपथ लें[1] तुममें से धनी और सुखी कि नहीं देंगे समीपवर्तियों तथा निर्धनों को और (उन्हें) जो हिजरत कर गये अल्लाह की राह में और चाहिये कि क्षमा कर दें तथा जाने दें! क्या तुम नहीं चाहते कि अल्लाह तुम्हें क्षमा कर दे और अल्लाह अति क्षमी, सहनशील हैं।
1. आदरणीय मिस्तह़ पुत्र उसासा (रज़ियल्लाहु अन्हु) निर्धन और आदरणीय अबू बक्र (रज़ियल्लाहु अन्हु) के समीपवर्ती थे। और वह उन की सहायता किया करते थे। वह भी आदरणीय आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) के विरुध्द आक्षेप में लिप्त हो गये थे। अतः आदरणीय आइशा के निर्दोश होने के बारे में आयतें उतरने के पश्चात् आदरणीय अबू बक्र ने शपथ ली कि अब वह मिस्तह़ की कोई सहायता नहीं करेंगे। उसी पर यह आयत उतरी। और उन्हों ने कहाः निश्चय मैं चाहता हूँ कि अल्लाह मुझे क्षमा कर दे। और पुनः उन की सहायता करने लगे। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4750)

﴾ 23 ﴿ जो लोग आरोप लगाते हैं सतवंती भोली-भाली ईमान वाली स्त्रियों पर, वे धिक्कार दिये गये लोक तथा परलोक में और उन्हीं के लिए बड़ी यातना है।

﴾ 24 ﴿ जिस दिन साक्ष्य (गवाही) देंगी उनकी जीभें, उनके हाथ और उनके पैर, उनके कर्मों की।

﴾ 25 ﴿ उस दिन अल्लाह उन्हें उनका पूरा न्याय पूर्वक बदला देगा तथा वे जान लेंगे कि अल्लाह ही सत्य (तथा सच को) उजागर करने वाला है।

﴾ 26 ﴿ अपवित्र स्त्रियाँ, अपवित्र पुरुषों के लिए हैं तथा अपवित्र पुरुष, अपवित्र स्त्रियों के लिए और पवित्र स्त्रियाँ, पवित्र पुरुषों के लिए हैं तथा पवित्र पुरुष, पवित्र स्त्रियों के[1] लिए। वही निर्दोष हैं उन बातों से, जो वे कहते हैं। उन्हीं के लिए क्षमा तथा सम्मानित जीविका है।
1. इस में यह संकेत है कि जिन पुरुषों तथा स्त्रियों ने आदरणीय आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) पर आरोप लगाया वह मन के मलीन तथा अपवित्र हैं।

﴾ 27 ﴿ हे ईमान वालो[1]! मत प्रवेश करो किसी घर में, अपने घरों के सिवा, यहाँ तक कि अनुमति ले लो और उनके वासियों को सलाम कर[2] लो, ये तुम्हारे लिए उत्तम है, ताकि तुम याद रखो।
1. सूरह के आरंभ में यह आदेश दिये गये थे कि समाज में कोई बुराई हो जाये तो उस का निवारण कैसे किया जाये? अब वह आदेश दिये जा रहे हैं जिन से समाज में बुराईयों को जन्म लेने ही से रोक दिया जाये। 2. ह़दीस में इस का नियम यह बताया गया है कि (द्वार पर दायें या बायें खड़े हो कर) सलाम करो। फिर कहो कि क्या भीतर आ जाऊँ? ऐसे तीन बार करो, और अनुमति न मिलने पर वापिस हो जाओ। (बुख़ारीः 6245, मुस्लिमः2153)

﴾ 28 ﴿ और यदि, उनमें किसी को न पाओ, तो उनमें प्रवेश न करो, यहाँ तक कि तुम्हें अनुमति दे दी जाये और यदि, तुमसे कहा जाये कि वापस हो जाओ, तो वापस हो जाओ, ये तुम्हारे लिए अधिक पवित्र है तथा अल्लाह जो कुछ तुम करते हो, भली-भाँति जानने वाला है।

﴾ 29 ﴿ तुमपर कोई दोष नहीं है कि प्रवेश करो निर्जन घरों में, जिनमें तुम्हारा सामान हो और अल्लाह जानता है, जो कुछ तुम बोलते हो और जो मन में रखते हो।

﴾ 30 ﴿ (हे नबी!) आप ईमान वालों से कहें कि अपनी आँखें नीची रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। ये उनके लिए अधिक पवित्र है, वास्तव में, अल्लाह सूचित है उससे, जो कुछ वे कर रहे हैं।

﴾ 31 ﴿ और ईमान वालियों से कहें कि अपनी आँखें नीची रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें और अपनी शोभा[1] का प्रदर्शन न करें, सिवाय उसके जो प्रकट हो जाये तथा अपनी ओढ़नियाँ अपने वक्षस्थलों (सीनों) पर डाली रहें और अपनी शोभा का प्रदर्शन न करें, परन्तु अपने पतियों के लिए अथवा अपने पिताओं अथवा अपने ससुरों के लिए अथवा अपने पुत्रों[2] अखवा अपने पति के पुत्रों के लिए अथवा अपने भाईयों[3] अथवा भतीजों अथवा अपने भांजों[4] के लिए अथवा अपनी स्त्रियों[5] अथवा अपने दास-दासियों अथवा ऐसे अधीन[6] पुरुषों के लिए, जो किसी और प्रकार का प्रयोजन न रखते हों अथवा उन बच्चों के लिए, जो स्त्रियों की गुप्त बातें ने जानते हों और अपने पैर धरती पर मारती हुई न चलें कि उसका ज्ञान हो जाये, जो शोभा उन्होंने छुपा रखी है और तुमसब मिलकर अल्लाह से क्षमा माँगो, हे ईमान वालो! ताकि तुम सफल हो जाओ।
1. शोभा से तात्पर्य वस्त्र तथा आभूषण हैं। 2. पुत्रों में पौत्र तथा नाती प्रनाती सब सम्मिलित हैं, इस में सगे सौतीले का कोई अन्तर नहीं। 3. भाईयों मे सगे और सौतीले तथा माँ जाये सब भाई आते हैं। 4. भतीजों और भांजों में उन के पुत्र तथा पौत्र और नाती सभी आते हैं। 5. अपनी स्त्रियों से अभिप्रेत मुस्लिम स्त्रियाँ हैं। 6. अर्थात जो अधीन होने के कारण घर की महिलाओं के साथ कोई अनुचित इच्छा का साहस न कर सकेंगे। कुछ ने इस का अर्थ नपुंसक लिया है। (इब्ने कसीर) इस में घर के भीतर उन पर शोभा के प्रदर्शन से रोका गया है जिन से विवाह हो सकता है।

﴾ 32 ﴿ तथा तुम विवाह कर दो[1] अपने में से अविवाहित पुरुषों तथा स्त्रियों का और अपने सदाचारी दासों और अपनी दासियों का, यदि वे निर्धन होंगे, तो अल्लाह उन्हें धनी बना देगा अपने अनूग्रह से और अल्लाह उदार, सर्वज्ञ है।
1. विवाह के विषय में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन हैः “जो मेरी सुन्नत से विमुख होगा वह मुझ से नहीं है।” (बुख़ारीः5063 तथा मुस्लिमः1020)

﴾ 33 ﴿ और उन्हें पवित्र रहना चाहिए, जो विवाह करने का सामर्थ्य नहीं रखते, यहाँ तक कि उन्हें धनी कर दे अल्लाह अपने अनुग्रह से तथा जो स्वाधीनता-लेख की माँग करें, तुम्हारे दास-दासियों में से, तो तुम उन्हें लिख दो, यदि तुम उनमें कुछ भलाई जानो[1] और उन्हें अल्लाह के उस माल से दो, जो उसने तुम्हें प्रदान किया है तथा बाध्य न करो अपनी दासियों को व्यभिचार पर, जब वे पवित्र रहना चाहती हैं,[2] ताकि तुम सांसारिक जीवन का लाभ प्राप्त करो और जो उन्हें बाध्य करेगा, तो अल्लाह उनके बाध्य किये जाने के पश्चात्,[3] अति क्षमी, दयावान् है।
1. इस्लाम ने दास-दासियों की स्वाधीनता के जो नियम बनाये हैं उन में यह भी है कि वह कुछ धनराशि दे कर स्वाधीनता लेख की माँग करें, तो यदि उन में इस धनराशि को चुकाने की योग्यता हो तो आयत में बल दिया गया है कि उन को स्वाधीलता-लेख दे दो। 2. अज्ञानकाल में स्वामी, धन अर्जित करने के लिये अपने दासियों को व्यभिचार के लिये बाध्य करते थे। इस्लाम ने इस व्यवसाय को वर्जिरत कर दिया। ह़दीस में आया है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कुत्ते के मूल्य तथा वैश्या और ज्योतिषी की कमाई को रोक दिया। (बुख़ारीः2237, मुस्लिमः1567) 3. अर्थात दासी से बल पूर्वक व्यभिचार कराने का पाप स्वामी पर होगा, दासी पर नहीं।

﴾ 34 ﴿ तथा हमने तुम्हारी ओर खुली आयतें उतारी हैं और उनका उदाहरण, जो तुमसे पहले गुज़र गये तथा आज्ञाकारियों के लिए शिक्षा।

﴾ 35 ﴿ अल्लाह आकाशों तथा धरती का प्रकाश है, उसके प्रकाश की उपमा ऐसी है, जैसे एक ताखा हो, जिसमें दीप हो, दीप काँच के झाड़ में हो, झाड़ मोती जैसे चमकते तारे के समान हो, वह ऐसे शुभ ज़ैतून के वृक्ष के तेल से जलाया जाता हो, जो न पूर्वी हो और न पश्चिमी, उसका तेल समीप (संभव) है कि स्वयं प्रकाश देने लगे, यद्यपि उसे आग न लगे। प्रकाश पर प्रकाश है। अल्लाह अपने प्रकाश का मार्ग दिखा देता है, जिसे चाहे और अल्लाह लोगों को उदाहरण दे रहा है और अल्लाह प्रत्येक वस्तु से भली-भाँति अवगत है।
1. अर्थात आकाशों तथा धरती की व्यवस्था करता और उन के वासियों को संमार्ग दर्शाता है। और अल्लाह की पुस्तक और उस का मार्ग दर्शन उस का प्रकाश है। यदि उस का प्रकाश न होता तो यह विश्व अन्धेरा होता। फिर कहा कि उस की ज्योति ईमान वालों के दिलों में ऐसे है जैसे किसी ताखा में अति प्रकाशमान दीप रखा हो, जो आगामी वर्णित गुणों से युक्त हो। पूर्वी तथा पश्चिमी न होने का अर्थ यह है कि उस पर पूरे दिन धूप पड़ती हो जिस के कारण उस का तेल अति शुध्द तथा साफ़ हो।

﴾ 36 ﴿ (ये प्रकाश) उन घरों[1] में है, अल्लाह ने जिन्हें ऊँचा करने और उनमें अपने नाम की चर्चा करने का आदेश दिया है, उसकी महिमा का गान करते हैं, जिनमें प्रातः तथा संध्या।
1. इस से तात्पर्य मस्जिदें हैं।

﴾ 37 ﴿ ऐसे लोग, जिन्हें अचेत नहीं करता व्यापार तथा सौदा, अल्लाह के स्मरण, नमाज़ की स्थापना करने और ज़कात देने से। वे उस दिन[1] से डरते हैं जिसमें दिल तथा आँखें उलट जायेँगी।
1. अर्थात प्रलय के दिन।

﴾ 38 ﴿ ताकि अल्लाह उन्हें बदला दे, उनके सत्कर्मों का और उन्हें अधिक प्रदान करे अपने अनुग्रह से और अल्लाह जिसे चाहे, अनगिनत जीविका देता है।

﴾ 39 ﴿ तथा जो काफ़िर[1] हो गये, उनके कर्म उस चमकते सुराब[2] के समान हैं, जो किसी मैदान में हो, जिसे प्यासा पानी समझता हो। परन्तु, जब उसके पास आये, तो कुछ न पाये और वहाँ अल्लाह को पाये, जो उसका पूरा ह़िसाब चुका दे और अल्लाह शीघ्र ह़िसाब लेने वाला है।
1.आयत का अर्थ यह है कि काफ़िरों के कर्म, अल्लाह पर ईमान न होने के कारण अल्लाह के समक्ष व्यर्थ हो जायेंगे। 2. कड़ी गर्मी के समय रेगिस्तान में जो चमकती हुई रेत पानी जैसी लगती है उसे सुराब कहते हैं।

﴾ 40 ﴿ अथवा उन अंधकारों के समान हैं, जो किसी गहरे सागर में हो और जिसपर तरंग छायी हो, जिसके ऊपर तरंग हो, उसके ऊपर बादल हो, अन्धकार पर अन्धकार हो, जब अपना हाथ निकाले, तो उसे भी न देख सके और अल्लाह जिसे प्रकाश न दे, उसके लिए कोई प्रकाश[1] नहीं।
1. अर्थात काफ़िर, अविश्वास और कुकर्मों के अन्धकार में घिरा रहता है। और यह अन्धकार उसे मार्ग दर्शन की ओर नहीं आने देते।

﴾ 41 ﴿ क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह ही की पवित्रता का गान कर रहे हैं, जो आकाशों तथा धरती में हैं तथा पंख फैलाये हुए पक्षी? प्रत्येक ने अपनी बंदगी तथा पवित्रता गान को जान लिया[1] है और अल्लाह भली-भाँति जानने वाला है, जो वे कर रहे हैं।
1. अर्थात तुम भी उस की पवित्रता का गान गाओ। और उस की आज्ञा का पालन करो।

﴾ 42 ﴿ अल्लाह ही के लिए है, आकाशों तथा धरती का राज्य और अल्लाह ही की ओर फिरकर[1] जाना है।
1. अर्थात प्रलय के दिन अपने कर्मों का फल भोगने के लिये।

﴾ 43 ﴿ क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह बादलों को चलाता है, फिर उन्हें परस्पर मिला देता है, फिर उन्हें घंघोर मेघ बना देता है, फिर आप देखते हैं बूँद को, उसके मध्य से निकलती हुई और वही पर्वतों जैसे बादल से ओले बरसाता है, फिर जिसपर चाहे, आपदा उतारता है और जिससे चाहे, फेर देता है। उसकी बिजली की चमक संभव है कि आँखों को उचक ले।

﴾ 44 ﴿ अल्लाह ही रात और दिन को बदलता[1] है। बेशक इसमें बड़ी शिक्षा है, समझ-बूझ वालों के लिए।
1. अर्थात रात के पश्चात दिन और दिन के पश्चात रात होती है। इसी प्रकार कभी दिन बड़ा रात छोटी, और कभी रात बड़ी दिन छोटा हाता है।

﴾ 45 ﴿ अल्लाह ही ने प्रत्येक जीव धारी को पानी से पैदा किया है। तो उनमें से कुछ अपने पेट के बल चलते हैं और कुछ दो पैर पर तथा कुछ चार पैर पर चलते हैं। अल्लाह जो चाहे, पैदा करता है, वास्तव में, वह जो चाहे, कर सकता है।

﴾ 46 ﴿ हमने खुली आयतें (क़ुर्आन) अवतरित कर दी हैं और अल्लाह जिसे चाहता है, सुपथ दिखा देता है।

﴾ 47 ﴿ और[1] वे कहते हैं कि हम अल्लाह तथा रसूल पर ईमान लाये और हम आज्ञाकारी हो गये, फिर मुँह फेर लेता है उनमें से एक गिरोह इसके पश्चात्। वास्तव में, वे ईमान वाले हैं ही नहीं।
1. यहाँ से मुनाफ़िक़ों (द्विधावादियों) की दशा का वर्णन किया जा रहा है, तथा यह बताया जा रहा है कि ईमान के लिये अल्लाह के सभी आदेशों तथा नियमों का पालन आश्यक है। और क़ुर्आन तथा सुन्नत के निर्णय का पालन करना ही ईमान है।

﴾ 48 ﴿ और जब बुलाये जाते हैं, अल्लाह तथा उसके रसूल की ओर, ताकि (रसूल) निर्णय कर दें उनके बीच (विवाद का), तो अकस्मात उनमें से एक गिरोह मुँह फेर लेता है।

﴾ 49 ﴿ और यदि उन्हीं को अधिकार पहुँचता हो, तो आपके पास सिर झुकाये चले आते हैं।

﴾ 50 ﴿ क्या उनके दिलों में रोग है अथवा द्विधा में पड़े हुए हैं अथवा डर रहे हैं कि अल्लाह अत्याचार करेगा, उनपर और उसके रसूल? बल्कि वही अत्याचारी हैं।

﴾ 51 ﴿ ईमान वालों का कथन तो ये है कि जब अल्लाह और उसके रसूल की ओर बुलाये जायें, ताकि आप उनके बीच निर्णँय कर दें, तो कहें कि हमने सुन लिया तथा मान लिया और वही सफल होने वाले हैं।

﴾ 52 ﴿ तथा जो अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करें, अल्लाह का भय रखें और उसकी (यातना से) डरें, तो वही सफल होने वाले हैं।

﴾ 53 ﴿ और इन (द्विधावादियों) ने बलपूर्वक शपथ ली कि यदि आप उन्हें आदेश दें, तो अवश्य वे (घरों से) निकल पड़ेंगे। उनसे कह दें: शपथ न लो। तुम्हारे आज्ञापालन की दशा जानी-पहचानी है। वास्तव में, अल्लाह तुम्हारे कर्मों से सूचित है।

﴾ 54 ﴿ (हे नबी!) आप कह दें कि अल्लाह की आज्ञा का पालन करो तथा रसूल की आज्ञा का पालन करो और यदि वे विमुख हों, तो आपका कर्तव्य केवल वही है, जिसका भार आपपर रखा गया है और तुम्हारा वह है, जिसका भार तुमपर रखा गया है और रसूल का दायित्व केवल खुला आदेश पहुँचा देना है।

﴾ 55 ﴿ अल्लाह ने वचन[1] दिया है उन्हें, जो तुममें से ईमान लायें तथा सुकर्म करें कि उन्हें अवश्य धरती में अधिकार प्रदान करेगा, जैसे उन्हें अधिकार प्रदान किया, जो इनसे पहले थे तथा अवश्य सुदृढ़ कर देगा उनके उस धर्म को, जिसे उनके लिए पसंद किया है तथा उन (की दशा) को उनके भय के पश्चात् शान्ति में बदल देगा, वह मेरी इबादत (वंदना) करते रहें और किसी चीज़ को मेरा साझी न बनायें और जो कुफ़्र करें इसके पश्चात्, तो वही उल्लंघनकारी हैं।
1. इस आयत में अल्लाह ने जो वचन दिया है, वह उस समय पूरा हो गया जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आप के अनुयायियों को जो काफ़िरों से डर रहे थे उन की धरती पर अधिकार दे दिया। और इस्लाम पूरे अरब का धर्म बन गया और यह वचन अब भी है, जो ईमान तथा सत्कर्म के साथ प्रतिबंधित है।

﴾ 56 ﴿ यथा नमाज़ की स्थापना करो, ज़कात दो तथा रसूल की आज्ञा का पालन करो, ताकि तुमपर दया की जाये।

﴾ 57 ﴿ और (हे नबी!) कदापि आप न समझें कि जो काफ़िर हो गये, वे (अल्लाह को) धरती में विवश कर देने वाले हैं और उनका स्थान नरक है और वह बुरा निवास स्थान है।

﴾ 58 ﴿ हे ईमान वालो! तुम[1] से अनुमति लेना आवश्यक है, तुम्हारे स्वामित्व के दास-दासियों को और जो तुममें से (अभी) युवा अवस्था को न पहुँचे हों, तीन समय; फ़ज्र (भोर) की नमाज़ से पहले और जिस समय तुम अपने वस्त्र उतारते हो दोपहर में तथा इशा (रात्रि) की नमाज़ के पश्चात्। ये तीन (एकांत) पर्दे के समय हैं तुम्हारे लिए। (फिर) तुमपर और उनपर कोई दोष नहीं है इनके पश्चात्, तुम अधिक्तर आने-जाने वाले हो एक-दूसरे के पास। अल्लाह तुम्हारे लिए आदेशों का वर्णन कर रहा है और अल्लाह सर्वज्ञ निपुण है।
1. आयतः 27 में आदेश दिया गया है कि जब किसी दूसरे के यहाँ जाओ तो अनुमति ले कर घर में प्रवेश करो। और यहाँ पर आदेश दिया जा रहा है कि स्वयं अपने घर में एक-दूसरे के पास जाने के लिये भी अनुमति लेना तीन समय में आवश्यक है।

﴾ 59 ﴿ और जब तुममें से बच्चे युवा अवस्था को पहुँचें, तो वे भी वैसे ही अनुमति लें, जैसे उनसे पूर्व के (बड़े) अनुमति माँगते हैं, इसी प्रकार, अल्लाह उजागर करता है तुम्हारे लिए अपनी आयतों को तथा अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वज्ञ है।

﴾ 60 ﴿ तथा जो बूढ़ी स्त्रियाँ विवाह की आशा न रखती हों, तो उनपर कोई दोष नहीं कि अपनी (पर्दे की) चादरें उतारकर रख दें, प्रतिबंध ये है कि अपनी शोभी का प्रदर्शन करने वाली न हों और यदि सुरक्षित रहें,[1] तो उनके लिए अच्छ है।
1. अर्थात पर्दे की चादर न उतारें।

﴾ 61 ﴿ अन्धे पर कोई दोष नहीं है, न लंगड़े पर कोई दोष[1] है, न रोगी पर कोई दोष है और न स्वयं तुमपर कि खाओ अपने घरों[2] से, अपने बापों के घरों से, अपनी माँओं के धरों से, अपने भाईयों के घरों से, अपनी बहनों के घरों से, अपने चाचाओं के घरों से, अपनी फूफियों के घरों से, अपने मामाओं के घरों से, अपनी मौसियों के घरों से अथवा जिसकी चाबियों के तुम स्वामी[3] हो अथवा अपने मित्रों के घरों से। तुमपर कोई दोष नहीं, एक साथ खाओ या अलग अलग। फिर जब तुम प्रवेश करो घरों में,[4] तो अपनों को सलाम किया करो, एक आशीर्वाद है अल्लाह की ओर से निर्धारित किया हुआ, जो शुभ पवित्र है। इसी प्रकार, अल्लाह तुम्हारे लिए आयतों का वर्णन करता है, ताकि तुम समझ लो।
1. इस्लाम से पहले विक्लाँगों के साथ खाने पीने को दोष समझा जाता था जिस का निवारण इस आयत में किया गया है। 2. अपने घरों से अभिप्राय अपने पुत्रों के घर हैं जो अपने ही घर होते हैं। 3. अर्थात जो अपनी अनुपस्थिति में तुम्हें रक्षा के लिये अपने घरों की चाबियाँ दे जायें। 4. अर्थात वह साधरण भोजन जो सब के लिये पकाया गया हो। इस में वह भोजन सम्मिलित नहीं जो किसी विशेष व्यक्ति के लिये तैयार किया गया हो।

﴾ 62 ﴿ वास्तव में, ईमान वाले वह हैं, जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लायें और जब आपके साथ किसी सामूहिक कार्य पर होते हैं, तो जाते नहीं, जब तक आपसे अनुमति न लें, वास्तव में, जो आपसे अनुमति लेते हैं, वही अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखते हैं, तो जब वे आपसे अपने किसी कार्य के लिए अनुमति माँगें, तो आप उनमें से जिसे चाहें, अनुमति दें और उनके लिए अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करें। वास्तव में, अल्लाह अति क्षमी दयावान् है।

﴾ 63 ﴿ और तुम मत बनाओ, रसूल के पुकारने को, परस्पर एक-दूसरे को पुकारने जैसा[1], अल्लाह तुममें से उन्हें जानता है, जो सरक जाते हैं, एक-दूसरे की आड़ लेकर। तो उन्हें सावधान रहना चाहिए, जो आपके आदेश का विरोध करते हैं कि उनपर कोई आपदा आ पड़े अथवा उनपर कोई दुःखदायी यातना आ जाये।
1. अर्थताः “हे मुह़म्मद!” न कहो। बल्कि आप को हे अल्लाह के नबी! हे अल्लाह के रसूल! कह कर पुकारो। इस का यह अर्थ भी किया गया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की प्रार्थना को अपनी प्रार्थना के समान न समझो, क्योंकि आप की प्रार्थना स्वीकार कर ली जाती है।

﴾ 64 ﴿ सावधान! अल्लाह ही का है, जो आकाशों तथा धरती में है, वह जानता है, जिस (दशा) पर तुम हो और जिस दिन वे उसकी ओर फेरे जायेंगे, तो उन्हें बता[1] देगा, जो उन्होंने किया है और अल्लाह प्रत्येक चीज़ का अति ज्ञानी है।
1. अर्थात प्रलय के दिन तुम्हें तुम्हारे कर्मों का फल देगा।
 
सूरह नूर Surah Noor Hindi Pronounce Translation Arabic 
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सूरह अल-हश्र Surah Hashr Hindi Pronounce Translation Arabic

सूरह अल-हश्र Surah Hashr Hindi Pronounce Translation Arabic

सूरह अल-हश्र Surah Hashr Hindi Pronounce Translation Arabic
सूरह अल-हश्र अरबी

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
1. سَبَّحَ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۖ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
2. هُوَ الَّذِي أَخْرَجَ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ مِنْ دِيَارِهِمْ لِأَوَّلِ الْحَشْرِ ۚ مَا ظَنَنْتُمْ أَنْ يَخْرُجُوا ۖ وَظَنُّوا أَنَّهُمْ مَانِعَتُهُمْ حُصُونُهُمْ مِنَ اللَّهِ فَأَتَاهُمُ اللَّهُ مِنْ حَيْثُ لَمْ يَحْتَسِبُوا ۖ وَقَذَفَ فِي قُلُوبِهِمُ الرُّعْبَ ۚ يُخْرِبُونَ بُيُوتَهُمْ بِأَيْدِيهِمْ وَأَيْدِي الْمُؤْمِنِينَ فَاعْتَبِرُوا يَا أُولِي الْأَبْصَارِ
3. وَلَوْلَا أَنْ كَتَبَ اللَّهُ عَلَيْهِمُ الْجَلَاءَ لَعَذَّبَهُمْ فِي الدُّنْيَا ۖ وَلَهُمْ فِي الْآخِرَةِ عَذَابُ النَّارِ
4. ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ شَاقُّوا اللَّهَ وَرَسُولَهُ ۖ وَمَنْ يُشَاقِّ اللَّهَ فَإِنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ
5. مَا قَطَعْتُمْ مِنْ لِينَةٍ أَوْ تَرَكْتُمُوهَا قَائِمَةً عَلَىٰ أُصُولِهَا فَبِإِذْنِ اللَّهِ وَلِيُخْزِيَ الْفَاسِقِينَ
6. وَمَا أَفَاءَ اللَّهُ عَلَىٰ رَسُولِهِ مِنْهُمْ فَمَا أَوْجَفْتُمْ عَلَيْهِ مِنْ خَيْلٍ وَلَا رِكَابٍ وَلَٰكِنَّ اللَّهَ يُسَلِّطُ رُسُلَهُ عَلَىٰ مَنْ يَشَاءُ ۚ وَاللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
7. مَا أَفَاءَ اللَّهُ عَلَىٰ رَسُولِهِ مِنْ أَهْلِ الْقُرَىٰ فَلِلَّهِ وَلِلرَّسُولِ وَلِذِي الْقُرْبَىٰ وَالْيَتَامَىٰ وَالْمَسَاكِينِ وَابْنِ السَّبِيلِ كَيْ لَا يَكُونَ دُولَةً بَيْنَ الْأَغْنِيَاءِ مِنْكُمْ ۚ وَمَا آتَاكُمُ الرَّسُولُ فَخُذُوهُ وَمَا نَهَاكُمْ عَنْهُ فَانْتَهُوا ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۖ إِنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ
8. لِلْفُقَرَاءِ الْمُهَاجِرِينَ الَّذِينَ أُخْرِجُوا مِنْ دِيَارِهِمْ وَأَمْوَالِهِمْ يَبْتَغُونَ فَضْلًا مِنَ اللَّهِ وَرِضْوَانًا وَيَنْصُرُونَ اللَّهَ وَرَسُولَهُ ۚ أُولَٰئِكَ هُمُ الصَّادِقُونَ
9. وَالَّذِينَ تَبَوَّءُوا الدَّارَ وَالْإِيمَانَ مِنْ قَبْلِهِمْ يُحِبُّونَ مَنْ هَاجَرَ إِلَيْهِمْ وَلَا يَجِدُونَ فِي صُدُورِهِمْ حَاجَةً مِمَّا أُوتُوا وَيُؤْثِرُونَ عَلَىٰ أَنْفُسِهِمْ وَلَوْ كَانَ بِهِمْ خَصَاصَةٌ ۚ وَمَنْ يُوقَ شُحَّ نَفْسِهِ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ
10. وَالَّذِينَ جَاءُوا مِنْ بَعْدِهِمْ يَقُولُونَ رَبَّنَا اغْفِرْ لَنَا وَلِإِخْوَانِنَا الَّذِينَ سَبَقُونَا بِالْإِيمَانِ وَلَا تَجْعَلْ فِي قُلُوبِنَا غِلًّا لِلَّذِينَ آمَنُوا رَبَّنَا إِنَّكَ رَءُوفٌ رَحِيمٌ
11. أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ نَافَقُوا يَقُولُونَ لِإِخْوَانِهِمُ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ لَئِنْ أُخْرِجْتُمْ لَنَخْرُجَنَّ مَعَكُمْ وَلَا نُطِيعُ فِيكُمْ أَحَدًا أَبَدًا وَإِنْ قُوتِلْتُمْ لَنَنْصُرَنَّكُمْ وَاللَّهُ يَشْهَدُ إِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ
12. لَئِنْ أُخْرِجُوا لَا يَخْرُجُونَ مَعَهُمْ وَلَئِنْ قُوتِلُوا لَا يَنْصُرُونَهُمْ وَلَئِنْ نَصَرُوهُمْ لَيُوَلُّنَّ الْأَدْبَارَ ثُمَّ لَا يُنْصَرُونَ
13. لَأَنْتُمْ أَشَدُّ رَهْبَةً فِي صُدُورِهِمْ مِنَ اللَّهِ ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لَا يَفْقَهُونَ
14. لَا يُقَاتِلُونَكُمْ جَمِيعًا إِلَّا فِي قُرًى مُحَصَّنَةٍ أَوْ مِنْ وَرَاءِ جُدُرٍ ۚ بَأْسُهُمْ بَيْنَهُمْ شَدِيدٌ ۚ تَحْسَبُهُمْ جَمِيعًا وَقُلُوبُهُمْ شَتَّىٰ ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لَا يَعْقِلُونَ
15. كَمَثَلِ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ قَرِيبًا ۖ ذَاقُوا وَبَالَ أَمْرِهِمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
16. كَمَثَلِ الشَّيْطَانِ إِذْ قَالَ لِلْإِنْسَانِ اكْفُرْ فَلَمَّا كَفَرَ قَالَ إِنِّي بَرِيءٌ مِنْكَ إِنِّي أَخَافُ اللَّهَ رَبَّ الْعَالَمِينَ
17. فَكَانَ عَاقِبَتَهُمَا أَنَّهُمَا فِي النَّارِ خَالِدَيْنِ فِيهَا ۚ وَذَٰلِكَ جَزَاءُ الظَّالِمِينَ
18. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَلْتَنْظُرْ نَفْسٌ مَا قَدَّمَتْ لِغَدٍ ۖ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۚ إِنَّ اللَّهَ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ
19. وَلَا تَكُونُوا كَالَّذِينَ نَسُوا اللَّهَ فَأَنْسَاهُمْ أَنْفُسَهُمْ ۚ أُولَٰئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ
20. لَا يَسْتَوِي أَصْحَابُ النَّارِ وَأَصْحَابُ الْجَنَّةِ ۚ أَصْحَابُ الْجَنَّةِ هُمُ الْفَائِزُونَ
21. لَوْ أَنْزَلْنَا هَٰذَا الْقُرْآنَ عَلَىٰ جَبَلٍ لَرَأَيْتَهُ خَاشِعًا مُتَصَدِّعًا مِنْ خَشْيَةِ اللَّهِ ۚ وَتِلْكَ الْأَمْثَالُ نَضْرِبُهَا لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَتَفَكَّرُونَ
22. هُوَ اللَّهُ الَّذِي لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ عَالِمُ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ ۖ هُوَ الرَّحْمَٰنُ الرَّحِيمُ
23. هُوَ اللَّهُ الَّذِي لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ الْمَلِكُ الْقُدُّوسُ السَّلَامُ الْمُؤْمِنُ الْمُهَيْمِنُ الْعَزِيزُ الْجَبَّارُ الْمُتَكَبِّرُ ۚ سُبْحَانَ اللَّهِ عَمَّا يُشْرِكُونَ
24. هُوَ اللَّهُ الْخَالِقُ الْبَارِئُ الْمُصَوِّرُ ۖ لَهُ الْأَسْمَاءُ الْحُسْنَىٰ ۚ يُسَبِّحُ لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ

सूरह अल-हश्र हिन्दी उच्चारण ​​​​​​​
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
सब्ब – ह लिल्लाहि मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्जि व हुवल् अ़ज़ीजुल – हकीम (1)
हुवल्लज़ी अख़ – रजल्लज़ी – न क – फ़रू मिन् अह़्लिल् किताबि मिन् दियारिहिम् लि – अव्वलिल् हशरि , मा ज़नन्तुम् अंय्यख़्रुजू व ज़न्नू अन्नहुम् मानि अ़तुहुम् हुसूनुहुम् मिनल्लाहि फ़ – अताहुमुल्लाहु मिन् हैसु लम् यहतसिबू व क – ज़ – फ़ फ़ी कुलूबिहिमुर्रुअ् ब युखरिबू – न बुयू -तहुम् बि – ऐ दीहिम् व ऐदिल् मुअ्मिनी – न फ़अ्तबिरू या उलिल् – अब्सार (2)
व लौ ला अन् क – तबल्लाहु अ़लैहिमुल् – जला – अ लअ़ज़्ज़ – बहुम् फिद्दुन्या , व लहुम् फ़िल् – आख़िरति अ़ज़ाबुन्नार (3)
ज़ालि – क बि – अन्नहुम् शाक़्कुल्ला – ह व रसूलहू व मंय्युशाक़्क़िल्ला – ह फ़ – इन्नल्ला – ह शदीदुल अिकाब (4)
मा क़ – तअ्तुम् मिल्ली – नतिन् औ तरक्तुमूहा का़इ मतन् अ़ला उसूलिहा फ़बि – इज् निल्लाहि व लियुख़्जि यल् फ़ासिक़ीन (5)
व मा अफ़ा – अल्लाहु अ़ला रसूलिही मिन्हुम् फ़मा औजफ़्तुम् अ़लैहि मिन् खैलिंव् – व ला रिकाबिंव् – व लाकिन्नल्ला – ह युसल्लितु रुसु – लहू अ़ला मंय्यशा – उ , वल्लाहु अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीर (6)
मा अफा – अल्लाहु अ़ला रसूलिही मिन् अहलिल् – कुरा फ़ – लिल्लाहि व लिर्रसूलि व लिज़िल् – कुरबा वल्यतामा वल् मसाकीनि वब्निस्सबीलि कै ला यकू – न दू – लतम् – बैनल् – अग्निया – इ मिन्कुम् , व मा आताकुमुर्रसूलु फ़खुजूहु व मा नहाकुम् अ़न्हु फ़न्तहू वत्तकुल्ला – ह , इन्नल्ला – ह शदीदुल् – अ़िकाब • (7)
लिल्फु – क़राइल् – मुहाजिरीनल्लज़ी – न उख़्रिजू मिन् दियारिहिम् व अम्वालिहिम् यब्तगू – न फ़ज़्लम् मिनल्लाहि व रिजवानंव् – व यन्सुरूनल्ला – ह व रसूलहू , उलाइ – क हुमुस्सादिकून (8)
वल्लज़ी – न त – बब्वउद्दा – र वलईमा – न मिन् क़ब्लिहिम् युहिब्बू – न मन् हाज – र इलैहिम् व ला यजिदू – न फ़ी सुदूरिहिम् हा – जतम् – मिम्मा ऊतू व युअसिरू – न अ़ला अन्फुसिहिम् व लौ का – न बिहिम् ख़सा – सतुन् , व मंय्यू क शुह् – ह नफ़्सिही फ़ – उलाइ – क हुमुल् – मुफ्लिहून (9)
वल्लज़ी – न जाऊ मिम्बअ्दिहिम् यकूलू – न रब्बनग़्फिर लना व लि – इख़्वानिनल्लज़ी – न स – बकूना बिल् – ईमानि व ला तज्अल् फ़ी कुलूबिना गिल्लल् – लिल्लज़ी – न आमनू रब्बना इन्न – क रऊफुर्रहीम • (10)*
अलम् त – र इलल्लज़ी – न नाफ़कू यकूलू – न लि – इख़्वानिहिमुल्लज़ी – न क – फ़रू मिन् अह़्लिल् – किताबि ल – इन् उख़्रिज्तुम् ल – नख़्रुजन – न म – अ़कुम् व ला नुतीअु फ़ीकुम् अ – हदन् अ – बदंव् – व इन् कूतिल्तुम् ल – नन्सुरन्नकुम् , वल्लाहु यश्हदु इन्नहुम् लकाज़िबून (11)
ल – इन् उख़्रिजू ला यख़्रुजू – न म – अ़हुम् व ल – इन् कूतिलू ला यन्सुरूनहुम् व ल – इन् – न – सरूहुम् लयु – वल्लुन्नल् – अदबा – र , सुम् – म ला युन्सरून (12)
ल – अन्तुम् अशद्दु रह् – बतन् फी सुदूरिहिम् मिनल्लाहि , ज़ालि – क बि – अन्नहुम् कौ़मुल – ला यफ़्क़हून (13)
ला युक़ातिलूनकुम् जमीअ़न् इल्ला फ़ी कुरम् मुहस्स – नतिन् औ मिंव्वरा – इ जुदुरिन , बअ्सुहुम् बैनहुम् शदीदुन् , तहसबुहुम् जमीअ़ंव् – व कुलूबुहुम् शत्ता , ज़ालि – क बि – अन्नहुम् कौ़मुल् – ला यअकिलून (14)
क – म – सलिल्लज़ी – न मिन् क़ब्लिहिम् क़रीबन् ज़ाकू व बा – ल अम्रिहिम् व लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम (15)
क – म – सलिश्शैतानि इज् का – ल लिल् – इन्सानिक्फुर फ़ – लम्मा क – फ़ – र का – ल इन्नी बरीउम् – मिन् – क इन्नी अख़ाफुल्ला – ह रब्बल् – आ़लमीन (16)
फ़का – न आ़कि – ब – तहुमा अन्नहुमा फ़िन्नारि ख़ालिदैनि फ़ीहा , व ज़ालि – क जज़ाउज़्ज़ालिमीन (17)*
या अय्युहल्लज़ी – न आमनुत्तकुल्ला – ह वल्तन्जुर् नफ़्सुम् – मा क़द्द – मत् लि – ग़दिन् वत्तकुल्ला – ह , इन्नल्ला – ह ख़बीरुम् – बिमा तअ्मलून (18)
व ला तकूनू कल्लज़ी – न नसुल्ला – ह फ़ – अन्साहुम् अन्फु – सहुम् , उलाइ – क हुमुल् – फ़ासिकून (19)
ला यस्तवी अस्हाबुन्नारि व अस्हाबुल् – जन्नति , अस्हाबुल् – जन्नति हुमुल् – फ़ाइजून (20)
लौ अन्ज़ल्ना हाज़ल – कुरआ – न अ़ला ज – बलिल् – ल – रऐ – तहू ख़ाशिअ़म् मु – तसद्दिअ़म् मिन् ख़श् – यतिल्लाहि , व तिल्कल् – अम्सालु नज्रिबुहा लिन्नासि लअ़ल्लहुम् य – तफ़क्करून (21)
हुवल्लाहुल्लज़ी ला इला – ह इल्ला हु – व आ़लिमुल् – गै़बि वश्शहा – दति हुवर् – रह़्मानुर्रहीम (22)
हुवल्लाहुल्लज़ी ला इला – ह इल्ला हु – व अल्मलिकुल् – कुद्दूसुस् – सलामुल् मुअ्मिनुल् – मुहैमिनुल – अज़ीजुल् जब्बारुल – मु – तकब्बिरु , सुब्हानल्लाहि अ़म्मा युश्रिकून (23)
हुवल्लाहुल् ख़ालिकुल् बारिउल् मुसव्विरु लहुल् अस्मा – उल् – हुस्ना , युसब्बिहु लहू मा फ़िस्समावाति वल्अर्जि व हुवल् अ़ज़ीजुल – हकीम (24)

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सूरह अल-हश्र हिन्दी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है
﴾ 1 ﴿ अल्लाह की पवित्रता का गान किया है उसने, जो भी आकाशों तथा धरती में है और वह प्रभुत्वशाली, गुणी है।

﴾ 2 ﴿ वही है, जिसने अह्ले किताब में से काफ़िरों को उनके घरों से पहले ही आक्रमण में निकाल दिया। तुमने नहीं समझा था कि वे निकल जायेंगे और उन्होंने समझा था कि रक्षक होंगे उनके दुर्ग[1] अल्लाह से। तो आ गया उनके पास अल्लाह (का निर्णय)। ऐसा उन्होंने सोचा भी न था तथा डाल दिया उनके दिलों में भय। वे उजाड़ रहे थे अपने घरों को अपने हाथों से तथा ईमान वालों के हाथों[2] से। तो शिक्षा लो, हे आँख वालो!
1. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जब मदीना पहुँचे तो वहाँ यहूदियों के तीन क़बीले आबाद थेः बनी नज़ीर, बनी क़ुरैज़ा तथा बनी क़ैनुक़ाअ। आप ने उन सभी से संधि कर ली। परन्तु वह इस्लाम के विरुध्द षड्यंत्र रचते रहे। और एक समय जब आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) बनी नज़ीर के पास गये तो उन्होंने ऊपर से एक पत्थर फेंक कर आप को मार डालने की योजना बनाई। जिस से वह़्यी द्वारा अल्लाह ने आप को सूचित कर दिया। उन के इस संधि भंग तथा षड्यंत्र के कारण आप ने उन पर आक्रमण किया। वह कुछ दिन अपने दुर्गों में बंद रहे। अन्ततः उन्होंने प्राण क्षमा के रूप में देश निकाला को स्वीकार किया। और यह मदीना से यहूद का प्रथम देश निकाला था। यहाँ से वह ख़ैबर पहुँचे और आदरणीय उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) के युग में उन्हें फिर देश निकाला दिया गया। और वह वहाँ से शाम चले गये जो ह़श्र का मैदान होगा। 2. जब वे अपने घरों से जाने लगे तो घरों को तोड़-तोड़ कर जो कुछ साथ ले जा सकते थे ले गये। और शेष सामान मुसलमानों ने निकाला।

﴾ 3 ﴿ और यदि अल्लाह ने न लिख दिया होता उन (के भाग्य में) देश निकाला, तो उन्हें यातना दे देता संसार (ही) में तथा उनके लिए अख़िरत (परलोक) में नरक की यातना है।

﴾ 4 ﴿ ये इसलिए कि उन्होंने विरोध किया अल्लाह तथा उसके रसूल का और जो विरोध करेगा अल्लाह का, तो निश्चय अल्लाह कड़ी यातना देने वाला है।

﴾ 5 ﴿ (हे मुसलमानो!) तुमने नहीं काटा[1] कोई खजूर का वृक्ष और न छोड़ा उसे खड़ा अपने तने पर, परन्तु ये सब अल्लाह के आदेश से हुआ और ताकि वह अपमानित करे पथभ्रष्टों को।
1. बनी नज़ीर के घेराव के समय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आदेशानुसार उन के खजूरों के कुछ वृक्ष जला दिये गये और काट दिये गये और कुछ छोड़ दिये गये। ताकि शत्रु की आड़ को समाप्त किया जाये। इस आयत में उसी का वर्णन किया गया है। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4884)

﴾ 6 ﴿ और जो धन दिला दिया अल्लाह ने अपने रसूल को उनसे, तो नहीं दौड़ाये तुमने उसके लिए घोड़े और न ऊँट। परन्तु अल्लाह प्रभुत्व प्रदान कर देता है अपने रसूल को, जिसपर चाहता है तथा अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।

﴾ 7 ﴿ अल्लाह ने जो धन दिलाया है अपने रसूल को इस बस्ती वालों[1] से, वह अल्लाह, रसूल, (आपके) समीपवर्तियों, अनाथों, निर्धनों तथा यात्रियों के लिए है; ताकि वह (धन) फिरता न रह[2] जाये तुम्हारे धनवानों के बीच और जो प्रदान कर दे रसूल, तुम उसे ले लो और रोक दें तुम्हें जिससे, तुम उससे रुक जाओ तथा अल्लाह से डरते रहो, निश्चय अल्लाह कड़ी यातना देने वाला है।
1. अर्थात यहूदी क़बीला बनी नज़ीर से जो धन बिना युध्द के प्राप्त हुआ उस का नियम बताया गया है कि वह पूरा धन इस्लामी बैतुल माल का होगा उसे मुजाहिदों में विभाजित नहीं किया जायेगा। ह़दीस में है कि यह नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के लिये विशेष था जिस से आप अपनी पत्नियों को ख़र्च देते थे। फिर जो बच जाता तो उसे अल्लाह की राह में शस्त्र और सवारी में लगा देते थे। (बुख़ारीः 4885) इस को फ़ेय का माल कहते हैं। जो ग़नीमत के माल से अलग है। 2. इस में इस्लाम की अर्थ व्यवस्था के मूल नियम का वर्णन किय गया है। पूँजी पति व्यवस्था में धन का प्रवाह सदा धनवानों की ओर होता है। और निर्धन दरिद्रता की चक्की में पिसता रहता है।कम्युनिज़्म में धन का प्रवाह सदा शासक वर्ग की ओर होता है। जब कि इस्लाम में धन का प्रवाह निर्धन वर्ग की ओर होता है।

﴾ 8 ﴿ उन निर्धन मुहाजिरों के लिए है, जो निकाल दिये गये अपने घरों तथा धनों से। वे चाहते हैं अल्लाह का अनुग्रह तथा प्रसन्नता और सहायता करते हैं अल्लाह तथा उसके रसूल की, यही सच्चे हैं।

﴾ 9 ﴿ तथा उन लोगों[1] के लिए (भी), जिन्होंने आवास बना लिया इस घर (मदीना) को तथा उन (मुहाजिरों के आने) से पहले ईमान लाये, वे प्रेम करते हैं उनसे, जो हिजरत करके आ गये उनके यहाँ और वे नहीं पाते अपने दिलों में कोई आवश्यक्ता उसकी, जो उन्हें दिया जाये और प्राथमिक्ता देते हैं दूसरों को अपने ऊपर, चाहे स्वयं भूखे[1] हों और जो बचा लिये गये अपने मन की तंगी से, तो वही सफल होने वाले हैं।
1. इस से अभिप्राय मदीना के निवासी अन्सार हैं। जो मुहाजिरीन के मदीना में आने से पहले ईमान लाये थे। इस का यह अर्थ नहीं है कि वह मुहाजिरीन से पहले ईमान लाये थे। 2. ह़दीस में है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास एक अतिथि आया और कहाः हे अल्लाह के रसूल! मैं भूखा हूँ। आप ने अपनी पत्नियों के पास भेजा तो वहाँ कुछ नहीं था। एक अन्सारी उसे घर ले गये। घर पहुँचे तो पत्नि ने कहाः घर में केवल बच्चों का खाना है। उन्होंने परस्पर प्रामर्श किया कि बच्चों को बहला कर सुला दिया जाये। तथा पत्नी से कहा कि जब अतिथि खाने लगे तो तुम दीप बुझा देना। उस ने ऐसा ही किया। सब भूखे सो गये और अतिथि को खिला दिया। जब वह अन्सारी भोर में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास पहुँचे तो आप ने कहाः अमुक पुरुष (अबू तल्ह़ा) और अमुक स्त्री (उम्मे सुलैम) से अल्लाह प्रसन्न हो गया। और उस ने यह आयत उतारी है। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4889)

﴾ 10 ﴿ और जो आये उनके पश्चात्, वे कहते हैं: हे हमारे पालनहार! हमें क्षमा कर दे तथा हमारे उन भाईयों को, जो हमसे पहले ईमान लाये और न रख हमारे दिलों में कोई बैर उनके लिए, जो ईमान लाये। हे हमारे पालनहार! तू अति करुणामय, दयावान् है।

﴾ 11 ﴿ क्या आपने उन्हें[1] नहीं देखा, जो मुनाफ़िक़ (अवसरवादी) हो गये और कहते हैं अपने अह्ले किताब भाईयों से कि यदि तुम्हें देश निकाला दिया गया, तो हम अवश्य निकल जायेंगे तुम्हारे साथ और नहीं मानेंगे तुम्हारे बारे में किसी की (बात) कभी और यदि तुमसे युध्द हुआ तो हम अवश्य तुम्हारी सहायता करेंगे तथा अल्लाह गवाह है कि वे झूठे हैं।
1. इस से अभिप्राय अब्दुल्लाह बिन उबय्य मुनाफ़िक़ और उस के साथी हैं। जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने यहूद को उन के वचन भंग तथा षड्यंत्र के कारण दस दिन के भीतर निकल जाने की चेतावनी दी, तो उस ने उन से कहा कि तुम अड़ जाओ। मेरे बीस हज़ार शस्त्र युवक तुम्हारे साथ मिल कर युध्द करेंगे। और यदि तुम्हें निकाला गया तो हम भी तुम्हारे साथ निकल जायेंगे। परन्तु यह सब मौखिक बातें थीं।

﴾ 12 ﴿ यदि वे निकाले गये तो ये उनके साथ नहीं निकलेंगे और यदि उनसे युध्द हो, तो वे उनकी सहायता नहीं करेंगे और यदि उनकी सहायता की (भी,) तो अवश्य पीठ दिखा देंगे, फिर कहीं से कोई सहायता नहीं पायेंगे।

﴾ 13 ﴿ निश्चय अधिक भय है तुम्हारा उनके दिलों में अल्लाह (के भय) से। ये इसलिए कि वे समझ-बूझ नहीं रखते।

﴾ 14 ﴿ वे नहीं युध्द करेंगे तुमसे एकत्र होकर, परन्तु ये कि दुर्ग बंद बस्तियों में हों अथवा किसी दीवार की आड़ से। उनका युध्द आपस में बहुत कड़ा है। आप उन्हें एकत्र समझते हैं, जबकि उनके दिल अलग अलग हैं। ये इसलिए कि वे निर्बोध होते हैं।

﴾ 15 ﴿ उनके समान, जो उनसे कुछ ही पूर्व चख चुके[1] हैं अपने किये का स्वाद और इनके लिए दुःखदायी यातना है।
1. इस में संकेत बद्र में मक्का के काफ़िरों तथा क़ैनुक़ाअ क़बीले की पराजय की ओर है।

﴾ 16 ﴿ (उनका उदाहरण) शैतान जैसा है कि वह कहता है मनुष्य से कि कुफ़्र कर, फिर जब वह काफ़िर हो गया, तो कह दिया कि मैं तुझसे विरक्त (अलग) हूँ। मैं तो डरता हूँ अल्लाह, सर्वलोक के पालनहार से।

﴾ 17 ﴿ तो हो गया उन दोनों का दुष्परिणाम ये कि वे दोनों नरक में सदावासी रहेंगे और यही है अत्याचारियों का कुफल।

﴾ 18 ﴿ हे लोगो जो ईमान लाये हो! अल्लाह से डरो और देखना चाहिये प्रत्येक को कि उसने क्या भेजा है कल के लिए तथा डरते रहो अल्लाह से, निश्चय अल्लाह सूचित है उससे, जो तुम करते हो।

﴾ 19 ﴿ और न हो जाओ उनके समान, जो भूल गये अल्लाह को, तो भुला दिया (अल्लाह ने) उन्हें अपने आपसे, यही अवज्ञाकारी हैं।

﴾ 20 ﴿ नहीं बराबर हो सकते नारकी तथा स्वर्गी। स्वार्गी ही वास्तव में सफल होने वाले हैं।

﴾ 21 ﴿ यदि हम अवतरित करते इस क़ुर्आन को किसी पर्वत पर, तो आप उसे देखते कि झुका जा रहा है तथा कण-कण होता जा रहा है, अल्लाह के भय से और इन उदाहरणों का वर्णन हम लोगों के लिए कर रहे हैं, ताकि वे सोच-विचार करें। वह खुले तथा छुपे का जानने वाला है। वही अत्यंत कृपाशील, दयावान् है।

﴾ 22 ﴿ वह अल्लाह ही है, जिसके अतिरिक्त कोई (सत्य) पूज्य नहीं है।

﴾ 23 ﴿ वह अल्लाह ही है, जिसके अतिरिक्त नहीं है[1] कोई सच्चा वंदनीय। वह सबका स्वामी, अत्यंत पवित्र, सर्वथा शान्ति प्रदान करने वाला, रक्षक, प्रभावशाली, शक्तिशाली बल पूर्वक आदेश लागू करने वाला, बड़ाई वाला है। पवित्र है अल्लाह उससे, जिसे वे (उसका) साझी बनाते हैं।
1. इन आयतों में अल्लाह के शुभनामों और गुणों का वर्णन कर के बताया गया है कि वह अल्लाह कैसा है जिस ने यह क़ुर्आन उतारा है। इस आयत में अल्लाह के ग्यारह शुभनामों का वर्णन है। ह़दीस में है कि अल्लाह के निन्नानवे नाम हैं, जो उन्हें गिनेगा तो वह स्वर्ग में जायेगा। (सह़ीह़ बुख़ारीः 7392, सह़ीह़ मुस्लिमः 2677)

﴾ 24 ﴿ वही अल्लाह है, पैदा करने वाला, बनाने वाला, रूप देने वाला। उसी के लिए शुभ नाम हैं, उसकी पवित्रता का वर्णन करता है जो (भी) आकाशों तथा धरती में है और वह प्रभावशाली, ह़िक्मत वाला है।

 
सूरह अल-हश्र Surah Hashr Hindi Pronounce Translation Arabic
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सूरह अल-कहफ़ Surah al Kahf Hindi Pronounce Translation Arabic

सूरह अल-कहफ़ Surah al Kahf Hindi Pronounce Translation Arabic

सूरह अल कह्फ
यह सूरह मक्की है, इस में 110 आयतें हैं।
सूरह अल-कहफ़ Surah al Kahf Hindi Pronounce Translation Arabic

सूरह अल-कहफ़ अरबी
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
1. الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي أَنْزَلَ عَلَىٰ عَبْدِهِ الْكِتَابَ وَلَمْ يَجْعَلْ لَهُ عِوَجًا
2. قَيِّمًا لِيُنْذِرَ بَأْسًا شَدِيدًا مِنْ لَدُنْهُ وَيُبَشِّرَ الْمُؤْمِنِينَ الَّذِينَ يَعْمَلُونَ الصَّالِحَاتِ أَنَّ لَهُمْ أَجْرًا حَسَنًا
3. مَاكِثِينَ فِيهِ أَبَدًا
4. وَيُنْذِرَ الَّذِينَ قَالُوا اتَّخَذَ اللَّهُ وَلَدًا
5. مَا لَهُمْ بِهِ مِنْ عِلْمٍ وَلَا لِآبَائِهِمْ ۚ كَبُرَتْ كَلِمَةً تَخْرُجُ مِنْ أَفْوَاهِهِمْ ۚ إِنْ يَقُولُونَ إِلَّا كَذِبًا
6. فَلَعَلَّكَ بَاخِعٌ نَفْسَكَ عَلَىٰ آثَارِهِمْ إِنْ لَمْ يُؤْمِنُوا بِهَٰذَا الْحَدِيثِ أَسَفًا
7. إِنَّا جَعَلْنَا مَا عَلَى الْأَرْضِ زِينَةً لَهَا لِنَبْلُوَهُمْ أَيُّهُمْ أَحْسَنُ عَمَلًا
8. وَإِنَّا لَجَاعِلُونَ مَا عَلَيْهَا صَعِيدًا جُرُزًا
9. أَمْ حَسِبْتَ أَنَّ أَصْحَابَ الْكَهْفِ وَالرَّقِيمِ كَانُوا مِنْ آيَاتِنَا عَجَبًا
10. إِذْ أَوَى الْفِتْيَةُ إِلَى الْكَهْفِ فَقَالُوا رَبَّنَا آتِنَا مِنْ لَدُنْكَ رَحْمَةً وَهَيِّئْ لَنَا مِنْ أَمْرِنَا رَشَدًا
11. فَضَرَبْنَا عَلَىٰ آذَانِهِمْ فِي الْكَهْفِ سِنِينَ عَدَدًا
12. ثُمَّ بَعَثْنَاهُمْ لِنَعْلَمَ أَيُّ الْحِزْبَيْنِ أَحْصَىٰ لِمَا لَبِثُوا أَمَدًا
13. نَحْنُ نَقُصُّ عَلَيْكَ نَبَأَهُمْ بِالْحَقِّ ۚ إِنَّهُمْ فِتْيَةٌ آمَنُوا بِرَبِّهِمْ وَزِدْنَاهُمْ هُدًى
14. وَرَبَطْنَا عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ إِذْ قَامُوا فَقَالُوا رَبُّنَا رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ لَنْ نَدْعُوَ مِنْ دُونِهِ إِلَٰهًا ۖ لَقَدْ قُلْنَا إِذًا شَطَطًا
15. هَٰؤُلَاءِ قَوْمُنَا اتَّخَذُوا مِنْ دُونِهِ آلِهَةً ۖ لَوْلَا يَأْتُونَ عَلَيْهِمْ بِسُلْطَانٍ بَيِّنٍ ۖ فَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرَىٰ عَلَى اللَّهِ كَذِبًا
16. وَإِذِ اعْتَزَلْتُمُوهُمْ وَمَا يَعْبُدُونَ إِلَّا اللَّهَ فَأْوُوا إِلَى الْكَهْفِ يَنْشُرْ لَكُمْ رَبُّكُمْ مِنْ رَحْمَتِهِ وَيُهَيِّئْ لَكُمْ مِنْ أَمْرِكُمْ مِرْفَقًا
17. وَتَرَى الشَّمْسَ إِذَا طَلَعَتْ تَزَاوَرُ عَنْ كَهْفِهِمْ ذَاتَ الْيَمِينِ وَإِذَا غَرَبَتْ تَقْرِضُهُمْ ذَاتَ الشِّمَالِ وَهُمْ فِي فَجْوَةٍ مِنْهُ ۚ ذَٰلِكَ مِنْ آيَاتِ اللَّهِ ۗ مَنْ يَهْدِ اللَّهُ فَهُوَ الْمُهْتَدِ ۖ وَمَنْ يُضْلِلْ فَلَنْ تَجِدَ لَهُ وَلِيًّا مُرْشِدًا
18. وَتَحْسَبُهُمْ أَيْقَاظًا وَهُمْ رُقُودٌ ۚ وَنُقَلِّبُهُمْ ذَاتَ الْيَمِينِ وَذَاتَ الشِّمَالِ ۖ وَكَلْبُهُمْ بَاسِطٌ ذِرَاعَيْهِ بِالْوَصِيدِ ۚ لَوِ اطَّلَعْتَ عَلَيْهِمْ لَوَلَّيْتَ مِنْهُمْ فِرَارًا وَلَمُلِئْتَ مِنْهُمْ رُعْبًا
19. وَكَذَٰلِكَ بَعَثْنَاهُمْ لِيَتَسَاءَلُوا بَيْنَهُمْ ۚ قَالَ قَائِلٌ مِنْهُمْ كَمْ لَبِثْتُمْ ۖ قَالُوا لَبِثْنَا يَوْمًا أَوْ بَعْضَ يَوْمٍ ۚ قَالُوا رَبُّكُمْ أَعْلَمُ بِمَا لَبِثْتُمْ فَابْعَثُوا أَحَدَكُمْ بِوَرِقِكُمْ هَٰذِهِ إِلَى الْمَدِينَةِ فَلْيَنْظُرْ أَيُّهَا أَزْكَىٰ طَعَامًا فَلْيَأْتِكُمْ بِرِزْقٍ مِنْهُ وَلْيَتَلَطَّفْ وَلَا يُشْعِرَنَّ بِكُمْ أَحَدًا
20. إِنَّهُمْ إِنْ يَظْهَرُوا عَلَيْكُمْ يَرْجُمُوكُمْ أَوْ يُعِيدُوكُمْ فِي مِلَّتِهِمْ وَلَنْ تُفْلِحُوا إِذًا أَبَدًا
21. وَكَذَٰلِكَ أَعْثَرْنَا عَلَيْهِمْ لِيَعْلَمُوا أَنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ وَأَنَّ السَّاعَةَ لَا رَيْبَ فِيهَا إِذْ يَتَنَازَعُونَ بَيْنَهُمْ أَمْرَهُمْ ۖ فَقَالُوا ابْنُوا عَلَيْهِمْ بُنْيَانًا ۖ رَبُّهُمْ أَعْلَمُ بِهِمْ ۚ قَالَ الَّذِينَ غَلَبُوا عَلَىٰ أَمْرِهِمْ لَنَتَّخِذَنَّ عَلَيْهِمْ مَسْجِدًا
22. سَيَقُولُونَ ثَلَاثَةٌ رَابِعُهُمْ كَلْبُهُمْ وَيَقُولُونَ خَمْسَةٌ سَادِسُهُمْ كَلْبُهُمْ رَجْمًا بِالْغَيْبِ ۖ وَيَقُولُونَ سَبْعَةٌ وَثَامِنُهُمْ كَلْبُهُمْ ۚ قُلْ رَبِّي أَعْلَمُ بِعِدَّتِهِمْ مَا يَعْلَمُهُمْ إِلَّا قَلِيلٌ ۗ فَلَا تُمَارِ فِيهِمْ إِلَّا مِرَاءً ظَاهِرًا وَلَا تَسْتَفْتِ فِيهِمْ مِنْهُمْ أَحَدًا
23. وَلَا تَقُولَنَّ لِشَيْءٍ إِنِّي فَاعِلٌ ذَٰلِكَ غَدًا
24. إِلَّا أَنْ يَشَاءَ اللَّهُ ۚ وَاذْكُرْ رَبَّكَ إِذَا نَسِيتَ وَقُلْ عَسَىٰ أَنْ يَهْدِيَنِ رَبِّي لِأَقْرَبَ مِنْ هَٰذَا رَشَدًا
25. وَلَبِثُوا فِي كَهْفِهِمْ ثَلَاثَ مِائَةٍ سِنِينَ وَازْدَادُوا تِسْعًا
26. قُلِ اللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا لَبِثُوا ۖ لَهُ غَيْبُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ أَبْصِرْ بِهِ وَأَسْمِعْ ۚ مَا لَهُمْ مِنْ دُونِهِ مِنْ وَلِيٍّ وَلَا يُشْرِكُ فِي حُكْمِهِ أَحَدًا
27. وَاتْلُ مَا أُوحِيَ إِلَيْكَ مِنْ كِتَابِ رَبِّكَ ۖ لَا مُبَدِّلَ لِكَلِمَاتِهِ وَلَنْ تَجِدَ مِنْ دُونِهِ مُلْتَحَدًا
28. وَاصْبِرْ نَفْسَكَ مَعَ الَّذِينَ يَدْعُونَ رَبَّهُمْ بِالْغَدَاةِ وَالْعَشِيِّ يُرِيدُونَ وَجْهَهُ ۖ وَلَا تَعْدُ عَيْنَاكَ عَنْهُمْ تُرِيدُ زِينَةَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۖ وَلَا تُطِعْ مَنْ أَغْفَلْنَا قَلْبَهُ عَنْ ذِكْرِنَا وَاتَّبَعَ هَوَاهُ وَكَانَ أَمْرُهُ فُرُطًا
29. وَقُلِ الْحَقُّ مِنْ رَبِّكُمْ ۖ فَمَنْ شَاءَ فَلْيُؤْمِنْ وَمَنْ شَاءَ فَلْيَكْفُرْ ۚ إِنَّا أَعْتَدْنَا لِلظَّالِمِينَ نَارًا أَحَاطَ بِهِمْ سُرَادِقُهَا ۚ وَإِنْ يَسْتَغِيثُوا يُغَاثُوا بِمَاءٍ كَالْمُهْلِ يَشْوِي الْوُجُوهَ ۚ بِئْسَ الشَّرَابُ وَسَاءَتْ مُرْتَفَقًا
30. إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ إِنَّا لَا نُضِيعُ أَجْرَ مَنْ أَحْسَنَ عَمَلًا
31. أُولَٰئِكَ لَهُمْ جَنَّاتُ عَدْنٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهِمُ الْأَنْهَارُ يُحَلَّوْنَ فِيهَا مِنْ أَسَاوِرَ مِنْ ذَهَبٍ وَيَلْبَسُونَ ثِيَابًا خُضْرًا مِنْ سُنْدُسٍ وَإِسْتَبْرَقٍ مُتَّكِئِينَ فِيهَا عَلَى الْأَرَائِكِ ۚ نِعْمَ الثَّوَابُ وَحَسُنَتْ مُرْتَفَقًا
32. وَاضْرِبْ لَهُمْ مَثَلًا رَجُلَيْنِ جَعَلْنَا لِأَحَدِهِمَا جَنَّتَيْنِ مِنْ أَعْنَابٍ وَحَفَفْنَاهُمَا بِنَخْلٍ وَجَعَلْنَا بَيْنَهُمَا زَرْعًا
33. كِلْتَا الْجَنَّتَيْنِ آتَتْ أُكُلَهَا وَلَمْ تَظْلِمْ مِنْهُ شَيْئًا ۚ وَفَجَّرْنَا خِلَالَهُمَا نَهَرًا
34. وَكَانَ لَهُ ثَمَرٌ فَقَالَ لِصَاحِبِهِ وَهُوَ يُحَاوِرُهُ أَنَا أَكْثَرُ مِنْكَ مَالًا وَأَعَزُّ نَفَرًا
35. وَدَخَلَ جَنَّتَهُ وَهُوَ ظَالِمٌ لِنَفْسِهِ قَالَ مَا أَظُنُّ أَنْ تَبِيدَ هَٰذِهِ أَبَدًا
36. وَمَا أَظُنُّ السَّاعَةَ قَائِمَةً وَلَئِنْ رُدِدْتُ إِلَىٰ رَبِّي لَأَجِدَنَّ خَيْرًا مِنْهَا مُنْقَلَبًا
37. قَالَ لَهُ صَاحِبُهُ وَهُوَ يُحَاوِرُهُ أَكَفَرْتَ بِالَّذِي خَلَقَكَ مِنْ تُرَابٍ ثُمَّ مِنْ نُطْفَةٍ ثُمَّ سَوَّاكَ رَجُلًا
38. لَٰكِنَّا هُوَ اللَّهُ رَبِّي وَلَا أُشْرِكُ بِرَبِّي أَحَدًا
39. وَلَوْلَا إِذْ دَخَلْتَ جَنَّتَكَ قُلْتَ مَا شَاءَ اللَّهُ لَا قُوَّةَ إِلَّا بِاللَّهِ ۚ إِنْ تَرَنِ أَنَا أَقَلَّ مِنْكَ مَالًا وَوَلَدًا
40. فَعَسَىٰ رَبِّي أَنْ يُؤْتِيَنِ خَيْرًا مِنْ جَنَّتِكَ وَيُرْسِلَ عَلَيْهَا حُسْبَانًا مِنَ السَّمَاءِ فَتُصْبِحَ صَعِيدًا زَلَقًا
41. أَوْ يُصْبِحَ مَاؤُهَا غَوْرًا فَلَنْ تَسْتَطِيعَ لَهُ طَلَبًا
42. وَأُحِيطَ بِثَمَرِهِ فَأَصْبَحَ يُقَلِّبُ كَفَّيْهِ عَلَىٰ مَا أَنْفَقَ فِيهَا وَهِيَ خَاوِيَةٌ عَلَىٰ عُرُوشِهَا وَيَقُولُ يَا لَيْتَنِي لَمْ أُشْرِكْ بِرَبِّي أَحَدًا
43. وَلَمْ تَكُنْ لَهُ فِئَةٌ يَنْصُرُونَهُ مِنْ دُونِ اللَّهِ وَمَا كَانَ مُنْتَصِرًا
44. هُنَالِكَ الْوَلَايَةُ لِلَّهِ الْحَقِّ ۚ هُوَ خَيْرٌ ثَوَابًا وَخَيْرٌ عُقْبًا
45. وَاضْرِبْ لَهُمْ مَثَلَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا كَمَاءٍ أَنْزَلْنَاهُ مِنَ السَّمَاءِ فَاخْتَلَطَ بِهِ نَبَاتُ الْأَرْضِ فَأَصْبَحَ هَشِيمًا تَذْرُوهُ الرِّيَاحُ ۗ وَكَانَ اللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ مُقْتَدِرًا
46. الْمَالُ وَالْبَنُونَ زِينَةُ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۖ وَالْبَاقِيَاتُ الصَّالِحَاتُ خَيْرٌ عِنْدَ رَبِّكَ ثَوَابًا وَخَيْرٌ أَمَلًا
47. وَيَوْمَ نُسَيِّرُ الْجِبَالَ وَتَرَى الْأَرْضَ بَارِزَةً وَحَشَرْنَاهُمْ فَلَمْ نُغَادِرْ مِنْهُمْ أَحَدًا
48. وَعُرِضُوا عَلَىٰ رَبِّكَ صَفًّا لَقَدْ جِئْتُمُونَا كَمَا خَلَقْنَاكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ ۚ بَلْ زَعَمْتُمْ أَلَّنْ نَجْعَلَ لَكُمْ مَوْعِدًا
49. وَوُضِعَ الْكِتَابُ فَتَرَى الْمُجْرِمِينَ مُشْفِقِينَ مِمَّا فِيهِ وَيَقُولُونَ يَا وَيْلَتَنَا مَالِ هَٰذَا الْكِتَابِ لَا يُغَادِرُ صَغِيرَةً وَلَا كَبِيرَةً إِلَّا أَحْصَاهَا ۚ وَوَجَدُوا مَا عَمِلُوا حَاضِرًا ۗ وَلَا يَظْلِمُ رَبُّكَ أَحَدًا
50. وَإِذْ قُلْنَا لِلْمَلَائِكَةِ اسْجُدُوا لِآدَمَ فَسَجَدُوا إِلَّا إِبْلِيسَ كَانَ مِنَ الْجِنِّ فَفَسَقَ عَنْ أَمْرِ رَبِّهِ ۗ أَفَتَتَّخِذُونَهُ وَذُرِّيَّتَهُ أَوْلِيَاءَ مِنْ دُونِي وَهُمْ لَكُمْ عَدُوٌّ ۚ بِئْسَ لِلظَّالِمِينَ بَدَلًا
51. مَا أَشْهَدْتُهُمْ خَلْقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَلَا خَلْقَ أَنْفُسِهِمْ وَمَا كُنْتُ مُتَّخِذَ الْمُضِلِّينَ عَضُدًا
52. وَيَوْمَ يَقُولُ نَادُوا شُرَكَائِيَ الَّذِينَ زَعَمْتُمْ فَدَعَوْهُمْ فَلَمْ يَسْتَجِيبُوا لَهُمْ وَجَعَلْنَا بَيْنَهُمْ مَوْبِقًا
53. وَرَأَى الْمُجْرِمُونَ النَّارَ فَظَنُّوا أَنَّهُمْ مُوَاقِعُوهَا وَلَمْ يَجِدُوا عَنْهَا مَصْرِفًا
54. وَلَقَدْ صَرَّفْنَا فِي هَٰذَا الْقُرْآنِ لِلنَّاسِ مِنْ كُلِّ مَثَلٍ ۚ وَكَانَ الْإِنْسَانُ أَكْثَرَ شَيْءٍ جَدَلًا
55. وَمَا مَنَعَ النَّاسَ أَنْ يُؤْمِنُوا إِذْ جَاءَهُمُ الْهُدَىٰ وَيَسْتَغْفِرُوا رَبَّهُمْ إِلَّا أَنْ تَأْتِيَهُمْ سُنَّةُ الْأَوَّلِينَ أَوْ يَأْتِيَهُمُ الْعَذَابُ قُبُلًا
56. وَمَا نُرْسِلُ الْمُرْسَلِينَ إِلَّا مُبَشِّرِينَ وَمُنْذِرِينَ ۚ وَيُجَادِلُ الَّذِينَ كَفَرُوا بِالْبَاطِلِ لِيُدْحِضُوا بِهِ الْحَقَّ ۖ وَاتَّخَذُوا آيَاتِي وَمَا أُنْذِرُوا هُزُوًا
57. وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنْ ذُكِّرَ بِآيَاتِ رَبِّهِ فَأَعْرَضَ عَنْهَا وَنَسِيَ مَا قَدَّمَتْ يَدَاهُ ۚ إِنَّا جَعَلْنَا عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ أَكِنَّةً أَنْ يَفْقَهُوهُ وَفِي آذَانِهِمْ وَقْرًا ۖ وَإِنْ تَدْعُهُمْ إِلَى الْهُدَىٰ فَلَنْ يَهْتَدُوا إِذًا أَبَدًا
58. وَرَبُّكَ الْغَفُورُ ذُو الرَّحْمَةِ ۖ لَوْ يُؤَاخِذُهُمْ بِمَا كَسَبُوا لَعَجَّلَ لَهُمُ الْعَذَابَ ۚ بَلْ لَهُمْ مَوْعِدٌ لَنْ يَجِدُوا مِنْ دُونِهِ مَوْئِلًا
59. وَتِلْكَ الْقُرَىٰ أَهْلَكْنَاهُمْ لَمَّا ظَلَمُوا وَجَعَلْنَا لِمَهْلِكِهِمْ مَوْعِدًا
60. وَإِذْ قَالَ مُوسَىٰ لِفَتَاهُ لَا أَبْرَحُ حَتَّىٰ أَبْلُغَ مَجْمَعَ الْبَحْرَيْنِ أَوْ أَمْضِيَ حُقُبًا
61. فَلَمَّا بَلَغَا مَجْمَعَ بَيْنِهِمَا نَسِيَا حُوتَهُمَا فَاتَّخَذَ سَبِيلَهُ فِي الْبَحْرِ سَرَبًا
62. فَلَمَّا جَاوَزَا قَالَ لِفَتَاهُ آتِنَا غَدَاءَنَا لَقَدْ لَقِينَا مِنْ سَفَرِنَا هَٰذَا نَصَبًا
63. قَالَ أَرَأَيْتَ إِذْ أَوَيْنَا إِلَى الصَّخْرَةِ فَإِنِّي نَسِيتُ الْحُوتَ وَمَا أَنْسَانِيهُ إِلَّا الشَّيْطَانُ أَنْ أَذْكُرَهُ ۚ وَاتَّخَذَ سَبِيلَهُ فِي الْبَحْرِ عَجَبًا
64. قَالَ ذَٰلِكَ مَا كُنَّا نَبْغِ ۚ فَارْتَدَّا عَلَىٰ آثَارِهِمَا قَصَصًا
65. فَوَجَدَا عَبْدًا مِنْ عِبَادِنَا آتَيْنَاهُ رَحْمَةً مِنْ عِنْدِنَا وَعَلَّمْنَاهُ مِنْ لَدُنَّا عِلْمًا
66. قَالَ لَهُ مُوسَىٰ هَلْ أَتَّبِعُكَ عَلَىٰ أَنْ تُعَلِّمَنِ مِمَّا عُلِّمْتَ رُشْدًا
67. قَالَ إِنَّكَ لَنْ تَسْتَطِيعَ مَعِيَ صَبْرًا
68. وَكَيْفَ تَصْبِرُ عَلَىٰ مَا لَمْ تُحِطْ بِهِ خُبْرًا
69. قَالَ سَتَجِدُنِي إِنْ شَاءَ اللَّهُ صَابِرًا وَلَا أَعْصِي لَكَ أَمْرًا
70. قَالَ فَإِنِ اتَّبَعْتَنِي فَلَا تَسْأَلْنِي عَنْ شَيْءٍ حَتَّىٰ أُحْدِثَ لَكَ مِنْهُ ذِكْرًا
71. فَانْطَلَقَا حَتَّىٰ إِذَا رَكِبَا فِي السَّفِينَةِ خَرَقَهَا ۖ قَالَ أَخَرَقْتَهَا لِتُغْرِقَ أَهْلَهَا لَقَدْ جِئْتَ شَيْئًا إِمْرًا
72. قَالَ أَلَمْ أَقُلْ إِنَّكَ لَنْ تَسْتَطِيعَ مَعِيَ صَبْرًا
73. قَالَ لَا تُؤَاخِذْنِي بِمَا نَسِيتُ وَلَا تُرْهِقْنِي مِنْ أَمْرِي عُسْرًا
74. فَانْطَلَقَا حَتَّىٰ إِذَا لَقِيَا غُلَامًا فَقَتَلَهُ قَالَ أَقَتَلْتَ نَفْسًا زَكِيَّةً بِغَيْرِ نَفْسٍ لَقَدْ جِئْتَ شَيْئًا نُكْرًا
75. قَالَ أَلَمْ أَقُلْ لَكَ إِنَّكَ لَنْ تَسْتَطِيعَ مَعِيَ صَبْرًا
76. قَالَ إِنْ سَأَلْتُكَ عَنْ شَيْءٍ بَعْدَهَا فَلَا تُصَاحِبْنِي ۖ قَدْ بَلَغْتَ مِنْ لَدُنِّي عُذْرًا
77. فَانْطَلَقَا حَتَّىٰ إِذَا أَتَيَا أَهْلَ قَرْيَةٍ اسْتَطْعَمَا أَهْلَهَا فَأَبَوْا أَنْ يُضَيِّفُوهُمَا فَوَجَدَا فِيهَا جِدَارًا يُرِيدُ أَنْ يَنْقَضَّ فَأَقَامَهُ ۖ قَالَ لَوْ شِئْتَ لَاتَّخَذْتَ عَلَيْهِ أَجْرًا
78. قَالَ هَٰذَا فِرَاقُ بَيْنِي وَبَيْنِكَ ۚ سَأُنَبِّئُكَ بِتَأْوِيلِ مَا لَمْ تَسْتَطِعْ عَلَيْهِ صَبْرًا
79. أَمَّا السَّفِينَةُ فَكَانَتْ لِمَسَاكِينَ يَعْمَلُونَ فِي الْبَحْرِ فَأَرَدْتُ أَنْ أَعِيبَهَا وَكَانَ وَرَاءَهُمْ مَلِكٌ يَأْخُذُ كُلَّ سَفِينَةٍ غَصْبًا
80. وَأَمَّا الْغُلَامُ فَكَانَ أَبَوَاهُ مُؤْمِنَيْنِ فَخَشِينَا أَنْ يُرْهِقَهُمَا طُغْيَانًا وَكُفْرًا
81. فَأَرَدْنَا أَنْ يُبْدِلَهُمَا رَبُّهُمَا خَيْرًا مِنْهُ زَكَاةً وَأَقْرَبَ رُحْمًا
82. وَأَمَّا الْجِدَارُ فَكَانَ لِغُلَامَيْنِ يَتِيمَيْنِ فِي الْمَدِينَةِ وَكَانَ تَحْتَهُ كَنْزٌ لَهُمَا وَكَانَ أَبُوهُمَا صَالِحًا فَأَرَادَ رَبُّكَ أَنْ يَبْلُغَا أَشُدَّهُمَا وَيَسْتَخْرِجَا كَنْزَهُمَا رَحْمَةً مِنْ رَبِّكَ ۚ وَمَا فَعَلْتُهُ عَنْ أَمْرِي ۚ ذَٰلِكَ تَأْوِيلُ مَا لَمْ تَسْطِعْ عَلَيْهِ صَبْرًا
83. وَيَسْأَلُونَكَ عَنْ ذِي الْقَرْنَيْنِ ۖ قُلْ سَأَتْلُو عَلَيْكُمْ مِنْهُ ذِكْرًا
84. إِنَّا مَكَّنَّا لَهُ فِي الْأَرْضِ وَآتَيْنَاهُ مِنْ كُلِّ شَيْءٍ سَبَبًا
85. فَأَتْبَعَ سَبَبًا
86. حَتَّىٰ إِذَا بَلَغَ مَغْرِبَ الشَّمْسِ وَجَدَهَا تَغْرُبُ فِي عَيْنٍ حَمِئَةٍ وَوَجَدَ عِنْدَهَا قَوْمًا ۗ قُلْنَا يَا ذَا الْقَرْنَيْنِ إِمَّا أَنْ تُعَذِّبَ وَإِمَّا أَنْ تَتَّخِذَ فِيهِمْ حُسْنًا
87. قَالَ أَمَّا مَنْ ظَلَمَ فَسَوْفَ نُعَذِّبُهُ ثُمَّ يُرَدُّ إِلَىٰ رَبِّهِ فَيُعَذِّبُهُ عَذَابًا نُكْرًا
88. وَأَمَّا مَنْ آمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَلَهُ جَزَاءً الْحُسْنَىٰ ۖ وَسَنَقُولُ لَهُ مِنْ أَمْرِنَا يُسْرًا
89. ثُمَّ أَتْبَعَ سَبَبًا
90. حَتَّىٰ إِذَا بَلَغَ مَطْلِعَ الشَّمْسِ وَجَدَهَا تَطْلُعُ عَلَىٰ قَوْمٍ لَمْ نَجْعَلْ لَهُمْ مِنْ دُونِهَا سِتْرًا
91. كَذَٰلِكَ وَقَدْ أَحَطْنَا بِمَا لَدَيْهِ خُبْرًا
92. ثُمَّ أَتْبَعَ سَبَبًا
93. حَتَّىٰ إِذَا بَلَغَ بَيْنَ السَّدَّيْنِ وَجَدَ مِنْ دُونِهِمَا قَوْمًا لَا يَكَادُونَ يَفْقَهُونَ قَوْلًا
94. قَالُوا يَا ذَا الْقَرْنَيْنِ إِنَّ يَأْجُوجَ وَمَأْجُوجَ مُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ فَهَلْ نَجْعَلُ لَكَ خَرْجًا عَلَىٰ أَنْ تَجْعَلَ بَيْنَنَا وَبَيْنَهُمْ سَدًّا
95. قَالَ مَا مَكَّنِّي فِيهِ رَبِّي خَيْرٌ فَأَعِينُونِي بِقُوَّةٍ أَجْعَلْ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُمْ رَدْمًا
96. آتُونِي زُبَرَ الْحَدِيدِ ۖ حَتَّىٰ إِذَا سَاوَىٰ بَيْنَ الصَّدَفَيْنِ قَالَ انْفُخُوا ۖ حَتَّىٰ إِذَا جَعَلَهُ نَارًا قَالَ آتُونِي أُفْرِغْ عَلَيْهِ قِطْرًا
97. فَمَا اسْطَاعُوا أَنْ يَظْهَرُوهُ وَمَا اسْتَطَاعُوا لَهُ نَقْبًا
98. قَالَ هَٰذَا رَحْمَةٌ مِنْ رَبِّي ۖ فَإِذَا جَاءَ وَعْدُ رَبِّي جَعَلَهُ دَكَّاءَ ۖ وَكَانَ وَعْدُ رَبِّي حَقًّا
99. وَتَرَكْنَا بَعْضَهُمْ يَوْمَئِذٍ يَمُوجُ فِي بَعْضٍ ۖ وَنُفِخَ فِي الصُّورِ فَجَمَعْنَاهُمْ جَمْعًا
100. وَعَرَضْنَا جَهَنَّمَ يَوْمَئِذٍ لِلْكَافِرِينَ عَرْضًا
101. الَّذِينَ كَانَتْ أَعْيُنُهُمْ فِي غِطَاءٍ عَنْ ذِكْرِي وَكَانُوا لَا يَسْتَطِيعُونَ سَمْعًا
102. أَفَحَسِبَ الَّذِينَ كَفَرُوا أَنْ يَتَّخِذُوا عِبَادِي مِنْ دُونِي أَوْلِيَاءَ ۚ إِنَّا أَعْتَدْنَا جَهَنَّمَ لِلْكَافِرِينَ نُزُلًا
103. قُلْ هَلْ نُنَبِّئُكُمْ بِالْأَخْسَرِينَ أَعْمَالًا
104. الَّذِينَ ضَلَّ سَعْيُهُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَهُمْ يَحْسَبُونَ أَنَّهُمْ يُحْسِنُونَ صُنْعًا
105. أُولَٰئِكَ الَّذِينَ كَفَرُوا بِآيَاتِ رَبِّهِمْ وَلِقَائِهِ فَحَبِطَتْ أَعْمَالُهُمْ فَلَا نُقِيمُ لَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَزْنًا
106. ذَٰلِكَ جَزَاؤُهُمْ جَهَنَّمُ بِمَا كَفَرُوا وَاتَّخَذُوا آيَاتِي وَرُسُلِي هُزُوًا
107. إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ كَانَتْ لَهُمْ جَنَّاتُ الْفِرْدَوْسِ نُزُلًا
108. خَالِدِينَ فِيهَا لَا يَبْغُونَ عَنْهَا حِوَلًا
109. قُلْ لَوْ كَانَ الْبَحْرُ مِدَادًا لِكَلِمَاتِ رَبِّي لَنَفِدَ الْبَحْرُ قَبْلَ أَنْ تَنْفَدَ كَلِمَاتُ رَبِّي وَلَوْ جِئْنَا بِمِثْلِهِ مَدَدًا
110. قُلْ إِنَّمَا أَنَا بَشَرٌ مِثْلُكُمْ يُوحَىٰ إِلَيَّ أَنَّمَا إِلَٰهُكُمْ إِلَٰهٌ وَاحِدٌ ۖ فَمَنْ كَانَ يَرْجُو لِقَاءَ رَبِّهِ فَلْيَعْمَلْ عَمَلًا صَالِحًا وَلَا يُشْرِكْ بِعِبَادَةِ رَبِّهِ أَحَدًا


सूरह अल-कहफ़ हिन्दी उच्चारण 
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अल्हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी अन्ज़ – ल अला अब्दिहिल – किता – ब व लम् यज्अ़ल – लहू अि – वजा (1)
क़य्यिमल् लियुन्ज़ि – र बअ्सन् शदीदम् – मिल्लदुन्हु व युबश्शिरल् मुअ्मिनीनल्लज़ी – न यअ्मलू नस्सालिहाति अन् – न लहुम् अज्रन् ह – सना (2)
माकिसी – न फीहि अ – बदा (3)
व युन्जिरल्लज़ी – न कालुत्त – ख़ज़ल्लाहु व – लदा (4)
मा लहुम् बिही मिन् अिल्मिंव् – व ला लि – आबाइहिम् , कबुरत् कलि – मतन् तख्रुजु मिन् अफ्वाहिहिम् , इंय्यकूलू – न इल्ला कज़िबा (5)
फ़ – लअ़ल्ल – क बाख़िअुन् – नफ़्स – क अ़ला आसारिहिम् इल्लम् युअ्मिनू बिहाज़ल – हदीसि अ – सफ़ा (6)
इन्ना जअ़ल्ना मा अ़लल् – अर्ज़ि जी – नतल् – लहा लिनब्लु – वहुम् अय्युहुम् अह्सनु अ़ – मला (7)
व इन्ना लजाअ़िलू – न मा अ़लैहा सअ़ीदन् जुरूज़ा (8)
अम् हसिब् – त अन् – न अस्हाबल् – कह्फ़ि वर्रकीमि कानू मिन् आयातिना अ़ – जबा (9)
इज् अवल् – फ़ित्यतु इलल् – कह्फि फ़कालू रब्बना आतिना मिल्लदुन् – क रहम – तंव् – व हय्यिअ् लना मिन् अम्रिना र – शदा (10)
फ़ – ज़रब्ना अ़ला आज़ानिहिम् फ़िल् – कहफि सिनी – न अ़ – ददा (11)
सुम् – म बअ़स्नाहुम् लि – नअ्ल – म अय्युल् – हिज़्बैनि अह्सा लिमा लबिसू अ – मदा (12)
नह़्नु नकुस्सु अ़लै – क न – ब – अहुम् बिल्हक्कि , इन्नहुम् फ़ित्यतुन् आमनू बिरब्बिहिम् व ज़िद्नाहुम् हुदा (13)
व रबत्ना अ़ला कुलूबिहिम् इज् कामू फ़क़ालू रब्बुना रब्बुस्समावाति वल्अर्ज़ि लन् – नद्अु – व मिन् दूनिही इलाहल् – ल क़द् कुल्ना इज़न् श – तता (14)
हाउला – इ कौमुनत्त – ख़जू मिन् दूनिही आलि – हतन् , लौ ला यअतू – न अ़लैहिम् बिसुल्तानिम् – बय्यिनिन् , फ़ – मन् अज़्लमु मिम् – मनिफ़्तरा अ़लल्लाहि कज़िबा (15)
व इज़िअ् – तज़ल्तुमूहुम् व मा यअ्बुदू – न इल्लल्ला – ह फ़अ्वू इलल् – कह्फ़ि यन्शुर् लकुम् रब्बुकुम् मिर्रह़्मतिही व युहय्यिअ् लकुम् मिन् अम्रिकुम् मिर् फ़का (16)
व – तरश्शम् – स इज़ा त – लअ़त्तज़ा – वरू अ़न् कह्फ़िहिम् ज़ातल् – यमीनि व इज़ा ग़ – रबत् तक्रिजुहुम् जातश्शिमालि व हुम् फी फ़ज्वतिम् मिन्हु , ज़ालि – क मिन् आयातिल्लाहि , मंय्यह्दिल्लाहु फ़हुवल्मुह्तदि व मंय्युज्लिल फ़ – लन् तजि – द लहू वलिय्यम् – मुर्शिदा (17)
व तह्सबुहुम् ऐकाजंव् – व हुम् रूकूदुंव – व नुकल्लिबुहुम् जा़तल – यमीनि व जातश्शिमालि व कल्बुहुम् बासितुन् ज़िराअै़हि बिल् – वसीदि , लवित्त – लअ् – त अ़लैहिम् लवल्लै – त मिन्हुम् फ़िरारंव् – व लमुलिअ्- त मिन्हुम् रूअ्बा (18)
व कज़ालि – क बअ़स्नाहुम् लि – य – तसाअलू बैनहुम् , का – ल का़इलुम् – मिन्हुम् कम् लबिस्तुम , कालू लबिस्ना यौमन् औ बअ् – ज़ यौमिन् , का़लू रब्बुकुम् अअ्लमु बिमा लबिसतुम् फ़ब्अ़सू अ – ह – दकुम् बिवरिकिकुम् हाज़िही इलल् – मदीनति फ़ल्यन्जुर् अय्युहा अज़्का तआमन् फल्यअ्तिकुम् बिरिज्किम् – मिन्हु वल्य – त – लत्तफ् व ला युश्अ़िरन् – न बिकुम् अ – हदा (19)
इन्नहुम् इंय्यज्हरू अ़लैकुम् यरजुमूकुम् औ युअ़ीदूकुम् फ़ी मिल्लतिहिम् व लन् तुफ़लिहू इज़न् अ – बदा (20)
व कज़ालि – क अअ्सरना अ़लैहिम् लि – यअ्लमू अन् – न वअ्दल्लाहि हक़्कुंव – व अन्नस्साअ़ – त ला रै – ब फ़ीहा , इज् य – तना – ज़अू – न बैनहुम् अम्रहुम् फ़क़ालुब्नू अलैहिम् बुन्यानन् , रब्बुहुम् अअ्लमु बिहिम् , कालल्लज़ी – न ग – लबू अ़ला अम्रिहिम् ल – नत्तख़िज़न् – न अ़लैहिम् मस्जिदा (21)
स – यकूलू – न सला – सतुर् – राबिअुहुम् कल्बुहुम् व यकूलू – न ख़म्सतुन् सादिसुहुम् कल्बुहुम् रज्मम् – बिल्गै़बि व यकूलू – न सब्अ़तुंव – व सामिनुहुम् कल्बुहुम् , कुर्रब्बी अअ्लमु बिअिद्दतिहिम् मा यअ्लमुहुम् इल्ला क़लीलुन् , फ़ला तुमारि फ़ीहिम् इल्ला मिराअन् ज़ाहिरंव् – व ला तस्तफ्ति फ़ीहिम् मिन्हुम् अ – हदा (22)
व ला तकूलन् – न लिशैइन् इन्नी फ़ाअिलुन् ज़ालि – क ग़दा (23)
इल्ला अंय्यशा – अल्लाहु , वज्कुर – रब्ब – क इज़ा नसी – त व कुल अ़सा अंय्यह्दि – यनि रब्बी लिअक्र – ब मिन् हाज़ा र – शदा (24)
व लबिसू फ़ी कह्फ़िहिम् सला – स मि – अतिन् सिनी – न वज़्दादू तिस्आ़ (25)
कुलिल्लाहु अअ्लमु बिमा लबिसू लहू गै़बुस्समावाति वल्अर्जि अब्सिर् बिही व अस्मिअ् , मा लहुम् मिन् दूनिही मिंव्वलिय्यिंव – व ला युश्रिकु फ़ी हुक्मिही अ – हदा (26)
वत्लु मा ऊहि – य इलै – क मिन् किताबि रब्बि – क ला मुबद्दि – ल लि – कलिमातिही , व लन् तजि – द मिन् दुनिही मुल्त – हदा (27)
वस्बिर् नफ़्स – क मअ़ल्लज़ी – न यद्अू – न रब्बहुम् बिल्ग़दाति वल्अ़शिय्यि युरीदू – न वज्हहू व ला तअ्दु अै़ना – क अ़न्हुम तुरीदु ज़ी – नतल् – हयातिद्दुन्या व ला तुतिअ् मन् अग्फ़ल्ना क़ल्बहू अन् जिक्रिना वत्त – ब – अ हवाहु व का – न अम्रुहू फुरूता (28)
व कुलिल् – हक़्कु मिर्रब्बिकुम् , फ़ – मन् शा – अ फ़ल्युअ्मिंव् – व मन् शा – अ फल्यक्फुर इन्ना अअ्तद्ना लिज़्जा़लिमी – न नारन् अहा – त बिहिम् सुरादिकुहा , व इंय्यस्तगी़सू युगा़सू बिमाइन् कल्मुह़्लि यश्विल् – वुजू – ह , बिअ्सश्शराबु , व साअत् मुर् – त – फका (29)
इन्नल्लज़ी – न आमनू व अमिलुस्सालिहाति इन्ना ला नुज़ीअु अज् – र मन् अह्स – न अ – मला (30)
उलाइ – क लहुम् जन्नातु अद्निन् तज्री मिन् तह्तिहिमुल – अन्हारू युहल्लौ – न फ़ीहा मिन् असावि – र मिन् ज़ – हबिंव् – व यल्बसू – न सियाबन् खु़ज्रम् – मिन् सुन्दुसिंव् – व इस्तब्रक़िम् – मुत्तकिई – न फ़ीहा अ़लल् अराइकि , निअ्मस्सवाबु , व हसुनत् मुर् – त – फ़क़ा (31)
वज्रिब् लहुम् म – सलर् – रजुलैनि जअ़ल्ना लि – अ – हदिहिमा जन्नतैनि मिन् अअ्नाबिंव् – व हफ़फ़्नाहुमा बिनख्लिंव् – व जअ़ल्ना बैनहुमा ज़रआ (32)
किल्तल् – जन्नतैनि आतत् उकु – लहा व लम् तज्लिम् मिन्हु शैअंव् – व फ़ज्जरना ख़िला – लहुमा न – हरा (33)
व का – न लहू स – मरून् फ़का – ल लिसाहिबिही व हु – व युहाविरूहू अ – न अक्सरू मिन् – क मालंव् – व अ – अ़ज़्जु़ न – फ़रा (34)
व द – ख़ – ल जन्नतहू व हु – व ज़ालिमुल लिनफ्सिही का – ल मा अजुन्नु अन् तबी – द हाज़िही अ – बदा (35)
व मा अजुन्नुस्सा – अ – त काइ – मतंव् – व ल – इर्रूदित्तु इला रब्बी ल – अजिदन् – न खै़रम् – मिन्हा मुन्क़ – लबा (36)
का़ – ल लहू साहिबुहू व हु – व युहाविरूहू अ – कफ़र् – त बिल्लज़ी ख़ – ल – क – क मिन् तुराबिन सुम् – म मिन् नुत्फ़तिन् सुम् – म सव्वा – क रजुला (37)
लाकिन् – न हुवल्लाहु रब्बी व ला उशरिकु बिरब्बी अ – हदा (38)
व लौ ला इज् दख़ल् – त जन्न – त – क कुल् – त मा शा – अल्लाहु ला कुव्व – त इल्ला बिल्लाहि इन् तरनि अ – न अक़ल् – ल मिन् – क मालंव् – व व – लदा (39)
फ़ – अ़सा रब्बी अंय्युअ्ति – यनि खै़रम् – मिन् जन्नति – क व युरसि – ल अ़लैहा हुस्बानम् – मिनस्समा – इ फतुस्बि – ह सअ़ीदन् ज़ – लका (40)
औ युस्बि – ह माउहा गौ़रन् फ़ – लन् तस्तती – अ़ लहू त – लबा (41)
व उही – त बि – स – मरिही फ़ – अस्ब – ह युक़ल्लिबु कफ़्फै़हि अ़ला मा अन्फ़ – क़ फ़ीहा व हि – य ख़ावि – यतुन् अ़ला अुरूशिहा व यकूलु यालैतनी लम् उशिरक् बिरब्बी अ – हदा (42)
व लम् तकुल्लहू फ़ि – अतुंय्यन्सुरूनहू मिन् दूनिल्लाहि व मा का – न मुन्तसिरा (43)
हुना लिकल् – व ला – यतु लिल्लाहिल् – हक्कि , हु – व खै़रून् सवाबंव् – व खै़रून् अुक्बा (44)
वज्रिब् लहुम् म – सलल् – हयातिद्दुन्या कमाइन् अन्ज़ल्नाहु मिनस्समा – इ फ़ख़्त – ल – त बिही नबातुल्अर्ज़ि फ़अस्ब – ह हशीमन् तज्रूहुर्रियाहु , व कानल्लाहु अ़ला ” कुल्लि शैइम् – मुक्तदिरा (45)
अल्मालु वल्बनू – न जीनतुल – हयातिद्दुन्या वल्बाकियातुस्सालिहातु खैरून् अिन् – द रब्बि – क सवाबंव् – व खैरून् अ – मला (46)
व यौ – म नुसय्यिरूल् – जिबा – ल व तरल् – अर् – ज़ बारि – ज़तंव् – व हशरनाहुम् फ़ – लम् नुग़ादिर् मिन्हुम् अ – हदा (47)
व अुरिजू अला रब्बि – क सफ़्फ़न् , ल – क़द् जिअ्तुमूना कमा ख़लक़्नाकुम् अव्व – ल मर्रतिम् बल् ज़अ़म्तुम् अल् – लन् नज् – अ़ – ल लकुम् मौअिदा (48)
व वुज़िअ़ल् – किताबु फ़ – तरल् – मुज्रिमी – न मुश्फिकी – न मिम्मा फीहि व यकूलू – न यावैल – तना मा लि – हाज़ल – किताबि ला युग़ादिरू सगी़ – रतंव् – व ला कबी – रतन् इल्ला अह्साहा व व – जदू मा अ़मिलू हाज़िरन् , व ला यज्लिमु रब्बु – क अ – हदा (49)
व इज् कुल्ना लिल्मलाइ – कतिस्जुदू लिआद – म फ़ – स – जदू इल्ला इब्ली – स , का – न मिनल् – जिन्नि फ़ – फ़ – स – क अन् अम्रि रब्बिही , अ – फ़ – तत्तखिजूनहू व जुर्रिय्य – तहू औलिया – अ मिन् दूनी व हुम् लकुम् अ़दुव्वुन् , बिअ् – स लिज़्जा़लिमी – न ब – दला (50)
मा अश्हत्तुहुम् ख़ल्कस् – समावाति वल्अर्जि व ला ख़ल् – क अन्फुसिहिम् व मा कुन्तु मुत्तख़िज़ल् – मुज़िल्ली – न अ़जुदा (51)
व यौ – म यकूलु नादू शु – रकाइ – यल्लजी – न ज़अ़म्तुम् फ़ – दऔ़हुम् फ़ – लम् यस्तजीबू लहुम् व जअ़ल्ना बैनहुम् मौबिका (52)
व र – अल् मुज्रिमूनन्ना – र फ़ – ज़न्नू अन्नहुम् मुवाकिअूहा व लम् यजिदू अन्हा मस्रिफ़ा (53)
व ल – कद् सर्रफ्ना फ़ी हाज़ल् – कुरआनि लिन्नासि मिन् कुल्लि म – सलिन् , व कानल् – इन्सानु अक्स – र शैइन् ज – दला (54)
व मा म – नअ़न् – ना – स अंय्युअ्मिनू इज् जाअहुमुल्हुदा व यस्तग्फिरू रब्बहुम् इल्ला अन् तअ्ति – यहुम् सुन्नतुल – अव्वली – न औ यअ्ति – यहुमुल – अ़ज़ाबु कुबुला (55)
व मा नुर्सिलुल् – मुर्सली – न इल्ला मुबश्शिरी – न व मुन्ज़िरी – न व युजादिलुल्लज़ी – न क – फरू बिल्बातिलि लियुद्हिजू बिहिल्हक् – क वत्त – ख़जू आयाती व मा उन्ज़िरू हुजुवा (56)
व मन् अज़्लमु मिम् – मन् जुक्कि – र बिआयाति रब्बिही फ़ – अअ्र – ज़ अन्हा व नसि – य मा क़द्दमत् यदाहु , इन्ना जअ़ल्ना अ़ला कुलूबिहिम् अकिन्न – तन् अंय्यफ़्क़हूहु व फी आज़ानिहिम् वक्रन् , व इन् तद्अुहुम् इलल् – हुदा फ़ – लंय्यह्तदू इज़न् अ – बदा (57)
व रब्बुकल – ग़फूरू जुर्रह्मति , लौ युआखिजुहुम् बिमा क – सबू ल – अ़ज्ज – ल लहुमुल् – अज़ा – ब , बल् – लहुम् मौअिदुल् – लंय्यजिदू मिन् दूनिही मौअिला (58)
व तिल्कल् – कुरा अह़्लक्नाहुम् लम्मा ज़ – लमू व जअ़ल्ना लिमह़्लिकिहिम् मौअिदा (59)
व इज् का – ल मूसा लि – फ़ताहु ला अब्रहु हत्ता अब्लु – ग़ मज्म – अ़ल् बहरैनि औ अम्ज़ि – य हुकुबा (60)
फ़ – लम्मा ब – लगा़ मज्म – अ़ बैनिहिमा नसिया हूतहुमा फत्त – ख – ज़ सबीलहू फ़िल्बहरि स – रबा (61)
फ़ – लम्मा जा – वज़ा का – ल लि – फ़ताहु आतिना ग़दा – अना , ल – क़द् लकी़ना मिन् स – फ़रिना हाज़ा न – सबा (62)
का – ल अ – रऐ – त इज् अवैना इलस्सख़्रति फ़ – इन्नी नसीतुल – हू – त वमा अन्सानीहु इल्लश्शैतानु अन् अज़्कु – रहु वत्त – ख़ – ज़ सबी – लहू फ़िल्बहरि अ़ – जबा (63)
का – ल ज़ालि – क मा कुन्ना नब्गि फ़रतद्दा अ़ला आसारिहिमा क़ – ससा (64)
फ़ – व – जदा अब्दम् – मिन् अिबादिना आतैनाहु रह़्म – तम् मिन् अिन्दिना व अ़ल्लम्नाहु मिल्लदुन्ना अिल्मा (65)
का – ल लहू मूसा हल अत्तबिअु – क अ़ला अन् तुअ़ल्लि – मनि मिम्मा अुल्लिम् – त रूश्दा (66)
का़ – ल इन्न – क लन् तस्तती – अ़ मअि – य सब्रा (67)
व कै – फ़ तस्बिरू अला मा लम् तुह्ति बिही खुब्रा (68)
का – ल स – तजिदुनी इन्शा – अल्लाहु साबिरंव् – व ला अअ्सी ल – क अम्रा (69)
का – ल फ़ – इनित्त – बअ्तनी फ़ला तसअल्नी अ़न् शैइन् हत्ता उह्दि – स ल – क मिन्हु ज़िक्रा (70)
फन्त – लका , हत्ता इज़ा रकिबा फ़िस्सफ़ी – नति ख – र – कहा , का – ल अ – ख़रक्तहा लितुग्रि – क़ अह़्लहा ल – क़द् जिअ् – त शैअन् इम्रा (71)
का – ल अलम् अकुल इन्न – क लन् तस्तती – अ़ मअि – य सब्रा (72)
क़ा – ल ला तुआख़िज़्नी बिमा नसीतु वला तुरहिक्नी मिन् अम्री अु़सरा (73)
फ़न्त – लका , हत्ता इज़ा लक़िया गुलामन् फ़ – क – त – लहू का़ – ल अ – क़तल् – त नफ़्सन् ज़किय्य – तम् बिगै़रि नफ़्सिन् , ल – क़द् जिअ् – त शैअन् नुकरा (74)
का – ल अलम् अकुल् – ल – क इन्न – क लन् तस्तती – अ़ मअि – य सब्रा (75)
का – ल इन् सअल्तु – क अ़न् शैइम् बअ् – दहा फ़ला तुसाहिब्नी क़द् बलग् – त मिल्लदुन्नी अुज्रा (76)
फ़न्त – लका़ , हत्ता इज़ा अ – तया अह् – ल कर् – यति – निस्तत् – अ़मा अह़्लहा फ़ – अबौ अंय्युज़य्यिफूहुमा फ़ – व – जदा फ़ीहा जिदारंय्युरीदु अंय्यन्कज् – ज़ फ़ – अकामहू , का – ल लौ शिअ् – त लत्त – खज् – त अ़लैहि अज्रा (77)
का – ल हाज़ा फ़िराकु बैनी व बैनि – क स – उनब्बिउ – क बितअ्वीलि मा लम् तस्ततिअ् अ़लैहि सब्रा (78)
अम्मस्सफी – नतु फ़ – कानत् लि – मसाकी – न यअ्मलू – न फ़िल्बहरि फ़ – अरत्तु अन् अअी़ – बहा व का – न वरा – अहुम् मलिकुंय्यअ्खुजु कुल – ल सफी़ – नतिन् ग़स्बा (79)
व अम्मल् – गुलामु फ़का – न अ – बवाहु मुअ्मिनैनि फ़ – ख़शीना अंय्युरहि – क़हुमा तुग्यानंव् – व कुफ्रा (80)
फ़ – अरद्ना अंय्युब्दि लहुमा रब्बुहुमा खै़रम् – मिन्हु ज़कातंव् – व अक्र – ब रूहमा (81)
व अम्मल् – जिदारू फ़का – न लिगुलामैनि यतीमैनि फिल् – मदीनति व का – न तह्तहू कन्जुल् – लहुमा व का – न अबूहुमा सालिहन् फ़ – अरा – द रब्बु – क अंय्यब्लुगा अशुद्दहुमा व यस्तख्रिजा कन्ज़हुमा रहमतम् मिर्रब्बि – क व मा फ़अ़ल्तुहू अ़न् अम्री , ज़ालि – क तअ्वीलु मा लम् तस्तिअ् अ़लैहि सब्रा (82)
व यस्अलून – क अ़न् ज़िल्क़रनैनि , कुल स – अत्लू अ़लैकुम् मिन्हु ज़िक्रा (83)
इन्ना मक्कन्ना लहू फ़िल्अर्जि व आतैनाहु मिन् कुल्लि शैइन् स – बबा (84)
फ़ – अत्ब – अ़ स – बबा (85)
हत्ता इज़ा ब – ल – ग़ मग्रिबश्शम्सि व – ज – दहा तग़्रुबु फ़ी अै़निन् हमि – अतिंव् – व व – ज – द अि़न्दहा क़ौमन् , कुल्ना या ज़ल्करनैनि इम्मा अन् तुअ़ज़्ज़ि – ब व इम्मा अन् तत्तखि – ज़ फ़ीहिम् हुस्ना (86)
का – ल अम्मा मन् ज़ – ल – म फ़सौ – फ़ नुअ़ज्जिबुहू सुम् – म युरद्दु इला रब्बिही फ़युअ़ज़्ज़िबुहू अ़ज़ाबन् नुक्रा (87)
व अम्मा मन् आम – न व अ़मि – ल सालिहन् फ़ – लहू जज़ा – अ निल्हुस्ना व स – नकूलु लहू मिन् अम्रिना युस्रा (88)
सुम् – म अत्ब – अ़ स – बबा (89)
हत्ता इज़ा ब – ल – ग़ मत्लिअ़श्शम्सि व – ज – दहा तत्लुअु अ़ला कौ़मिल् – लम् नज्अ़ल् – लहुम् मिन् दूनिहा सितरा (90)
कज़ालि – क व क़द् अ – हत्ना बिमा लदैहि खुब्रा (91)
सुम् – म अत्ब – अ़ स – बबा (92)
हत्ता इज़ा ब – ल – ग बैनस्सद्दैनि व – ज – द मिन् दूनिहिमा कौमल् – ला यकादू – न यफ़्क़हू – न कौला (93)
कालू या ज़ल्करनैनि इन् – न यअ्जू – ज व मअ्जू – ज मुफ्सिदू – न फ़िल्अर्जि फ़ – हल् नज्अलु ल – क ख़र्जन् अ़ला अन् तज्अ़ – ल बैनना व बैनहुम् सद्दा (94)
का़ – ल मा मक्कन्नी फ़ीहि रब्बी खै़रून् फ़ – अअ़ीनूनी बिकुव्वतिन् अज्अ़ल् बैनकुम् व बैनहुम् रदमा (95)
आतूनी जु – बरल् – हदीदि , हत्ता इज़ा सावा बैनस्स – दफ़ैनि का़लन्फुखू हत्ता इज़ा ज – अ़ – लहू नारन् का – ल आतूनी उफ़्रिग् अ़लैहि कितरा (96)
फ़ – मस्ताअू अंय्यज़्हरूहु व मस्तताअू लहू नक़्बा (97)
का – ल हाज़ा रह़्मतुम् – मिर्रब्बी फ़ – इज़ा – जा – अ वअ्दु रब्बी ज – अ़ – लहू दक्का – अ व का – न वअ्दु रब्बी हक़्क़ा (98)
व तरक्ना बअ् – ज़हुम् यौमइजिंय्यमूजु फ़ी बअ्ज़िंव् – व नुफ़ि – ख़ फ़िस्सूरि फ़ – जमअ्नाहुम् जम्आ (99)
व अ़रज्ना जहन्न – म यौमइज़िल् – लिल्काफ़िरी – न अरज़ा (100)
अल्लज़ी – न कानत् अअ्युनुहुम् फ़ी गिताइन् अन् ज़िक्री व कानू ला यस्ततीअू – न सम्आ (101)
अ – फ़ – हसिबल्लज़ी – न क – फ़रू अंय्यत्तख़िजू अिबादी मिन् दूनी औलिया – अ , इन्ना अअ्तद्ना जहन्न – म लिल्काफ़िरी – न नुजुला (102)
कुल हल नुनब्बिउकुम् बिल् – अख़्सरी – न अअ्माला (103)
अल्लज़ी – न ज़ल् – ल सअ्युहुम् फ़िल् – हयातिद्दुन्या व हुम् यह्सबू – न अन्नहुम् युह्सिनू – न सुन्आ (104)
उलाइ – कल्लज़ी – न क – फ़रू बिआयाति रब्बिहिम् व लिका़इही फ़ – हबितत् अअ्मालुहुम् फ़ला नुकीमु लहुम् यौमल् – कियामति वज़्ना (105)
ज़ालि – क जज़ाउहुम् जहन्नमु बिमा क – फ़रू वत्त – ख़जू आयाती व रूसुली हुजुवा (106)
इन्नल्लज़ी – न आमनू व आ़मिलुस – सालिहाति कानत् लहुम् जन्नातुल – फ़िरदौसि नुजुला (107)
ख़ालिदी – न फ़ीहा ला यब्गू – न अ़न्हा हि – वला (108)
कुल् लौ कानल् – बहरू मिदादल लि – कलिमाति रब्बी ल – नफ़िदल् – बहरू क़ब् – ल अन् तन्फ़ – द कलिमातु रब्बी व लौ जिअ्ना बिमिस्लिही म – ददा (109)
कुल् इन्नमा अ – न ब – शरूम् – मिस्लुकुम् यूहा इलय् – य अन्नमा इलाहुकुम् इलाहुंव् – वाहिदुन् फ़ – मन का – न यरजू लिका़ – अ रब्बिही फ़ल्यअ्मल् अ़ – मलन् सालिहंव् – व ला युश्रिक् बिअिबादति रब्बिही अ – हदा (110)



सूरह अल-कहफ़ हिन्दी अनुवाद अर्थ
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
18:1
सब प्रशंसा उस अल्लाह के लिए है, जिसने अपने भक्त पर ये पुस्तक उतारी और उसमें कोई टेढ़ी बात नहीं रखी।
 
18:2
अति सीधी (पुस्तक), ताकि वह अपने पास की कड़ी यातना से सावधान कर दे और ईमान वालों को जो सदाचार करते हों, शुभ सूचना सुना दे कि उन्हीं के लिए अच्छा बदला है।
 
18:3
जिसमें वे नित्य सदावासी होंगे।
 
18:4
और उन्हें सावधान करे, जिन्होंने कहा कि अल्लाह ने अपने लिए कोई संतान बना ली है।
 
18:5
उन्हें इसका कुछ ज्ञान है और न उनके पूर्वजों को। बहुत बड़ी बात है, जो उनके मुखों से निकल रही है, वे सरासर झूठ ही बोल रहे हैं।
 
18:6
तो संभवतः आप इसके पीछे अपना प्राण खो देंगे, संताप के कारण, यदि वे इस ह़दीस (क़ुर्आन) पर ईमान न लायें।
  
18:7
वास्तव में, जो कुछ धरती के ऊपर है, उसे हमने उसके लिए शोभा बनाया है, ताकि उनकी परीक्षा लें कि उनमें कौन कर्म में सबसे अच्छा है?
 
18:8
और निश्चय हम कर देने[1] वाले हैं, जो उस (धरती) के ऊपर है, उसे (बंजर) धूल।
1. अर्थात प्रलय के दिन।
 
18:9
(हे नबी!) क्या आपने समझा है कि गुफा तथा शिला लेख वाले[1], हमारे अद्भुत लक्षणों (निशानियों) में से थे[2]?
1. कुछ भाष्यकारों ने लिखा है कि "रक़ीम" शब्द जिस का अर्थ, शिला लेख किया गया है, एक बस्ती का नाम है। 2. अर्थात आकाशों तथा धरती की उत्पत्ति हमारी शक्ति का इस से भी बड़ा लक्षण है।
 
18:10
जब नवयुवकों ने गुफा की ओर शरण ली[1] और प्रार्थना कीः हे हमारे पालनहार! हमें अपनी विशेष दया प्रदान कर और हमारे लिए प्रबंध कर दे हमारे विषय के सुधार का।
1. अर्थात नवयुवकों ने अपने ईमान की रक्षा के लिये गुफा में शरण ली। जिस गुफा के ऊपर आगे चल कर उन के नामों का स्मारक शिला लेख लगा दिया गया था। उल्लेखों से यह विद्वित होता है कि नवयुवक ईसा अलैहिस्सलाम के अनुयायियों में से थे। और रोम के मुश्रिक राजा की प्रजा थे। जो एकेश्वरवादियों का शत्रु था। और उन्हें मूर्ति पूजा के लिये बाध्य करता था। इस लिये वे अपने ईमान की रक्षा के लिये जार्डन की गुफा में चले गये जो नये शोध के अनुसार जार्डन की राजधानी से 8 की◦ मी◦ दूर (रजीब) में अवशेषज्ञों को मिली है। जिस गुफा के ऊपर सात स्तंभों की मस्जिद के खण्डर और गुफा के भीतर आठ समाधियाँ तथा उत्तरी दीवार पर पुरानी युनानी लिपी में एक शिला लेख मिला है और उस पर किसी जीव का चित्र भी है। जो कुत्ते का चित्र बताया जाता है और यह रजीब ही (रक़ीम) का बदला हुआ रूप है। (देखियेः भाष्य दावतुल क़ुर्आनः 2/983)
 
18:11
तो हमने उन्हें गुफा में सुला दिया कई वर्षों तक।
 
18:12
फिर हमने उन्हें जगा दिया, ताकि हम ये जान लें कि दो समुदायों में से किसने उनके ठहरे रहने की अवधि को अधिक याद रखा है?
 
18:13
हम आपको उनकी सत्य कथा सुना रहे हैं। वास्तव में, वे कुछ नवयुवक थे, जो अपने पालनहार पर ईमान लाये और हमने उन्हें मार्गदर्शन में अधिक कर दिया।
 
18:14
और हमने उनके दिलों को सुदृढ़ कर दिया, जब वे खड़े हुए, फिर कहाः हमारा पालनहार वही है, जो आकाशों तथा धरती का पालनहार है। हम उसके सिवा कदापि किसी पूज्य को नहीं पुकारेंगे। (यदि हमने ऐसा किया) तो (सत्य से) दूर की बात होगी।
 
18:15
ये हमारी जाति है, जिसने अल्लाह के सिवा बहुत-से पूज्य बना लिए। क्यों वे उनपर कोई खुला प्रमाण प्रस्तुत नहीं करते? उससे बड़ा अत्याचारी कौन होगा, जो अल्लाह पर मिथ्या बात बनाये?
 
18:16
और जब तुम उनसे विलग हो गये तथा अल्लाह के अतिरिक्त उनके पूज्यों से, तो अब अमुक गुफा की ओर शरण लो, अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी दया फैला देगा तथा तुम्हारे लिए तुम्हारे विषय में जीवन के साधनों का प्रबंध करेगा।
 
18:17
और तुम सूर्य को देखोगे कि जब निकलता है, तो उनकी गूफा से दायें झुक जाता है और जब डूबता है, तो उनसे बायें कतरा जाता है और वे उस (गुफा) के एक विस्तृत स्थान में हैं। ये अल्लाह की निशानियों में से है और जिसे अल्लाह मार्ग दिखा दे, वही सुपथ पाने वाला है और जिसे कुपथ कर दे, तो तुम कदापि उसके लिए कोई सहायक मार्गदर्शक नहीं पाओगे।
 
18:18
और तुम[1] उन्हें समझोगे कि जाग रहे हैं, जबकि वे सोये हुए हैं और हम उन्हें दायें तथा बायें पार्शव पर फिराते रहते हैं और उनका कुत्ता गुफा के द्वार पर अपनी दोनों बाहें फैलाये पड़ा है। यदि तुम झाँककर देख लेते, तो पीठ फेरकर भाग जाते और उनसे भयपूर्ण हो जाते।
1. इस में किसी को भी संबोधित माना जा सकता है, जो उन्हें उस दशा में देख सके।
 
18:19
﴿ और इसी प्रकार, हमने उन्हें जगा दिया, ताकि वे आपस में प्रश्न करें। तो एक ने उनमें से कहाः तुम कितने (समय) रहे हो? सबने कहाः हम एक दिन रहे हैं अथवा एक दिन के कुछ (समय)। (फिर) सबने कहाः अल्लाह अधिक जानता है कि तुम कितने (समय) रहे हो, तुम अपने में से किसी को, अपना ये सिक्का देकर नगर में भेजो, फिर देखे कि किसके पास अधिक स्वच्छ (पवित्र) भोजन है और उसमें से कुछ जीविका (भोजन) लाये और चाहिए कि सावधानी बरते। ऐसा न हो कि तुम्हारा किसी को अनुभव हो जाये।

18:20
क्योंकि यदि वे तुम्हें जान जायेंगे तो तुम्हें पथराव करके मार डालेंगे या तुम्हें अपने धर्म में लौटा लेंगे और तब तुम कदापि सफल नहीं हो सकोगे।
 
18:21
इसी प्रकार, हमने उनसे अवगत करा दिया, ताकि उन (नागरिकों) को ज्ञान हो जाये कि अल्लाह का वचन सत्य है और ये कि प्रलय (होने) में कोई संदेह[1] नहीं। जब वे[2] आपस में विवाद करने लगे, तो कुछ ने कहाः उनपर कोई निर्माण करा दो, अल्लाह ही उनकी दशा को भली-भाँति जानता है। परन्तु उन्होंने कहा जो अपना प्रभुत्व रखते थे, हम अवश्य उन (की गुफा के स्थान) पर एक मस्जिद बनायेंगे।
1. जिस के आने पर सब को उन के कर्मों का फल दिया जायेगा। 2. अर्थात जब पुराने सिक्के और भाषा के कारण उन का भेद खुल गया और वहाँ के लोगों को उन की कथा का ज्ञान हो गया तो फिर वे अपनी गुफा ही में मर गये। और उन के विषय में यह विवाद उत्पन्न हो गया। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि इस्लाम में समाधियों पर मस्जिद बनाना, और उस में नमाज़ पढ़ना तथा उस पर कोई निर्माण करना अवैध है। जिस का पूरा विवरण ह़दीसों में मिलेगा। (सह़ीह़ बुख़ारीः 435, मुस्लिमः531-32)
 
18:22
कुछ[1] कहेंगे कि वे तीन हैं और चौथा उनका कुत्ता है और कुछ कहेंगे कि पाँच हैं और छठा उनका कुत्ता है। ये अंधेरे में तीर चलाते हैं और कहेंगे कि सात हैं और आठवाँ उनका कुत्ता है। (हे नबी!) आप कह दें कि मेरा पालनहार ही उनकी संख्या भली-भाँति जानता है, जिसे कुछ लोगों के सिवा कोई नहीं जानता[2]। अतः आप उनके संबन्ध में कोई विवाद न करें, सिवाय सरसरी बात के और न उनके विषय में किसी से कुछ पूछें[3]।
1. इन से मुराद नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के युग के अह्ले किताब हैं। 2. भावार्थ यह है कि उन की संख्या का सह़ीह़ ज्ञान तो अल्लाह ही को है किन्तु वास्तव में ध्यान देने की बात यह है कि इस से हमें क्या शिक्षा मिल रही है। 3. क्योंकि आप को उन के बारे में अल्लाह के बताने के कारण उन लोगों से अधिक ज्ञान है। और उन के पास कोई ज्ञान नहीं। इस लिये किसी से पूछने की आवश्यक्ता भी नहीं है।
 
18:23
और कदापि किसी विषय में न कहें कि मैं इसे कल करने वाला हूँ।
 
18:24
परन्तु ये कि अल्लाह[1] चाहे तथा अपने पालनहार को याद करें, जब भूल जायेँ और कहें: संभव है, मेरा पालनहार मुझे इससे समीप सुधार का मार्ग दर्शा दे।
1. अर्थात भविष्य में कुछ करने का निश्चय करें, तो "इन् शा अल्लाह" कहें। अर्थता यदि अल्लाह ने चाहा तो।
 
18:25
और वे गुफा में तीन सौ वर्ष रहे और नौ वर्ष अधिक[1] और।
1. अर्थात सूर्य के वर्ष से तीन सौ वर्ष, और चाँद के वर्ष से नौ वर्ष अधिक गुफा में सोये रहे।
 
18:26
आप कह दें कि अल्लाह उनके रहने की अवधि से सर्वाधिक अवगत है। आकाशों तथा धरती का परोक्ष वही जानता है। क्या ही ख़ूब है वह देखने वाला और सुनने वाला। नहीं है उनका उसके सिवा कोई सहायक और न वह अपने शासन में किसी को साझी बनाता है।
  
18:27
और आप उसे सुना दें, जो आपकी ओर वह़्यी (प्रकाशना) की गयी है, आपके पालनहार की पुस्तक में से, उसकी बातों को कोई बदलने वाला नहीं है और आप कदापि नहीं पायेंगे उसके सिवा कोई शरण स्थान।
 
18:28
और आप उनके साथ रहें, जो अपने पालनहार की प्रातः-संध्या बंदगी करते हैं। वे उसकी प्रसन्नता चाहते हैं और आपकी आँखें सांसारिक जीवन की शोभा के लिए[1] उनसे न फिरने पायें और उसकी बात न मानें, जिसके दिल को हमने अपनी याद से निश्चेत कर दिया और उसने मनमानी की और जिसका काम ही उल्लंघन (अवज्ञा करना) है।
1. भाष्यकारों ने लिखा है कि यह आयत उस समय उतरी जब मुश्रिक क़ुरैश के कुछ प्रमुखों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से यह माँग की कि आप अपने निर्धन अनुयायियों के साथ न रहें। तो हम आप के पास आ कर आप की बातें सुनेंगे। इस लिये अल्लाह ने आप को आदेश दिया कि इन का आदर किया जाये, ऐसा नहीं होना चाहिये कि इन की उपेक्षा कर के उन धनवानों की बात मानी जाये जो अल्लाह की याद से निश्चेत हैं।
 
18:29
आप कह दें कि ये सत्य है, तुम्हारे पालनहार की ओर से, तो जो चाहे, ईमान लाये और जो चाहे कुफ़्र करे, निश्चय हमने अत्याचारियों के लिए ऐसी अग्नि तैयार कर रखी है, जिसकी प्राचीर[1] ने उन्हें घेर लिया है और यदि वे जल के लिए गुहार करेंगे, तो उन्हें तेल की तलछट के समान जल दिया जायेगा, जो मुखों को भून देगा, वह क्या ही बुरा पेय है और वह क्या ही बुरा विश्राम स्थान है!
1. क़र्आन में "सुरादिक़" शब्द प्रयुक्त हुआ है। जिस का अर्थ प्राचीर, अर्थात वह दीवार है जो नरक के चारों ओर बनाई गई है।
 
18:30
निश्चय जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, तो हम उनका प्रतिफल व्यर्थ नहीं करेंगे, जो सदाचारी हैं।
 
18:31
यही हैं, जिनके लिए स्थायी स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं, उसमें उन्हें सोने के कंगन पहनाये जायेंगे।[1] तथा (वे) महीन और गाढ़े रेशम के हरे वस्त्र पहनेंगे, उसमें सिंहासनों के ऊपर आसीन होंगे। ये क्या ही अच्छा प्रतिफल और क्या ही अच्छा विश्राम स्थान है। 
1. यह स्वर्ग वासियों का स्वर्ण कंगन है। किन्तु संसार में इस्लाम की शिक्षानुसार पुरुषों के लिये सोने का कंगन पहनना ह़राम है।
 
18:32
और (हे नबी!) आप उन्हें एक उदाहरण दो वयक्तियों का दें; हमने जिनमें से एक को दो बाग़ दिये अंगूरों के और घेर दिया दोनों को खजूरों से और दोनों के बीच खेती बना दी।
 
18:33
दोनों बाग़ों ने अपने पूरे फल दिये और उसमें कुछ कमी नहीं की और हमने जारी कर दी दोनों के बीच एक नहर।
 
18:34
और उसे लाभ प्राप्त हुआ, तो एक दिन उसने अपने साथी से कहा जबकि वह उससे बात कर रहा थाः मैं तुझसे अधिक धनी हूँ तथा स्वजनों में भी अधिक[1] हूँ।
1. अर्थात यदि किसी का धन संतान तथा बाग़ इत्यादि अच्छा लगे तो ((मा शा अल्लाह ला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह)) कहना चाहिये। ऐसा कहने से नज़र नहीं लगती। यह इस्लाम धर्म की शिक्षा है, जिस से आपस में द्वेष नहीं होता।
 
18:35
और उसने अपने बाग़ में प्रवेश किया, अपने ऊपर अत्याचार करते हुए, उसने कहाः मैं नहीं समझता कि इसका विनाश हो जायेगा कभी।
 
18:36
और न ये समझता हूँ कि प्रलय होगी और यदि मुझे अपने पालनहार की ओर पुनः ले जाया गया, तो मैं अवश्य ही इससे उत्तम स्थान पाऊँगा।
 
18:37
उससे, उसके साथी ने कहा और वह उससे बात कर रहा थाः क्या तूने उसके साथ कुफ़्र कर दिया, जिसने तुझे मिट्टी से उत्पन्न किया, फिर वीर्य से, फिर तुझे बना दिया एक पूरा पुरुष?
 
18:38
रहा मैं, तो वही अल्लाह मेरा पालनहार है और मैं साझी नहीं बनाऊँगा अपने पालनहार का किसी को।
 
18:39
और क्यों नहीं जब तुमने अपने बाग़ में प्रवेश किया, तो कहा कि "जो अल्लाह चाहे, अल्लाह की शक्ति के बिना कुछ नहीं हो सकता।" यदि तू मुझे देखता है कि मैं तुझसे कम हूँ धन तथा संतान में[1],
1. अर्थात मेरे सेवक और सहायक भी तुझ से अधिक हैं।
 
18:40
तो आशा है कि मेरा पालनहार मुझे प्रदान कर दे, तेरे बाग़ से अच्छा और इस बाग़ पर आकाश से कोई आपदा भेज दे और वह चिकनी भूमि बन जाये।

18:41
अथवा उसका जल भीतर उतर जाये, फिर तू उसे पा न सके।
 
18:42
(अन्ततः) उसके फलों को घेर[1] लिया गया, फिर वह अपने दोनों हाथ मलता रह गया उसपर, जो उसमें खर्च किया था और वह अपने छप्परों सहित गिरा हुआ था और कहने लगाः क्या ही अच्छा होता कि मैं किसी को अपने पालनहार का साझी न बनाता।
1. अर्थात आपदा ने घेर लिया।
 
18:43
और नहीं रह गया उसके लिए कोई जत्था, जो उसकी सहायता करता और न स्वयं अपनी सहायता कर सका।
 
18:44
यहीं सिध्द हो गया कि सब अधिकार सत्य अल्लाह को है, वही अच्छा है प्रतिफल प्रदान करने में तथा अच्छा है परिणाम लाने में।
 
18:45
और (हे नबी!) आप उन्हें सांसारिक जीवन का उदाहरण दें, उस जल से, जिसे हमने आकाश से बरसाया। फिर उसके कारण मिल गई धरती की उपज, फिर चूर हो गई, जिसे वायु उड़ाये फिरती[1] है और अल्लाह प्रत्येक चीज़ पर सामर्थ्य रखने वाला है।
1. अर्थात संसारिक जीवन और उस का सुख-सुविधा सब साम्यिक है।
 
18:46
धन और पुत्र सांसारिक जीवन की शोभा हैं और शेष रह जाने वाले सत्कर्म ही अच्छे हैं, आपके पालनहार के यहाँ प्रतिफल में तथा अच्छे हैं, आशा रखने के लिए।
 
18:47
तथा जिस दिन हम पर्वतों को चलायेंगे तथा तुम धरती को खुला चटेल[1] देखोगे और हम उन्हें एकत्र कर देंगे, फिर उनमें से किसी को नहीं छोड़ेंगे।
1. अर्थात न उस में कोई चिन्ह होगा न छुपने का स्थान।

18:48
और सभी आपके पालनहार के समक्ष पंक्तियों में प्रस्तुत किये जायेंगे, तुम हमारे पास आ गये, जैसे हमने तुम्हारी उत्पत्ति प्रथम बार की थी, बल्कि तुमने समझा था कि हम तुम्हारे लिए कोई वचन का समय निर्धारित ही नहीं करेंगे।
 
18:49
और कर्म लेख[1] (सामने) रख दिये जायेंगे, तो आप अपराधियों को देखेंगे कि उससे डर रहे हैं, जो कुछ उसमें (अंकित) है तथा कहेंगे कि हाय हमारा विनाश! ये कैसी पुस्तक है, जिसने किसी छोटे और बड़े कर्म को नहीं छोड़ा है, परन्तु उसे अंकित कर रखा है? और जो कर्म उन्होंने किये हैं, उन्हें वह सामने पायेंगे और आपका पालनहार किसी पर अत्याचार नहीं करेगा।
1. अर्थात प्रत्येक का कर्म पत्र जो उस ने संसारिक जीवन में किया है।
 
18:50
तथा (याद करो) जब आपके पालनहार ने फ़रिश्तों से कहाः आदम को सज्दा करो, तो सबने सज्दा किया, इब्लीस के सिवा। वह जिन्नों में से था, अतः उसने उल्लंघन किया अपने पालनहार की आज्ञा का, तो क्या तुम उसे और उसकी संतति को सहायक मित्र बनाते हो, मुझे छोड़कर जबकि वे तुम्हारे शत्रु हैं? अत्याचारियों के लिए बुरा बदला है।
 
18:51
मैंने उन्हें उपस्थित नहीं किया, आकाशों तथा धरती की उतपत्ति के समय और न स्वयं उनकी उत्पत्ति के समय और न मैं कुपथों को सहायक[1] बनाने वाला हूँ।
1. भावार्थ यह है कि विश्व की उत्पत्ति के समय इन का अस्तित्व न था। यह तो बाद में उत्पन्न किये गये हैं। उन की उत्पत्ति में भी उन से कोई सहायता नहीं ली गई, तो फिर यह अल्लाह के बराबर कैसे हो गये।
 
18:52
जिस दिन वह (अल्लाह) कहेगा कि मेरे साझियों को पुकारो, जिन्हें (तुम मेरे साझी) समझ रहे थे। वह उन्हें पुकारेंगे, तो वे उनका कोई उत्तर नहीं देंगे और हम बना देंगे उनके बीच एक विनाशकारी खाई।
 
18:53
और अपराधी नरक को देखेंगे, तो उन्हें विश्वास जो जायेगा कि वे उसमें गिरने वाले हैं और उससे फिरने का कोई स्थान नहीं पायेंगे।
 
18:54
और हमने इस क़ुर्आन में प्रत्येक उदाहरण से लोगों को समझाया है। और मनुष्य बड़ा ही झगड़ालू है।
 
18:55
और नहीं रोका लोगों को कि ईमान लायें, जब उनके पास मार्गदर्शन आ गया और अपने पालनहार से क्षमा याचना करें, किन्तु इसीने कि पिछली जातियों की दशा उनकी भी हो जाये अथवा उनके समक्ष यातना आ जाये।
 
18:56
तथा हम रसूलों को नहीं भेजते, परन्तु शुभ सूचना देने वाले और सावधान करने वाले बनाकर और जो काफ़िर हैं, असत्य (अनृत) के सहारे विवाद करते हैं, ताकि उसके द्वारा वे सत्य को नीचा[1] दिखायें और उन्होंने बनाया हमारी आयतों को तथा जिस बात की उन्हें चेतावनी दी गई, परिहास।
1. अर्थात सत्य को दबा दें।
 
18:57
और उससे बड़ा अत्याचारी कौन है, जिसे उसके पालनहार की आयतें सुनाई जायेँ, फिर (भी) उनसे मुँह फेर ले और अपने पहले किये हुए करतूत भूल जाये? वास्तव में, हमने उनके दिलों पर ऐसे आवरण (पर्दे) बना दिये हैं कि उसे[1] समझ न पायें और उनके कानों में बोझ। और यदि आप उन्हें सीधी राह की ओर बुलायें, तब (भी) कभी सीधी राह नहीं पा सकेंग।
1. अर्थात क़ुर्आन को।
 
18:58
और आपका पालनहार अति क्षमी दयावान् है। यदि वह उन्हें उनके करतूतों पर पकड़ता, तो तुरन्त यातना दे देता। बल्कि उनके लिए एक निश्चित समय का वचन है और वे उसके सिवा कोई बचाव का स्थान नहीं पायेंगे।
 
18:59
तथा ये बस्तियाँ हैं। हमने उन (के निवासियों) का विनाश कर दिया, जब उन्होंने अत्याचार किया और हमने उनके विनाश के लिए एक निर्धारित समय बना दिया था।
 
18:60
तथा (याद करो) जब मूसा ने अपने सेवक से कहाः मैं बराबर चलता रहूँगा, यहाँ तक कि दोनों सागरों के संगम पर पहुँच जाऊँ अथवा वर्षों चलता[1] रहूँ।
1. मूसा अलैहिस्सलाम की यात्रा का कारण यह बना था कि वह एक बार भाषण दे रहे थे। तो किसी ने पूछा कि इस संसार में सर्वाधिक ज्ञानी कौन है? मूसा ने कहाः मैं हूँ। यह बात अल्लाह को अप्रिय लगी। और मूसा से फ़रमाया कि दो सागरों के संगम के पास मेरा एक भक्त है जो तुम से अधिक ज्ञानी है। मूसा ने कहाः मैं उस से कैसे मिल सकता हूँ? अल्लाह ने फ़रमायाः एक मछली रख लो, और जिस स्थान पर वह खो जाये, तो वहीं वह मिलेगा। और वह अपने सेवक यूशअ बिन नून को ले कर निकल पड़े। (संक्षिप्त अनुवाद सह़ीह़ बुख़ारीः 4725)
 
18:61
तो जब दोनों उनके संगम पर पहुँचे, तो दोनों अपनी मछली भूल गये और उसने सागर में अपनी राह बना ली, सुरंग के समान।
 
18:62
फिर, जब दोनों आगे चले गये, तो उस (मूसा) ने अपने सेवक से कहा कि हमारा दिन का भोजन लाओ। हम अपनी इस यात्रा से थक गये हैं।
 
18:63
उसने कहाः क्या आपने देखा? जब हमने उस शिला खण्ड के पास शरण ली थी, तो मैं मछली भूल गया और मुझे उसे शैतान ही ने भुला दिया कि मैं उसकी चर्चा करूँ और उसने अपनी राह सागर में अनोखे तरीक़े से बना ली।
 
18:64
मूसा ने कहाः वही है, जो हम चाहते थे। फिर दोनों अपने पद्चिन्हों को देखते हुए वापिस हुए।
 
18:65
और दोनों ने पाया हमारे भक्तों में से एक भक्त[1] को, जिसे हमने अपनी विशेष दया प्रदान की थी और उसे अपने पास से कुछ विशेष ज्ञान दिया था।
1. इस से अभिप्रेत आदरणीय ख़िज़्र अलैहिस्सलाम हैं
 
18:66
मूसा ने उससे कहाः क्या मैं आपका अनुसरण करूँ, ताकि मुझे भी उस भलाई में से कुछ सिखा दें, जो आपको सिखाई गई है?
 
18:67
उसने कहाः तुम मेरे साथ धैर्य नहीं कर सकोगे।
 
18:68
और कैसे धैर्य करोगे उस बात पर, जिसका तुम्हें पूरा ज्ञान नहीं?
 
18:69
उसने कहाः यदि अल्लाह ने चाहा, तो आप मुझे सहनशील पायेंगे और मैं आपकी किसी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करूँगा।
 
18:70
उसने कहाः यदि तुम्हें मेरा अनुसरण करना है, तो मुझसे किसी चीज़ के बारे में प्रश्न न करना, जब तक मैं स्वयं तुमसे उसकी चर्चा न करूँ।
 
18:71
फिर दोनों चले, यहाँ तक कि जब दोनों नौका में सवार हुए, तो उस (ख़िज़्र) ने उसमें छेद कर दिया। मूसा ने कहाः क्या आपने इसमें छेदकर दिया, ताकि उसके सवारों को डुबो दें, आपने अनुचित काम कर दिया।
 
18:72
उसने कहाः क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि तुम मेरे साथ सहन नहीं कर सकोगे?
 
18:73
कहाः मुझे आप मेरी भूल पर न पकड़े और मेरी बात के कारण मुझे असुविधा में न डालें।
 
18:74
फिर दोनों चले, यहाँ तक कि एक बालक से मिले, तो उस (ख़िज़्र) ने उसे वध कर दिया। मूसा ने कहाः क्या आपने एक निर्दोष प्राण ले लिया, वह भी किसी प्राण के बदले[1] नहीं? आपने बहुत ही बुरा काम किया।
1. अर्थात उस ने किसी प्राणी को नहीं मारा कि उस के बदले में उसे मारा जाये।
 
18:75
उसने कहाः क्या मैंने तुमसे नहीं कहा कि वास्तव में, तुम मेरे साथ धैर्य नहीं कर सकोगे?
 
18:76
मूसा ने कहाः यदि मैं आपसे प्रश्न करूँ, किसी विषय में इसके पश्चात्, तो मुझे अपने साथ न रखें। निश्चय आप मेरी ओर से याचना को पहुँच[1] चुके।
1. अर्थात अब कोई प्रश्न करूँ तो आप के पास मुझे अपने साथ न रखने का उचित कारण होगा।
 
18:77
फिर दोनो चले, यहाँ तक कि जब एक गाँव के वासियों के पास आये, तो उनसे भोजन माँगा। उन्होंने उनका अतिथि सत्कार करने से इन्कार कर दिया। वहाँ उन्होंने एक दीवार पायी, जो गिरा चाहती थी। उसने उसे सीधा कर दिया। कहाः यदि आप चाहते, तो इसपर पारिश्रमिक ले लेते।
 
18:78
उसने कहाः ये मेरे तथा तुम्हारे बीच वियोग है। मैं तुम्हें उसकी वास्तविक्ता बताऊँगा, जिसे तुम सहन नहीं कर सके।
 
18:79
रही नाव, तो वह कुछ निर्धनों की थी, जो सागर में काम करते थे। तो मैंने चाहा कि उसे छिद्रित[1] कर दूँ और उनके आगे एक राजा था, जो प्रत्येक (अच्छी) नाव का अपहरण कर लेता था।
1. अर्थात उस में छेद कर दूँ।
 
18:80
और रहा बालक, तो उसके माता-पिता ईमान वाले थे, अतः हम डरे कि उन्हें अपनी अवज्ञा और अधर्म से दुःख न पहुँचाये।
 
18:81
इसलिए हमने चाहा कि उन दोनों को उनका पालनहार, इसके बदले उससे अधिक पवित्र और अधिक प्रेमी प्रदान करे।
 
18:82
और रही दीवार, तो वह दो अनाथ बालकों की थी और उसके भीतर उनका कोष था और उनके माता-पिता पुनीत थे, तो तेरे पालनहार ने चाहा कि वे दोनों अपनी युवा अवस्था को पहुँचें और अपना कोष निकालें, तेरे पालनहार की दया से और मैंने ये अपने विचार तथा अधिकार से नहीं किया[1]। ये उसकी वास्तविक्ता है, जिसे तुम सहन नहीं कर सके।
1. यह सभी कार्य विशेष रूप से निर्दोष बालक का वध धार्मिक नियम से उचित न था। इस लिये मूसा (अलैहिस्सलाम) इस को सहन न कर सके। किन्तु ((ख़िज़्र)) को विशेष ज्ञान दिया गया था जो मूसा (अलैहिस्सलाम) के पास नहीं था। इस प्रकार अल्लाह ने जता दिया कि हर ज्ञानी के ऊपर भी कोई ज्ञानी है।
 
18:83
और (हे नबी!) वे आपसे ज़ुलक़रनैन[1] के विषय में प्रश्न करते हैं। आप कह दें कि मैं उनकी कुछ दशा तुम्हें पढ़कर सुना देता हूँ।
1. यह तीसरे प्रश्न का उत्तर है जिसे यहूदियों ने मक्का के मिश्रणवादियों द्वारा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कराया था। ज़ुलक़रनैन के आगामी आयतों में जो गुण-कर्म बताये गये हैं उन से विद्वित होता है कि वह एक सदाचारी विजेता राजा था। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के शोध के अनुसार यह वही राजा है जिसे यूनानी साईरस, हिब्रु भाषा में खोरिस तथा अरब में ख़ुसरु के नाम से पुकारा जाता है। जिस का शासन काल 559 ई पूर्व है। वह लिखते हैं कि 1838 ई में साईरस की एक पत्थर की मूर्ति अस्तख़र के खण्डरों में मिली है। जिस में बाज़ पक्षी के भाँति उस के दो पंख तथा उस के सिर पर भेड़ के समान दो सींग हैं। इस में मीडिया और फ़ारस के दो राज्यों की उपमा दो सींगों से दी गयी है। (देखियेः तर्जमानुल क़ुर्आन, भागः 3, पृष्ठः 436-438)
 
18:84
हमने उसे धरती में प्रभुत्व प्रदान किया तथा उसे प्रत्येक प्रकार का साधन दिया।
 
18:85
तो वह एक राह के पीछे लगा।
 
18:86
यहाँ तक कि जब सूर्यास्त के स्थान तक[1] पहुँचा, तो उसने पाया कि वह एक काली कीचड़ के स्रोत में डूब रहा है और वहाँ एक जाति को पाया। हमने कहाः हे ज़ुलक़रनैन! तू उन्हें यातना दे अथवा उनमें अच्छा व्यवहार बना।
1. अर्थात पश्चिम की अन्तिम सीमा तक।
 
18:87
उसने कहाः जो अत्याचार करेगा, हम उसे दण्ड देंगे। फिर वह अपने पालनहार की ओर फेरा[1] जायेगा, तो वह उसे कड़ी यातना देगा।
1. अर्थात निधन के पश्चात् प्रलय के दिन।
 
18:88
परन्तु जो ईमान लाये तथा सदाचार करे, तो उसी के लिए अच्छा प्रतिफल (बदला) है और हम उसे अपना सरल आदेश देंगे।
 
18:89
फिर वह एक (अन्य) राह की ओर लगा।
 
18:90
यहाँ तक कि सूर्य़ोदय के स्थान तक पहुँचा। तो उसे पाया कि ऐसी जाति पर उदय हो रहा है, जिससे हमने उनके लिए कोई आड़ नहीं बनायी है।
 
18:91
उनकी दशा ऐसी ही थी और उस (ज़ुलक़रनैन) के पास जो कुछ था, हम उससे पूर्णतः सूचित हैं।
 
18:92
फिर वह एक दूसरी राह की ओर लगा।
 
18:93
यहाँ तक कि जब दो पर्वतों के बीच पहुँचा, तो उन दोनों की उस ओर एक जाति को पाया, जो नहीं समीप थी कि किसी बात को समझे[1]।
1. अर्थात अपनी भाषा के सिवा कोई भाषा नहीं समझती थी।
 
18:94
उन्होंने कहाः हे ज़ुलक़रनैन! वास्तव में, याजूज तथा माजूज उपद्रवी हैं, इस देश में। तो क्या हम निर्धारित कर दें आपके लिए कुछ धन। इसलिए कि आप हमारे और उनके बीच कोई रोक (बन्ध) बना दें?
 
18:95
उसने कहाः जो कुछ मुझे मेरे पालनहार ने प्रदान किया है, वह उत्तम है। तो तुम मेरी सहायता बल और शक्ति से करो, मैं बना दूँगा तुम्हारे और उनके मध्य एक दृढ़ भीत।
 
18:96
मुझे लोहे की चादरें ला दो और जब दोनों पर्वतों के बीच दीवार तैयार कर दी, तो कहा कि आग दहकाओ, यहाँतक कि जब उस दीवार को आग (के समान लाल) कर दिया, तो कहाः मेरे पास लाओ, इसपर पिघला हुआ ताँबा उंडेल दूँ।
 
18:97
फिर वह उसपर चढ़ नहीं सकते थे और न उसमें कोई सेंध लगा सकते थे।
 
18:98
उस (ज़ुलक़रनैन) ने कहाः ये मेरे पालनहार की दया है। फिर जब मेरे पालनहार का वचन[1] आयेगा, तो वह इसे खण्ड-खण्ड कर देगा और मेरे पालनहार का वचन सत्य है।
1. वचन से अभिप्राय प्रलय के आने का समय है। जैसी कि सह़ीह़ बुख़ारी ह़दीस संख्याः3346 आदि में आता है कि क़्यामत आने के समीप याजूज-माजूज वह दीवार तोड़ कर निकलेंगे, और धरती में उपद्रव मचा देंगे।
  
18:99
और हम छोड़ देंगे उस[1] दिन लोगों को एक-दूसरे में लहरें लेते हुए तथा निरसिंघा में फूंक दिया जायेगा और हम सबको एकत्र कर देंगे।
1. इस आयत में उस प्रलय के आने के समय की दशा का चित्रण किया गया है जिसे ज़ुलक़रनैन ने सत्य वचन कहा है।
 
18:100
और हम सामने कर देंगे उस दिन नरक को काफ़िरों के समक्ष।
 
18:101
जिनकी आँखें मेरी याद से पर्दे में थीं और कोई बात सुन नहीं सकते थे।
 
18:102
तो क्या उन्होंने सोचा है जो काफ़िर हो गये कि वे बना लेंगे मेरे दासों को मेरे सिवा सहायक? वास्तव में, हमने काफ़िरों के आतिथ्य के लिए नरक तैयार कर दी है।
 
18:103
आप कह दें कि क्या हम तुम्हें बता दें कि कौन अपने कर्मों में सबसे अधिक क्षतिग्रस्त हैं?
 
18:104
वह हैं, जिनके सांसारिक जीवन के सभी प्रयास व्यर्थ हो गये तथा वे समझते रहे कि वे अच्छे कर्म कर रहे हैं।
 
18:105
यही वे लोग हैं, जिन्होंने नहीं माना अपने पालनहार की आयतों तथा उससे मिलने को, अतः हम प्रलय के दिन उनका कोई भार निर्धारित नहीं करेंगे[1]।
1. अर्थात उन का हमारे यहाँ कोई भार न होगा। ह़दीस में आया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः क़्यामत के दिन एक भारी भरकम व्यक्ति आयेगा। मगर अल्लाह के सदन में उस का भार मच्छर के पंख के बराबर भी नहीं होगा। फिर आप ने इसी आयत को पढ़ा। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4729)
  
18:106
उन्हीं का बदला नरक है, इस कारण कि उन्होंने कुफ़्र किया और मेरी आयतों और मेरे रसूलों का उपहास किया।
 
18:107
निश्चय जो ईमान लाये और सदाचार किये, उन्हीं के आतिथ्य के लिए फ़िरदौस[1] के बाग़ होंगे।
1. फ़िर्दौस, स्वर्ग के सर्वोच्च स्थान का नाम है। (सह़ीह़ बुख़ारीः7423)
 
18:108
उसमें वे सदावासी होंगे, उसे छोड़कर जाना नहीं चाहेंगे।
 
18:109
(हे नबी!) आप कह दें कि यदि सागर मेरे पालनहार की बातें लिखने के लिए स्याही बन जायेँ, तो सागर समाप्त हो जायें इससे पहले कि मेरे पालनहार की बातें समाप्त हों, यद्यपि उतनी ही स्याही और ले आयें।
 
18:110
आप कह देः मैंतो तुम जैसा एक मनुष्य पुरुष हूँ, मेरी ओर प्रकाशना (वह़्यी) की जाती है कि तुम्हारा पूज्य बस एक ही पूज्य है। अतः, जो अपने पालनहार से मिलने की आशा रखता हो, उसे चाहिए कि सदाचार करे और साझी न बनाये अपने पालनहार की इबादत (वंदना) में किसी को।
 
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सूरह अल-कहफ़ Surah al Kahf Hindi Pronounce Translation Arabic
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सूरह अल जुमुआ surah juma hindi pronounce translation and arabic

सूरह अल जुमुआ surah juma hindi pronounce translation and arabic

सूरह अल जुमुआ अरबी हिन्दी उच्चारण अनुवाद अर्थ
Surah al juma hindi pronounce translation and arabic 
नाम आयत 9 के वाक्यांश “जब पुकारा जाए नमाज़ के लिए जुमुआ (जुमा) के दिन" से उद्धृत है। यद्यपि सूरा में जुमा की नमाज़ के नियम सम्बन्ध आदेश दिया गए हैं , किन्तु समग्र रूप से जुमा इसकी वार्ताओं का शीर्षक नहीं है , बल्कि अन्य सूरतों की तरह यह नाम भी चिह्न ही की तरह है। सूरह no 62


بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है


1. يُسَبِّحُ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ الْمَلِكِ الْقُدُّوسِ الْعَزِيزِ الْحَكِيمِ
यु सब्बिहु लिल्लाहि मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्जिल् – मलिकिल् – कुद्दूसिल् अ़ज़ीज़िल – हकीम (1)
﴾ 1 ﴿ अल्लाह की पवित्रता का वर्णन करती हैं, वह सब चीज़ें, जो आकाशों तथा धरती में हैं। जो अधिपति, अति पवित्र, प्रभावशाली, गुणी (दक्ष) है।


2. هُوَ الَّذِي بَعَثَ فِي الْأُمِّيِّينَ رَسُولًا مِنْهُمْ يَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِهِ وَيُزَكِّيهِمْ وَيُعَلِّمُهُمُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَإِنْ كَانُوا مِنْ قَبْلُ لَفِي ضَلَالٍ مُبِينٍ
हुवल्लज़ी ब – अ़ – स फिल् – उम्मिय्यी – न रसूलम् – मिन्हुम् यत्लू अ़लैहिम् आयातिही व युज़क्कीहिम् व युअ़ल्लिमुहुमुल् – किता – ब वल्हिक्म – त व इन् कानू मिन् क़ब्लु लफ़ी ज़लालिम् – मुबीन (2)
﴾ 2 ﴿ वही है, जिसने निरक्षरों[1] में एक रसूल भेजा उन्हीं में से। जो पढ़कर सुनाते हैं उन्हें अल्लाह की आयतें और पवित्र करते हैं उन्हें तथा शिक्षा देते हैं उन्हें पुस्तक (क़ुर्आन) तथा तत्वदर्शिता (सुन्नत)[2] की। यद्यपि वे इससे पूर्व खुले कुपथ में थे।
1. अनभिज्ञों से अभिप्राय, अरब हैं। अर्थात जो अह्ले किताब नहीं हैं। भावार्थ यह है कि पहले रसूल इस्राईल की संतति में आते रहे। और अब अन्तिम रसूल इस्माईल की संतति में आया है। जो अल्लाह की पुस्तक क़ुर्आन पढ़ कर सुनाते हैं। यह केवल अरबों के नबी नहीं पूरे मनुष्य जाति के नबी हैं। 2. सुन्नत जिस के लिये ह़िक्मत शब्द आया है उस से अभिप्राय साधारण परिभाषा में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की ह़दीस, अर्थात आप का कथन और कर्म इत्यादि है।


3. وَآخَرِينَ مِنْهُمْ لَمَّا يَلْحَقُوا بِهِمْ ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
व आ – ख़री – न मिन्हुम् लम्मा यल्हकू बिहिम् , व हुवल् अ़ज़ीजुल – हकीम (3)
﴾ 3 ﴿ तथा दूसरों के लिए भी उनमें से, जो उनसे अभी नहीं[1] मिले हैं। वह अल्लाह प्रभुत्वशाली, गुणी है।
1. अर्थात आप अरब के सिवा प्रलय तक के लिये पूरे मानव संसार के लिये भी रसूल बना कर भेजे गये हैं। ह़दीस में है कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से प्रश्न किया गया कि वह कौन हैं? तो आप ने अपना हाथ सलमान फ़ारसी के ऊपर रख दिया। और कहाः यदि ईमान सुरैया (आकाश के कुछ तारों का नाम) के पास भी हो तो कुछ लोग उस को वहाँ से भी प्राप्त कर लेंगे। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4897)


4. ذَٰلِكَ فَضْلُ اللَّهِ يُؤْتِيهِ مَنْ يَشَاءُ ۚ وَاللَّهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيمِ
ज़ालि – क फ़ज़्लुल्लाहि युअ्तीहि मंय्यशा – उ , वल्लाहु जुल् – फ़ज़्लिल् – अ़ज़ीम (4)
﴾ 4 ﴿ ये[1] अल्लाह का अनुग्रह है, जिसे वह प्रदान करता है उसे, जिसे वह चाहता है और अल्लाह बड़े अनुग्रह वाला है।
1. अर्थात आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को अरबों तथा पूरे मानव संसार के लिये रसूल बनाना।


5. مَثَلُ الَّذِينَ حُمِّلُوا التَّوْرَاةَ ثُمَّ لَمْ يَحْمِلُوهَا كَمَثَلِ الْحِمَارِ يَحْمِلُ أَسْفَارًا ۚ بِئْسَ مَثَلُ الْقَوْمِ الَّذِينَ كَذَّبُوا بِآيَاتِ اللَّهِ ۚ وَاللَّهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ
म – सलुल्लज़ी – न हुम्मिलुत् – तौरा – त सुम् – म लम् यह़्मिलूहा क – म – सलिल् – हिमारि यह़्मिलु अस्फारन् , बिअ् – स म – सलुल् – कौ़मिल्लज़ी – न कज़्ज़बू बिआयातिल्लाहि , वल्लाहु ला यहदिल् – कौ़मज् – ज़ालिमीन (5)
﴾ 5 ﴿ उनकी दशा जिनपर तौरात का भार रखा गया, फिर तदानुसार कर्म नहीं किया, उस गधे के समान है, जिसके ऊपर पुस्तकें[1] लदी हुई हों। बुरा है उस जाति का उदाहरण, जिन्होंने झुठला दिया अल्लाह की आयतों को और अल्लाह मार्गदर्शन नहीं देता अत्याचारियों को।
1. अर्थात जैसे गधे को अपने ऊपर लादी हुई पुस्तकों का ज्ञान नहीं होता कि उन में क्या लिखा है वैसे ही यह यहूदी तोरात के अनुसार कर्म न कर के गधे के समान हो गये हैं।


6. قُلْ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ هَادُوا إِنْ زَعَمْتُمْ أَنَّكُمْ أَوْلِيَاءُ لِلَّهِ مِنْ دُونِ النَّاسِ فَتَمَنَّوُا الْمَوْتَ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ
कुल् या अय्युहल्लज़ी – न हादू इन् ज़ – अ़म्तुम् अन्नकुम् औलिया – उ लिल्लाहि मिन् दुनिन्नासि फ़ – तमन्नवुल् – मौ – त इन् कुन्तुम् सादिक़ीन (6)
﴾ 6 ﴿ आप कह दें कि हे यहूदियो! यदि तुम समझते हो कि तुम ही अल्लाह के मित्र हो अन्य लोगों के अतिरिक्त, तो कामना करो मरण की यदि तुन सच्चे[1] हो?
1. यहूदियों का दावा था कि वही अल्लाह के प्रियवर हैं। (देखियेः सूरह बक़रह, आयतः 111, तथा सूरह माइदा, आयतः 18) इस लिये कहा जा रहा है स्वर्ग में पहुँचने कि लिये मौत की कामना करो।

7. وَلَا يَتَمَنَّوْنَهُ أَبَدًا بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ ۚ وَاللَّهُ عَلِيمٌ بِالظَّالِمِينَ
व ला य – तमन्नौनहू अ – बदम् – बिमा क़द्द – मत् ऐदीहिम् , वल्लाहु अ़लीमुम् – बिज़्ज़ालिमीन (7)
﴾ 7 ﴿ तथा वे अपने किये हुए करतूतों के कारण, कदापि उसकी कामना नहीं करेंगे और अल्लाह भली-भाँति अवगत है अत्याचारियों से।


8. قُلْ إِنَّ الْمَوْتَ الَّذِي تَفِرُّونَ مِنْهُ فَإِنَّهُ مُلَاقِيكُمْ ۖ ثُمَّ تُرَدُّونَ إِلَىٰ عَالِمِ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ فَيُنَبِّئُكُمْ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ
कुल् इन्नल् – मौतल्लज़ी तफ़िर्रू – न मिन्हु फ़ – इन्नहू मुलाक़ीकुम् सुम् – म तुरद्दू – न इला आ़लिमिल् – गै़बि वश्शहा – दति फ़युनब्बिउकुम् बिमा कुन्तुम् तअ्मलून (8)
﴾ 8 ﴿ आप कह दें कि जिस मौत से तुम भाग रहे हो, वह अवश्य तुमसे मिलकर रहेगी। फिर तुम अवश्य फेर दिये जाओगे परोक्ष (छुपे) तथा प्रत्यक्ष (खुले) के ज्ञानी की ओर। फिर वह तुम्हें सूचित कर देगा उससे, जो तुम करते हो।[1]
1. अर्थात तुम्हारे दुष्कर्मों के परिणाम से।


9. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا نُودِيَ لِلصَّلَاةِ مِنْ يَوْمِ الْجُمُعَةِ فَاسْعَوْا إِلَىٰ ذِكْرِ اللَّهِ وَذَرُوا الْبَيْعَ ۚ ذَٰلِكُمْ خَيْرٌ لَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ
या अय्युहल्लज़ी – न आमनू इज़ा नूदि – य लिस्सलाति मिंय्यौमिल् – जुमु – अ़ति फ़स्औ़ इला ज़िक्रिल्लाहि व ज़रुल – बै – अ , ज़ालिकुम् खै़रुल् – लकुम् इन् कुन्तुम् तअ्लमून (9)
﴾ 9 ﴿ हे ईमान वालो! जब अज़ान दी जाये नमाज़ के लिए जुमुआ के दिन, तो दौड़[1] जाओ अल्लाह की याद की ओर तथा त्याग दो क्रय-विक्रय।[2] ये उत्तम है तुम्हारे लिए, यदि तुम जानो।
1. अर्थ यह है जुमुआ की अज़ान हो जाये तो अपने सारे कारोबार बंद कर के जुमुआ का ख़ुत्बा सुनने, और जुमुआ की नमाज़ पढ़ने के लिये चल पड़ो। 2. इस से अभिप्राय संसारिक कारोबार है।


10. فَإِذَا قُضِيَتِ الصَّلَاةُ فَانْتَشِرُوا فِي الْأَرْضِ وَابْتَغُوا مِنْ فَضْلِ اللَّهِ وَاذْكُرُوا اللَّهَ كَثِيرًا لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
फ़ – इज़ा कुजि – यतिस्सलातु फ़न्तशिरू फिल्अर्जि वब्तगू मिन् फज्लिल्लाहि वजकुरुल्ला – ह कसीरल् – लअ़ल्लकुम् तुफ़्लिहून (10)
﴾ 10 ﴿ फिर जब नमाज़ हो जाये, तो फैल जाओ धरती में तथा खोज करो अल्लाह के अनुग्रह की तथा वर्णन करते रहो अल्लाह का अत्यधिक, ताकि तुम सफल हो जाओ।


11. وَإِذَا رَأَوْا تِجَارَةً أَوْ لَهْوًا انْفَضُّوا إِلَيْهَا وَتَرَكُوكَ قَائِمًا ۚ قُلْ مَا عِنْدَ اللَّهِ خَيْرٌ مِنَ اللَّهْوِ وَمِنَ التِّجَارَةِ ۚ وَاللَّهُ خَيْرُ الرَّازِقِينَ
व इज़ा रऔ तिजा – रतन् औ लह् – व – निन्फ़ज़्जू इलैहा व त – रकू – क का़इमन् , कुल् मा अिन्दल्लाहि खै़रुम् -मिनल् -लहवि व मिनत्तिजा- रति , वल्लाहु खै़रुर् – राज़िक़ीन (11)
﴾ 11 ﴿ और जब वे देख लेते हैं कोई व्यापार अथवा खेल, तो उसकी ओर दौड़ पड़ते हैं।[1] तथा आपको छोड़ देते हैं खड़े। आप कह दें कि जो कुछ अल्लाह के पास है, वह उत्तम है खेल तथा व्यापार से और अल्लाह सर्वोत्तम जीविका प्रदान करने वाला है।
1. ह़दीस में है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जुमुआ का ख़ुत्बा (भाषण) दे रहे थे कि एक कारवाँ ग़ल्ला ले कर आ गया। और सब लोग उस की ओर दौड़ पड़े। बारह व्यक्ति ही आप के साथ रह गये। उसी पर अल्लाह ने यह आयत उतारी। (सह़ीह़ बुख़ारीः- 4899)


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सूरह अल बय्यिना Surah al Bayyinah in Hindi Pronounce Translation Arabic

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अ ऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्ला हिर रहमानिर रहीम
अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है
 
1. لَمْ يَكُنِ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ وَالْمُشْرِكِينَ مُنْفَكِّينَ حَتَّىٰ تَأْتِيَهُمُ الْبَيِّنَةُ
1. लम यकुनिल लज़ीना कफरू मिन अहलिल किताबि वल मुशरिकीना मुन्फक कीना हत्ता तअ’ति यहुमुल बय्यिनह
﴾ 1 ﴿ अह्ले किताब के काफ़िर और मुश्रिक लोग ईमान लाने वाले नहीं थे जब तक कि उनके पास खुला प्रमाम न आ जाये।
2. رَسُولٌ مِنَ اللَّهِ يَتْلُو صُحُفًا مُطَهَّرَةً
2. रसूलुम मिनल लाहि यत्लू सुहुफ़म मुतह हरह
﴾ 2 ﴿ अर्थात अल्लाह का एक रसूल, जो पवित्र ग्रन्थ पढ़कर सुनाये।

 
3. فِيهَا كُتُبٌ قَيِّمَةٌ
3. फ़ीहा कुतुबुन क़य्यिमह
﴾ 3 ﴿ जिसमें उचित आदेश है।
4. وَمَا تَفَرَّقَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ إِلَّا مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَتْهُمُ الْبَيِّنَةُ
4. वमा तफर रक़ल लज़ीना ऊतुल किताबा इल्ला मिम ब’अदि मा जा अत्हुमुल बय्यिनह
﴾ 4 ﴿ और जिन लोगों को ग्रन्थ दिये गये, उन्होंने इस खुले प्रमाण के आ जाने के पश्चात ही मतभेद किया।
5. وَمَا أُمِرُوا إِلَّا لِيَعْبُدُوا اللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ حُنَفَاءَ وَيُقِيمُوا الصَّلَاةَ وَيُؤْتُوا الزَّكَاةَ ۚ وَذَٰلِكَ دِينُ الْقَيِّمَةِ
5. वमा उमिरू इल्ला लियअ’बुदुल लाहा मुखलिसीना लहुद दीन हुनाफ़ा अ वयुक़ीमुस सलाता व युअ’तुज़ ज़काता व ज़ालिका दीनुल क़य्यिमह
﴾ 5 ﴿ और उन्हें केवल यही आदेश दिया गया था कि वे धर्म को शुध्द रखें और सबको तज कर केवल अल्लाह की उपासना करें, नमाज़ अदा करें और ज़कात दें और यही शाश्त धर्म है।
6. إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ وَالْمُشْرِكِينَ فِي نَارِ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا ۚ أُولَٰئِكَ هُمْ شَرُّ الْبَرِيَّةِ
6. इन्नल लज़ीना कफरू मिन अहलिल किताबि वल मुशरिकीना फ़ी नारि जहन्नमा खालिदीना फ़ीहा उलाइका हुम शररुल बरिय्यह
﴾ 6 ﴿ निःसंदेह, जो लोग अह्ले किताब में से काफ़िर हो गये तथा मुश्रिक (मिश्रणवादी), तो वे सदा नरक की आग में रहेंगे और वही दुष्टतम जन हैं।

 
7. إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أُولَٰئِكَ هُمْ خَيْرُ الْبَرِيَّةِ
7. इन्नल लज़ीना आमनू अमिलुस सालिहाति उलाइका हुम खैरुल बरिय्यह
﴾ 7 ﴿ जो लोग ईमान लाये तथा सदाचार करते रहे, तो वही सर्वश्रेष्ठ जन हैं।

 
8. جَزَاؤُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ جَنَّاتُ عَدْنٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا ۖ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا عَنْهُ ۚ ذَٰلِكَ لِمَنْ خَشِيَ رَبَّهُ
8. जज़ाउहुम इन्दा रब्बिहिम जन्नातु अदनिन तजरी मिन तहतिहल अन्हारु खालिदीना फ़ीहा अबदा रज़ियल लाहू अन्हुम वरजू अन्ह ज़ालिका लिमन खशिया रब्बह
﴾ 8 ﴿ उनका प्रतिफल उनके पालनहार की ओर से सदा रहने वाले बाग़ हैं। जिनके नीचे नहरें बहती होंगी। वे उनमें सदा निवास करेंगे। अल्लाह उनसे प्रसन्न हुआ और वे अल्लाह से प्रसन्न हुए। ये उसके लिए है, जो अपने पालनहार से डरा।

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सूरह अल बुरूज Surah Burooj In Hindi Pronounced Translation

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सूरह अल बुरूज अरबी हिंदी उच्चारण अनुवाद अर्थ surah al burooj in hindi
 

अ ऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्ला हिर रहमानिर रहीम
अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है
1. وَالسَّمَاءِ ذَاتِ الْبُرُوجِ
वस समाइ ज़ातिल बुरूज
क़सम है बुर्जों वाले आसमान की

2. وَالْيَوْمِ الْمَوْعُودِ
वल यौमिल मौऊद
और उस दिन की, जिस दिन का वादा किया गया है

3. وَشَاهِدٍ وَمَشْهُودٍ
वशा हिदिव व मशहूद
और मुशाहदा करने वाले की, और उसकी जिसका मुशाहदा किया जायेगा

4. قُتِلَ أَصْحَابُ الْأُخْدُودِ
क़ुतिला अस हाबुल उख्दूद
कि ख़ुदा की मार हो उन खंदक खोदने वालों पर

5. النَّارِ ذَاتِ الْوَقُودِ
अन्नारि ज़ातिल वक़ूद
उस आग वालों पर जो ईंधन से भरी हुई थी

6. إِذْ هُمْ عَلَيْهَا قُعُودٌ
इज़ हुम अलैहा क़ुऊद
जब वो उस के पास बैठे हुए थे

7. وَهُمْ عَلَىٰ مَا يَفْعَلُونَ بِالْمُؤْمِنِينَ شُهُودٌ
वहुम अला मा यफ़ अलूना बिल मुअ’मिनीना शुहूद
और जो कुछ वो मुसलमानों के साथ कर रहे थे, वो उस को देख भी रहे थे

8. وَمَا نَقَمُوا مِنْهُمْ إِلَّا أَنْ يُؤْمِنُوا بِاللَّهِ الْعَزِيزِ الْحَمِيدِ
वमा नक़मू मिन्हुम इल्ला अय युअ’मिनू बिल लाहिल अज़ीज़िल हमीद
वो मुसलमानों को किसी और बात की नहीं, सिर्फ़ इस बात की सज़ा दे रहे थे कि वो उस अल्लाह पर ईमान रखते थे जो ग़ालिब और बड़ी ख़ूबियों वाले हैं

9. الَّذِي لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَاللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ
अल्लज़ी लहू मुल्कुस सामावति वल अर्द, वल लाहु अला कुल्लि शैइन शहीद
जिस के क़ब्ज़े में सारे आसमान और ज़मीन की सल्तनत है और अल्लाह हर चीज़ को देख रहा है

10. إِنَّ الَّذِينَ فَتَنُوا الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ ثُمَّ لَمْ يَتُوبُوا فَلَهُمْ عَذَابُ جَهَنَّمَ وَلَهُمْ عَذَابُ الْحَرِيقِ
इन्नल लज़ीना फ़-तनुल मुअ’मिनीन वल मुअ’मिनाति सुम्म लम यतूबू फ़ लहुम अज़ाबू जहान्नमा व लहुम अजाबुल हरीक़
इस में कोई शक नहीं कि जिन लोगों ने मुसलमान मर्दों और औरतों को तकलीफ़ें दीं फिर तौबा नहीं की, तो उन लोगों के लिए जहन्नम का अज़ाब और जलने की सज़ा है

11. إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُمْ جَنَّاتٌ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ ۚ ذَٰلِكَ الْفَوْزُ الْكَبِيرُ
इन्नल लज़ीना आमनू व अमिलुस सलिहाति लहुम जन्नातुन तजरी मिन तहतिहल अन्हार, ज़ालिकल फौज़ुल कबीर
यक़ीनन जो लोग ईमान लाये और उन्होंने नेक अमल किये, उन के लिए (जन्नत में ) ऐसे बाग़ात हैं जिन के नीचे नहरें जारी होंगी, यही है बड़ी कामयाबी

12. إِنَّ بَطْشَ رَبِّكَ لَشَدِيدٌ
इन्ना बत्शा रब्बिका ल-शदीद
हक़ीक़त ये है कि तुम्हारे परवरदिगार की पकड़ बहुत सख्त है

13. إِنَّهُ هُوَ يُبْدِئُ وَيُعِيدُ
इन्नहू हुवा युब्दिउ व युईद
वही पहली मर्तबा पैदा करता है और वही दोबारा पैदा करेगा

14. وَهُوَ الْغَفُورُ الْوَدُودُ
व हुवल ग़फूरुल वदूद
और वो बहुत बख्शने वाला बहुत मुहब्बत करने वाला है

15. ذُو الْعَرْشِ الْمَجِيدُ
जुल अरशिल मजीद
अर्श का मालिक है बुज़ुर्गी वाला है

16. فَعَّالٌ لِمَا يُرِيدُ
फ़अ आलुल लिमा युरीद
जो कुछ इरादा करता है कर गुज़रता है

17. هَلْ أَتَاكَ حَدِيثُ الْجُنُودِ
हल अताका हदीसुल जुनूद
क्या तुम्हारे पास उन लश्करों की ख़बर पहुंची है

18. فِرْعَوْنَ وَثَمُودَ
फ़िरऔना व समूद
फ़िर औन और समूद के ( लश्करों ) की ?

19. بَلِ الَّذِينَ كَفَرُوا فِي تَكْذِيبٍ
बलिल लज़ीना कफ़रू फ़ी तकज़ीब
इसके बावुजूद काफ़िर लोग हक़ को झुटलाने में लगे हुए हैं

20. وَاللَّهُ مِنْ وَرَائِهِمْ مُحِيطٌ
वल लाहु मिव वराइहिम मुहीत
जबकि अल्लाह ने उनको घेरे में लिया हुआ है

21. بَلْ هُوَ قُرْآنٌ مَجِيدٌ
बल हुवा क़ुरआनुम मजीद
(उनके झुटलाने से क़ुरान पर कोई असर नहीं पड़ता) बल्कि ये बड़ी अज़मत वाला क़ुरान है

22. فِي لَوْحٍ مَحْفُوظٍ
फ़ी लौहिम महफूज़
जो लौहे महफूज़ में दर्ज है

सूरह अत तारिक हिंदी उच्चारण अनुवाद अरबी surah at tariq in hindi

सूरह अत तारिक हिंदी उच्चारण अनुवाद अरबी surah at tariq in hindi

सूरह अत तारिक हिंदी उच्चारण अनुवाद अरबी surah at tariq in hindi
सूरह अत तारिक हिंदी उच्चारण अनुवाद तरजुमा अरबी surah at tariq in hindi mein translation pronounce arabic

अऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्ला हिर रहमानिर रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
1. وَالسَّمَاءِ وَالطَّارِقِ
उच्चारण: वस समाइ वत तारिक
अनुवाद: शपथ है आकाश तथा रात में “प्रकाश प्रदान करने वाले” की!

2. وَمَا أَدْرَاكَ مَا الطَّارِقُ
उच्चारण: वमा अद राका मत तारिक
अनुवाद: और तुम क्या जानो कि वह “रात में प्रकाश प्रदान करने वाला” क्या है?

3. النَّجْمُ الثَّاقِبُ
उच्चारण: अन नज्मुस साक़िब
अनुवाद: वह ज्योतिमय सितारा है।

4. إِنْ كُلُّ نَفْسٍ لَمَّا عَلَيْهَا حَافِظٌ
उच्चारण: इन कुल्लु नफ्सिल लम्मा अलैहा हाफ़िज़
अनुवाद: प्रत्येक प्राणी पर एक रक्षक है।[1]
तरजुमा: (1-4) इन में आकाश के तारों को इस बात की गवाही में लाया गया है कि विश्व की कोई ऐसी वस्तु नहीं है जो एक रक्षक के बिना अपने स्थान पर स्थित रह सकती है, और वह रक्षक स्वयं अल्लाह है।

5. فَلْيَنْظُرِ الْإِنْسَانُ مِمَّ خُلِقَ
उच्चारण: फ़ल यनज़ुरिल इंसानु मिम्म खुलिक़
अनुवाद: इन्सान, ये तो विचार करे कि वह किस चीज़ से पैदा किया गया है?

6. خُلِقَ مِنْ مَاءٍ دَافِقٍ
उच्चारण: खुलिक़ा मिम माइन दाफ़िक़
अनुवाद: उछलते पानी (वीर्य) से पैदा किया गया है।

7. يَخْرُجُ مِنْ بَيْنِ الصُّلْبِ وَالتَّرَائِبِ
उच्चारण: यख़रुजू मिम बैनिस सुल्बि वत तरा..इब
अनुवाद: जो पीठ तथा सीने के पंजरों के मध्स से निकलता है।

8. إِنَّهُ عَلَىٰ رَجْعِهِ لَقَادِرٌ
उच्चारण: इन्नहू अला रजइही लक़ादिर
अनुवाद: निश्चय वह, उसे लौटाने की शक्ति रखता है।[1]
तरजुमा: (5-8) इन आयतों में इन्सान का ध्यान उस के अस्तित्व की ओर आकर्षित किया गया है कि वह विचार तो करे कि कैसे पैदा किया गया है वीर्य से? फिर उस की निरन्तर रक्षा कर रहा है। फिर वही उसे मृत्यु के पश्चात पुनः पैदा करने की शक्ति भी रखता है।

9. يَوْمَ تُبْلَى السَّرَائِرُ
उच्चारण: यौमा तुब्लस सराइर
अनुवाद: जिस दिन मन के भेद परखे जायेंगे।

10. فَمَا لَهُ مِنْ قُوَّةٍ وَلَا نَاصِرٍ
उच्चारण: फ़मा लहू मिन क़ुव्वतिव वला नासिर
अनुवाद: तो उसे न कोई बल होगा और न उसका कोई सहायक।[1]
तरजुमा: (9-10) इन आयतों में यह बताया गया है कि फिर से पैदाइश इस लिये होगी ताकि इन्सान के सभी भेदों की जाँच की जाये जिन पर संसार में पर्दा पड़ा रह गया था और सब का बदला न्याय के साथ दिया जाये।*

11. وَالسَّمَاءِ ذَاتِ الرَّجْعِ
उच्चारण: वस समाइ जातिर रजइ
अनुवाद: शपथ है आकाश की, जो बरसता है!

12. وَالْأَرْضِ ذَاتِ الصَّدْعِ
उच्चारण: वल अरदि जातिस सदअ
अनुवाद: तथा फटने वाली धरती की।

13. إِنَّهُ لَقَوْلٌ فَصْلٌ
उच्चारण: इन्नहू लक़ौलुन फ़स्ल
अनुवाद: वास्तव में, ये (क़ुर्आन) दो-टूक निर्णय (फ़ैसला) करने वाला है।

14. وَمَا هُوَ بِالْهَزْلِ
उच्चारण: वमा हुवा बिल हज्ल
अनुवाद: हँसी की बात नहीं।[1]*
तरजुमा: (11-14) इन आयतों में बताया गया है कि आकाश से वर्षा का होना तथा धरती से पेड़ पौधों का उपजना कोई खेल नहीं एक गंभीर कर्म है। इसी प्रकार क़ुर्आन में जो तथ्य बताये गये हैं वह भी हँसी उपहास नहीं हैं पक्की और अडिग बातें हैं। काफ़िर (विश्वासहीन) इस भ्रम में न रहें कि उन की चालें इस क़ुर्आन की आमंत्रण को विफल कर देंगी। अल्लाह भी एक उपाय में लगा है जिस के आगे इन की चालें धरी रह जायेंगी।**

15. إِنَّهُمْ يَكِيدُونَ كَيْدًا
उच्चारण: इन्नहुम यकीदूना कैदा
अनुवाद: वह चाल बाज़ी करते हैं।

16. وَأَكِيدُ كَيْدًا
उच्चारण: व अकीदु कैदा
अनुवाद: मैं भी चाल बाज़ी कर रहा हूँ।

17. فَمَهِّلِ الْكَافِرِينَ أَمْهِلْهُمْ رُوَيْدًا
उच्चारण: फ़मह हिलिल काफ़िरीना अमहिल हुम रुवैदा
अनुवाद: अतः, काफ़िरों को कुछ थोड़ा अवसर दे दो।[1]
तरजुमा: (15-17) इन आयतों में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को सांत्वना तथा अधर्मियों को यह धमकी दे कर बात पूरी कर दी गई है कि आप तनिक सहन करें और विश्वासहीन को मनमानी कर लेने दें, कुछ ही देर होगी कि इन्हें अपने दुष्परिणाम का ज्ञान हो जायेगा। और इक्कीस वर्ष ही बीते थे कि पूरे मक्का और अरब द्वीप में इस्लाम का ध्वज लहराने लगा।*

Surah An Nas in Hindi Pronounced Translation - सूरह नास हिन्दी अनुवाद का उच्चारण

Surah An Nas in Hindi Pronounced Translation - सूरह नास हिन्दी अनुवाद का उच्चारण

Surah An Nas in Hindi Pronounced Translation - सूरह नास हिन्दी अनुवाद का उच्चारण
الناس  -  सूरह नास हिंदी में - Surah An Nas in Hindi
यह सूरत मक्का में नाज़िल हुई 

بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ ‎‎
बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम
शुरू करता हु अल्लाह के नाम से जो निहायत मेहरबान व रहम वाला है 
Arabic:
قُلۡ أَعُوذُ بِرَبِّ ٱلنَّاسِ
مَلِكِ ٱلنَّاسِ
إِلَـٰهِ ٱلنَّاسِ
مِن شَرِّ الْوَسْوَاسِ الْخَنَّاسِ
الَّذِي يُوَسْوِسُ فِي صُدُورِ النَّاسِ
مِنَ الْجِنَّةِ وَ النَّاسِ

उच्चारण:
क़ुल अऊज़ु बिरब्बिन-नास
मलिकिन-नास
इलाहिन-नास
मिन शररिल वसवासिल ख़न्नास-
अल्लज़ी युवास्विसु फ़ी सुदूरिन्नास
मिनल-जिन्नति वन्नास

अर्थ:
(ऐ रसूल) तुम कह दो मैं लोगों के परवरदिगार
लोगों के बादशाह
लोगों के माबूद की (शैतानी)
वसवसे की बुराई से पनाह माँगता हूँ
जो (ख़ुदा के नाम से) पीछे हट जाता है जो लोगों के दिलों में वसवसे डाला करता है
जिन्नात में से ख्वाह आदमियों में से

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Surah Al Baqarah in Hindi सूरह अल बक़रा

Surah Al Baqarah in Hindi सूरह अल बक़रा


बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है
अलिफ्-लाम्-मीम् (1)
अलीफ़ लाम मीम (1)
जालिकल्-किताबु ला रै-ब फ़ीहि हुदल्लिल्-मुत्तकीन (2)
ये वह किताब है । जिस ( के किताबे खुदा होने ) में कुछ भी शक नहीं ( ये ) परहेज़गारों की रहनुमा है (2)
अल्लज़ी-न युअमिनू-न बिल-गैबि व युक़ीमूनस्सला-त व मिम्मा र-ज़क़्नाहुम् युन्फिकून (3)
जो ग़ैब पर ईमान लाते हैं और ( पाबन्दी से ) नमाज़ अदा करते हैं और जो कुछ हमने उनको दिया है उसमें से ( राहे खुदा में ) ख़र्च करते हैं (3)
वल्लज़ी-न युअ्मिनू-न बिमा उन्ज़ि-ल इलै-क वमा उन्जि-ल मिन् कब्लि-क व बिल्-आखि-रति हुम् यूकिनून (4)
और जो कुछ तुम पर ( ऐ रसूल ) और तुम से पहले नाज़िल किया गया है उस पर ईमान लाते हैं और वही आख़िरत का यक़ीन भी रखते हैं (4)
उलाइ-क अला हुदम्-मिर्रब्बिहिम् व उलाइ-क हुमुल्-मुफ़लिहून (5)
यही लोग अपने परवरदिगार की हिदायत पर (आमिल) हैं और यही लोग अपनी दिली मुरादें पाएँगे (5)
इन्नल्लज़ी-न क-फरू सवाउन् अलैहिम् अ-अन्जर-तहुम् अम् लम् तुन्जिरहुम ला युअमिनून (6)
बेशक जिन लोगों ने कुफ्र इख़तेयार किया उनके लिए बराबर है ( ऐ रसूल ) ख्वाह ( चाहे ) तुम उन्हें डराओ या न डराओ वह ईमान न लाएंगे (6)
ख-तमल्लाहु अला कुलूबिहिम् व अला सम्अिहिम् व अला अब्सारिहिम् गिशा-वतुंव-व लहुम् अज़ाबुन् अज़ीम (7)
उनके दिलों पर और उनके कानों पर नज़र करके खुदा ने तसदीक़ कर दी है कि ये ईमान न लाएँगे और उनकी आँखों पर परदा पड़ा हुआ है और उन्हीं के लिए ( बहुत ) बड़ा अज़ाब है (7)
व मिनन्नासि मंय्यकूलु आमन्ना बिल्लाहि व बिल्यौमिल्-आखिरि व मा हुम् बिमुअमिनीन (8)
और बाज़ लोग ऐसे भी हैं जो ( ज़बान से तो ) कहते हैं कि हम खुदा पर और क़यामत पर ईमान लाए हालाँकि वह दिल से ईमान नहीं लाए (8)
युख़ादिअूनल्ला-ह वल्लज़ी-न आमनू , व मा यख्दअू-न इल्ला अन्फुसहुम् व मा यश्अुरून (9)
खुदा को और उन लोगों को जो ईमान लाए धोखा देते हैं हालाँकि वह अपने आपको धोखा देते हैं और कुछ शऊर नहीं रखते हैं (9)
फ़ी कुलू बिहिम् म-र-जुन् फ़ज़ा – दहुमुल्लाहु म-र-जन् व लहुम् अज़ाबुन् अलीमुम् बिमा कानू यक्ज़िबून (10)
उनके दिलों में मर्ज़ था ही अब खुदा ने उनके मर्ज़ को और बढ़ा दिया और चूँकि वह लोग झूठ बोला करते थे इसलिए उन पर तकलीफ देह अज़ाब है (10)
व इज़ा की-ल लहुम् ला तुफ्सिदू फिलअर्ज़ि कालू इन्नमा नहनु मुस्लिहून (11)
और जब उनसे कहा जाता है कि मुल्क में फसाद न करते फिरो ( तो ) कहते हैं कि हम तो सिर्फ इसलाह करते (11)
अला इन्नहुम् हुमुल-मुफ्सिदू-न व ला किल्ला यश्अुरून (12)
ख़बरदार हो जाओ बेशक यही लोग फसादी हैं लेकिन समझते नहीं (12)
व इज़ा की-ल लहुम् आमिनू कमा आ-मनन्नासु कालू अनुअ्मिनु कमा आ-मनस् सुफ़-हा-उ , अला इन्नहुम् हुमुस्-सुफ़-हा-उ वला किल्ला यअलमून (13)
और जब उनसे कहा जाता है कि जिस तरह और लोग ईमान लाए हैं तुम भी ईमान लाओ तो कहते हैं क्या हम भी उसी तरह ईमान लाएँ जिस तरह और बेवकूफ़ लोग ईमान लाएँ , ख़बरदार हो जाओ लोग बेवकूफ़ हैं लेकिन नहीं जानते (13)
व इज़ा लकुल्लज़ी-न आमनू कालू आमन्ना व इज़ा खलौ इला शयातीनिहिम् कालू इन्ना म-अकुम् इन्नमा नहनु मुस्तहज़िऊन (14)
और जब उन लोगों से मिलते हैं जो ईमान ला चुके तो कहते हैं हम तो ईमान ला चुके और जब अपने शैतानों के साथ तनहा रह जाते हैं तो कहते हैं हम तुम्हारे साथ हैं हम तो ( मुसलमानों को ) बनाते हैं (14)
अल्लाहु यस्तहज़िउ बिहिम् व यमुद्दुहुम फ़ी तुगयानिहिम् यअमहून (15)
(वह क्या बनाएँगे) खुदा उनको बनाता है और उनको ढील देता है कि वह अपनी सरकशी में ग़लत पेचाँ ( उलझे ) (15)
उलाइ-कल्लज़ी-नश्त-र वुज़ ज़ला-ल-त बिल्हुदा फ़मा रबिहत्-तिजारतुहुम् व मा कानू मुह्तदीन (16)
यही वह लोग हैं जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही ख़रीद ली , फिर न उनकी तिजारत ही ने कुछ नफ़ा दिया और न उन लोगों ने हिदायत ही पाई (16)
म-स-लुहुम् क-म-सलिल्-लज़िस्तौ-कद नारन् फ़-लम्मा अज़ा-अत् मा हौ-लहू ज़-हबल्लाहु बिनूरिहिम् व त-र-कहुम् फ़ी जुलुमातिल्ला युब्सिरून (17)
उन लोगों की मिसाल ( तो ) उस शख्स की सी है जिसने ( रात के वक्त मजमे में ) भड़कती हुईआग रौशन की फिर जब आग ( के शोले ) ने उसके गिर्दो पेश ( चारों ओर ) खूब उजाला कर दिया तो खुदा ने उनकी रौशनी ले ली और उनको घटाटोप अंधेरे में छोड़ दिया (17)
सुम्मुम्-बुक्मुन अुम्युन् फहुम् ला यर्जिअून (18)
कि अब उन्हें कुछ सुझाई नहीं देता ये लोग बहरे गूंगे अन्धे हैं कि फिर अपनी गुमराही से बाज़ नहीं आ सकते (18)
औ क-सय्यिबिम-मिनस्समा-इ फ़ीहि जुलुमातुंव व-रअदुंव व-बरकुन , यज्अलू-न असाबि-अहुम् फ़ी आज़ानिहिम् मिनस्सवाअिकि ह-जरल्मौति वल्लाहु मुहीतुम्-बिल्काफिरीन (19)
या उनकी मिसाल ऐसी है जैसे आसमानी बारिश जिसमें तारिकियाँ ग़र्ज़ बिजली हो मौत के खौफ से कड़क के मारे अपने कानों में ऊँगलियाँ दे लेते हैं हालाँकि खुदा काफ़िरों को ( इस तरह ) घेरे हुए है ( कि उसक हिल नहीं सकते ) (19)
यकादुल-बरकु यख्तफु अब्सा-रहुम् , कुल्लमा अज़ा-अ लहुम् मशौ फीहि व इज़ा अज्ल-म अलैहिम् कामू वलौ शा-अल्लाहु ल-ज़-ह-ब बिसम्अिहिम् व अब्सारिहिम , इन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन कदीर (20)
क़रीब है कि बिजली उनकी आँखों को चौन्धिया दे जब उनके आगे बिजली चमकी तो उस रौशनी में चल खड़े हुए और जब उन पर अंधेरा छा गया तो ( ठिठके के ) खड़े हो गए और खुदा चाहता तो यूँ भी उनके देखने और सुनने की कूवतें छीन लेता बेशक खुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (20)
या अय्युहन्नासुअ् बुदू रब्बकुमुल्लजी ख-ल-ककुम् वल्लज़ी-न मिन् कब्लिकुम लअल्लकुम् तत्तकून (21)
लोगों अपने परवरदिगार की इबादत करो जिसने तुमको और उन लोगों को जो तुम से पहले थे पैदा किया है अजब नहीं तुम परहेज़गार बन जाओ (21)
अल्लजी ज-अ-ल लकुमुल् अर्-ज़ फिराशंव-वस्समा-अ बिनाअंव व-अन्ज-ल मिनस्समा-इ माअन् फ़-अख्-र-ज बिही मिनस्स-मराति ‘ रिज्कल लकुम् फला तज्अलू लिल्लाहि अन्दादंव व-अन्तुम् तअलमून (22)
जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन का बिछौना और आसमान को छत बनाया और आसमान से पानी बरसाया फिर उसी ने तुम्हारे खाने के लिए बाज़ फल पैदा किए पस किसी को खुदा का हमसर न बनाओ हालाँकि तुम खूब जानते हो (22)
व इन कुन्तुम् फी रैबिम्-मिम्मा नज्जलना अ़ला अब्दिना फ़अ्तू बिसू-रतिम् मिम् मिस्लिही वद्अु शु-हदाअकुम् मिन् दूनिल्लाहि इन कुन्तुम् सादिक़ीन (23) और अगर तुम लोग इस कलाम से जो हमने अपने बन्दे (मोहम्मद) पर नाज़िल किया है शक में पड़े हो पस अगर तुम सच्चे हो तो तुम (भी) एक सूरा बना लाओ और खुदा के सिवा जो भी तुम्हारे मददगार हों उनको भी बुला लो (23)
फ़-इल्लम तफ्अलू व लन् तफ्अलू फत्तकुन्नारल्लती व कूदुहन्नासु वलहिजा-रतु उअिद्दत् लिल्काफ़िरीन (24)
पस अगर तुम ये नहीं कर सकते हो और हरगिज़ नहीं कर सकोगे तो उस आग से डरो सिके ईधन आदमी और पत्थर होंगे और काफ़िरों के लिए तैयार की गई है (24)
व बश्शिरिल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति अन्-न लहुम् जन्नातिन तज्-री मिन् तहतिहल्-अन्हारू , कुल्लमा रूज़िकू मिन्हा मिन् स-म-रतिर्-रिज्कन् कालू हाज़ल्लजी रूज़िक्ना मिन् कब्लू व उतू बिहि मु-तशाबिहन् , व लहुम् फ़ीहा अज्वाजुम् मु-तह्ह-रतुवं व हुम् फ़ीहा खालिदून (25)
और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने नेक काम किए उनको (ऐ पैग़म्बर) खुशख़बरी दे दो कि उनके लिए ( बेहिश्त के ) वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरे जारी हैं जब उन्हें इन बाग़ात का कोई मेवा खाने को मिलेगा तो कहेंगे ये तो वही ( मेवा है जो पहले भी हमें खाने को मिल चुका है ) (क्योंकि उन्हें मिलती जुलती सूरत व रंग के (मेवे) मिला करेंगे और बेहिश्त में उनके लिए साफ सुथरी बीवियाँ होगी और ये लोग उस बाग़ में हमेशा रहेंगे (25)
इन्नल्ला-ह ला यस्तहयी अंय्यजरि-ब म-स-लम्मा बअू-जतन् फ़मा फौ-कहा , फ-अम्मल्ल जी-न आमनू फ़-यअ लमू-न अन्नहुलहक्कु मिर्रब्बिहिम , वअम्मल्लज़ी-न क-फ़रू फ़ यकूलू-न माज़ा अरादल्लाहु बिहाज़ा म-सलन् युज़िल्लु बिही कसीरंव् व यहदी बिही कसीरन् , व मा युज़िल्लु बिही इल्लल्-फ़ासिक़ीन ( 26 )
बेशक खुदा मच्छर या उससे भी बढकर ( हक़ीर चीज़ ) की कोई मिसाल बयान करने में नहीं झेंपता पस जो लोग ईमान ला चुके हैं वह तो ये यक़ीन जानते हैं कि ये ( मिसाल ) बिल्कुल ठीक है और ये परवरदिगार की तरफ़ से है ( अब रहे ) वह लोग जो काफ़िर है पस वह बोल उठते हैं कि खुदा का उस मिसाल से क्या मतलब है , ऐसी मिसाल से ख़दा बहतेरों की हिदायत करता है मगर गुमराही में छोड़ता भी है तो ऐसे बदकारों को (26)


Surah Al Baqara in Hindi Ayat 27 to 52 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 27 to 52 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 27 to 52



अल्लज़ी-न यन्कुजु-न अहदल्लाहि मिम्-बअ्दि मीसाकिही व यक्तअू-न मा अ-मरल्लाहु बिही अंय्यू-स-ल व युफ्सिदू-न फ़िल्अर्ज़ि उलाइ-क हुमुल्-ख़ासिरून (27)
जो लोग खुदा के एहदो पैमान को मज़बूत हो जाने के बाद तोड़ डालते हैं और जिन ( ताल्लुक़ात ) का खुदा ने हुक्म दिया है उनको क़ताआ कर देते हैं और मुल्क में फसाद करते फिरते हैं , यही लोग घाटा उठाने वाले हैं (27)
कै-फ़ तक्फुरू-न बिल्लाहि व कुन्तुम् अम्वातन् फ़-अह्याकुम् सुम्-म युमीतुकुम् सुम्-म युहूयीकुम् सुम्-म इलैहि तुर्जअून (28)
(हाँए ) क्यों कर तुम खुदा का इन्कार कर सकते हो हालाँकि तुम ( माओं के पेट में ) बेजान थे तो उसी ने तुमको ज़िन्दा किया फिर वही तुमको मार डालेगा , फिर वही तुमको ( दोबारा क़यामत में ) ज़िन्दा करेगा फिर उसी की तरफ लौटाए जाओगे (28)
हुवल्लजी ख-ल-क लकुम् मा फ़िलअर्जि जमीअन् , सुम्मस्तवा इलस्समा-इ फ़-सव्वाहुन्-न सब्-अ समावातिन् , व-हु-व बिकुल्लि शैइन् अलीम (29)
वही तो वह (खुदा) है जिसने तुम्हारे ( नफ़े ) के ज़मीन की कुल चीज़ों को पैदा किया फिर आसमान ( के बनाने ) की तरफ़ मुतावज्जेह हुआ तो सात आसमान हमवार (व मुसतहकम) बना दिए और वह ( खुदा ) हर चीज़ से (खूब) वाक़िफ है (29)
व इज् का-ल रब्बु-क लिल्मलाइ-कति इन्नी जाअिलुन् फिल्अर्जि ख़ली-फ़तन् , कालू अ-तज-अलु फ़ीहा मंय्युफ्सिदु फ़ीहा व यसफ़िकुद्दिमा-अ व नह्नु नुसब्बिहु बिहम्दि-क व नुकद्दिसु ल-क , का-ल इन्नी अअ्लमु माला तअ्लमून (30)
और ( ऐ रसूल ) उस वक्त को याद करो जब तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं ( अपना ) एक नाएब ज़मीन में बनानेवाला हूँ ( फरिश्ते ताज्जुब से ) कहने लगे क्या तू ज़मीन ऐसे शख्स को पैदा करेगा जो ज़मीन | में फ़साद और रेज़ियाँ करता फिरे हालाँकि ( अगर ) ख़लीफा बनाना है तो हमारा ज्यादा हक़ है ) क्योंकि हम तेरी तारीफ व तसबीह करते हैं और तेरी पाकीज़गी साबित करते हैं तब खुदा ने फरमाया इसमें तो शक ही नहीं कि जो मैं जानता हूँ तुम नहीं जानते (30)
व अल्ल-म आ-दमल् अस्मा-अ कुल्लहा सुम्-म अ-र-ज़ हुम् अलल्-मलाइ-कति फ़का-ल अम्बिऊनी बिअस्मा-इ हा-उला-इ इन कुन्तुम सादिक़ीन (31)
और ( आदम की हक़ीक़म ज़ाहिर करने की ग़रज़ से ) आदम को सब चीज़ों के नाम सिखा दिए फिर उनको फरिश्तों के सामने पेश किया और फ़रमाया कि अगर तुम अपने दावे में कि हम मुस्तहके ख़िलाफ़त हैं । सच्चे हो तो मुझे इन चीज़ों के नाम बताओ (31)
कालू सुब्हा-न-क ला-अिल-म-लना इल्ला मा अल्लम्तना इन्न-क अन्तल अलीमुल-हकीम (32)
तब फ़रिश्तों ने (आजिज़ी से ) अर्ज़ की तू ( हर ऐब से ) पाक व पाकीज़ा है हम तो जो कुछ तूने बताया है उसके सिवा कुछ नहीं जानते तू बड़ा जानने वाला , मसलहतों का पहचानने वाला है (32)
का-ल याआदमु अमबिअ्हुम बिअस्मा-इहिम् फ-लम्मा अम्-ब-अहुम् बिअस्मा-इहिम् का-ल अलम् अकुल्लकुम् इन्नी अअ़लमु गैबस्समावाति वल्अर्ज़ि व अअ्लमु मा तुब्दू-न व मा कुन्तुम् तक्तुमून (33)
(उस वक्त ख़ुदा ने आदम को ) हुक्म दिया कि ऐ आदम तुम इन फ़रिश्तों को उन सब चीज़ों के नाम बता दो बस जब आदम ने फ़रिश्तों को उन चीज़ों के नाम बता दिए तो खुदा ने फरिश्तों की तरफ ख़िताब करके फरमाया क्यों , मैं तुमसे न कहता था कि मैं आसमानों और ज़मीनों के छिपे हुए राज़ को जानता हूँ , और जो कुछ तुम अब ज़ाहिर करते हो और जो कुछ तुम छिपाते थे ( वह सब ) जानता हूँ (33)
व इज् कुल्ना लिल्-मलाइ-कतिस्जुदू लिआ-द-म फ़-स-जदू इल्ला इब्लीस ,अबा वस्तक्ब-र व का-न मिनल्काफ़िरीन (34)
और ( उस वक्त क़ो याद करो ) जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सजदा करो तो सब के सब झुक गए मगर शैतान ने इन्कार किया और गुरूर में आ गया और काफ़िर हो गया (34)
व कुल्ना या आ-दमुस्कुन् अन्-त व जौजुकल-जन्न-त व कुला मिन्हा र-ग़दन हैसु शिअतुमा व ला तक्रबा हाज़िहिश् श-ज-र-त फ़-तकूना मिनज्-ज़ालिमीन (35)
और हमने आदम से कहा ऐ आदम तुम अपनी बीवी समैत बेहिश्त में रहा सहा करो और जहाँ से तुम्हारा जी चाहे उसमें से ब फराग़त खाओ ( पियो ) मगर उस दरख्त के पास भी न जाना ( वरना ) फिर तुम अपना आप नुक़सान करोगे (35)
फ-अज़ल-लहुमश्-शैतानु अन्हा फ-अख्र-जहुमा मिम्मा काना फीही व कुल-नहबितू बअजुकुम लिबअज़िन् अदुव्वुन् व लकुम् फिलअर्जि मुस्तकर्रूंव व मताअुन् इलाहीन (36)
तब शैतान ने आदम व हौव्वा को (धोखा देकर) वहाँ से डगमगाया और आख़िर कार उनको जिस ( ऐश व राहत ) में थे उनसे निकाल फेंका और हमने कहा ( ऐ आदम व हौव्वा ) तुम ( ज़मीन पर ) उतर पड़ो तुममें से एक का एक दुशमन होगा और ज़मीन में तुम्हारे लिए एक ख़ास वक्त ( क़यामत ) तक ठहराव और ठिकाना है (36)
फ़-त लक्का आदमु मिर्रब्बिही कलिमातिन् फ़ता-ब अलैहि , इन्नहू हुवत्तव्वाबुर्रहीम (37)
फिर आदम ने अपने परवरदिगार से ( माज़रत के चन्द अल्फाज़ ) सीखे पस खुदा ने उन अल्फाज़ की बरकत से आदम की तौबा कुबूल कर ली बेशक वह बड़ा माफ़ करने वाला मेहरबान है (37)
कुल्नहबितू मिन्हा जमीअन् फ़-इम्मा यअतियन्नकुम् मिन्नी हुदन फ़-मन् तबि-अ हुदा-या फला खौफुन अलैहिम् व ला हुम् यह्ज़नून (38)
(और जब आदम को) ये हुक्म दिया था कि यहाँ से उतर पड़ो ( तो भी कह दिया था कि ) अगर तुम्हारे पास मेरी तरफ़ से हिदायत आए तो ( उसकी पैरवी करना क्योंकि ) जो लोग मेरी हिदायत पर चलेंगे उन पर ( क़यामत ) में न कोई ख़ौफ होगा (38)
वल्लज़ी-न क-फरू व कज्जबू बिआयातिना उलाइ-क अस्हाबुन्नारि हुम् फ़ीहा ख़ालिदून (39)
और न वह रंजीदा होगे और ( ये भी याद रखो ) जिन लोगों ने कुफ्र इख़तेयार किया और हमारी आयतों को झुठलाया तो वही जहन्नुमी हैं और हमेशा दोज़ख़ में पड़े रहेगे (39)
या बनी इस्राइलज्कुरू निअ्मतियल्लती अन्अम्तु अलैकुम् व औफू बि-अ़हदी ऊफि़ बि-अहदिकुम् व इय्या-य फरहबून (40)
ऐ बनी इसराईल ( याकूब की औलाद ) मेरे उन एहसानात को याद करो जो तुम पर पहले कर चुके हैं और तुम मेरे एहद व इक़रार ( ईमान ) को पूरा करो तो मैं तुम्हारे एहद ( सवाब ) को पूरा करूँगा , और मुझ ही से डरते रहो (40)
व आमिनू बिमा अन्ज़ल्तु मुसद्दिकल्लिमा म-अकुम् व ला तकूनू अव्व-ल काफ़िरिम् बिहि व ला तश्तरू बिआयाती स्-म-नन् कलीलंव व इय्या-य फत्तकून (41)
और जो ( कुरान ) मैंने नाज़िल किया वह उस किताब ( तौरेत ) की ( भी ) तसदीक़ करता हूँ जो तुम्हारे पास है और तुम सबसे चले उसके इन्कार पर मौजूद न हो जाओ और मेरी आयतों के बदले थोड़ी क़ीमत ( दुनयावी फायदा ) न लो और मुझ ही से डरते रहो (41)
वला तल्बिसुल-हक्-क बिल्बातिलि व तक्तुमुल्हक्-क व अन्तुम् तअलमून (42)
और हक़ को बातिल के साथ न मिलाओ और हक़ बात को न छिपाओ हालाँकि तुम जानते हो और पाबन्दी से नमाज़ अदा करो (42)
व अकीमुस्सला-त व आतुज्जका-त वर्-कअू म-अर्राकिअीन (43)
और ज़कात दिया करो और जो लोग ( हमारे सामने ) इबादत के लिए झुकते हैं उनके साथ तुम भी झुका करो (43)
अ-तअ्मुरूनन्ना-स बिल्बिर्रि वतन्सौ-न अन्फुसकुम् व अन्तुम् तत्लूनल-किता-ब , अ-फला तअ्किलून (44)
और तुम लोगों से नेकी करने को कहते हो और अपनी ख़बर नहीं लेते हालाँकि तुम किताबे खुदा को बराबर रटा करते हो तो तुम क्या इतना भी नहीं समझते (44)
वस्तअीनू बिस्सबरि वस्सलाति , व इन्नहा ल-कबी-रतुन् इल्ला अलल-ख़ाशिअीन (45)
और ( मुसीबत के वक्त ) सब्र और नमाज़ का सहारा पकड़ो और अलबत्ता नमाज़ दूभर तो है मगर उन ख़ाक़सारों पर ( नहीं ) जो बखूबी जानते हैं (45)
अल्लज़ी-न यजुन्नू-न अन्नहुम-मुलाकू रब्बिहिम् व अन्नहुम् इलैहि राजिअून (46)
कि वह अपने परवरदिगार की बारगाह में हाज़िर होंगे और ज़रूर उसकी तरफ लौट जाएँगे (46)
या बनी इस्राईलज्कुरू निअ्मतियल्लती अन्अम्तु अलैकुम् व अन्नी फज्जल्तुकुम् अलल् आलमीन (47)
ऐ बनी इसराइल मेरी उन नेअमतों को याद करो जो मैंने पहले तुम्हें दी और ये ( भी तो सोचो ) कि हमने तुमको सारे जहान के लोगों से बढ़ा दिया (47)
वत्तकू यौमल्ला तज्ज़ी नफ्सुन् अन्नफ्सिन् शैअंव व ला युक्बलु मिन्हा शफ़ा-अतुंव – व ला युअ्-खजु मिन्हा अद्लुंव व ला हुम् युन्सरून (48)
और उस दिन से डरो ( जिस दिन ) कोई शख्स किसी की तरफ से न फिदिया हो सकेगा और न उसकी तरफ से कोई सिफारिश मानी जाएगी और न उसका कोई मुआवज़ा लिया जाएगा और न वह मदद पहुँचाए जाएंगे (48)
व इज नज्जैनाकुम मिन् आलि फिरऔ-न यसूमू-नकुम् सूअल-अज़ाबि युज़ब्बिहू-न अब्ना-अकुम् व यस्तह्यू-न निसा-अकुम् व फी जालिकुम बलाउम् मिर्रब्बिकुम् अ़जी़म (49)
और ( उस वक्त को याद करो ) जब हमने तुम्हें ( तुम्हारे बुर्ज़गो को ) फिरऔन ( के पन्जे ) से छुड़ाया जो तुम्हें बड़े – बड़े दुख दे के सताते थे तुम्हारे लड़कों पर छुरी फेरते थे और तुम्हारी औरतों को ( अपनी ख़िदमत के लिए ) ज़िन्दा रहने देते थे और उसमें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से ( तुम्हारे सब्र की ) सख्त आज़माइश थी (49)
व इज् फ़-रक्ना बिकुमुल्-बह्-र फ़-अन्जैनाकुम् व अग्-रक्ना आ-ल फ़िरऔ-न व अन्तुम् तन्जुरून (50)
और (वह वक्त भी याद करो) जब हमने तुम्हारे लिए दरिया को टुकड़े – टुकड़े किया फिर हमने तुमको छुटकारा दिया (50)
व इज् वाअ़दना मूसा अर्-बअी़-न लै-लतन् सुम्मत्तखज्तुमुल्-अिज्-ल मिम्-बअ्दिही व अन्तुम् ज़ालिमून (51)
और फिरऔन के आदमियों को तुम्हारे देखते – देखते डुबो दिया और ( वह वक्त भी याद करो ) जब हमने मूसा से चालीस रातों का वायदा किया था और तुम लोगों ने उनके जाने के बाद एक बछड़े को ( परसतिश के लिए खुदा ) बना लिया (51)
सुम्-म अ़फौना अ़न्कुम मिम्-बअदि ज़ालि-क लअल्लकुम् तश्कुरून (52)
हालाँकि तुम अपने ऊपर जुल्म जोत रहे थे फिर हमने उसके बाद भी दरगुज़र की ताकि तुम शुक्र करो (52)


Surah Al Baqara in Hindi Ayat 53 to 78 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 53 to 78 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 53 to 78
  


व इज् आतैना मूसल-किता-ब वल्फुरका-न लअल्लकुम् तह्तदून (53)
और ( वह वक्त भी याद करो ) जब मूसा को ( तौरेत ) अता की और हक़ और बातिल को जुदा करनेवाला क़ानून (इनायत किया) ताके तुम हिदायत पाओ (53)
व इज् का-ल मूसा लिक़ौमिही या कौमि इन्नकुम् ज़-लम्तुम अन्फु-सकुम् बित्तिख़ाज़िकुमुल्-अिज्-ल फ़तूबू इला बारिइकुम् फक्-तुलू अन्फु-स-कुम् , जा़लिकुम् खैरूल्लकुम् अिन्-द बारिइकुम् , फ़ता – ब अलैकुम इन्नहू हुवत्तव्वाबुर्रहीम (54)
और ( वह वक्त भी याद करो ) जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि ऐ मेरी क़ौम तुमने बछड़े को ( ख़ुदा ) बना के अपने ऊपर बड़ा सख्त जुल्म किया तो अब ( इसके सिवा कोई चारा नहीं कि ) तुम अपने ख़ालिक की बारगाह में तौबा करो और वह ये है कि अपने को क़त्ल कर डालो तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक तुम्हारे हक़ में यही बेहतर है , फिर जब तुमने ऐसा किया तो खुदा ने तुम्हारी तौबा कुबूल कर ली बेशक वह बड़ा मेहरबान माफ़ करने वाला है (54)
व इज् कुल्तुम् या मूसा लन्-नुअ्-मिन-ल-क हत्ता नरल्ला-ह जह्-रतन् फ़-अ खज़त्कुमुस्साअि-कतु व अन्तुम् तन्जु़रून (55)
और ( वह वक्त भी याद करो ) जब तुमने मूसा से कहा था कि ऐ मूसा हम तुम पर उस वक्त तक ईमान न लाएंगे जब तक हम खुदा को ज़ाहिर बज़ाहिर न देख ले उस पर तुम्हें बिजली ने ले डाला , और तुम तकते ही रह गए (55)
सुम्-म बअस्नाकुम् मिम्-बअ्दि मौतिकुम् लअ़ल्लकुम् तश्कुरून (56)
फिर तुम्हें तुम्हारे मरने के बाद हमने जिला उठाया ताकि तुम शुक्र करो (56)
व जल्लल्ना अलैकुमुल्-ग़मा-म व अन्ज़ल्ना अलैकुमुल्मन्-न वस्सल्वा , कुलू मिन् तय्यिबाति मा रज़क्नाकुम् , व मा ज़-लमूना व लाकिन् कानू अन्फु-सहुम् यज्लिमून (57)
और हमने तुम पर अब्र का साया किया और तुम पर मन व सलवा उतारा और ( ये भी तो कह दिया था कि ) जो सुथरी व नफीस रोज़िया तुम्हें दी हैं उन्हें शौक़ से खाओ , और उन लोगों ने हमारा तो कुछ बिगड़ा नहीं मगर अपनी जानों पर सितम ढाते रहे (57)
व इज् कुल्नद्ख़ुलू हाज़िहिल् कर-य-त फकुलू मिन्हा हैसू शिअ्तुम र-गदंव वद्खुलुल-बा-ब सुज्जदंव व-कूलू हित्ततुन् नगफिर लकुम ख़तायाकुम् , व स-नज़ीदुल् मुह्सिनीन (58)
और ( वह वक्त भी याद करो ) जब हमने तुमसे कहा कि इस गाँव ( अरीहा ) में जाओ और इसमें जहाँ चाहो फराग़त से खाओ ( पियो ) और दरवाज़े पर सजदा करते हुए और ज़बान से हित्ता बख्शिश कहते हुए आओ तो हम तुम्हारी ख़ता ये बख्श देगे और हम नेकी करने वालों की नेकी ( सवाब ) बढ़ा देगें (58)
फ-बद्-दल्-लज़ी-न ज़-लमू कौलन् गैरल्लज़ी की-ल लहुम् फ़-अन्ज़ल्ना अलल्लज़ी-न ज़लमू रिज्ज़म् – मिनस्-समा-इ बिमा कानू यफ्सुकून (59)
तो जो बात उनसे कही गई थी उसे शरीरों ने बदलकर दूसरी बात कहनी शुरू कर दी तब हमने उन लोगों पर जिन्होंने शरारत की थी उनकी बदकारी की वजह से आसमानी बला नाज़िल की (59)
व इज़िस्तस्का मूसा लिक़ौमिही फ़-कुल्नजरिब् बिअसाकल् ह-ज-र , फ़न्-फ़-जरत् मिन्हुस्-नता अश्र-त अैनन् , कद् अलि-म कुल्लु उनासिम् मश्र-बहुम् , कुलू वश्रबू मिर्रिज़किल्लाहि व ला तअ्सौ फिलअर्ज़ि मुफ्सिदीन (60)
और ( वह वक्त भी याद करो ) जब मूसा ने अपनी क़ौम के लिए पानी माँगा तो हमने कहा ( ऐ मूसा ) अपनी लाठी पत्थर पर मारो ( लाठी मारते ही ) उसमें से बारह चश्में फट निकले और सब लोगों ने अपना – अपना घाट बखूबी जान लिया और हमने आम इजाज़त दे दी कि खुदा की दी हुईरोज़ी से खाओ पियो और मुल्क में फसाद न करते फिरो (60)
व इज् कुल्तुम् या मूसा लन्-नस्बि-र अला तआमिव्वाहिदिन् फ़द्अु लना रब्ब-क युख्रिज् लना मिम्मा तुम्बितुल अर्जु मिम्-बक्लिहा व किस्सा-इहा व फूमिहा व अ-द सिहा व ब-स-लिहा , का-ल अ-तस्तब्दिलूनल्लज़ी हु-व अद्ना बिल्लज़ी हु-व खैरून , इह्बितू मिस्रन् फ़-इन्-न लकुम मा सअल्तुम , व जुरिबत् अलैहिमुज्ज़िल्लतु वल्मस्-क-नतु व बाऊ बि-ग़-ज़-बिम् – मिनल्लाहि ,जालि-क बिअन्न-हुम् कानू यक्फुरू-न बिआयातिल्लाहि व यक्तुलूनन्-नबिय्यी-न बिगैरिल हक्कि , ज़ालि-क बिमा असव् वकानू यअतदून (61)
(और वह वक्त भी याद करो) जब तुमने मूसा से कहा कि ऐ मूसा हमसे एक ही खाने पर न रहा जाएगा तो आप हमारे लिए अपने परवरदिगार से दुआ कीजिए कि जो चीज़े ज़मीन से उगती है जैसे साग पात तरकारी और ककड़ी और गेहूँ या ( लहसुन ) और मसूर और प्याज़ ( मन व सलवा ) की जगह पैदा करें ( मूसा ने ) कहा क्या तुम ऐसी चीज़ को जो हर तरह से बेहतर है अदना चीज़ से बदलन चाहते हो तो किसी शहर में उतर पड़ो फिर तुम्हारे लिए जो तुमने माँगा है सब मौजूद है और उन पर रूसवाई और मोहताजी की मार पड़ी और उन लोगों ने क़हरे खुदा की तरफ पलटा खाया , ये सब इस सबब से हुआ कि वह लोग खुदा की निशानियों से इन्कार करते थे और पैग़म्बरों को नाहक शहीद करते थे , और इस वजह से ( भी ) कि वह नाफ़रमानी और सरकशी किया करते थे (61)
इन्नल्लज़ी-न आमनू वल्लज़ी-न हादू वन्नसारा वस्साबिईन मन् आम-न बिल्लाहि वल्यौमिल्-आखिरि व अमि-ल सालिहन् फ़-लहुम् अजरुहुम अिन्-द रब्बिहिम वला खौफुन् अलैहिम वला हुम् यह्ज़नून (62)
बेशक मुसलमानों और यहूदियों और नसरानियों और ला मज़हबों में से जो कोई खुदा और रोज़े आख़िरत पर ईमान लाए और अच्छे – अच्छे काम करता रहे तो उन्हीं के लिए उनका अज्र व सवाब उनके खुदा के पास है और न ( क़यामत में ) उन पर किसी का ख़ौफ होगा न वह रंजीदा दिल होंगे (62)
व इज् अखज्ना मीसा-ककुम् व र-फअ्ना फौ-ककुमुत्तू-र खुजू मा आतैनाकुम् बिकुव्वातिंव्वज्कुरू मा फीहि लअल्लकुम् तत्तकून (63)
और ( वह वक्त याद करो ) जब हमने ( तामीले तौरेत ) का तुमसे एक़रार कर लिया और हमने तुम्हारे सर पर तूर से ( पहाड़ को ) लाकर लटकाया और कह दिया कि तौरेत जो हमने तुमको दी है उसको मज़बूत पकड़े रहो और जो कुछ उसमें है उसको याद रखो (63)
सुम्-म तवल्लैतुम् मिम्-बअ्दि ज़ालि-क फलौला फज्लुल्लाहि अलैकुम् व रहमतुहू लकुन्तुम् मिनल ख़ासिरीन (64)
ताकि तुम परहेज़गार बनो फिर उसके बाद तुम ( अपने एहदो पैमान से ) फिर गए पस अगर तुम पर खुदा का फज़ल और उसकी मेहरबानी न होती तो तुमने सख्त घाटा उठाया होता (64)
व लकद् अलिम्तुमुल्लज़ीनअ्-तदौ मिन्कुम् फिस्सब्ति फ़कुल्ना लहुम् कूनू कि-र-दतन् खासिईन (65)
और अपनी क़ौम से उन लोगों की हालत तो तुम बखूबी जानते हो जो शम्बे ( सनीचर ) के दिन अपनी हद से गुज़र गए ( कि बावजूद मुमानिअत शिकार खेलने निकले ) तो हमने उन से कहा कि तुम राइन्दे गए बन्दर बन जाओ ( और वह बन्दर हो गए ) (65)
फ-जअल्नाहा नकालल्-लिमा बै-न यदैहा व मा ख़ल्फहा व मौअि-जतल् लिल्मुत्तकीन (66)
पस हमने इस वाक़ये से उन लोगों के वास्ते जिन के सामने हुआ था और जो उसके बाद आनेवाले थे अज़ाब क़रार दिया , और परहेज़गारों के लिए नसीहत (66)
व इज् का-ल मूसा लिकौमिही इन्नल्ला-ह यअ्मुरूकुम् अन् तज़्बहू ब-क-रतन् , कालू अ-तत्तखिजुना हुजुवन् , का-ल अअूजु बिल्लाहि अन् अकू-न मिनल्जाहिलीन (67)
और ( वह वक्त याद करो ) जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि खुदा तुम लोगों को ताकीदी हुक्म करता है कि तुम एक गाय ज़िबाह करो वह लोग कहने लगे क्या तुम हमसे दिल्लगी करते हो मूसा ने कहा मैं खुदा से पनाह माँगता हूँ कि मैं जाहिल बनूँ (67)
कालुद् अु-लना रब्ब-क युबय्यिल्लना मा हि-य का-ल इन्नहू यकूलु इन्नहा ब-क-रतुल्ला-फ़ारिजुंव् वला बिकरून् , अवानुम् , बै-न ज़ालि-क , फ़फ्अलू मा तुअमरून (68)
(तब वह लोग कहने लगे कि (अच्छा) तुम अपने खुदा से दुआ करो कि हमें बता दे कि वह गाय कैसी हो मूसा ने कहा बेशक खुदा ने फरमाता है कि वह गाय न तो बहुत बढी हो और न बछिया बल्कि उनमें से औसत दरजे की हो , ग़रज़ जो तुमको हुक्म दिया गया उसको बजा लाओ (68)
कालुद् अु-लना रब्ब-क युबय्यिल्लना मा लौनुहा , का-ल इन्नहू यकूलु इन्नहा ब-क-रतुन् सफ़रा-उ फ़ाकिअुल लौनुहा तसुर्रुन्नाज़िरीन (69)
वह कहने लगे ( वाह ) तुम अपने खुदा से दुआ करो कि हमें ये बता दे कि उसका रंग आख़िर क्या हो मूसा ने कहा बेशक खुदा फरमाता है कि वह गाय खूब गहरे ज़र्द रंग की हो देखने वाले उसे देखकर खुश हो जाए (69)
कालुद् अु-लना रब्ब-क युबय्यिल्लना मा हि-य इन्नल ब-क-र तशा-ब-ह अलैना , व इन्ना इन्श-अल्लाहु लमुह्तदून (70)
तब कहने लगे कि तुम अपने खुदा से दुआ करो कि हमें ज़रा ये तो बता दे कि वह ( गाय ) और कैसी हो ( वह ) गाय तो और गायों में मिल जुल गई और खुदा ने चाहा तो हम ज़रूर ( उसका ) पता लगा लेगे (70) का-ल इन्नहू यकूलु इन्नहा ब-क-रतुल् ला ज़लूलुन् तुसीरूल्-अर्-ज़ वला तस्किल्-हर-स मुसल्-ल-म-तुल्लाशिय-त फ़ीहा , कालुल्आ-न जिअ्-त बिल्हक्कि , फ़-ज़-बहूहा वमा कादू यफ्अलून (71)
मूसा ने कहा खुदा ज़रूर फरमाता है कि वह गाय न तो इतनी सधाई हो कि ज़मीन जोते न खेती सीचे भली चंगी एक रंग की कि उसमें कोई धब्बा तक न हो , वह बोले अब ( जा के ) ठीक – ठीक बयान किया , ग़रज़ उन लोगों ने वह गाय हलाल की हालाँकि उनसे उम्मीद न थी वह कि वह ऐसा करेंगे (71)
व इज् कतल्तुम् नफ्सन् फ़द्दा-रअ्तुम् फ़ीहा , वल्लाहु मुख्रिजुम् मा कुन्तुम् तक्तुमून (72)
और जब एक शख्स को मार डाला और तुममें उसकी बाबत फूट पड़ गई एक दूसरे को क़ातिल बताने लगा जो तुम छिपाते थे (72)
फ़-कुल्नज्रिबूहु बि-बअ्ज़िहा , कज़ालि-क युह्यिल्लाहुल-मौता व युरीकुम् आयातिही लअल्लकुम् तअ्किलून (73)
खुदा को उसका ज़ाहिर करना मंजूर था पस हमने कहा कि उस गाय को कोई टुकड़ा लेकर इस ( की लाश ) पर मारो यूँ खुदा मुर्दे को ज़िन्दा करता है और तुम को अपनी कुदरत की निशानियाँ दिखा देता है (73)
सुम्-म क़सत् कुलूबुकुम् मिम्-बअ्दि जालि-क फहि-य कलहिजा-रति औ अशद्दू कस्वतन् , व इन्-न मिनल-हिजारति लमा य-तफज्जरू मिन्हुल-अन्हारू , व इन्-न मिन्हा लमा यश्शक्ककु फ़-यख् रूजु मिन्हुल्मा-उ , व इन्-न मिन्हा लमा यहबितु मिन् ख़श्यतिल्लाहि , व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अम्मा तअ्मलून (74)
ताकि तुम समझो फिर उसके बाद तुम्हारे दिल सख्त हो गये पस वह मिसल पत्थर के ( सख्त ) थे या उससे भी ज्यादा करख्त क्योंकि पत्थरों में बाज़ तो ऐसे होते हैं कि उनसे नहरें जारी हो जाती हैं और बाज़ ऐसे होते हैं कि उनमें दरार पड़ जाती है और उनमें से पानी निकल पड़ता है और बाज़ पत्थर तो ऐसे होते हैं कि खुदा के ख़ौफ से गिर पड़ते हैं और जो कुछ तुम कर रहे हो उससे खुदा ग़ाफिल नहीं है (74)
अ-फ़-तत्मअू-न अंय्युअ्मिनू लकुम् व कद् का-न फ़रीकुम् मिन्हुम् यस्मअू-न कलामल्लाहि सुम्-म युहर्रिफूनहू मिम्-बअ्दि मा अ-क-लूहु व हुम् यअ्लमून (75)
( मुसलमानों ) क्या तुम ये लालच रखते हो कि वह तुम्हारा ( सा ) ईमान लाएँगें हालाँकि उनमें का एक गिरोह ( साबिक़ में ) ऐसा था कि खुदा का कलाम सुनाता था और अच्छी तरह समझने के बाद उलट फेर कर देता था हालाँकि वह खूब जानते थे और जब उन लोगों से मुलाक़ात करते हैं (75)
व इज़ा लकुल्लज़ी-न आमनू कालू आमन्ना व इज़ा ख़ला बअ्जुहुम् इला बअ्जिन् कालूं अतुह्द्दिसू नहुम् बिमा फ़-तहल्लाहु अलैकुम् लियुहाज्जूकुम् बिही अिन्-द रब्बिकुम , अ-फ़ला तअ्किलून (76)
जो ईमान लाए तो कह देते हैं कि हम तो ईमान ला चके और जब उनसे बाज़ – बाज़ के साथ तख़िलया करते हैं तो कहते हैं कि जो कुछ खुदा ने तुम पर ( तौरेत ) में ज़ाहिर कर दिया है क्या तुम ( मुसलमानों को ) बता दोगे ताकि उसके सबब से कल तुम्हारे खुदा के पास तुम पर हुज्जत लाएँ क्या तुम इतना भी नहीं समझते (76)
अ-वला यअ्लमू-न अन्नल्ला-ह यअलमु मा युसिर्रू-न वमा युअलिनून (77)
लेकिन क्या वह लोग ( इतना भी ) नहीं जानते कि वह लोग जो कुछ छिपाते हैं या ज़ाहिर करते हैं खुदा सब कुछ जानता है (77)
व मिन्हुम् उम्मिय्यू-न ला यअ्लमूनल किता-ब इल्ला अमानिय्-य व इन हुम् इल्ला यजुन्नून (78)
और कुछ उनमें से ऐसे अनपढ़ हैं कि वह किताबे खुदा को अपने मतलब की बातों के सिवा कुछ नहीं समझते और वह फक़त ख्याली बातें किया करते हैं (78)

Surah Al Baqarah in Hindi Ayat 79 to 104 सूरह अल बक़रा

Surah Al Baqarah in Hindi Ayat 79 to 104 सूरह अल बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 79 to 104



फ वै लुल-लिल्लजी-न यक्तुबूनल-किता-ब बिऐदीहिम , सुम्-म यकूलू-न हाज़ा मिन् अिन्दिल्लाहि लियश्तरू बिही स-म-नन् कलीलन् , फवैलुल्लहुम् मिम्मा क-त-बत् ऐदीहिम व वैलुल्लहुम् मिम्मा यक्सिबून (79)
पस वाए हो उन लोगों पर जो अपने हाथ से किताब लिखते हैं फिर ( लोगों से कहते फिरते ) हैं कि ये खुदा के यहाँ से ( आई ) है ताकि उसके ज़रिये से थोड़ी सी क़ीमत ( दुनयावी फ़ायदा ) हासिल करें पस अफसोस है उन पर कि उनके हाथों ने लिखा और फिर अफसोस है उनपर कि वह ऐसी कमाई करते हैं (79)
व कालू लन् तमस्स-नन्नारू इल्ला अय्यामम् मअदू-दतन् , कुल अत्तखज्तुम् अिन्दल्लाहि अहदन फ़-लंय्-युख्लिफ़ल्लाहु अह्दहू अम् तकूलू-न अलल्लाहि मा ला तअ्लमून (80)
और कहते हैं कि गिनती के चन्द दिनों के सिवा हमें आग छुएगी भी तो नहीं ( ऐ रसूल ) इन लोगों से कहो कि क्या तुमने खुदा से कोई इक़रार ले लिया है कि फिर वह किसी तरह अपने इक़रार के ख़िलाफ़ हरगिज़ न करेगा या बे समझे बूझे खुदा पर बोहताव जोड़ते हो (80)
बला मन् क-स-ब सय्यि-अतंव-व अहातत् बिही खतीअतु हू फ़-उलाइ-क अस्हाबुन्नारि हुम् फ़ीहा ख़ालिदून (81)
हाँ ( सच तो यह है ) कि जिसने बुराई हासिल की और उसके गुनाहों ने चारों तरफ से उसे घेर लिया है वही लोग तो दोज़ख़ी हैं और वही ( तो ) उसमें हमेशा रहेंगे (81)
वल्लजी-न आमनू व आमिलुस्सालिहाति उलाइ-क अस्हाबुल-जन्नति हुम् फ़ीम ख़ालिदून (82)
और जो लोग ईमानदार हैं और उन्होंने अच्छे काम किए हैं वही लोग जन्नती हैं कि हमेशा जन्नत में रहेंगे (82)
व इज् अख़ज्ना मीसा-क बनी इस्-राई-ल ला तअबुदू-न इल्लल्ला-ह , व बिल्वालिदैनि इहसानंव वज़िल्कुरबा वल्यतामा वल्मसाकीनि व कूलू लिन्नासि हुस्नंव व-अकीमुस्सला-त व आतुज्ज़का-त , सुम्-म तवल्लैतुम् इल्ला क़लीलम्-मिन्कुम् व अन्तुम् मुअ्रिजून (83)
और ( वह वक्त याद करो ) जब हमने बनी ईसराइल से ( जो तुम्हारे बुर्जुग़ थे ) अहद व पैमान लिया था कि खदा के सिवा किसी की इबादत न करना और माँ बाप और क़राबतदारों और यतीमों और मोहताजों के साथ अच्छे सुलूक करना और लोगों के साथ अच्छी तरह ( नरमी ) से बातें करना और बराबर नमाज़ पढना और ज़कात देना । फिर तुममें से थोड़े आदिमियों के सिवा ( सब के सब ) फिर गए और तुम लोग हो ही इक़रार से मुँह फेरने वाले (83)
व इज् अख़ज्ना मीसा-ककुम्-ला तस्फिकू-न दिमा-अकुम् व ला तुख्रिजू-न अन्फु-सकुम् मिन् दियारिकुम् सुम्-म अक्ररतुम् व अन्तुम तश्हदून (84)
और ( वह वक्त याद करो ) जब हमने तुम ( तुम्हारे बुर्जुगों ) से अहद लिया था कि आपस में खूरेज़ियाँ न करना और न अपने लोगों को शहर बदर करना तो तुम ( तुम्हारे बुर्जुगों ) ने इक़रार किया था और तुम भी उसकी गवाही देते हो (84)
सुम्-म अन्तुम् हा-उला-इ तक्तुलू-न अन्फु-सकुम् व तुख्रिजू-न फरीकम् मिन्कुम् मिन् दियारिहिम तज़ाहरू-न अलैहिम बिल्इस्मि वल्-अुद्वानि , व इंय्यअ्तूकुम् उसारा तुफादूहुम व हु-व मुहर्रमुन् अलैकुम् इख्राजुहुम , अ-फ़-तुअ्मिनू-न बिबअ्ज़िल-किताबि व तक्फुरू-न बिबअ्ज़िन् फ़मा जज़ा-उ मंय्यफ्अलु ज़ालि-क मिन्कुम् इल्ला खिज्युन् फ़िल्हयातिद्दुन्या व यौमलकियामति युरद्दू-न इला अशद्दिल-अज़ाबि , व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अम्मा तअ्मलून (85)
(कि हाँ ऐसा हुआ था) फिर वही लोग तो तुम हो कि आपस में एक दूसरे को क़त्ल करते हो और अपनों से एक जत्थे के नाहक़ और ज़बरदस्ती हिमायती बनकर दूसरे को शहर बदर करते हो ( और लुत्फ़ तो ये है कि ) अगर वही लोग कैदी बनकर तम्हारे पास ( मदद माँगने ) आए तो उनको तावान देकर छडा लेते हो हालाँकि उनका निकालना ही तुम पर हराम किया गया था तो फिर क्या । तुम ( किताबे खुदा की ) बाज़ बातों पर ईमान रखते हो और बाज़ से इन्कार करते हो पस तुम में से जो लोग ऐसा करें उनकी सज़ा इसके सिवा और कुछ नहीं कि ज़िन्दगी भर की रूसवाई हो और ( आख़िरकार ) क़यामत के दिन सख्त अज़ाब की तरफ लौटा दिये जाए और जो कुछ तुम लोग करते हो खुदा उससे ग़ाफ़िल नहीं है (85)
उला-इ-कल्लजीनश-त-र वुल्हयातद्दुन्या बिल्आख़िरति फ़ला युखफ्फफु अन्हुमुल अज़ाबु व ला हुम् युन्सरून (86)
यही वह लोग हैं जिन्होंने आखेरत के बदले दुनिया की ज़िन्दगी ख़रीद पस न उनके अज़ाब ही में तख्फ़ीफ़ ( कमी ) की जाएगी और न वह लोग किसी तरह की मदद दिए जाएँगे (86)
व लक़द् आतैना मूसल् किता-ब व कफ्फ़ैना मिम्-बअदिही बिर्रूसुलि व आतैना अीसब्-न मर्यमल्बय्यिनाति व अय्यद्नाहु बिरूहिल्कुदुसि , अ-फकुल्लमा जाअकुम् रसूलुम बिमा ला तहवा अन्फुसुकुमुस्तक्बरतुम् फ़-फरीकन् कज्जब्तुम् व फरीकन् तक्तुलून (87)
और ये हक़ीक़ी बात है कि हमने मूसा को किताब ( तौरेत ) दी और उनके बाद बहुत से पैग़म्बरों को उनके क़दम ब क़दम ले चलें और मरियम के बेटे ईसा को ( भी बहुत से ) वाजेए व रौशन मौजिजे दिए और पाक रूह जिबरील के ज़रिये से उनकी मदद की क्या तुम उस क़दर बददिमाग़ हो गए हो कि जब कोई पैग़म्बर तुम्हारे पास तुम्हारी ख्वाहिशे नफ़सानी के खिलाफ कोई हुक्म लेकर आया तो तुम अकड़ बैठे फिर तुमने बाज़ पैग़म्बरों को तो झुठलाया और बाज़ को जान से मार डाला (87)
व कालू कुलूबुना गुल्फुन् , बल ल-अ नहुमुल्लाहु बिकुफ्रिहिम फ़-कलीलम्मा युअमिनून (88)
और कहने लगे कि हमारे दिलों पर ग़िलाफ चढ़ा हुआ है ( ऐसा नहीं ) बल्कि उनके कुफ्र की वजह से खुदा ने उनपर लानत की है पस कम ही लोग ईमान लाते हैं (88)
व लम्मा जाअहुम् किताबुम् मिन् अिन्दिल्लाहि मुसद्दिकुल्लिमा म-अहुम् व कानू मिन् कब्लु यस्तफ़्तिहू-न अलल्लजी-न क-फरू , फ़-लम्मा जा-अहुम् मा अ-रफू क-फ-रू बिही फ़-लअ्नतुल्लाहि अलल्-काफिरीन (89)
और जब उनके पास खदा की तरफ़ से किताब ( कुरान आई और वह उस किताब तौरेत ) की जो उन के पास तसदीक़ भी करती है । और उससे पहले ( इसकी उम्मीद पर ) काफ़िरों पर फतेहयाब होने की दुआएँ माँगते थे पस जब उनके पास वह चीज़ जिसे पहचानते थे आ गई तो लगे इन्कार करने पस काफ़िरों पर खुदा की लानत है (89)
बिअ-स-मश्तरौ बिही अन्फु-सहुम् अंय्यक्फुरू बिमा अन्जलल्लाहु बग्यन् अंय्युनज्जिलल्लाहु मिन् फ़ज्लिही अला मंय्यशा-उ-मिन् अिबादिही फ़-बाऊ बि-ग़-ज़-बिन् अला ग़-ज़-बिन् , व लिल्काफ़िरी-न अजाबुम् मुहीन (90)
क्या ही बुरा है वह काम जिसके मुक़ाबले में ( इतनी बात पर ) वह लोग अपनी जानें बेच बैठे हैं कि खुदा अपने बन्दों से जिस पर चाहे अपनी इनायत से किताब नाज़िल किया करे इस रश्क से जो कुछ खुदा ने नाज़िल किया है सबका इन्कार कर बैठे पस उन पर ग़ज़ब पर ग़ज़ब टूट पड़ा और काफ़िरों के लिए ( बड़ी ) रूसवाई का अज़ाब है (90)
व इज़ा की-ल लहुम् आमिनू बिमा अन्जलल्लाहु कालू नुअमिनु बिमा उन्ज़ि-ल अलैना व यक्फुरू-न बिमा वरा-अहू , व हुवल-हक्कु मुसद्दिकल्-लिमा म-अहुम , कुल फ़लि-म तक्तुलू-न अम्बिया-अल्लाहि मिन् कब्लु इन् कुन्तुम् मुअमिनीन (91)
और जब उनसे कहा गया कि ( जो कुरान ) खुदा ने नाज़िल किया है उस पर ईमान लाओ तो कहने लगे कि हम तो उसी किताब ( तौरेत ) पर ईमान लाए हैं जो हम पर नाज़िल की गई थी और उस किताब ( कुरान ) को जो उसके बाद आई है नहीं मानते हैं हालाँकि वह ( कुरान ) हक़ है और उस किताब ( तौरेत ) की जो उनके पास है तसदीक़ भी करती है मगर उस किताब कुरान का जो उसके बाद आई है इन्कार करते हैं ( ऐ रसूल ) उनसे ये तो पूछो कि तुम ( तुम्हारे बुर्जुग़ ) अगर ईमानदार थे तो फिर क्यों खुदा के पैग़म्बरों का साबिक़ क़त्ल करते थे (91)
व लक़द् जाअकुम् मूसा बिल-बय्यिनाति सुम्मत्तखज्तुमुल-अिज्-ल मिम्-बअ्दिही व अन्तुम् ज़ालिमून (92)
और तुम्हारे पास मूसा तो वाजेए व रौशन मौजिज़े लेकर आ ही चुके थे फिर भी तुमने उनके बाद बछड़े को खुदा बना ही लिया और उससे तुम अपने ही ऊपर जुल्म करने वाले थे (92)
व इज् अखज्ना मीसा-ककुम् व र-फ़अ्ना फ़ौ-ककुमुत्-तू-र ,खु़जू मा आतैनाकुम् बिकुव्वतिंव्-वस्मअू कालू समिअ्ना व असैना व उश्रिबू फ़ी कुलूबिहिमुल्-अिज्-ल बिकुफ्रिहिम , कुल् बिअ्समा यअ्मुरूकुम् बिही ईमानुकुम इन् कुनतुम् मुअ्मिनीन (93)
और ( वह वक्त याद करो ) जब हमने तुमसे अहद लिया और ( कोहे ) तूर को ( तुम्हारी उदूले हुक्मी से ) तुम्हारे सर पर लटकाया और ( हमने कहा कि ये किताब तौरेत ) जो हमने दी है मज़बूती से लिए रहो और ( जो कुछ उसमें है ) सुनो तो कहने लगे सुना तो ( सही लेकिन ) हम इसको मानते नहीं और उनकी बेईमानी की वजह से ( गोया ) बछड़े की उलफ़त घोल के उनके दिलों में पिला दी गई ( ऐ रसूल ) उन लोगों से कह दो कि अगर तुम ईमानदार थे तो तुमको तुम्हारा ईमान क्या ही बुरा हुक्म करता था (93)
कुल इन्-कानत् लकुमुद्-दारूल्-आख़िरतु अिन्दल्लाहि खालि-सतम् मिन् दुनिन्नासि फ-तमन्नवुल्मौ-त इन् कुन्तुम् सादिक़ीन (94)
( ऐ रसूल ) इन लोगों से कह दो कि अगर खुदा के नज़दीक आख़रत का घर ( बेहिश्त ) ख़ास तुम्हारे वास्ते है और लोगों के वासते नहीं है पस अगर तुम सच्चे हो तो मौत की आरजू क़रो (94)
व लंय्य-तमन्नौहु अ-बदम् बिमा कद्द-मत् ऐदीहिम , वल्लाहु अलीमुम् बिज्जालिमीन (95)
(ताकि जल्दी बेहिश्त में जाओ) लेकिन वह उन आमाले बद की वजह से जिनको उनके हाथों ने पहले से आगे भेजा है हरगिज़ मौत की आरजू न करेंगे और खुदा ज़ालिमों से खूब वाक़िफ है (95)
व ल-तजिदन्नहुम् अहरसन्नासि अला हयातिन् , व मिनल्लज़ी-न अश्रकू यवद्दु अ-हदुहुम् लौ युअम्मरू अल्-फ़ स-नतिन् , वमा हु-व बिमुज़हज़िहिही मिनल-अज़ाबि अंय्युअम्म-र , वल्लाहु बसीरूम् बिमा यअमलून (96)
और (ऐ रसूल) तुम उन ही को ज़िन्दगी का सबसे ज्यादा हरीस पाओगे और मुशरिक़ों में से हर एक शख्स चाहता है कि काश उसको हज़ार बरस की उम्र दी जाती हालाँकि अगर इतनी तूलानी उम्र भी दी जाए तो वह ख़ुदा के अज़ाब से छुटकारा देने वाली नहीं , और जो कुछ वह लोग करते हैं खुदा उसे देख रहा है ” (96)
कुल मन् का-न अदुव्वल्लिजिब्री-ल फ़-इन्नहू नज्ज-लहू अला कल्बि-क बि-इज्निल्लाहि मुसद्दिकल्लिमा बै-न यदैहि व हुदंव् व बुश्रा लिल्-मुअ्मिनीन (97)
(ऐ रसूल उन लोगों से) कह दो कि जो जिबरील का दुशमन है ( उसका खुदा दुशमन है ) क्योंकि उस फ़रिश्ते ने खुदा के हुक्म से ( इस कुरान को ) तुम्हारे दिल पर डाला है और वह उन किताबों की भी तसदीक करता है जो ( पहले नाज़िल हो चुकी हैं और सब ) उसके सामने मौजूद हैं और ईमानदारों के वास्ते खुशखबरी है (97)
मन् का-न अदुव्वल्लिल्लाहि व मला-इ-कतिही व रूसुलिही व जिब्री-ल व मीका-ल फ़-इन्नल्ला-ह अदुव्वुल-लिल्काफ़िरीन (98)
जो शख्स ख़ुदा और उसके फरिश्तों और उसके रसूलों और (ख़ासकर) जिबराईल व मीकाइल का दुशमन हो तो बेशक खुदा भी ( ऐसे ) काफ़िरों का दुश्मन है (98)
व लकद् अन्जल्ना इलै-क आयातिम् बय्यिनातिन् वमा यक्फुरू बिहा इल्लल्-फ़ासिकून (99)
और ( ऐ रसूल ) हमने तुम पर ऐसी निशानियाँ नाज़िल की हैं जो वाजेए और रौशन हैं और ऐसे नाफरमानों के सिवा उनका कोई इन्कार नहीं कर सकता (99)
अ-व कुल्लमा आ-हदू अह्दन् न-ब-ज़हू फ़रीकुम् मिन्हुम , बल अक्सरूहुम् ला युअ्मिनून (100)
और उनकी ये हालत है कि जब कभी कोई अहद किया तो उनमें से एक फरीक़ ने तोड़ डाला बल्कि उनमें से अक्सर तो ईमान ही नहीं रखते (100)
व लम्मा जाअहुम् रसूलुम् मिन् अिन्दिल्लाहि मुसद्दिकुल-लिमा म-अहुम् न-ब-ज़ फरीकुम मिनल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब किताबल्लाहि वरा-अ जुहूरिहिम् क-अन्नहुम् ला यअ्लमून (101)
और जब उनके पास खुदा की तरफ से रसूल ( मोहम्मद ) आया और उस किताब ( तौरेत ) की जो उनके पास है तसदीक़ भी करता है तो उन अहले किताब के एक गिरोह ने किताबे खुदा को अपने पसे पुश्त फेंक दिया गोया वह लोग कुछ जानते ही नहीं और उस मंत्र के पीछे पड़ गए (101)
वत्त-बअू मा तत्लुश्शयातीनु अ़ला मुल्कि सुलैमा-न वमा क-फ़-र सुलैमानु व लाकिन्नश्शयाती-न क-फरू युअल्-लि-मूनन्-नासस्-सिह-र , वमा उन्ज़ि-ल अलल् म-ल-कैनि बिबाबि-ल हारू-त व मारू-त , वमा युअल्लिमानि मिन् अ-हदिन् हत्ता यकूला इन्नमा नह्नू फ़ित्नतुन् फ़ला तक्फुर , फ़-य-तअल्लमू-न मिन्हुमा मा युफ़र्रिकू-न बिही बैनल-मरइ व जौजिही , वमा हुम् बिज़ार्री-न बिही मिन् अ-हदिन इल्ला बि-इज्निल्लाहि , व य-तअल्लमू-न मा यजुर्रूहुम् वला यन्फ़अुहुम , व लकद् अलिमू ल-मनिश्तराहु मा लहू फ़िल्आख़िरति मिन् खलाकिन् , व लबिअ्-स मा शरौ बिही अन्फु-सहुम , लौ कानू यअलमून (102)
जिसको सुलेमान के ज़माने की सलतनत में शयातीन जपा करते थे हालाँकि सुलेमान ने कुफ्र नहीं इख़तेयार किया लेकिन शैतानों ने कुफ्र एख़तेयार किया कि वह लोगों को जादू सिखाया करते थे और वह चीजें जो हारूत और मारूत दोनों फ़रिश्तों पर बाइबिल में नाज़िल की गई थी हालाँकि ये दोनों फ़रिश्ते किसी को सिखाते न थे जब तक ये न कह देते थे कि हम दोनों तो फ़क़त ( ज़रियाए आज़माइश ) है पस तो ( इस पर अमल करके ) बेईमान न हो जाना उस पर भी उनसे वह ( टोटके ) सीखते थे जिनकी वजह से मिया बीवी में तफ़रक़ा डालते हालाँकि बगैर इज्ने खुदावन्दी वह अपनी इन बातों से किसी को ज़रर नहीं पहँचा सकते थे और ये लोग ऐसी बातें सीखते थे जो खुद उन्हें नुक़सान पहुँचाती थी और कुछ ( नफा ) पहुँचाती थी बावजूद कि वह यक़ीनन जान चुके थे कि जो शख्स इन ( बुराईयों ) का ख़रीदार हुआ वह आख़िरत में बेनसीब हैं और बेशुबह ( मुआवज़ा ) बहुत ही बड़ा है जिसके बदले उन्होंने अपनी जानों को बेचा काश ( उसे कुछ ) सोचे समझे होते (102)
व लौ अन्नहुम् आमनू वत्तकौ ल-मसू-बतुम् मिन् अिन्दिल्लाहि खैरून् , लौ कानू यअ्लमून (103)
और अगर वह ईमान लाते और जादू वगैरह से बचकर परहेज़गार बनते तो खुदा की दरगाह से जो सवाब मिलता वह उससे कहीं बेहतर होता काश ये लोग ( इतना तो ) समझते (103)
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तकूलू राअिना व कूलुन्जुर्ना वस्मअू , व लिल्काफ़िरी-न अज़ाबुन अलीम (104)
ऐ ईमानवालों तुम ( रसूल को अपनी तरफ मुतावज्जे करना चाहो तो ) रआना ( हमारी रिआयत कर ) न कहा करो बल्कि उनजुरना ( हम पर नज़रे तवज्जो रख ) कहा करो और ( जी लगाकर ) सुनते रहो और काफिरों के लिए दर्दनाक अज़ाब है (104)
 

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 105 to 130 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 105 to 130 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 105 to 130


मा यवद्दुल्लज़ी-न क-फरू मिन अहलिल्-किताबि व ललमुश्रिकी-न अंय्यु नज्ज़-ल अलैकुम् मिन् खैरिम्-मिर्रब्बिकुम , वल्लाहु यख़्तस्सु बिरहमतिहि मंय्यशा-उ , वल्लाहु जुलफ़ज्लिल-अज़ीम (105)
ऐ रसूल अहले किताब में से जिन लोगों ने कुफ्र इख़तेयार किया वह और मुशरेकीन ये नहीं चाहते हैं कि तुम पर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से भलाई ( वही ) नाज़िल की जाए और ( उनका तो इसमें कुछ इजारा नहीं ) खुदा जिसको चाहता है अपनी रहमत के लिए ख़ास कर लेता है और खुदा बड़ा फज़ल ( करने ) वाला है (105)
मा नन्सखू मिन् आयतिन् औ नुन्सिहा नअ्ति बिखैरिम् मिन्हा औ मिस्लिहा , अलम् तअ्लम् अन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर (106)
(ऐ रसूल) हम जब कोई आयत मन्सूख़ करते हैं या तुम्हारे ज़ेहन से मिटा देते हैं तो उससे बेहतर या वैसी ही ( और ) नाज़िल भी कर देते हैं क्या तुम नहीं जानते कि बेशुबहा खुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (106)
अलम् तअ्लम् अन्नल्ला-ह लहू मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि , वमा लकुम् मिन् दुनिल्लाहि मिंव्वलिय्यिंव वला नसीर (107)
क्या तुम नहीं जानते कि आसमान की सलतनत बेशुबहा ख़ास खुदा ही के लिए है और खुदा के सिवा तुम्हारा न कोई सरपरस्त है न मददगार (107)
अम् तुरीदू-न अन् तस्अलू रसूलकुम् कमा सुइ-ल मूसा मिन् कब्लु , वमंय्-य-तबद्दलिल-कुफ्-र बिल्ईमानि फ़-कद् ज़ल-ल सवाअस्सबील (108)
(मुसलमानों) क्या तुम चाहते हो कि तुम भी अपने रसूल से वैसै ही ( बेढंगे ) सवालात करो जिस तरह साबिक़ ( पहले ) ज़माने में मूसा से ( बेतुके ) सवालात किए गए थे और जिस शख्स ने ईमान के बदले कुफ्र एख़तेयार किया वह तो यक़ीनी सीधे रास्ते से भटक गया (108)
वद्-द कसीरूम मिन् अहलिल-किताबि लौ यरूद्दूनकुम् मिम्-बअदि ईमानिकुम् कुफ्फारन् ह-सदम् मिन् अिन्दि अन्फुसिहिम् मिम्-बअ्दि मा तबय्य-न लहुमुल-हक्कु फ़अफू वस्फ़हू हत्ता यअ्तियल्लाहु बिअमरिही , इन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर (109)
(मुसलमानों) अहले किताब में से अक्सर लोग अपने दिली हसद की वजह से ये ख्वाहिश रखते हैं कि तुमको ईमान लाने के बाद फिर काफ़िर बना दें ( और लत्फ तो ये है कि ) उन पर हक़ ज़ाहिर हो चुका है उसके बाद भी ( ये तमन्ना बाक़ी है ) पस तुम माफ करो और दरगज़र करो यहाँ तक कि खुदा अपना ( कोई और ) हक्म भेजे बेशक खुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (109)
व अक़ीमुस्सला-त व आतुज्जका-त , वमा तुकद्दिमू लिअन्फुसिकुम मिन् खैरिन् तजिदूहु अिन्दल्लाहि , इन्नल्ला-ह बिमा तअ्मलू-न बसीर (110)
और नमाज़ पढ़ते रहो और ज़कात दिये जाओ और जो कुछ भलाई अपने लिए ( खुदा के यहाँ ) पहले से भेज दोगे उस ( के सवाब ) को मौजूद पाआगे जो कुछ तुम करते हो उसे खुदा ज़रूर देख रहा है (110)
व कालू लंय्यदखुलल जन्न-त इल्ला मन् का-न हूदन् औ नसारा , तिल-क अमानिय्युहुम , कुल हातू बुरहानकुम् इन् कुन्तुम् सादिक़ीन (111)
और ( यहूद ) कहते हैं कि यहूद ( के सिवा ) और ( नसारा कहते हैं कि ) नसारा के सिवा कोई बेहिश्त में जाने ही न पाएगा ये उनके ख्याली पुलाव है ( ऐ रसूल ) तुम उन से कहो कि भला अगर तुम सच्चे हो कि हम ही बेहिश्त में जाएँगे तो अपनी दलील पेश करो (111)
बला , मन् अस्ल-म वज्हहू लिल्लाहि व हु-व मुह्सिनुन् फ़-लहू अज्रूहू अिन्-द रब्बिही वला ख़ौफुन अलैहिम व ला हुम् यह्ज़नून (112)
अलबत्ता जिस शख्स ने खुदा के आगे अपना सर झुका दिया और अच्छे काम भी करता है तो उसके लिए उसके परवरदिगार के यहाँ उसका बदला ( मौजूद ) है और ( आखेरत में ) ऐसे लोगों पर न किसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐसे लोग ग़मगीन होगे (112)
व कालतिल यहूदु लैसतिन्नसारा अला शैइवं व कालतिन्नसारा लैसतिल यहूदु अला शैइंव व हुम् यतलूनल्किता-ब , कज़ालि-क कालल्लज़ी-न ला यअलमू-न मिस्-ल कौलिहिम् फ़ल्लाहु यह्कुमु बैनहुम् यौमल-कियामति फ़ीमा कानू फ़ीहि यख़्तलिफून (113)
और यहूद कहते हैं कि नसारा का मज़हब कुछ ( ठीक ) नहीं और नसारा कहते हैं कि यहूद का मज़हब कुछ ( ठीक ) नहीं हालाँकि ये दोनों फरीक़ किताबे ( खुदा ) पढ़ते रहते हैं इसी तरह उन्हीं जैसी बातें वह ( मुशरेकीन अरब ) भी किया करते हैं जो ( खुदा के एहकाम ) कुछ नहीं जानते तो जिस बात में ये लोग पड़े झगड़ते हैं ( दुनिया में तो तय न होगा ) क़यामत के दिन खुदा उनके दरमियान ठीक फैसला कर देगा (113)
व मन् अज्लमु मिम्मम्-म-न-अ मसाजिदल्लाहि अंय्युज्क-र फ़ीहस्मुहू व-सआ फी खराबिहा , उलाइ-क मा-का-न लहुम् अय्यद्खुलूहा इल्ला ख़ा-इफ़ी-न , लहुम् फ़िद्दुन्या खिज्युंव व-लहुम् फ़िल् आखिरति अ़ज़ाबुन अज़ीम (114)
और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो खुदा की मसजिदों में उसका नाम लिए जाने से ( लोगों को ) रोके और उनकी बरबादी के दर पे हो , ऐसों ही को उसमें जाना मुनासिब नहीं मगर सहमे हुए ऐसे ही लोगों के लिए दुनिया में रूसवाई है और ऐसे ही लोगों के लिए आखेरत में बड़ा भारी अज़ाब है (114)
व लिल्लाहिल् मश्रिकु वल्-मग्रिबु फ़-अैनमा तुवल्लू फ़-सम्-म वज्हुल्लाहि , इन्नल्ला-ह वासिअन् अलीम (115)
(तुम्हारे मसजिद में रोकने से क्या होता है क्योंकि सारी ज़मीन) खुदा ही की है ( क्या ) पूरब ( क्या ) पश्चिम बस जहाँ कहीं क़िब्ले की तरफ रूख़ करो वही खुदा का सामना है बेशक खुदा बड़ी गुन्जाइश वाला और खूब वाक़िफ है (115)
व कालुत्-तख़ज़ल्लाहु व लदन सुब्हानहू , बल-लहू मा फिस्समावाति वल्अर्जि , कुल्लुल्लहू कानितून (116)
और यहूद कहने लगे कि खुदा औलाद रखता है हालाँकि वह ( इस बखेड़े से ) पाक है बल्कि जो कुछ ज़मीन व आसमान में है सब उसी का है और सब उसकी के फरमाबरदार हैं (116)
बदीअुस्समावाति वलअर्जि , व इज़ा कज़ा अम्रन् फ़-इन्नमा यकूलु लहू कुन् फ़-यकून (117)
( वही ) आसमान व ज़मीन का मोजिद है और जब किसी काम का करना ठान लेता है तो उसकी निसबत सिर्फ कह देता है कि ” हो जा ” पस वह ( खुद ब खुद ) हो जाता है (117)
व कालल्लज़ी-न ला यअलमू-न लौ ला युकल्लिमुनल्लाहु औ तअतीना आयतुन् , कज़ालि-क कालल्लज़ी-न मिन् कब्लिहिम् मिस्-ल कौलिहिम् , तशा-बहत् कुलू बुहुम , कद् बय्यन्नल – आयाति लिकौमिंय्यूकिनून (118)
और जो ( मुशरेकीन ) कुछ नहीं जानते कहते हैं कि खुदा हमसे ( खुद ) कलाम क्यों नहीं करता , या हमारे पास ( खुद ) कोई निशानी क्यों नहीं आती , इसी तरह उन्हीं की सी बाते वह कर चुके हैं जो उनसे पहले थे उन सब के दिल आपस में मिलते जुलते हैं जो लोग यक़ीन रखते हैं उनको तो अपनी निशानियाँ क्यों साफतौर पर दिखा चुके (118)
इन्ना अरसल्ना-क बिल्हक्कि बशीरंव व-नज़ीरंव वला तुस्अलु अन् अस्हाबिल जहीम (119)
( ऐ रसूल ) हमने तुमको दीने हक़ के साथ ( बेहिश्त की ) खुशख़बरी देने वाला और ( अज़ाब से ) डराने वाला बनाकर भेजा है और दोज़ख़ियों के बारे में तुमसे कुछ न पूछा जाएगा (119)
व लन् तर्जा अन्कल्-यहूदु व लन्-नसारा हत्ता तत्तबि-अ मिल्ल-तहुम , कुल इन्-न हुदल्लाहि हुवल्-हुदा , व-ल-इनित्त-बअ-त अहवा-अहुम् बअ्दल्लज़ी जाअ-क मिनल-अिल्मि मा ल-क मिनल्लाहि मिव्वलिय्यिंव वला नसीर (120)
और ( ऐ रसूल ) न तो यहूदी कभी तुमसे रज़ामंद होगे न नसारा यहाँ तक कि तुम उनके मज़हब की पैरवी करो ( ऐ रसूल उनसे ) कह दो कि बस खुदा ही की हिदायत तो हिदायत है ( बाक़ी ढकोसला है ) और अगर तुम इसके बाद भी कि तुम्हारे पास इल्म ( कुरान ) आ चुका है उनकी ख्वाहिशों पर चले तो ( याद रहे कि फिर ) तुमको खुदा ( के ग़ज़ब ) से बचाने वाला न कोई सरपरस्त होगा न मददगार (120)
अल्लज़ी-न आतैनाहुमुल्-किता-ब यत्लूनहू हक्-क तिलावतिही , उलाइ-क युअ्मिनू-न बिही , व मंय्यक्फुर बिही फ़-उलाइ-क हुमुल ख़ासिरून (121)
जिन लोगों को हमने किताब ( कुरान ) दी है वह लोग उसे इस तरह पढ़ते रहते हैं जो उसके पढ़ने का हक़ है यही लोग उस पर ईमान लाते हैं और जो उससे इनकार करते हैं वही लोग घाटे में हैं (121)
या बनी इस्-राई लज्कुरू निअ्मतियल्लती अन्अम्तु अलैकुम् व अन्नी फज्ज़ल्तुकुम् अलल आलमीन (122)
बनी इसराईल मेरी उन नेअमतों को याद करो जो मैंनं तुम को दी हैं और ये कि मैंने तुमको सारे जहाँन पर फजीलत दी (122)
वत्तकू यौमल्ला-तज्ज़ी नफ़्सुन् अन्नफसिन् शैअंव वला युक्बलु मिन्हा अदलुंव वला तन्फ़अुहा शफाअतुंव वला हुम् युन्सरून (123)
और उस दिन से डरो जिस दिन कोई शख्स किसी की तरफ से न फिदया हो सकेगा और न उसकी तरफ से कोई मुआवेज़ा कुबूल किया जाएगा और न कोई सिफारिश ही फायदा पहुचाँ सकेगी , और न लोग मदद दिए जाएँगे (123)
व इज़िब्तला इब्राही-म रब्बुहू बि-कलिमातिन् फ़-अ-तम्म- हुन्-न , का-ल इन्नी जाअिलु-क लिन्नासि इमामन् , का-ल व मिन् जुर्रिय्यती , का-ल ला यनालु अह्दिज्-ज़ालिमीन (124)
( ऐ रसल ) बनी इसराईल को वह वक्त भी याद दिलाओ जब इबराहीम को उनके परवरदिगार ने चन्द बातों में आज़माया और उन्होंने पूरा कर दिया तो खुदा ने फरमाया मैं तुमको ( लोगों का ) पेशवा बनाने वाला हूँ ( हज़रत इबराहीम ने ) अर्ज़ की और मेरी औलाद में से फरमाया ( हाँ मगर ) मेरे इस अहद पर ज़ालिमों में से कोई शख्स फ़ायज़ नहीं हो सकता (124)
व इज् जअल्-नल्-बै-त मसा-बतल् लिन्नासि व अमनन् , वत्तखिजू मिम् मक़ामि इब्राही-म मुसल्लन् , व अहिद्ना इला इब्राही-म व इस्माअी-ल अन् तह्हिरा बैति-य लित्ता-इफ़ी-न वल् आकिफ़ी-न वर्रूक्क-अिस्सुजूद (125)
(ऐ रसूल वह वक्त भी याद दिलाओ) जब हमने ख़ानए काबा को लोगों के सवाब और पनाह की जगह क़रार दी और हुक्म दिया गया कि इबराहीम की ( इस ) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल से अहद व पैमान लिया कि मेरे ( उस ) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और रूकू और सजदा करने वालों के वास्ते साफ सुथरा रखो (125)
व इज् का-ल इब्राहीमु रब्बिज्अ़ल हाज़ा ब-लदन् आमिनंव्-वरज़ुक् अहलहू मिनस्-स-मराति मन् आम-न मिन्हुम् बिल्लाहि वलयौमिल आखिरि , का-ल वमन् क-फ-र फ़-उमत्तिअु़हू कलीलन सुम्-म अज्तरर्रूहू इला अज़ाबिन्नारि , व बिअसल्-मसीर (126)
और ( ऐ रसूल वह वक्त भी याद दिलाओ ) जब इबराहीम ने दुआ माँगी कि ऐ मेरे परवरदिगार इस ( शहर ) को पनाह व अमन का शहर बना , और उसके रहने वालों में से जो खुदा और रोज़े आख़िरत पर ईमान लाए उसको तरह – तरह के फल खाने को दें खुदा ने फरमाया ( अच्छा मगर ) वो कुफ्र इख़तेयार करेगा उसकी दुनिया में चन्द रोज़ ( उन चीज़ो से ) फायदा उठाने दूंगा फिर ( आखेरत में ) उसको मजबूर करके दोज़ख़ की तरफ खींच ले जाऊँगा और वह बहुत बुरा ठिकाना है (126)
व इज् यरफ़अु़ इब्राहीमुल् कवाअि-द् मिनल बैति व इस्माअीलु , रब्बना तकब्बल मिन्ना , इन्न-क अन्तस्समीअुल-अलीम (127)
और ( वह वक्त याद दिलाओ ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बुनियादें बुलन्द कर रहे थे ( और दुआ ) माँगते जाते थे कि ऐ हमारे परवरदिगार हमारी ( ये ख़िदमत ) कुबूल कर बेशक तूही ( दूआ का ) सुनने वाला ( और उसका ) जानने वाला है (127)
रब्बना वज्अल्ना मुस्लिमैनि ल-क व मिन् जुर्रिय्यतिना उम्मतम् मुस्लि-मतल ल-क व अरिना मनासि-क-ना व तुब् अलैना इन्न-क अन्तत्तव्वाबुर्-रहीम (128) (और) ऐ हमारे पालने वाले तू हमें अपना फरमाबरदार बन्दा बना हमारी औलाद से एक गिरोह ( पैदा कर ) जो तेरा फरमाबरदार हो , और हमको हमारे हज की जगहों दिखा दे और हमारी तौबा कुबूल कर , बेशक तू ही बड़ा तौबा कुबूल करने वाला मेहरबान है (128)
रब्बना वब्अस् फ़ीहिम् रसूलम् मिन्हुम यत्लू अलैहिम् आयाति-क व युअल्लिमुहुमुल-किता-ब वल-हिक्म-त व-युज़क्कीहिम , इन्न-क अन्तल अज़ीजुल-हकीम (129)
(और) ऐ हमारे पालने वाले मक्के वालों में उन्हीं में से एक रसूल को भेज जो उनको तेरी आयतें पढ़कर सुनाए और आसमानी किताब और अक्ल की बातें सिखाए और उन ( के नुफूस ) के पाकीज़ा कर दें बेशक तू ही ग़ालिब और साहिबे तदबीर है (129)
व मंय्यरगबु अम्-मिल्लति इब्राही-म इल्ला मन् सफ़ि-ह नफ्सहू , व-ल-कदिस्तफैनाहु फिद्दुन्या व इन्नहू फ़िल-आखिरति लमिनस्सालिहीन (130)
और कौन है जो इबराहीम के तरीक़े से नफरत करे मगर जो अपने को अहमक़ बनाए और बेशक हमने उनको दुनिया में भी मुन्तिख़ब कर लिया और वह ज़रूर आखेरत में भी अच्छों ही में से होगे (130)

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 131 to 156 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 131 to 156 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 131 to 156

 


इज़ का-ल लहू रब्बुहू असलिम् का-ल अस्लम्तु लि-रब्बिल् आलमीन (131)
जब उनसे उनके परवरदिगार ने कहा इस्लाम कुबूल करो तो अर्ज़ में सारे जहाँ के परवरदिगार पर इस्लाम लाया (131)
व वस्सा बिहा इब्राहीमु बनीहि व यअकूबु , या बनिय्-य इन्नल्लाहस्तफ़ा लकुमुद्दी-न फ़ला तमूतुन्-न इल्ला व अन्तुम् मुस्लिमून (132)
और इसी तरीके क़ी इबराहीम ने अपनी औलाद से वसीयत की और याकूब ने ( भी ) कि ऐ फरज़न्दों खुदा ने तुम्हारे वास्ते इस दीन ( इस्लाम ) को पसन्द फरमाया है पस तुम हरगिज़ न मरना मगर मुसलमान ही होकर (132)
अम् कुन्तुम् शु-हदा-अ इज् ह-ज़-र यअकूबल-मौतु इज़् का-ल लि-बनीहि मा तअबुदू-न मिम्-बअ्दी , कालू नअ्बुदु इलाह-क व इला-ह आबाइ-क इब्राही-म व इस्माअी़-ल व इसहा-क इलाहंव्-वाहिदंव-व नह्नु लहू मुस्लिमून (133)
( ऐ यहूद ) क्या तुम उस वक्त मौजूद थे जब याकूब के सर पर मौत आ खडी हईउस वक्त उन्होंने अपने बेटों से कहा कि मेरे बाद किसी की इबादत करोगे कहने लगे हम आप के माबूद और आप के बाप दादाओं इबराहीम व इस्माइल व इसहाक़ के माबूद व यकता खुदा की इबादत करेंगे और हम उसके फरमाबरदार हैं (133)
तिल-क उम्मतुन् कद् ख़लत् लहा मा क-सबत् व लकुम् मा क-सब्तुम् व ला तुस्अ्लू-न अम्मा कानू यअ्मलून (134)
( ऐ यहूद ) वह लोग थे जो चल बसे जो उन्होंने कमाया उनके आगे आया और जो तुम कमाओगे तुम्हारे आगे आएगा और जो कुछ भी वह करते थे उसकी पूछगछ तुमसे नहीं होगी (134)
व कालू कूनू हूदन् औ नसारा तह्तदू , कुल बल मिल्ल-त इब्राही-म हनीफ़न् , व मा का-न मिनल् – मुश्रिकीन (135)
(यहूदी ईसाई मुसलमानों से ) कहते हैं कि यहूद या नसरानी हो जाओ तो राहे रास्त पर आ जाओगे ( ऐ रसूल उनसे ) कह दो कि हम इबराहीम के तरीक़े पर हैं जो बातिल से कतरा कर चलते थे और मुशरेकीन से न थे (135)
कूलू आमन्ना बिल्लाहि वमा उन्जि-ल इलैना वमा उन्ज़ि-ल इला इब्राही-म व इस्माअी-ल व इस्हा-क व यअकू-ब वल-अस्बाति वमा ऊति-य मूसा व अीसा वमा ऊतियन्नबिय्यू-न मिर्रब्बिहिम् ला नुफ़र्रिकु बै-न अ-हदिम्-मिन्हुम् व नह्नु लहू मुस्लिमून (136)
(और ऐ मुसलमानों तुम ये) कहो कि हम तो खुदा पर ईमान लाए हैं और उस पर जो हम पर नाज़िल किया गया (कुरान) और जो सहीफ़े इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकूब और औलादे याकूब पर नाज़िल हुए थे (उन पर) और जो किताब मूसा व ईसा को दी गई ( उस पर ) और जो और पैग़म्बरों को उनके परवरदिगार की तरफ से उन्हें दिया गया ( उस पर ) हम तो उनमें से किसी ( एक ) में भी तफरीक़ नहीं करते और हम तो खुदा ही के फरमाबरदार हैं (136)
फ़-इन् आमनू बिमिस्लि मा आमन्तुम् बिही फ़-कदिहतदौ व इन तवल्लौ फ-इन्नमा हुम् फ़ी शिकाकिन् फ़-स-यक्फी-कहुमुल्लाहु व-हुवस्समीअुल अलीम (137)
पस अगर ये लोग भी उसी तरह ईमान लाए हैं जिस तरह तुम तो अलबत्ता राहे रास्त पर आ गए और अगर वह इस तरीके से मुँह फेर लें तो बस वह सिर्फ तुम्हारी ही ज़िद पर है तो ( ऐ रसूल ) उन के शर से ( बचाने को ) तुम्हारे लिए खुदा काफ़ी होगा और वह ( सबकी हालत ) खूब जानता ( और ) सुनता है (137)
सिब-गतल्लाहि व मन् अहसनु मिनल्लाहि सिब-गतंव व नह्नु लहू आबिदून (138)
(मुसलमानों से कहो कि) रंग तो खुदा ही का रंग है जिसमें तुम रंगे गए और खुदाई रंग से बेहतर कौन रंग होगा और हम तो उसी की इबादत करते हैं (138)
कुल अतुहाज्जू-नना फ़िल्लाहि व हुव रब्बुना व रब्बुकुम् व लना अअ्मालुना व लकुम् अअ्मालुकुम व नह्नु लहू मुख़्लिसून (139)
(ऐ रसूल) तुम उनसे पूछो कि क्या तुम हम से खुदा के बारे झगड़ते हो हालाँकि वही हमारा (भी) परवरदिगार है (वही) तुम्हारा भी (परवरदिगार है) हमारे लिए है हमारी कारगुज़ारियाँ और तुम्हारे लिए तुम्हारी कारसतानियाँ और हम तो निरेखरे उसी में हैं (139)
अम् तकूलू-न इन्-न इब्राही-म व इस्माअी-ल व इस्हा-क व यअ्कू-ब वल्-अस्बा-त कानू हूदन औ नसारा , कुल अ-अन्तुम् अअ्लमु अमिल्लाहु व मन् अ़ज्लमु मिम्मन् क-त-म शहा-दतन् अिन्दहू मिनल्लाहि , व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अम्मा तअ्मलून (140)
क्या तुम कहते हो कि इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौदें याकूब सब के सब यहूदी या नसरानी थे ( ऐ रसूल उनसे ) पूछो तो कि तुम ज्यादा वाक़िफ़ हो या खुदा और उससे बढ़कर कौन ज़ालिम होगा जिसके पास खुदा की तरफ से गवाही ( मौजूद ) हो ( कि वह यहूदी न थे ) और फिर वह छिपाए और जो कुछ तुम करते हो खुदा उससे बेख़बर नहीं (140)
तिल-क उम्मतुन् कद् ख़लत् लहा मा क-सबत् व लकुम् मा क-सब्तुम् वला तुस्अलू-न अम्मा कानू यअ्मलून (141)
ये वह लोग थे जो सिधार चुके जो कुछ कमा गए उनके लिए था और जो कुछ तुम कमाओगे तुम्हारे लिए होगा और जो कुछ वह कर गुज़रे उसकी पूछगछ तुमसे न होगी (141)
सयकूलुस्-सुफहा-उ मिनन्नासि मा वल्लाहुम् अन् किब्लतिहिम मुल्लती कानू अलैहा , कुल लिल्लाहिल-मश्रिकु वल्मग्रिबु , यह्दी मंय्यशा-उ इला सिरातिम्-मुस्तकीम (142)
बाज़ अहमक़ लोग ये कह बैठेगें कि मुसलमान जिस क़िबले बैतुल मुक़द्दस की तरफ पहले से सजदा करते थे उस से दूसरे क़िबले की तरफ मुड़ जाने का बाइस हुआ । ऐ रसूल तुम उनके जवाब में कहो कि पूरब पश्चिम सब ख़ुदा का है जिसे चाहता है सीधे रास्ते की तरफ हिदायत करता है (142)
व कज़ालि-क जअ़ल्नाकुम् उम्मतंव व-स-तल्लितकूनू शु-हदा-अलन-नासि व यकूनर्रसूलु अलैकुम् शहीदन् , वमा जअल्नल-किब्लतल्लती कुन्-त अ़लैहा इल्ला लिनअ्ल-म मंय्यत्तबिअुर्रसू-ल मिम्-मंय्यन्कलिबु अला अकिबैहि , व इन् कानत् ल-कबी-रतन् इल्ला अलल्लज़ी-न हदल्लाहु वमा कानल्लाहु लियुजी-अ ईमानकुम , इन्नल्ला-ह बिन्नासि ल-रऊफु़र्रहीम (143)
और जिस तरह तुम्हारे क़िबले के बारे में हिदायत की उसी तरह तुम को आदिल उम्मत बनाया ताकि और लोगों के मुक़ाबले में तुम गवाह बनो और रसूल मोहम्मद तुम्हारे मुक़ाबले में गवाह बनें और ( ऐ रसूल ) जिस क़िबले की तरफ़ तुम पहले सज़दा करते थे हम ने उसको को सिर्फ इस वजह से क़िबला क़रार दिया था कि जब क़िबला बदला जाए तो हम उन लोगों को जो रसूल की पैरवी करते हैं हम उन लोगों से अलग देख लें जो उलटे पाव फिरते हैं अगरचे ये उलट फेर सिवा उन लोगों के जिन की ख़ुदा ने हिदायत की है सब पर शाक़ ज़रुर है और ख़ुदा ऐसा नहीं है कि तुम्हारे ईमान नमाज़ को जो बैतुलमुक़द्दस की तरफ पढ़ चुके हो बरबाद कर दे बेशक ख़ुदा लोगों पर बड़ा ही रफ़ीक व मेहरबान है (143)
कद् नरा तक़ल्लु-ब वज्हि-क फ़िस्समा-इ फ़-ल-नुवल्लियन्न-क किब्लतन् तर्जा़हा फ़-वल्लि वज्ह-क शत्रल-मस्जिदिल्-हरामि , व हैसु मा कुन्तुम् फ़-वल्लू वुजू-हकुम् शतरहू , व इन्नल्लज़ी-न ऊतुल्किता-ब ल-यअ्लमू-न अन्नहुल-हक्कु मिरब्बिहिम , व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अम्मा यअ्मलून (144)
ऐ रसूल क़िबला बदलने के वास्ते बेशक तुम्हारा बार बार आसमान की तरफ मुँह करना हम देख रहे हैं तो हम ज़रुर तुम को ऐसे क़िबले की तरफ फेर देगें कि तुम निहाल हो जाओ अच्छा तो नमाज़ ही में तुम मस्ज़िदे मोहतरम काबे की तरफ मुँह कर लो और ऐ मुसलमानों तुम जहाँ कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मुँह कर लिया करो और जिन लोगों को किताब तौरेत वगैरह दी गयी है वह बखूबी जानते हैं कि ये तबदील क़िबले बहुत बजा व दुरुस्त है और उस के परवरदिगार की तरफ़ से है और जो कुछ वह लोग करते हैं उस से ख़ुदा बेख़बर नही (144)
व लइन् अतै तल्लज़ी-न ऊतुल-किता-ब बिकुल्लि आ-यतिम्मा तबिअू किब्ल-त-क वमा अन्-त बिता-बिअिन् किब्ल-तहुम् वमा बअ्जुहुम् बिताबिअि़न् किब्ल-त बअ्ज़िन , व ल-इनित्तबअ्-त अहवा-अहुम् मिम्-बअदि मा जाअ-क मिनल्-अिल्मि इन्न क इज़ल् लमिनज्जालिमीन (145)
और अगर अहले किताब के सामने दुनिया की सारी दलीले पेश कर दोगे तो भी वह तुम्हारे क़िबले को न मानेंगें और न तुम ही उनके क़िबले को मानने वाले हो और खुद अहले किताब भी एक दूसरे के क़िबले को नहीं मानते और जो इल्म कुरान तुम्हारे पास आ चुका है उसके बाद भी अगर तुम उनकी ख्वाहिश पर चले तो अलबत्ता तुम नाफ़रमान हो जाओगे (145)
अल्लज़ी-न आतैनाहुमुल्-किता-ब यअ्रिफूनहू कमा यअरिफू-न अब्ना-अहुम , व इन्-न फ़रीकम्-मिन्हुम् ल-यक्तुमूनल-हक्क व हुम् यअ्लमून (146)
जिन लोगों को हमने किताब ( तौरैत वगैरह ) दी है वह जिस तरह अपने बेटों को पहचानते है उसी तरह तरह वह उस पैग़म्बर को भी पहचानते हैं और उन में कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो दीदए व दानिस्ता ( जान बुझकर ) हक़ बात को छिपाते हैं (146)
अल्हक्कु मिर्रब्बि-क फला तकूनन्-न मिनल-मुम्तरीन (147)
ऐ रसूल तबदीले क़िबला तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से हक़ है पस तुम कहीं शक करने वालों में से न हो जाना (147)
व लिकुल्लिव्विज्हतुन हु-व मुवल्लीहा फ़स्तबिकुल-खैराति , ऐ-न मा तकूनू यअ्ति बिकुमुल्लाहु जमीअ़न् , इन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर (148)
और हर फरीक़ के वास्ते एक सिम्त है उसी की तरफ वह नमाज़ में अपना मुँह कर लेता है पस तुम ऐ मुसलमानों झगड़े को छोड़ दो और नेकियों मे उन से लपक के आगे बढ़ जाओ तुम जहाँ कहीं होगे ख़ुदा तुम सबको अपनी तरफ ले आऐगा बेशक ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (148)
व मिन् हैसु ख़रज्-त फ़-वल्लि वज्ह-क शत्रल मस्जिदिल्-हरामि , व इन्नहू लल्हक्कु मिर्रब्बि-क , व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अम्मा तअ्मलून (149)
और ( ऐ रसूल ) तुम जहाँ से जाओ ( यहाँ तक मक्का से ) तो भी नमाज़ मे तुम अपना मुँह मस्ज़िदे मोहतरम ( काबा ) की तरफ़ कर लिया करो और बेशक ये नया क़िबला तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से हक़ है (149)
व मिन् हैसु ख़रज्-त फ़-वल्लि वज्ह-क शत्रल् मस्जिदिल्-हरामि , व हैसु मा कुन्तुम् फ़-वल्लू वुजूहकुम् शत्रहू लिअल्ला यकू-न लिन्नासि अलैकुम् , हुज्जतुन् , इल्लल्लज़ी-न ज़-लमू मिन्हुम् फला तख़शौहुम् वख़्शौनी , व लि-उतिम्-म निअ्मती अलैकुम् व लअल्लकुम् तह्तदून (150)
और तुम्हारे कामों से ख़ुदा ग़ाफिल नही है और ( ऐ रसूल ) तुम जहाँ से जाओ ( यहाँ तक के मक्का से तो भी ) तुम ( नमाज़ में ) अपना मुँह मस्ज़िदे हराम की तरफ कर लिया करो और ( ऐ रसूल ) तुम जहाँ कही हुआ करो तो नमाज़ में अपना मुँह उसी काबा की तरफ़ कर लिया करो ( बार बार हुक्म देने का एक फायदा ये है ताकि लोगों का इल्ज़ाम तुम पर न आने पाए मगर उन में से जो लोग नाहक़ हठधर्मी करते हैं वह तो ज़रुर इल्ज़ाम देगें ) तो तुम लोग उनसे डरो नहीं और सिर्फ़ मुझसे डरो और (दूसरा फ़ायदा ये है) ताकि तुम पर अपनी नेअमत पूरी कर दूं (150)
कमा अर्-सल्ना फीकुम् रसूलम्-मिन्कुम् यत्लू अलैकुम् आयातिना व युज़क्कीकुम् व युअ़ल्लिमुकुमुल-किता-ब वल्हिक्म-त व युअल्लिमुकुम् मा लम् तकूनू तअ्लमून (151)
और तीसरा फायदा ये है ताकि तुम हिदायत पाओ मुसलमानों ये एहसान भी वैसा ही है जैसे हम ने तुम में तुम ही में का एक रसूल भेजा जो तुमको हमारी आयतें पढ़ कर सुनाए और तुम्हारे नफ्स को पाकीज़ा करे और तुम्हें किताब कुरान और अक्ल की बातें सिखाए और तुम को वह बातें बताए जिन की तुम्हें पहले से खबर भी न थी (151)
फज्कुरूनी अज्कुर्कुम् वश्कुरूली वला तक्फुरून (152)
पस तुम हमारी याद रखो तो मै भी तुम्हारा ज़िक्र ( खैर ) किया करुगाँ और मेरा शुक्रिया अदा करते रहो और नाशुक्री न करो (152)
या अय्युहल्लज़ी-न आमनुस्तअी़नू बिस्सब्रि वस्सलाति , इन्नल्ला-ह मअ़स्साबिरीन (153)
ऐ ईमानदारों मुसीबत के वक्त सब्र और नमाज़ के ज़रिए से ख़ुदा की मदद माँगों बेशक ख़ुदा सब्र करने वालों ही का साथी है (153)
वला तकूलू लिमंय्युक्त़लु फ़ी सबीलिल्लाहि अम्वातुन् , बल् अह्याउंव् वला-किल्ला तश्अुरून (154)
और जो लोग ख़ुदा की राह में मारे गए उन्हें कभी मुर्दा न कहना बल्कि वह लोग ज़िन्दा हैं मगर तुम उनकी ज़िन्दगी की हक़ीकत का कुछ भी शऊर नहीं रखते (154)
व ल-नब्लु वन्नकुम् बिशैइम् मिनल्खौफि वल्जूअि़ व नक्सिम् मिनल अम्वालि वल्-अन्फुसि वस्स-मराति , व बश्शिरिस्साबिरीन (155)
और हम तुम्हें कुछ खौफ़ और भूख से और मालों और जानों और फलों की कमी से ज़रुर आज़माएगें और ( ऐ रसूल ) ऐसे सब्र करने वालों को ख़ुशख़बरी दे दो (155)
अल्लज़ी-न इज़ा असाबतहुम् मुसीबतुन् कालू इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिअून (156)
कि जब उन पर कोई मुसीबत आ पड़ी तो वह ( बेसाख्ता ) बोल उठे हम तो ख़ुदा ही के हैं और हम उसी की तरफ लौट कर जाने वाले हैं (156)


Surah Al Baqara in Hindi Ayat 157 to 182 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 157 to 182 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 157 to 182
 


उलाइ-क अलैहिम सलवातुम् मिर्रब्बिहिम् व रहमतुन् , व उलाइ-क हुमुल्-मुह्तदून (157)
उन्हीं लोगों पर उनके परवरदिगार की तरफ से इनायतें हैं और रहमत और यही लोग हिदायत याफ्ता है (157)
इन्नस्सफा वल्मर्व-त मिन् शआ-इरिल्लाहि फ़-मन् हज्जल्बै-त अविअ्त-म-र फ़ला जुना-ह अलैहि अंय्यत्तव्व-फ़ बिहिमा , व मन् त-तव्व-अ खैरन् फ़-इन्नल्ला-ह शाकिरून् अलीम (158)
बेशक ( कोहे ) सफ़ा और ( कोह ) मरवा ख़ुदा की निशानियों में से हैं पस जो शख्स ख़ानए काबा का हज या उमरा करे उस पर उन दोनो के ( दरमियान ) तवाफ़ ( आमद ओ रफ्त ) करने में कुछ गुनाह नहीं ( बल्कि सवाब है ) और जो शख्स खुश खुश नेक काम करे तो फिर ख़ुदा भी क़दरदाँ ( और ) वाक़िफ़कार है (158)
इन्नल्लजी-न यक़्तुमू-न मा अन्जल्ना मिनल् बय्यिनाति वल्हुदा मिम्-बअदि मा बय्यन्नाहु लिन्नासि फिल्-किताबि उलाइ-क यल् अनुहुमुल्लाहु व यल् अनुहुमुल्-लाअिनून (159)
बेशक जो लोग हमारी इन रौशन दलीलों और हिदायतों को जिन्हें हमने नाज़िल किया उसके बाद छिपाते हैं जबकि हम किताब तौरैत में लोगों के सामने साफ़ साफ़ बयान कर चुके हैं तो यही लोग हैं जिन पर ख़ुदा भी लानत करता है और लानत करने वाले भी लानत करते हैं (159)
इल्लल्लज़ी-न ताबू व अस्लहू व बय्यनू फ़-उलाइ-क अतूबु अलैहिम् व अ-नत्तव्वाबुर्रहीम (160)
मगर जिन लोगों ने ( हक़ छिपाने से ) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर ली और जो किताबे ख़ुदा में है साफ़ साफ़ बयान कर दिया पस उन की तौबा मै कुबूल करता हूँ और मै तो बड़ा तौबा कुबूल करने वाला मेहरबान हूँ (160)
इन्नल्लज़ी-न क-फरू व मातू व हुम् कुफ्फारून् उलाइ-क अलैहिम् लअ्-नतुल्लाहि वल् मलाइ-कति वन्नासि अज्मअी़न (161)
बेशक जिन लोगों में कुफ्र एख्तेयार किया और कुफ्र ही की हालत में मर गए उन्ही पर ख़ुदा की और फरिश्तों की और तमाम लोगों की लानत है हमेशा उसी फटकार में रहेंगे (161)
ख़ालिदी-न फ़ीहा ला युख्फ्फु अन्हुमुल्-अज़ाबु व ला हुम् युन्ज़रून (162)
न तो उनके अज़ाब ही में तख्फ़ीफ़ ( कमी ) की जाएगी (162)
व इलाहुकुम् इलाहुंव-वाहिदुन् ला इला-ह इल्ला हुवर्रह्मानुर्रहीम (163)
और न उनको अज़ाब से मोहलत दी जाएगी और तुम्हारा माबूद तो वही यकता ख़ुदा है उस के सिवा कोई माबूद नहीं जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है (163)
इन्-न फ़ी ख़ल्किस्समावाति वलअर्ज़ि वख्तिलाफ़िल्लैलि वन्नहारि वल्फु़ल्किल्लती तजरी फ़िल्बहरि बिमा यन्फअुन्ना-स व मा अन्ज़लल्लाहु मिनस्समा-इ मिम्मा-इन् फ़-अह्या बिहिल् अर्-ज़ बअ्-द मौतिहा व बस्-स फ़ीहा मिन् कुल्लि दाब्बतिन् व तसरीफ़िर्रियाहि वस्सहाबिल मुसख्खरि बैनस्समा-इ वल् अर्जि लआयातिल लिकौमिंय्यअकिलून (164)
बेशक आसमान व ज़मीन की पैदाइश और रात दिन के रद्दो बदल में और क़श्तियों जहाज़ों में जो लोगों के नफे की चीज़े ( माले तिजारत वगैरह दरिया ) में ले कर चलते हैं और पानी में जो ख़ुदा ने आसमान से बरसाया फिर उस से ज़मीन को मुर्दा ( बेकार ) होने के बाद जिला दिया ( शादाब कर दिया ) और उस में हर क़िस्म के जानवर फैला दिये और हवाओं के चलाने में और अब्र में जो आसमान व ज़मीन के दरमियान ख़ुदा के हुक्म से घिरा रहता है इन सब बातों में अक्ल वालों के लिए बड़ी बड़ी निशानियाँ हैं (164)
व मिनन्नासि मंय्यत्तख़िजु मिन् दूनिल्लाहि अन्दादंय्युहिब्बू-नहुम् कहुब्बिल्लाहि , वल्लज़ी-न आमनू अशद्दू हुब्बल-लिल्लाहि , व लौ यरल्लज़ी-न ज़-लमू इज् यरौनल-अज़ा-ब अन्नल-कुव्व-त लिल्लाहि जमीअंव व अन्नल्ला-ह शदीदुल् अ़ज़ाब (165)
और बाज़ लोग ऐसे भी हैं जो ख़ुदा के सिवा औरों को भी ख़ुदा का मिसल व शरीक बनाते हैं ( और ) जैसी मोहब्बत ख़ुदा से रखनी चाहिए वैसी ही उन से रखते हैं और जो लोग ईमानदार हैं वह उन से कहीं बढ़ कर ख़ुदा की उलफ़त रखते हैं और काश ज़ालिमों को ( इस वक्त ) वह बात सूझती जो अज़ाब देखने के बाद सूझेगी कि यक़ीनन हर तरह की कूवत ख़ुदा ही को है और ये कि बेशक ख़ुदा बड़ा सख्त अज़ाब वाला है (165)
इज् त-बर्र अल्लज़ीनत्तु बिअ़ू मिनल्लज़ीनत् त-बअू व र-अवुल अज़ा-ब व त कत्तअत् बिहिमुल अस्बाब (166)
( वह क्या सख्त वक्त होगा ) जब पेशवा लोग अपने पैरवो से अपना पीछा छुड़ाएगे और ( ब चश्में ख़ुद ) अज़ाब को देखेगें और उनके बाहमी ताल्लुक़ात टूट जाएँगे (166)
व कालल्लज़ीनत्त-बअू लौ अन्-न लना कर्रतन् फ़-न-तबर्र-अ मिन्हुम् कमा तबर्रअू मिन्ना , कज़ालि-क युरीहिमुल्लाहु अअ्मालहुम् ह-सरातिन् अलैहिम् , व मा हुम् बिख़ारिजी-न मिनन्नार (167)
और पैरव कहने लगेंगे कि अगर हमें कहीं फिर ( दुनिया में ) पलटना मिले तो हम भी उन से इसी तरह अलग हो जायेंगे जिस तरह ऐन वक्त पर ये लोग हम से अलग हो गए यूँ ही ख़ुदा उन के आमाल को दिखाएगा जो उन्हें ( सर तापा पास ही ) पास दिखाई देंगें और फिर भला । कब वह दोज़ख़ से निकल सकतें हैं (167)
या अय्युहन्नासु कुलू मिम्मा फिल् अर्ज़ि हलालन् तय्यिबंव-वला तत्तबिअू खुतुवातिश्शैतानि , इन्नहू लकुम् अदुव्वुम् मुबीन (168)
ऐ लोगों जो कुछ ज़मीन में हैं उस में से हलाल व पाकीज़ा चीज़ ( शौक़ से ) खाओ और शैतान के क़दम ब क़दम न चलो वह तो तुम्हारा ज़ाहिर ब ज़ाहिर दुश्मन है (168)
इन्नमा यअ्मुरूकुम् बिस्सू-इ वल्-फहशा-इ व अन् तकूलू अलल्लाहि मा ला तअ्लमून (169)
वह तो तुम्हें बुराई और बदकारी ही का हुक्म करेगा और ये चाहेगा कि तुम बे जाने बूझे ख़ुदा पर बोहतान बाँधों (169)
व इज़ा की-ल लहुमुत्तबिअू मा अन्ज़लल्लाहु कालू बल् नत्तबिअु़ मा अल्फ़ैना अलैहि आबा-अना , अ-व लौ का-न आबाअुहुम् ला यअ्किलू-न शैअंव व ला यह्तदून (170)
और जब उन से कहा जाता है कि जो हुक्म ख़ुदा की तरफ से नाज़िल हुआ है उस को मानो तो कहते हैं कि नहीं बल्कि हम तो उसी तरीक़े पर चलेंगे जिस पर हमने अपने बाप दादाओं को पाया अगरचे उन के बाप दादा कुछ भी न समझते हों और न राहे रास्त ही पर चलते रहे (170)
व म-सलुल्लज़ी-न क-फरू क-म-सलिल्लज़ी यन्अिकु बिमा ला यस्मअु इल्ला दुआअंव व निदाअन् , सुम्मुम् बुक्मुन् अुम्युन् फहुम् ला यअ्किलून (171)
और जिन लोगों ने कुफ्र एख्तेयार किया उन की मिसाल तो उस शख्स की मिसाल है जो ऐसे जानवर को पुकार के अपना हलक़ फाड़े जो आवाज़ और पुकार के सिवा सुनता ( समझता ख़ाक ) न हो ये लोग बहरे गूंगे अन्धे हैं कि ख़ाक नहीं समझते (171)
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कुलू मिन् तय्यिबाति मा रज़क़्नाकुम् वश्कुरू लिल्लाहि इन् कुन्तुम् इय्याहु तअ्बुदून (172)
ऐ ईमानदारों जो कुछ हम ने तुम्हें दिया है उस में से सुथरी चीजें ( शौक़ से ) खाओं और अगर ख़ुदा ही की इबादत करते हो तो उसी का शुक्र करो (172)
इन्नमा हर्र-म अलैकुमुल-मै-त-त वद्द-म व लह्मल खिन्ज़ीरि व मा उहिल्-ल बिही लिगैरिल्लाहि फ़-मनिज्तुर्-र गै-र बागिंव व ला आदिन् फला इस्-म अलैहि , इन्नल्ला-ह गफूर्रहीम (173)
उसने तो तुम पर बस मुर्दा जानवर और खून और सूअर का गोश्त और वह जानवर जिस पर ज़बह के वक्त ख़ुदा के सिवा और किसी का नाम लिया गया हो हराम किया है पस जो शख्स मजबूर हो और सरकशी करने वाला और ज्यादती करने वाला न हो ( और उनमे से कोई चीज़ खा ले ) तो उसपर गुनाह नहीं है बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (173)
इन्नल्लज़ी-न यक़्तुमू-न मा अन्जलल्लाहु मिनल्-किताबि व यश्तरू-न बिहि स-मनन् कलीलन् उलाइ-क मा यअ्कुलू-न फ़ी बुतूनिहिम् इल्लन्ना-र व ला युकल्लिमुहुमुल्लाहु यौमल कियामति व ला युज़क्कीहिम व लहुम् अज़ाबुन अलीम (174)
बेशक जो लोग इन बातों को जो ख़ुदा ने किताब में नाज़िल की है छिपाते हैं और उसके बदले थोड़ी सी क़ीमत ( दुनयावी नफ़ा ) ले लेतें है ये लोग बस अंगारों से अपने पेट भरते हैं और क़यामत के दिन ख़ुदा उन से बात तक तो करेगा नहीं और न उन्हें ( गुनाहों से ) पाक करेगा और उन्हीं के लिए दर्दनाक अज़ाब है (174)
उला-इकल्लज़ीनश्त-रवुज् जलाल-त बिल्हुदा वल-अज़ा-ब बिल् मग्फि-रति फमा अस्ब-रहुम् अलन्नार (175)
यही लोग वह हैं जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही मोल ली और बख्यिय ( खुदा ) के बदले अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग के क्योंकर बरदाश्त करेंगे (175) जालि-क बिअन्नल्ला-ह नज्जलल्-किता-ब बिल्हक्कि , व इन्नल्लज़ीनख़्त-लफू फ़िल्-किताबि लफ़ी शिकाकिम्-बअीद (176)
ये इसलिए कि ख़ुदा ने बरहक़ किताब नाज़िल की और बेशक जिन लोगों ने किताबे ख़ुदा में रद्दो बदल की वह लोग बड़े पल्ले दरजे की मुखालफत में हैं (176)
लैसल्बिर्-र अन् तुवल्लू वुजू-हकुम् कि-बलल्-मशरिकि वल्-मग्रिबि व लाकिन्नल्-बिर्-र मन् आम-न बिल्लाहि वल्यौमिल् आखिरि वल्मलाइ-कति वल्किताबि वन्नबिय्यी-न व आतल्मा-ल अला हुब्बिही ज़विल्कुरबा वल्यतामा वल्मसाकी-न वब्नस्सबीलि वस्सा-इली-न व फिर्रिकाबि , व अक़ामस्सला-त व आतज्ज़का-त वल्मूफू-न बि-अहदिहिम इज़ा आ-हदू वस्साबिरी-न फिल्-बअ्सा-इ वज़्ज़र्रा-इ व हीनल्-बअ्सि , उलाइ-कल्लज़ी-न स-दकू , व उलाइ-क हुमुल्-मुत्तकून (177)
नेकी कुछ यही थोड़ी है कि नमाज़ में अपने मुँह पूरब या पश्चिम की तरफ़ कर लो बल्कि नेकी तो उसकी है जो ख़ुदा और रोज़े आख़िरत और फ़रिश्तों और ख़ुदा की किताबों और पैग़म्बरों पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त में अपना माल क़राबत दारों और यतीमों और मोहताजो और परदेसियों और माँगने वालों और लौन्डी गुलाम ( के गुलू खलासी ) में सर्फ करे और पाबन्दी से नमाज़ पढे और ज़कात देता रहे और जब कोई एहद किया तो अपने क़ौल के पूरे हो और फ़क्र व फाक़ा रन्ज और घुटन के वक्त साबित क़दम रहे यही लोग वह हैं जो दावए ईमान में सच्चे निकले और यही लोग परहेज़गार है (177)
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कुति-ब अलैकुमुल्-किसासु फ़िल्कत्ला , अल्हुर्रू बिल्हुर्रि वल्अ़ब्दु बिल्अ़ब्दि वल्-उन्सा बिल्-उन्सा , फ़-मन् अुफ़ि-य लहू मिन् अख़ीहि शैउन् फ़त्तिबाअुम् बिल्मअ्रूफि व अदाउन् इलैहि बि-इहसानिन् , ज़ालि-क तख्फीफुम् मिर्रब्बिकुम् व रहमतुन् , फ़-मनिअ्तदा बअ्-द ज़ालि-क फ़-लहू अ़ज़ाबुन अलीम (178)
ऐ मोमिनों जो लोग ( नाहक़ ) मार डाले जाएँ उनके बदले में तम को जान के बदले जान लेने का हुक्म दिया जाता है आज़ाद के बदले आज़ाद और गुलाम के बदले गुलाम और औरत के बदले औरत पस जिस ( क़ातिल ) को उसके ईमानी भाई तालिबे केसास की तरफ से कुछ माफ़ कर दिया जाये तो उसे भी उसके क़दम ब क़दम नेकी करना और ख़ुश मआमलती से ( खून बहा ) अदा कर देना चाहिए ये तुम्हारे परवरदिगार की तरफ आसानी और मेहरबानी है फिर उसके बाद जो ज्यादती करे तो उस के लिए दर्दनाक अज़ाब है (178)
व लकुम् फिल्क़िसासि हयातुंय्या उलिल्-अल्बाबि लअल्लकुम तत्तकून (179)
और ऐ अक़लमनदों क़सास ( के क़वाएद मुक़र्रर कर देने ) में तुम्हारी ज़िन्दगी है ( और इसीलिए जारी किया गया है ताकि तुम खूरेज़ी से ) परहेज़ करो (179)
कुति-ब अलैकुम् इज़ा ह-ज़-र अ-ह-दकुमुल्मौतु इन् त-र-क खै-रनिल वसिय्यतु लिल्वालिदैनि वल-अक़्रबी-न बिल्मअ्रूफि हक़्कन अलल्-मुत्तक़ीन (180)
( मुसलमानों ) तुम को हुक्म दिया जाता है कि जब तुम में से किसी के सामने मौत आ खड़ी हो बशर्ते कि वह कुछ माल छोड़ जाएं तो माँ बाप और क़राबतदारों के लिए अच्छी वसीयत करें जो ख़ुदा से डरते हैं उन पर ये एक हक़ है (180)
फ़-मम् बद्-द लहू बअ्-द मा समि-अहू फ़-इन्नमा इस्मुहू अलल्लज़ी-न युबद्दिलूनहू , इन्नल्ला-ह समीअुन अलीम (181)
फिर जो सुन चुका उसके बाद उसे कुछ का कुछ कर दे तो उस का गुनाह उन्हीं लोगों की गरदन पर है जो उसे बदल डालें बेशक ख़ुदा सब कुछ जानता और सुनता (181)
फ़-मन् खा-फ़ मिम्-मूसिन् ज-नफ़न् औ इस्मन् फ़-अस्ल-ह बैनहुम् फला इस-म अलैहि , इन्नल्ला-ह गफूरूर्रहीम (182)
( हाँ अलबत्ता ) जो शख्स वसीयत करने वाले से बेजा तरफ़दारी या बे इन्साफी का ख़ौफ रखता है और उन वारिसों में सुलह करा दे तो उस पर बदलने का कुछ गुनाह नहीं है बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (182)


Surah Al Baqara in Hindi Ayat 183 to 208 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 183 to 208 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 183 to 208
  


या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कुति-ब अलैकुमुस्-सियामु कमा कुति-ब अलल्लज़ी-न मिन् कब्लिकुम् लअल्लकुम् तत्तकून (183)
ऐ ईमानदारों रोज़ा रखना जिस तरह तुम से पहले के लोगों पर फर्ज था उसी तरफ तुम पर भी फर्ज़ किया गया ताकि तुम उस की वजह से बहुत से गुनाहों से बचो (183)
अय्यामम्-मअदूदातिन् , फ़-मन् का-न मिन्कुम् मरीज़न् औ अला स-फ़रिन् फ-अिद्दतुम मिन् अय्यामिन् उ-ख-र , व अलल्लज़ी-न युतीकूनहू फ़िदयतुन् तआमु मिस्कीनिन् , फ़-मन् त-तव्व-अ खैरन फहु-व खैरूल्लहू , व अन् तसूमू खैरूल्लकुम् इन् कुन्तुम् तअ्लमून (184)
( वह भी हमेशा नहीं बल्कि ) गिनती के चन्द रोज़ इस पर भी ( रोज़े के दिनों में ) जो शख्स तुम में से बीमार हो या सफर में हो तो और दिनों में जितने क़ज़ा हुए हो ) गिन के रख ले और जिन्हें रोज़ा रखने की कूवत है और न रखें तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना खिला देना है और जो शख्स अपनी ख़ुशी से भलाई करे तो ये उस के लिए ज्यादा बेहतर है और अगर तुम समझदार हो तो ( समझ लो कि फिदये से ) रोज़ा रखना तुम्हारे हक़ में बहरहाल अच्छा है (184)
शहरू र-मज़ानल्लज़ी उन्ज़ि-ल फ़ीहिल्कुरआनु हुदल्लिन्नासि व बय्यिनातिम्-मिनल्हुदा वल्फुरकानि फ़-मन् शहि-द मिन्कुमुश्शह्-र फ़ल्यसुम्हु , व मन् का-न मरीज़न औ अला स-फ़रिन् फ़अिद्दतुम् मिन् अय्यामिन उ-ख-र , युरीदुल्लाहु बिकुमुल युस्-र व ला युरीदु बिकुमुल् अुस्-र व लितुक्मिलुल अिद्द-त व लितुकब्बिरूल्ला-ह अला मा हदाकुम् व लअल्लकुम् तश्कुरून (185)
( रोज़ों का ) महीना रमज़ान है जिस में कुरान नाज़िल किया गया जो लोगों का रहनुमा है और उसमें रहनुमाई और ( हक़ व बातिल के ) तमीज़ की रौशन निशानियाँ हैं ( मुसलमानों ) तुम में से जो शख्स इस महीने में अपनी जगह पर हो तो उसको चाहिए कि रोज़ा रखे और जो शख्स बीमार हो या फिर सफ़र में हो तो और दिनों में रोज़े की गिनती पूरी करे ख़ुदा तुम्हारे साथ आसानी करना चाहता है और तुम्हारे साथ सख्ती करनी नहीं चाहता और ( शुमार का हुक्म इस लिए दिया है ) । ताकि तुम ( रोज़ो की ) गिनती पूरी करो और ताकि ख़ुदा ने जो तुम को राह पर लगा दिया है उस नेअमत पर उस की बड़ाई करो और ताकि तुम शुक्र गुज़ार बनो (185)
व इज़ा स-अ-ल-क अिबादी अन्नी फ़-इन्नी क़रीबुन् , उजीबु दअ्-वतद्दाअि इज़ा दआ़नि फ़ल्यस्तजीबू ली वल्युअमिनू बी लअल्लहुम् यरशुदून (186)
( ऐ रसूल ) जब मेरे बन्दे मेरा हाल तुमसे पूछे तो ( कह दो कि ) मै उन के पास ही हूँ और जब मुझसे कोई दुआ माँगता है तो मै हर दुआ करने वालों की दुआ ( सुन लेता हूँ और जो मुनासिब हो तो ) कुबूल करता हूँ पस उन्हें चाहिए कि मेरा भी कहना माने ) और मुझ पर ईमान लाएँ (186)
उहिल-ल लकुम् लै-लतस्सियामिर्र-फसु इला निसा-इकुम , हुन्-न लिबासुल्लकुम् व अन्तुम् लिबासुल् – लहुन्-न अलिमल्लाहु अन्नकुम् कुन्तुम् तख़्तानू-न अन्फु-सकुम् फ़ता-ब अलैकुम् व अफ़ा अन्कुम् फल्आ-न बाशिरूहुन्-न वब्तगू मा क-तबल्लाहु लकुम् व कुलू वश्रबू हत्ता य-तबय्यन लकुमुल्खैतुल् अब्यजु़ मिनल्खैतिल् अस्वदि मिनल्-फ़ज्रि सुम्-म अतिम्मुस् सिया-म इलल्लैलि व ला तुबाशिरूहुन्-न व अन्तुम् आकिफू-न फिल्-मसाजिदि , तिल-क हुदूदुल्लाहि फ़ला तकरबूहा , कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु आयातिही लिन्नासि लअल्लहुम् यत्तकून (187)
ताकि वह सीधी राह पर आ जाए ( मुसलमानों ) तुम्हारे वास्ते रोज़ों की रातों में अपनी बीवियों के पास जाना हलाल कर दिया गया औरतें ( गोया ) तुम्हारी चोली हैं और तुम ( गोया उन के दामन हो ) ख़ुदा ने देखा कि तुम ( गुनाह ) करके अपना नुकसान करते ( कि आँख बचा के अपनी बीबी के पास चले जाते थे ) तो उसने तुम्हारी तौबा कुबूल की और तुम्हारी ख़ता से दर गुज़र किया पस तुम अब उनसे हम बिस्तरी करो और ( औलाद ) जो कुछ ख़ुदा ने तुम्हारे लिए ( तक़दीर में ) लिख दिया है उसे माँगों और खाओ और पियो यहाँ तक कि सुबह की सफेद धारी ( रात की ) काली धारी से आसमान पर पूरब की तरफ़ तक तुम्हें साफ नज़र आने लगे फिर रात तक रोज़ा पूरा करो और हाँ जब तुम मस्जिदों में एतेकाफ़ करने बैठो तो उन से ( रात को भी ) हम बिस्तरी न करो ये ख़ुदा की ( मुअय्युन की हुई ) हदे हैं तो तुम उनके पास भी न जाना यूँ खुल्लम खुल्ला ख़ुदा अपने एहकाम लोगों के सामने बयान करता है ताकि वह लोग ( नाफ़रमानी से ) बचें (187)
व ला तअकुलू अम्वा-लकुम् बैनकुम् बिल्बातिलि व तुद् लू बिहा इलल्-हुक्कामि लितअ्कुलू फरीकम् मिन् अम्वालिन्नासि बिल्इस्मि व अन्तुम् तअ्लमून (188)
और आपस में एक दूसरे का माल नाहक़ न खाओ और न माल को ( रिश्वत में ) हुक्काम के यहाँ झोंक दो ताकि लोगों के माल में से ( जो ) कुछ हाथ लगे नाहक़ खुर्द बुर्द कर जाओ हालाकि तुम जानते हो (188)
यस्अलून-क अनिल-अहिल्लति , कुल हि-य मवाकीतु लिन्नासि वल्-हज्जि , व लैसल्बिर्रू बि-अन्तअ्तुल-बुयू-त मिन् जुहूरिहा व ला किन्नल्बिर्-र मनित्तका वअ्तुल्-बुयू-त मिन् अब्वाबिहा वत्तकुल्ला-ह लअल्लकुम् तुफ़्लिहून (189)
( ऐ रसूल ) तुम से लोग चाँद के बारे में पूछते हैं ( कि क्यो घटता बढ़ता है ) तुम कह दो कि उससे लोगों के ( दुनयावी ) अम्र और हज के अवक़ात मालम होते है और ये कोई भली बात नही है कि घरो में पिछवाड़े से फाँद के ) आओ बल्कि नेकी उसकी है जो परहेज़गारी करे और घरों में आना हो तो ) उनके दरवाजों की तरफ से आओ और ख़ुदा से डरते रहो ताकि तुम मुराद को पहुँचो (189)
व कातिलू फी सबीलिल्लाहिल्लज़ी-न युक़ातिलू-नकुम् व ला तअ्तदू , इन्नल्ला-ह ला युहिब्बुल – मुअ्तदीन (190)
और जो लोग तुम से लड़े तुम ( भी ) ख़ुदा की राह में उनसे लड़ो और ज्यादती न करो ( क्योंकि ) ख़ुदा ज्यादती करने वालों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता (190)
वक़्तुलूहुम् हैसू सकि़फ़्तुमूहुम् व अख्रिजूहुम मिन् हैसु अख्रजूकुम वल्फ़ित्नतु अशद्दु मिनल्-क़त्लि व ला तुकातिलूहुम् अिन्दल-मस्जिदिल्-हरामि हत्ता युकातिलूकुम फ़ीहि , फ़-इन् का तलूकुम् फ़क़्तुलूहुम् , कज़ालि-क जजा़उल-काफिरीन (191)
और तुम उन ( मुशरिकों ) को जहाँ पाओ मार ही डालो और उन लोगों ने जहाँ ( मक्का ) से तुम्हें शहर बदर किया है तुम भी उन्हें निकाल बाहर करो और फितना परदाज़ी ( शिर्क ) लूँरेज़ी से भी बढ़ के है और जब तक वह लोग कुफ्फ़ार मस्ज़िद हराम ( काबा ) के पास तुम से न लडे तुम भी उन से उस जगह न लड़ों पस अगर वह तुम से लड़े तो बेखटके तुम भी उन को क़त्ल करो काफ़िरों की यही सज़ा है (191)
फ-इनिन्-तहौ फ़-इन्नल्ला-ह गफूरूर्रहीम (192)
फिर अगर वह लोग बाज़ रहें तो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (192)
व कातिलूहुम् हत्ता ला तकू-न फ़ित्नतुंव व यकूनद्दीनु लिल्लाहि , फ-इनिन्-तहौ फला अुद्वा-न इल्ला अलज़्-ज़ालिमीन (193)
और उन से लड़े जाओ यहाँ तक कि फ़साद बाक़ी न रहे और सिर्फ ख़ुदा ही का दीन रह जाए फिर अगर वह लोग बाज़ रहे तो उन पर ज्यादती न करो क्योंकि ज़ालिमों के सिवा किसी पर ज्यादती ( अच्छी ) नहीं (193)
अश्शहरूल्-हरामु बिश्शह्रिल्-हरामि वल्-हुरूमातु किसासुन् , फ़-मनिअ्तदा अलैकुम् फअ्तदू अलैहि बिमिस्लि मअ्तदा अलैकुम् वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नल्ला-ह म-अल्मुत्तक़ीन (194)
हुरमत वाला महीना हुरमत वाले महीने के बराबर है ( और कुछ महीने की खुसूसियत नहीं ) सब हुरमत वाली चीजे एक दूसरे के बराबर हैं पस जो शख्स तुम पर ज्यादती करे तो जैसी ज्यादती उसने तुम पर की है वैसी ही ज्यादती तुम भी उस पर करो और ख़ुदा से डरते रहो और खूब समझ लो कि ख़ुदा परहेज़गारों का साथी है (194)
व अन्फ़िकू फ़ी सबीलिल्लाहि व ला तुल्कू बिऐदीकुम् इलत्तह्लु-कति , व अह्-सिनू इन्नल्ला-ह युहिब्बुल-मुहसिनीन (195)
और ख़ुदा की राह में ख़र्च करो और अपने हाथ जान हलाकत मे न डालो और नेकी करो बेशक ख़ुदा नेकी करने वालों को दोस्त रखता है (195)
व अतिम्मुल्-हज्-ज वल्-अुमर-त लिल्लाहि , फ़-इन् उहसिरतुम् फ़-मस्तै-स-र मिनल-हदयि व ला तहलिकू़ रूऊ-सकुम् हत्ता यब्लुगल-हदयु महिल्लहू फ़-मन् का-न मिन्कुम् मरीज़न औ बिही अज़म्-मिर्रअ्सिही फ़-फिदयतुम्-मिन् सियामिन् औ स-द-क़तिन् औ नुसुकिन् फ़-इज़ा अमिन्तुम फ़-मन् तमत्त-अ बिल्-उम्रति इलल-हज्जि फ़-मस्तै-स-र मिनल-हद्-यि फ़-मल्लम् यजिद् फ़सियामु सलासति अय्यामिन् फिल्-हज्जि व सब्-अतिन् इज़ा रजअ्तुम , तिल-क अ-श-रतुन् कामि-लतुन् , ज़ालि-क लिमल्-लम् यकुन् अहलुहू हाज़िरिल्-मस्जिदिल हरामि , वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नल्ला-ह शदीदुल-अिकाब (196)
और सिर्फ ख़ुदा ही के वास्ते हज और उमरा को पूरा करो अगर तुम बीमारी वगैरह की वजह से मजबूर हो जाओ तो फिर जैसी कुरबानी मयस्सर आये ( कर दो ) और जब तक कुरबानी अपनी जगह पर न पहुँच जाये अपने सर न मुंडवाओ फिर जब तुम में से कोई बीमार हो या उसके सर में कोई तकलीफ हो तो ( सर मुंडवाने का बदला ) रोजे या खैरात या कुरबानी है पस जब मुतमइन रहों तो जो शख्स हज तमत्तो का उमरा करे तो उसको जो कुरबानी मयस्सर आये करनी होगी और जिस से कुरबानी ना मुमकिन हो तो तीन रोजे ज़माना ए हज में ( रखने होंगे ) और सात रोजे ज़ब तुम वापस आओ ये पूरा दहाई है ये हुक्म उस शख्स के वास्ते है जिस के लड़के बाले मस्ज़िदुल हराम ( मक्का ) के बाशिन्दे न हो और ख़ुदा से डरो और समझ लो कि ख़ुदा बड़ा सख्त अज़ाब वाला है (196)
अल्हज्जु अश्हुरूम्-मअलूमातुन् फ-मन् फ़-र-ज़ फ़ीहिन्नल-हज़्-ज फला र-फ-स व ला फु-सू-क व ला जिदा-ल फ़िल्-हज्जि , व मा तफ्अलू मिन् खैरिय् यअ्लम्हुल्लाहु , व तज़व्वदू फ़-इन्-न खैरज्जादित्तक्वा वत्तकूनि या उलिल-अल्बाब (197)
हज के महीने तो ( अब सब को ) मालूम | हैं ( शव्वाल , जीक़ादा , जिलहज ) पस जो शख्स उन महीनों में अपने ऊपर हज लाज़िम करे तो ( एहराम से आख़िर हज तक ) न औरत के पास जाए न कोई और गुनाह करे और न झगडे और नेकी का कोई सा काम भी करों तो ख़ुदा उस को खूब जानता है और ( रास्ते के लिए ) ज़ाद राह मुहिय्या करो और सब मे बेहतर ज़ाद राह परहेज़गारी है और ऐ अक्लमन्दों मुझ से डरते रहो (197)
लै-स अलैकुम् जुनाहुन् अन् तब्तगू फज्लम्-मिर्रब्बिकुम , फ़-इज़ा अफज्तुम् मिन् अ-रफ़ातिन् फज्कुरूल्ला-ह अिन्दल-मश्अ़रिल् हरामि वज्कुरुहू कमा हदाकुम् व इन् कुन्तुम् मिन् कब्लिही ल-मिनज्जाल्लीन (198)
इस में कोई इल्ज़ाम नहीं है कि ( हज के साथ ) तुम अपने परवरदिगार के फज़ल ( नफ़ा तिजारत ) की ख्वाहिश करो और फिर जब तुम अरफात से चल खड़े हो तो मशअरुल हराम के पास ख़ुदा का जिक्र करो और उस की याद भी करो तो जिस तरह तुम्हे बताया है अगरचे तुम इसके पहले तो गुमराहो से थे (198)
सुम्-म अफ़ीजू मिन् हैसु अफ़ाज़न्नासु वस्तग् फिरूल्ला-ह , इन्नल्ला-ह गफूरूर्रहीम (199)
फिर जहाँ से लोग चल खड़े हों वहीं से तुम भी चल खड़े हो और उससे मग़फिरत की दुआ माँगों बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (199)
फ़-इज़ा क़जैतुम् मनासि-ककुम् फज्कुरूल्ला-ह क-ज़िक्रिकुम् आबा-अकुम् औ अशद्-द ज़िक्रन् , फ़-मिनन्नासि मंय्यकूलू रब्बना आतिना फ़िद्दुन्या व मा लहू फिल-आख़ि-रति मिन् ख़लाक़ (200)
फिर जब तुम अरक़ाने हज बजा ला चुको तो तुम इस तरह ज़िक्रे ख़ुदा करो जिस तरह तुम अपने बाप दादाओं का ज़िक्र करते हो बल्कि उससे बढ़ कर के फिर बाज़ लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि ऐ मेरे परवरदिगार हमको जो ( देना है ) दुनिया ही में दे दे हालाकि ( फिर ) आख़िरत में उनका कुछ हिस्सा नहीं (200)
व मिन्हुम् मंय्यकूलु रब्बना आतिना फिद्दुन्या ह-स-नतंव व फ़िल्-आख़ि-रति ह-स-नतंव् व किना अज़ाबन्नार (201)
और बाज़ बन्दे ऐसे हैं कि जो दुआ करते हैं कि ऐ मेरे पालने वाले मुझे दुनिया में नेअमत दे | और आख़िरत में सवाब दे और दोज़ख़ की बाग से बचा (201)
उलाइ-क लहुम् नसीबुम् मिम्मा क-सबू , वल्लाहु सरीअुल हिसाब (202)
यही वह लोग हैं जिनके लिए अपनी कमाई का हिस्सा चैन है (202)
वज्कुरूल्ला-ह फी अय्यामिम् मअदूदातिन् फ़-मन् त-अज्ज-ल फ़ी यौमैनि फला इस्-म अलैहि व मन् त-अख्ख-र फ़ला इस्-म अलैहि लि-मनित्तका , वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नकुम् इलैहि तुह्शरून (203)
और ख़ुदा बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है ( निस्फ़ ) और इन गिनती के चन्द दिनों तक ( तो ) ख़ुदा का ज़िक्र करो फिर जो शख्स जल्दी कर बैठे और ( मिना ) से और दो ही दिन में चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गुनाह नहीं है और जो ( तीसरे दिन तक ) ठहरा रहे उस पर भी कुछ गुनाह नही लेकिन यह रियायत उसके वास्ते है जो परहेज़गार हो , और खुदा से डरते रहो और यक़ीन जानो कि एक दिन तुम सब के सब उसकी तरफ क़ब्रों से उठाए जाओगे (203)
व मिनन्नासि मंय्युअ्जिबु-क क़ौलुहू फ़िल्हयातिद्दुन्या व युश्हिदुल्ला-ह अला मा फी कल्बिही व हु-व अलद्दुल्-ख़िसाम (204)
ऐ रसूल बाज़ लोग मुनाफिक़ीन से ऐसे भी हैं जिनकी चिकनी चुपड़ी बातें ( इस ज़रा सी ) दुनयावी ज़िन्दगी में तुम्हें बहुत भाती है और वह अपनी दिली मोहब्बत पर ख़ुदा को गवाह मुक़र्रर करते हैं हालॉकि वह तुम्हारे दुश्मनों में सबसे ज्यादा झगड़ालू हैं (204)
व इज़ा तवल्ला सआ़ फ़िल्अर्जि लियुफ्सि-द फ़ीहा व युहलिकल हर-स वन्-नस्-ल वल्लाहु ला युहिब्बुल फ़साद (205)
और जहाँ तुम्हारी मोहब्बत से मुँह फेरा तो इधर उधर दौड़ धूप करने लगा ताकि मुल्क में फ़साद फैलाए और ज़राअत ( खेती बाड़ी ) और मवेशी का सत्यानास करे और ख़ुदा फसाद को अच्छा नहीं समझता (205)
व इज़ा की-ल लहुत्तकिल्ला-ह अ-खज़त्हुल्-अिज्जतु बिल्-इस्मि फ़-हस्बुहू जहन्नमु , व लबिअ्सल्-मिहाद (206)
और जब कहा जाता है कि ख़ुदा से डरो तो उसे गुरुर गुनाह पर उभारता है बस ऐसे कम्बख्त के लिए जहन्नुम ही काफ़ी है और बहुत ही बुरा ठिकाना है (206)
व मिनन्नासि मंय्यशरी नफ़्सहुब्तिग़ा-अ मर्जातिल्लाहि , वल्लाहु रऊफुम् बिल-अिबाद (207)
और लोगों में से ख़ुदा के बन्दे कुछ ऐसे हैं जो ख़ुदा की ( ख़ुशनूदी ) हासिल करने की ग़रज़ से अपनी जान तक बेच डालते हैं और ख़ुदा ऐसे बन्दों पर बड़ा ही यफ्क्क़त वाला है (207)
या अय्युहल्लज़ी-न आमनुद्ख़ुलू फिस्सिल्मि काफ्फ़तंव व ला तत्तबिअू खुतुवातिश्शैतानि , इन्नहू लकुम अदुव्वुम्-मुबीन (208)
ईमान वालों तुम सबके सब एक बार इस्लाम में ( पूरी तरह ) दाख़िल हो जाओ और शैतान के क़दम ब क़दम न चलो वह तुम्हारा यक़ीनी ज़ाहिर ब ज़ाहिर दुश्मन है (208)


Surah Al Baqara in Hindi Ayat 209 to 234 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 209 to 234 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 209 to 234

 


फ़-इन् जलल्तुम मिम्-बअ्दि मा जा अत्कुमुल्-बय्यिनातु फअ्लमू अन्नल्ला-ह अजीजु़न् हकीम (209)
फिर जब तुम्हारे पास रौशन दलीले आ चुकी उसके बाद भी डगमगा गए तो अच्छी तरह समझ लो कि ख़ुदा ( हर तरह ) ग़ालिब और तदबीर वाला है (209)
हल यन्जुरू-न इल्ला अंय्यअति-यहुमुल्लाहु फ़ी जु-ल-लिम् मिनल् – गमामि वल्-मलाइ-कतु व कुज़ियल्-अम्रू , व इलल्लाहि तुरजअुल-उमूर (210)
क्या वह लोग इसी के मुन्तज़िर हैं कि सफेद बादल के साय बानो की आड़ में अज़ाबे ख़ुदा और अज़ाब के फ़रिश्ते उन पर ही आ जाए और सब झगड़े चुक ही जाते हालॉकि आख़िर कुल उमुर ख़ुदा ही की तरफ रुजू किए जाएँगे (210)
सल् बनी इस्राई-ल कम् आतैनाहुम् मिन् आयतिम् बय्यि-नतिन् , व मंय्युबद्दिल नि-मतल्लाहि मिम्-बअदि मा जाअत् हु फ-इन्नल्ला-ह शदीदुल अिकात (211)
(ऐ रसूल) बनी इसराइल से पूछो कि हम ने उन को कैसी कैसी रौशन निशानियाँ दी और जब किसी शख्स के पास ख़ुदा की नेअमत (किताब) आ चुकी उस के बाद भी उस को बदल डाले तो बेशक़ ख़ुदा सख्त अज़ाब वाला है (211)
जुय्यि-न लिल्लज़ी-न क-फरूल् हयातुद्दुन्या व यस्ख़रू-न मिनल्लज़ी-न आमनू वल्लज़ीनत्तको फौ-क हुम् यौमल-कियामति , वल्लाहु यर्जुकु मंय्यशा-उ बिगैरि हिसाब (212)
जिन लोगों ने कुफ्र इख्तेयार किया उन के लिये दुनिया की ज़रा सी ज़िन्दगी ख़ूब अच्छी दिखायी गयी है और ईमानदारों से मसखरापन करते हैं हालॉकि क़यामत के दिन परहेज़गारों का दरजा उनसे (कहीं) बढ़ चढ़ के होगा और ख़ुदा जिस को चाहता है बे हिसाब रोज़ी अता फरमाता है (212)
कानन्नासु उम्म-तंव-वाहि-दतन , फ-ब अ सल्लाहुन्नबिय्यी-न मुबश्शिरी-न व मुन्ज़िरी-न व अन्ज़-ल म-अहुमुल किता-ब बिल्हक्क़ि लियह्कु-म बैनन्नासि फ़ी मख़्त-लफू फ़ीहि , व मख्त-ल-फ़ फ़ीहि इल्लल्लज़ी-न ऊतूहु मिम्-बअदि मा जाअत्हुमुल बय्यिनातु बग्यम्-बैनहुम् फ़हदल्लाहुल्लज़ी-न आमनू लिमख़्त-लफू फ़ीहि मिनल-हक्कि बि-इज्निही , वल्लाहु यह्दी मंय्यशा-उ इला सिरातिम्-मुस्तकीम (213)
(पहले) सब लोग एक ही दीन रखते थे (फिर आपस में झगड़ने लगे तब) ख़ुदा ने नजात से ख़ुश ख़बरी देने वाले और अज़ाब से डराने वाले पैग़म्बरों को भेजा और इन पैग़म्बरों के साथ बरहक़ किताब भी नाज़िल की ताकि जिन बातों में लोग झगड़ते थे किताबे ख़ुदा (उसका) फ़ैसला कर दे और फिर अफ़सोस तो ये है कि इस हुक्म से इख्तेलाफ किया भी तो उन्हीं लोगों ने जिन को किताब दी गयी थी और वह भी जब उन के पास ख़ुदा के साफ एहकाम आ चुके उसके बाद और वह भी आपस की शरारत से तब ख़ुदा ने अपनी मेहरबानी से (ख़ालिस) ईमानदारों को वह राहे हक़ दिखा दी जिस में उन लोगों ने इख्तेलाफ डाल रखा था और ख़ुदा जिस को चाहे राहे रास्त की हिदायत करता है (213)
अम् हसिब्तुम् अन् तद्खुलुल्-जन्न-त व लम्मा यअ्तिकुम् म-स-लुल्लज़ी-न ख़लौ मिन् कब्लिकुम , मस्सत्हुमुल् बअ्सा-उ वज़्ज़र्रा-उ व जुल्जि़लू हत्ता यकूलर्-रसूलु वल्लज़ी-न आमनू म-अ़हू मता नस्-रूल्लाहि , अला इन्-न नस्-रल्लाहि करीब (214)
क्या तुम ये ख्याल करते हो कि बेहश्त में पहुँच ही जाओगे हालॉकि अभी तक तुम्हे अगले ज़माने वालों की सी हालत नहीं पेश आयी कि उन्हें तरह तरह की तक़लीफों (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी ने घेर लिया था और ज़लज़ले में इस क़दर झिंझोडे ग़ए कि आख़िर (आज़िज़ हो के) पैग़म्बर और ईमान वाले जो उन के साथ थे कहने लगे देखिए ख़ुदा की मदद कब (होती) है देखो (घबराओ नहीं) ख़ुदा की मदद यक़ीनन बहुत क़रीब है (214)
यस्अलून-क माज़ा युन्फ़िकू-न , कुल मा अन्फ़क़्तुम् मिन् खौरिन् फ़-लिल्वालिदैनि वल-अक्रबी-न वल यतामा वल्मसाकीनि वब्निस्सबीलि , व मा तफ्अलू मिन् खैरिन् फ़-इन्नल्ला-ह बिही अलीम (215)
(ऐ रसूल) तुमसे लोग पूछते हैं कि हम ख़ुदा की राह में क्या खर्च करें (तो तुम उन्हें) जवाब दो कि तुम अपनी नेक कमाई से जो कुछ खर्च करो तो (वह तुम्हारे माँ बाप और क़राबतदारों और यतीमों और मोहताजो और परदेसियों का हक़ है और तुम कोई नेक सा काम करो ख़ुदा उसको ज़रुर जानता है (215) कुति-ब अलैकुमुल् – कितालु व हु-व कुरहुल्लकुम् व असा अन् तक्रहू शैअंव-व हु-व खैरूल्लकुम् व असा अन् तुहिब्बू शैअंव – व हु-व शर्रूल्लकुम , वल्लाहु यअ्लमु व अन्तुम् ला तअ्लमून (216)
(मुसलमानों) तुम पर जिहाद फर्ज क़िया गया अगरचे तुम पर शाक़ ज़रुर है और अजब नहीं कि तुम किसी चीज़ (जिहाद) को नापसन्द करो हालॉकि वह तुम्हारे हक़ में बेहतर हो और अजब नहीं कि तुम किसी चीज़ को पसन्द करो हालॉकि वह तुम्हारे हक़ में बुरी हो और ख़ुदा (तो) जानता ही है मगर तुम नही जानते हो (216)
यसूअलून-क अनिश्शहरिल-हरामि कितालिन् फ़ीहि , कुल कितालुन फ़ीहि कबीरून , व सद्दुन अन् सबीलिल्लाहि व कुफ्रूम् बिही वल्मस्जिदिल्-हरामि , व इख़राजु अहलिही मिन्हु अक्बरू अिन्दल्लाहि वल्-फ़ित्नतु अक्बरू मिनल्-कत्लि , व ला यज़ालू-न युक़ातिलू-नकुम् हत्ता यरूद्दूकुम् अन् दीनिकुम् इनिस्तताअू , व मंय्यर्-तदिद् मिन्कुम् अन् दीनिही फ़-यमुत् व हु-व काफिरून् फ़-उलाइ-क हबितत् अअ्मालुहुम् फिद्दुन्या वल् आखि-रति व उलाइ-क अस्हाबुन्नारि हुम् फ़ीहा ख़ालिदून (217)
(ऐ रसूल) तुमसे लोग हुरमत वाले महीनों की निस्बत पूछते हैं कि (आया) जिहाद उनमें जायज़ है तो तुम उन्हें जवाब दो कि इन महीनों में जेहाद बड़ा गुनाह है और ये भी याद रहे कि ख़ुदा की राह से रोकना और ख़ुदा से इन्कार और मस्जिदुल हराम (काबा) से रोकना और जो उस के अहल है उनका मस्जिद से निकाल बाहर करना (ये सब) ख़ुदा के नज़दीक इस से भी बढ़कर गुनाह है और फ़ितना परदाज़ी कुश्ती ख़़ून से भी बढ़ कर है और ये कुफ्फ़ार हमेशा तुम से लड़ते ही चले जाएँगें यहाँ तक कि अगर उन का बस चले तो तुम को तुम्हारे दीन से फिरा दे और तुम में जो शख्स अपने दीन से फिरा और कुफ़्र की हालत में मर गया तो ऐसों ही का किया कराया सब कुछ दुनिया और आखेरत (दोनों) में अकारत है और यही लोग जहन्नुमी हैं (और) वह उसी में हमेशा रहेंगें (217)
इन्नल्लजी-न आमनू वल्लज़ी-न हाजरू व जाहदू फ़ी सबीलिल्लाहि उलाइ-क यर्जू-न रहमतल्लाहि , वल्लाहु गफूरूर्रहीम (218)
बेशक जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और ख़ुदा की राह में हिजरत की और जिहाद किया यही लोग रहमते ख़ुदा के उम्मीदवार हैं और ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (218)
यस्अलून-क अनिल-खम्रि वल-मैसिरि कुल फ़ीहिमा इस्मुन् कबीरूंव-व मनाफ़िअु लिन्नासि व इस्मुहुमा अक्बरू मिन्नफ्अिहिमा , व यस्अलून-क माज़ा युन्फ़िकू-न , कुलिल-अफ़-व कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुमुल्-आयाति लअल्लकुम् त-तफ़क्करून (219)
(ऐ रसूल) तुमसे लोग शराब और जुए के बारे में पूछते हैं तो तुम उन से कह दो कि इन दोनो में बड़ा गुनाह है और कुछ फायदे भी हैं और उन के फायदे से उन का गुनाह बढ़ के है और तुम से लोग पूछते हैं कि ख़ुदा की राह में क्या ख़र्च करे तुम उनसे कह दो कि जो तुम्हारे ज़रुरत से बचे यूँ ख़ुदा अपने एहकाम तुम से साफ़ साफ़ बयान करता है (219)
फ़िद्दुन्या वल्-आखि-रति व यस्अलून – क अनिल यतामा , कुल इस्लाहुल्लहुम् खैरून् , व इन् तुख़ालितूहुम् फ़-इख्वानुकुम , वल्लाहु , यअलमुल मुफ्सि-द मिनल-मुस्लिहि , व लौ शाअल्लाहु ल – अअ्न – तकुम , इन्नल्ला-ह अजीजुन हकीम (220)
ताकि तुम दुनिया और आख़िरत (के मामलात) में ग़ौर करो और तुम से लोग यतीमों के बारे में पूछते हैं तुम (उन से) कह दो कि उनकी (इसलाह दुरुस्ती) बेहतर है और अगर तुम उन से मिलजुल कर रहो तो (कुछ हर्ज) नहीं आख़िर वह तुम्हारें भाई ही तो हैं और ख़ुदा फ़सादी को ख़ैर ख्वाह से (अलग ख़ूब) जानता है और अगर ख़ुदा चाहता तो तुम को मुसीबत में डाल देता बेशक ख़ुदा ज़बरदस्त हिक़मत वाला है (220)
व ला तन्किहुल मुश्रिकाति हत्ता युअमिन्-न व ल-अ-मतुम् मुअमि-नतुन् खैरूम्-मिम्-मुश्रि-कतिव् व लौ अअ्-जबत्कुम् व ला तुन्किहुल मुश्रिकी-न हत्ता युअ्मिनू , व ल-अब्दुम-मुअ्मिनुन् खैरूम् मिम्-मुश्रिकिंव वलौ अअ्ज-बकुम , उलाइ-क यदअू-न इलन्नारि वल्लाहु यद्अू इलल-जन्नति वल-मग्फिरति बि-इज्निही व युबय्यिनु आयातिही लिन्नासि लअल्लहुम् य-तज़क्करून (221)
और (मुसलमानों) तुम मुशरिक औरतों से जब तक ईमान न लाएँ निकाह न करो क्योंकि मुशरिका औरत तुम्हें अपने हुस्नो जमाल में कैसी ही अच्छी क्यों न मालूम हो मगर फिर भी ईमानदार औरत उस से ज़रुर अच्छी है और मुशरेकीन जब तक ईमान न लाएँ अपनी औरतें उन के निकाह में न दो और मुशरिक तुम्हे कैसा ही अच्छा क्यो न मालूम हो मगर फिर भी ईमानदार औरत उस से ज़रुर अच्छी है और मुशरेकीन जब तक ईमान न लाएँ अपनी औरतें उन के निकाह में न दो और मुशरिक तुम्हें क्या ही अच्छा क्यों न मालूम हो मगर फिर भी बन्दा मोमिन उनसे ज़रुर अच्छा है ये (मुशरिक मर्द या औरत) लोगों को दोज़ख़ की तरफ बुलाते हैं और ख़ुदा अपनी इनायत से बेहिश्त और बख़्शिस की तरफ बुलाता है और अपने एहकाम लोगों से साफ साफ बयान करता है ताकि ये लोग चेते (221)
व यस्अलून-क अनिल-महीजि कुल हु-व अ-ज़न् फअ्तज़िलुन्निसा-अ फ़िल-महीजि वला तक्रबूहुन्-न हत्ता यत्हुर्-न फ़-इज़ा त-तह्हर् न फ़अ्तूहुन्-न मिन् हैसु अ-म-रकुमुल्लाहु , इन्नल्ला-ह युहिब्बुत्तव्वाबी-न व युहिब्बुल मु-त-तहिहरीन (222)
(ऐ रसूल) तुम से लोग हैज़ के बारे में पूछते हैं तुम उनसे कह दो कि ये गन्दगी और घिन की बीमारी है तो (अय्यामे हैज़) में तुम औरतों से अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाएँ उनके पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाएँ तो जिधर से तुम्हें ख़ुदा ने हुक्म दिया है उन के पास जाओ बेशक ख़ुदा तौबा करने वालो और सुथरे लोगों को पसन्द करता है तुम्हारी बीवियाँ (गोया) तुम्हारी खेती हैं (222)
निसाउकुम् हरसुल्लकुम् फ़अतू हर्सकुम् अन्ना शिअ्तुम् व क़द्दिमू लि-अन्फुसिकुम , वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नकुम् मुलाकूहु , व बश्शिरिल्-मुअ्मिनीन (223)
तो तुम अपनी खेती में जिस तरह चाहो आओ और अपनी आइन्दा की भलाई के वास्ते (आमाल साके) पेशगी भेजो और ख़ुदा से डरते रहो और ये भी समझ रखो कि एक दिन तुमको उसके सामने जाना है और ऐ रसूल ईमानदारों को नजात की ख़ुश ख़बरी दे दो (223)
व ला तज्अलुल्ला-ह अुर्-ज़तल् लिऐमानिकुम् अन् तबर्रू व तत्तकू व तुस्लिहू बैनन्नासि , वल्लाहु समीअुन अलीम (224)
और (मुसलमानों) तुम अपनी क़समों (के हीले) से ख़ुदा (के नाम) को लोगों के साथ सुलूक करने और ख़ुदा से डरने और लोगों के दरमियान सुलह करवा देने का मानेअ न ठहराव और ख़ुदा सबकी सुनता और सब को जानता है (224)
ला युआखिजु़कुमुल्लाहु बिल्लग्वि फ़ी ऐमानिकुम् व लाकिंय्युआख़िजुकुम बिमा क-सबत् कुलूबुकुम , वल्लाहु गफूरून् हलीम (225)
तुम्हारी लग़ो (बेकार) क़समों पर जो बेइख्तेयार ज़बान से निकल जाए ख़ुदा तुम से गिरफ्तार नहीं करने का मगर उन कसमों पर ज़रुर तुम्हारी गिरफ्त करेगा जो तुमने क़सदन (जान कर) दिल से खायीं हो और ख़ुदा बख्शने वाला बुर्दबार है (225)
लिल्लज़ी-न युअ्लू-न मिन्निसा-इहिम् तरब्बुसु अर्-ब-अति अश्हुरिन् फ़-इन् फाऊ फ़-इन्नल्ला-ह गफूरूर्रहीम (226)
जो लोग अपनी बीवियों के पास जाने से क़सम खायें उन के लिए चार महीने की मोहलत है पस अगर (वह अपनी क़सम से उस मुद्दत में बाज़ आए) और उनकी तरफ तवज्जो करें तो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (226)
व इन् अ-जमुत्तला-क़ फ़-इन्नल्ला-ह समीअुन् अलीम (227)
और अगर तलाक़ ही की ठान ले तो (भी) बेशक ख़ुदा सबकी सुनता और सब कुछ जानता है (227)
वल्मुतल्लकातु य-तरब्बस्-न बि-अन्फुसिहिन्-न सलास-त कुरूइन् , व ला यहिल्लु लहुन्-न अय्यक्तुम्-न मा ख़-लकल्लाहु फ़ी अरहामिहिन्-न इन् कुन्-न युअ्मिन्-न बिल्लाहि वल्यौमिल-आख़िरि , व बुअ-लतुहुन्-न अहक्कु बि-रद्दिहिन्-न फ़ी ज़ालि-क इन् अरादू इस्लाहन् , व लहुन्-न मिस्लुल्लज़ी अलैहिन्-न बिल्मअरूफ़ि व लिर्रिजालि अलैहिन्-न द-र-जतुन् , वल्लाहु अजीजुन् हकीम (228)
और जिन औरतों को तलाक़ दी गयी है वह अपने आपको तलाक़ के बाद तीन हैज़ के ख़त्म हो जाने तक निकाह सानी से रोके और अगर वह औरतें ख़ुदा और रोजे आख़िरत पर ईमान लायीं हैं तो उनके लिए जाएज़ नहीं है कि जो कुछ भी ख़ुदा ने उनके रहम (पेट) में पैदा किया है उसको छिपाएँ और अगर उन के शौहर मेल जोल करना चाहें तो वह (मुद्दत मज़कूरा) में उन के वापस बुला लेने के ज्यादा हक़दार हैं और शरीयत मुवाफिक़ औरतों का (मर्दों पर) वही सब कुछ हक़ है जो मर्दों का औरतों पर है हाँ अलबत्ता मर्दों को (फ़जीलत में) औरतों पर फौक़ियत ज़रुर है और ख़ुदा ज़बरदस्त हिक़मत वाला है (228)
अत्तलाकु मर्रतानि फ़-इम्साकुम् बिमअ्रूफिन् औ तसरीहुम् बि इह्सानिन् , व ला यहिल्लु लकुम् अन् तअ्खुजू मिम्मा आतैतुमूहुन्-न शैअन् इल्ला अंय्यख़ाफ़ा अल्ला युक़ीमा हुदूदल्लाहि , फ़-इन् ख़िफ्तुम् अल्ला युकीमा हुदूदल्लाहि फ़ला जुना-ह अलैहिमा फ़ीमफ्तदत् बिही , तिल-क हुदूदुल्लाहि फ़ला तअतदूहा व मय्य-तअद्-द हुदूदल्लाहि फ़-उलाइ-क हुमुज्जालिमून (229)
तलाक़ रजअई जिसके बाद रुजू हो सकती है दो ही मरतबा है उसके बाद या तो शरीयत के मवाफिक़ रोक ही लेना चाहिए या हुस्न सुलूक से (तीसरी दफ़ा) बिल्कुल रूख़सत और तुम को ये जायज़ नहीं कि जो कुछ तुम उन्हें दे चुके हो उस में से फिर कुछ वापस लो मगर जब दोनों को इसका ख़ौफ़ हो कि ख़ुदा ने जो हदें मुक़र्रर कर दी हैं उन को दोनो मिया बीवी क़ायम न रख सकेंगे फिर अगर तुम्हे (ऐ मुसलमानो) ये ख़ौफ़ हो कि यह दोनो ख़ुदा की मुकर्रर की हुई हदो पर क़ायम न रहेंगे तो अगर औरत मर्द को कुछ देकर अपना पीछा छुड़ाए (खुला कराए) तो इसमें उन दोनों पर कुछ गुनाह नहीं है ये ख़ुदा की मुक़र्रर की हुई हदें हैं बस उन से आगे न बढ़ो और जो ख़ुदा की मुक़र्रर की हुईहदों से आगे बढ़ते हैं वह ही लोग तो ज़ालिम हैं (229)
फ़-इन् तल्ल-कहा फ़ला तहिल्लु लहू मिम्-बअदु हत्ता तन्कि-ह ज़ौजन् गैरहू , फ़-इन् तल्ल-कहा फला जुना-ह अलैहिमा अंय्य-तरा जआ इन् ज़न्ना अंय्युकीमा हुदूदल्लाहि , व तिल-क हुदूदुल्लाहि युबय्यिनुहा लिकौमिंय्यअ्लमून (230)
फिर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) दे तो उसके बाद जब तक दूसरे मर्द से निकाह न कर ले उस के लिए हलाल नही हाँ अगर दूसरा शौहर निकाह के बाद उसको तलाक़ दे दे तब अलबत्ता उन मिया बीबी पर बाहम मेल कर लेने में कुछ गुनाह नहीं है अगर उन दोनों को यह ग़ुमान हो कि ख़ुदा हदों को क़ायम रख सकेंगें और ये ख़ुदा की (मुक़र्रर की हुई) हदें हैं जो समझदार लोगों के वास्ते साफ साफ बयान करता है (230)
व इज़ा तल्लक्तुमुन्निसा-अ फ़-बलग्-न अ-ज-लहुन्-न फ़-अम्सिकूहुन्-न बिमअ्रूफ़िन औ सर्रिहूहुन्-न बिमअ्रूफिंव्-व ला तुम्सिकूहुन्-न ज़िरारल् लितअ्-तदू व मंय्यफ्अल् ज़ालि-क फ़-कद् ज़-ल-म नफ्सहू , व ला तत्तखिजू आयातिल्लाहि हुजुवंव-वज्कुरू निअ्-मतल्लाहि अलैकुम् व मा अन्ज़-ल अलैकुम् मिनल-किताबि वल्हिक्मति यअिजुकुम् बिही , वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नल्ला-ह बिकुल्लि शैइन् अलीम (231)
और जब तुम अपनी बीवियों को तलाक़ दो और उनकी मुद्दत पूरी होने को आए तो अच्छे उनवान से उन को रोक लो या हुस्ने सुलूक से बिल्कुल रुख़सत ही कर दो और उन्हें तकलीफ पहुँचाने के लिए न रोको ताकि (फिर उन पर) ज्यादती करने लगो और जो ऐसा करेगा तो यक़ीनन अपने ही पर जुल्म करेगा और ख़ुदा के एहकाम को कुछ हँसी ठट्टा न समझो और ख़ुदा ने जो तुम्हें नेअमतें दी हैं उन्हें याद करो और जो किताब और अक्ल की बातें तुम पर नाज़िल की उनसे तुम्हारी नसीहत करता है और ख़ुदा से डरते रहो और समझ रखो कि ख़ुदा हर चीज़ को ज़रुर जानता है (231)
व इज़ा तल्लक्तुमुन्निसा-अ फ़-बलग्-न अ-ज लहुन्-न फला तअ् जुलूहुन्-न अंय्यन किह-न अज्वाजहुन्-न इज़ा तराज़ौ बैनहुम् बिल्मअरूफ़ि , ज़ालि-क यू-अजू बिही मन् का-न मिन्कुम् युअ्मिनु बिल्लाहि वल्यौमिल-आख़िरि , ज़ालिकुम् अज्का लकुम् व अत्हरू , वल्लाहु यअ्लमु व अन्तुम् ला तअलमून (232)
और जब तुम औरतों को तलाक़ दो और वह अपनी मुद्दत (इद्दत) पूरी कर लें तो उन्हें अपने शौहरों के साथ निकाह करने से न रोकों जब आपस में दोनों मिया बीवी शरीयत के मुवाफिक़ अच्छी तरह मिल जुल जाएँ ये उसी शख्स को नसीहत की जाती है जो तुम में से ख़ुदा और रोजे आखेरत पर ईमान ला चुका हो यही तुम्हारे हक़ में बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात है और उसकी ख़ूबी ख़ुदा खूब जानता है और तुम (वैसा) नहीं जानते हो (232)
वल-वालिदातु युर ज़िअ्-न औलादहुन्-न हौलैनि कामिलैनि लि-मन् अरा-द अंय्यु तिम्मर्र जा-अ-त , व अलल्-मौलूदि लहू रिज्कुहुन्-न व किस्वतुहुन्-न बिल्मअरूफ़ि , ला तुकल्लफु नफ्सुन् इल्ला वुस्अहा ला तुज़ार-र वालि – दतुम् बि – व – लदिहा व ला मौलूदुल्लहू बि – व – लदिहा व अलल् – वारिसि मिस्लु ज़ालि – क फ़ – इन् अरादा फ़िसालन् अन् तराज़िम् मिन्हुमा व तशावुरिन् फला जुना – ह अलैहिमा , व इन् अरत्तुम अन् तस्तऱज़िअू औलादकुम् फ़ला जुना-ह अलैकुम् इज़ा सल्लम्तुम् मा आतैतुम् बिल्मअरूफ़ि , वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नल्ला – ह बिमा तअमलू-न बसीर (233)
और (तलाक़ देने के बाद) जो शख्स अपनी औलाद को पूरी मुद्दत तक दूध पिलवाना चाहे तो उसकी ख़ातिर से माएँ अपनी औलाद को पूरे दो बरस दूध पिलाएँ और जिसका वह लड़का है (बाप) उस पर माओं का खाना कपड़ा दस्तूर के मुताबिक़ लाज़िम है किसी शख्स को ज़हमत नहीं दी जाती मगर उसकी गुन्जाइश भर न माँ का उस के बच्चे की वजह से नुक़सान गवारा किया जाए और न जिस का लड़का है (बाप) उसका (बल्कि दस्तूर के मुताबिक़ दिया जाए) और अगर बाप न हो तो दूध पिलाने का हक़ उसी तरह वारिस पर लाज़िम है फिर अगर दो बरस के क़ब्ल माँ बाप दोनों अपनी मरज़ी और मशवरे से दूध बढ़ाई करना चाहें तो उन दोनों पर कोई गुनाह नहीं और अगर तुम अपनी औलाद को (किसी अन्ना से) दूध पिलवाना चाहो तो उस में भी तुम पर कुछ गुनाह नहीं है बशर्ते कि जो तुमने दस्तूर के मुताबिक़ मुक़र्रर किया है उन के हवाले कर दो और ख़ुदा से डरते रहो और जान रखो कि जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा ज़रुर देखता है (233)
वल्लज़ी – न यु – तवफ्फ़ौ – न मिन्कुम् व य – ज़रू – न अज्वाजंय्य – तरब्बस् – न बिअन्फुसिहिन् – न अर्ब – अ – त अश्हुरिवं – व अश्रन् फ़ – इज़ा बलग – न अ – ज – लहुन् – न फला जुना – ह अलैकुम् फ़ीमा फ़ – अल् – न फ़ी अन्फुसिहिन्-न बिल्मअरूफि , वल्लाहु बिमा तअ्मलू – न ख़बीर (234)
और तुममें से जो लोग बीवियाँ छोड़ के मर जाएँ तो ये औरतें चार महीने दस रोज़ (इद्दा भर) अपने को रोके (और दूसरा निकाह न करें) फिर जब (इद्दे की मुद्दत) पूरी कर ले तो शरीयत के मुताबिक़ जो कुछ अपने हक़ में करें इस बारे में तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उस से ख़बरदार है (234)


Surah Al Baqara in Hindi Ayat 235 to 260 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 235 to 260 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 235 to 260


व ला जुना – ह अलैकुम फ़ीमा अर्रज्तुम् बिही मिन् ख़ित्बतिन्निसा – इ औ अक्नन्तुम् फी अन्फु सिकुम , अलिमल्लाहु अन्नकुम् स – तज्कुरूनहुन् – न व लाकिल्ला तुवाअिदूहुन् – न सिर्रन् इल्ला अन् तकूलू कौलम् – मअ्रूफ़न् , व ला तअ्ज़िमू अुक्दतन्निकाहि हत्ता यब्लुगल – किताबु अ – ज लहू , वअलमू अन्नल्ला – ह यअ्लमु मा फ़ी अन्फुसिकुम् फ़ह् – ज़रूहु वअ्लमू अन्नल्ला – ह गफूरून् हलीम (235)
और अगर तुम (उस ख़ौफ से कि शायद कोई दूसरा निकाह कर ले) उन औरतों से इशारतन निकाह की (कैद इद्दा) ख़ास्तगारी (उम्मीदवारी) करो या अपने दिलो में छिपाए रखो तो उसमें भी कुछ तुम पर इल्ज़ाम नहीं हैं (क्योंकि) ख़ुदा को मालूम है कि (तुम से सब्र न हो सकेगा और) उन औरतों से निकाह करने का ख्याल आएगा लेकिन चोरी छिपे से निकाह का वायदा न करना मगर ये कि उन से अच्छी बात कह गुज़रों (तो मज़ाएक़ा नहीं) और जब तक मुक़र्रर मियाद गुज़र न जाए निकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो कि जो कुछ तुम्हारी दिल में है ख़ुदा उस को ज़रुर जानता है तो उस से डरते रहो और (ये भी) जान लो कि ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला बुर्दबार है (235)
ला जुना – ह अलैकुम् इन् तल्लक्तुमुन्निसा – अ मा लम् तमस्सूहुन् – न औ तफ़रिजू लहुन् – न फ़री – ज़ तंव – व मत्तिअ़ू हुन् – न अलल् – मूसिअि क़ – दरूहू व अलल् – मुक्तिरि क़ – दरूहू मताअम् बिल्मअ्रूफ़ि हक्कन् अलल – मुह्सिनीन (236)
और अगर तुम ने अपनी बीवियों को हाथ तक न लगाया हो और न महर मुअय्युन किया हो और उसके क़ब्ल ही तुम उनको तलाक़ दे दो (तो इस में भी) तुम पर कुछ इल्ज़ाम नहीं है हाँ उन औरतों के साथ (दस्तूर के मुताबिक़) मालदार पर अपनी हैसियत के मुआफिक़ और ग़रीब पर अपनी हैसियत के मुवाफिक़ (कपड़े रुपए वग़ैरह से) कुछ सुलूक करना लाज़िम है नेकी करने वालों पर ये भी एक हक़ है (236)
व इन् तल्लक्तुमूहुन् – न मिन् कब्लि अन् तमस्सूहुन् – न व कद् फ़रज्तुम् लहुन् – न फ़री – जतन् फ़ – निस्फु मा फ़रज्तुम् इल्ला अंय्यअ्फू – न औ यअ्फुवल्लज़ी बि – यदिही उक्दतुन्निकाहि , व अन् तअफू अक़्रबु लित्तक्वा , व ला तन्सवुल – फ़ज़ – ल बैनकुम , इन्नल्ला – ह बिमा तअ्मलू – न बसीर (237)
और अगर तुम उन औरतों का मेहर तो मुअय्यन कर चुके हो मगर हाथ लगाने के क़ब्ल ही तलाक़ दे दो तो उन औरतों को मेहर मुअय्यन का आधा दे दो मगर ये कि ये औरतें ख़ुद माफ कर दें या उन का वली जिसके हाथ में उनके निकाह का एख्तेयार हो माफ़ कर दे (तब कुछ नही) और अगर तुम ही सारा मेहर बख्श दो तो परहेज़गारी से बहुत ही क़रीब है और आपस की बुर्ज़ुगी तो मत भूलो और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा ज़रुर देख रहा है (237)
हाफ़िजू अलस् स – ल – वाति वस्सलातिल – वुस्ता व कूमू लिल्लाहि कानितीन (238)
और (मुसलमानों) तुम तमाम नमाज़ों की और ख़ुसूसन बीच वाली नमाज़ सुबह या ज़ोहर या अस्र की पाबन्दी करो और ख़ास ख़ुदा ही वास्ते नमाज़ में क़ुनूत पढ़ने वाले हो कर खड़े हो फिर अगर तुम ख़ौफ की हालत में हो (238)
फ़ – इन् खिफ्तुम् फ़ – रिजालन् औ रूक्बानन् फ़ – इज़ा अमिन्तुम् फ़ज्कुरूल्ला – ह कमा अल् – ल – म – कुम् मा लम् तकूनू तअ्लमून (239)
और पूरी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पैदल जिस तरह बन पड़े पढ़ लो फिर जब तुम्हें इत्मेनान हो तो जिस तरह ख़ुदा ने तुम्हें (अपने रसूल की मआरफत इन बातों को सिखाया है जो तुम नहीं जानते थे (239)
वल्लज़ी – न यु – तवफ्फ़ौ – न मिन्कुम् व य – ज़ – रू – न अज्वाजंव् – वसिय्यतल् लि – अज्वाजिहिम् मताअन् इलल – हौलि गै – र इख्राजिन् फ़ – इन ख़रज् – न फ़ला जुना – ह अलैकुम् फी मा फ़ – अल् – न फ़ी अन्फुसिहिन् – न मिम् – मअरूफ़िन् , वल्लाहु अज़ीजुन हकीम (240)
उसी तरह ख़ुदा को याद करो और तुम में से जो लोग अपनी बीवियों को छोड़ कर मर जाएँ उन पर अपनी बीबियों के हक़ में साल भर तक के नान व नुफ्के (रोटी कपड़ा) और (घर से) न निकलने की वसीयत करनी (लाज़िम) है पस अगर औरतें ख़ुद निकल खड़ी हो तो जायज़ बातों (निकाह वगैरह) से कुछ अपने हक़ में करे उसका तुम पर कुछ इल्ज़ाम नही है और ख़ुदा हर यै पर ग़ालिब और हिक़मत वाला है (240)
व लिल्मुतल्लकाति मताअुम् बिलमअरूफ़ि , हक्कन अलल मुत्तकीन (241)
और जिन औरतों को ताअय्युन मेहर और हाथ लगाए बगैर तलाक़ दे दी जाए उनके साथ जोड़े रुपए वगैरह से सुलूक करना लाज़िम है (241)
कज़ालि – क युबय्यिनुल्लाहु लकुम् आयातिही लअल्लकुम् तअ्किलून (242)
(ये भी) परहेज़गारों पर एक हक़ है उसी तरह ख़ुदा तुम लोगों की हिदायत के वास्ते अपने एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता है (242)
अलम् त – र इलल्लज़ी – न ख़ – रजू मिन् दियारिहिम् व हुम् उलूफुन् ह – ज़रल्मौति फ़का – ल लहुमुल्लाहु मूतू सुम् – म अह्याहुम , इन्नल्ला – ह लजू फ़ज्लिन् अलन्नासि व लाकिन् – न अक्सरन्नासि ला यश्कुरून (243)
ताकि तुम समझो (ऐ रसूल) क्या तुम ने उन लोगों के हाल पर नज़र नही की जो मौत के डर के मारे अपने घरों से निकल भागे और वह हज़ारो आदमी थे तो ख़ुदा ने उन से फरमाया कि सब के सब मर जाओ (और वह मर गए) फिर ख़ुदा न उन्हें जिन्दा किया बेशक ख़ुदा लोगों पर बड़ा मेहरबान है मगर अक्सर लोग उसका शुक्र नहीं करते (243)
व कातिलू फी सबीलिल्लाहि वअ्लमू अन्नल्ला – ह समीअ़ुन् अलीम (244)
और मुसलमानों ख़ुदा की राह मे जिहाद करो और जान रखो कि ख़ुदा ज़रुर सब कुछ सुनता (और) जानता है (244)
मन् ज़ल्लजी युक़्रिजुल्ला – ह कर्जन् ह – सनन् फ़ – युज़ाअि – फहू लहू अज्आफन् कसीर – तन् , वल्लाहु यक्बिजु व यब्सुतु व इलैहि तुर्ज़अून (245)
है कोई जो ख़ुदा को क़र्ज़ ए हुस्ना दे ताकि ख़ुदा उसके माल को इस के लिए कई गुना बढ़ा दे और ख़ुदा ही तंगदस्त करता है और वही कशायश देता है और उसकी तरफ सब के सब लौटा दिये जाओगे (245)
अलम् त – र इलल – म – लइ मिम् – बनी इस्राई – ल मिम् – बअ्दि मूसा इज़ कालू लि – नबिय्यिल् – लहुमुब्अस् लना मलिकन्नुक़ातिल फी सबीलिल्लाहि , का – ल हल असैतुम् इन् कुति – ब – अलैकुमुल् – कितालु अल्ला तुक़ातिलू , कालू व मा लना अल्ला नुक़ाति – ल फ़ी सबीलिल्लाहि व कद् उख्रिज्ना मिन् दियारिना व अब्ना – इना , फ़ – लम्मा कुति – ब अलैहिमुल् – कितालु तवल्लौ इल्ला क़लीलम् मिन्हुम , वल्लाहु अलीमुम् – बिज्जालिमीन (246)
(ऐ रसूल) क्या तुमने मूसा के बाद बनी इसराइल के सरदारों की हालत पर नज़र नही की जब उन्होंने अपने नबी (शमूयेल) से कहा कि हमारे वास्ते एक बादशाह मुक़र्रर कीजिए ताकि हम राहे ख़ुदा में जिहाद करें (पैग़म्बर ने) फ़रमाया कहीं ऐसा तो न हो कि जब तुम पर जिहाद वाजिब किया जाए तो तुम न लड़ो कहने लगे जब हम अपने घरों और अपने बाल बच्चों से निकाले जा चुके तो फिर हमे कौन सा उज़्र बाक़ी है कि हम ख़ुदा की राह में जिहाद न करें फिर जब उन पर जिहाद वाजिब किया गया तो उनमें से चन्द आदमियों के सिवा सब के सब ने लड़ने से मुँह फेरा और ख़ुदा तो ज़ालिमों को खूब जानता है (246)
व का – ल लहुम् नबिय्युहुम् इन्नल्ला – ह कद् ब – अ – स लकुम् तालू – त मलिकन् , कालू अन्ना यकूनु लहुल्मुल्कु अलैना व नह्नु अहक्कु बिल्मुल्कि मिन्हु व लम् युअ – त स – अतम् मिनल – मालि , का – ल इन्नल्लाहस्तफ़ाहु अलैकुम् व ज़ा – दहू बस्त – तन् फ़िल – इल्मि वल् – जिस्मि , वल्लाहु युअ्ती मुल्कहू मंय्यशा – उ , वल्लाहु वासिअुन् अलीम (247)
और उनके नबी ने उनसे कहा कि बेशक ख़ुदा ने तुम्हारी दरख्वास्त के (मुताबिक़ तालूत को तुम्हारा बादशाह मुक़र्रर किया (तब) कहने लगे उस की हुकूमत हम पर क्यों कर हो सकती है हालाकि सल्तनत के हक़दार उससे ज्यादा तो हम हैं क्योंकि उसे तो माल के एतबार से भी फ़ारगुल बाली (ख़ुशहाली) तक नसीब नहीं (नबी ने) कहा ख़ुदा ने उसे तुम पर फज़ीलत दी है और माल में न सही मगर इल्म और जिस्म का फैलाव तो उस का ख़ुदा ने ज्यादा फरमाया हे और ख़ुदा अपना मुल्क जिसे चाहें दे और ख़ुदा बड़ी गुन्जाइश वाला और वाक़िफ़कार है (247)
व का – ल लहुम् नबिय्युहुम् इन् – न आय – त मुल्किही अंय्यअ्ति – यकुमुत्ताबूतु फ़ीहि सकीनतुम् मिर्रब्बिकुम् व बकिय्यतुम् मिम्मा त – र – क आलु मूसा व आलु हारू – न तहमिलुहुल् – मलाइ – कतु , इन्न फ़ी जालि – क लआ – यतल्लकुम् इन् कुन्तुम् मुअमिनीन (248)
और उन के नबी ने उनसे ये भी कहा इस के (मुनाजानिब अल्लाह) बादशाह होने की ये पहचान है कि तुम्हारे पास वह सन्दूक़ आ जाएगा जिसमें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तसकीन दे चीजें और उन तब्बुरक़ात से बचा खुचा होगा जो मूसा और हारुन की औलाद यादगार छोड़ गयी है और उस सन्दूक को फरिश्ते उठाए होगें अगर तुम ईमान रखते हो तो बेशक उसमें तुम्हारे वास्ते पूरी निशानी है (248)
फ लम्मा फ़ – स – ल – तालूतु बिल्जुनूदि का – ल इन्नल्ला – ह मुब्तलीकुम बि – न हरिन् फ़ – मन् शरि – ब मिन्हु फलै – स मिन्नी व मल्लम् यत्अमहु फ़ – इन्नहू मिन्नी इल्ला मनिग्त – र – फ़ गुर् – फ़तम् बि – यदिही फ़ – शरिबू मिन्हु इल्ला क़लीलम् मिन्हुम , फ़ – लम्मा जा – व ज़हू हु – व वल्लज़ी – न आमनू म-अहू कालू ला ता – क – त लनल् – यौ – म बिजालू – त व जुनूदिही , कालल्लज़ी – न यजुन्नू – न अन्नहुम् मुलाकुल्लाहि कम् मिन फ़ि – अतिन् कलीलतिन् ग – लबत् फ़ि – अतन् कसी – रतम् बि – इज्निल्लाहि , वल्लाहु म – अस्साबिरीन (249)
फिर जब तालूत लशकर समैत (शहर ऐलिया से) रवाना हुआ तो अपने साथियों से कहा देखो आगे एक नहर मिलेगी इस से यक़ीनन ख़ुदा तुम्हारे सब्र की आज़माइश करेगा पस जो शख्स उस का पानी पीयेगा मुझे (कुछ वास्ता) नही रखता और जो उस को नही चखेगा वह बेशक मुझ से होगा मगर हाँ जो अपने हाथ से एक (आधा चुल्लू भर के पी) ले तो कुछ हर्ज नही पस उन लोगों ने न माना और चन्द आदमियों के सिवा सब ने उस का पानी पिया ख़ैर जब तालूत और जो मोमिनीन उन के साथ थे नहर से पास हो गए तो (ख़ास मोमिनों के सिवा) सब के सब कहने लगे कि हम में तो आज भी जालूत और उसकी फौज से लड़ने की सकत नहीं मगर वह लोग जिनको यक़ीन है कि एक दिन ख़ुदा को मुँह दिखाना है बेधड़क बोल उठे कि ऐसा बहुत हुआ कि ख़ुदा के हुक्म से छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ालिब आ गयी है और ख़ुदा सब्र करने वालों का साथी है (249)
व लम्मा ब – रजू लिजालू – त व जुनूदिही कालू रब्बना अफ्रिग अलैना सबरंव – व सब्बित् अक्दामना वन्सुरना अलल् – कौमिल् काफ़िरीन (250)
(ग़रज़) जब ये लोग जालूत और उसकी फौज के मुक़ाबले को निकले तो दुआ की ऐ मेरे परवरदिगार हमें कामिल सब्र अता फरमा और मैदाने जंग में हमारे क़दम जमाए रख और हमें काफिरों पर फतेह इनायत कर (250)
फ – ह – ज़मूहुम् बि – इज्निल्लाहि व क – त – ल दावूदु जालू – त व आताहुल्लाहुल – मुल् – क वल् – हिक्म – त व अल्ल – महू मिम्मा यशा – उ , व लौ ला दफ़्अुल्लाहिन्ना – स बअ् – ज़हुम् बिबअ्ज़िल ल – फ – स – दतिल – अर्जु व लाकिन्नल्ला – ह जू फज्लिन् अलल – आलमीन (251)
फिर तो उन लोगों ने ख़ुदा के हुक्म से दुशमनों को शिकस्त दी और दाऊद ने जालूत को क़त्ल किया और ख़ुदा ने उनको सल्तनत व तदबीर तम्द्दुन अता की और इल्म व हुनर जो चाहा उन्हें गोया घोल के पिला दिया और अगर ख़ुदा बाज़ लोगों के ज़रिए से बाज़ का दफाए (शर) न करता तो तमाम रुए ज़मीन पर फ़साद फैल जाता मगर ख़ुदा तो सारे जहाँन के लोगों पर फज़ल व रहम करता है (251)
तिल – क आयातुल्लाहि नत्लूहा अलै – क बिल्हक्कि , व इन्न – क ल – मिनल – मुरसलीन (252)
ऐ रसूल ये ख़ुदा की सच्ची आयतें हैं जो हम तुम को ठीक ठीक पढ़के सुनाते हैं और बेशक तुम ज़रुर रसूलों में से हो (252)
तिल्कर्रूसुलु फज्ज़ल्ना बअ् – ज़हुम अला बअ्ज़िन् मिन्हुम् मन् कल्लमल्लाहु व र – फ – अ बअ् – जहुम द रजातिन् , व आतैना अीसब् – न मर्यमल – बय्यिनाति व अय्यद्नाहु बिरूहिल्कुदुसि , व लौ शाअल्लाहु मक्त – तलल्लज़ी – न मिम् – बअदिहिम् मिम् – बअ़दि मा जाअतहुमुल बय्यिनातु व लाकिनिख़्त – लफू फ़ – मिन्हुम् मन् आम – न व मिन्हुम् मन् क – फ़ – र , व लौ शाअल्लाहु मक्त – तलू , व लाकिन्नल्ला – ह यफ्अलु मा युरीद (253)
यह सब रसूल (जो हमने भेजे) उनमें से बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनमें से बाज़ तो ऐसे हैं जिनसे ख़ुद ख़ुदा ने बात की उनमें से बाज़ के (और तरह पर) दर्जे बुलन्द किये और मरियम के बेटे ईसा को (कैसे कैसे रौशन मौजिज़े अता किये) और रूहुलकुदस (जिबरईल) के ज़रिये से उनकी मदद की और अगर ख़ुदा चाहता तो लोग इन (पैग़म्बरों) के बाद हुये वह अपने पास रौशन मौजिज़े आ चुकने पर आपस में न लड़ मरते मगर उनमें फूट पड़ गई पस उनमें से बाज़ तो ईमान लाये और बाज़ काफ़िर हो गये और अगर ख़ुदा चाहता तो यह लोग आपस में लड़ते मगर ख़ुदा वही करता है जो चाहता है (253)
या अय्युहल्लज़ी – न आमनू अन्फिकू मिम्मा र – ज़क्नाकुम् मिन् कब्लि अंय्यअ्ति – य यौमुल्ला बैअुन् फीहि व ला खुल्लतुंव – व ला शफाअतुन , वल – काफ़िरू – न हुमुज्जालिमून (254)
ऐ ईमानदारों जो कुछ हमने तुमको दिया है उस दिन के आने से पहले (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करो जिसमें न तो ख़रीदो फरोख्त होगी और न यारी (और न आशनाई) और न सिफ़ारिश (ही काम आयेगी) और कुफ़्र करने वाले ही तो जुल्म ढाते हैं (254)
अल्लाहु ला इला – ह इल्ला हु – व अल् – हय्युल – कय्यूमु ला तअ्खुजुहू सि – नतुंव – व ला नौमुन् , लहू मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्जि , मन् जल्लज़ी यश्फ़अु अिन्दहू इल्ला बि – इज्निही , यअ्लमु मा बै – न ऐदीहिम व मा खल्फहुम व ला युहीतू – न बिशैइम् मिन् अिल्मिही इल्ला बिमा शा – अ वसि – अ कुर्सिय्यूहुस्समावाति वल्अर् – ज़ व ला यऊदुहू हिफ्जुहुमा व हुवल् अलिय्युल अजीम (255)
ख़ुदा ही वो ज़ाते पाक है कि उसके सिवा कोई माबूद नहीं (वह) ज़िन्दा है (और) सारे जहान का संभालने वाला है उसको न ऊँघ आती है न नींद जो कुछ आसमानो में है और जो कुछ ज़मीन में है (गरज़ सब कुछ) उसी का है कौन ऐसा है जो बग़ैर उसकी इजाज़त के उसके पास किसी की सिफ़ारिश करे जो कुछ उनके सामने मौजूद है (वह) और जो कुछ उनके पीछे (हो चुका) है (खुदा सबको) जानता है और लोग उसके इल्म में से किसी चीज़ पर भी अहाता नहीं कर सकते मगर वह जिसे जितना चाहे (सिखा दे) उसकी कुर्सी सब आसमानॊं और ज़मीनों को घेरे हुये है और उन दोनों (आसमान व ज़मीन) की निगेहदाश्त उसपर कुछ भी मुश्किल नहीं और वह आलीशान बुजुर्ग़ मरतबा है (255)
ला इक्रा – ह फिद्दीनि कत्तबय्यन र्रूश्दु मिनल – गय्यि फ़ – मंय्यक्फुर बित्तागूति व युअ्मिम् – बिल्लाहि फ – क . दि स् त म स – क बिल् – अुर्वतिल – वुस्का लन्फ़िसा – म लहा , वल्लाहु समीअुन् , अलीम (256)
दीन में किसी तरह की जबरदस्ती नहीं क्योंकि हिदायत गुमराही से (अलग) ज़ाहिर हो चुकी तो जिस शख्स ने झूठे खुदाओं बुतों से इंकार किया और खुदा ही पर ईमान लाया तो उसने वो मज़बूत रस्सी पकड़ी है जो टूट ही नहीं सकती और ख़ुदा सब कुछ सुनता और जानता है (256)
अल्लाहु वलिय्युल्लज़ी – न आमनू युख्रिजुहुम् मिनज्जुलुमाति इलन्नूरि , वल्लज़ी – न क – फरू औलिया उहुमुत्तागूतु युख्रिजू – नहुम् मिनन्नूरि इलज्जुलुमाति , उलाइ – क अस्हाबुन्नारि हुम् फ़ीहा खालिदून (257)
ख़ुदा उन लोगों का सरपरस्त है जो ईमान ला चुके कि उन्हें (गुमराही की) तारीक़ियों से निकाल कर (हिदायत की) रौशनी में लाता है और जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया उनके सरपरस्त शैतान हैं कि उनको (ईमान की) रौशनी से निकाल कर (कुफ़्र की) तारीकियों में डाल देते हैं यही लोग तो जहन्नुमी हैं (और) यही उसमें हमेशा रहेंगे (257)
अलम् त – र इलल्लज़ी हाज् – ज इब्राही – म फी रब्बिही अन् आताहुल्लाहुल – मुल्क इज् का – ल इब्राहीमु रब्बियल्लज़ी युह्-यी व युमीतु का – ल अ – न उह-यी व उमीतु , का – ल इब्राहीमु फ़ – इन्नल्ला – ह यअ्ती बिश्शम्सि मिनल्मशिरकि फअ्ति बिहा मिनल् – मग्रिबि फ़ – बुहितल्लज़ी क – फ – र , वल्लाहु ला यहदिल कौमज्ज़ालिमीन (258)
(ऐ रसूल) क्या तुम ने उस शख्स (के हाल) पर नज़र नहीं की जो सिर्फ़ इस बिरते पर कि ख़ुदा ने उसे सल्तनत दी थी इब्राहीम से उनके परवरदिगार के बारे में उलझ पड़ा कि जब इब्राहीम ने (उससे) कहा कि मेरा परवरदिगार तो वह है जो (लोगों को) जिलाता और मारता है तो वो भी (शेख़ी में) आकर कहने लगा मैं भी जिलाता और मारता हूं (तुम्हारे ख़ुदा ही में कौन सा कमाल है) इब्राहीम ने कहा (अच्छा) खुदा तो आफ़ताब को पूरब से निकालता है भला तुम उसको पश्चिम से निकालो इस पर वह काफ़िर हक्का बक्का हो कर रह गया (मगर ईमान न लाया) और ख़ुदा ज़ालिमों को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुंचाया करता (258)
औ कल्लज़ी मर् – र अला कर्यतिंव् – व हि – य ख़ावि – यतुन् अला अुरूशिहा का – ल अन्ना युह्-यी हाज़िहिल्लाहु बअ् – द मौतिहा फ़ – अमातहुल्लाहु मि – अ – त आमिन् सुम् – म ब – अ – सहू , का – ल कम लबिस् – त , का – ल लबिस्तु यौमन् औ बअ् – ज़ यौमिन् , का – ल बल्लबिस – त मि – अ – त आमिन फन्जुर इला तआमि – क व शराबि – क लम् य – तसन्नह् वन्जुर् इला हिमारि – क व लि – नज्अ – ल – क आयतल लिन्नासि वन्जुर् इलल् – अिज़ामि कै – फ नुन्शिजुहा सुम्-म नक्सूहा लहमन् , फ़ – लम्मा तबय्य – न लहू का – ल अअ्लमु अन्नल्ला – ह अला कुल्लि शैइन् कदीर (259)
(ऐ रसूल तुमने) मसलन उस (बन्दे के हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर से होकर गुज़रा और वो ऐसा उजड़ा था कि अपनी छतों पर से ढह के गिर पड़ा था ये देखकर वह बन्दा (कहने लगा) अल्लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी के बाद क्योंकर आबाद करेगा इस पर ख़ुदा ने उसको (मार डाला) सौ बरस तक मुर्दा रखा फिर उसको जिला उठाया (तब) पूछा तुम कितनी देर पड़े रहे अर्ज क़ी एक दिन पड़ा रहा एक दिन से भी कम फ़रमाया नहीं तुम (इसी हालत में) सौ बरस पड़े रहे अब ज़रा अपने खाने पीने (की चीज़ों) को देखो कि बुसा तक नहीं और ज़रा अपने गधे (सवारी) को तो देखो कि उसकी हड्डियाँ ढेर पड़ी हैं और सब इस वास्ते किया है ताकि लोगों के लिये तुम्हें क़ुदरत का नमूना बनाये और अच्छा अब (इस गधे की) हड्डियों की तरफ़ नज़र करो कि हम क्योंकर जोड़ जाड़ कर ढाँचा बनाते हैं फिर उनपर गोश्त चढ़ाते हैं पस जब ये उनपर ज़ाहिर हुआ तो बेसाख्ता बोल उठे कि (अब) मैं ये यक़ीने कामिल जानता हूं कि ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (259)
व इज् का – ल इब्राहीमु रब्बि अरिनी कै – फ़ तुहियल्मौता , का – ल अ – व लम् तुअ्मिन , का – ल बला व लाकिल्लियत मइन् – न कल्बी , का – ल फ़ – खुज् अर्ब – अतम् मिनत्तैरि फ़सुरहुन् – न इलै – क सुम्मज्अल अला कुल्लि ज – बलिम् मिन्हुन् – न जुज्अन् सुम्मद् हुन् – न यअ्ती – न – क सअ्यन् , वअ्लम् अन्नल्ला – ह अज़ीजुन् हकीम (260)
और (ऐ रसूल) वह वाकेया भी याद करो जब इबराहीम ने (खुदा से) दरख्वास्त की कि ऐ मेरे परवरदिगार तू मुझे भी तो दिखा दे कि तू मुर्दों को क्योंकर ज़िन्दा करता है ख़ुदा ने फ़रमाया क्या तुम्हें (इसका) यक़ीन नहीं इबराहीम ने अर्ज़ की (क्यों नहीं) यक़ीन तो है मगर ऑंख से देखना इसलिए चाहता हूं कि मेरे दिल को पूरा इत्मिनान हो जाए फ़रमाया (अगर ये चाहते हो) तो चार परिन्दे लो और उनको अपने पास मॅगवा लो और टुकड़े टुकड़े कर डालो फिर हर पहाड़ पर उनका एक एक टुकड़ा रख दो उसके बाद उनको बुलाओ (फिर देखो तो क्यों कर वह सब के सब तुम्हारे पास दौड़े हुए आते हैं और समझ रखो कि ख़ुदा बेशक ग़ालिब और हिकमत वाला है (260)
 

Surah Al Baqarah in Hindi Ayat 261 to 286 सूरह अल बक़रा

Surah Al Baqarah in Hindi Ayat 261 to 286 सूरह अल बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 261 to 286
 


म – सलुल्लज़ी – न युन्फ़ि कू – न अम्वालहुम फी सबीलिल्लाहि क – म सलि हब्बतिन् अम्ब – तत् सब् – अ सनाबि – ल फ्री कुल्लि सुम्बुलतिम् मि – अतु हब्बतिन् , वल्लाहु युज़ाअिफु लिमंय्यशा – उ , वल्लाहु वासिअुन् अलीम (261)
जो लोग अपने माल खुदा की राह में खर्च करते हैं उनके (खर्च) की मिसाल उस दाने की सी मिसाल है जिसकी सात बालियॉ निकलें (और) हर बाली में सौ (सौ) दाने हों और ख़ुदा जिसके लिये चाहता है दूना कर देता है और खुदा बड़ी गुन्जाइश वाला (हर चीज़ से) वाक़िफ़ है (261)
अल्लज़ी – न युन्फ़िकू – न अम्वालहुम् फ़ी सबीलिल्लाहि सुम् – म ला युत्बिअू – न मा अन्फ़कू मन्नंव – व ला अ – ज़ल लहुम् अजरूहुम् अिन् – द रब्बिहिम् व ला ख़ौफुन् अलैहिम् व ला हुम् यह्ज़नून (262)
जो लोग अपने माल ख़ुदा की राह में ख़र्च करते हैं और फिर ख़र्च करने के बाद किसी तरह का एहसान नहीं जताते हैं और न जिनपर एहसान किया है उनको सताते हैं उनका अज्र (व सवाब) उनके परवरदिगार के पास है और न आख़ेरत में उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह ग़मगीन होंगे (262)
कौलुम मअ्रूफुंव – व मग्फ़ि – रतुन् खैरूम् मिन् स – द – क़तिंय् – यत्बअुहा अज़न् , वल्लाहु ग़निय्युन् हलीम (263)
(सायल को) नरमी से जवाब दे देना और (उसके इसरार पर न झिड़कना बल्कि) उससे दरगुज़र करना उस खैरात से कहीं बेहतर है जिसके बाद (सायल को) ईज़ा पहुंचे और ख़ुदा हर शै से बेपरवा (और) बुर्दबार है (263)
या अय्युहल्लज़ी – न आमनू ला तुब्तिलू स – दक़ातिकुम् बिल्मन्नि वल् – अज़ा कल्लज़ी युन्फिकु मालहू रिआ – अन्नासि व ला युअ्मिनु बिल्लाहि वल् – यौमिल् – आखिरि , फ़ – म – सलुहू क – म – सलि सफ्वानिन् अलैहि तुराबुन् फ़ – असाबहू वाबिलुन् फ़ – त – र – कहू सल्दन् , ला यक्दिरू – न अला शैइम् मिम्मा क – सबू , वल्लाहु ला यह्दिल् – कौमल् काफ़िरीन (264)
ऐ ईमानदारों आपनी खैरात को एहसान जताने और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) देने की वजह से उस शख्स की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोगों को दिखाने के वास्ते ख़र्च करता है और ख़ुदा और रोजे आखेरत पर ईमान नहीं रखता तो उसकी खैरात की मिसाल उस चिकनी चट्टान की सी है जिसपर कुछ ख़ाक (पड़ी हुई) हो फिर उसपर ज़ोर शोर का (बड़े बड़े क़तरों से) मेंह बरसे और उसको (मिट्टी को बहाके) चिकना चुपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) रियाकार अपनी उस ख़ैरात या उसके सवाब में से जो उन्होंने की है किसी चीज़ पर क़ब्ज़ा न पाएंगे (न दुनिया में न आख़ेरत में) और ख़ुदा काफ़िरों को हिदायत करके मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता (264)
व म – सलुल्लज़ी – न युन्फिकू – न अम्वालहुमुब्तिगा – अ मर्जातिल्लाहि व तस्बीतम् मिन् अन्फुसिहिम् क – म सलि जन्नतिम् – बिरब्वतिन् असाबहा वाबिलुन् फ़-आतत् उकु – लहा ज़िअ्फैनि फ़ – इल्लम् युसिब्हा वाबिलुन् फ़ – तल्लुन , वल्लाहु बिमा तअ्मलू – न बसीर (265)
और जो लोग ख़ुदा की ख़ुशनूदी के लिए और अपने दिली एतक़ाद से अपने माल ख़र्च करते हैं उनकी मिसाल उस (हरे भरे) बाग़ की सी है जो किसी टीले या टीकरे पर लगा हो और उस पर ज़ोर शोर से पानी बरसा तो अपने दुगने फल लाया और अगर उस पर बड़े धड़ल्ले का पानी न भी बरसे तो उसके लिये हल्की फुआर (ही काफ़ी) है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उसकी देखभाल करता रहता है (265)
अ – यवद्दु अ – हदुकुम अन् तकू – न लहू जन्नतुम् – मिन्नखीलिव – व अअ् नाबिन् तज्री मिन् तह्तिहल् – अन्हारू लहू फ़ीहा मिन् कुल्लिस्स – मराति व असाबहुल कि – बरू व लहू जुर्रिय्यतुन् जु – अफा – उ फ़ – असाबहा इअ्सारून , फ़ीहि नारून् फहत – रकत , कज़ालि – क युबय्यिनुल्लाहु लकुमुल् – आयाति लअल्लकुम त – तफ़क्करून (266)
भला तुम में कोई भी इसको पसन्द करेगा कि उसके लिए खजूरों और अंगूरों का एक बाग़ हो उसके नीचे नहरें जारी हों और उसके लिए उसमें तरह तरह के मेवे हों और (अब) उसको बुढ़ापे ने घेर लिया है और उसके (छोटे छोटे) नातवॉ कमज़ोर बच्चे हैं कि एकबारगी उस बाग़ पर ऐसा बगोला आ पड़ा जिसमें आग (भरी) थी कि वह बाग़ जल भुन कर रह गया ख़ुदा अपने एहकाम को तुम लोगों से साफ़ साफ़ बयान करता है ताकि तुम ग़ौर करो (266)
या अय्युहल्लज़ी – न आमनू अन्फिकू मिन् तय्यिबाति मा कसब्तुम व मिम्मा अखरज्ना लकुम् मिनल – अर्जि व ला त – यम्म – मुल – खबी – स मिन्हु तुन्फ़िकू – न व लस्तुम बि – आख़िज़ीहि इल्ला अन् तुग्मिजू फ़ीहि , वअ्लमू अन्नल्ला – ह ग़निय्युन् हमीद (267)
ऐ ईमान वालों अपनी पाक कमाई और उन चीज़ों में से जो हमने तुम्हारे लिए ज़मीन से पैदा की हैं (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करो और बुरे माल को (ख़ुदा की राह में) देने का क़सद भी न करो हालॉकि अगर ऐसा माल कोई तुमको देना चाहे तो तुम अपनी ख़ुशी से उसके लेने वाले नहीं हो मगर ये कि उस (के लेने) में (अमदन) आंख चुराओ और जाने रहो कि ख़ुदा बेशक बेनियाज़ (और) सज़ावारे हम्द है (267)
अश्शैतानु यअि़दुकुमुल् फ़क् – र व यअ्मुरूकुम बिल्फ़ह्शा – इ वल्लाहु यअिदुकुम् मग्फ़ि – रतम् मिन्हु व फ़ज लन् , वल्लाहु वासिअुन् अलीम (268)
शैतान तमुको तंगदस्ती से डराता है और बुरी बात (बुख्ल) का तुमको हुक्म करता है और ख़ुदा तुमसे अपनी बख्शिश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता है और ख़ुदा बड़ी गुन्जाइश वाला और सब बातों का जानने वाला है (268)
युअ्तिल् – हिक्म – त मंय्यशा – उ व मंय्युअ्तल – हिक्म – त फ़ – क़द् ऊति – य खैरन् कसीरन् , व मा यज्जक्करू इल्ला उलुल – अल्बाब (269)
वह जिसको चाहता है हिकमत अता फ़रमाता है और जिसको (ख़ुदा की तरफ) से हिकमत अता की गई तो इसमें शक नहीं कि उसे ख़ूबियों से बड़ी दौलत हाथ लगी और अक्लमन्दों के सिवा कोई नसीहत मानता ही नहीं (269)
व मा अन्फ़क्तुम् मिन् न – फ़ – क़तिन् औ नज़र्तुम् मिन् – नजि रन् फ़ – इन्नल्ला – ह यअ्लमुहू , व मा लिज्जालिमी – न मिन् अन्सार (270)
और तुम जो कुछ भी ख़र्च करो या कोई मन्नत मानो ख़ुदा उसको ज़रूर जानता है और (ये भी याद रहे) कि ज़ालिमों का (जो) ख़ुदा का हक़ मार कर औरों की नज़्र करते हैं (क़यामत में) कोई मददगार न होगा (270)
इन् तुब्दुस्स – दक़ाति फ़ – निअिम्मा हि – य व इन् तुख्फूहा व तु अ्तू हल्फ – करा – अ फहुव खैरूल्लकुम व युकफ्फिरू अन्कुम् मिन् सय्यिआतिकुम , वल्लाहु बिमा तअ्मलूना ख़बीर (271)
अगर ख़ैरात को ज़ाहिर में दो तो यह (ज़ाहिर करके देना) भी अच्छा है और अगर उसको छिपाओ और हाजतमन्दों को दो तो ये छिपा कर देना तुम्हारे हक़ में ज्यादा बेहतर है और ऐसे देने को ख़ुदा तुम्हारे गुनाहों का कफ्फ़ारा कर देगा और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है (271)
लै – स अ लै – क हुदाहुम् व लाकिन्नल्ला – ह यह्दी मंय्यशा – उ व मा तुन्फ़ि कू मिन् खैरिन् फ़ – लिअन्फुसिकुम , व मा तुन्फिकू – न इल्लब्-तिग़ा-अ वज्हिल्लाहि , व मा तुन्फ़िकू मिन् खैरिंय्युवफ् – फ़ इलैकुम् व अन्तुम् ला तुज्लमून (272)
ऐ रसूल उनका मंज़िले मक़सूद तक पहुंचाना तुम्हारा काम नहीं (तुम्हारा काम सिर्फ रास्ता दिखाना है) मगर हॉ ख़ुदा जिसको चाहे मंज़िले मक़सूद तक पहुंचा दे और (लोगों) तुम जो कुछ नेक काम में ख़र्च करोगे तो अपने लिए और तुम ख़ुदा की ख़ुशनूदी के सिवा और काम में ख़र्च करते ही नहीं हो (और जो कुछ तुम नेक काम में ख़र्च करोगे) (क़यामत में) तुमको भरपूर वापस मिलेगा और तुम्हारा हक़ न मारा जाएगा (272)
लिल्फु – क़रा – इल्लज़ी – न उहिसरू फ़ी सबीलिल्लाहि ला यस्ततीअू – न ज़रबन् फ़िल्अर्ज़ि यहसबुहुमुल् – जाहिलु अग्निया – अ मिनत्त – अफ्फुफ़ि तअ्रिफुहुम बिसीमाहुम् ला यस्अलूनन्ना – स इलहाफ़न् , व मा तुन्फिकू मिन् खैरिन् फ – इन्नल्ला – ह बिही अलीम (273)
(यह खैरात) ख़ास उन हाजतमन्दों के लिए है जो ख़ुदा की राह में घिर गये हो (और) रूए ज़मीन पर (जाना चाहें तो) चल नहीं सकते नावाक़िफ़ उनको सवाल न करने की वजह से अमीर समझते हैं (लेकिन) तू (ऐ मुख़ातिब अगर उनको देखे) तो उनकी सूरत से ताड़ जाये (कि ये मोहताज हैं अगरचे) लोगों से चिमट के सवाल नहीं करते और जो कुछ भी तुम नेक काम में ख़र्च करते हो ख़ुदा उसको ज़रूर जानता है (273)
अल्लज़ी – न युन्फिकू – न अम्वालहुम् बिल्लैलि वन्नहारि सिररंव – व अलानि – यतन् फ़ – लहुम् अज्रूहुम् अिन् – द रब्बिहिम् व ला खौफुन् अलैहिम् व ला हुम् यह्ज़नून (274)
जो लोग रात को या दिन को छिपा कर या दिखा कर (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करते हैं तो उनके लिए उनका अज्र व सवाब उनके परवरदिगार के पास है और (क़यामत में) न उन पर किसी क़िस्म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़ुर्दा ख़ातिर होंगे (274)
अल्लज़ी – न यअ्कुलूनर्रिबा ला यकूमू – न इल्ला कमा यकूमुल्लज़ी य – तख़ब्बतुहुश् – शैतानु मिनल्मस्सि , ज़ालि – क बि – अन्नहुम् कालू इन्नमल् – बैअु़ मिस्लुर्रिबा व अहल्लल्लाहुल्बै – अ व हर्रमारिबा फ़ – मन् जा – अहू मौअि – ज़तुम् मिर्रब्बिही फन्तहा फ़ – लहू मा स – ल – फ़ , व अम्रुहू इलल्लाहि , व मन् आ – द फ़ – उलाइ – क अस्हाबुन्नारि हुम् फ़ीहा ख़ालिदून (275)
जो लोग सूद खाते हैं वह (क़यामत में) खड़े न हो सकेंगे मगर उस शख्स की तरह खड़े होंगे जिस को शैतान ने लिपट कर मख़बूतुल हवास (पागल) बना दिया है ये इस वजह से कि वह उसके क़ायल हो गए कि जैसा बिक्री का मामला वैसा ही सूद का मामला हालॉकि बिक्री को तो खुदा ने हलाल और सूद को हराम कर दिया बस जिस शख्स के पास उसके परवरदिगार की तरफ़ से नसीहत (मुमानियत) आये और वह बाज़ आ गया तो इस हुक्म के नाज़िल होने से पहले जो सूद ले चुका वह तो उस का हो चुका और उसका अम्र (मामला) ख़ुदा के हवाले है और जो मनाही के बाद फिर सूद ले (या बिक्री के माले को यकसा बताए जाए) तो ऐसे ही लोग जहन्नुम में रहेंगे (275)
यम्हकुल्लाहुर्रिबा व युर्बिस्सदक़ाति , वल्लाहु ला युहिब्बु कुल ल कफ्फारिन् असीम (276)
खुदा सूद को मिटाता है और ख़ैरात को बढ़ाता है और जितने नाशुक्रे गुनाहगार हैं खुदा उन्हें दोस्त नहीं रखता (276)
इन्नल्लज़ी – न आमनू व अमिलुस्सालिहाति व अकामुस्सला – त व आतवुज्ज़का – त लहुम् अजरूहुम् अिन् – द रब्बिहिम् व ला ख़ौफुन् अलैहिम् व ला हुम् यह्ज़नून (277)
(हॉ) जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ी और ज़कात दिया किये उनके लिए अलबत्ता उनका अज्र व (सवाब) उनके परवरदिगार के पास है और (क़यामत में) न तो उन पर किसी क़िस्म का ख़ौफ़ होगा और न वह रन्जीदा दिल होंगे (277)
या अय्युहल्लज़ी – न आमनुत्तकुल्ला – ह व ज़रू मा बकि – य मिनर्रिबा इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन (278)
ऐ ईमानदारों ख़ुदा से डरो और जो सूद लोगों के ज़िम्मे बाक़ी रह गया है अगर तुम सच्चे मोमिन हो तो छोड़ दो (278)
फ़ इल्लम् तफ्अलू फ़अ् – जनू बि – हर्बिम् मिनल्लाहि व रसूलिही व इन् तुब्तुम् फ़ – लकुम् रूऊसु अम्वालिकुम् ला तज्लिमू – न व ला तुज्लमून (279)
और अगर तुमने ऐसा न किया तो ख़ुदा और उसके रसूल से लड़ने के लिये तैयार रहो और अगर तुमने तौबा की है तो तुम्हारे लिए तुम्हारा असल माल है न तुम किसी का ज़बरदस्ती नुकसान करो न तुम पर ज़बरदस्ती की जाएगी (279)
व इन् का – न जू अुस्रतिन् फ़ – नज़ि – रतुन् इला मैस – रतिन् , व अन् तसद्दकू खैरूलकुम् इन् कुन्तुम् तअलमून (280) और अगर कोई तंगदस्त तुम्हारा (क़र्ज़दार हो) तो उसे ख़ुशहाली तक मोहल्लत (दो) और सदक़ा करो और अगर तुम समझो तो तुम्हारे हक़ में ज्यादा बेहतर है कि असल भी बख्श दो (280)
वत्तकू यौमन् तुर्जअू – न फीहि इलल्लाहि , सुम् – म तुवफ्फा कुल्लु नफ्सिम् मा क – सबत् व हुम् ला युज्लमून (281)
और उस दिन से डरो जिस दिन तुम सब के सब ख़ुदा की तरफ़ लौटाये जाओगे फिर जो कुछ जिस शख्स ने किया है उसका पूरा पूरा बदला दिया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी (281) या अय्युहल्लज़ी – न आमनू इज़ा तदायन्तुम् बिदैनिन् इला अ – जलिम् मुसम्मन् फ़क्तुबूहु , वल्यक्तुब् बैनकुम् कातिबुम् बिल्अदलि व ला यअ् – ब कातिबुन् अंय्यक्तु – ब कमा अल्ल – महुल्लाहु फल्यक्तुब् वल्युमलि लिल्लज़ी अलैहिल – हक्कु वल्यत्तकिल्ला – ह रब्बहू व ला यब्खस् मिन्हु शैअन् , फ़ – इन् कानल्लज़ी अलैहिल्हक्कु सफ़ीहन् औ ज़अीफ़न् औ ला यस्ततीअु अंय्युमिल – ल हु – व फ़ल्युमलिल वलिय्युहू बिल्अदलि , वस्तश्हिदू शहीदैनि मिर्रिजालिकुम् फ-इल्लम् यकू ना रजु लै नि फ़ – रजुलुंव्वम्र अतानि मिम्मन् तरजौ – न मिनश्शु – हदा – इ अन् तज़िल – ल इह्दाहुमा फतुज़क्कि – र इह्दाहुमल – उख्रा , व ला यअ्बश् – शु – हदा – उ इज़ा मा दुअू , व ला तस्अमू अन् तक्तुबूहु सगीरन् औ कबीरन् इला अ – जलिही , ज़ालिकुम् अक्सतु अिन्दल्लाहि व अक्वमु लिश्शहा – दति व अद्ना अल्ला तर्ताबू इल्ला अन् तकू – न तिजारतन् हाज़ि – रतन तुदीरूनहा बैनकुम् फलै – स अलैकुम् जुनाहुन् अल्ला तक्तुबूहा , व अश्हिदू इज़ा तबायअ्तुम् व ला युज़ार् – र कातिबुंव – व ला शहीदुन् , व इन् तफ्अलू फ़ – इन्नहू फुसूकुम् बिकुम , वत्तकुल्ला – ह , व युअल्लिमुकुमुल्लाहु , वल्लाहु बिकुल्लि शैइन् अलीम (282)
ऐ ईमानदारों जब एक मियादे मुक़र्ररा तक के लिए आपस में क़र्ज क़ा लेन देन करो तो उसे लिखा पढ़ी कर लिया करो और लिखने वाले को चाहिये कि तुम्हारे दरमियान तुम्हारे क़ौल व क़रार को, इन्साफ़ से ठीक ठीक लिखे और लिखने वाले को लिखने से इन्कार न करना चाहिये (बल्कि) जिस तरह ख़ुदा ने उसे (लिखना पढ़ना) सिखाया है उसी तरह उसको भी वे उज़्र (बहाना) लिख देना चाहिये और जिसके ज़िम्मे क़र्ज़ आयद होता है उसी को चाहिए कि (तमस्सुक) की इबारत बताता जाये और ख़ुदा से डरे जो उसका सच्चा पालने वाला है डरता रहे और (बताने में) और क़र्ज़ देने वाले के हुक़ूक़ में कुछ कमी न करे अगर क़र्ज़ लेने वाला कम अक्ल या माज़ूर या ख़ुद (तमस्सुक) का मतलब लिखवा न सकता हो तो उसका सरपरस्त ठीक ठीक इन्साफ़ से लिखवा दे और अपने लोगों में से जिन लोगों को तुम गवाही लेने के लिये पसन्द करो (कम से कम) दो मर्दों की गवाही कर लिया करो फिर अगर दो मर्द न हो तो (कम से कम) एक मर्द और दो औरतें (क्योंकि) उन दोनों में से अगर एक भूल जाएगी तो एक दूसरी को याद दिला देगी, और जब गवाह हुक्काम के सामने (गवाही के लिए) बुलाया जाएं तो हाज़िर होने से इन्कार न करे और क़र्ज़ का मामला ख्वाह छोटा हो या उसकी मियाद मुअय्युन तक की (दस्तावेज़) लिखवाने में काहिली न करो, ख़ुदा के नज़दीक ये लिखा पढ़ी बहुत ही मुन्सिफ़ाना कारवाई है और गवाही के लिए भी बहुत मज़बूती है और बहुत क़रीन (क़यास) है कि तुम आईन्दा किसी तरह के शक व शुबहा में न पड़ो मगर जब नक़द सौदा हो जो तुम लोग आपस में उलट फेर किया करते हो तो उसकी (दस्तावेज) के न लिखने में तुम पर कुछ इल्ज़ाम नहीं है (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोख्त) हो तो गवाह कर लिया करो और क़ातिब (दस्तावेज़) और गवाह को ज़रर न पहुँचाया जाए और अगर तुम ऐसा कर बैठे तो ये ज़रूर तुम्हारी शरारत है और ख़ुदा से डरो ख़ुदा तुमको मामले की सफ़ाई सिखाता है और वह हर चीज़ को ख़ूब जानता है (282)
व इन् कुन्तुम् अला स – फरिंव्वलम् तजिदू कातिबन् फ़रिहानुम् मकबू – जतुन , फ़ – इन अमि – न बअ्जुकुम बअ् जन् फ़ल्युअद्दिल्लज़िअ्तुमि – न अमान – तहू वल्यत्तकिल्ला – ह रब्बहू , व ला तक्तुमुश्शहाद – त , व मंय्यक्तुम्हा फ़ – इन्नहू आसिमुन् कल्बुहू , वल्लाहु बिमा तअ्मलू – न अलीम (283)
और अगर तुम सफ़र में हो और कोई लिखने वाला न मिले (और क़र्ज़ देना हो) तो रहन या कब्ज़ा रख लो और अगर तुममें एक का एक को एतबार हो तो (यूं ही क़र्ज़ दे सकता है मगर) फिर जिस शख्स पर एतबार किया गया है (क़र्ज़ लेने वाला) उसको चाहिये क़र्ज़ देने वाले की अमानत (क़र्ज़) पूरी पूरी अदा कर दे और अपने पालने वाले ख़ुदा से डरे (मुसलमानो) तुम गवाही को न छिपाओ और जो छिपाएगा तो बेशक उसका दिल गुनाहगार है और तुम लोग जो कुछ करते हो ख़ुदा उसको ख़ूब जानता है (283)
लिल्लाहि मा फ़िस्समावाति व मा फिल्अर्ज़ि व इन् तुब्दू मा फ़ी अन्फुसिकुम् औ तुख्फूहु युहासिब्कुम् बिहिल्लाहु , फ़ – यग्फिरू लिमंय्यशा – उ व युअज्जिबु मंय्यशा – उ , वल्लाहु अला कुल्लि शैइन् क़दीर (284)
जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़) सब कुछ खुदा ही का है और जो कुछ तुम्हारे दिलों में हे ख्वाह तुम उसको ज़ाहिर करो या उसे छिपाओ ख़ुदा तुमसे उसका हिसाब लेगा, फिर जिस को चाहे बख्श दे और जिस पर चाहे अज़ाब करे, और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (284)
आ – मनर्रसूलु बिमा उन्ज़ि – ल इलैहि मिर्रब्बिही वल्मुअ्मिनून , कुल्लुन् आम – न बिल्लाहि व मलाइ – कतिही व कुतुबिही व रूसुलिही , ला नुफ़र्रिकु बै – न अ – हदिम् मिर्रूसुलिही , व कालू समिअ़ना व अ – तअ्ना गुफ्रान – क रब्बना व इलैकल मसीर (285)
हमारे पैग़म्बर (मोहम्मद) जो कुछ उनपर उनके परवरदिगार की तरफ से नाज़िल किया गया है उस पर ईमान लाए और उनके (साथ) मोमिनीन भी (सबके) सब ख़ुदा और उसके फ़रिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों पर ईमान लाए (और कहते हैं कि) हम ख़ुदा के पैग़म्बरों में से किसी में तफ़रक़ा नहीं करते और कहने लगे ऐ हमारे परवरदिगार हमने (तेरा इरशाद) सुना (285)
ला युकल्लिफुल्लाहु नफ्सन् इल्ला वुस्अहा , लहा मा क – सबत् व अलैहा मक्त – सबत , रब्बना ला तुआखिज्ना इन् – नसीना औ अख़्तअना , रब्बना व ला तहमिल् अलैना इस्रन् कमा हमल्तहू अलल्लजी – न मिन् कब्लिना , रब्बना व ला तुहम्मिलना मा ला ताक – त लना बिही वअ्फु अन्ना , वग्फिर लना , वरहम्ना , अन् – त मौलाना फ़न्सुरना अलल् कौमिल काफ़िरीन (286)
और मान लिया परवरदिगार हमें तेरी ही मग़फ़िरत की (ख्वाहिश है) और तेरी ही तरफ़ लौट कर जाना है ख़ुदा किसी को उसकी ताक़त से ज्यादा तकलीफ़ नहीं देता उसने अच्छा काम किया तो अपने नफ़े के लिए और बुरा काम किया तो (उसका वबाल) उसी पर पडेग़ा ऐ हमारे परवरदिगार अगर हम भूल जाऐं या ग़लती करें तो हमारी गिरफ्त न कर ऐ हमारे परवरदिगार हम पर वैसा बोझ न डाल जैसा हमसे अगले लोगों पर बोझा डाला था, और ऐ हमारे परवरदिगार इतना बोझ जिसके उठाने की हमें ताक़त न हो हमसे न उठवा और हमारे कुसूरों से दरगुज़र कर और हमारे गुनाहों को बख्श दे और हम पर रहम फ़रमा तू ही हमारा मालिक है तू ही काफ़िरों के मुक़ाबले में हमारी मदद कर (286)

नबी की चालीस हदीस हिंदी 40 hadees in hindi

नबी की चालीस हदीस हिंदी 40 hadees in hindi

नबी की चालीस हदीस हिंदी 40 hadees in hindi

Hadees 1.

तुम में बेहतरीन वह है जिनके अख़लाक़ अच्छे हो.

तिरमिज़ी शरीफ़ – 5575


Hadees 2.

जो खामोश रहा उसने नेजात पाई.

तिरमिज़ी शरीफ़ – 2425


Hadees 3.

जो रहम नहीं करता उस पर रहम नहीं किया जाता.

मुस्लिम शरीफ़


Hadees 4.

जो लोगों का शुक्र अदा नहीं करता वह अल्लाह का भी शुक्र अदा नहीं करता.

अबूदाऊद शरीफ़ – 4177


Hadees 5.

मुस्लमान को गाली देना गुनाह है और उससे जंग कुफ्र है.

बुख़ारी शरीफ़ – 46


Hadees 6.

हर भलाई सदका है.

बुख़ारी शरीफ़ – 5562


Hadees 7.

हया सरापा भलाई है.

मुस्लिम शरीफ़ – 54


Hadees 8.

तुम में सबसे बेहतर सख्स वह है जो क़ुरान को सीखे और इस को सिखाए.

बुख़ारी शरीफ़ – 4639


Hadees 9.

अमल का दारो-म-दार नियत पर है.

बुख़ारी शरीफ़


Hadees 10.

फजर की दो रिकअत सुन्नत दुनिया-व-माफ़िहा से बेहतर है.

मुस्लिम शरीफ़ – 1193


Hadees 11.

दुआ इबादत का मग्ज है.

तिरमिज़ी शरीफ़ – 3293


Hadees 12.

बेहतरीन तोशा तक़वा है.

बुख़ारी शरीफ़ – 1426


Hadees 13.

सुनी हुई बात देखी हुई बात की तरह नहीं होती.

मुसनद-अहमद शरीफ़ – 1745


Hadees 14.

मोमिन, मोमिन का आईना है.

अबूदाऊद शरीफ़ – 4272


Hadees 15.

भलाई की राह बतलाने वाले को इतना ही सवाब मिलता है, जितना इस पर चलने वाले को मिलता है.

मुसनद-अहमद शरीफ़ – 21326


Hadees 16.

आग से बचो. चाहे एक खजूर का टुकड़ा ही खैरातकरके क्यों न हो.

बुख़ारी शरीफ़ – 1328


Hadees 17.

रोज़ा ढाल है.

बुख़ारी शरीफ़ – 6938


Hadees 18.

जो हम को धोखा दे वो हम में से नहीं है.

मुसनद-अहमद शरीफ़

Hadees 19.

अच्छा गुमान रखना बेहतरीन इबादत है.

अबूदाऊद शरीफ़


Hadees 20.

दुनिया मोमिन के लिए कैद खाना है और काफ़िर के लिए ज़न्नत है.

मुस्लिम शरीफ़ – 5256


Hadees 21.

अज़ान और इक़ामत के दरमियान दुआ रद्द नहीं होती.

तिरमिज़ी शरीफ़


Hadees 22.

जो चीज कम हो और काफ़ी हो वह इस ज्यादा चीज से बेहतर है, जो आदमी को अल्लाह की यादसे गाफ़िल कर दे.

मुसनद-अहमद शरीफ़


Hadees 23.

किसी मुसलमान के लिए यह जायज़ नहीं है कि वह अपने मुसलमान भाई के साथ तीन दिन से ज्यादा कताअ-तआल्लूक रखे.

मुस्लिम शरीफ़ – 4644


Hadees 24.

आदमी का हश्र उस शख्स के साथ होगा, जिस इन्सान से उस को मोहब्बत होगी.

बुख़ारी शरीफ़ – 5702


Hadees 25.

जिस से मशवराह लिया जाए, उसे अमानतदार होना चाहिए.

तिरमिज़ी शरीफ़ – 2747


Hadees 26.

असल तवंगरी दिल की तवंगरी है.

बुख़ारी शरीफ़ – 4956


Hadees 27.

नेक-बख्त वह है, जो दूसरो से इबरत हासिल करे.

मुस्लिम शरीफ़ – 4783


Hadees 28.

ऊपर वाला हाथ नीचे वाले हाथ से बेहतर है.

बुख़ारी शरीफ़ – 1338

Hadees 29.

गुनाहों से तौबा करने वाला ऐसा है गोया के उस ने कोई गुनाह ही नहीं किया.

इब्ने मज़ह – 4240


Hadees 30.

मजलिसों के लिए अमानतदारी जरुरी है.

अबूदाऊद शरीफ़


Hadees 31.

मुस्लमान वह है जिस के हाथ व जुबान से दुसरे मुस्लमान महफूज़ रहे.

बुख़ारी शरीफ़ – 9


Hadees 32.

जो नरमी से महरूम है वह हर भलाई से महरूम है.

मुस्लिम शरीफ़ – 4694


Hadees 33.

जो शख्स अल्लाह के लिए एक मस्जिद बनाएगा अल्लाह उस के लिए ज़न्नत में उस जैसा महल बनाएगा.

मुस्लिम शरीफ़ – 229


Hadees 34.

ज़ुल्म कयामत के दिन अंधेरों का सबब बनेगा.

बुख़ारी शरीफ़ – 2267


Hadees 35.

जो अपने को किसी गुनाह का आर दिलाता है, तो वह उस गुनाह को किए बगैर नहीं मरता.

तिरमिज़ी शरीफ़ – 2429


Hadees 36.

रिश्ता को तोड़ने वाला ज़न्नत में दाखिल नहीं होगा.

बुख़ारी शरीफ़ – 5525


Hadees 37.

चुगली करने वाला ज़न्नत में दाखिल नहीं होगा.

मुस्लिम शरीफ़ – 151


Hadees 38.

तुम में से कोई मोमिन नहीं हो सकता जबतक की वो अपने भाई के लिए वही चीज पसंद करे जो अपने लिए पसंद करता है.

बुख़ारी शरीफ़ – 12


Hadees 39.

टखना के जितना निचे कपड़ा होगा उतना हिस्सा आग में होगा.

बुख़ारी शरीफ़ – 5341


Hadees 40.

जो शख्स दो ठंढे वक्त की नमाज़े फजर और असर पढ़ेगा तो वह ज़न्नत में दाखिल होगा.

बुख़ारी शरीफ़ – 540


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Allah ke 99 Names in Hindi अल्लाह के 99 नाम हिंदी में

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99 Names Of Allah in hindi अल्लाह के 99 नाम हिंदी में
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मशहूर है कि कुरआन में 99 (निन्यानवें) नाम ऐसे हैं, जो सब पर जाहिर हैं और एक नाम ऐसा है, जो गुप्त रखा है जो 'इस्मे आजम' है। विभिन्न सहाबए अकराम ने इसे 'इस्मे आजम' के जो संकेत दिए हैं, वे किसी एक नाम से नहीं हैं।

 

No इंग्लिश हिंदी मीनिंग
1 Ar - Rahman अर रहमान बहुत महेरबान
2 Ar - Raheem अर रहीम निहायत रहम वाला
3 Al - Malik अल मलिक बादशाह
4 Al - Quddoos अल कुद्दुस पाक ज़ात
5 As - Salaam अस सलाम सलामती वाला
6 Al - Mu’ Min अल मु अमिन अमन देने वाला
7 Al - Muhaymin अल मुहयमिन निगरानी करने वाला
8 Al - Azeez अल अज़ीज़ ग़ालिब
9 Al - Jabbaar अल जब्बार ज़बरदस्त
10 Al - Mutakabbir अल मुतकब्बिर बड़ाई वाला
11 Al - Khaliq अल खालिक पैदा करने वाला
12 Al - Bari अल बारी जान डालने वाला
13 Al - Musawwir अल मुसव्विर सूरतें बनाने वाला
14 Al - Gaffar अल गफ्फार बख्शने वाला
15 Al - Qahhar अल क़हहार सब को अपने काबू में रखने वाला
16 Al - Wahhab अल वहहाब बहुत अता करने वाला
17 Al - Razzaq अर रज्जाक रिजक देने वाला
18 Al - Fattah अल फतताह खोलने वाला
19 Al - Aleem अल अलीम खूब जानने वाला
20 Al - Qabiz अल काबिज़ नपी तुली रोज़ी देने वाला
21 Al - Basit अल बासित रोज़ी को फराख देने वाला
22 Al - Khafiz अल खाफिज़ पस्त करने वाला
23 Al - Rafi अर राफी बलंद करने वाला
24 Al - Muizz अल मुईज़ इज्ज़त देने वाला
25 Al - Muzill अल मुज़िल ज़िल्लत देने वाला
26 Al - Sami अस समी सब कुछ सुनने वाला
27 Al - Baseer अल बसीर सब कुछ देखने वाला
28 Al - Hakam अल हकम फैसला करने वाला
29 Al - Adal अल अदल अदल करने वाला
30 Al - Lateef अल लतीफ़ बारीक बीं
31 Al - Khabeer अल खबीर सब से बाखबर
32 Al - Haleem अल हलीम निहायत बुरदबार
33 Al - Azeem अल अज़ीम बुज़ुर्ग
34 Al - Gafoor अल गफूर गुनाहों को बख्शने वाला
35 Al - Shakoor अश शकूर कदरदान
36 Al - Ali अल अली बहुत बलंद बरतर
37 Al - Kabeer अल कबीर बहुत बड़ा
38 Al - Hafeez अल हफीज निगेहबान
39 Al - Muqeet अल मुकीत सब को रोज़ी व तवानाई देने वाला
40 Al - Haseeb अल हसीब काफी
41 Al - Jaleel अल जलील बुज़ुर्ग
42 Al - Kareem अल करीम बेइंतिहा करम करने वाला
43 Al - Raqeeb अर रक़ीब निगेहबान
44 Al - Mujeeb अल मुजीब दुआएं सुनने और कुबूल करने वाला
45 Al - waase अल वासिऊ फराखी देने वाला
46 Al - Hakeem अल हकीम हिकमत वाला
47 Al - Wadood अल वदूद मुहब्बत करने वाला
48 Al - Majeed अल मजीद बड़ी शान वाला
49 Al - Baai’th अल बाईस उठाने वाला
50 Al - Shaheed अश शहीद हाज़िर
51 Al - Haq अल हक सच्चा मालिक
52 Al - Wakeel अल वकील काम बनाने वाला
53 Al - Qawi अल कवी जोर आवर
54 Al - Mateen अल मतीन कुव्वत वाला
55 Al - Wali अल वली हिमायत करने वाला
56 Al - Hameed अल हमीद खूबियों वाला
57 Al - Muhsi अल मुह्सी गिनने वाला
58 Al - Mubdi अल मुब्दी पहली बार पैदा करने वाला
59 Al - Mueed अल मुईद दोबारा पैदा करने वाला
60 Al - Muhyi अल मुहयी जिंदा करने वाला
61 Al - Mumeet अल मुमीत मारने वाला
62 Al - Hayy अल हय्युल जिंदा
63 Al - Qayyoom अल कय्यूम सब को कायम रखने और निभाने वाला
64 Al - Wajid अल वाजिद हर चीज़ को पाने वाला
65 Al - Maajid अल माजिद बुज़ुर्गी और बड़ाई वाला
66 Al - Waahid अल वाहिद एक अकेला
67 Al - Ahad अल अहद एक अकेला
68 Al - Samad अस समद बे नियाज़
69 Al - Qadir अल कादिर कुदरत रखने वाला
70 Al - Muqtadir अल मुक्तदिर पूरी कुदरत रखने वाला
71 Al - Muqaddam अल मुक़द्दम आगे करने वाला
72 Al - Muakhkhar अल मुअख्खर पीछे और बाद में रखने वाला
73 Al - Awwal अल अव्वल सब से पहले
74 Al - Aakhir अल आखिर सब के बाद
75 Al - Zahir अज ज़ाहिर ज़ाहिर व आशकार
76 Al - Batin अल बातिन पोशीदा व पिन्हा
77 Al - waali अल वाली मुतवल्ली
78 Al - muta aal अल मुताआली सब से बलंद व बरतर
79 Al - Bar अल बर बड़ा अच्चा सुलूक करने वाला
80 Al -Tawwaab अत तव्वाब सब से ज्यादा कुबूल करने वाला
81 Al - Muntaqim अल मुन्ताकिम बदला लेने वाला
82 Al - Afuw अल अफुव्व बहुत ज्यादा माफ़ करने वाला
83 Al - Raoof अर रऊफ बहुत बड़ा मुश्फिक
84 Al - Malikul mulk मालिकुल मुल्क मुल्कों का मालिक
85 Al - Zul Jalai Walikraam जुल जलाली वल इकराम अजमतो जलाल और इकराम वाला
86 Al - Muqsit अल मुक्सित अदलो इन्साफ कायम करने वाला
87 Al - Jameu अल जामिऊ सब को जमा करने वाला
88 Al - Gani अल गनी बड़ा बेनियाज़ व बेपरवा
89 Al - Mugni अल मुग्नी बेनियाज़ व गनी बना देने वाला
90 Al - Maniu अल मानिऊ रोक देने वाला
91 Al - Zar अज ज़ार्र ज़रर पहुँचाने वाला
92 Al - Nafeu अन नाफिऊ नफा पहुँचाने वाला
93 Al - Noor अन नूर सर से पैर तक नूर बख्शने वाला
94 Al - Hadi अल हादी सीधा रास्ता दिखाने और चलाने वाला
95 Al - Badee अल बदी बेमिसाल चीज़ को इजाद करने वाला
96 Al - Baqi अल बाकी हमेशा रहने वाला
97 Al - Warith अल वारिस सब के बाद मौजूद रहने वाला
98 Al - Rasheed अर रशीद बहुत रहनुमाई करने वाला
99 Al - Saboor अस सबूर बड़े तहम्मुल वाला




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Shab e qadr namaz ka tarika iski dua hindi me - शबे कद्र की खास दुआ | सलातुल तस्बीह नमाज़ का तरीका

Shab e qadr namaz ka tarika iski dua hindi me - शबे कद्र की खास दुआ | सलातुल तस्बीह नमाज़ का तरीका

Shab e qadr namaz ka tarika iski dua hindi me - शबे कद्र की खास दुआ | सलातुल तस्बीह नमाज़ का तरीका

शब-ए-कद्र की रात रमज़ान के आखिरी के दस दिनों में आती है, जिसमें पांच रातों को शामिल किया गया है जैसे- 21, 23, 25, 27, 29 की रात। कहा जाता है कि इन पांच रातों में से किसी एक दिन शब-ए-कद्र की रात आती है, जिसकी कई निशानियां कुरान में बयान की कई हैं।

जिस दिन शब-ए-कद्र की रात होगी उस रात बहुत रोशनी होगी और आसमान चांद से चमक रहा होगा। इस रात न तो ज्यादा गर्मी और न ज्यादा ठंड होगी मतलब मौसम खुशनुमा होगा।


हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल लाहु तआला अन्हा ने हुज़ूर (सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम) से एक बार सवाल किया “ या रसूलल लाह अगर मुझे किसी रात के बारे में ये मालूम हो जाये कि ये लैलतुल क़द्र की रात है तो मैं उस में क्या करूँ” आप (सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया कि तुम उस वक़्त में ये दुआ पढ़ो

Dua Lailatul Qadr Ya Shabe Qadr | शबे क़द्र की ख़ास दुआ

Dua In English: Allahumma innaka afuwwun tuhibbul afwa fa’Afu anni

Dua In Hindi : अल्लाहुम्मा इन्नका अफुव्वुन तुहिब्बुल अफ्वा फ़अ’फु अन्नी

Translation : ए अल्लाह ! बेशक तू माफ़ करने वाला है, माफ़ करने को पसंद करता है तो मुझे भी माफ़ फरमा दे (तिरमिज़ी)


हुज़ूर सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया “कि जो शख्स शबे क़द्र में ईमान की हालत में और सवाब की नियत से (इबादत के लिए ) खड़ा हो तो उसके तमाम गुनाह माफ़ कर दिए जायेंगे”

इस रिवायत में खड़े होने का मतलब सिर्फ नमाज़ में ही खड़े होना ही नहीं है बल्कि चाहे नमाज़ पढ़े, या तिलावत करे, चाहे तस्बीह और इस्तेग्फार में लग जाये, सारी इबादतें इस में दाख़िल हैं, और सवाब की नियत का मतलब है कि ये इबादत सिर्फ इख्लास, अल्लाह को राज़ी करने के लिए और सवाब हासिल करने के लिए हो, दिखलावा और नुमाइश मक़सूद न हो

लैलतुल क़द्र या शबे क़द्र क्या है ?

दो उलमा के अक़वाल शबे क़द्र के बारे में
अल्लामा आलूसी (रहमतुल लाहि अलैह) फरमाते हैं कि जहाँ तक हो सके इस रात में अलग अलग किस की इबादत करे जैसे नफ्ल पढ़ना, कुराने करीम की तिलावत करना, ज़िक्र करना और तस्बीह पढ़ना, दुआ और इस्तेग्फार करना इन सब का कुछ न कुछ हिस्सा अदा करे

हज़रत सूफ़ियान सोरी (रहमतुल लाहि अलैह) फ़रमाते हैं कि शबे क़द्र में दुआ करना, इस्तेग्फार करना नफ्ल पढने से ज़्यादा अफज़ल है, अगर कोई शख्स क़ुरान की तिलावत और दुआ व इस्तेग्फार दोनों को जमा करे ( यानि दोनों को पढ़ें ) तो ये और भी बेहतर है


शबे क़द्र की नफ़्ल नमाज़े 

4 रकात नमाज़ इस तरह पढ़े की हर रकात में एक बार अल्हम्दो शरीफ एक बार इन्ना अन्ज़लना और 27 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ पढ़े। इंशाल्लाह अल्लाह करीम आपको गुनाहो से पाक फरमा देगा।

कम से कम 2 रकात ही खुलूस के साथ इस तरह पढ़े की हर रकात में सूरह फातेहा के बाद 1 बार इन्ना अन्ज़लना और 3 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ पढ़े। इंशाल्लाह आपको शबे कद्र की बरकत हासिल होगी।

हज़रत अली शेरे खुदा फरमाते हैं, जो आदमी इस रात 7 बार सूरह अल क़द्र इन्ना अन्ज़लना पढ़ेगा। अल्लाह पाक उसे बलाओं और मुसीबतो से बचाता हैं, और 70 हज़ार फ़रिश्ते उसके लिए जन्नत की दुआ करते हैं।

हज़रत बीबी आइशा फरमाती हैं मैने अर्ज़ किया या रसुल्लाह, शबे क़द्र की रात क्या दुआ माँगे। आपने फ़रमाया अल्लाहुम्मा इन्नका अफुउन तुहिब्बुल अफ़्व फअफ़ो अन्नी।

2 रकात नमाज़ इस तरफ पढ़े की हर रकात में सूरह फातेहा के बाद 7 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ और सलाम फेरने के बाद 70 बार अस्तग़फिरउल्लाह व अतूबो इलैहि पढ़े। अल्लाह पाक उसे और उसके माँ बाप के गुनाहो को बक्श देगा।

4 रकात नमाज़ इस तरफ पढ़े की हर रकात में सूरह फातेहा के बाद 3 बार इन्ना अन्ज़लना और 7 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ पढ़े। इंशाल्लाह मौत के वक़्त की बेचैनी से महफूज़ रहेंगे।

4 रकात नमाज़ इस तरह पढ़े की हर रकात में अल्हम्दो शरीफ के बाद एक बार इन्ना अन्ज़लना और 27 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ पढ़े। इस नमाज़ की बरकत से गुनाह माफ़ हो जायेंगे और अल्लाह पाक आपको जन्नत में आला मक़ाम अता फरमाएगा।

4 रकात नमाज़ इस तरह पढ़े की हर रकात में अल्हम्दो शरीफ के बाद 3 बार इन्ना अन्ज़लना और 50 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ पढ़े और सलाम फेरने के बाद सजदे में सर रखकर एक बार सुब्हानल्लाहे वल्हम्दुलिल्लाहे व लाइलाहा इल्लल्लाहो वल्लाहो अकबर पढ़े। इंशाल्लाह आपको इस मुबारक रात की बेपनाह नेअमते नसीब होगी। इस रात 2 रकात तयीहतुल वुदु और 2 रकात तहियतुल मस्जिद पढ़ना भी बहुत सवाब रखता हैं।

इस रात अगर वक़्त मिले तो कम से कम एक बार सलातुल तस्बीह ज़रूर पढ़ने की कोशिश करे यह इतनी फ़ज़ीलत वाली नमाज़ हैं। अगर यह नमाज़ ज़िन्दगी में अगर एक बार भी पढ़ ली तो इसकी फ़ज़ीलत से इंशाल्लाह बन्दे के गुनाह माफ़ हो जाते हैं। लिहाज़ा कोशिश करे की यह नमाज़ रोज़ न पढ़ सके तो हफ्ते में एक बार वो भी न हो तो महीने में एक बार तो ज़रूर पढ़े।

सलातुल तस्बीह नमाज़ का तरीका
4 रकात नफ़्ल नमाज़ की नियत करे और नियत करने के बाद 15 बार सुब्हानल्लाहे वल्हम्दुलिल्लाहे व लाइलाहा इल्लल्लाहो वल्लाहो अकबर पढ़े अल्हम्दो और सूरत पढ़ने के बाद रुकू में जाने पहले यही तस्बीह 10 बार पढ़े रुकू में सुब्हान रब्बियल अज़ीम पढ़ लेने के बाद 10 बार रुकू से उठने के बाद सजदे में जाने से पहले 10 बार सजदे में जाने पर सुब्हान रब्बियल आला पढ़ लेने के बाद 10 बार फिर दूसरे सजदे में 10 बार यही तस्बीह पढ़े इस तरह हर रकात में 75 बार यह तस्बीह पढ़ी जाएगी और 4 रकात में 300 बार हो जाएगी।



इस दौरान पूरी रात अल्लाह की इबादत की जाती है और दिल से दुआ मांगी जाती है। कहा जाता है कि जो भी दुआएं मांगी जाती हैं, वो हमेशा कबूल होती हैं।

 मुस्लिम ग्रंथ के अनुसार इस रात कुरान की आयतों को दुनिया पर जिब्रील नाम के फरिशते के जरिए पैगम्बर मुहम्मदपर नाज़िल होना शुरू हुआ था।


शब-ए-कद्र का महत्व
रमज़ान के महीने में शब-ए-कद्र की रात आती है, जिसे हज़ार महीने की रात से बेहतर समझा जाता है। इस दौरान की जाने वाली हर इबादत का दोगुना सवाब मिलता है। अगर सच्चे दिल से अपने गुनाह की माफी मांगी जाती है, तो अल्लाह माफ कर देता है। (दुनिया की सबसे पुरानी मस्जिद)

कुरान के अनुसार अल्लाह सबको माफ कर देगा लेकिन 4 लोग ऐसे हैं जिनकी बख़्शिश नहीं होती, लेकिन वो लोग कौन हैं? आइए जानते हैं।

शराब पीने वाला
कीना (नफरत) रखने वाला
मां-बाप की नाफरमानी करने वाला
रिश्तेदारों से लड़ने वाला




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Allah ke 99 naam ki fazilat in Hindi अल्लाह के 99 नाम की फ़ज़ीलत

Allah ke 99 naam ki fazilat in Hindi अल्लाह के 99 नाम की फ़ज़ीलत

Allah ke 99 naam ki fazilat in Hindi अल्लाह के 99 नाम की फ़ज़ीलत
मशहूर है कि कुरआन में 99 (निन्यानवें) नाम ऐसे हैं, जो सब पर जाहिर हैं और एक नाम ऐसा है, जो गुप्त रखा है जो 'इस्मे आजम' है। विभिन्न सहाबए अकराम ने इसे 'इस्मे आजम' के जो संकेत दिए हैं, वे किसी एक नाम से नहीं हैं।


हदीस शरीफ में आया है कि रसूल-अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया कि-

अल्लाह त'आला के 'अस्मा-ए-हुस्ना' जिनके साथ हमें दुआ मांगने का हुक्म दिया गया है, 99वें हैं। जो व्यक्ति इनको याद कर लेगा और उनको पढ़ता रहेगा वह जन्नत में जाएगा।

इस हदीस में जिन 99 नामों का वर्णन है, उनमें से अधिकतर नाम कुरआन करीम में दिए गए हैं। केवल कुछ नाम ऐसे हैं, जो बिल्कुल उसी रूप में कुरआन में नहीं हैं, लेकिन उनका भी स्रोत, जिससे वे नाम निकले हैं, क़ुरआन में दिए हैं, जैसे 'मुन्तक़िम' तो क़ुरआन में नहीं है मगर 'ज़ुनतिक़ाम' क़ुरआन में आया है।

अल्लाह त'आला के 'अस्मा-ए-हुस्ना' जिनका जिक्र आयत 'व लिल्लाहिल अस्मा उल हुस्ना फदऊहो बिहा' (और अल्लाह के सब ही नाम अच्छे हैं, उन नामों से उसको पुकारो) में आया है, इस निन्यानवें नामों पर आधारित नहीं हैं, बल्कि इनके अतिरिक्त और नाम क़ुरआन व हदीस में आए हैं, उनके साथ दुआ करनी चाहिए, लेकिन अपनी ओर से कोई ऐसा नाम जो क़ुरआन व हदीस में नहीं आया है, नाम के तौर पर नहीं ले सकते यद्यपि उसका अर्थ ठीक भी हो।

अल्लाह के पवित्र नि‍न्यानवें नाम

1. अल्लाह
यह अल्लाह का जाती नाम है, जो कि अल्लाह के नामों में सर्वप्रथम आया है। बाकी सारे नाम सिफ़ाती (गुणात्मक) हैं।

जो व्यक्ति 1000 बार 'या अल्लाह' पढ़ेगा मन की सारी शंकाएँ दूर हो जाएँगी और विश्वास की शक्ति पाएगा। जो ला-इलाज रोगी बिला गिनती 'या अल्लाह' पढ़े और दुआ करे तो इन्शाअल्लाह ठीक होगा। जो व्यक्ति जुमे के दिन नमाज़ से पहले पाक होकर एकांत में दो सौ बार पढ़े उस की कठिनाई दूर हो।

2. अर्‌-ऱहमान (बहुत दया करने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना हर नमाज के बाद 100 बार 'या ऱहमान' पढ़ेगा, उसके दिल से हर प्रकार की सख़्ती और सुस्ती दूर हो जाएगी, इन्शाअल्लाह।

3. अर्‌-ऱहीम (बहुत कृपाकरने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना हर नमाज के बाद 100 बार 'या ऱहीम' पढ़ेगा, तमाम सांसारिक कष्टों से बचा रहेगा और सारी मख़लूक़ (सृष्टि) उस पर मेहरबान होगी इन्शाअल्लाह।

4. अल्‌-मलिक (सबका स्वामी)
जो व्यक्ति रोज़ाना फ़ज्र (सुबह की) नमाज के बाद या मलिक बे-गिनती मात्रा में पढ़ेगा अल्लाह ताला उसे ग़नी (धनी) बना देंगे।

5. अल्‌-क़ुद्दूस (बहुत पवित्र)
जो व्यक्ति रोज़ाना दोपहर से पहले या क़ुद्दूस बेहिसाब पढ़ेगा, उसका दिल विकारों से पाक हो जाएगा।

6. अस्‌-सलाम (निष्कलंक/बे-ऐब)
जो व्यक्ति बेहिसाब या सलाम पढ़ता रहेगा तमाम आफतों (कष्टों) से बचा रहेगा। जो व्यक्ति 115 बार पढ़कर बीमार पर फूँकेगा अल्लाह त'आला उसे ठीक कर देंगे। अगर मरीज के सरहाने बैठकर दोनों हाथ उठाकर 39 बार तेज आवाज से पढ़े कि मरीज सुन ले, इन्शा अल्लाह वह मरीज ठीक होगा।

और अल्लाह तुम्हारे छिपे हुए और सामने दिखते हुए सब हाल जानते हैं।

7. अल-मु मिन (ईमान देने वाला)
जो व्यक्ति किसी भय के समय 630 बार या मु मिन पढ़े, वह हर प्रकार के भय व हानि से बचा रहेगा। जो व्यक्ति इस नाम को लिखकर अपने पास रखे या बेहिसाब पढ़े वह पूर्णतः अल्लाह की शरण में रहेगा।

8. अल्‌-मुहैमिन (चौकसी करने वाला)
जो व्यक्ति स्नान करके दो रकत नमाज़ पढ़े और शुद्ध मन से 100 बार या मुहैमिन पढ़ेगा, अल्लाह त'आला उसको आंतरिक और बाहरी रूप से पाक कर देंगे। जो व्यक्ति 115 बार पढ़े इन्शा अल्लाह उस पर छिपी हुई चीजें खुल जाएँगी।

9. अल्‌-'अज़ीज़ (अविजयी)
जो व्यक्ति 40 दिन तक 40 बार या अज़ीज़ पढ़ेगा अल्लाह त'आला उसको इज्जतदार बना देंगे। जो व्यक्ति फ़ज्र की नमाज़ के बाद 41 बार पढ़ता रहे वह इन्शा अल्लाह किसी का आश्रित न हो और अनादर के बाद आदर पाए।

10. अल्‌-जब्बार (सबसे शक्तिमान)
जो व्यक्ति रोजाना सुबह-शाम 226 बार या जब्बार पढ़ेगा इन्शा अल्लाह ज़ालिमों के ज़ुल्म से बचा रहेगा और जो व्यक्ति चाँदी की अँगूठी पर यह नाम खुदवा कर पहने उसका भय व सम्मान लोगों के दिलों में पैदा होगा।

और वे ही अल्लाह त'आला अपने बन्दों के ऊपर शक्तिमान और महान हैं और वे ही बड़े बुद्धिमान हैं तथा पूरी जानकारी रखते हैं।

11. अल्‌-मु-त-कब्बिर (बड़ाई और बुज़ुर्गी वाला)
जो व्यक्ति बिला हिसाब या मु-त कब्बिर पढ़ेगा अल्लाह त'आला उसे इज्जत व बड़ाई देंगे और यदि हर काम के शुरू में यह नाम बेहिसाब पढ़े तो इन्शा अल्लाह उसमें कामयाब होगा।

12. अल्‌-ख़ालिक (पैदा करने वाला)
जो व्यक्ति सात रोज तक बराबर 100 बार या ख़ालिक पढ़ेगा इन्शा अल्लाह तमाम आफतों (आपदाओं) से बचा रहेगा। जो व्यक्ति हमेशा पढ़ता रहे तो अल्लाह पाक एक फ़रिश्ता पैदा कर देते हैं, जो उसकी ओर से इबादत करता है और उसका मुख प्रकाशमान रहता है।

13. अल्‌-बारी (जान डालने वाला)
अगर बाँझ औरत सात रोजे रखे और पानी से अफ़्तार करने के बाद 21 बार अल्‌-बारि-उल-मु़सव्विर पढ़े तो इन्शा अल्लाह उसे पुत्र नसीब हो।

14. अल्‌-मु़सव्विर (आकार देने वाला)
देखें अल्‌-बारी।

15. अल्‌-ग़फ़्फ़ार (क्षमा करने वाला)
जो व्यक्ति जुमे की नमाज के बाद 100 बार या ़ग़फ़्फ़ार पढ़ा करेगा उस पर मग़फ़िरत (मोक्ष) के निशान ज़ाहिर होने लगेंगे। जो व्यक्ति अस्र की नमाज़ के बाद रोज़ाना या ग़फ़्फ़ारो इग़फ़िरली पढ़ेगा अल्लाह त'आला उसे बख़्शे हुए (मोक्ष प्रदान किए हुए) लोगों में दाख़िल करेंगे।

16. अल्‌-क़ह्‌हार (सबको अपने वश में रखने वाला)
जो व्यक्ति संसार के मोह में जकड़ा हो बेहिसाब या क़ह्‌हार पढ़े तो संसार का मोह उसके दिल से जाता रहे और अल्लाह की मुहब्बद पैदा हो जाए। शत्रुओं पर विजय पाए। अगर चीनी के बरतन पर लिखकर ऐसे व्यक्ति को पिलाया जाए, जो कि जादू के कारण औरत के अयोग्य हो तो जादू दूर हो जाए। इन्शा अल्लाह।

और अल्लाह को लोगों के सब कामों का पूरा ज्ञान हैं।

17. अल्‌-वह्‌हाब (सब-कुछ देने वाला)
जो व्यक्ति गरीबी का शिकार हो वह बेहिसाब या वह्‌हाब पढ़ा करे या लिखकर अपने पास रखे या चाश्त की नमाज़ के आख़िरी सजदे में 40 बार पढ़ा करे तो अल्लाह त'आला उसकी गरीबी को अजूबे के तौर से दूर कर देंगे। यदि कोई विशेष इच्छा हो तो घर या मस्जिद के सहन में तीन बार सज्दा करके हाथ उठाए और 100 बार पढ़े, इन्शा अल्लाह इच्छा पूरी हो तथा शत्रु के डर से सुखी हो।

18. अर्‌-रज़्ज़ाक़ (रोज़ी देने वाला)
जो व्यक्ति सुबह की नमाज़ (फ़ज्र) से पहले अपने मकान के चारों कोनों से दस-दस बार या रज़्ज़ाक़ पढ़कर फूँकेगा अल्लाह त'आला उस पर रिज़्क़ के दरवाजे खोल देंगे और बीमारी व गरीबी उसके घर में हरगिज न आएगी। दाहिने कोने से शुरू करें और मुँह क़िबले की तरफ रखें।

19. अल्‌-फ़त्ता़ह (कठिनाई दूर करने वाला)
जो व्यक्ति फ़ज्र की नमाज़ के बाद दोनों हाथ सीने पर रखकर 71 बार या फ़त्ता़ह पढ़ा करेगा इन्शा अल्लाह उसका दिल नूरे-ईमान से जगमगा जाएगा। सारे काम व अन्न प्राप्ति आसान हो जाए।

20. अल्‌-'अलीम (बहुत ज्ञानी)
जो व्यक्ति बेहिसाब या 'अलीम पढ़ा करे अल्लाह त'आला उस पर इल्मो मग़फ़िरत (ज्ञान व मोक्ष) के दरवाजे खोल देंगे।

21. अल्‌-क़ाबिध (रोज़ी बन्द करने वाला)
जो व्यक्ति रोटी के चार लुक्मों पर अल्‌-काबिध लिखकर 40 दिन तक खाएगा, भूख, प्यास, घाव व दर्द आदि की तकलीफ से इन्शा अल्लाह बचा रहेगा।

22. अल्‌-बासि़त (रोज़ी खोलने वाला)
जो व्यक्ति चाश्त की नमाज़ के बाद आसमान की तरफ हाथ उठाकर दस बार या बासि़त पढ़ेगा और मुँह पर हाथ फेरेगा अल्लाह त'आला उसे गनी (धनी) बना देंगे और कभी किसी का मोहताज न होगा।

23. अल्‌-ख़ाफ़िध (छोटा करने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना 500 बार या ख़ाफ़िध पढ़ा करे अल्लाह त'आला उसकी इच्छाएँ पूरी और कठिनाइयाँ दूर कर देंगे। जो व्यक्ति तीन रोज़े रखे और चौथे रोज़ एक जगह बैठकर 70 बार पढ़े तो इन्शा अल्लाह दुश्मन पर विजयी हो।

24. अर्‌-राफ़े' (ऊँचा करने वाला)
जो व्यक्ति हर महीने की चौदहवीं रात को आधी रात में 100 बार या राफ़े' पढ़े तो अल्लाह त'आला उसे मख़्लूक़ (सृष्टि) से बेनियाज़ (अनाश्रित) और धनी कर देंगे। यदि 70 बार रोज पढ़े तो जालिमों से सुरक्षा पाए। इन्शा अल्लाह।

25. अल्‌-मोइज़्ज़ (इज़्ज़त देने वाला)
जो व्यक्ति पीर या जुमे के दिन मग़रिब के बाद 40 बार या मोइज़्ज़ पढ़ा करे अल्लाह त'आला उसको इन्शा अल्लाह लोगों में इज़्ज़तदार बना देंगे।

26. अल्‌-मुज़िल्ल (अपमानित करने वाला)
जो व्यक्ति 75 बार या मुज़िल्ल पढ़कर सजदे में सर रखकर दुआ करेगा अल्लाह त'आला उसको हासिदों, ज़ालिमों और दुश्मनों की शरारत से बचाए रखेंगे। यदि कोई खास दुश्मन हो तो सजदे में उसका नाम लेकर कि 'ऐ अल्लाह तू उस ज़ालिम या दुश्मन से बचा' दुआ करें तो दुआ इन्शा अल्लाह क़बूल होगी। जिस का हक़ दूसरे के ज़िम्मे आता हो और वह उसमें टालमटोल करता हो, बेतादाद पढ़ा करे तो वह उस का हक़ अदा कर दे। इन्शा अल्लाह।

निःसंदेह आपका रब बड़ा बनाने वाला और बड़ा ज्ञानी है।

27. अस्‌-समी' (सब-कुछ सुनने वाला)
जो व्यक्ति जुमेरात के दिन चाश्त की नमाज़ के बाद 500 बार या 50 बार या समी' पढ़ेगा इन्शा अल्लाह उसकी दुआएँ़ल क़ुबूल होंगी। बीच में किसी से बात न करें। जो व्यक्ति जुमेरात के दिन फ़ज्र की सुन्नतों और फ़रज़ों के बीच 100 बार पढ़ेगा अल्लाह त'आला उसे विशेष स्थान देंगे।

अल्लाह से छिपी नहीं है कोई वस्तु जमीन में और न आकाश में।

28. अल्‌-ब़सीर (सब-कुछ देखने वाला)
जो व्यक्ति जुमे की नमाज़ के बाद 100 बार या ब़सीर पढ़ा करेगा अल्लाह त'आला उसकी निगाह और दिल में नूर पैदा कर देंगे और नेक कामों की तौफ़ीक़ होगी।

29. अल्‌-ह़कम (निर्णय करने वाला)
जो व्यक्ति आखिर रात में 99 बार बा वज़ू या ह़कम पढ़ा करेगा अल्लाह त'आला उसके दिल में गुप्त रहस्य व नूर-भर देंगे और जो व्यक्ति जुमे की रात में या ह़कम इतना पढ़े कि बेहाल हो जाए तो अल्लाह त'आला उसके दिल को कश्फ़ो-इल्हाम (ख़ुदा के छिपे राज़ को जान लेने) से नवाज़ेंगे।

उसके अतिरिक्त किसी अन्य की इबादत (भक्ति) नहीं वह अतिमहान है अति बुद्धिमान।

30. अल्‌-'अद्ल (इंसाफ करने वाला)
जो व्यक्ति जुमे के दिन या रात में रोटी के बीस या तीस टुकड़ों पर अल्‌-'अद्ल लिखकर खाएगा अल्लाह त'आला सृष्टि (मख़्लूक़) को उसके आधीन कर देंगे।

31. अल्‌-ल़तीफ़ (कृपा करने वाला)
जो व्यक्ति 133 बार या ल़तीफ़ पढ़ा करे, उसकी धन वृद्धि हो तथा समस्त इच्छाएँ पूरी हों। जो व्यक्ति गरीबी, दुःख, बीमारी, तन्हाई या किसी अन्य मुसीबत में पड़ा हो वह वज़ू करके दो रकत नमाज़ पढ़े और अपने मक़सद को दिल में रखकर 100 बार पढ़े इन्शा अल्लाह मक़सद पूरा हो।

और अल्लाह ही के लिए है सल्तनत आसमानों की और जमीन की और अल्लाह हर वस्तु पर पूरी कुदरत रखते हैं।

32. अल्‌-ख़बीर (जानकारी रखने वाला)
जो व्यक्ति सात दिन तक या ख़बीर अनगिनत पढ़े अल्लाह उस पर छिपे हुए रहस्य खोल देंगे। जो व्यक्ति कोई अप्रिय आदत रखता हो या किसी ज़ालिम के क़ब्ज़े में हो वह बेहिसाब पढ़े, छूट जाएगा।

33. अल्‌-ह़लीम (धैर्यवान)
इस नाम को काग़ज़ पर लिखकर पानी से धोकर जिस वस्तु पर पानी छिड़कें उसमें उन्नति हो तथा हानि से बचा रहे।

34. अल्‌-अज़ीम (अति महान)
जो व्यक्ति अधिक मात्रा में या अज़ीम पढ़े इन्शा अल्लाह आदर, उन्नति तथा हर रोग से मुक्त पाएगा।

35. अल्‌-ग़फ़ूर (मुक्ति देने वाला)
जो व्यक्ति अनगिनत या ग़फ़ूर पढ़े उसके समस्त कष्ट, दर्द, दुःख दूर हों तथा धन वृद्धि हो। जो व्यक्ति सजदे में या रब्बिग़ फ़िरली तीन बार कहे, अल्लाह त'आला उसके अगले-पिछले समस्त पाप क्षमा कर देगा।

36. अश्‌-शकूर (आदर करने वाला)
जो व्यक्ति दरिद्रता या अन्य किसी दुःख-दर्द से पीड़ित हो वह इकतालीस (41) बार या शकूर पढ़े उसका दूःख दूर होगा। जिस व्यक्ति को थकान हाती हो तथा शरीर टूटा रहता हो इस नाम को लिखकर पिए तथा शरीर पर फेरे फायदा होगा। यदि आँखों से कम दिखता हो तो लिखकर आँख पर फेरे फायदा होगा। इन्शा अल्लाह।

कह दो कि तुम (खुदा को) अल्लाह (के नाम से) पुकारो या रहमान के नाम से, जिस नाम से पुकारो, उसके सब नाम अच्छे हैं।

37. अल्‌-'अली (सबसे ऊँचा)
जो व्यक्ति हमेशा या 'अली पढ़ता रहे तथा लिखकर अपने पास रखे इन्शा अल्लाह उसकी तरक्की हो, वह खुशहाल हो और उसकी इच्छा पूरी हो। यदि मुसाफ़िर अपने पास रखे तो जल्द अपने संबंधियों के पास वापस आए।

38. अल्‌-कबीर (बहुत बड़ा)
जो व्यक्ति अपने पद से हटा दिया गया हो, वह सात रोजे (व्रत) रखे और रोजाना एक हजार बार या कबीर पढ़े अपना पद पुनः पाएगा तथा उन्नति व विजय मिलेगी। यदि खाने की चीज पर पढ़कर खिलाए तो पति-पत्नी में परस्पर प्रेम हो।

39. अल्‌-ह़फ़ीज़ (सबका रक्षक)
जो व्यक्ति अनगिनत या ह़फ़ीज़ पढ़े और लिखकर अपने पास रखे, वह हर प्रकार के भय व हानि से सुरक्षित रहेगा। यदि जंगली जानवरों के बीच सो जाए तो कोई हानि न पहुँचे।

40. अल्‌-मुक़ीत (सबको रोज़ी व शक्ति देने वाला)
जो व्यक्ति खाली बर्तन में सात बार या मुक़ीत पढ़कर फूँके और स्वयं उससे पानी पिए या दूसरे को पिलाए या सूँघे तो इन्शा अल्लाह इच्छा पूर्ति हो। यदि रोजेदार मिट्टी पर पढ़कर या लिखकर पानी से तर करके सूँघे तो शक्ति प्राप्त हो और यदि यात्री मिट्टी के बर्तन पर सात बार पढ़कर या लिखकर उससे पानी पिए तो यात्रा के दुख से बचा रहे। यदि किसी का बच्चा बुरे स्वभाव रखता हो, उसे पानी पिलाए तो स्वभाव अच्छा हो।

और जो लोग उसके नामों में टेढ़ (अपनाया) करते हैं, उनको छोड़ दो।

41. अल्‌-ह़सीब (सबकी पूर्ति करने वाला)
जिस व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति या दुर्घटना का भय हो वह वृहस्पतिवार से आरंभ करके आठ दिन तक सुबह व शाम के समय सत्तर बार ह़स्बेयल्ला हुल्ह़सीब पढ़े। वह हर हानि से बचा रहे।

42. अल्‌-जलील (बड़े व ऊँचे प्रभुत्व वाला)
जो व्यक्ति कस्तूरी (मुश्क) व केसर (जाफरान) से अल जलील लिखकर अपने पास रखे तथा या जलील बहुधा पढ़ा करे आदर, सत्कार व उन्नति पाएगा।

43. अल्‌-करीम (बहुत कृपा करने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना सोते समय या करीम पढ़ते-पढ़ते सो जाया करे अल्लाह उसे ज्ञानी-ध्यानी का आदर देंगे।

44. अर्‌-रक़ीब (बड़ी दृष्टिरखने वाला)
जो व्यक्ति रोज सात बार या रक़ीब पढ़कर अपने परिवार धन-सम्पत्ति पर फूँके इन्शा अल्लाह सब आपदाओं से सुरक्षित रहे।

45. अल्‌-मुजीब (दुआएँ स्वीकार करने वाला)
जो व्यक्ति या मुजीब अधिक मात्रा में पढ़ा करे इन्शा अल्लाह उसकी दुआएँ क़ुबूल होने लगेंगी।

46. अल्‌-वासे' (बहुत अधिक देने वाला)
जो अधिक मात्रा में या वासे' पढ़ा करे अल्लाह त'आला उसकी आय वृद्धि कर देंगे।

47. अल्‌-ह़कीम (बुद्धिमान)
जो व्यक्ति अधिक मात्रा में या ह़कीम पढ़ा करे अल्लाह त'आला उसकी बुद्धि का विकास कर देंगे। जिसका कोई कार्य पूरा न होता हो वह कार्य पूरा होगा।

48. अल्‌-वदूद (बड़ा प्रेम करने वाला)
जो व्यक्ति एक हजार बार या वदूद पढ़कर खाने पर फूँके और अपनी पत्नी के साथ खाना खाए, पति-पत्नी का झगड़ा समाप्त हो और परस्पर प्रेम उत्पन्न हो।

49. अल्‌-मजीद (बड़ा महान)
जो व्यक्ति किसी संक्रामक रोग जैसे आत्शिक, कोढ़ आदि से पीड़ित हो वह चन्द्रमास की 13, 14, 15 तारीख को रोजे (वृत) रखे और अफ़तार के बाद बे-गिनती या मजीद पढ़े और पानी पर फूँककर पिए तो इन्शा अल्लाह रोग मुक्त हो।

50. अल्‌-बाइस (मुर्दों को जीवित करने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना सोते समय सीने पर हाथ रखकर 101 बार या बाइस पढ़े वह मन ज्ञान से भर जाएगा।

51. अश्‌-शहीद (हर जगह उपस्थित और देखने वाला)
जिस व्यक्ति की पत्नी या औलाद आज्ञाकारी न हो वह सुबह के समय उसके माथे पर हाथ रखकर 21 बार या शहीद पढ़कर फूँके, आज्ञाकारी होगी।

52. अल्‌-ह़क़्क़ (सत्य)
जो व्यक्ति वर्गाकार (चौकोर) कागज के कोनों पर अल्‌-ह़क़्क़ लिखकर प्रातःकाल हथेली पर रख आसमान की ओर ऊँचा करके दुआ करे, खोया हुआ व्यक्ति या सामान मिल जाए और हानि से बचा रहे।

53. अल्‌-वकील (कार्य सफल करने वाला)
जो व्यक्ति किसी भी आसमानी आफत या भय के समय बे-गिनती या वकील पढ़े वह हर हानि से बचा रहे। हर इच्छा की पूर्ति के लिए पढ़ना लाभकारी है।

54. अल्‌-क़वी (बड़ा शक्तिमान)
जो व्यक्ति वास्तव में शत्रु द्वारा पीड़ित हो तथा शत्रु शक्तिशाली हो तो अनगिनत या क़वी पढ़े तो शत्रु से सुरक्षित रहे। (असहनीय स्थिति के अतिरिक्त यह हरगिज़ न पढ़ें)

55. अल्‌-मतीन (मज़बूत)
जिस स्त्री के दूध न हो उसको अल्‌-मतीन काग़ज़ पर लिख, धोकर पिलाएँ, खूब दूध होगा। यदि कोई कमजोर व्यक्ति या मतीन पढ़े शक्तिशाली हो। यदि किसी कुकर्मी व्यक्ति पर पढ़ा जाए, वह कुकर्मों को छोड़ दें। इन्शा अल्लाह।

56. अल्‌-वली (मदद और हिमायत करने वाला)
जो व्यक्ति अपनी बीवी (पत्नी) की आदतों व व्यवहार से अप्रसन्न हो, जब उसके सामने जाए या वली पढ़ा करें, अच्छे व्यवहार की हो जाए। जब कोई कष्ट हो तो जुमे की रात (शुक्रवार की रात) में 1000 बार पढ़ें, कष्ट दूर हो।

57. अल्‌-ह़मीद (प्रशंसनीय)
जो व्यक्ति 45 दिन तक बराबर एकांत में या हमीद 93 बार पढ़े उसकी सारी बुरी आदतें दूर हो जाएँगी।

58. अल्‌-मु़ह़सी (गणना करने वाला)
जो व्यक्ति रोटी के 20 टुकड़ों पर रोजाना या मु़ह़सी पढ़कर फूँके और खाए तो सारी सृष्टि उससे प्रेम करने लगे।

59. अल्‌-मुब्दी (पहली बार पैदा करने वाला)
जो व्यक्ति प्रातः समय गर्भवती स्त्री के पेट पर हाथ रखकर 99 बार या मुब्दी पढ़ेगा उसका गर्भ न तो गिरेगा और न समय से पहले शिशु पैदा होगा।

60. अल्‌-मु'ईद (दोबारा पैदा करने वाला)
खोए हुए व्यक्ति को वापस लाने के लिए जब घर के सब लोग सो जाएँ, तो घर के चारों कोनों में 70-70 बार या मु'ईद पढ़ें, इन्शा अल्लाह सात दिन में वापस आ जाए या पता चल जाए।

61. अल्‌-मु़हयी (जीवित करने वाला)
जो व्यक्ति बीमार हो वह या मु़हयी पढ़े या किसी दूसरे बीमार पर फूँके तो रोग मुक्त हो। जो व्यक्ति 89 बार पढ़ अपने ऊपर फूँके, हर प्रकार की कैद से सुरक्षित रहे।

62. अल्‌-मुमीत (मृत्यु देने वाला)
जिस व्यक्ति का मन वश में न हो वह सोते समय सीने पर हाथ रखकर या मुमीत पढ़ते-पढ़ते सो जाए, मन वश में हो जाए।

63. अल्‌-ह़ैय्य (सदैव जीवित रहने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना 3000 बार या ह़ैय्य पढ़े कभी बीमार न हो। जो व्यक्ति चीनी के बर्तन पर केसर व गुलाब से लिखकर पानी से धोकर पिए या पिलाए, रोग मुक्त हो।

64. अल्‌-क़ैय्यूम (सबको क़ायम रखने और संभालने वाला)
जो व्यक्ति अनगिनत या क़ैय्यूम पढ़े तो लोगों में उसका आदर व साख हो। यदि एकांत में बैठकर पढ़े, धनी हो जाए। जो व्यक्ति फ़ज्र की नमाज़ (सुबह की नमाज़) के बाद से सूर्य निकलने तक या ह़ैय्यो या क़ैय्यूम पढ़े उसकी सुस्ती दूर हो।

65. अल्‌-वाजिद (हर वस्तु को पाने वाला)
जो व्यक्ति खाना खाते समय या वाजिद पढ़े उसके मन में शक्ति, बल तथा प्रकाश उत्पन्न हो।

66. अल्‌-माज़िद (आदरणीय)
जो व्यक्ति एकांत में या माज़िद इतना पढ़े कि मूर्छित (बेख़ुद) हो जाए तो उसके मन में अल्लाह के रहस्य प्रकट होने लगें। यदि खाने पर पढ़कर खाएँ तो शक्ति प्राप्त हो।

67. अल्‌-वा़हिदुल अहद (एक अकेला)
जो व्यक्ति रोजाना 1000 बार या वा़िहदुल अहद पढ़ा करे उसके दिल से भय जाता रहे और प्रेम उत्पन्न हो। जिसके औलाद न हो वह लिखकर पास रखे इन्शा अल्लाह औलाद हो।

68. अस्‌-स़मद (जिसकी कोई इच्छा न हो)
जो व्यक्ति प्रातः समय सजदे में सर रखकर 115 या 125 बार या ़समद पढ़े उसको हर प्रकार सचाई प्राप्त हो। वज़ू करके पढ़े तो किसी अन्य की कोई आवश्यकता न रहे। जब तक पढ़ता रहे भूख का असर न हो।

69. अल्‌-क़ादिर (सबसे शक्तिमान)
जो व्यक्ति दो रकत नमाज पढ़कर 1000 बार या क़ादिर पढ़े उसके शत्रुओं का विनाश हो (यदि वह सत्य पर हो)। यदि किसी कार्य में बाधा आती हो तो 41 बार पढ़े इन्शा अल्लाह बाधा दूर होगी।

70. अल्‌-मुक़्तदिर (कुदरत वाला)
जो व्यक्ति सोकर उठने के बाद अनगिनत या मुक़्तदिर पढ़े या कम से कम 20 बार पढ़े उसके सारे काम सरल व ठीक हो जाएँ।

71. अल्‌-मुक़द्दिम (पहले और आगे करने वाला)
जो व्यक्ति लड़ाई के समय या मुक़द्दिम पढ़ता रहे अल्लाह त'आला उसे शत्रु से आगे व सुरक्षित रखेगा। जो व्यक्ति हर समय पढ़ता रहे अल्लाह त'आला का आज्ञाकारी बन जाएगा।

72. अल्‌-मुअख़्ख़िर (पीछे और बाद में रखने वाला)
जो व्यक्ति या मुअख़्ख़िर पढ़ता रहे उसे सच्ची तौबा प्राप्त हो। जो व्यक्ति 100 बार रोज पढ़ा करे उसके मन को अल्लाह त'आला का प्रेम प्राप्त हो।

73. अल्‌-अव्वल (सबसे पहले)
जिस व्यक्ति के पुत्र उत्पन्न न होता हो वह 40 दिन तक 40 बार रोज या अव्वल पढ़े, पुत्र उत्पन्न हो। जो यात्री जुमे (शुक्रवार) के दिन 100 बार पढ़े जल्द सकुशल वापस आए।

74. अल्‌-आख़िर (सबके बाद)
जो व्यक्ति रोज 1000 बार या आख़िर पढ़े उसके मन से अल्लाह के अतिरिक्त सब का प्रेम मिट जाए तथा इन्शा अल्लाह सारी उम्र के पापों का प्रायश्चित हो जाए और सुखद जीवन अन्त (मृत्यु) हो।

75. अज़्‌-ज़ाहिर (सामने)
जो व्यक्ति नमाज जुमा के बाद 500 बार या या ज़ाहिर पढ़े उसके मन में अल्लाह का नूर (प्रकाश) उत्पन्न हो।

76. अल्‌-बा़तिन (गुप्त)
जो व्यक्ति 33 बार रोजाना या बा़ितन पढ़ा करे उस पर गुप्त रहस्य प्रकट होने लगें तथा अल्लाह का प्रेम उसके मन में पैदा हो। जो व्यक्ति दो रकत नमाज पढ़कर हो वल्‌ अव्वलो वल्‌ आख़िरो वज़्ज़ाहिरो वल्‌ बा़ितनो व हु-व' अला कुल्ले शैइन क़दीर पढ़ा करे इन्शा अल्लाह उसकी सारी इच्छाएँ पूरी होंगी।

निःसंदेह अलाह त'आला इन्साफ करने वालों से प्रेम करते हैं।

77. अल्‌-वाली (काम बनाने वाला)
जो व्यक्ति या वाली पढ़ा करे प्राकृतिक आपदाओं (कुदरती आफतों) से सुरक्षित रहे। मिट्टी की कोरी सकोरी में लिखकर पानी भरकर मकान में छिड़के तो मकान सुरक्षित रहे। यदि 11 बार पढ़कर किसी पर फूँके तो आज्ञाकारी हो।

78. अल्‌ मु-त-'आली (सबसे महान व ऊँचा)
जो व्यक्ति अनगिनत या मु-त'-आली पढ़ा करे उसके समस्त कष्ट दूर हो जाएँ। जो स्त्री मासिक धर्म के समय में पढ़े उसका कष्ट दूर हो।

80. अल्‌-बर्र (बड़ा अच्छा व्यवहार करने वाला)
जो व्यक्ति शराब पीता हो, बलात्कार आदि बुरी आदतों में पड़ा हो रोजाना 7 बार या बर्र पढ़े, पापों से उसका मन हट जाएगा। यदि बच्चे के पैदा होते ही 7 बार पढ़कर उस पर फूँकें तो बड़े होने तक समस्त आपदाओं (मुसीबतों) से सुरक्षित रहे।

और जिस पर चाहेगा अल्लाह त'आला तवज्जह भी फरमा देगा और अल्लाह त'आला बड़े ज्ञान वाले और बड़े बुद्धिमान हैं।

80. अत्‌-तव्वाब (क्षमा देने वाला)
जो व्यक्ति चाश्त की नमाज़ के बाद 360 बार ग तव्वाब पढ़े उसे सच्ची तौबा प्राप्त हो। अनगित पढ़े, उसके सारे कार्य सफल हों। यदि किसी जालिम पर 10 बार पढ़े तो उससे सुरक्षा प्राप्त हो।

तुम (सब) को अल्लाह ही के पास जाना है और वह वस्तु पर पूरी कुदरत रखते हैं।

81. अल्‌-मुन्तक़िम (बदला लेने वाला)
जो व्यक्ति सत्य पर हो और शत्रु से बदला लेने की शक्ति न रखता हो तीन जुमे (शुक्रवार) तक या मुन्तक़िम अनगिनत पढ़े, अल्लाह त'आला खुद बदला लेंगे।

82. अल्‌-'अफ़ूव्व (बहुत क्षमा करने वाला)
जो व्यक्ति अनगिनत या 'अफ़ूव्व पढ़े अल्लाह त'आला उसे पाप मुक्त कर देंगे।

83. अर्‌-रऊफ़ (बहुत बड़ा दयालु)
जो व्यक्ति अनगिनत या रऊफ़ पढ़े सृष्टि (मख़लूक़) उस पर दयावान हो और सृष्टि पर। रोजाना 10 बार दरूद शरीफ़ व 10 बार पढ़े तो क्रोध दूर हो। दूसरे क्रोधी व्यक्ति पर पढ़े तो उसका क्रोध दूर हो।

84. मालिक-उल्‌-मुल्क (सम्राटों का सम्राट)
जो व्यक्ति या मालिक-अल्‌-मुल्क सदैव पढ़ता रहे अल्लाह त'आला उसको धनी कर देंगे और वह किसी का आश्रित न रहेगा।

85. ज़ुल्‌ जलाल-ए-वल्‌ इकराम (महानता व इनाम देने वाला)
जो व्यक्ति अनगिनत 'या ज़ल जलाल-ए-वल्‌ इकराम' पढ़े अल्लाह उसको आदर-सत्कार एवं उन्नति देंगे। यदि या ज़ल जलाल ए वल्‌इकराम बेयदे कल्‌ खैर व अन्‌ त अला कुल्ले शै इन क़दीर 100 बार पढ़कर पानी पर फूँककर रोगी को पिलाएँ तो वह रोग मुक्त हो।

86. अल्‌-मुक़सित (न्याय करने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना या मुक़सित 100 बार पढ़ा करे वह शैतान से सुरक्षित रहेगा। यदि 700 बार रोज पढ़े तो जो इच्छा हो, पूर्ण हो।

अल्लाह तआला के 99 नाम

87. अल्‌-जाम्‌ए' (सबको इकट्ठा करने वाला)
जिस व्यक्ति के परिवारजन या साथी बिछुड़ गए हों वह फ़ज्र के साथ स्नान करके आकाश की ओर मुँह करके 10 बार या जामे' पढ़े और एक उँगली बन्द करे। इसी प्रकार हर 10 बार पर एक उँगली बन्द करता जाए। अन्त में दोनों हाथ, मुँह पर फेरे, सब जमा हो जाएँ। यदि कोई वस्तु खो जाए तो अल्लाह-हुम्मा या जामे 'अन्नास-ए-ले यौमिल्ला-रै-ब-फ़ीह-ए-इज्‌-म'धाल्‌लती पढ़ा करे वह वस्तु मिल जाए। सच्चे प्रेम के लिए भी यह दुआ प्रमाण है।

88. अल्‌-ग़नी (आत्म निर्भर)
जो व्यक्ति रोजाना 70 बार या ग़नी पढ़े वह धनी होगा और किसी का आश्रित न रहे। किसी आंतरिक या बाह्य रोग का रोगी अपने शरीर पर या ग़नी पढ़कर फूँके तो रोग मुक्त हो।

89. अल्‌-मुग़नी (धनी बनाने वाला)
जो व्यक्ति पहले व बाद में 11-11 बार दरूद शरीफ और 1111 बार या मुग़नी पढ़े वह धनी व स्वस्थ होगा। फ़ज्र की नमाज़ के बाद या इशा की नमाज़ के बाद सूरत मुज़म्मिल के साथ पढ़े। जो व्यक्ति दस जुमे (शुक्रवार) तक रोज 1000 बार या मुग़नी पढ़े किसी पर आश्रित न रहे। (कुछ सूफ़ियों ने 10 बार कहा है।)

आप कह दीजिए कि अल्लाह ही हर वस्तु का बनाने वाला है और वही एक है, शक्तिमान है।

90. अल्‌-मान्‌ ए' (रोक देने वाला)
यदि पत्नी से झगड़ा हो तो बिस्तर पर लेटते समय 20 बार या मान्‌ ए' पढ़ें, झगड़ा दूर हो। आपस में प्रेम बढ़े। अनगिनत पढ़े तो हर कष्ट से सुरक्षित हो। इच्छा पूर्ति हो।

91. अध-धार्र (हानि पहुँचाने वाला)
जो व्यक्ति जुमे (शुक्रवार) की रात्रि में 100 बार या धार्र पढ़े वह समस्त आपदाओं (मुसीबतों) से सुरक्षित रहे। उन्नति पाए।

92. अन्‌-नाफ़ए' (लाभ देने वाला)
जो व्यक्ति कश्ती या सवारी में सवार होने के बाद या नाफ़ए' पढ़ता रहे, सुरक्षित रहे। यदि किसी भी कार्य आरंभ से पूर्व 41 बार पढ़े कार्य इच्छा अनुसार पूर्ण हो। यदि पत्नी मिलन के समय पढ़े औलाद आज्ञाकारी व नेक प्राप्त हो।

93. अन्‌-नूर (प्रकाशवान)
जो व्यक्ति शुक्रवार (जुमा) की रात में 7 बार सूरत नूर और 1000 बार या नूर पढ़ा करे उसका मन प्रकाश से भर जाए।

94. अल्‌-हादी (सीधा रास्ता दिखाने वाला)
जो व्यक्ति हाथ उठाकर आकाश की ओर मुँह करके या हादी पढ़े और मुँह पर हाथ फेरे उसे मार्गदर्शन मिले। जो व्यक्ति 1100 बार या हादी ए हेदे नस्सि रातल मुस्तक़ीम इशा की नमाज के बाद पढ़ा करे, उसकी कोई इच्छा बाकी न रहे।

उसके अतिरिक्त किसी अन्य की इबादत (भक्ति) नहीं। वह अतिमहान है अति बुद्धिमान।

95. अल्‌-बदी' (अद्वितीय वस्तुओं का आविष्कार करने वाला)
जिस व्यक्ति को कोई दुःख या कष्ट आए 1000 बार या बदी-अस-समा-वात्‌-ऐ-वल्‌-अर्ध पढ़े, कष्ट दूर हों।यदि या बदी' पढ़ते-पढ़ते सो जाए, जिस काम का विचार हो, स्वप्न में दिखाई दे। जो व्यक्ति 1200 बार 12 दिन तक या बदी-अल्‌-'अजाइब्‌-ए-बिल्‌ख़ैरे-या बदी' पढ़े उसकी इच्छा पूरा पढ़ने से पहले पूरी हो।

96. अल्‌-बाक़ी (सदैव शेष रहने वाला)
जो व्यक्ति शुक्रवार (जुमा) की रात को इशा की नमाज के बाद 100 बार या बाक़ी पढ़े उसके सारे नेक काम अल्लाह त'आला स्वीकार कर लेंगे तथा वह हर प्रकार के कष्ट व हानि से सुरक्षित रहेगा।

97. अल्‌-वारिस (सबके बाद मौजूद रहने वाला)
जो व्यक्ति सूर्योदय के समय 100 बार या वारिस पढ़े, हर दुःख दर्द से सुरक्षित रहे, दीर्घायु हो तथा सुखद जीवन अन्त हो। जो व्यक्ति मग़रिब व इशा के बीच 1000 बार पढ़े हर प्रकार की हैरानी व परेशानी से सुरक्षा पाए।

98. अर्‌-रशीद (सत्यपथ का मार्गदर्शक)
जो व्यक्ति कार्य या इच्छा की तरकीब न जाने वह मग़रिब और इशा के बीच 1000 बार या रशीद पढ़े, स्वप्न में तरकीब नजर आए या मन में आ जाए। यदि रोजाना पढ़े तो समस्त कठिनाइयाँ दूर हों और व्यापार में वृद्धि हो। इशा के बाद 100 बार पढ़ें तो सब कार्य स्वीकार हों।

99. अस्‌-स़बूर (बहुत विनम्र)
जो व्यक्ति सूर्योदय से पहले 100 बार या स़बूर पढ़े वह उस दिन कष्ट से सुरक्षा पाए। शत्रुओं तथा ईर्ष्यालुओं (हासिद) के मुख बंद रहें। जो व्यक्ति किसी दुःख में हो वह 1020 बार पढ़े, दूर हो।




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दुआ ए क़ुनूत हिंदी में - Dua e Qunoot in Hindi Mai

दुआ ए क़ुनूत हिंदी में - Dua e Qunoot in Hindi Mai

दुआ ए क़ुनूत हिंदी में - Dua e Qunoot in Hindi Mai Pronunciation and translation
 

दुआए कुनुत हिंदी में
अल्लाहुम्मा इन्ना नस्तईनु क व नस-तग़-फिरू- क व नु’अ मिनु बि-क व न तवक्कलु अलै-क व नुस्नी अलैकल खैर * व नश कुरु-क वला नकफुरु-क व नख्लऊ व नतरुकु मैंय्यफ-जुरूक * अल्लाहुम्मा इय्या का न अ बुदु व ल-क- नुसल्ली व नस्जुदु व इलै-क नस्आ व नह-फिदु व नरजू रह-म-त-क व नख्शा अज़ा-ब-क इन्ना अज़ा-ब-क बिल क़ुफ़्फ़ारि मुलहिक़ *

 
 
दुआ ए कुनूत का तर्जुमा
या अल्लाह हम तुझसे मदद मांगते है
और मगफिरत तलब करते है
और तेरे उपर इमान लाते है
और तेरे उपर भरोसा रखते हैं
और तेरी बेहतर तारीफ करते हैं
और तेरा शुक्र अदा करते हैं
और तेरी ना–शुक्री नहीं करते हैं
और छोड़ देते है ऐसे सक्स को जो तेरी नाफरमानी करे
या अल्लाह हम तेरी ही इबादत करते हैं
और खास तेरे ही लिए नमाज पढ़ते हैं
और सजदह करते हैं और तेरे ही जानिब दौड़ते हैं और झपटते हैं और तेरी ही रेहमत की उम्मीद रखते हैं और तेरे आजाब से डरते हैं
तेरा अजाब काफिरों को पहुंचने वाला है !



दुआए कुनुत ईशा की नमाज की वित्र में तिसरी रेकात में सुरह फातियाः के बाद तकबीर कह कर पढ़ते हैं ! (तीसरी रकअत में रुकू में जाने से पहले खड़े होकर दुआए क़ुनूत पढ़ी जाती है ) । अगर किसी शख़्श को दुआए क़ुनूत याद नही हो तो उसे चाहिए की वो हल्द जल्द से दुआए क़ुनूत याद करने की कोशिश करे। और जब तक याद न हो जाए तब तक दुआए क़ुनूत की जगह ये दुआ पढ़ना सकते हैं।

Agar dua e qunoot yad na ho to:
“रब्बना आतिना फिद दुनिया हसनतव वफिल आखिरति हसनतव वकिना अज़ाबन नार”
तर्जुमा: ऐ हमारे रब्ब हमें दुनिया में नेकी और आख़िरत में भी नेकी दे और हमें दोज़ख ले अज़ाब से बचा।


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Surah Al Maidah in Hindi mein Translation Pronounce

Surah Al Maidah in Hindi mein Translation Pronounce

Surah Al Maidah in Hindi mein Translation Pronounce सूरह अल-मायदा का हिंदी में अनुवाद उच्चारण


5.1
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ أَوْفُوا۟ بِٱلْعُقُودِ أُحِلَّتْ لَكُم بَهِيمَةُ ٱلْأَنْعَٰمِ إِلَّا مَا يُتْلَىٰ عَلَيْكُمْ غَيْرَ مُحِلِّى ٱلصَّيْدِ وَأَنتُمْ حُرُمٌ إِنَّ ٱللَّهَ يَحْكُمُ مَا يُرِيدُ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू औफू बिल्-अुक़ूदि, उहिल्लत् लकुम् बहीमतुल-अन् आमि इल्ला मा युत्ला अलैकुम् ग़ै-र मुहिल्लिस्-सैदि व अन्तुम् हुरूमुन्, इन्नल्लाह यह़्कुमु मा युरीद
हिंदी अनुवाद
हे वो लोगो जो ईमान लाये हो! प्रतिबंधों का पूर्ण रूप[1] से पालन करो। तुम्हारे लिए सब पशु ह़लाल (वैध) कर दिये गये, परन्तु, जिनका आदेश तुम्हें सुनाया जायेगा, लेकिन एह़राम[2] की स्थिति में शिकार न करो। बेशक अल्लाह जो आदेश चाहता है, देता है।
5.2
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تُحِلُّوا شَعَائِرَ اللَّهِ وَلَا الشَّهْرَ الْحَرَامَ وَلَا الْهَدْيَ وَلَا الْقَلَائِدَ وَلَا آمِّينَ الْبَيْتَ الْحَرَامَ يَبْتَغُونَ فَضْلًا مِّن رَّبِّهِمْ وَرِضْوَانًا ۚ وَإِذَا حَلَلْتُمْ فَاصْطَادُوا ۚ وَلَا يَجْرِمَنَّكُمْ شَنَآنُ قَوْمٍ أَن صَدُّوكُمْ عَنِ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ أَن تَعْتَدُوا ۘ وَتَعَاوَنُوا عَلَى الْبِرِّ وَالتَّقْوَىٰ ۖ وَلَا تَعَاوَنُوا عَلَى الْإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۖ إِنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ ‎﴾ 2 ﴿
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तुहिल्लू शआ़-इरल्लाहि व लश्शह़रल्-हरा-म व लल्-हद्-य व लल्क़लाइ-द व ला आम्मीनल् बैतल्-हरा-म यब्तग़ू-न फज़्लम् मिर्रब्बिहिम् व रिज़्वानन्, व इज़ा हलल्तुम् फ़स्तादू, व ला यज्रिमन्नकुम श-नआनु क़ौमिन् अन् सद्दूकुम् अनिल् मस्जिदिल्-हरामि अन् तअ्तदू . व तआ़वनू अलल्- बिर्रि वत्तक़्-वा, व ला तआ़वनू अलल्-इस्मि वल-उद्-वानि वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह शदीदुल्-अिक़ाब •
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! अल्लाह की निशानियों[1] (चिन्हों) का अनादर न करो, न सम्मानित मासों का[2], न (ह़ज की) क़ुर्बानी का, न उन (ह़ज की) क़ुर्बानियों का, जिनके गले में पट्टे पड़े हों और न उनका, जो अपने पालनहार की अनुग्रह और उसकी प्रसन्नता की खोज में सम्मानित घर (काबा) की ओर जा रहे हों। जब एह़राम खोल दो, तो शिकार कर सकते हो। तुम्हें किसी गिरोह की शत्रुता इस बात पर न उभार दे कि अत्याचार करने लगो, क्योंकि उन्होंने मस्जिदे-ह़राम से तुम्हें रोक दिया था, सदाचार तथा संयम में एक-दूसरे की सहायता करो तथा पाप और अत्याचार में एक-दूसरे की सहायता न करो और अल्लाह से डरते रहो। निःसंदेह अल्लाह कड़ी यातना देने वाला है।
5.3
حُرِّمَتْ عَلَيْكُمُ الْمَيْتَةُ وَالدَّمُ وَلَحْمُ الْخِنزِيرِ وَمَا أُهِلَّ لِغَيْرِ اللَّهِ بِهِ وَالْمُنْخَنِقَةُ وَالْمَوْقُوذَةُ وَالْمُتَرَدِّيَةُ وَالنَّطِيحَةُ وَمَا أَكَلَ السَّبُعُ إِلَّا مَا ذَكَّيْتُمْ وَمَا ذُبِحَ عَلَى النُّصُبِ وَأَن تَسْتَقْسِمُوا بِالْأَزْلَامِ ۚ ذَٰلِكُمْ فِسْقٌ ۗ الْيَوْمَ يَئِسَ الَّذِينَ كَفَرُوا مِن دِينِكُمْ فَلَا تَخْشَوْهُمْ وَاخْشَوْنِ ۚ الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ الْإِسْلَامَ دِينًا ۚ فَمَنِ اضْطُرَّ فِي مَخْمَصَةٍ غَيْرَ مُتَجَانِفٍ لِّإِثْمٍ ۙ فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
हुर्रिमत् अलैकुमुल्मैततु वद्दमु व लह़्मुल-ख़िन्ज़ीरि व मा उहिल्-ल लिग़ैरिल्लाहि बिही वल्मुन्ख़नि-क़तु वल्मौ क़ूज़तु वल्मु-तरद्दियतु वन्नती-हतु व मा अ-कलस्सबुअु इल्ला मा ज़क्कैतुम्, व मा ज़ुबि-ह अलन्नुसुबि व अन् तस्तक़्सिमू बिल्अज़्लामि, ज़ालिकुम् फिस्क़ुन्, अल्यौ-म य-इसल्लज़ी-न क-फरू मिन् दीनिकुम् फ़ला तख़्शौहुम् वख़्शौनि, अल्यौ-म अक्मल्तु लकुम् दीनकुम् व अत्मम्तु अलैकुम् निअ्मती व रज़ीतु लकुमुल्-इस्ला-म दीनन्, फ़-मनिज़्तुर-र फी मख़्म- सतिन् ग़ै-र मु-तजानिफि ल्-लिइस्मिन्, फ़-इन्नल्ला-ह गफूरुर्रहीम
हिंदी अनुवाद
तुमपर मुर्दार[1] ह़राम (अवैध) कर दिया गया है तथा (बहता हुआ) रक्त, सूअर का मांस, जिसपर अल्लाह से अन्य का नाम पुकारा गया हो, जो श्वास रोध और आघात के कारण, गिरकर और दूसरे के सींग मारने से मरा हो, जिसे हिंसक पशु ने खा लिया हो, -परन्तु इनमें[2] से जिसे तुम वध (ज़िब्ह) कर लो- जिसे थान पर वध किया गया हो और ये कि पाँसे द्वारा अपना भाग निकालो। ये सब आदेश-उल्लंघन के कार्य हैं। आज काफ़िर तुम्हारे धर्म से निराश[3] हो गये हैं। अतः, उनसे न डरो, मुझी से डरो। आज[4] मैंने तुम्हारा धर्म तुम्हारे लिए परिपूर्ण कर दिय है तथा तुमपर अपना पुरस्कार पूरा कर दिया और तुम्हारे लिए इस्लाम को धर्म स्वरूप स्वीकार कर लिया है। फिर जो भूक से आतुर हो जाये, जबकि उसका झुकाव पाप के लिए न हो,(प्राण रक्षा के लिए खा ले) तो निश्चय अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
5.4
يَسْأَلُونَكَ مَاذَا أُحِلَّ لَهُمْ ۖ قُلْ أُحِلَّ لَكُمُ الطَّيِّبَاتُ ۙ وَمَا عَلَّمْتُم مِّنَ الْجَوَارِحِ مُكَلِّبِينَ تُعَلِّمُونَهُنَّ مِمَّا عَلَّمَكُمُ اللَّهُ ۖ فَكُلُوا مِمَّا أَمْسَكْنَ عَلَيْكُمْ وَاذْكُرُوا اسْمَ اللَّهِ عَلَيْهِ ۖ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۚ إِنَّ اللَّهَ سَرِيعُ الْحِسَابِ
यस्अलून-क माज़ा उहिल्-ल लहुम्, क़ुल उहिल्-ल लकुमुत्तय्यिबातु, व मा अल्लम्तुम् मिनल-जवारिहि मुकल्लिबी-न तुअल्लिमूनहुन्-न मिम्मा अल्ल-मकुमुल्लाहु, फ़कुलू मिम्मा अम्-सक्-न अलैकुम् वज़्कुरूस्मल्लाहि अलैहि, वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह सरीअुल हिसाब
हिंदी अनुवाद
वे आपसे प्रश्न करते हैं कि उनके लिए क्या ह़लाल (वैध) किया गया? आप कह दें कि सभी स्वच्छ पवित्र चीजें तुम्हारे लिए ह़लाल कर दी गयी हैं। और उन शिकारी जानवरों का शिकार जिन्हें तुमने उस ज्ञान द्वारा जो अल्लाह ने तुम्हें दिया है, उसमें से कुछ सिखाकर सधाया हो। तो जो (शिकार) वह तुमपर रोक दें उसमें से खाओ और उसपर अल्लाह का नाम[1] लो तथा अल्लाह से डरते रहो। निःसंदेह, अल्लाह शीघ्र ह़िसाब लेने वाला है।
5.5
الْيَوْمَ أُحِلَّ لَكُمُ الطَّيِّبَاتُ ۖ وَطَعَامُ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ حِلٌّ لَّكُمْ وَطَعَامُكُمْ حِلٌّ لَّهُمْ ۖ وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ الْمُؤْمِنَاتِ وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ مِن قَبْلِكُمْ إِذَا آتَيْتُمُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ مُحْصِنِينَ غَيْرَ مُسَافِحِينَ وَلَا مُتَّخِذِي أَخْدَانٍ ۗ وَمَن يَكْفُرْ بِالْإِيمَانِ فَقَدْ حَبِطَ عَمَلُهُ وَهُوَ فِي الْآخِرَةِ مِنَ الْخَاسِرِينَ
अल्यौ-म उहिल्-ल लकुमुत्तय्यिबातु, व तआमुल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब हिल्लुल्लकुम्, व तआ़मुकुम हिल्लुल्लहुम् वल्मुह़्सनातु मिनल-मुअ्मिनाति वल्मुह़्सनातु मिनल्लज़ी-न ऊतुल-किता-ब मिन् क़ब्लिकुम् इज़ा आतैतुमूहुन्-न उजू रहुन्-न मुह़्सिनी – न ग़ै-र मुसाफ़िही-न व ला मुत्तख़िज़ी अख़्दानिन्, व मंय्यक्फुर बिल्ईमानि फ-क़द हबि-त अ-मलुहू, व हु-व फ़िल-आख़ि-रति मिनल-ख़ासिरीन*
हिंदी अनुवाद
आज सब स्वच्छ खाद्य तुम्हारे लिए ह़लाल (वैध) कर दिये गये हैं और ईमान वाली सतवंती स्त्रियाँ तथा उनमें से सतवंती स्त्रियाँ, जो तुमसे पहले पुस्तक दिये गये हैं, जबकि उन्हें उनका महर (विवाह उपहार) चुका दो, विवाह में लाने के लिए, व्यभिचार के लिए नहीं और न प्रेमिका बनाने के लिए। जो ईमान को नकार देगा, उसका सत्कर्म व्यर्थ हो जायेगा तथा परलोक में वह विनाशों में होगा।


5.6
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا قُمْتُمْ إِلَى الصَّلَاةِ فَاغْسِلُوا وُجُوهَكُمْ وَأَيْدِيَكُمْ إِلَى الْمَرَافِقِ وَامْسَحُوا بِرُءُوسِكُمْ وَأَرْجُلَكُمْ إِلَى الْكَعْبَيْنِ ۚ وَإِن كُنتُمْ جُنُبًا فَاطَّهَّرُوا ۚ وَإِن كُنتُم مَّرْضَىٰ أَوْ عَلَىٰ سَفَرٍ أَوْ جَاءَ أَحَدٌ مِّنكُم مِّنَ الْغَائِطِ أَوْ لَامَسْتُمُ النِّسَاءَ فَلَمْ تَجِدُوا مَاءً فَتَيَمَّمُوا صَعِيدًا طَيِّبًا فَامْسَحُوا بِوُجُوهِكُمْ وَأَيْدِيكُم مِّنْهُ ۚ مَا يُرِيدُ اللَّهُ لِيَجْعَلَ عَلَيْكُم مِّنْ حَرَجٍ وَلَٰكِن يُرِيدُ لِيُطَهِّرَكُمْ وَلِيُتِمَّ نِعْمَتَهُ عَلَيْكُمْ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
या अय्युहलज़ी-न आमनू इज़ा क़ुम्तुम् इलस्सलाति फ़ग़्सिलू वुजूहकुम् व ऐदि-यकुम् इलल्-मराफ़िक़ि वम्सहू बिरूऊसिकुम् व अर्जु-लकुम् इलल्कअ्बैनि, व इन् कुन्तुम् जुनुबन् फत्तह़्हरू, व इन् कुन्तुम् मरज़ा औ अला स-फ़रिन् औ जा-अ अ-हदुम् मिन्कुम् मिनल्ग़ा-इति औ लामस्तुमुन्निसा-अ फ़-लम् तजिदू माअन् फ़-तयम्म-मू सईदन् तय्यिबन् फम्सहू बिवुजूहिकुम् व ऐदीकुम् मिन्हु, मा युरीदुल्लाहु लि-यज्अ़-ल अलैकुम् मिन् ह रजिंव्-व लाकिंय्युरीदु लियुतह़्हि-रकुम् व लियुतिम्-म निअ्म-तहू अलैकुम् लअ़ल्लकुम तश्कुरून
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! जब नमाज़ के लिए खड़े हो, तो (पहले) अपने मुँह तथा हाथों को कुहनियों तक धो लो और अपने सिरों का मसह़[1] कर लो तथा अपने पावों को टखनों तक (धो लो) और यदि जनाबत[2] की स्थिति में हो, तो (स्नान करके) पवित्र हो जाओ तथा यदि रोगी अथवा यात्रा में हो अथवा तुममें से कोई शोच से आये अथवा तुमने स्त्रियों को स्पर्श किया हो और तुम जल न पाओ, तो शुध्द धूल से तयम्मुम कर लो और उससे अपने मुखों तथा हाथों का मसह़[3] कर लो। अल्लाह तुम्हारे लिए कोई संकीर्णता (तंगी) नहीं चाहता। परन्तु तुम्हें पवित्र करना चाहता है और ताकि तुमपर अपना पुरस्कार पूरा कर दे और ताकि तुम कृतज्ञ बनो।
5.7
وَاذْكُرُوا نِعْمَةَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَمِيثَاقَهُ الَّذِي وَاثَقَكُم بِهِ إِذْ قُلْتُمْ سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا ۖ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ ‎
वज़्कुरू निअ्-मतल्लाहि अलैकुम व मीसाक़हुल्लज़ी वास-क़कुम् बिही, इज़ क़ुल्तुम् समिअ्ना व अतअ्ना, वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह अलीमुम् बिज़ातिस्सुदूर
हिंदी अनुवाद
तथा अपने ऊपर अल्लाह के पुरस्कार और उस दृढ़ वचन को याद करो, जो तुमसे लिया है। जब तुमने कहाः हमने सुन लिया और आज्ञाकारी हो गये तथा (सुनो!) अल्लाह से डरते रहो। निःसंदेह अल्लाह दिलों के भेदों को भली-भाँति जानने वाला है।
5.8
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُونُوا قَوَّامِينَ لِلَّهِ شُهَدَاءَ بِالْقِسْطِ ۖ وَلَا يَجْرِمَنَّكُمْ شَنَآنُ قَوْمٍ عَلَىٰ أَلَّا تَعْدِلُوا ۚ اعْدِلُوا هُوَ أَقْرَبُ لِلتَّقْوَىٰ ۖ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۚ إِنَّ اللَّهَ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कूनू क़व्वामी-न लिल्लाहि शु-हदा-अ बिल्क़िस्ति, व ला यज्रिमन्नकुम् श-नआनु क़ौमिन् अला अल्ला तअ्दिलू, इअ्दिलू, हु-व अक़्रबु लित्तक़्वा, वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह ख़बीरूम्-बिमा तअ्मलून
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! अल्लाह के लिए खड़े रहने वाले, न्याय के साथ साक्ष्य देने वाले रहो तथा किसी गिरोह की शत्रुता तुम्हें इसपर न उभार दे कि न्याय न करो। वह (अर्थातः सबके साथ न्याय) अल्लाह से डरने के अधिक समीप[1] है। निःसंदेह तुम जो कुछ करते हो, अल्लाह उससे भली-भाँति सूचित है।
5.9
وَعَدَ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ ۙ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ عَظِيمٌ
व-अदल्लाहुल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति, लहुम् मग़्फिरतुंव् व अज्रून अज़ीम
हिंदी अनुवाद
जो लोग ईमान लाये तथा सत्कर्म किये, तो उनसे अल्लाह का वचन है कि उनके लिए क्षमा तथा बड़ा प्रतिफल है।
5.10
وَالَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا أُولَٰئِكَ أَصْحَابُ الْجَحِيمِ
वल्लज़ी-न क-फरू व कज़्ज़बू बिआयातिना उलाइ-क अस्हाबुल-जहीम
हिंदी अनुवाद
तथा जो काफ़िर रहे और हमारी आयतों को मिथ्या कहा, तो वही लोग नारकी हैं।


5.11
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اذْكُرُوا نِعْمَتَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ هَمَّ قَوْمٌ أَن يَبْسُطُوا إِلَيْكُمْ أَيْدِيَهُمْ فَكَفَّ أَيْدِيَهُمْ عَنكُمْ ۖ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۚ وَعَلَى اللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُونَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनुज़्कुरू निअ्- मतल्लाहि अलैकुम इज़् हम्-म क़ौमुन् अंय्यब्सुतू इलैकुम् ऐदि – यहुम् फ़-कफ्-फ़ ऐदि-यहुम् अ़न्कुम्, वत्तक़ुल्ला-ह, व अलल्लाहि फल्य-तवक्कलिल् मुअ्मिनून *
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! अल्लाह के उस उपकार को याद करो, जब एक गिरोह ने तुम्हारी ओर हाथ बढ़ाना[1] चाहा, तो अल्लाह ने उनके हाथों को तुमसे रोक दिया तथा अल्लाह से डरते रहो और ईमान वालों को अल्लाह ही पर निरभर करना चाहिए।
5.12
۞ وَلَقَدْ أَخَذَ اللَّهُ مِيثَاقَ بَنِي إِسْرَائِيلَ وَبَعَثْنَا مِنْهُمُ اثْنَيْ عَشَرَ نَقِيبًا ۖ وَقَالَ اللَّهُ إِنِّي مَعَكُمْ ۖ لَئِنْ أَقَمْتُمُ الصَّلَاةَ وَآتَيْتُمُ الزَّكَاةَ وَآمَنتُم بِرُسُلِي وَعَزَّرْتُمُوهُمْ وَأَقْرَضْتُمُ اللَّهَ قَرْضًا حَسَنًا لَّأُكَفِّرَنَّ عَنكُمْ سَيِّئَاتِكُمْ وَلَأُدْخِلَنَّكُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ ۚ فَمَن كَفَرَ بَعْدَ ذَٰلِكَ مِنكُمْ فَقَدْ ضَلَّ سَوَاءَ السَّبِيلِ
व ल-क़द् अ-ख़ज़ल्लाहु मीसा क़ बनी इस्राई-ल, व बअ़स्-ना मिन्हुमुस्-नै अ-श-र नक़ीबन्, व क़ालल्लाहु इन्नी म-अ़कुम्, ल-इन् अक़म्तुमुस्सला-त व आतैतुमुज़्ज़का-त व आमन्तुम् बिरूसुली व अज़्ज़रतुमूहुम् व अक़्रज़्तुमुल्ला-ह क़र्जन् ह-सनल् ल-उकफ्फिरन्-न अन्कुम् सय्यिआतिकुम् व ल- उद्ख़िलन्नकुम् जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल्-अन्हारू, फ़-मन् क-फ़-र बअ्-द ज़ालि-क मिन्कुम् फ़-क़द् ज़ल्-ल सवाअस्सबील
हिंदी अनुवाद
तथा अल्लाह ने बनी इस्राईल से (भी) दृढ़ वचन लिया था और उनमें बारह प्रमुख नियुक्त कर दिये थे तथा अल्लाह ने कहा था कि मैं तुम्हारे साथ हूँ, यदि तुम नमाज की स्थापना करते रहे, ज़कात देते रहे, मेरे रसूलों पर ईमान (विश्वास) रखे रहे, उन्हें समर्थन देते रहे तथा अल्लाह को उत्तम ऋण देते रहे। (अगर ऐसा हुआ) तो मैं अवश्य तुम्हें तुम्हारे पाप क्षमा कर दूँगा और तुम्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश दूँगा, जिनमें नहरें प्रवाहित होंगी और तुममें से जो इसके पश्चात् भी कुफ़्र (अविश्वास) करेगा, (दरअसल) वह सुपथ[1] से विचलित हो गया।
5.13
فَبِمَا نَقْضِهِم مِّيثَاقَهُمْ لَعَنَّاهُمْ وَجَعَلْنَا قُلُوبَهُمْ قَاسِيَةً ۖ يُحَرِّفُونَ الْكَلِمَ عَن مَّوَاضِعِهِ ۙ وَنَسُوا حَظًّا مِّمَّا ذُكِّرُوا بِهِ ۚ وَلَا تَزَالُ تَطَّلِعُ عَلَىٰ خَائِنَةٍ مِّنْهُمْ إِلَّا قَلِيلًا مِّنْهُمْ ۖ فَاعْفُ عَنْهُمْ وَاصْفَحْ ۚ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ
फबिमा नक़्ज़िहिम मीसाक़हुम् लअन्नाहुम् व जअ़ल्ना क़ुलूबहुम् क़ासि-यतन्. युहर्रिफूनल्कलि-म अम्-मवाज़िअिही, व नसू ह़ज्ज़म् मिम्मा ज़ुक्किरू बिही, व ला तज़ालु तत्तलिअु अला ख़ाइ-नतिम् मिन्हुम इल्ला क़लीलम् मिन्हुम् फ़अ्फु अन्हुम् वस्फ़ह्, इन्नल्ला-ह युहिब्बुल मुह़्सिनीन
हिंदी अनुवाद
तो उनके अपना वचन भंग करने के कारण, हमने उन्हें धिक्कार दिया और उनके दिलों को कड़ा कर दिया। वे अल्लाह की बातों को, उनके वास्तविक स्थानों से फेर देते[1] हैं तथा जिस बात का उन्हें निर्देश दिया गया था, उसे भुला दिया और (अब) आप बराबर उनके किसी न किसी विश्वासघात से सूचित होते रहेंगे, परन्तु उनमें बहुत थोड़े के सिवा, जो ऐसा नहीं करते। अतः आप उन्हें क्षमा कर दें और उन्हें जाने दें। निःसंदेह अल्लाह उपकारियों से प्रेम करता है।
5.14
وَمِنَ الَّذِينَ قَالُوا إِنَّا نَصَارَىٰ أَخَذْنَا مِيثَاقَهُمْ فَنَسُوا حَظًّا مِّمَّا ذُكِّرُوا بِهِ فَأَغْرَيْنَا بَيْنَهُمُ الْعَدَاوَةَ وَالْبَغْضَاءَ إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ ۚ وَسَوْفَ يُنَبِّئُهُمُ اللَّهُ بِمَا كَانُوا يَصْنَعُونَ
व मिनल्लज़ी-न क़ालू इन्ना नसारा अख़ज़्ना मीसाक़हुम् फ़-नसू हज़्ज़म् मिम्मा ज़ुक्किरू बिही, फ़-अग़्रैना बैनहुमुल अदा-व-त वल्बग़्ज़ा-अ इला यौमिल्-क़ियामति, व सौ-फ युनब्बिउहुमुल्लाहु बिमा कानू यस्-नअून
हिंदी अनुवाद
तथा जिन्होंने कहा कि हम नसारा (ईसाई) हैं, हमने उनसे (भी) दृढ़ वचन लिया था, तो उन्हें जिस बात का निर्देश दिया गया था, उसे भुला बैठे, तो प्रलय के दिन तक के लिए हमने उनके बीच शत्रुता तथा पारस्परिक (आपसी) विद्वेष भड़का दिया और शीघ्र ही अल्लाह जो कुछ वे करते रहे हैं, उन्हें[1] बता देगा।
5.15
يَا أَهْلَ الْكِتَابِ قَدْ جَاءَكُمْ رَسُولُنَا يُبَيِّنُ لَكُمْ كَثِيرًا مِّمَّا كُنتُمْ تُخْفُونَ مِنَ الْكِتَابِ وَيَعْفُو عَن كَثِيرٍ ۚ قَدْ جَاءَكُم مِّنَ اللَّهِ نُورٌ وَكِتَابٌ مُّبِينٌ
या अह़्लल्-किताबि क़द् जाअकुम् रसूलुना युबय्यिनु लकुम् कसीरम्-मिम्मा कुन्तुम् तुख़्फू-न मिनल्-किताबि व यअ्फू अन् कसीरिन्, क़द् जाअकुम् मिनल्लाहि नूरूंव्-व किताबुम् मुबीन
हिंदी अनुवाद
हे अह्ले किताब! तुम्हारे पास हमारे रसूल आ गये हैं[1], जो तुम्हारे लिए उन बहुत सी बातों को उजागर कर रहे हैं, जिन्हें तुम छुपा रहे थे और बहुत सी बातों को छोड़ भी रहे हैं। अब तुम्हारे पास अल्लाह की ओर से प्रकाश तथा खुली पुस्तक (कुर्आन) आ गई है।


5.16
يَهْدِي بِهِ اللَّهُ مَنِ اتَّبَعَ رِضْوَانَهُ سُبُلَ السَّلَامِ وَيُخْرِجُهُم مِّنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ بِإِذْنِهِ وَيَهْدِيهِمْ إِلَىٰ صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ
यह़्दी बिहिल्लाहु मनित्त-ब-अ रिज़्वानहू सुबुलस्सलामि व युख़्रिजुहुम् मिनज़्ज़ुलुमाति इलन्नूरि बि -इज़्निही व यह़्दीहिम् इला सिरातिम् मुस्तक़ीम
हिंदी अनुवाद
जिसके द्वारा अल्लाह उन्हें शान्ति का मार्ग दिखा रहा है, जो उसकी प्रसन्नता पर चलते हों, उन्हें अपनी अनुमति से अंधेरों से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाता है और उन्हें सुपथ दिखाता है।
5.17
لَّقَدْ كَفَرَ الَّذِينَ قَالُوا إِنَّ اللَّهَ هُوَ الْمَسِيحُ ابْنُ مَرْيَمَ ۚ قُلْ فَمَن يَمْلِكُ مِنَ اللَّهِ شَيْئًا إِنْ أَرَادَ أَن يُهْلِكَ الْمَسِيحَ ابْنَ مَرْيَمَ وَأُمَّهُ وَمَن فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا ۗ وَلِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا ۚ يَخْلُقُ مَا يَشَاءُ ۚ وَاللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
ल-क़द् क-फरल्लज़ी-न क़ालू इन्नल्ला-ह हुवल्- मसीहुब्नु मर्य-म, क़ुल फ़-मंय्यम्लिकु मिनल्लाहि शैअन् इन् अरा-द अंय्युह़्लिकल्-मसीहब्-न मर्य-म व उम्म-हू व मन् फिलअर्ज़ि जमीअ़न्, व लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि व मा बैनहुमा, यख़्लुक़ु मा यशा-उ, वल्लाहु अला कुल्लि शैइन् क़दीर
हिंदी अनुवाद
निश्चय वे काफ़िर[1] हो गये, जिन्होंने कहा कि मर्यम का पुत्र मसीह़ ही अल्लाह है। (हे नबी!) उनसे कह दो कि यदि अल्ललाह मर्यम के पुत्र और उसकी माता तथा जो भी धरती में है, सबका विनाश कर देना चाहे, तो किसमें शक्ति है कि वह उसे रोक दे? तथा आकाश और धरती और जो भी इनके बीच है, सब अल्लाह ही का राज्य है, वह जो चाहे, उतपन्न करता है तथा वह जो चाहे, कर सकता है।
5.18
وَقَالَتِ الْيَهُودُ وَالنَّصَارَىٰ نَحْنُ أَبْنَاءُ اللَّهِ وَأَحِبَّاؤُهُ ۚ قُلْ فَلِمَ يُعَذِّبُكُم بِذُنُوبِكُم ۖ بَلْ أَنتُم بَشَرٌ مِّمَّنْ خَلَقَ ۚ يَغْفِرُ لِمَن يَشَاءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَاءُ ۚ وَلِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا ۖ وَإِلَيْهِ الْمَصِيرُ
व क़ालतिल्-यहूदु वन्नसारा नह़्नु अब्नाउल्लाहि व अहिब्बाउहू, क़ुल फ़लि-म युअ़ज़्ज़िबुकुम् बिज़ु नूबिकुम्, बल् अन्तुम ब-शरूम् मिम्-मन् ख़-ल-क, यग़्फिरू लिमंय्यशा-उ व युअ़ज़्ज़िबु मंय्यशा-उ, व लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ी व मा बैनहुमा, व इलैहिल-मसीर
हिंदी अनुवाद
तथा यहूदी और ईसाईयों ने कहा कि हम अल्लाह के पुत्र तथा प्रियवर हैं। आप पूछें कि फिर वह तुम्हें तुम्हारे पापों का दण्ड क्यों देता है? बल्कि तुमभी वैसे ही मानव पूरुष हो, जैसे दूसरे हैं, जिनकी उत्पत्ति उसने की है। वह जिसे चाहे, क्षमा कर दे और जिसे चाहे, दण्ड दे तथा आकाश और धरती तथा जो उन दोनों के बीच है, अल्लाह ही का राज्य (अधिपत्य)[1] है और उसी की ओर सबको जाना है।
5.19
يَا أَهْلَ الْكِتَابِ قَدْ جَاءَكُمْ رَسُولُنَا يُبَيِّنُ لَكُمْ عَلَىٰ فَتْرَةٍ مِّنَ الرُّسُلِ أَن تَقُولُوا مَا جَاءَنَا مِن بَشِيرٍ وَلَا نَذِيرٍ ۖ فَقَدْ جَاءَكُم بَشِيرٌ وَنَذِيرٌ ۗ وَاللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
या अह़्लल्-किताबि क़द् जाअकुम् रसूलुना युबय्यिनु लकुम् अला फ़त् रतिम् मिनर्रुसुलि अन् तक़ूलू मा जाअना मिम्-बशीरिंव-व ला नज़ीरिन्, फ़-क़द् जा-अकुम् बशीरूंव् व नज़ीरून्, वल्लाहु अला कुल्लि शैइन् क़दीर*
हिंदी अनुवाद
हे अह्ले किताब! तुम्हारे पास रसुलों के आने का क्रम बंद होने के पश्चात्, हमारे रसूल आ गये[1] हैं, वह तुम्हारे लिए (सत्य को) उजागर कर रहे हैं, ताकि तुम ये न कहो कि हमारे पास कोई शुभ सूचना सुनाने वाला तथा सावधान करने वाला (नबी) नहीं आया, तो तुम्हारे पास शुभ सूचना सुनाने तथा सावधान करने वाला आ गया है तथा अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
5.20
وَإِذْ قَالَ مُوسَىٰ لِقَوْمِهِ يَا قَوْمِ اذْكُرُوا نِعْمَةَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ جَعَلَ فِيكُمْ أَنبِيَاءَ وَجَعَلَكُم مُّلُوكًا وَآتَاكُم مَّا لَمْ يُؤْتِ أَحَدًا مِّنَ الْعَالَمِينَ
व इज़् क़ा-ल मूसा लिक़ौमिही या क़ौमिज़्कुरू निअ् – मतल्लाहि अलैकुम् इज़् ज-अ-ल फ़ीकुम् अम्बिया-अ व ज-अ-लकुम् मुलूकंव्, व आताकुम् मा लम् युअ्ति अ-हदम् मिनल्-आलमीन
हिंदी अनुवाद
तथा याद करो, जब मूसा ने अपनी जाति से कहाः हे मेरी जाति! अपने ऊपर अल्लाह के पुरस्कार को याद करो कि उसने तुममें नबी और शासक बनाये तथा तुम्हें वह कुछ दिया, जो संसार वासियों में किसी को नहीं दिया।


5.21
يَا قَوْمِ ادْخُلُوا الْأَرْضَ الْمُقَدَّسَةَ الَّتِي كَتَبَ اللَّهُ لَكُمْ وَلَا تَرْتَدُّوا عَلَىٰ أَدْبَارِكُمْ فَتَنقَلِبُوا خَاسِرِينَ
या क़ौमिद्ख़ुलुल् अर्ज़ल मुक़द्द-सतल्लती क-तबल्लाहु लकुम् व ला तर्तद्दू अला अदबारिकुम् फ़-तन्क़लिबू ख़ासिरीन
हिंदी अनुवाद
हे मेरी जाति! उस पवित्र धरती (बैतुल मक़्दिस) में प्रवेश कर जाओ, जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दिया है और पीछे न फिरो, अन्यथा असफल हो जाओगे।
5.22
قَالُوا يَا مُوسَىٰ إِنَّ فِيهَا قَوْمًا جَبَّارِينَ وَإِنَّا لَن نَّدْخُلَهَا حَتَّىٰ يَخْرُجُوا مِنْهَا فَإِن يَخْرُجُوا مِنْهَا فَإِنَّا دَاخِلُونَ
क़ालू या मूसा इन्-न फ़ीहा क़ौमन् जब्बारी-न, व इन्ना लन् नद्ख़ु-लहा हत्ता यख़्रूजू मिन्हा, फ़-इंय्यख़्रूजू मिन्हा फ़-इन्ना दाख़िलून
हिंदी अनुवाद
उन्होंने कहाः हे मूसा! उसमें बड़े बलवान लोग हैं और हम उसमें कदापि प्रवेश नहीं करेंगे, जब तक वे उससे निकल न जायें, यदि वे निकल जाते हैं, तभी हम उसमें प्रवेश कर सकते हैं।
5.23
قَالَ رَجُلَانِ مِنَ الَّذِينَ يَخَافُونَ أَنْعَمَ اللَّهُ عَلَيْهِمَا ادْخُلُوا عَلَيْهِمُ الْبَابَ فَإِذَا دَخَلْتُمُوهُ فَإِنَّكُمْ غَالِبُونَ ۚ وَعَلَى اللَّهِ فَتَوَكَّلُوا إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
क़ा-ल रजुलानि मिनल्लज़ी-न यख़ाफू-न अन् अमल्लाहु अलैहिमद्ख़ुलू अलैहिमुल्बा-ब, फ़-इज़ा दख़ल्तुमूहु फ़-इन्नकुम् ग़ालिबू-न, व अलल्लाहि फ़- तवक्कलू इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
हिंदी अनुवाद
उनमें से दो व्यक्तियों ने, जो (अल्लाह से) डरते थे, जिनपर अल्लाह ने पुरस्कार किया था, कहा कि उनपर द्वार से प्रवेश कर जाओ, जबतुम उसमें प्रवेश कर जाओगे, तो निश्चय तुम प्रभुत्वशाली होगे तथा अल्लाह ही पर भरोसा करो, यदि तुम ईमान वाले हो।
5.24
قَالُوا يَا مُوسَىٰ إِنَّا لَن نَّدْخُلَهَا أَبَدًا مَّا دَامُوا فِيهَا ۖ فَاذْهَبْ أَنتَ وَرَبُّكَ فَقَاتِلَا إِنَّا هَاهُنَا قَاعِدُونَ
क़ालू या मूसा इन्ना लन् नद्ख़ु-लहा अ-बदम् मा दामू फ़ीहा फज़्हब् अन्-त व रब्बु-क फ़क़ातिला इन्ना हाहुना क़ाअिदून
हिंदी अनुवाद
वे बोलेः हे मूसा! हम उसमें कदापि प्रवेश नहीं करेंगे, जब तक वे उसमें (उपस्थित) रहेंगे, अतः तुम और तुम्हारा पालनहार जाओ, फिर तुम दोनों युध्द करो, हम यहीं बैठे रहेंगे।


5.25
قَالَ رَبِّ إِنِّي لَا أَمْلِكُ إِلَّا نَفْسِي وَأَخِي ۖ فَافْرُقْ بَيْنَنَا وَبَيْنَ الْقَوْمِ الْفَاسِقِينَ
क़ा-ल रब्बि इन्नी ला अम्लिकु इल्ला नफ्सी व अख़ी फ्फरूक़् बैनना व बैनल् क़ौमिल फ़ासिक़ीन
हिंदी अनुवाद
(ये दशा देखकर) मूसा ने कहः हे मेरे पालनहार! मैं अपने और अपने भाई के सिवा किसी पर कोई अधिकार नहीं रखता। अतः तु हमारे तथा अवज्ञाकारी जाति के बीच निर्णय कर दे।
5.26
قَالَ فَإِنَّهَا مُحَرَّمَةٌ عَلَيْهِمْ ۛ أَرْبَعِينَ سَنَةً ۛ يَتِيهُونَ فِي الْأَرْضِ ۚ فَلَا تَأْسَ عَلَى الْقَوْمِ الْفَاسِقِينَ
क़ा-ल फ़-इन्नहा मुहर्र-मतुन् अलैहिम् अरबई-न स-नतन्, यतीहू-न फ़िल्अर्जि, फ़ला तअ्-स अलल् क़ौमिल्-फ़ासिक़ीन *
हिंदी अनुवाद
अल्लाह ने कहाः वह (धरती) उनपर चालीस वर्ष के लिए ह़राम (वर्जित) कर दी गई। वे धरती में फिरते रहेंगे, अतः तुम अवज्ञाकारी जाति पर तरस न खाओ[1]।
5.27
۞ وَاتْلُ عَلَيْهِمْ نَبَأَ ابْنَيْ آدَمَ بِالْحَقِّ إِذْ قَرَّبَا قُرْبَانًا فَتُقُبِّلَ مِنْ أَحَدِهِمَا وَلَمْ يُتَقَبَّلْ مِنَ الْآخَرِ قَالَ لَأَقْتُلَنَّكَ ۖ قَالَ إِنَّمَا يَتَقَبَّلُ اللَّهُ مِنَ الْمُتَّقِينَ
वत्लु अलैहिम् न-बअब्नै आद-म बिल्हक़्क़ि • इज़् क़र्रबा क़ुर्बानन् फतुक़ुब्बि-ल मिन् अ-हदिहिमा व लम् यु-तक़ब्बल् मिनल् आख़रि, क़ा-ल ल-अक़्तुलन्न-क, क़ा-ल इन्नमा य-तक़ब्बलुल्लाहु मिनल् मुत्तक़ीन •
हिंदी अनुवाद
तथा उनेहें आदम के दो पुत्रों का सही समाचार[1] सुना दो, जब दोनों ने एक उपायन (क़ुर्बानी) प्रस्तुत की, तो एक से स्वीकार की गई तथा दूसरे से स्वीकार नहीं की गई। उस (दूसरे) ने कहाः मैं अवश्य तेरी हत्या कर दूँगा। उस (प्रथम) ने कहाः अल्लाह आज्ञाकारों ही से स्वीकार करता है।
5.28
لَئِن بَسَطتَ إِلَيَّ يَدَكَ لِتَقْتُلَنِي مَا أَنَا بِبَاسِطٍ يَدِيَ إِلَيْكَ لِأَقْتُلَكَ ۖ إِنِّي أَخَافُ اللَّهَ رَبَّ الْعَالَمِينَ ‎
ल-इम् बसत्-त इलय्-य य-द-क लितक़्तु-लनी मा अ-ना बिबासितिंय् यदि-य इलै-क लिअक़्तु ल-क, इन्नी अख़ाफुल्ला-ह रब्बल्-आलमीन
हिंदी अनुवाद
यदि तुम मेरी हत्या करने के लिए मेरी ओर हाथ बढ़ाओगे[1], तो भी मैं तुम्हारी ओर तुम्हारी हत्या करने के लिए हाथ बढ़ाने वाला नहीं हूँ। मैं विश्व के पालनहार अल्लाह से डरता हूँ।
5.29
إِنِّي أُرِيدُ أَن تَبُوءَ بِإِثْمِي وَإِثْمِكَ فَتَكُونَ مِنْ أَصْحَابِ النَّارِ ۚ وَذَٰلِكَ جَزَاءُ الظَّالِمِينَ
इन्नी उरीदू अन् तबू-अ बि-इस्मी व इस्मि-क फ़-तकू-न मिन् अस्हाबिन्नारि, व ज़ालि-क जज़ाउज़्ज़ालिमीन
हिंदी अनुवाद
मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी (हत्या के) पाप और अपने पाप के साथ फिरो और नारकी हो जाओ और यही अत्याचारियों का प्रतिकार (बदला) है।
5.30
فَطَوَّعَتْ لَهُ نَفْسُهُ قَتْلَ أَخِيهِ فَقَتَلَهُ فَأَصْبَحَ مِنَ الْخَاسِرِينَ
फ़तव्व-अत् लहू नफ्सुहू क़त्-ल अख़ीहि फ़-क़-त-लहू फ़-अस्ब-ह मिनल् ख़ासिरीन
हिंदी अनुवाद
अंततः, उसने स्वयं को अपने भाई की हत्या पर तैयार कर लिया और विनाशों में हो गया।


5.31
فَبَعَثَ اللَّهُ غُرَابًا يَبْحَثُ فِي الْأَرْضِ لِيُرِيَهُ كَيْفَ يُوَارِي سَوْءَةَ أَخِيهِ ۚ قَالَ يَا وَيْلَتَىٰ أَعَجَزْتُ أَنْ أَكُونَ مِثْلَ هَٰذَا الْغُرَابِ فَأُوَارِيَ سَوْءَةَ أَخِي ۖ فَأَصْبَحَ مِنَ النَّادِمِينَ
फ़-ब-असल्लाहु ग़ुराबंय्यब्हसु फ़िल्अर्ज़ि लियुरि-यहू कै-फ़ युवारी सौअ-त अख़ीहि, क़ा-ल या वै-लता अ- अज़ज़्तु अन् अकू-न मिस्-ल हाज़ल्ग़ुराबि फ़-उवारि-य सौअ-त अख़ी, फ़ अस्ब-ह मिनन्नादिमीन
हिंदी अनुवाद
फिर अल्लाह ने एक कौआ भेजा, जो भूमि कुरेद रहा था, ताकि उसे दिखाये कि अपने भाई के शव को कैसे छुपाये, उसने कहाः मुझपर खेद है! क्या मैं इस कौआ जैसा भी न हो सका कि अपने भाई का शव छुपा सकूँ, फिर बड़ा लज्जित हूआ।
5.32
مِنْ أَجْلِ ذَٰلِكَ كَتَبْنَا عَلَىٰ بَنِي إِسْرَائِيلَ أَنَّهُ مَن قَتَلَ نَفْسًا بِغَيْرِ نَفْسٍ أَوْ فَسَادٍ فِي الْأَرْضِ فَكَأَنَّمَا قَتَلَ النَّاسَ جَمِيعًا وَمَنْ أَحْيَاهَا فَكَأَنَّمَا أَحْيَا النَّاسَ جَمِيعًا ۚ وَلَقَدْ جَاءَتْهُمْ رُسُلُنَا بِالْبَيِّنَاتِ ثُمَّ إِنَّ كَثِيرًا مِّنْهُم بَعْدَ ذَٰلِكَ فِي الْأَرْضِ لَمُسْرِفُونَ
मिन् अज्लि ज़ालि-क, कतब्ना अला बनी इस्राई-ल अन्नहू मन् क़-त-ल नफ़्सम् बिग़ैरि नफ्सिन् औ फ़सादिन् फिल्अर्ज़ि फ़-कअन्नमा क़-तलन्ना-स जमीअन्, व मन् अह़्याहा फ़-कअन्नमा अह़्यन्ना-स जमीअ़न्, व ल-क़द् जाअत्हुम् रूसुलुना बिल्बय्यिनाति, सुम्-म इन्-न कसीरम् मिन्हुम् बअ्-द ज़ालि-क फ़िल्अर्ज़ि ल मुस्रिफून
हिंदी अनुवाद
इसी कारण हमने बनी इस्राईल पर लिख दिया[1] कि जिसने भी किसी प्राणी की हत्या की, किसी प्राणी का ख़ून करने अथवा धरती में विद्रोह के बिना, तो समझो उसने पूरे मनुष्यों की हत्या[2] कर दी और जिसने जीवित रखा एक प्राणी को, तो वास्तव में, उसने जीवित रखा सभी मनुष्यों को तथा उनके पास हमारे रसूल खुली निशानियाँ लाये, फिर भी उनमें से अधिकांश धरती में विद्रोह करने वाले हैं।
5.33
إِنَّمَا جَزَاءُ الَّذِينَ يُحَارِبُونَ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَيَسْعَوْنَ فِي الْأَرْضِ فَسَادًا أَن يُقَتَّلُوا أَوْ يُصَلَّبُوا أَوْ تُقَطَّعَ أَيْدِيهِمْ وَأَرْجُلُهُم مِّنْ خِلَافٍ أَوْ يُنفَوْا مِنَ الْأَرْضِ ۚ ذَٰلِكَ لَهُمْ خِزْيٌ فِي الدُّنْيَا ۖ وَلَهُمْ فِي الْآخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيمٌ
इन्नमा जज़ा-उल्लज़ी-न युहारिबूनल्ला-ह व रसूलहू व यस्औ-न फ़िल्अर्ज़ि फ़सादन् अंय्युक़त्तलू औ युसल्लबू औ तुक़त्त-अ ऐदीहिम् व अर्जुलुहुम मिन् ख़िलाफिन् औ युन्फौ मिनल अर्ज़ि, ज़ालि-क लहुम ख़िज़्युन फिद्दुन्या व लहुम् फिल्-आख़ि-रति अज़ाबुन अज़ीम
हिंदी अनुवाद
जो लोग[1] अल्लाह और उसके रसूल से युध्द करते हों तथा धरती में उपद्रव करते फिर रहे हों, उनका दण्ड ये है कि उनकी हत्या की जाये तथा उन्हें फाँसी दी जाये अथवा उनके हाथ-पाँव विपरीत दिशाओं से काट दिये जायें अथवा उन्हें देश निकाला दे दिया जाये। ये उनके लिए संसार में अपमान है तथा परलोक में उनके लिए इससे बड़ा दण्ड है।
5.34
إِلَّا الَّذِينَ تَابُوا مِن قَبْلِ أَن تَقْدِرُوا عَلَيْهِمْ ۖ فَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
इल्लल्लज़ी-न ताबू मिन् क़ब्लि अन् तक़्दिरू अलैहिम्, फअ्लमू अन्नल्ला-ह ग़फूरूर्रहीम*
हिंदी अनुवाद
परन्तु जो तौबा (क्षमा याचना) कर लें, इससे पहले कि तुम उन्हें अपने नियंत्रण में लाओ, तो तुम जान लो कि अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।
3.35
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَابْتَغُوا إِلَيْهِ الْوَسِيلَةَ وَجَاهِدُوا فِي سَبِيلِهِ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनुत्तक़ुल्ला-ह वब्तग़ू इलैहिल वसी-ल त व जाहिदू फ़ी सबीलिही लअ़ल्लकुम् तुफ्लिहून
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! अल्लाह (की अवज्ञा) से डरते रहो और उसकी ओर वसीला[1] खोजो तथा उसकी राह में जिहाद करो, ताकी तुम सफल हो जाओ।


5.36
إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا لَوْ أَنَّ لَهُم مَّا فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا وَمِثْلَهُ مَعَهُ لِيَفْتَدُوا بِهِ مِنْ عَذَابِ يَوْمِ الْقِيَامَةِ مَا تُقُبِّلَ مِنْهُمْ ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
इन्नल्लज़ी-न क-फरू लौ अन्-न लहुम् मा फिल्अर्ज़ि जमीअंव्-व मिस्लहू म-अहू लियफ्तदू बिही मिन् अज़ाबि यौमिल्-क़ियामति मा तुक़ुब्बि-ल मिन्हुम्, व लहुम् अज़ाबुन् अलीम
हिंदी अनुवाद
जो लोग काफ़िर हैं, यद्यपि धरती के सभी (धन-धान्य) उनके अधिकार (स्वामित्व) में आ जायें और उसी के समान और भी हो, ताकि वे, ये सब प्रलय के दिन की यातना से अर्थ दण्ड स्वरूप देकर मुक्त हो जायें, तो भी उनसे स्वीकार नहीं किया जायेगा और उन्हें दुखदायी यातना होगी।
5.37
يُرِيدُونَ أَن يَخْرُجُوا مِنَ النَّارِ وَمَا هُم بِخَارِجِينَ مِنْهَا ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌ مُّقِيمٌ ‎
युरीदू-न अंय्यख़्रूजू मिनन्नारि व मा हुम् बिख़ारिजी-न मिन्हा, व लहुम् अज़ाबुम् मुक़ीम
हिंदी अनुवाद
वे चाहेंगे कि नरक से निकल जायें, जबकि वे उससे निकल नहीं सकेंगे और उन्हीं के लिए स्थायी यातना है।
5.38
وَالسَّارِقُ وَالسَّارِقَةُ فَاقْطَعُوا أَيْدِيَهُمَا جَزَاءً بِمَا كَسَبَا نَكَالًا مِّنَ اللَّهِ ۗ وَاللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ ‎
वस्सारिक़ु वस्सारि-क़तु फ़क़्तअू ऐदि-यहुमा जज़ाअम् बिमा क-सबा नकालम् मिनल्लाहि, वल्लाहु अज़ीज़ुन हकीम
हिंदी अनुवाद
चोर, पुरुष और स्त्री दोनों के हाथ काट दो, उनके करतूत के बदले, जो अल्लाह की ओर से शिक्षाप्रद दण्ड है[1] और अल्लाह प्रभावशाली गुणी है।
5.39
فَمَن تَابَ مِن بَعْدِ ظُلْمِهِ وَأَصْلَحَ فَإِنَّ اللَّهَ يَتُوبُ عَلَيْهِ ۗ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
फ-मन् ता-ब मिम्-बअ्दि ज़ुल्मिही व अस्ल-ह फ़- इन्नल्ला-ह यतूबु अलैहि, इन्नल्ला-ह ग़फूरुर्रहीम
हिंदी अनुवाद
फिर जो अपने अत्याचार (चोरी) के पश्चात् तौबा (क्षमा याचना) कर ले और अपने को सुधार ले, तो अल्लाह उसकी तौबा स्वीकार कर लेगा[1]। निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।
5.40
أَلَمْ تَعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ يُعَذِّبُ مَن يَشَاءُ وَيَغْفِرُ لِمَن يَشَاءُ ۗ وَاللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
अलम् तअ्लम् अन्नल्ला-ह लहू मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि, युअ़ज़्ज़िबु मंय्यशा-उ व यग़्फिरू लिमंय्यशा- उ, वल्लाहु अला कुल्लि शैइन क़दीर
हिंदी अनुवाद
क्या तुम जानते नहीं कि अल्लाह ही के लिए है, आकाशों तथा धरती का राज्य। वह जिसे चाहे, क्षमा कर दे और जिसे चाहे, दण्ड दे तथा अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।


5.41
۞ يَا أَيُّهَا الرَّسُولُ لَا يَحْزُنكَ الَّذِينَ يُسَارِعُونَ فِي الْكُفْرِ مِنَ الَّذِينَ قَالُوا آمَنَّا بِأَفْوَاهِهِمْ وَلَمْ تُؤْمِن قُلُوبُهُمْ ۛ وَمِنَ الَّذِينَ هَادُوا ۛ سَمَّاعُونَ لِلْكَذِبِ سَمَّاعُونَ لِقَوْمٍ آخَرِينَ لَمْ يَأْتُوكَ ۖ يُحَرِّفُونَ الْكَلِمَ مِن بَعْدِ مَوَاضِعِهِ ۖ يَقُولُونَ إِنْ أُوتِيتُمْ هَٰذَا فَخُذُوهُ وَإِن لَّمْ تُؤْتَوْهُ فَاحْذَرُوا ۚ وَمَن يُرِدِ اللَّهُ فِتْنَتَهُ فَلَن تَمْلِكَ لَهُ مِنَ اللَّهِ شَيْئًا ۚ أُولَٰئِكَ الَّذِينَ لَمْ يُرِدِ اللَّهُ أَن يُطَهِّرَ قُلُوبَهُمْ ۚ لَهُمْ فِي الدُّنْيَا خِزْيٌ ۖ وَلَهُمْ فِي الْآخِرَةِ عَذَابٌ
या अय्युहर्रसूलु ला यह्ज़ुनकल्लज़ी-न युसारिअू-न फ़िल्कुफ्रि मिनल्लज़ी-न क़ालू आमन्ना बिअफ़्वाहिहिम् व लम् तुअ्मिन् क़ुलूबुहुम्, व मिनल्लज़ी-न हादू, सम्माअू-न लिल्कज़िबि सम्माअू-न लिक़ौमिन् आख़री-न, लम् यअ्तू-क, युहर्रिफूनल्-कलि-म मिम्-बअ्दि मवाज़िअिही, यक़ूलू-न इन् ऊतीतुम् हाज़ा फ़ख़ुज़ूहु व इल्लम् तुअ्तौहू फ़ह़्ज़रू, व मंय्युरिदिल्लाहु फ़ित्-नतहू फ़-लन् तम्लि-क लहू मिनल्लाहि शैअन्, उला-इकल्लज़ी-न लम् युरिदिल्लाहु अंय्युतह़्हि-र क़ुलूबहुम्, लहुम् फ़िद्दुन्या ख़िज़्युंव्-व लहुम् फ़िल्-आख़ि-रति अज़ाबुन् अज़ीम
हिंदी अनुवाद
हे नबी! वे आपको उदासीन न करें, जो कुफ़्र में तीव्र गामी हैं; उनमें से जिन्होंने कहा कि हम ईमान लाये, जबकि उनके दिल ईमान नहीं लाये और उनमें से जो यहूदी हैं, जिनकी दशा ये है कि मिथ्या बातें सुनने के लिए कान लगाये रहते हैं तथा दूसरों के लिए, जो आपके पास नहीं आये, कान लगाये रहते हैं। वे शब्दों को उनके निश्चित स्थानों के पश्चात् वास्तविक अर्थों से फेर देते हैं। वे कहते हैं कि यदि तुम्हें यही आदेश दिया जाये (जो हमने बताया है) तो मान लो और यदि वह न दिये जाओ, तो उससे बचो। (हे नबी!) जिसे अल्लाह अपनी परीक्षा में डालना चाहे, आप उसे अल्लाह से बचाने के लिए कुछ नहीं कर सकते। यही वे हैं, जिनके दिलों को अल्लाह ने पवित्र करना नहीं चाहा। उन्हीं के लिए संसार में अपमान है और उन्हीं के लिए परलोक में घोर[1] यातना है।
5.42
سَمَّاعُونَ لِلْكَذِبِ أَكَّالُونَ لِلسُّحْتِ ۚ فَإِن جَاءُوكَ فَاحْكُم بَيْنَهُمْ أَوْ أَعْرِضْ عَنْهُمْ ۖ وَإِن تُعْرِضْ عَنْهُمْ فَلَن يَضُرُّوكَ شَيْئًا ۖ وَإِنْ حَكَمْتَ فَاحْكُم بَيْنَهُم بِالْقِسْطِ ۚ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُقْسِطِينَ
सम्माअू-न लिल्कज़िबि अक्कालू-न लिस्सुह्ति, फ़- इन् जाऊ-क फ़ह़्कुम् बैनहुम् औ अअ्-रिज़् अन्हुम्, व इन् तुअ्-रिज़् अन्हुम् फ़-लंय्यज़ुर्रू-क शैअन्, व इन् हकम्-त फ़ह़्कुम् बैनहुम् बिल्क़िस्ति, इन्नल्ला-ह युहिब्बुल मुक़्सितीन
हिंदी अनुवाद
वे मिथ्या बातें सुनने वाले, अवैध भक्षी हैं। अतः यदि वे आपके पास आयें, तो आप उनके बीच निर्णय कर दें अथवा उनसे मुँह फेर लें (आपको अधिकार है)। और यदि आप उनसे मुँह फेर लें, तो वे आपको कोई हाणि नहीं पहुँचा सकेंगे और यदि निर्णय करें, तो न्याय के साथ निर्णय करें। निःसंदेह अल्लाह न्यायकारियों से प्रेम करता है।
5.43
وَكَيْفَ يُحَكِّمُونَكَ وَعِندَهُمُ التَّوْرَاةُ فِيهَا حُكْمُ اللَّهِ ثُمَّ يَتَوَلَّوْنَ مِن بَعْدِ ذَٰلِكَ ۚ وَمَا أُولَٰئِكَ بِالْمُؤْمِنِينَ
व कै-फ़ युहक्किमून-क व अिन्दहुमुत्तौरातु फ़ीहा हुक्मुल्लाहि सुम्-मय तवल्लौ-न मिम् बअ्दि ज़ालि-क, व मा उलाइ-क बिल्-मुअ्मिनीन *
हिंदी अनुवाद
और वे आपको निर्णयकारी कैसे बना सकते हैं, जबकि उनके पास तौरात (पुस्तक) मौजूद है, जिसमें अल्लाह का आदेश है, फिर इसके पश्चात उससे मुँह फेर रहे हैं? वास्तव में, वे ईमान वाले हैं ही[1] नहीं।
5.44
إِنَّا أَنزَلْنَا التَّوْرَاةَ فِيهَا هُدًى وَنُورٌ ۚ يَحْكُمُ بِهَا النَّبِيُّونَ الَّذِينَ أَسْلَمُوا لِلَّذِينَ هَادُوا وَالرَّبَّانِيُّونَ وَالْأَحْبَارُ بِمَا اسْتُحْفِظُوا مِن كِتَابِ اللَّهِ وَكَانُوا عَلَيْهِ شُهَدَاءَ ۚ فَلَا تَخْشَوُا النَّاسَ وَاخْشَوْنِ وَلَا تَشْتَرُوا بِآيَاتِي ثَمَنًا قَلِيلًا ۚ وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْكَافِرُونَ
इन्ना अन्ज़ल्नत्तौरा-त फ़ीहा हुदंव्-व नूरून्, यह़्कुमु बिहन्न बिय्यूनल्लज़ी-न अस्लमू लिल्लज़ी-न हादू वर्रब्बानिय्यू-न वल्-अह़्बारू बिमस्तुह़्फ़िज़ू मिन् किताबिल्लाहि व कानू अलैहि शु-हदा-अ, फ़ला तख़्शवुन्ना-स वख़्शौनि व ला तश्तरू बिआयाती स- मनन् क़लीलन्, व मल्लम् यह्कुम् बिमा अन्ज़लल्लाहु फ़-उलाइ-क हुमुल्काफिरून
हिंदी अनुवाद
निःसंदेह, हमने ही तौरात उतारी, जिसमें मार्गदर्शन तथा प्रकाश है, जिसके अनुसार वो नबी निर्णय करते रहे, जो आज्ञाकारी थे, उनके लिए जो यहूदी थे तथा धर्माचारी और विद्वान लोग, क्योंकि वे अल्लाह की पुस्तक के रक्षक बनाये गये थे और उसके (सत्य होने के) साक्षी थे। अतः, तुमभी लोगों से न डरो, मुझी से डरो और मेरी आयतों के बदले तनिक मूल्य न खरीदो और जो अल्लाह की उतारी (पुस्तक के) अनुसार निर्णय न करें, तो वही काफ़िर हैं।
5.45
وَكَتَبْنَا عَلَيْهِمْ فِيهَا أَنَّ النَّفْسَ بِالنَّفْسِ وَالْعَيْنَ بِالْعَيْنِ وَالْأَنفَ بِالْأَنفِ وَالْأُذُنَ بِالْأُذُنِ وَالسِّنَّ بِالسِّنِّ وَالْجُرُوحَ قِصَاصٌ ۚ فَمَن تَصَدَّقَ بِهِ فَهُوَ كَفَّارَةٌ لَّهُ ۚ وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ ‎
व कतब्-ना अलैहिम् फ़ीहा अन्नफ़्-स बिन्नफ्सि, वल्ऐ- न बिल् ऐनि वल्अन्-फ़ बिल् अन्फ़ि वल्अुज़ु-न बिल-उज़ुनि वस्सिन्-न बिस्सिन्नि, वल्-जुरू-ह क़िसासुन, फ़-मन् तसद्द-क़ बिही फ़हु-व कफ्फारतुल्लहू, व मल्लम् यह्कुम् बिमा अन्ज़ लल्लाहु फ़-उलाइ-क हुमुज़्ज़ालिमून
हिंदी अनुवाद
और हमने उन (यहूदियों) पर उस (तौरात) में लिख दिया कि प्राण के बदले प्राण, आँख के बदले आँख, नाक के बदले नाक, कान के बदले कान और दाँत के बदले दाँत[1] हैं तथा सभी आघातों में बराबरी का बदला है। फिर जो कोई बदला लेने को दान (क्षमा) कर दे, तो वह उसके लिए (उसके पापों का) प्रायश्चित हो जायेगा तथा जो अल्लाह की उतारी (पुस्तक के) अनुसार निर्णय न करें, वही अत्याचारी हैं।


5.46
وَقَفَّيْنَا عَلَىٰ آثَارِهِم بِعِيسَى ابْنِ مَرْيَمَ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ التَّوْرَاةِ ۖ وَآتَيْنَاهُ الْإِنجِيلَ فِيهِ هُدًى وَنُورٌ وَمُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ التَّوْرَاةِ وَهُدًى وَمَوْعِظَةً لِّلْمُتَّقِينَ
व क़फ्फैना अला आसारिहिम् बिअीसब्नि मर य-म मुसद्दिक़ल्लिमा बै-न यदैहि मिनत्तौराति, व आतैनाहुल् इन्जी-ल फ़ीहि हुदंव्-व नूरूंव्-व मुसद्दिक़ल्-लिमा बै-न यदैहि मिनत्तौराति व हुदंव्-व मौअि-ज़तल् लिल्मुत्तक़ीन
हिंदी अनुवाद
फिर हमने उन नबियों के पश्चात् मर्यम के पुत्र ईसा को भेजा, उसे सच बताने वाला, जो उसके सामने तौरात थी तथा उसे इंजील प्रदान की, जिसमें मार्गदर्शन तथा प्रकाश है, उसे सच बताने वाली, जो उसके आगे तौरात थी तथा अल्लाह से डरने वालों के लिए सर्वथा मार्गदर्शन तथा शिक्षा थी।
5.47
وَلْيَحْكُمْ أَهْلُ الْإِنجِيلِ بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ فِيهِ ۚ وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ
वल्यह्कुम् अह्लुल्-इन्जीलि बिमा अन्ज़लल्लाहु फ़ीहि, व मल्लम् यह्कुम् बिमा अन्ज़लल्लाहु फ़-उलाइ-क हुमुल फ़ासिक़ून
हिंदी अनुवाद
और इंजील के अनुयायी भी उसीसे निर्णय करें, जो अल्लाह ने उसमें उतारा है और जो उससे निर्णय न करें, जिसे अल्लाह ने उतारा है, वही अधर्मी हैं।
5.48
وَأَنزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ الْكِتَابِ وَمُهَيْمِنًا عَلَيْهِ ۖ فَاحْكُم بَيْنَهُم بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ ۖ وَلَا تَتَّبِعْ أَهْوَاءَهُمْ عَمَّا جَاءَكَ مِنَ الْحَقِّ ۚ لِكُلٍّ جَعَلْنَا مِنكُمْ شِرْعَةً وَمِنْهَاجًا ۚ وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ لَجَعَلَكُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً وَلَٰكِن لِّيَبْلُوَكُمْ فِي مَا آتَاكُمْ ۖ فَاسْتَبِقُوا الْخَيْرَاتِ ۚ إِلَى اللَّهِ مَرْجِعُكُمْ جَمِيعًا فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ
व अन्ज़ल्ना इलैकल्- किता-ब बिल्हक़्क़ि मुसद्दिक़ल्लिमा बै-न यदैहि मिनल्-किताबि व मुहैमिनन् अलैहि फ़ह़्कुम् बैनहुम् बिमा अन्ज़लल्लाहु व ला तत्तबिअ् अह़्वा-अहुम् अम्मा जाअ-क मिनल् हक़्क़ि, लिकुल्लिन् जअ़ल्ना मिन्कुम् शिर्-अतंव् व मिन्हाजन्, व लौ शाअल्लाहु ल-ज-अ-लकुम उम्मतंव्-वाहि-दतंव्-व लाकिल्लियब्लु-वकुम् फी मा आताकुम् फ़स्तबिक़ुल-ख़ैराति, इलल्लाहि मर्जिअुकुम् जमीअ़न् फ़युनब्बिउकुम् बिमा कुन्तुम् फ़ीहि तख़्तलिफून
हिंदी अनुवाद
और (हे नबी!) हमने आपकी ओर सत्य पर आधारित पुस्तक (क़ुर्आन) उतार दी, जो अपने पूर्व की पुस्तकों को सच बताने वाली तथा संरक्षक[1] है, अतः आप लोगों का निर्णय उसीसे करें, जो अल्लाह ने उतारा है तथा उनकी मनमानी पर उस सत्य से विमुख होकर न चलें, जो आपके पास आया है। हमने तुममें से प्रत्येक के लिए एक धर्म विधान तथा एक कार्य प्रणाली बना दिया[2] था और यदि अल्लाह चाहता, तो तुम्हें एक ही समुदाय बना देता, परन्तु उसने जो कुछ दिया है, उसमें तुम्हारी परीक्षा लेना चाहता है। अतः, भलाईयों में एक-दूसरे से अग्रसर होने का प्रयास करो[3], अल्लाह ही की ओर तुम सबको लौटकर जाना है। फिर वह तुम्हें बता देगा, जिन बातों में तुम विभेद करते रहे।
5.49
وَأَنِ احْكُم بَيْنَهُم بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ وَلَا تَتَّبِعْ أَهْوَاءَهُمْ وَاحْذَرْهُمْ أَن يَفْتِنُوكَ عَن بَعْضِ مَا أَنزَلَ اللَّهُ إِلَيْكَ ۖ فَإِن تَوَلَّوْا فَاعْلَمْ أَنَّمَا يُرِيدُ اللَّهُ أَن يُصِيبَهُم بِبَعْضِ ذُنُوبِهِمْ ۗ وَإِنَّ كَثِيرًا مِّنَ النَّاسِ لَفَاسِقُونَ
व अनिह़्कुम् बैनहुम् बिमा अन्जलल्लाहु व ला तत्तबिअ् अह़्वा-अहुम् वह़्ज़रहुम् अंय्यफ्तिनू-क अम्बअ्ज़ि मा अन्ज़लल्लाहु इलै-क, फ़-इन् तवल्लौ फ़अ लम् अन्नमा युरीदुल्लाहु अंय्युसीबहुम् बि-बअ्ज़ि ज़ुनूबिहिम्, व इन्-न कसीरम् मिनन्नासि लफ़ासिक़ून
हिंदी अनुवाद
तथा (हे नबी!) आप उनका निर्णय उसीसे करें, जो अल्लाह ने उतारा है और उनकी मनमानी पर न चलें तथा उनसे सावधान रहें कि आपको जो अल्लाह ने आपकी ओर उतारा है, उसमें से कुछ से फेर न दें। फिर यदि वे मुँह फेरें, तो जान लें कि अल्लाह चाहता है कि उनके कुछ पापों के कारण उन्हें दण्ड दे। वास्तव में, बहुत-से लोग उल्लंघनकारी हैं।
5.50
أَفَحُكْمَ الْجَاهِلِيَّةِ يَبْغُونَ ۚ وَمَنْ أَحْسَنُ مِنَ اللَّهِ حُكْمًا لِّقَوْمٍ يُوقِنُونَ
अ-फ़हुक्मल् जाहिलिय्यति यब्ग़ू-न, व मन् अह्सनु मिनल्लाहि हुक्मल लिक़ौमिंय्यूक़िनून*
हिंदी अनुवाद
तो क्या वे जाहिलिय्यत (अंधकार युग) का निर्णय चाहते हैं? और अल्लाह से अच्छा निर्णय किसका हो सकता है, उनके लिए जो विश्वास रखते हैं?


5.51
۞ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَّخِذُوا الْيَهُودَ وَالنَّصَارَىٰ أَوْلِيَاءَ ۘ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاءُ بَعْضٍ ۚ وَمَن يَتَوَلَّهُم مِّنكُمْ فَإِنَّهُ مِنْهُمْ ۗ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तत्तख़िज़ुल् यहू-द वन्नसारा औलिया-अ • बअ्ज़ुहुम् औलिया-उ बअ्ज़िन्, व मंय्य-तवल्लहुम् मिन्कुम् फ-इन्नहू मिन्हुम्, इन्नल्ला-ह ला यह़्दिल् क़ौमज़-ज़ालिमीन
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! तुम यहूदी तथा ईसाईयों को अपना मित्र न बनाओ, वे एक-दूसरे के मित्र हैं और जो कोई तुममें से उन्हें मित्र बनायेगा, वह उन्हीं में होगा तथा अल्लाह अत्याचारियों को सीधी राह नहीं दिखाता।
5.52
فَتَرَى الَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ يُسَارِعُونَ فِيهِمْ يَقُولُونَ نَخْشَىٰ أَن تُصِيبَنَا دَائِرَةٌ ۚ فَعَسَى اللَّهُ أَن يَأْتِيَ بِالْفَتْحِ أَوْ أَمْرٍ مِّنْ عِندِهِ فَيُصْبِحُوا عَلَىٰ مَا أَسَرُّوا فِي أَنفُسِهِمْ نَادِمِينَ
फ़-तरल्लज़ी-न फी क़ुलूबिहिम् मरजुंय्युसारिअू-न फ़ीहिम् यक़ूलू-न नख़्शा अन् तुसीबना दा-इ-रतुन्, फ़ असल्लाहु अंय्यअ्ति-य बिल्फ़त्हि औ अम्रिम् मिन् अिन्दिही फ़युस्बिहू अला मा असर्रु फ़ी अन्फुसिहिम् नादिमीन
हिंदी अनुवाद
फिर (हे नबी!) आप देखेंगे कि जिनके दिलों में (द्विधा का) रोग है, वे उन्हीं में दौड़े जा रहे हैं, वे कहते हैं कि हम डरते हैं कि हम किसी आपदा के कुचक्र में न आ जायेँ, तो दूर नहीं कि अल्लाह उन्हें विजय प्रदान करेगा अथवा उसके पास से कोई बात हो जायेगी, तो वे लोग उस बात पर, जो उन्होंने अपने मन में छुपा रखी है, लज्जित होंगे।
5.53
وَيَقُولُ الَّذِينَ آمَنُوا أَهَٰؤُلَاءِ الَّذِينَ أَقْسَمُوا بِاللَّهِ جَهْدَ أَيْمَانِهِمْ ۙ إِنَّهُمْ لَمَعَكُمْ ۚ حَبِطَتْ أَعْمَالُهُمْ فَأَصْبَحُوا خَاسِرِينَ
व यक़ू लुल्लज़ी-न आमनू अ-हाउलाइल्लज़ी-न अक़्समू बिल्लाहि जह्-द ऐमानिहिम्, इन्नहुम् ल-म-अकुम्, हबितत् अअ्मालुहुम् फ़अस्बहू ख़ासिरीन
हिंदी अनुवाद
तथा (उस समय) ईमान वाले कहेंगेः क्या यही वे हैं, जो अल्लाह की बड़ी गंभीर शपथें लेकर कहा करते थे कि वे तुम्हारे साथ हैं? इनके कर्म अकारथ गये और अंततः वे असफल हो गये।
5.54
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا مَن يَرْتَدَّ مِنكُمْ عَن دِينِهِ فَسَوْفَ يَأْتِي اللَّهُ بِقَوْمٍ يُحِبُّهُمْ وَيُحِبُّونَهُ أَذِلَّةٍ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ أَعِزَّةٍ عَلَى الْكَافِرِينَ يُجَاهِدُونَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَلَا يَخَافُونَ لَوْمَةَ لَائِمٍ ۚ ذَٰلِكَ فَضْلُ اللَّهِ يُؤْتِيهِ مَن يَشَاءُ ۚ وَاللَّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ ‎
या अय्यु हल्लज़ी-न आमनू मंय्यर्तद्-द मिन्कुम् अन् दीनिही फ़सौ-फ़ यअ्तिल्लाहु बिक़ौमिंय्-युहिब्बुहुम् व युहिब्बूनहू, अज़िल्लतिन् अलल्-मुअ्मिनी-न अअिज़्ज़तिन् अलल्काफ़िरी-न, युजाहिदू-न फ़ी सबीलिल्लाहि व ला यख़ाफून लौ-म त ला-इमिन्, ज़ालि-क फज़्लुल्लाहि युअ्तीहि मंय्यशा-उ, वल्लाहु वासिअुन् अलीम
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! तुममें से जो अपने धर्म से फिर जायेगा, तो अल्लाह (उसके स्थान पर) ऐसे लोगों को पैदा कर देगा, जिनसे वह प्रेम करेगा और वे उससे प्रेम करेंगे। वे ईमान वालों के लिए कोमल तथा काफ़िरों के लिए कड़े[1] होंगे, अल्लाह की राह में जिहाद करेंगे, किसी निंदा करने वाले की निंदा से नहीं डरेंगे। ये अल्लाह की दया है, जिसे चाहे प्रदान करता है और अल्लाह (की दया) विशाल है और वह अति ज्ञानी है।
5.55
إِنَّمَا وَلِيُّكُمُ اللَّهُ وَرَسُولُهُ وَالَّذِينَ آمَنُوا الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُمْ رَاكِعُونَ
इन्नमा वलिय्युकुमुल्लाहु व रसूलुहू वल्लज़ी-न आमनुल्लज़ी-न युक़ीमूनस्सला-त व युअ्तूनज़्ज़का-त व हुम् राकिअून
हिंदी अनुवाद
तुम्हारे सहायक केवल अल्लाह और उसके रसूल तथा वो हैं, जो ईमान लाये, नमाज़ की स्थापना करते हैं, ज़कात देते हैं और अल्लाह के आगे झुकने वाले हैं।


5.56
وَمَن يَتَوَلَّ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَالَّذِينَ آمَنُوا فَإِنَّ حِزْبَ اللَّهِ هُمُ الْغَالِبُونَ
व मंय्य-तवल्लल्ला-ह व रसूलहू वल्लज़ी-न आमनू फ़-इन्-न हिज़्बल्लाहि हुमुल्-ग़ालिबून *
हिंदी अनुवाद
तथा जो अल्लाह और उसके रसूल तथा ईमान वालों को सहायक बनायेगा, तो निश्चय अल्लाह का दल ही छाकर रहेगा।
5.57
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَّخِذُوا الَّذِينَ اتَّخَذُوا دِينَكُمْ هُزُوًا وَلَعِبًا مِّنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ مِن قَبْلِكُمْ وَالْكُفَّارَ أَوْلِيَاءَ ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तत्तख़िज़ुल्लज़ीनत्त ख़ज़ू दीनकुम् हुज़ुवंव्-व लअिबम् मिनल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब मिन् क़ब्लिकुम् वल्कुफ्फ़ा-र औलिया-अ, वत्तक़ुल्ला-ह इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! उन्हें जिन्होंने तुम्हारे धर्म को उपहास तथा खेल बना रखा है, उनमें से, जो तुमसे पहले पुस्तक दिये गये हैं तथा काफ़िरों को सहायक (मित्र) न बनाओ और अल्लाह से डरते रहो, यदि तुम वास्तव में ईमान वाले हो।
5.58
وَإِذَا نَادَيْتُمْ إِلَى الصَّلَاةِ اتَّخَذُوهَا هُزُوًا وَلَعِبًا ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لَّا يَعْقِلُونَ
व इज़ा नादैतुम् इलस्सलातित्-त ख़ज़ूहा हुज़ुवंव्-व लअिबन्, ज़ालि-क बि-अन्नहुम् क़ौमुल्ला यअ्क़िलून
हिंदी अनुवाद
और जब तुम नमाज़ के लिए पुकारते हो, तो वे उसका उपहास करते तथा खेल बनाते हैं, इसलिए कि वे समझ नहीं रखते।
5.59
قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ هَلْ تَنقِمُونَ مِنَّا إِلَّا أَنْ آمَنَّا بِاللَّهِ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْنَا وَمَا أُنزِلَ مِن قَبْلُ وَأَنَّ أَكْثَرَكُمْ فَاسِقُونَ
क़ुल् या अह़्लल्-किताबि हल् तन्क़िमू-न मिन्ना इल्ला अन् आमन्ना बिल्लाहि व मा उन्ज़ि-ल इलैना व मा उन्ज़ि-ल मिन् क़ब्लु, व अन्-न अक्स रकुम् फ़ासिक़ून
हिंदी अनुवाद
(हे नबी!) आप कह दें कि हे अह्ले किताब! इसके सिवा हमारा दोष किया है, जिसका तुम बदला लेना चाहते हो कि हम अल्लाह पर तथा जो हमारी ओर उतारा गया और जो हमसे पूर्व उतारा गया, उसपर ईमान लाये हैं और इसलिए कि तुममें अधिक्तर उल्लंघनकारी हैं?
5.60
قُلْ هَلْ أُنَبِّئُكُم بِشَرٍّ مِّن ذَٰلِكَ مَثُوبَةً عِندَ اللَّهِ ۚ مَن لَّعَنَهُ اللَّهُ وَغَضِبَ عَلَيْهِ وَجَعَلَ مِنْهُمُ الْقِرَدَةَ وَالْخَنَازِيرَ وَعَبَدَ الطَّاغُوتَ ۚ أُولَٰئِكَ شَرٌّ مَّكَانًا وَأَضَلُّ عَن سَوَاءِ السَّبِيلِ
क़ुल हल् उनब्बिउकुम् बि-शर्रिम् मिन ज़ालि-क मसू- बतन् जिन्दल्लाहि, मल्ल-अ नहुल्लाहु व ग़ज़ि-ब अ़लैहि व ज-अ-ल मिन्हुमुल क़ि-र-द-त वल्ख़नाज़ी-र व अ-ब-दत्ताग़ू-त, उलाइ-क शर्रुम् मकानंव्-व अज़ल्लु अन् सवा-इस्सबील
हिंदी अनुवाद
आप उनसे कह दें कि क्या तुम्हें बता दूँ, जिनका प्रतिफल (बदला) अल्लाह के पास इससे भी बुरा है? वे हैं, जिन्हें अल्लाह ने धिक्कार दिया और उनपर उसका प्रकोप हुआ तथा उनमें से बंदर और सूअर बना दिये गये तथा ताग़ूत ( असुर, धर्म विरोधी शक्तियों) को पूजने लगे। इन्हीं का स्थान सबसे बुरा है तथा सर्वाधिक कुपथ हैं।



5.61
وَإِذَا جَاءُوكُمْ قَالُوا آمَنَّا وَقَد دَّخَلُوا بِالْكُفْرِ وَهُمْ قَدْ خَرَجُوا بِهِ ۚ وَاللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا كَانُوا يَكْتُمُونَ
व इज़ा जाऊकुम् क़ालू आमन्ना व क़द्द-ख़लू बिल्कुफ्रि व हुम् क़द् ख़-रजू बिही, वल्लाहु अअ्लमु बिमा कानू यक्तुमून
हिंदी अनुवाद
जब वे[1] तुम्हारे पास आते हैं, तो कहते हैं कि हम ईमान लाये, जबकि वे कुफ़्र लिए हुए आये और उसी के साथ वापिस हुए तथा अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है, जिसे वे छुपा रहे हैं।
5.62
وَتَرَىٰ كَثِيرًا مِّنْهُمْ يُسَارِعُونَ فِي الْإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ وَأَكْلِهِمُ السُّحْتَ ۚ لَبِئْسَ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ
व तरा कसीरम् मिन्हुम् युसारिअू-न फिल् इस्मि वल् अुदवानि व अक्लिहिमुस्सुह-त, लबिअ्-स मा कानू यअ्मलून
हिंदी अनुवाद
तथा आप उनमें से बहुतों को देखेंगे कि पाप तथा अत्याचार और अपने अवैध खाने में दौड़ रहे हैं। वे बड़ा कुकर्म कर रहे हैं।
5.63
لَوْلَا يَنْهَاهُمُ الرَّبَّانِيُّونَ وَالْأَحْبَارُ عَن قَوْلِهِمُ الْإِثْمَ وَأَكْلِهِمُ السُّحْتَ ۚ لَبِئْسَ مَا كَانُوا يَصْنَعُونَ
लौ ला यन्हाहुमुर्रब्बानिय्यू-न वल्-अह्बारू अन् क़ौलिहिमुल-इस्- म व अक्लिहिमुस्सुह् त, लबिअ्-स मा कानू यस् नअून
हिंदी अनुवाद
उन्हें उनके धर्माचारी तथा विद्वान पाप की बात करने तथा अवैध खाने से क्यों नहीं रोकते? वे बहुत बुरी रीति बना रहे हैं।
5.64
وَقَالَتِ الْيَهُودُ يَدُ اللَّهِ مَغْلُولَةٌ ۚ غُلَّتْ أَيْدِيهِمْ وَلُعِنُوا بِمَا قَالُوا ۘ بَلْ يَدَاهُ مَبْسُوطَتَانِ يُنفِقُ كَيْفَ يَشَاءُ ۚ وَلَيَزِيدَنَّ كَثِيرًا مِّنْهُم مَّا أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ طُغْيَانًا وَكُفْرًا ۚ وَأَلْقَيْنَا بَيْنَهُمُ الْعَدَاوَةَ وَالْبَغْضَاءَ إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ ۚ كُلَّمَا أَوْقَدُوا نَارًا لِّلْحَرْبِ أَطْفَأَهَا اللَّهُ ۚ وَيَسْعَوْنَ فِي الْأَرْضِ فَسَادًا ۚ وَاللَّهُ لَا يُحِبُّ الْمُفْسِدِينَ ‎
व क़ालतिल्-यहूदु यदुल्लाहि मग़्लूलतुन्, ग़ुल्लत् ऐदीहिम् व लुअिनू बिमा क़ालू • बल् यदाहु मब्सूततानि, युन्फ़िक़ु कै-फ़ यशा उ, व ल-यज़ीद्-न्न कसीरम् मिन्हुम् मा उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बि-क तुग़्यानंव्-व कुफ्रन्, व अल्क़ै ना बैनहुमुल्-अदाव-त वल्ब़ग़्ज़ा-अ इला यौमिल् क़ियामति, कुल्लमा औक़दू नारल्-लिल्-हरबि अत्-फ़-अहल्लाहु, व यस्औ-न फिल्अर्ज़ि फ़सादन्, वल्लाहु ला युहिब्बुल् मुफ्सिदीन
हिंदी अनुवाद
तथा यहूदियों ने कहा कि अल्लाह के हाथ बंधे[1] हुए हैं, उन्हीं के हाथ बंधे हुए हैं और वे अपने इस कथन के कारण धिक्कार दिये गये हैं; बल्कि उसके दोनों हाथ खुले हुए हैं, वह जैसे चाहे, व्यय (खर्च) करता है और इनमें से अधिक्तर को, जो (क़ुर्आन) आपके पालनहार की ओर से आपपर उतारा गया है, उल्लंघन तथा कुफ़्र (अविश्वास) में अधिक कर देगा और हमने उनके बीच प्रलय के दिन तक के लिए शत्रुता तथा बैर डाल दिया है। जब कभी वे युध्द की अग्नि सुलगाते हैं, तो अल्लाह उसे बुझा[2] देता है। वे धरती में उपद्रव का प्रयास करते हैं और अल्लाह विद्रोहियों से प्रेम नहीं करता।
5.65
وَلَوْ أَنَّ أَهْلَ الْكِتَابِ آمَنُوا وَاتَّقَوْا لَكَفَّرْنَا عَنْهُمْ سَيِّئَاتِهِمْ وَلَأَدْخَلْنَاهُمْ جَنَّاتِ النَّعِيمِ
व लौ अन्-न अह़्लल्-किताबि आमनू वत्तक़ौ ल-कफ्फर् ना अन्हुम् सय्यिआतिहिम् व ल-अद्ख़ल्नाहुम् जन्नातिन् नईम
हिंदी अनुवाद
और यदि अह्ले किताब ईमान लाते तथा अल्लाह से डरते, तो हम अवश्य उनके दोषों को क्षमा कर देते और उन्हें सुख के स्वर्गों में प्रवेश देते।


5.66
وَلَوْ أَنَّهُمْ أَقَامُوا التَّوْرَاةَ وَالْإِنجِيلَ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْهِم مِّن رَّبِّهِمْ لَأَكَلُوا مِن فَوْقِهِمْ وَمِن تَحْتِ أَرْجُلِهِم ۚ مِّنْهُمْ أُمَّةٌ مُّقْتَصِدَةٌ ۖ وَكَثِيرٌ مِّنْهُمْ سَاءَ مَا يَعْمَلُونَ ‎
व लौ अन्नहुम् अक़ामुत्तौरा-त वल् इन्जी-ल व मा उन्ज़ि-ल इलैहिम् मिर्रब्बिहिम् ल-अ-कलू मिन् फौक़िहिम् व मिन् तह़्ति अर्जुलिहिम्, मिन्हुम् उम्मतुम् मुक़्तसि-दतुन्, व कसीरूम् मिन्हुम् सा-अ मा यअ्मलून*
हिंदी अनुवाद
तथा यदि वे स्थापित[1] रखते तौरात और इंजील को और जो भी उनकी ओर उतारा गया है, उनके पालनहार की ओर से, तो अवश्य अपने ऊपर (आकाश) से तथा पैरों के नीचे (धरती) से[2], जीविका पाते। उनमें एक संतुलित समुदाय भी है और उनमें से बहुत-से कुकर्म कर रहे हैं।
5.67
۞ يَا أَيُّهَا الرَّسُولُ بَلِّغْ مَا أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ ۖ وَإِن لَّمْ تَفْعَلْ فَمَا بَلَّغْتَ رِسَالَتَهُ ۚ وَاللَّهُ يَعْصِمُكَ مِنَ النَّاسِ ۗ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الْكَافِرِينَ ‎
या अय्युहर्रसूलु बल्लिग़् मा उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बि-क, व इल्लम् तफ्अल् फ़मा बल्लग़्-त रिसाल-तहू, वल्लाहु यअ्सिमु-क मिनन्नासि, इन्नल्ला-ह ला यह़्दिल क़ौमल-काफ़िरीन
हिंदी अनुवाद
हे रसूल![1] जो कुछ आपपर आपके पालनहार की ओर से उतारा गया है, उसे (सबको) पहुँचा दें और यदि ऐसा नहीं किया, तो आपने उसका उपदेश नहीं पहुँचाया और अल्लाह (विरोधियों से) आपकी रक्षा करेगा[2], निश्चय अल्लाह काफ़िरों को मार्गदर्शन नहीं देता।
5.68
قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لَسْتُمْ عَلَىٰ شَيْءٍ حَتَّىٰ تُقِيمُوا التَّوْرَاةَ وَالْإِنجِيلَ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْكُم مِّن رَّبِّكُمْ ۗ وَلَيَزِيدَنَّ كَثِيرًا مِّنْهُم مَّا أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ طُغْيَانًا وَكُفْرًا ۖ فَلَا تَأْسَ عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ
क़ुल या अह़्लल्-किताबि लस्तुम् अला शैइन् हत्ता तुक़ीमुत्तौरा-त वल्-इन्ज़ी-ल व मा उन्ज़ि-ल इलैकुम मिर्रब्बिकुम्, व ल-यज़ीदन्-न कसीरम्-मिन्हुम् मा उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बि-क तुग़्यानंव्-व कुफ्रन्, फला तअ्-स अलल् क़ौमिल-काफिरीन
हिंदी अनुवाद
(हे नबी!) आप कह दें कि हे अह्ले किताब! तुम किसी धर्म पर नहीं हो, जब तक तौरात तथा इंजील और उस (क़ुर्आन) की स्थापना[1] न करो, जो तुम्हारी ओर तुम्हारे पालनहार की ओर से उतारा गया है तथा उनमें से अधिक्तर को जो (क़ुर्आन) आपके पालनहार की ओर से उतारा गया है, अवश्य उल्लंघन तथा कुफ़्र (अविश्वास) में अधिक कर देगा। अतः, आप काफ़िरों (के अविश्वास) पर दुखी न हों।
5.69
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَالَّذِينَ هَادُوا وَالصَّابِئُونَ وَالنَّصَارَىٰ مَنْ آمَنَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَعَمِلَ صَالِحًا فَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ ‎
इन्नल्लज़ी-न आमनू वल्लज़ी-न हादू वस्साबिऊ-न वन्नसारा मन् आम-न बिल्लाहि वल्यौमिल् आख़िरि व अमि-ल सालिहन फ़ला ख़ौफुन अलैहिम् व ला हुम् यह़्ज़नून
हिंदी अनुवाद
वास्तव में, जो ईमान लाये, जो यहूदी हुए, साबी तथा ईसाई, जो भी अल्लाह तथा अन्तिम दिन (प्रलय) पर ईमान लायेगा तथा सत्कर्म करेगा, तो उन्हीं के लिए कोई डर नहीं और न वे उदासीन[1] होंगे।
5.70
لَقَدْ أَخَذْنَا مِيثَاقَ بَنِي إِسْرَائِيلَ وَأَرْسَلْنَا إِلَيْهِمْ رُسُلًا ۖ كُلَّمَا جَاءَهُمْ رَسُولٌ بِمَا لَا تَهْوَىٰ أَنفُسُهُمْ فَرِيقًا كَذَّبُوا وَفَرِيقًا يَقْتُلُونَ
ल-क़द् अख़ज़्ना मीसा-क़ बनी इस्राई-ल व अरसल्ना इलैहिम् रूसुलन्, कुल्लमा जाअहुम् रसूलुम् बिमा ला तह़्वा अन्फुसुहुम्, फ़रीक़न् कज़्ज़बू व फरीकंय्यक़्तुलून
हिंदी अनुवाद
हमने बनी इस्राईल से दृढ़ वचन लिया तथा उनके पास बहुत-से रसूल भेजे, (परन्तु) जब कभी कोई रसूल उनकी अपनी आकांक्षाओं के विरुध्द कुछ लाया, तो एक गिरोह को उन्होंने झुठला दिया तथा एक गिरोह को वध करते रहे।


5.71
وَحَسِبُوا أَلَّا تَكُونَ فِتْنَةٌ فَعَمُوا وَصَمُّوا ثُمَّ تَابَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ ثُمَّ عَمُوا وَصَمُّوا كَثِيرٌ مِّنْهُمْ ۚ وَاللَّهُ بَصِيرٌ بِمَا يَعْمَلُونَ
व हसिबू अल्ला तकू-न फ़ित् नतुन् फ़-अमू व सम्मू सुम्-म ताबल्लाहु अलैहिम् सुम्-म अमू व सम्मू कसीरूम्-मिन्हुम्, वल्लाहु बसीरूम् बिमा यअ्मलून
हिंदी अनुवाद
तथा वे समझे कि कोई परीक्षा न होगी, इसलिए अंधे-बहरे हो गये, फिर अल्लाह ने उन्हें क्षमा कर दिया, फिर भी उनमें से अधिक्तर अंधे और बहरे हो गये तथा वे जो कुछ कर रहे हैं, अल्लाह उसे देख रहा है।
5.72
لَقَدْ كَفَرَ الَّذِينَ قَالُوا إِنَّ اللَّهَ هُوَ الْمَسِيحُ ابْنُ مَرْيَمَ ۖ وَقَالَ الْمَسِيحُ يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ اعْبُدُوا اللَّهَ رَبِّي وَرَبَّكُمْ ۖ إِنَّهُ مَن يُشْرِكْ بِاللَّهِ فَقَدْ حَرَّمَ اللَّهُ عَلَيْهِ الْجَنَّةَ وَمَأْوَاهُ النَّارُ ۖ وَمَا لِلظَّالِمِينَ مِنْ أَنصَارٍ
ल-क़द् क-फरल्लज़ीन क़ालू इन्नल्ला-ह हुवल् – मसीहुब्नु मर-य-म, व क़ालल्मसीहु या बनी इस्राईल अ्बुदुल्ला-ह रब्बी व रब्बकुम, इन्नहू मंय्युश्रिक् बिल्लाहि फ़-क़द् हर्रमल्लाहु अलैहिल-जन्न-त व मअ्वाहुन्नारू, व मा लिज़्ज़ालिमी-न मिन् अन्सार
हिंदी अनुवाद
निश्चय वे काफ़िर हो गये, जिन्होंने कहा कि अल्लाह[1] मर्यम का पुत्र मसीह़ ही है। जबकि मसीह़ ने कहा थाः हे बनी इस्राईल! उस अल्लाह की इबादत (वंदना) करो, जो मेरा पालनहार तथा तुम्हारा पालनहार है, वास्तव में, जिसने अल्लाह का साझी बना लिया, उसपर अल्लाह ने स्वर्ग को ह़राम (वर्जित) कर दिया और उसका निवास स्थान नरक है तथा अत्याचारों का कोई सहायक न होगा।
5.73
لَّقَدْ كَفَرَ الَّذِينَ قَالُوا إِنَّ اللَّهَ ثَالِثُ ثَلَاثَةٍ ۘ وَمَا مِنْ إِلَٰهٍ إِلَّا إِلَٰهٌ وَاحِدٌ ۚ وَإِن لَّمْ يَنتَهُوا عَمَّا يَقُولُونَ لَيَمَسَّنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
ल-क़द क-फरल्लज़ी-न क़ालू इन्नल्ला-ह सालिसु सलासतिन् • व मा मिन् इलाहिन् इल्ला इलाहुंव्वाहिदुन्, व इल्लम् यन्तहू अम्मा यक़ूलू-न ल-यमस्सन्नल्लज़ी-न क-फरू मिन्हुम् अज़ाबुन अलीम
हिंदी अनुवाद
निश्चय वे भी काफ़िर हो गये, जिन्होंने कहा कि अल्लाह तीन का तीसरा है! जबकि कोई पूज्य नहीं है, परन्तु वही अकेला पूज्य है और यदि वे जो कुछ कहते हैं, उससे नहीं रुके, तो उनमें से काफ़िरों को दुखदायी यातना होगी।
5.74
أَفَلَا يَتُوبُونَ إِلَى اللَّهِ وَيَسْتَغْفِرُونَهُ ۚ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
अ-फ़ला यतूबू न इलल्लाहि व यस्तग़्फिरूनहू, वल्लाहु ग़फूरुर्रहीम
हिंदी अनुवाद
वे अल्लाह से तौबा तथा क्षमा याचना क्यों नहीं करते, जबकि अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है?
5.75
‏ مَّا الْمَسِيحُ ابْنُ مَرْيَمَ إِلَّا رَسُولٌ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهِ الرُّسُلُ وَأُمُّهُ صِدِّيقَةٌ ۖ كَانَا يَأْكُلَانِ الطَّعَامَ ۗ انظُرْ كَيْفَ نُبَيِّنُ لَهُمُ الْآيَاتِ ثُمَّ انظُرْ أَنَّىٰ يُؤْفَكُونَ ‎
मल्मसीहुब्नु मर्-य-म इल्ला रसूलुन्, क़द् ख़-लत् मिन् क़ब्लिहिर्रुसुलु, व उम्मुहू सिद्दीक़तुन्, काना यअ्कुलानित्तआ-म, उन्ज़ुर् कै-फ नुबय्यिनु लहुमुल्-आयाति सुम्मन्ज़ुर् अन्ना युअ्फ़कून
हिंदी अनुवाद
मर्यम का पुत्र मसीह़ इसके सिवा कुछ नहीं कि वह एक रसूल है, उससे पहले भी बहुत-से रसूल हो चुके हैं, उसकी माँ सच्ची थी, दोनों भोजन करते थे, आप देखें कि हम कैसे उनके लिए निशानियाँ (एकेश्वरवाद के लक्षण) उजागर कर रहे हैं, फिर देखिए कि वे कहाँ बहके[1] जा रहे हैं?


5.76
قُلْ أَتَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللَّهِ مَا لَا يَمْلِكُ لَكُمْ ضَرًّا وَلَا نَفْعًا ۚ وَاللَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ
क़ुल अ-तअ्बुदून मिन् दूनिल्लाहि मा ला यम्लिकु लकुम् ज़र्रव् व ला नफ्अन्, वल्लाहु हुवस्समीअुल अलीम
हिंदी अनुवाद
आप उनसे कह दें कि क्या तुम अल्लाह के सिवा उसकी इबादत (वंदना) कर रहे हो, जो तुम्हें कोई हानि और लाभ नहीं पहुँचा सकता? तथा अल्लाह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।
5.77
قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لَا تَغْلُوا فِي دِينِكُمْ غَيْرَ الْحَقِّ وَلَا تَتَّبِعُوا أَهْوَاءَ قَوْمٍ قَدْ ضَلُّوا مِن قَبْلُ وَأَضَلُّوا كَثِيرًا وَضَلُّوا عَن سَوَاءِ السَّبِيلِ ‎
क़ुल या अह़्लल्-किताबि ला तग़्लू फ़ी दीनिकुम् ग़ैरल् -हक़्क़ि व ला तत्तबिअू अह़्वा-अ क़ौमिन् क़द् ज़ल्लू मिन् क़ब्लु व अज़ल्लू कसीरंव्-व ज़ल्लू अन् सवा-इस्सबील*
हिंदी अनुवाद
(हे नबी!) कह दो कि हे अह्ले किताब! अपने धर्म में अवैध अति न करो[1] तथा उनकी अभिलाषाओं पर न चलो, जो तुमसे पहले कुपथ हो[2] चुके और बहुतों को कुपथ कर गये और संमार्ग से विचलित हो गये।
5.78
لُعِنَ الَّذِينَ كَفَرُوا مِن بَنِي إِسْرَائِيلَ عَلَىٰ لِسَانِ دَاوُودَ وَعِيسَى ابْنِ مَرْيَمَ ۚ ذَٰلِكَ بِمَا عَصَوا وَّكَانُوا يَعْتَدُونَ ‎
लुअिनल्लज़ी-न क-फरू मिम्-बनी इस्राई-ल अला लिसानि दावू-द व ईसब्-नि मर्-य-म, ज़ालि-क बिमा असौ व कानू यअ्तदून
हिंदी अनुवाद
बनी इस्राईल में से जो काफ़िर हो गये, वे दावूद तथा मर्यम के पुत्र ईसा की ज़बान पर धिक्कार दिये[1] गये, ये इस कारण कि उन्होंने अवज्ञा की तथी (धर्म की सीमा का) उल्लंघन कर रहे थे।
5.79
كَانُوا لَا يَتَنَاهَوْنَ عَن مُّنكَرٍ فَعَلُوهُ ۚ لَبِئْسَ مَا كَانُوا يَفْعَلُونَ
कानू ला य तनाहौ-न अम् मुन्करिन् फ़ अ़लूहु, लबिअ् -स मा कानू यफ्अलून
हिंदी अनुवाद
वे एक-दूसरे को किसी बुराई से, जो वे करते थे, रोकते नहीं थे, निश्चय वे बड़ी बुराई कर रहे थे[1]।
5.80
تَرَىٰ كَثِيرًا مِّنْهُمْ يَتَوَلَّوْنَ الَّذِينَ كَفَرُوا ۚ لَبِئْسَ مَا قَدَّمَتْ لَهُمْ أَنفُسُهُمْ أَن سَخِطَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ وَفِي الْعَذَابِ هُمْ خَالِدُونَ
तरा कसीरम्-मिन्हुम् य-तवल्लौनल्लज़ी-न क-फरू, लबिअ्-स मा क़द्द-मत् लहुम् अन्फुसुहुम् अन् सख़ितल्लाहु अलैहिम् व फिल-अज़ाबि हुम् ख़ालिदून
हिंदी अनुवाद
आप उनमें से अधिक्तर को देखेंगे कि काफ़िरों को अपना मित्र बना रहे हैं। जो कर्म उन्होंने अपने लिए आगे भेजा है, बहुत बुरा है कि अल्लाह उनपर क्रुध्द हो गया तथा यातना में वही सदावासी होंगे।


5.81
وَلَوْ كَانُوا يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَالنَّبِيِّ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْهِ مَا اتَّخَذُوهُمْ أَوْلِيَاءَ وَلَٰكِنَّ كَثِيرًا مِّنْهُمْ فَاسِقُونَ
व लौ कानू युअ्मिनू-न बिल्लाहि वन्नबिय्यि व मा उन्ज़ि-ल इलैहि मत्त ख़ज़ू हुम् औलिया-अ व लाकिन्-न कसीरम्-मिन्हुम् फ़ासिक़ून
हिंदी अनुवाद
और यदि वे अल्लाह पर तथा नबी पर और जो उनपर उतारा गया, उसपर ईमान लाते, तो उन्हें मित्र न बनाते[1], परन्तु उनमें अधिक्तर उल्लंघनकारी हैं।
5.82
۞ لَتَجِدَنَّ أَشَدَّ النَّاسِ عَدَاوَةً لِّلَّذِينَ آمَنُوا الْيَهُودَ وَالَّذِينَ أَشْرَكُوا ۖ وَلَتَجِدَنَّ أَقْرَبَهُم مَّوَدَّةً لِّلَّذِينَ آمَنُوا الَّذِينَ قَالُوا إِنَّا نَصَارَىٰ ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّ مِنْهُمْ قِسِّيسِينَ وَرُهْبَانًا وَأَنَّهُمْ لَا يَسْتَكْبِرُونَ
ल-तजिदन्-न अशद्दन्नासि अदा-व तल्-लिल्लज़ी-न आमनुल्-यहू-द वल्लज़ी-न अश्रकू, व ल-तजिदन्-न अक़्र-बहुम् मवद्दतल-लिल्लज़ी-न आमनुल्लज़ी-न क़ालू इन्ना नसारा, ज़ालि-क बिअन्-न मिन्हुम किस्सीसी-न व रूह़्बानंव्-व अन्नहुम् ला यस्तक्बिरून
हिंदी अनुवाद
(हे नबी!) आप उनका, जो ईमान लाये हैं, सबसे कड़ा शत्रु यहूदियों तथा मिश्रणवादियों को पायेंगे और जो ईमान लाये हैं, उनके सबसे अधिक समीप आप उन्हें पायेंगे, जो अपने को ईसाई कहते हैं। ये बात इसलिए है कि उनमें उपासक तथा सन्यासी हैं और वे अभिमान[1] नहीं करते।
5.83
وَإِذَا سَمِعُوا مَا أُنزِلَ إِلَى الرَّسُولِ تَرَىٰ أَعْيُنَهُمْ تَفِيضُ مِنَ الدَّمْعِ مِمَّا عَرَفُوا مِنَ الْحَقِّ ۖ يَقُولُونَ رَبَّنَا آمَنَّا فَاكْتُبْنَا مَعَ الشَّاهِدِينَ
व इज़ा समिअू मा उन्ज़ि-ल इलर्रसूलि तरा अअ्यु- नहुम् तफ़ीज़ु मिनद्दम्अि मिम्मा अ-रफू मिनल्-हक़्क़ि, यक़ूलू-न रब्बना आमन्ना फ़क़्तुब्ना मअश्शाहिदीन
हिंदी अनुवाद
तथा जब वे (ईसाई) उस (क़ुर्आन) को सुनते हैं, जो रसूल पर उतरा है, तो आप देखते हैं कि उनकी आँखें आँसू से उबल रही हैं, उस सत्य के कारण, जिसे उन्होंने पहचान लिया है। वे कहते हैं, हे हमारे पालनहार! हम ईमान ले आये, अतः हमें (सत्य) के साथियों में लिख[1] ले।
5.84
وَمَا لَنَا لَا نُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَمَا جَاءَنَا مِنَ الْحَقِّ وَنَطْمَعُ أَن يُدْخِلَنَا رَبُّنَا مَعَ الْقَوْمِ الصَّالِحِينَ
व मा लना ला नुअ्मिनु बिल्लाहि व मा जा-अना मिनल-हक़्क़ि, व नत्मअु अंय्युद्ख़ि-लना रब्बुना मअल् क़ौमिस्सालिहीन
हिंदी अनुवाद
(तथा कहते हैं) क्या कारण है कि हम अल्लाह पर तथा इस सत्य (क़ुर्आन) पर ईमान (विश्वास) न करें? और हम आशा रखते हैं कि हमारा पालनहार हमें सदाचारियों में सम्मिलित कर देगा।
5.85
فَأَثَابَهُمُ اللَّهُ بِمَا قَالُوا جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا ۚ وَذَٰلِكَ جَزَاءُ الْمُحْسِنِينَ
फ़-असाबहुमुल्लाहु बिमा क़ालू जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल्-अन्हारू ख़ालिदी-न फ़ीहा, व ज़ालि-क जज़ाउल मुह़्सिनीन
हिंदी अनुवाद
तो अल्लाह ने उनके ये कहने के कारण उन्हें ऐसे स्वर्ग प्रदान कर दिये, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं, वे उनमें सदावासी होंगे तथा यही सत्कर्मियों का प्रतिफल (बदला) है।


5.86
وَالَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا أُولَٰئِكَ أَصْحَابُ الْجَحِيمِ
वल्लज़ी-न क-फरू व कज़्ज़बू बिआयातिना उलाइ-क अस्हाबुल जहीम *
हिंदी अनुवाद
तथा जो काफ़िर हो गये और हमारी आयतों को झुठला दिया, तो वही नारकी हैं।
5.87
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تُحَرِّمُوا طَيِّبَاتِ مَا أَحَلَّ اللَّهُ لَكُمْ وَلَا تَعْتَدُوا ۚ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ الْمُعْتَدِينَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तुहर्रिमू तय्यिबाति मा अ -हल्लल्लाहु लकुम् व ला तअ्तदू, इन्नल्ला-ह ला युहिब्बुल् मुअ्तदीन
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! उन स्वच्छ पवित्र चीजों को जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए ह़लाल (वैध) की हैं, ह़राम (अवैध)[1] न करो और सीमा का उल्लंघन न करो। निःसंदेह अल्लाह उल्लंघनकारियों[2] से प्रेम नहीं करता।
5.88
وَكُلُوا مِمَّا رَزَقَكُمُ اللَّهُ حَلَالًا طَيِّبًا ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ الَّذِي أَنتُم بِهِ مُؤْمِنُونَ
व कुलू मिम्मा र-ज़-क़ कुमुल्लाहु हलालन् तय्यिबंव् वत्तक़ुल्लाहल्लज़ी अन्तुम् बिही मुअ्मिनून
हिंदी अनुवाद
तथा उसमें से खाओ, जो ह़लाल (वैध) स्वच्छ चीज़ अल्लाह ने तुम्हें प्रदान की हैं तथा अल्लाह (की अवज्ञा) से डरते रहो, यदि तुम उसीपर ईमान (विश्वास) रखते हो।
5.89
لَا يُؤَاخِذُكُمُ اللَّهُ بِاللَّغْوِ فِي أَيْمَانِكُمْ وَلَٰكِن يُؤَاخِذُكُم بِمَا عَقَّدتُّمُ الْأَيْمَانَ ۖ فَكَفَّارَتُهُ إِطْعَامُ عَشَرَةِ مَسَاكِينَ مِنْ أَوْسَطِ مَا تُطْعِمُونَ أَهْلِيكُمْ أَوْ كِسْوَتُهُمْ أَوْ تَحْرِيرُ رَقَبَةٍ ۖ فَمَن لَّمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلَاثَةِ أَيَّامٍ ۚ ذَٰلِكَ كَفَّارَةُ أَيْمَانِكُمْ إِذَا حَلَفْتُمْ ۚ وَاحْفَظُوا أَيْمَانَكُمْ ۚ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمْ آيَاتِهِ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
ला युआख़िज़ुकुमुल्लाहु बिल्लग़्वि फ़ी ऐमानिकुम् व लाकिंयु आख़िज़ुकुम बिमा अक़्क़त्तुमुल्-ऐमा न, फ़-कफ्फारतुहू इत्आमु अ-श-रति मसाकी-न मिन् औ- सति मा तुत्अिमू-न अह़्लीकुम् औ किस्वतुहुम् औ तह़रीरू र-क़-बतिन्, फ़-मल्लम् यजिद् फ़सियामु सलासति अय्यामिन्, ज़ालि-क कफ्फारतु ऐमानिकुम् इज़ा हलफ्तुम्, वह्फ़ज़ू ऐमानकुम्, कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुम् आयातिही लअल्लकुम् तश्कुरून
हिंदी अनुवाद
अल्लाह तुम्हें तुम्हारी व्यर्थ शपथों[1] पर नहीं पकड़ता, परन्तु जो शपथ जान-बूझ कर ली हो, उसपर रकड़ता है, तो उसका[2] प्रायश्चित दस निर्धनों को भोजन कराना है, उस माध्यमिक भोजन में से, जो तुम अपने परिवार को खिलाते हो अथवा उन्हें वस्त्र दो अथवा एक दास मुक्त करो और जिसे ये सब उपलब्ध न हो, तो तीन दिन रोज़ा रखना है। ये तुम्हारी शपथों का प्रायश्चित है, जब तुम शपथ लो तथा अपनी शपथों की रक्षा करो, इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों (आदेशों) का वर्णन करता है, ताकि तुम उसका उपकार मानो।
5.90
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِنَّمَا الْخَمْرُ وَالْمَيْسِرُ وَالْأَنصَابُ وَالْأَزْلَامُ رِجْسٌ مِّنْ عَمَلِ الشَّيْطَانِ فَاجْتَنِبُوهُ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन्नमल्-ख़म्रू वल्मैसिरू वल् अन्साबु वल अज़्लामु रिज्सुम्-मिन् अ-मलिश्शैतानि फज्तनिबूहु लअल्लकुम् तुफ्लिहून
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! निःसंदेह[1] मदिरा, जुआ, देवस्थान[2] और पाँसे[3] शैतानी मलिन कर्म हैं, अतः इनसे दूर रहो, ताकि तुम सफल हो जाओ।


5.91
إِنَّمَا يُرِيدُ الشَّيْطَانُ أَن يُوقِعَ بَيْنَكُمُ الْعَدَاوَةَ وَالْبَغْضَاءَ فِي الْخَمْرِ وَالْمَيْسِرِ وَيَصُدَّكُمْ عَن ذِكْرِ اللَّهِ وَعَنِ الصَّلَاةِ ۖ فَهَلْ أَنتُم مُّنتَهُونَ
इन्नमा युरीदुश्शैतानु अंय्यूक़ि-अ बैनकुमुल् अदा-व-त वल्-बग़्ज़ा-अ फ़िल्ख़म्रि वल्मैसिरि व यसुद्दकुम् अन् ज़िक्रिल्लाहि व अनि स्सलाति, फ़-हल् अन्तुम् मुन्तहून
हिंदी अनुवाद
शैतान तो यही चाहता है कि शराब (मदिरा) तथा जूए द्वारा तुम्हारे बीच बैर तथा द्वेष डाल दे और तुम्हें अल्लाह की याद तथा नमाज़ से रोक दे, तो क्या तुम रुकोगे या नहीं?
5.92
وَأَطِيعُوا اللَّهَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ وَاحْذَرُوا ۚ فَإِن تَوَلَّيْتُمْ فَاعْلَمُوا أَنَّمَا عَلَىٰ رَسُولِنَا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ
व अतीअुल्ला-ह व अतीअुर्रसू-ल वह्ज़रू, फ़-इन् तवल्लैतुम् फअ्लमू अन्नमा अला रसूलिनल् बलागुल् मुबीन
हिंदी अनुवाद
तथा अल्लाह के आज्ञाकारी रहो, उसके रसूल के आज्ञाकारी रहो तथा (उनकी अवज्ञा से) सावधान रहो। यदि तुम विमुख हुए, तो जान लो कि हमारे रसूल पर केवल खुला उपदेश पहुँचा देना है।
5.93
لَيْسَ عَلَى الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ جُنَاحٌ فِيمَا طَعِمُوا إِذَا مَا اتَّقَوا وَّآمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ ثُمَّ اتَّقَوا وَّآمَنُوا ثُمَّ اتَّقَوا وَّأَحْسَنُوا ۗ وَاللَّهُ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ ‎
लै-स अलल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति जुनाहुन् फ़ीमा तअिमू इज़ा मत्तक़ौ व आमनू व अमिलुस्-सालिहाति सुम्मत्तक़ौ व आमनू सुम्मत्तक़ौ व अह्सनू, वल्लाहु युहिब्बुल मुह्सिनीन *
हिंदी अनुवाद
उनपर जो ईमान लाये तथा सदाचार करते रहे, उसमें कोई दोष नहीं, जो (निषेधाज्ञा से पहले) खा लिया, जब वे अल्लाह से डरते रहे, ईमान पर स्थिर रहे, सत्कर्म करते रहे, फिर डरते और सत्कर्म करते रहे, फिर (रोके गये तो) अल्लाह से डरे और सदाचार करते रहे। अल्लाह सदाचारियों से प्रेम करता[1] है।
5.94
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَيَبْلُوَنَّكُمُ اللَّهُ بِشَيْءٍ مِّنَ الصَّيْدِ تَنَالُهُ أَيْدِيكُمْ وَرِمَاحُكُمْ لِيَعْلَمَ اللَّهُ مَن يَخَافُهُ بِالْغَيْبِ ۚ فَمَنِ اعْتَدَىٰ بَعْدَ ذَٰلِكَ فَلَهُ عَذَابٌ أَلِيمٌ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ल-यब्लुवन्न-कुमुल्लाहु बिशैइम् मिनस्सैदि तनालुहू ऐदीकुम् व रिमाहुकुम् लि-यअ्-लमल्लाहु मंय्यख़ाफुहू बिल्गैबि फ़-मनिअ्तदा बअ्-द ज़ालि-क फ़-लहू अज़ाबुन् अलीमहिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! अल्लाह कुछ शिकार द्वारा जिन तक तुम्हारे हाथ तथा भाले पहुँचेंगे, अवश्य तुम्हारी परीक्षा लेगा, ताकि ये जान ले कि तुममें से कौन उससे बिन देखे डरता है? फिर इस (आदेश) के पश्चात् जिसने (इसका) उल्लंघन किया, तो उसी के लिए दुःखदायी यातना है।
5.95
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَقْتُلُوا الصَّيْدَ وَأَنتُمْ حُرُمٌ ۚ وَمَن قَتَلَهُ مِنكُم مُّتَعَمِّدًا فَجَزَاءٌ مِّثْلُ مَا قَتَلَ مِنَ النَّعَمِ يَحْكُمُ بِهِ ذَوَا عَدْلٍ مِّنكُمْ هَدْيًا بَالِغَ الْكَعْبَةِ أَوْ كَفَّارَةٌ طَعَامُ مَسَاكِينَ أَوْ عَدْلُ ذَٰلِكَ صِيَامًا لِّيَذُوقَ وَبَالَ أَمْرِهِ ۗ عَفَا اللَّهُ عَمَّا سَلَفَ ۚ وَمَنْ عَادَ فَيَنتَقِمُ اللَّهُ مِنْهُ ۗ وَاللَّهُ عَزِيزٌ ذُو انتِقَامٍ ‎
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तक़्तुलुस्सै द व अन्तुम् हुरूमुन्, व मन् क़-त-लहू मिन्कुम् मु-तअ़म्मिदन फ-जज़ाउम्-मिस्लु मा क़-त-ल मिनन्न अ़मि यह़्कुमु बिही ज़वा अद् लिम्-मिन्कु म् हद् यम् बालिग़ल कअ्-बति औ कफ़्फ़ारतुन् तआ़मु मसाकी-न औ अद्लु ज़ालि-क सियामल्-लियज़ू-क़ व बा-ल अम्रिही, अफ़ल्लाहु अम्मा स-लफ, व मन् आ द फ़-यन्तक़िमुल्लाहु मिन्हु, वल्लाहु अज़ीजुन जुन्तिक़ाम
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वलो! शिकार न करो[1], जब तुम एह़राम की स्थिति में रहो तथा तुममें से जो कोई जान-बूझ कर ऐसा कर जाये, तो पालतू पशु से शिकार किये पशु जैसा बदला (प्रतिकार) है, जिसका निर्णय तुममें से दो न्यायकारी व्यक्ति करेंगे, जो काबा तक हद्य (उपहार स्वरूप) भेजा जाये। अथवा[2] प्रायश्चित है, जो कुछ निर्धनों का खाना अथवा उसके बराबर रोज़े रखना है। ताकि अपने किये का दुष्परिणाम चखो। इस आदेश से पूर्व जो हुआ, अल्लाह ने उसे क्षमा कर दिया और जो फिर करेगा, अल्लाह उससे बदला लेगा और अल्लाह प्रभुत्वशाली बदला लेने वाला है।


5.96
أُحِلَّ لَكُمْ صَيْدُ الْبَحْرِ وَطَعَامُهُ مَتَاعًا لَّكُمْ وَلِلسَّيَّارَةِ ۖ وَحُرِّمَ عَلَيْكُمْ صَيْدُ الْبَرِّ مَا دُمْتُمْ حُرُمًا ۗ وَاتَّقُوا اللَّهَ الَّذِي إِلَيْهِ تُحْشَرُونَ
उहिल-ल लकुम सैदुल्बह्-रि व तआमुहू मताअल्लकुम् व लिस्सय्या-रति, व हुर्रि-म अ़लैकुम् सैदुल्बर्रि मा दुम्तुम् हुरूमन्, वत्तक़ुल्लाहल्लज़ी इलैहि तुह़्शरून
हिंदी अनुवाद
तथा तुम्हारे लिए जल का शिकार और उसका खाद्य[1] ह़लाल (वैध) कर दिया गया है, तुम्हारे तथा यात्रियों के लाभ के लिए तथा तुमपर थल का शिकार जब तक एह़राम की स्थिति में रहो, ह़राम (अवैध) कर दिया गया है और अल्लाह (की अवज्ञा) से डरते रहो, जिसकी ओर तुम सभी एकत्र किये जाओगे।
5.97
۞ جَعَلَ اللَّهُ الْكَعْبَةَ الْبَيْتَ الْحَرَامَ قِيَامًا لِّلنَّاسِ وَالشَّهْرَ الْحَرَامَ وَالْهَدْيَ وَالْقَلَائِدَ ۚ ذَٰلِكَ لِتَعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَأَنَّ اللَّهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ
ज-अलल्लाहुल कअ्-बतल् बैतल्-हरा-म क़ियामल् लिन्नासि वश्शह्-रल्-हरा-म वल्हद्-य वल्क़लाइ-द, ज़ालि-क लितअ्लमू अन्नल्ला-ह यअ्लमु मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्ज़ि व अन्नल्ला-ह बिकुल्लि शैइन् अलीम
हिंदी अनुवाद
अल्लाह ने आदरणीय घर काबा को लोगों के लिए (शांति तथा एकता की) स्थापना का साधन बना दिया है तथा आदरणीय मासों[1] और (ह़ज) की क़ुर्बानी तथा क़ुर्बानी के पशुओं को, जिन्हें पट्टे पहनाये गये हों। ये इसलिए किया गया ताकि तुम्हें ज्ञान हो जाये कि अल्लाह, जो कुछ आकाशों और जो कुछ धरती में है, सबको जानता है। तथा निःसंदेह अल्लाह प्रत्येक विषय का ज्ञानी है।
5.98
اعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ وَأَنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
इअ्लमू अन्नल्ला-ह शदीदुल् अिक़ाबि व अन्नल्लाहा-ह ग़फूरुर्रहीम
हिंदी अनुवाद
तुम जान लो कि अल्लाह कड़ा दण्ड देने वाला है और ये कि अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् (भी) है।
5.99
مَّا عَلَى الرَّسُولِ إِلَّا الْبَلَاغُ ۗ وَاللَّهُ يَعْلَمُ مَا تُبْدُونَ وَمَا تَكْتُمُونَ
मा अलर्रसूलि इल्लल्-बलाग़ु, वल्लाहु यअ्लमु मा तुब्दू-न व मा तक्तुमून
हिंदी अनुवाद
अल्लाह के रसूल का दायित्व इसके सिवा कुछ नहीं कि उपदेश पहुँचा दे और अल्लाह जो तुम बोलते और जो मन में रखते हो, सब जानता है।
5.100
قُل لَّا يَسْتَوِي الْخَبِيثُ وَالطَّيِّبُ وَلَوْ أَعْجَبَكَ كَثْرَةُ الْخَبِيثِ ۚ فَاتَّقُوا اللَّهَ يَا أُولِي الْأَلْبَابِ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
क़ुल् ला यस्तविल्-ख़बीसु वत्तय्यिबु व लौ अअ्ज-ब-क कस् रतुल ख़बीसि, फत्तक़ुल्ला-ह या उलिल्-अल्बाबि लअ़ल्लकुम् तुफ्लिहून*
हिंदी अनुवाद
(हे नबी!) कह दो कि मलिन तथा पवित्र समान नहीं हो सकते। यद्यपि मलिन की अधिक्ता तुम्हें भा रही हो। तो हे मतिमानो! अल्लाह (की अवज्ञा) से डरो, ताकि तुम सफल हो जाओ[1]।


5.101
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَسْأَلُوا عَنْ أَشْيَاءَ إِن تُبْدَ لَكُمْ تَسُؤْكُمْ وَإِن تَسْأَلُوا عَنْهَا حِينَ يُنَزَّلُ الْقُرْآنُ تُبْدَ لَكُمْ عَفَا اللَّهُ عَنْهَا ۗ وَاللَّهُ غَفُورٌ حَلِيمٌ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तस्अलू अन् अश्या-अ इन् तुब्-द लकुम् तसुअ्कुम्, व इन् तस्अलू अन्हा ही-न युनज़्ज़लुल-क़ुरआनु तुब्-द लकुम्, अफ़ल्लाहु अन्हा, वल्लाहु ग़फूरून् हलीम
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! ऐसी बहुत सी चीज़ों के विषय में प्रश्न न करो, जो यदि तुम्हें बता दी जायें, तो तुम्हें बुरा लग जाये तथा यदि तुम, उनके विषय में, जबकि क़ुर्आन उतर रहा है, प्रश्न करोगे, तो वो तुम्हारे लिए खोल दी जायेंगी। अल्लाह ने तुम्हें क्षमा कर दिया और अल्लाह अति क्षमाशील सहनशील[1] है।
5.102
قَدْ سَأَلَهَا قَوْمٌ مِّن قَبْلِكُمْ ثُمَّ أَصْبَحُوا بِهَا كَافِرِينَ
क़द् स-अ-लहा क़ौमुम् मिन् क़ब्लिकुम् सुम्-म अस्बहू बिहा काफ़िरीन
हिंदी अनुवाद
ऐसे ही प्रश्न एक समुदाय ने तुमसे पहले[1] किये, फिर इसके कारण वे काफ़िर हो गये।
5.103
مَا جَعَلَ اللَّهُ مِن بَحِيرَةٍ وَلَا سَائِبَةٍ وَلَا وَصِيلَةٍ وَلَا حَامٍ ۙ وَلَٰكِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا يَفْتَرُونَ عَلَى اللَّهِ الْكَذِبَ ۖ وَأَكْثَرُهُمْ لَا يَعْقِلُونَ
मा ज-अलल्लाहु मिम् बही-रतिंव् व ला साइ-बतिंव्-व ला वसीलतिंव्-व ला हामिंव्-व लाकिन्नल्लज़ी-न क-फरू यफ्तरू-न अलल्लाहिल्-कज़ि-ब, व अक्सरूहुम् ल यअ्क़िलून
हिंदी अनुवाद
अल्लाह ने बह़ीरा, साइबा, वसीला और ह़ाम, कुछ नहीं बनाया[1] है, परन्तु जो काफ़िर हो गये वे अल्लाह पर झूठ घड़ रहे हैं और उनमें अधिक्तर निर्बोध हैं।
5.104
وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْا إِلَىٰ مَا أَنزَلَ اللَّهُ وَإِلَى الرَّسُولِ قَالُوا حَسْبُنَا مَا وَجَدْنَا عَلَيْهِ آبَاءَنَا ۚ أَوَلَوْ كَانَ آبَاؤُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ شَيْئًا وَلَا يَهْتَدُونَ ‎
व इज़ा क़ी-ल लहुम् तआ़लौ इला मा अन्ज़लल्लाहु व इलर्रसूलि क़ालू हस्बुना मा वजद्ना अलैहि आबा-अना, अ-व लौ का-न आबाउहुम् ला यअ्लमू-न शैअंव्-व ला यह्तदून
हिंदी अनुवाद
और जब उनसे कहा जाता है कि उसकी ओर आओ, जो अल्लाह ने उतारा है तथा रसूल की ओर (आओ), तो कहते हैं, हमें वही बस है, जिसपर हमने अपने पूर्वजों को पाया है, क्या उनके पूर्वज कुछ न जानते रहे हों और न संमार्ग पर रहे हों (तब भी वे उन्हीं के रास्ते पर चलेंगे)?
5.105
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا عَلَيْكُمْ أَنفُسَكُمْ ۖ لَا يَضُرُّكُم مَّن ضَلَّ إِذَا اهْتَدَيْتُمْ ۚ إِلَى اللَّهِ مَرْجِعُكُمْ جَمِيعًا فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू अलैकुम् अन्फु-सकुम्, ला यज़ुर्रूकुम् मन् ज़ल-ल इज़ह्तदैतुम्, इलल्लाहि मर्जिअुकुम् जमीअ़न् फ़युनब्बिउकुम् बिमा कुन्तुम् तअ्मलून
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! तुम अपनी चिन्ता करो, तुम्हें वे हानि नहीं पहुँचा सकेंगे, जो कुपथ हो गये, जब तुम सुपथ पर रहो। अल्लाह की ओर तुम सबको (परलोक में) फिर कर जाना है, फिर वह तुम्हें तुम्हारे[1] कर्मों से सूचित कर देगा।


5.106
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا شَهَادَةُ بَيْنِكُمْ إِذَا حَضَرَ أَحَدَكُمُ الْمَوْتُ حِينَ الْوَصِيَّةِ اثْنَانِ ذَوَا عَدْلٍ مِّنكُمْ أَوْ آخَرَانِ مِنْ غَيْرِكُمْ إِنْ أَنتُمْ ضَرَبْتُمْ فِي الْأَرْضِ فَأَصَابَتْكُم مُّصِيبَةُ الْمَوْتِ ۚ تَحْبِسُونَهُمَا مِن بَعْدِ الصَّلَاةِ فَيُقْسِمَانِ بِاللَّهِ إِنِ ارْتَبْتُمْ لَا نَشْتَرِي بِهِ ثَمَنًا وَلَوْ كَانَ ذَا قُرْبَىٰ ۙ وَلَا نَكْتُمُ شَهَادَةَ اللَّهِ إِنَّا إِذًا لَّمِنَ الْآثِمِينَ ‎
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू शहादतु बैनिकुम् इजा ह-ज़-र अ-ह-द कुमुल्मौतु हीनल्-वसिय्यति इस्नानि ज़वा अ़द्लिम् मिन्कुम् औ आख़रानि मिन् ग़ैरिकुम् इन अन्तुम् ज़रब्तुम् फ़िल्अर्ज़ि फ़ असाबत्कुम् मुसीबतुल्मौति, तह़्बिसूनहुमा मिम्-बअ्दिस्सलाति फ़युक़्सिमानि बिल्लाहि इनिर्तब्तुम् ला नश्तरी बिही स-मनंव् व लौ का-नज़ा कुर्बा, व ला नक़्तुमु शहा-दतल्लाहि इन्ना इज़ल् लमिनल् आसिमीन
हिंदी अनुवाद
हे ईमान वालो! यदि किसी के मरण का समय हो, तो वसिय्यत[1] के समय तुममें से दो न्यायकारियों को अथवा तुम्हारे सिवा दो अन्य व्यक्तियों को गवाह बनाये, यदि तुम धरती में यात्रा कर रहे हो और तुम्हें मरण की आपदा आ पहुँचे। उन दोनों को नमाज़ के बाद रोक लो, फिर वे दोनों अल्लाह की शपथ लें, यदि तुम्हें उनपर संदेह हो। वे ये कहें कि हम गवाही के द्वारा कोई मूल्य नहीं खरीदते, यद्यपि वे समीपवर्ती क्यों न हों और न हम अल्लाह की गवाही को छुपाते हैं, यदि हम ऐसा करें, तो हम पापियों में हैं।
5.107
فَإِنْ عُثِرَ عَلَىٰ أَنَّهُمَا اسْتَحَقَّا إِثْمًا فَآخَرَانِ يَقُومَانِ مَقَامَهُمَا مِنَ الَّذِينَ اسْتَحَقَّ عَلَيْهِمُ الْأَوْلَيَانِ فَيُقْسِمَانِ بِاللَّهِ لَشَهَادَتُنَا أَحَقُّ مِن شَهَادَتِهِمَا وَمَا اعْتَدَيْنَا إِنَّا إِذًا لَّمِنَ الظَّالِمِينَ
फ-इन् अुसि-र अला अन्नहुमस्तहक़्क़ा इस्मन् फ़-आख़रानि यक़ू मानि मक़ा-महुमा मिनल्लज़ी नस् -तहक़्-क़ अलैहिमुल्-औलयानि फयुक़्सिमानि बिल्लाहि ल शहादतुना अहक़्क़ु मिन् शहादतिहिमा व मअ्तदैना, इन्ना इज़ल् लमिनज़्ज़ालिमीन
हिंदी अनुवाद
फिर यदि ज्ञान हो जाये कि वे दोनों (साक्षी) किसी पाप के अधिकारी हुए हैं, तो उन दोनों के स्थान पर दो अन्य गवाह खड़े हो जायेँ, उनमें से, जिनका अधिकार पहले दोनों ने दबाया है और वे दोनों शपथ लें कि हमारी गवाही उन दोनों की गवाही से अधिक सही है और हमने कोई अत्याचार नहीं किया है। यदि किया है, तो (निःसंदेह) हम अत्याचारी हैं।
5.108
ذَٰلِكَ أَدْنَىٰ أَن يَأْتُوا بِالشَّهَادَةِ عَلَىٰ وَجْهِهَا أَوْ يَخَافُوا أَن تُرَدَّ أَيْمَانٌ بَعْدَ أَيْمَانِهِمْ ۗ وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاسْمَعُوا ۗ وَاللَّهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الْفَاسِقِينَ
ज़ालि-क अद्ना अंय्यअ्तू बिश्शहा-दति अला वज्हिहा औ यख़ाफू अन् तुरद्-द ऐमानुम् बअ् द ऐमानिहिम्, वत्तक़ुल्ला-ह वस्मअू, वल्लाहु ला यह़्दिल् क़ौमल् फ़ासिक़ीन *
हिंदी अनुवाद
इस प्रकार अधिक आशा है कि वे सही गवाही देंगे अथवा इस बात से डरेंगे कि उनकी शपथों को दूसरी शपथों के पश्चात् न माना जाये। अल्लाह से डरते रहो, (उसका आदेश) सुनो और अल्लाह उल्लंघनकारियों को सीधी राह नहीं[1] दिखाता।
5.109
۞ يَوْمَ يَجْمَعُ اللَّهُ الرُّسُلَ فَيَقُولُ مَاذَا أُجِبْتُمْ ۖ قَالُوا لَا عِلْمَ لَنَا ۖ إِنَّكَ أَنتَ عَلَّامُ الْغُيُوبِ
यौ-म यज्म अुल्लाहुर्रूसु-ल फ़-यक़ूलु माज़ा उजिब्तुम्, क़ालू ला अिल्-म लना, इन्न-क अन्-त अल्लामुल्- ग़ुयूब
हिंदी अनुवाद
जिस दिन अल्लाह सब रसूलों को एकत्र करेगा, फिर उनसे कहेगा कि तुम्हें (तुम्हारी जातियों की ओर से) क्या उत्तर दिया गया? वे कहेंगे कि हमें इसका कोई ज्ञान[1] नहीं। निःसंदेह तू ही सब छुपे तथ्यों का ज्ञानी है।
5.110
إِذْ قَالَ اللَّهُ يَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ اذْكُرْ نِعْمَتِي عَلَيْكَ وَعَلَىٰ وَالِدَتِكَ إِذْ أَيَّدتُّكَ بِرُوحِ الْقُدُسِ تُكَلِّمُ النَّاسَ فِي الْمَهْدِ وَكَهْلًا ۖ وَإِذْ عَلَّمْتُكَ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَالتَّوْرَاةَ وَالْإِنجِيلَ ۖ وَإِذْ تَخْلُقُ مِنَ الطِّينِ كَهَيْئَةِ الطَّيْرِ بِإِذْنِي فَتَنفُخُ فِيهَا فَتَكُونُ طَيْرًا بِإِذْنِي ۖ وَتُبْرِئُ الْأَكْمَهَ وَالْأَبْرَصَ بِإِذْنِي ۖ وَإِذْ تُخْرِجُ الْمَوْتَىٰ بِإِذْنِي ۖ وَإِذْ كَفَفْتُ بَنِي إِسْرَائِيلَ عَنكَ إِذْ جِئْتَهُم بِالْبَيِّنَاتِ فَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْهُمْ إِنْ هَٰذَا إِلَّا سِحْرٌ مُّبِينٌ
इज़् क़ालल्लाहु या ईसब्-न मरयमज़्कुर् निअ्मती अलै-क व अला वालिदति-क. इज़् अय्यत्तु-क बिरूहिल्क़ुदुसि, तुकल्लिमुन्ना-स फ़िल्मह्दि व कह्-लन्, व इज़् अल्लम्तुकल् किता-ब वल्हिक्म त वत्तौरा-त वल्इन्जी-ल, व इज़् तख़्लुक़ु मिनत्तीनि कहै-अतित्तैरि बि-इज़्नी फ़तन्फुख़ु फ़ीहा फ़-तकूनु तैरम् बि-इज़्नी व तुब्रिउल्-अक्म-ह वल्अब्र-स बि-इज़्नी, व इज़् तुख़्रिजुल्मौता बि-इज़्नी, व इज़् कफ़फ्तु बनी इस्राई-ल अन्-क इज़् जिअ्तहुम् बिल्बय्यिनाति फक़ालल्लज़ी-न क-फरू मिन्हुम् इन् हाज़ा इल्ला सिहरूम् मुबीन
हिंदी अनुवाद
तथा याद करो, जब अल्लाह ने कहाः हे मर्यम के पुत्र ईसा! अपने ऊपर तथा अपनी माता के ऊपर मेरा पुरस्कार याद कर, जब मैंने पवित्रात्मा (जिब्रील) द्वारा तुझे समर्थन दिया, तू गहवारे (गोद) में तथा बड़ी आयु में लोगों से बातें कर रहा था तथा तुझे पुस्तक, प्रबोध, तौरात और इंजील की शिक्षा दी, जब तू मेरी अनुमति से मिट्टी से पक्षी का रूप बनाता और उसमें फूँकता, तो वह मेरी अनुमति से वास्तव में पक्षी बन जाता था और तू जन्म से अंधे तथा कोढ़ी को मेरी अनुमति से स्वस्थ कर देता था और जब तू मुर्दों को मेरी अनुमति से जीवित कर देता था और मैंने बनी इस्राईल से तुझे बचाया था, जब तू उनके पास खुली निशानियाँ लाया, तो उनमें से काफ़िरों ने कहा कि ये तो खुले जादू के सिवा कुछ नहीं है।


5.111
وَإِذْ أَوْحَيْتُ إِلَى الْحَوَارِيِّينَ أَنْ آمِنُوا بِي وَبِرَسُولِي قَالُوا آمَنَّا وَاشْهَدْ بِأَنَّنَا مُسْلِمُونَ
व इज़् औहैतु इलल्-हवारिय्यी-न अन् आमिनू बी व बि -रसूली, क़ालू आमन्ना वश्हद् बिअन्नना मुस्लिमून
हिंदी अनुवाद
तथा याद कर, जब मैंने तेरे ह़वारियों के दिलों में ये बात डाल दी कि मुझपर तथा मेरे रसूल (ईसा) पर ईमान लाओ, तो सबने कहा कि हम ईमान लाये और तू साक्षी रह कि हम मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं।
5.112
إِذْ قَالَ الْحَوَارِيُّونَ يَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ هَلْ يَسْتَطِيعُ رَبُّكَ أَن يُنَزِّلَ عَلَيْنَا مَائِدَةً مِّنَ السَّمَاءِ ۖ قَالَ اتَّقُوا اللَّهَ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ ‎
इज़ क़ालल-हवारिय्यू-न या ईसब् न मर् य-म हल् यस्ततीअु रब्बु-क अंय्युनज़्ज़ि-ल अलैना माइ-दतम् मिनस्समा-इ, क़ालत्तक़ुल्ला-ह इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
हिंदी अनुवाद
जब ह़वारियों ने कहाः हे मर्यम के पुत्र ईसा! क्या तेरा पालनहार ये कर सकता है कि हमपर आकाश से थाल (दस्तरख्वान) उतार दे? उस (ईसा) ने कहाः तुम अल्लाह से डरो, यदि तुम वास्तव में ईमान वाले हो।
5.113
قَالُوا نُرِيدُ أَن نَّأْكُلَ مِنْهَا وَتَطْمَئِنَّ قُلُوبُنَا وَنَعْلَمَ أَن قَدْ صَدَقْتَنَا وَنَكُونَ عَلَيْهَا مِنَ الشَّاهِدِينَ
क़ालू नुरीदु अन् नअ्कु-ल मिन्हा व तत्मइन्-न क़ुलूबुना व नअ्ल-म अन् क़द् सदक़्तना व नकू-न अलैहा मिनश्शाहिदीन
हिंदी अनुवाद
उन्होंने कहाः हम चाहते हैं कि उसमें से खायें और हमारे दिलों को संतोष हो जाये तथा हमें विश्वास हो जाये कि तूने हमें जो कुछ बताया है, सच है और हम उसके साक्षियों में से हो जायेँ।
5.114
قَالَ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ اللَّهُمَّ رَبَّنَا أَنزِلْ عَلَيْنَا مَائِدَةً مِّنَ السَّمَاءِ تَكُونُ لَنَا عِيدًا لِّأَوَّلِنَا وَآخِرِنَا وَآيَةً مِّنكَ ۖ وَارْزُقْنَا وَأَنتَ خَيْرُ الرَّازِقِينَ
क़ा-ल ईसब्नु मरयमल्लाहुम्-म रब्बना अन्ज़िल् अलैना माइ-दतम् मिनस्समा-इ तकूनु लना ईदल् लि-अव्वलिना व आख़िरिना व आयतम्-मिन् क, वरज़ुक्ना व अन्-त ख़ैरू र्राज़िक़ीन
हिंदी अनुवाद
मर्यम के पुत्र ईसा ने प्रार्थना कीः हे अल्लाह, हमारे पालनहार! हमपर आकाश से एक थाल उतार दे, जो हमारे तथा हमारे पश्चात् के लोगों के लिए उत्सव (का दिन) बन जाये तथा तेरी ओर से एक चिन्ह (निशानी)। तथा हमें जीविका प्रदान कर, तू उत्तम जीविका प्रदाता है।
5.115
قَالَ اللَّهُ إِنِّي مُنَزِّلُهَا عَلَيْكُمْ ۖ فَمَن يَكْفُرْ بَعْدُ مِنكُمْ فَإِنِّي أُعَذِّبُهُ عَذَابًا لَّا أُعَذِّبُهُ أَحَدًا مِّنَ الْعَالَمِينَ
क़ालल्लाहु इन्नी मुनज़्ज़िलुहा अलैकुम्, फ़-मंय्यक्फुर् बअ्दु मिन्कुम् फ़-इन्नी उअ़ज़्ज़िबुहू अ़ज़ाबल्-ला उअ़ज़्ज़िबुहू अ-हदम् मिनल-आलमीन *
हिंदी अनुवाद
अल्लाह ने कहाः मैं तुमपर उसे उतारने वाला हूँ, फिर उसके पश्चात् भी जो कुफ़्र (अविश्वास) करेगा, तो मैं निश्चय उसे दण्ड दूँगा, ऐसा दण्ड[1] कि संसार वासियों में से किसी को, वैसी दण्ड नहीं दूँगा।


5.116
وَإِذْ قَالَ اللَّهُ يَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ أَأَنتَ قُلْتَ لِلنَّاسِ اتَّخِذُونِي وَأُمِّيَ إِلَٰهَيْنِ مِن دُونِ اللَّهِ ۖ قَالَ سُبْحَانَكَ مَا يَكُونُ لِي أَنْ أَقُولَ مَا لَيْسَ لِي بِحَقٍّ ۚ إِن كُنتُ قُلْتُهُ فَقَدْ عَلِمْتَهُ ۚ تَعْلَمُ مَا فِي نَفْسِي وَلَا أَعْلَمُ مَا فِي نَفْسِكَ ۚ إِنَّكَ أَنتَ عَلَّامُ الْغُيُوبِ
व इज़् क़ालल्लाहु या ईसब्-न मर-य-म अ-अन्-त क़ुल्-त लिन्नासित्तख़िज़ूनी व उम्मि-य इलाहैनि मिन् दुनिल्लाहि, क़ा-ल सुब्हान-क मा यकूनु ली अन् अक़ूल मा लै-स ली, बिहक़्क़िन्, इन् कुन्तु क़ुल्तुहू फ़-क़द् अलिम्तहू, तअ्लमु मा फ़ी नफ़्सी व ला अअ्लमु मा फ़ी नफ्सि-क, इन्न-क अन्-त अल्लामुल्-ग़ुयूब
हिंदी अनुवाद
तथा जब अल्लाह (प्रलय के दिन) कहेगाः हे मर्यम के पुत्र ईसा! क्या तुमने लोगों से कहा था कि अल्लाह को छोड़कर मुझे तथा मेरी माता को पूज्य (आराध्य) बना लो? वह कहेगाः तू पवित्र है, मुझसे ये कैसे हो सकता है कि ऐसी बात कहूँ, जिसका मुझे कोई अधिकार नहीं? यदि मैंने कहा होगा, तो तुझे अवश्य उसका ज्ञान हुआ होगा। तू मेरे मन की बात जानता है और मैं तेरे मन की बात नहीं जानता। वास्तव में, तू ही परोक्ष (ग़ैब) का अति ज्ञानी है।
5.117
مَا قُلْتُ لَهُمْ إِلَّا مَا أَمَرْتَنِي بِهِ أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ رَبِّي وَرَبَّكُمْ ۚ وَكُنتُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا مَّا دُمْتُ فِيهِمْ ۖ فَلَمَّا تَوَفَّيْتَنِي كُنتَ أَنتَ الرَّقِيبَ عَلَيْهِمْ ۚ وَأَنتَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ
मा क़ुल्तु लहुम् इल्ला मा अमर्तनी बिही अनिअ्बुदुल्ला-ह रब्बी व रब्बकुम्, व कुन्तु अलैहिम् शहीदम् मा दुम्तु फ़ीहिम्, फ़-लम्मा तवफ्फ़ैतनी कुन-त अन्तर्रक़ी-ब अलैहिम्, व अन्-त अला कुल्लि शैइन् शहीद
हिंदी अनुवाद
मैंने केवल उनसे वही कहा था, जिसका तूने आदेश दिया था कि अल्लाह की इबादत करो, जो मेरा पालनहार तथा तुम सभी का पालनहार है। मैं उनकी दशा जानता था, जब तक उनमें था और जब तूने मेरा समय पूरा कर दिया[1], तो तू ही उन्हें जानता था और तू प्रत्येक वस्तु से सूचित है।
5.118
إِن تُعَذِّبْهُمْ فَإِنَّهُمْ عِبَادُكَ ۖ وَإِن تَغْفِرْ لَهُمْ فَإِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
इन् तुअ़ज़्ज़िब्हुम् फ़-इन्नहुम् अिबादु-क, व इन् तग़्फिर लहुम् फ़-इन्न-क अन्तल् अज़ीज़ुल् हकीम
हिंदी अनुवाद
यदि तू उन्हें दण्ड दे, तो वे तेरे दास (बन्दे) हैं और यदि तू उन्हें क्षमा कर दे, तो वास्तव में तू ही प्रभावशाली गुणी है।
5.119
قَالَ اللَّهُ هَٰذَا يَوْمُ يَنفَعُ الصَّادِقِينَ صِدْقُهُمْ ۚ لَهُمْ جَنَّاتٌ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا ۚ رَّضِيَ اللَّهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا عَنْهُ ۚ ذَٰلِكَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ
क़ालल्लाहु हाज़ा यौमु यन्फ़अुस्सादिक़ी-न सिद्क़ुहुम्, लहुम् जन्नातुन् तज्री मिन् तह़्तिहल्-अन्हारू ख़ालिदी – न फ़ीहा अ-बदन्, रज़ियल्लाहु अन्हुम् व रज़ू अन्हु, ज़ालिकल फौज़ुल् अज़ीम
हिंदी अनुवाद
अल्लाह कहेगाः ये वो दिन है, जिसमें सचों को उनका सच ही लाभ देगा। उन्हीं के लिए ऐसे स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं। वे उनमें नित्य सदावासी होंगे, अल्लाह उनसे प्रसन्न हो गया तथा वे अल्लाह से प्रसन्न हो गये और यही सबसे बड़ी सफलता है।
5.120
لِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا فِيهِنَّ ۚ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि व मा फ़ीहिन्-न, व हु-व अला कुल्लि शैइन् क़दीर*
हिंदी अनुवाद
आकाशों तथा धरती और उनमें जो कुछ है, सबका राज्य अल्लाह ही का[1] है तथा वह जो चाहे, कर सकता है।