Surah Al Baqara in Hindi Ayat 209 to 234 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 209 to 234 सूरह अल-बक़रा

Surah Al Baqara in Hindi Ayat 209 to 234

 


फ़-इन् जलल्तुम मिम्-बअ्दि मा जा अत्कुमुल्-बय्यिनातु फअ्लमू अन्नल्ला-ह अजीजु़न् हकीम (209)
फिर जब तुम्हारे पास रौशन दलीले आ चुकी उसके बाद भी डगमगा गए तो अच्छी तरह समझ लो कि ख़ुदा ( हर तरह ) ग़ालिब और तदबीर वाला है (209)
हल यन्जुरू-न इल्ला अंय्यअति-यहुमुल्लाहु फ़ी जु-ल-लिम् मिनल् – गमामि वल्-मलाइ-कतु व कुज़ियल्-अम्रू , व इलल्लाहि तुरजअुल-उमूर (210)
क्या वह लोग इसी के मुन्तज़िर हैं कि सफेद बादल के साय बानो की आड़ में अज़ाबे ख़ुदा और अज़ाब के फ़रिश्ते उन पर ही आ जाए और सब झगड़े चुक ही जाते हालॉकि आख़िर कुल उमुर ख़ुदा ही की तरफ रुजू किए जाएँगे (210)
सल् बनी इस्राई-ल कम् आतैनाहुम् मिन् आयतिम् बय्यि-नतिन् , व मंय्युबद्दिल नि-मतल्लाहि मिम्-बअदि मा जाअत् हु फ-इन्नल्ला-ह शदीदुल अिकात (211)
(ऐ रसूल) बनी इसराइल से पूछो कि हम ने उन को कैसी कैसी रौशन निशानियाँ दी और जब किसी शख्स के पास ख़ुदा की नेअमत (किताब) आ चुकी उस के बाद भी उस को बदल डाले तो बेशक़ ख़ुदा सख्त अज़ाब वाला है (211)
जुय्यि-न लिल्लज़ी-न क-फरूल् हयातुद्दुन्या व यस्ख़रू-न मिनल्लज़ी-न आमनू वल्लज़ीनत्तको फौ-क हुम् यौमल-कियामति , वल्लाहु यर्जुकु मंय्यशा-उ बिगैरि हिसाब (212)
जिन लोगों ने कुफ्र इख्तेयार किया उन के लिये दुनिया की ज़रा सी ज़िन्दगी ख़ूब अच्छी दिखायी गयी है और ईमानदारों से मसखरापन करते हैं हालॉकि क़यामत के दिन परहेज़गारों का दरजा उनसे (कहीं) बढ़ चढ़ के होगा और ख़ुदा जिस को चाहता है बे हिसाब रोज़ी अता फरमाता है (212)
कानन्नासु उम्म-तंव-वाहि-दतन , फ-ब अ सल्लाहुन्नबिय्यी-न मुबश्शिरी-न व मुन्ज़िरी-न व अन्ज़-ल म-अहुमुल किता-ब बिल्हक्क़ि लियह्कु-म बैनन्नासि फ़ी मख़्त-लफू फ़ीहि , व मख्त-ल-फ़ फ़ीहि इल्लल्लज़ी-न ऊतूहु मिम्-बअदि मा जाअत्हुमुल बय्यिनातु बग्यम्-बैनहुम् फ़हदल्लाहुल्लज़ी-न आमनू लिमख़्त-लफू फ़ीहि मिनल-हक्कि बि-इज्निही , वल्लाहु यह्दी मंय्यशा-उ इला सिरातिम्-मुस्तकीम (213)
(पहले) सब लोग एक ही दीन रखते थे (फिर आपस में झगड़ने लगे तब) ख़ुदा ने नजात से ख़ुश ख़बरी देने वाले और अज़ाब से डराने वाले पैग़म्बरों को भेजा और इन पैग़म्बरों के साथ बरहक़ किताब भी नाज़िल की ताकि जिन बातों में लोग झगड़ते थे किताबे ख़ुदा (उसका) फ़ैसला कर दे और फिर अफ़सोस तो ये है कि इस हुक्म से इख्तेलाफ किया भी तो उन्हीं लोगों ने जिन को किताब दी गयी थी और वह भी जब उन के पास ख़ुदा के साफ एहकाम आ चुके उसके बाद और वह भी आपस की शरारत से तब ख़ुदा ने अपनी मेहरबानी से (ख़ालिस) ईमानदारों को वह राहे हक़ दिखा दी जिस में उन लोगों ने इख्तेलाफ डाल रखा था और ख़ुदा जिस को चाहे राहे रास्त की हिदायत करता है (213)
अम् हसिब्तुम् अन् तद्खुलुल्-जन्न-त व लम्मा यअ्तिकुम् म-स-लुल्लज़ी-न ख़लौ मिन् कब्लिकुम , मस्सत्हुमुल् बअ्सा-उ वज़्ज़र्रा-उ व जुल्जि़लू हत्ता यकूलर्-रसूलु वल्लज़ी-न आमनू म-अ़हू मता नस्-रूल्लाहि , अला इन्-न नस्-रल्लाहि करीब (214)
क्या तुम ये ख्याल करते हो कि बेहश्त में पहुँच ही जाओगे हालॉकि अभी तक तुम्हे अगले ज़माने वालों की सी हालत नहीं पेश आयी कि उन्हें तरह तरह की तक़लीफों (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी ने घेर लिया था और ज़लज़ले में इस क़दर झिंझोडे ग़ए कि आख़िर (आज़िज़ हो के) पैग़म्बर और ईमान वाले जो उन के साथ थे कहने लगे देखिए ख़ुदा की मदद कब (होती) है देखो (घबराओ नहीं) ख़ुदा की मदद यक़ीनन बहुत क़रीब है (214)
यस्अलून-क माज़ा युन्फ़िकू-न , कुल मा अन्फ़क़्तुम् मिन् खौरिन् फ़-लिल्वालिदैनि वल-अक्रबी-न वल यतामा वल्मसाकीनि वब्निस्सबीलि , व मा तफ्अलू मिन् खैरिन् फ़-इन्नल्ला-ह बिही अलीम (215)
(ऐ रसूल) तुमसे लोग पूछते हैं कि हम ख़ुदा की राह में क्या खर्च करें (तो तुम उन्हें) जवाब दो कि तुम अपनी नेक कमाई से जो कुछ खर्च करो तो (वह तुम्हारे माँ बाप और क़राबतदारों और यतीमों और मोहताजो और परदेसियों का हक़ है और तुम कोई नेक सा काम करो ख़ुदा उसको ज़रुर जानता है (215) कुति-ब अलैकुमुल् – कितालु व हु-व कुरहुल्लकुम् व असा अन् तक्रहू शैअंव-व हु-व खैरूल्लकुम् व असा अन् तुहिब्बू शैअंव – व हु-व शर्रूल्लकुम , वल्लाहु यअ्लमु व अन्तुम् ला तअ्लमून (216)
(मुसलमानों) तुम पर जिहाद फर्ज क़िया गया अगरचे तुम पर शाक़ ज़रुर है और अजब नहीं कि तुम किसी चीज़ (जिहाद) को नापसन्द करो हालॉकि वह तुम्हारे हक़ में बेहतर हो और अजब नहीं कि तुम किसी चीज़ को पसन्द करो हालॉकि वह तुम्हारे हक़ में बुरी हो और ख़ुदा (तो) जानता ही है मगर तुम नही जानते हो (216)
यसूअलून-क अनिश्शहरिल-हरामि कितालिन् फ़ीहि , कुल कितालुन फ़ीहि कबीरून , व सद्दुन अन् सबीलिल्लाहि व कुफ्रूम् बिही वल्मस्जिदिल्-हरामि , व इख़राजु अहलिही मिन्हु अक्बरू अिन्दल्लाहि वल्-फ़ित्नतु अक्बरू मिनल्-कत्लि , व ला यज़ालू-न युक़ातिलू-नकुम् हत्ता यरूद्दूकुम् अन् दीनिकुम् इनिस्तताअू , व मंय्यर्-तदिद् मिन्कुम् अन् दीनिही फ़-यमुत् व हु-व काफिरून् फ़-उलाइ-क हबितत् अअ्मालुहुम् फिद्दुन्या वल् आखि-रति व उलाइ-क अस्हाबुन्नारि हुम् फ़ीहा ख़ालिदून (217)
(ऐ रसूल) तुमसे लोग हुरमत वाले महीनों की निस्बत पूछते हैं कि (आया) जिहाद उनमें जायज़ है तो तुम उन्हें जवाब दो कि इन महीनों में जेहाद बड़ा गुनाह है और ये भी याद रहे कि ख़ुदा की राह से रोकना और ख़ुदा से इन्कार और मस्जिदुल हराम (काबा) से रोकना और जो उस के अहल है उनका मस्जिद से निकाल बाहर करना (ये सब) ख़ुदा के नज़दीक इस से भी बढ़कर गुनाह है और फ़ितना परदाज़ी कुश्ती ख़़ून से भी बढ़ कर है और ये कुफ्फ़ार हमेशा तुम से लड़ते ही चले जाएँगें यहाँ तक कि अगर उन का बस चले तो तुम को तुम्हारे दीन से फिरा दे और तुम में जो शख्स अपने दीन से फिरा और कुफ़्र की हालत में मर गया तो ऐसों ही का किया कराया सब कुछ दुनिया और आखेरत (दोनों) में अकारत है और यही लोग जहन्नुमी हैं (और) वह उसी में हमेशा रहेंगें (217)
इन्नल्लजी-न आमनू वल्लज़ी-न हाजरू व जाहदू फ़ी सबीलिल्लाहि उलाइ-क यर्जू-न रहमतल्लाहि , वल्लाहु गफूरूर्रहीम (218)
बेशक जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और ख़ुदा की राह में हिजरत की और जिहाद किया यही लोग रहमते ख़ुदा के उम्मीदवार हैं और ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (218)
यस्अलून-क अनिल-खम्रि वल-मैसिरि कुल फ़ीहिमा इस्मुन् कबीरूंव-व मनाफ़िअु लिन्नासि व इस्मुहुमा अक्बरू मिन्नफ्अिहिमा , व यस्अलून-क माज़ा युन्फ़िकू-न , कुलिल-अफ़-व कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुमुल्-आयाति लअल्लकुम् त-तफ़क्करून (219)
(ऐ रसूल) तुमसे लोग शराब और जुए के बारे में पूछते हैं तो तुम उन से कह दो कि इन दोनो में बड़ा गुनाह है और कुछ फायदे भी हैं और उन के फायदे से उन का गुनाह बढ़ के है और तुम से लोग पूछते हैं कि ख़ुदा की राह में क्या ख़र्च करे तुम उनसे कह दो कि जो तुम्हारे ज़रुरत से बचे यूँ ख़ुदा अपने एहकाम तुम से साफ़ साफ़ बयान करता है (219)
फ़िद्दुन्या वल्-आखि-रति व यस्अलून – क अनिल यतामा , कुल इस्लाहुल्लहुम् खैरून् , व इन् तुख़ालितूहुम् फ़-इख्वानुकुम , वल्लाहु , यअलमुल मुफ्सि-द मिनल-मुस्लिहि , व लौ शाअल्लाहु ल – अअ्न – तकुम , इन्नल्ला-ह अजीजुन हकीम (220)
ताकि तुम दुनिया और आख़िरत (के मामलात) में ग़ौर करो और तुम से लोग यतीमों के बारे में पूछते हैं तुम (उन से) कह दो कि उनकी (इसलाह दुरुस्ती) बेहतर है और अगर तुम उन से मिलजुल कर रहो तो (कुछ हर्ज) नहीं आख़िर वह तुम्हारें भाई ही तो हैं और ख़ुदा फ़सादी को ख़ैर ख्वाह से (अलग ख़ूब) जानता है और अगर ख़ुदा चाहता तो तुम को मुसीबत में डाल देता बेशक ख़ुदा ज़बरदस्त हिक़मत वाला है (220)
व ला तन्किहुल मुश्रिकाति हत्ता युअमिन्-न व ल-अ-मतुम् मुअमि-नतुन् खैरूम्-मिम्-मुश्रि-कतिव् व लौ अअ्-जबत्कुम् व ला तुन्किहुल मुश्रिकी-न हत्ता युअ्मिनू , व ल-अब्दुम-मुअ्मिनुन् खैरूम् मिम्-मुश्रिकिंव वलौ अअ्ज-बकुम , उलाइ-क यदअू-न इलन्नारि वल्लाहु यद्अू इलल-जन्नति वल-मग्फिरति बि-इज्निही व युबय्यिनु आयातिही लिन्नासि लअल्लहुम् य-तज़क्करून (221)
और (मुसलमानों) तुम मुशरिक औरतों से जब तक ईमान न लाएँ निकाह न करो क्योंकि मुशरिका औरत तुम्हें अपने हुस्नो जमाल में कैसी ही अच्छी क्यों न मालूम हो मगर फिर भी ईमानदार औरत उस से ज़रुर अच्छी है और मुशरेकीन जब तक ईमान न लाएँ अपनी औरतें उन के निकाह में न दो और मुशरिक तुम्हे कैसा ही अच्छा क्यो न मालूम हो मगर फिर भी ईमानदार औरत उस से ज़रुर अच्छी है और मुशरेकीन जब तक ईमान न लाएँ अपनी औरतें उन के निकाह में न दो और मुशरिक तुम्हें क्या ही अच्छा क्यों न मालूम हो मगर फिर भी बन्दा मोमिन उनसे ज़रुर अच्छा है ये (मुशरिक मर्द या औरत) लोगों को दोज़ख़ की तरफ बुलाते हैं और ख़ुदा अपनी इनायत से बेहिश्त और बख़्शिस की तरफ बुलाता है और अपने एहकाम लोगों से साफ साफ बयान करता है ताकि ये लोग चेते (221)
व यस्अलून-क अनिल-महीजि कुल हु-व अ-ज़न् फअ्तज़िलुन्निसा-अ फ़िल-महीजि वला तक्रबूहुन्-न हत्ता यत्हुर्-न फ़-इज़ा त-तह्हर् न फ़अ्तूहुन्-न मिन् हैसु अ-म-रकुमुल्लाहु , इन्नल्ला-ह युहिब्बुत्तव्वाबी-न व युहिब्बुल मु-त-तहिहरीन (222)
(ऐ रसूल) तुम से लोग हैज़ के बारे में पूछते हैं तुम उनसे कह दो कि ये गन्दगी और घिन की बीमारी है तो (अय्यामे हैज़) में तुम औरतों से अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाएँ उनके पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाएँ तो जिधर से तुम्हें ख़ुदा ने हुक्म दिया है उन के पास जाओ बेशक ख़ुदा तौबा करने वालो और सुथरे लोगों को पसन्द करता है तुम्हारी बीवियाँ (गोया) तुम्हारी खेती हैं (222)
निसाउकुम् हरसुल्लकुम् फ़अतू हर्सकुम् अन्ना शिअ्तुम् व क़द्दिमू लि-अन्फुसिकुम , वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नकुम् मुलाकूहु , व बश्शिरिल्-मुअ्मिनीन (223)
तो तुम अपनी खेती में जिस तरह चाहो आओ और अपनी आइन्दा की भलाई के वास्ते (आमाल साके) पेशगी भेजो और ख़ुदा से डरते रहो और ये भी समझ रखो कि एक दिन तुमको उसके सामने जाना है और ऐ रसूल ईमानदारों को नजात की ख़ुश ख़बरी दे दो (223)
व ला तज्अलुल्ला-ह अुर्-ज़तल् लिऐमानिकुम् अन् तबर्रू व तत्तकू व तुस्लिहू बैनन्नासि , वल्लाहु समीअुन अलीम (224)
और (मुसलमानों) तुम अपनी क़समों (के हीले) से ख़ुदा (के नाम) को लोगों के साथ सुलूक करने और ख़ुदा से डरने और लोगों के दरमियान सुलह करवा देने का मानेअ न ठहराव और ख़ुदा सबकी सुनता और सब को जानता है (224)
ला युआखिजु़कुमुल्लाहु बिल्लग्वि फ़ी ऐमानिकुम् व लाकिंय्युआख़िजुकुम बिमा क-सबत् कुलूबुकुम , वल्लाहु गफूरून् हलीम (225)
तुम्हारी लग़ो (बेकार) क़समों पर जो बेइख्तेयार ज़बान से निकल जाए ख़ुदा तुम से गिरफ्तार नहीं करने का मगर उन कसमों पर ज़रुर तुम्हारी गिरफ्त करेगा जो तुमने क़सदन (जान कर) दिल से खायीं हो और ख़ुदा बख्शने वाला बुर्दबार है (225)
लिल्लज़ी-न युअ्लू-न मिन्निसा-इहिम् तरब्बुसु अर्-ब-अति अश्हुरिन् फ़-इन् फाऊ फ़-इन्नल्ला-ह गफूरूर्रहीम (226)
जो लोग अपनी बीवियों के पास जाने से क़सम खायें उन के लिए चार महीने की मोहलत है पस अगर (वह अपनी क़सम से उस मुद्दत में बाज़ आए) और उनकी तरफ तवज्जो करें तो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (226)
व इन् अ-जमुत्तला-क़ फ़-इन्नल्ला-ह समीअुन् अलीम (227)
और अगर तलाक़ ही की ठान ले तो (भी) बेशक ख़ुदा सबकी सुनता और सब कुछ जानता है (227)
वल्मुतल्लकातु य-तरब्बस्-न बि-अन्फुसिहिन्-न सलास-त कुरूइन् , व ला यहिल्लु लहुन्-न अय्यक्तुम्-न मा ख़-लकल्लाहु फ़ी अरहामिहिन्-न इन् कुन्-न युअ्मिन्-न बिल्लाहि वल्यौमिल-आख़िरि , व बुअ-लतुहुन्-न अहक्कु बि-रद्दिहिन्-न फ़ी ज़ालि-क इन् अरादू इस्लाहन् , व लहुन्-न मिस्लुल्लज़ी अलैहिन्-न बिल्मअरूफ़ि व लिर्रिजालि अलैहिन्-न द-र-जतुन् , वल्लाहु अजीजुन् हकीम (228)
और जिन औरतों को तलाक़ दी गयी है वह अपने आपको तलाक़ के बाद तीन हैज़ के ख़त्म हो जाने तक निकाह सानी से रोके और अगर वह औरतें ख़ुदा और रोजे आख़िरत पर ईमान लायीं हैं तो उनके लिए जाएज़ नहीं है कि जो कुछ भी ख़ुदा ने उनके रहम (पेट) में पैदा किया है उसको छिपाएँ और अगर उन के शौहर मेल जोल करना चाहें तो वह (मुद्दत मज़कूरा) में उन के वापस बुला लेने के ज्यादा हक़दार हैं और शरीयत मुवाफिक़ औरतों का (मर्दों पर) वही सब कुछ हक़ है जो मर्दों का औरतों पर है हाँ अलबत्ता मर्दों को (फ़जीलत में) औरतों पर फौक़ियत ज़रुर है और ख़ुदा ज़बरदस्त हिक़मत वाला है (228)
अत्तलाकु मर्रतानि फ़-इम्साकुम् बिमअ्रूफिन् औ तसरीहुम् बि इह्सानिन् , व ला यहिल्लु लकुम् अन् तअ्खुजू मिम्मा आतैतुमूहुन्-न शैअन् इल्ला अंय्यख़ाफ़ा अल्ला युक़ीमा हुदूदल्लाहि , फ़-इन् ख़िफ्तुम् अल्ला युकीमा हुदूदल्लाहि फ़ला जुना-ह अलैहिमा फ़ीमफ्तदत् बिही , तिल-क हुदूदुल्लाहि फ़ला तअतदूहा व मय्य-तअद्-द हुदूदल्लाहि फ़-उलाइ-क हुमुज्जालिमून (229)
तलाक़ रजअई जिसके बाद रुजू हो सकती है दो ही मरतबा है उसके बाद या तो शरीयत के मवाफिक़ रोक ही लेना चाहिए या हुस्न सुलूक से (तीसरी दफ़ा) बिल्कुल रूख़सत और तुम को ये जायज़ नहीं कि जो कुछ तुम उन्हें दे चुके हो उस में से फिर कुछ वापस लो मगर जब दोनों को इसका ख़ौफ़ हो कि ख़ुदा ने जो हदें मुक़र्रर कर दी हैं उन को दोनो मिया बीवी क़ायम न रख सकेंगे फिर अगर तुम्हे (ऐ मुसलमानो) ये ख़ौफ़ हो कि यह दोनो ख़ुदा की मुकर्रर की हुई हदो पर क़ायम न रहेंगे तो अगर औरत मर्द को कुछ देकर अपना पीछा छुड़ाए (खुला कराए) तो इसमें उन दोनों पर कुछ गुनाह नहीं है ये ख़ुदा की मुक़र्रर की हुई हदें हैं बस उन से आगे न बढ़ो और जो ख़ुदा की मुक़र्रर की हुईहदों से आगे बढ़ते हैं वह ही लोग तो ज़ालिम हैं (229)
फ़-इन् तल्ल-कहा फ़ला तहिल्लु लहू मिम्-बअदु हत्ता तन्कि-ह ज़ौजन् गैरहू , फ़-इन् तल्ल-कहा फला जुना-ह अलैहिमा अंय्य-तरा जआ इन् ज़न्ना अंय्युकीमा हुदूदल्लाहि , व तिल-क हुदूदुल्लाहि युबय्यिनुहा लिकौमिंय्यअ्लमून (230)
फिर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) दे तो उसके बाद जब तक दूसरे मर्द से निकाह न कर ले उस के लिए हलाल नही हाँ अगर दूसरा शौहर निकाह के बाद उसको तलाक़ दे दे तब अलबत्ता उन मिया बीबी पर बाहम मेल कर लेने में कुछ गुनाह नहीं है अगर उन दोनों को यह ग़ुमान हो कि ख़ुदा हदों को क़ायम रख सकेंगें और ये ख़ुदा की (मुक़र्रर की हुई) हदें हैं जो समझदार लोगों के वास्ते साफ साफ बयान करता है (230)
व इज़ा तल्लक्तुमुन्निसा-अ फ़-बलग्-न अ-ज-लहुन्-न फ़-अम्सिकूहुन्-न बिमअ्रूफ़िन औ सर्रिहूहुन्-न बिमअ्रूफिंव्-व ला तुम्सिकूहुन्-न ज़िरारल् लितअ्-तदू व मंय्यफ्अल् ज़ालि-क फ़-कद् ज़-ल-म नफ्सहू , व ला तत्तखिजू आयातिल्लाहि हुजुवंव-वज्कुरू निअ्-मतल्लाहि अलैकुम् व मा अन्ज़-ल अलैकुम् मिनल-किताबि वल्हिक्मति यअिजुकुम् बिही , वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नल्ला-ह बिकुल्लि शैइन् अलीम (231)
और जब तुम अपनी बीवियों को तलाक़ दो और उनकी मुद्दत पूरी होने को आए तो अच्छे उनवान से उन को रोक लो या हुस्ने सुलूक से बिल्कुल रुख़सत ही कर दो और उन्हें तकलीफ पहुँचाने के लिए न रोको ताकि (फिर उन पर) ज्यादती करने लगो और जो ऐसा करेगा तो यक़ीनन अपने ही पर जुल्म करेगा और ख़ुदा के एहकाम को कुछ हँसी ठट्टा न समझो और ख़ुदा ने जो तुम्हें नेअमतें दी हैं उन्हें याद करो और जो किताब और अक्ल की बातें तुम पर नाज़िल की उनसे तुम्हारी नसीहत करता है और ख़ुदा से डरते रहो और समझ रखो कि ख़ुदा हर चीज़ को ज़रुर जानता है (231)
व इज़ा तल्लक्तुमुन्निसा-अ फ़-बलग्-न अ-ज लहुन्-न फला तअ् जुलूहुन्-न अंय्यन किह-न अज्वाजहुन्-न इज़ा तराज़ौ बैनहुम् बिल्मअरूफ़ि , ज़ालि-क यू-अजू बिही मन् का-न मिन्कुम् युअ्मिनु बिल्लाहि वल्यौमिल-आख़िरि , ज़ालिकुम् अज्का लकुम् व अत्हरू , वल्लाहु यअ्लमु व अन्तुम् ला तअलमून (232)
और जब तुम औरतों को तलाक़ दो और वह अपनी मुद्दत (इद्दत) पूरी कर लें तो उन्हें अपने शौहरों के साथ निकाह करने से न रोकों जब आपस में दोनों मिया बीवी शरीयत के मुवाफिक़ अच्छी तरह मिल जुल जाएँ ये उसी शख्स को नसीहत की जाती है जो तुम में से ख़ुदा और रोजे आखेरत पर ईमान ला चुका हो यही तुम्हारे हक़ में बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात है और उसकी ख़ूबी ख़ुदा खूब जानता है और तुम (वैसा) नहीं जानते हो (232)
वल-वालिदातु युर ज़िअ्-न औलादहुन्-न हौलैनि कामिलैनि लि-मन् अरा-द अंय्यु तिम्मर्र जा-अ-त , व अलल्-मौलूदि लहू रिज्कुहुन्-न व किस्वतुहुन्-न बिल्मअरूफ़ि , ला तुकल्लफु नफ्सुन् इल्ला वुस्अहा ला तुज़ार-र वालि – दतुम् बि – व – लदिहा व ला मौलूदुल्लहू बि – व – लदिहा व अलल् – वारिसि मिस्लु ज़ालि – क फ़ – इन् अरादा फ़िसालन् अन् तराज़िम् मिन्हुमा व तशावुरिन् फला जुना – ह अलैहिमा , व इन् अरत्तुम अन् तस्तऱज़िअू औलादकुम् फ़ला जुना-ह अलैकुम् इज़ा सल्लम्तुम् मा आतैतुम् बिल्मअरूफ़ि , वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नल्ला – ह बिमा तअमलू-न बसीर (233)
और (तलाक़ देने के बाद) जो शख्स अपनी औलाद को पूरी मुद्दत तक दूध पिलवाना चाहे तो उसकी ख़ातिर से माएँ अपनी औलाद को पूरे दो बरस दूध पिलाएँ और जिसका वह लड़का है (बाप) उस पर माओं का खाना कपड़ा दस्तूर के मुताबिक़ लाज़िम है किसी शख्स को ज़हमत नहीं दी जाती मगर उसकी गुन्जाइश भर न माँ का उस के बच्चे की वजह से नुक़सान गवारा किया जाए और न जिस का लड़का है (बाप) उसका (बल्कि दस्तूर के मुताबिक़ दिया जाए) और अगर बाप न हो तो दूध पिलाने का हक़ उसी तरह वारिस पर लाज़िम है फिर अगर दो बरस के क़ब्ल माँ बाप दोनों अपनी मरज़ी और मशवरे से दूध बढ़ाई करना चाहें तो उन दोनों पर कोई गुनाह नहीं और अगर तुम अपनी औलाद को (किसी अन्ना से) दूध पिलवाना चाहो तो उस में भी तुम पर कुछ गुनाह नहीं है बशर्ते कि जो तुमने दस्तूर के मुताबिक़ मुक़र्रर किया है उन के हवाले कर दो और ख़ुदा से डरते रहो और जान रखो कि जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा ज़रुर देखता है (233)
वल्लज़ी – न यु – तवफ्फ़ौ – न मिन्कुम् व य – ज़रू – न अज्वाजंय्य – तरब्बस् – न बिअन्फुसिहिन् – न अर्ब – अ – त अश्हुरिवं – व अश्रन् फ़ – इज़ा बलग – न अ – ज – लहुन् – न फला जुना – ह अलैकुम् फ़ीमा फ़ – अल् – न फ़ी अन्फुसिहिन्-न बिल्मअरूफि , वल्लाहु बिमा तअ्मलू – न ख़बीर (234)
और तुममें से जो लोग बीवियाँ छोड़ के मर जाएँ तो ये औरतें चार महीने दस रोज़ (इद्दा भर) अपने को रोके (और दूसरा निकाह न करें) फिर जब (इद्दे की मुद्दत) पूरी कर ले तो शरीयत के मुताबिक़ जो कुछ अपने हक़ में करें इस बारे में तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उस से ख़बरदार है (234)